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वज्रयोगिनी मंदिर की विधाधारणी शक्तिशाली प्रियंवदा भाग 3

वज्रयोगिनी मंदिर की विधाधारणी शक्तिशाली प्रियंवदा भाग 3

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है । वज्रयोगिनी मंदिर की विद्या धारणी शक्तिशाली प्रियंवदा भाग दो अभी तक आप जान चुके हैं । आज यह भाग-3 है । आज के एपिसोड में हम जानेंगे कि आखिर प्रियंवदा की शादी उस राक्षस से हुई अथवा नहीं  । वह सूअर कौन था और आगे क्या हुआ । तो चलिए शुरू करते हैं । जैसा कि हम लोगों ने जाना है कि प्रियंवदा को अपने वशीकरण कंगन के माध्यम से राक्षस ने अपने वश में करने की कोशिश की । इसी वजह से वह विवाह करने के लिए भी तैयार हो गई । पहले वह राक्षस उसके पिता का रूप लेता है । उसके बाद एक सुंदर पुरुष का रूप लेकर उससे विवाह करने के लिए आ जाता है । प्रियंवदा उसके वशीकरण में थी । इसी कारण से वह तैयार हो जाती है । उससे विवाह करने के लिए दोनों एक दूसरे को माला पहनाते हैं । जैसे ही उनकी सुहागरात का समय आता है अंदर मकान में जैसे ही प्रवेश करते हैं । वहां एक सूअर पहले से ही मौजूद होता है । जो काफी विशालकाय और भयानक था । वह तीव्रता से प्रियंवदा कि और लपकता है और उसे मारने की कोशिश करता है । राक्षस उस सूअर के दांतो को पकड़ लेता है और कोशिश करता है कि वह उसको किसी प्रकार से रोक सके । लेकिन सूअर बहुत ही शक्तिशाली था अपने दांतो के प्रकार से उसने उस राक्षस को घायल कर दिया । और उसे दूर फेंक दिया । इधर प्रियंवदा भागने लगती है । प्रियंवदा को अपनी शक्ति का ज्ञान नहीं होता है । सूअर पूरी ताकत से उसकी ओर दौड़ता है । इधर राक्षस अपने आप को संभालता है और अपनी तंत्र विद्या से अपने घाव को ठीक कर लेता है । वह भी धीरे-धीरे करके उधर की और दौड़ता है । और फिर वह आकाश की और उड़कर उस ओर जाता है । ताकि वह प्रियंवदा को पहले ही पकड़ सके । और उस सूअर से उसे बचा सके।  प्रियंवदा भागते भागते पानी में एक कीचड़ में जाकर फस जाती है । उधर से दौड़ता हुआ सूअर बड़ी तेजी से उसकी ओर आता है ।

तभी राक्षस फिर से सूअर के सामने आकर खड़ा हो जाता है । और सूअर के दांतो को पकड़ लेता है । सूअर उस पर तीव्रता से हमला करता है । राक्षस यह जान चुका था कि यह सूअर साधारण सूअर नहीं है । क्योंकि ऐसे साधारण सूअरों को तो वह उसकी गर्दन से ही उखाड़ कर फेंक सकता था । मनुष्य की भी विसात उसके सामने कुछ भी नहीं है । उसके अस्त्र शस्त्रों का उस पर प्रभाव नहीं पड़ता है । तो इस भला सूअर से क्या समस्या होने वाली थी लेकिन ऐसा नहीं था । सूअर शक्तिशाली नजर आ रहा था । वह पूरी शक्ति से उस सूअर को रोकता है । तभी सूअर अपनी जीभ को उसकी नाक में डाल देता है । इसकी वजह से हक्का-बक्का सा राक्षस अपनी नाक को संभालता है । जैसे ही वह नाक को संभालता है । एक बार फिर से तीव्रता से उसके पेट में अपने दांतो को वह सूअर चुभो देता है । राक्षस के मुंह से आह निकल जाती है । राक्षस पूरी कोशिश करता है कि वह अपने पेट से उसके गड़े हुए दांतो को बाहर निकाल ले । लेकिन ऐसा करना उसके लिए संभव नहीं हो पा रहा था । सूअर अपनी शक्ति के मद में बड़ा होकर और भी विशालकाय होकर के उसे आकाश की ओर उछाल देता है । और दूर जाकर के वह राक्षस गिरता है । हालांकि यह राक्षस अपने आपको तंत्र मंत्र विद्या से सही कर लेता था । लेकिन वार इतना जबरदस्त था कि उसे अब तुरंत प्रियंवदा की रक्षा के लिए वहां पर पहुंचना कठिन था । सूअर तीव्रता से दौड़ता हुआ जाता है कीचड़ में फंसी हुई प्रियंवदा के हाथ पर हमला करता है । वह अपने हाथ से उस सूअर को रोकने की कोशिश करती है । और इसी बीच वह कंगन तोड़ देता है । कंगन के टूटते ही प्रियंवदा के ऊपर चढ़ा हुआ वशीकरण का असर नष्ट होने लगता है । वह चारों तरफ देखती है और अपने अंदर एक अलग सी शक्ति महसूस करती है ।

