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अघोरी विद्या और शमशान की चुड़ैल 5वां अंतिम भाग

अघोरी विद्या और श्मशान की चुड़ैल भाग अंतिम

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल में आपका एक बार फिर से स्वागत है । जैसा कि हमारी कहानी चल ही रही है कि हम अघोरी विद्या और श्मशान की चुड़ैल भाग चार तक हम पर ही चुके हैं यह पांचवा और अंतिम भाग है । इस कहानी में अब आगे क्या हुआ हम लोग जानेंगे किस प्रकार से सुकेश के दादा जी यानी कि विशंभर नाथ जी और दीनानाथ जी उन दोनों के साथ आखिर क्या हुआ । और किस प्रकार से उनके जीवन में आगे घटनाएं घटित हुई ।अभी तक आप 4 भागों में जान ही चुके हैं चितावर की लकड़ी को पाने के लिए यह लोग काफी कोशिश करते हैं । और कोवा के माध्यम से वह चीज उन्हें प्राप्त भी हो जाती है । लेकिन अचानक से उनके ऊपर एक कोवा का हमला सा होता है जिसकी वजह से उनके हाथ में चितावर की लकड़ी छिटक कर दूर चली जाती है । दोनों के दोनों लकड़ियां जो कि वह दो भागों में थी । एक एक करके वह दोनों उस चुड़ैल से पीछा छुड़ा सकते थे । लेकिन वह लकड़ी उनसे दूर खो गई थी उनके पास अब कोई विकल्प नहीं था । दोनों दौड़ते हैं और अपनी लकड़ियों को पकड़ने के लिए जाते हैं तभी कव्वो का पूरा का पूरा झुंड उनके चारों ओर इस तरह से मंडराने लगता है । कि वह देख नहीं पाते हैं कि आखिर चितावर की लकड़ी गई कहां । कहते हैं कि तभी वहां पर बारिश शुरू हो जाती है बारिश शुरू होने की वजह से और भी दिखना हर चीज का मुश्किल हो जाता है । अब उस बारिश को वह क्या कहें वह चमत्कारिक थी या यूं कहिए सच्ची थी या गलत थी कुछ पता नहीं चलता उधर दूर वह दोनों जो बाल्टी रखे हुए थे ।

किसी प्रकार से चितावर की दोनों लकड़िया दौड़ती हुई क्योंकि काफी पानी वहां भर गया था तो वह लकड़िया उछल उछल के किसी तरह से उसी बाल्टी में जाकर के प्रवेश कर गई । और यह चमत्कार हो या उनके स्वयं का भाग्य हो पेड़ की एक डाल टूट कर के उस बाल्टी के ऊपर जाकर गिर जाती है यानी कि अब बाल्टी पूरी तरह से बंद हो चुकी थी । और उसके अंदर चितावर की लकड़ीया सुरक्षित थी ना तो चितावर की लकड़ीया निकलकर कहीं जाने वाली थी और ना ही कोई और समस्या उनके पास आने वाली थी । लेकिन इधर दीनानाथ जी विशंभर नाथ दोनों के पास बहुत ही बड़ी समस्या उत्पन्न हो गई । वह कव्वो को किस तरह से झेले और ऊपर से चुड़ैले भी उन पर हमला करने के लिए उतारू थी । विशंभर नाथ जी ने अपनी रुद्राक्ष की माला उतारी और भगवान शिव के मंत्रों का जाप करने लगे दीनानाथ ने भी वही कार्य किया । इस प्रकार से दोनों ने एक दूसरे को पकड़ कर के उस मंत्र का जाप करते रहें इसकी वजह से कव्वो का हमला रुक गया । और चुड़ैले भी अपनी जगह पर शांत हो गई । यह सारी विधि तांत्रिक ने पहले ही उन्हें बता दी थी इसलिए कहीं कोई अलग से समस्या हो जाए या कोई बड़ी स्थिति बुरी हो जाए तो इससे आप लोग बच सके । इस प्रकार से वह लोग वहां से बच जाते हैं और धीरे-धीरे करके सुबह हो जाती है लेकिन अब दोनों ही लोग घबरा जाते हैं क्योंकि अब वह ढूंढते हैं तो कहीं उन्हें चितावर की लकड़ी दिखाई नहीं देती है ।