सूअर के दांत को पकड़कर सूअर को दूर छाल करके फेंक देती है । सूअर दूर जाकर के गिरता है और उसकी आंखों से आंसू गिरने लगते हैं । सूअर को इस रूप में देख कर के उसे रोता देख कर के बड़ा ही आश्चर्य प्रियंवदा को होता है । प्रियंवदा कुछ समझ नहीं पाती है । तभी वहां पर वह राक्षस अपने आप को ठीक करके पहुंच गया होता है । और कहता है मैं तुम से विवाह करने के लिए तत्पर था । मैंने तुमसे विवाह किया है अब तुम मेरी पत्नी हो  । चलो हमें अपने सुहागरात मनाने के लिए अपने घर कि और वापस लौटना चाहिए । आज से तुम मेरी सेवा करना और मैं तुम्हें अत्यधिक प्रेम करूंगा । प्रियंवदा उसकी ओर देखती है और गुस्से में उसको तमाचा जड़ देती है । गुस्साया हुआ राक्षस अपने आप को संभालता है । और कहता है अवश्य ही तुझ पर कोई जादू टोना किया गया है । यह जरूर तेरे उस शंभू नाथ ने किया होगा । इस पर प्रियंवदा बोलती है क्या कह रहा है । तब वह कहता है तू अपनी सारी बातें भूल चुकी  है ना । तो वह बोलती है कैसी बातें मुझे कोई बात याद नहीं है । और तू कौन है । वह कहता है मैं तेरे से प्रेम करने वाला तेरा पति हूं तेरा और मेरा विवाह हो चुका है । और तुझ पर तंत्र प्रयोग किया गया था एक व्यक्ति है जिसका नाम है शंभू नाथ । सब उसका ही किया धरा है । जा उसको पहले मार दे । क्योंकि जब तक तू उसे जान से नहीं मारेगी । तब तक तेरे पर चढ़ा हुआ यह तंत्र प्रयोग कभी हटेगा नहीं । और बड़ी ही चुपके से उसे गले लगाते हुए । उसकी गर्दन पर एक विशेष प्रकार का लेप मल देता है । प्रियंवदा जब तक उसे दूर करती है अपनी बाहों से । तब तक वह लेप उसकी गर्दन के पीछे लगा चुका था । उस लेप का असर होते ही एक बार फिर से वह वशीकरण के प्रभाव में आ जाती है । हालांकि यह वशीकरण कंगन के समान नहीं था । लेकिन जितनी देर में जो भी बातें उससे कही जाती है । उस बातों को समझकर वह सत्य समझ लेती है । यानी कि उसने इतनी देर में जो जो बातें कही उन्हें वह सच मान लेती है ।