अब उनके पास कोई विकल्प नहीं था बिना चितावर की लकड़ी के अब वह कैसे अपने कार्य को संपादित करेंगे कैसे उनकी रक्षा होगी यही सब बातें उन्हें बहुत बुरी तरह से परेशान किए हुए थी । इसके लिए वह अब तांत्रिक के पास जाते हैं और उससे कहते हैं हमने रात में बहुत कोशिश की लेकिन हमें फिर भी चितावर की लकड़ी नहीं मिल पाई है । इस पर तांत्रिक कहता है मुझे तो ऐसा आभास नहीं लगता है कि तुम्हें सफलता ना मिली हो । मुझे तो ऐसा लगता है कि तुम्हें सफलता मिल चुकी है ऐसा करो मैं तुम्हें गुप्त चंडी मंत्र देता हूं । इस चंडी मंत्र का जाप करते हुए और हवन की राख को शमशान में बिखेरते हुए शमशान में दोबारा आज जाना । तुम्हें अवश्य ही दोबारा चितावर की लकड़ी मिल जाएगी चाहे उस लकड़ी की भयंकर पहरेदारी भी हो रही हो । तांत्रिक की बात सुनकर दीनानाथ और विशंभर नाथ ने कहा यह हम दोनों के बस का नहीं है आपको भी इस बार हमारे साथ चलना होगा क्योंकि हमें नहीं लगता कि कुछ भी इतनी आसानी से प्राप्त होने वाला है । इस पर विशंभर नाथ और दीनानाथ के साथ तांत्रिक भी चलने को तैयार हो जाते हैं ।

उस बाल्टी में पड़ी चितावर की लकड़ी और उस बाल्टी पर गिरा हुआ पेड़ की डाल की वजह से वह चितावर की लकड़ीया पूरी तरह से उस पानी में सुरक्षित थी । लेकिन फिर भी समस्या यह बहुत बड़ी थी क्योंकि अगर उसे प्राप्त करना था तो उस पेड़ की डाल को हटाने थी । और रात भर में चुड़ैले अपने साथियों के साथ उसकी पहरेदारी करने लगी थी क्योंकि वह कोई ऐसी बात जानती थी जो कोई नहीं जानता था । वह सिर्फ तांत्रिक को पता थी और उन चुड़ैलों को । चुड़ैले वहां  मंडराने लगी और उन्होंने अपनी फौज इकट्ठा कर ली उसकी रक्षा करने के लिए । इधर इन लोगों ने भोजन किया और रात का समय होने पर उस ओर बढ़ चले इन्होंने आपस में निर्धारित किया कि । आज कुछ भी हो जाए हमको वह किसी भी हालत में लकड़ी प्राप्त करनी ही होगी बिना उसके कुछ भी संभव नहीं है । इस प्रकार तांत्रिक और दोनों दोस्त एक साथ उस जगह की ओर निकल लिए जहां पर श्मशान था । जैसे ही रात हुई उन्होंने श्मशान में प्रवेश करना शुरू कर दिया इधर चुड़ैलो ने चारों तरफ उन लकड़ियों को घेरे हुए थी । और हर तरफ से पायलों की छनकार ऐसी सुनाई दे रही थी और भयानक भयानक आवाजें आती थी । लेकिन चंडी मंत्र का पाठ करते हुए और चारों और राख फेंकते हुए वह तीनों आगे बढ़ते चले जा रहे थे ।

और उनकी तरफ कोई भी शक्ति आगे नहीं बढ़ पा रही थी क्योंकि मंत्र की शक्ति के कारण और अभिमंत्रित राख के कारण उनके आसपास कोई भी शक्ति भटक नहीं पा रही थी । धीरे-धीरे करके श्मशान में उन्होंने चक्कर लगाया और सोचा कि कहीं तो चितावर की लकड़ी मिलेगी । लेकिन चितावर की लकड़ी कहीं दिखाई नहीं दी तांत्रिक ने कहा आखिर चितावर की लकड़ी जा कहां सकती है । मुझे तो ऐसा आभास बिल्कुल भी नहीं हुआ चितावर की लकड़ी कहीं खो जाए वह यहीं कहीं है । लेकिन हम उसे देख नहीं पा रहे हैं और हो सकता है कि चुड़ैलों की माया की वजह से उसे ना देख पा रहे हो । अब मुझे सारा वाकया दोबारा से सुनाओ । तो विशंभर नाथ ने सारी बात उन्हें फिर से सुना दी । और कहा कि मुझे लगता है कि अब हमें उसी स्थान की ओर चलना चाहिए जहां पर यह सारा कुछ घटित हुआ । तो इन्होंने उसी स्थान पर जाकर के देखा कुछ दूर पर पेड़ गिरा हुआ था तांत्रिक ने कहा मुझे लगता है इस पेड़ में कोई राज हो सकता है । चलो इस पेड़ को उठाओ और साथ उस बाल्टी को भी खोज कर लो जो मुझे लगता है कि शायद पेड़ के ही नीचे दबी हो । उन्होंने कहा हो सकता है इस प्रकार । उन्होंने उस पेड़ को हटाने की कोशिश की और जैसे ही हटाया गया उन्हें वह बाल्टी दिख गई बाल्टी को जैसे ही उन्होंने देखा चितावर की दोनों लकड़ियां उसी में घूम रही थी ।

तीनो लोग काफी खुश थे क्योंकि उनका मनोवांछित कार्य पूर्ण हो चुका था । और उसको उठाया और चल दिए अपने घर की ओर घर पर पहुंचकर के तांत्रिक क्रियाएं शुरू कर दी गई । उन्होंने एक कुंड खोदा उस कुंड में उन्होंने पानी भर दिया पूरा का पूरा साफ पानी था । और उसके बाद उन्होंने कहा कि बिल्कुल साफ पानी में कुछ गंगाजल भी मिला लीजिए ताकि यह पूरा का पूरा जल पवित्र हो जाए । दीनानाथ के घर से पवित्र गंगाजल को मंगा लिया गया और उस कुंड में डाल दिया गया । जिससे कि उस कुंड का पानी शुद्ध हो जाए उसके बाद मंत्रों को अभिमंत्रित करके चितावर की लकड़ियों को दोनों की दोनों उसके अंदर डाला गया । पहले मंत्र के साथ चितावर की लकड़ी एकदम से बहुत तेजी के साथ उस कुंड के अंदर घूमने लगी । तभी वहां पर एक भयंकर चुड़ैल पैर भटकते हुए आई वह बहुत ही गुस्से में थी उसकी नथ बड़ी-बड़ी थी चेहरा एकदम काला और भयानक था उसको देखते ही आदमी बेहोश हो जाए ऐसे भयानक रूप में थी । और वह चिल्लाते हुए कहने लगी तू मुझे इस पानी में कैद नहीं कर सकता है रुक जा नहीं तो अभी तेरी गर्दन उड़ा दूंगी तांत्रिक ने कहा तुम्हें जो करना है करो । मैं चंडी मंत्र से पूरी तरह से सुरक्षित हूं और मेरे दोनों साथी भी सुरक्षित है तुझे जो भी उपद्र करना है कर ले । कुछ देर धमकाने के बाद वह एकदम से खींचती चली गई जिस और पानी था वह अपने कदम रोक नहीं पा रही थी । इस प्रकार उस पानी में उसने छलांग लगा दी उसका विशालकाय रूप एकदम छोटी सी आकृति में बदल गया ।

और उस चितावर की लकड़ी ने उसे चारों ओर से जकड़ लिया पानी में ही वह पहली चुड़ैल पूरी तरह से फंस चुकी थी । किसी तरह थोड़ी देर बाद दूसरी चुड़ैल भी आ गई और उसने पूरी कोशिश की वह दीनानाथ को अपने प्रेम जाल में फंसा सके उसने अपने स्वरुप को नग्न किया और भिन्न-भिन्न प्रकार के वस्त्रों को बदलती हुई नृत्य करने लगी चारों और उनके घूमती नाचती हंसी ठिठोली करती । लेकिन उसकी क्रियाओं की और ना ध्यान देने के लिए तांत्रिक ने कहा । क्योंकि वह जानते थे कि अगर वह सुरक्षा घेरे से बाहर गए और चंडी पाठ किसी भी समय भूल गए तो फिर यह चुड़ैल हम पर हावी हो जाएगी और मार डालेगी दीनानाथ तो पहले ही घबराए हुए थे ।क्योंकि वह जानते थे कि चुड़ैल किस तरह उनके साथ गलत हरकतें करती है इस प्रकार डरते डरते उन्होंने मंत्रों का जाप किया । अब मंत्रों का प्रभाव पड़ने लगा और वह चुड़ैल धीरे-धीरे करके छोटी हो गई और वह भी पानी में कूद गई ।उसे भी चितावर की लकड़ी ने उसे अपने कब्जे में ले लिया इसके बाद वहां पर थोड़ी ही देर में बाहर से एक व्यक्ति आया और वह कहने लगा मेरे घर में एक चुड़ैल है ।

जो बहुत ही ज्यादा परेशान कर रही है कृपया करके मेरे घर की बाधा को दूर कीजिए । यह उस तांत्रिक के लिए उसने कहा तांत्रिक ने कहा हां यह बात तो पूर्ण हो चुकी है चलो मैं अपने मंत्र दे देता हूं । उन्होंने विशंभर नाथ जी के कान में मंत्र बोला और कहा इस मंत्र को 7 बार बोलने से चुड़ैल आपके सामने प्रकट हो जाएगी और चितावर की लकड़ी उसके सामने ही रखे रखिएगा । अपने हाथ में ही पकड़े रखें इससे वह आपके वश में रहेगी । दीनानाथ जी को कहा गया था दीनानाथ जी ने कहा मुझे यह चुड़ैल नहीं रखनी है । चाहे तो दूर ही आप इस चितावर की लकड़ी के साथ  मुक्त कर दीजिए । अर्थात इसे समाप्त कर दीजिए चंडी मंत्र का जाप करते हुए उन्होंने चितावर की लकड़ी पर विभिन्न प्रकार के प्रयोग किए । और उसी प्रकार लकड़ी सहित वह चुड़ैल भस्म हो गई । इधर यह चितावर की लकड़ी विशंभर नाथ जी को दे दी गई और वह तांत्रिक उस व्यक्ति के कार्य को संपन्न करने के लिए चला गया । विशंभर नाथ जी अपने घर में आए और उन्होंने मंत्र को 7 बार बोला जो अभी उस तांत्रिक ने उन्हें दिया था जैसे ही उन्होंने वह मंत्र बोला ।