जो कि वशीकरण का असर इतनी देर के लिए ही होता है । वह कहती है शंभू नाथ व्यक्ति कौन है । जिसकी वजह से मेरी जिंदगी खराब हुई है । तब वह राक्षस उसे बताता है कि । शंभू नाथ नाम का एक व्यक्ति था जिसने तुम्हारी मां का बलात्कार किया था । जिसकी वजह से तुम पैदा हुई और आज तुम्हारा जीवन इतना कष्टमय है ।  जाओ सबसे पहले तुम शंभू नाथ को मार डालो । वह कहती है मैं अवश्य ही उसे मार डालूंगी । राक्षस कहता है शायद तुम्हें अपनी शक्तियों का पता नहीं है । मैं तुम्हें एक विशेष प्रकार का द्रव्य देता हूं । इसे पी लो इसको पीते ही तुम्हें अपनी सारी शक्तियों का भान हो जाएगा । और उसे वह द्रव्य देने की कोशिश करता है । जैसे ही वह देने जा रहा होता है एक बार फिर से सूअर हमला कर देता है । और राक्षस को बुरी तरह से घायल कर देता है । राक्षस वहां से भाग जाता है । प्रियंवदा अपनी शक्तियों को याद करती है । और सूअर के वध के लिए एक खड़क को प्रकट कर लेती है  । अपने हाथ में मां काली का खड़क ध्यान करते हुए उसके हाथ में खड़क आ जाता है । वह स्वयं नहीं जानती थी कि उसके अंदर इतनी अधिक शक्तियां है । जैसे ही वह खड़क उस पर चलाने वाली होती है । रोता हुआ सूअर उसके सामने आ करके अपनी गर्दन झुका लेता है । उसे इस प्रकार दीन हीन देख कर के वह अपना खड़क रो लेती है । और ऊचे स्वर से पूछती है कौन है तू और क्यों मेरे मार्ग में आ रहा है क्यों मुझ पर हमला किया तूने । तो वह मनुष्य की आवाज में एक स्त्री बोलती है । मैंने तुझ पर कभी हमला नहीं किया मैं तो तेरी रक्षा कर रही थी । तेरे हाथों में बंधे हुए कड़े को तोड़ना मेरा उद्देश्य था । उसके कारण तू किसी के वश में थी । फिर प्रियंवदा उससे बात करते हुए कहती है आप कौन हैं । तो वह रोते हुए बोलती है मैं तेरी मां हूं । इस प्रकार वे अपने वास्तविक रूप में आ जाती है । एक राक्षसी जिसने प्रियंवदा को जन्म दिया था । वह उसकी मां थी । जैसे ही वह सारी बातें जानती है तो कहती है की मां आखिर मेरे पिता ने इस प्रकार से मुझे क्यों छोड़ दिया था । तो वह कहती है कि नहीं मैंने ही तुझे छोड़ा था । लेकिन मैं क्या करती तेरा पिता नीच एक दूसरी स्त्री के साथ है । मैं अगर तुझे नहीं छोड़ती और क्या करती ।

अकेली जान मैं तुझे कहा तक संभालती । आज तू जवान और बड़ी हो चुकी है । क्योंकि मैं जानती थी कि तू कुछ ही दिनों में अपने पूर्ण व्यस्क रूप को प्राप्त कर लेगी । कारण कि तू मेरी पुत्री है मैं एक राक्षसी हूं । मैं यह भी जान गई हूं कि तू विद्याधरा है । तेरे पास भगवान शिव की स्वता ही शक्तियां मौजूद है । अब हम दोनों राज करेंगे । और जो भी हमारा रास्ता रोकेगा उसको इस दुनिया से विदा कर देंगे । विद्याधरा कन्या प्रियंवदा आश्चर्य से अपनी मां को देखती है । और कहती है जी क्या यह करना उचित होगा । उसकी मां उसे समझाती है यह संसार तुम्हें जीने नहीं देगा । इसलिए तुम इस संसार को जीने ना दो । इसलिए अपनी शक्तियों को पहचानो अपनी शक्तियों को उजागर करो । तुम बहुत ही शक्तिशाली हो प्रियंवदा तुम विद्याधरा शक्ति से संपन्न हो । इस कारण तुम कोई भी रूप स्वरूप ले सकती हो । मैं तो केवल एक सूअर का ही रूप धारण कर सकती हूं । और इसी रूप में प्रहार करती हूं । अपनी शक्तियों का प्रयोग करती हूं । इसके अलावा में अपने मूल रूप में ही आ जाती हूं स्त्री बन जाती हूं और कभी मैं भयानक स्त्री और कभी अति सुंदर स्त्री का रूप धारण कर सकती हूं । इसके अतिरिक्त मै और कुछ नहीं रूप बदल सकती । लेकिन तुम विद्याधरा हो तुम्हारे पास रूप बदलने की अद्भुत क्षमता है ।