वहां पर भयंकर चुड़ैल प्रकट हो गई और वह कहने लगी बता बेटा किस लिए बुलाया है तूने मुझे । विशंभर नाथ ने कहा कुछ भी हो लेकिन आप मां के रूप में मेरे से सिद्ध हुई है मैंने अपना रक्त आपको दिया था आप मेरे सारे कार्य को संपन्न करेंगी ।कहते हैं उसी के बाद से उनके पास वह सिद्धि रही उन्होंने वे सिद्धि और वह लकड़ी चितावर की अपने बेटे को भी दी । और इसके बाद उनके पिता ने सुकेश जी को दी थी ।लेकिन आश्चर्यजनक चमत्कारिक ढंग से सुकेश जी बताते हैं कि उनके साथ एक विशेष प्रकार की घटना घटी । एक बार वह किसी तांत्रिक प्रयोग करने के लिए रास्ते में किसी व्यक्ति के साथ जा रहे थे तभी वहां पर एक छोटी सी लड़की आई । और उस लड़की ने बड़े ही प्यार से उनके साथ में आकर कहा कि मैं भटक गई हूं कृपया करके मुझे मेरे घर तक पहुंचा दीजिए । सुकेश जी ने सोचा चलो तांत्रिक कार्य को लिपटाने से पहले मैं इस लड़की को उसके घर पहुंचा देता हूं  ।

थोड़ी दूर चलने के बाद वह लड़की अचानक से विशालकाय हो गई और उसने जोर का तमाचा सुकेश जी को मारा । और सुकेश जी से बोला कि तेरी अभी औकात नहीं है तू इस चीजों को अपने पास रख सके । वह बहुत ही कोई शक्तिशाली शक्ति थी और इन्होंने अभी तक इस तरह की शक्तियों का कोई सामना नहीं किया था । उनके हाथ से उनकी पोटली में से वही चितावर की लकड़ी उसने छीनी और उसे लेकर के वह उड़ गई । यह सब उनके आंखों के सामने ऐसे घटित हुआ जैसे कि कोई सपना हो । वह कहते हैं कि मैंने अपने पिता से जो प्राप्त किया था और जिस प्रयोग से मैं और काम करता था शायद अब उस शक्ति का जाने का समय हो चुका था । क्योंकि मैंने उसकी सिद्धि नहीं की थी वह सिद्धि मेरे पिता की थी और उनके पिता की थी मेरे असली दादाजी की थी । जिसकी वजह से मेरे पिता को प्राप्त हुई थी और उनके द्वारा मेरे को प्राप्त हुई थी ।

स्वाभाविक रूप से ही और मैं उससे कई तरह के कार्य लिया करता था । लेकिन मुझे लगता है कि मुझे उसकी पूजा और उपासना करनी चाहिए थी या फिर उसे मुक्त कर देना चाहिए था । वरना इस तरह की हरकत वह मेरे साथ नहीं करती शायद समय हो गया होगा । इसी वजह से वह शक्ति मेरे हाथ से चली गई और आज वह हमेशा के लिए वह शक्ति मेरे हाथ से निकल चुकी है । इसीलिए मैंने आपको यह कहानी बताई है और समझ सके कि चितावर की लकड़ी से चुड़ैलों को कैद किया जा सकता है । लेकिन इसकी गोपनीय विधि बहुत ही विशिष्ट तांत्रिकों से प्राप्त कर सकते हैं । क्योंकि यह बहुत ही गोपनीय विधि है अगर कोई व्यक्ति ऐसी विधि कर लेता है चुड़ैल हमेशा उसके बस में रहती है और चितावर की लकड़ी के माध्यम से उसे जकड़ लिया जाता है । तो उसे उसका कार्य करना होता है तो इस प्रकार से यह कहानी यहां पर समाप्त हो जाती है । और आप लोग जान सकते हैं कि चितावर की लकड़ी कितनी शक्तिशाली हो सकती है । धन्यवाद आपका दिन मंगलमय हो ।

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