संसार में किसी भी जीव का किसी भी देव का रूप स्वरूप तुम धारण कर सकती हो । और अपनी शक्तियों से संपन्न होकर किसी भी को भी रोक सकती हो । तुम से अधिक शक्तिशाली इस समय कोई भी नहीं है । तुम पर किसी विशेष महायोगिनी देवी की कृपा है । इसी वजह से तुम्हारे अंदर बहुत सारी शक्तियां है । अभी तुमने जो खड़क प्रकट किया था वह किसी भी देव दानव देत्य का वध करने के लिए सक्षम है । और यह शक्ति तुम्हें कोई तपस्या करके नहीं स्वता ही प्राप्त हो गई है । इसीलिए मैं जानती हूं कि तुम अद्भुत विद्याधारणी शक्ति से संपन्न हो और अब मेरा साथ दो । इस पर वह बोलती है तो क्या मुझे शंभू नाथ का वध करना होगा । उसकी मां उससे हंसते हुए कहती है भला इसमें मुझे कुछ नहीं कहना । अगर तेरी इच्छा है कि तू शंभू नाथ को मार डाले तो तू जा उसे मार डाल । वैसे भी एक रात के संबंध के लिए मुझे किस प्रकार से विचलित होने की आवश्यकता है । वह तो दूसरी ही स्त्री के चक्कर में फंसा हुआ है । क्योंकि प्रियंवदा पर किया गया इतनी देर का वशीकरण अभी भी असर में था । इसलिए प्रियंवदा ने सोचा कि मैं शंभू नाथ का वध कर दू । शंभूनाथ स्वयं उसका पिता था और पूरी तरह निर्दोष था । वह राक्षसी माया को भी नहीं जानती थी । और दुर्गुणों के कारण उसमें कई सारे दुर्गुण आ गए थे । तभी उसकी मां उसे एक विशेष प्रकार की बात बताती है । उसकी मां उससे कहती है कि मेरा उद्देश्य तुझे प्राप्त करना था । और आज तू देख तू मुझे प्राप्त हो गई है । मैं तुझे एक गोपनीय बात बताती हूं तब विद्याधरा प्रियंवदा उससे पूछती है की मां मुझे बताओ । तो वह कहती है कि तुझे अद्भुत शक्तिशाली बनना है । तो यहां पर पांच तांत्रिक है उन पांच तांत्रिकों के पास अद्भुत अद्भुत प्रकार की शक्तियां है । तू जा प्रत्येक से विवाह कर ।

विवाह के बाद जब तू उनसे संबंध बनाएगी । तो तेरे साथ उनकी जितनी भी शक्तियां होंगी वह तुझे ही प्राप्त हो जाएंगी । इसके बाद मैं आ करके उनको मार डालूंगी । एक-एक करके जब तू पांचों को मार डालेगी । तो तेरे पास पांच तरह की शक्तियां होगी । इन पांच शक्तियों से तू पंच तत्वों को भी अपने अधीन कर सकेगी । और फिर संसार में देवता भी आकर के तुझे हरा नहीं पाएंगे । इसलिए तू ऐसा कर और वैसे भी तेरे अंदर वह भावनाएं पहले से ही भरी हुई है । क्योंकि तू मेरी ही पुत्री है । यह बात को प्रियंवदा नहीं समझ पा रही थी । हालांकि उसके अंदर एक पवित्र रक्त भी था वह था शंभू नाथ का । लेकिन उसके अंदर राक्षसी रक्त भी था । जो वासना से भरा हुआ होता है उसकी मां वासना के कारण से ही उसके पिता को अपने वश में कर पाई थी । और यही विद्या वह अपनी पुत्री को सिखा रही थी । कि किस प्रकार से उसे उन महान शक्तिशाली तांत्रिकों का वध करना है । और उनके साथ संबंध बनाकर उनकी सारी विद्याओं को प्राप्त कर लेना है । चूकि उसके अंदर एक दुर्गुण देवी के वरदान के कारण मौजूद हो गया था । इसी वजह से अब वह उसकी बात को पूरी तरह से गंभीरता से ले रही थी । इसलिए उसमें सबसे पहले शंभू नाथ का वध करने के बारे में सोचा । वह तीव्रता से खड़क लिए हुए शंभू नाथ के पास जाने लगी । जोकि देवी वज्रयोगिनी के साधना में लीन था । वह उसके पास पहुंच करके शंभू नाथ को जोर से हुकार कर बुलाती है और कहती है के । शंभू नाथ तेरा काल मैं आ गई हूं । मैं तेरा वध करने के लिए प्रकट हुई हूं । मैं तुझे जान से मारने के लिए आई हूं । याद करना है तुझे अंतिम बार जिसको चाहता है उसको याद कर ले । क्योंकि अब तेरी रक्षा कोई नहीं कर सकेगा । और ऐसा कहते हुए प्रियंवदा बड़ी ही जोर के साथ में उसके ऊपर खड़क को चला देती है । इसके बाद क्या हुआ हम लोग जानेंगे अगले भाग में । आपका दिन मंगलमय हो धन्यवाद ।

वज्रयोगिनी मंदिर की विधाधारणी शक्तिशाली प्रियंवदा भाग 4

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