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अघोर विद्या और श्मशान की चुड़ैल भाग 4

अघोर विद्या और श्मशान की चुड़ैल भाग 4

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल में आपका एक बार फिर से स्वागत है । अघोरी विद्या और श्मशान की चुड़ैल भाग 3 आप पढ़ चुके हैं और अभी तक की कहानी का सारांश कुछ इस तरह का है एक अघोरी से मणिया प्राप्त करने के बाद हीरे के रूप में उनकी बहुत ज्यादा कीमत थी । एक व्यक्ति थे विशंभर नाथ उनको मिली । इस बात को उन्होंने अपने दोस्त दीनानाथ को बताया दीनानाथ और विशंभर नाथ दोनों मिलकर एक अघोरी के पास गए । और अघोरी ने अपनी तांत्रिक सिद्धि से पहले वाले अघोरी की पता लगाने की कोशिश की । जिसमें उस अघोरी ने एक साधना की और साधना में असफल रहा और इस वजह से उसकी मौत भी हो गई । इसी से विशंभर नाथ और दीनानाथ पर भी चुड़ैलों का वास हो गया । और दोनों चुड़ैलों से छुटकारा पाने के लिए वह एक तांत्रिक के पास जाते हैं । तांत्रिक ने मूल चुड़ैल जिसने उस अघोरी तांत्रिक का वध किया था उससे छुटकारा दिला दिया । लेकिन विशंभर नाथ की चुड़ैल और दीनानाथ की चुड़ैलों का भी सामना उन दोनों को करना था । इस पर तांत्रिक ने उन्हें बताया कि अगर चितावर की लकड़ी तुम्हें मिल जाए तो तुम दोनों की समस्या दूर हो सकती है ।

इसके लिए वह उन्हें श्मशान में भेज देता है रात्रि के समय में उनकी बताई गई विधि के अनुसार उन्हें चितावर की लकड़ी लानी थी । अब आगे जानते हैं कि उनके साथ क्या घटित हुआ । विशंभर नाथ और दीनानाथ दोनों जब उस भयंकर श्मशान की तरफ जा रहे थे तो उन्हें रास्ते में कुछ पीछे चलने की आवाज आई । दोनों ने एक दूसरे को इशारा किया और कहा कि यह वही चुड़ैल हैं जो हमारे साथ हमारे पीछे लगी हुई है । दीनानाथ ने कहा मैं किसी भी प्रकार से सोना नहीं चाहता क्योंकि अगर मैं सोया तो उसका वही भयानक खेल फिर से शुरू हो जाएगा । मैं उससे बचना चाहता हूं । विशंभर नाथ ने भी कहा हां तांत्रिक की बताई गई विधि के अनुसार हमको यहां एक बहुत पुराना पेड़ ढूंढना है । और सबसे पुराने उस पेड़ के नीचे इंतजार करना है कि कौवा कब आएगा । वह कौवा आकर के चितावर की लकड़ी लेकर आएगा हमें उसके मुंह से वह चितावर की लकड़ी नीचे गिरते ही पकड़ लेनी है । और उसके दो टुकड़े करके एक टुकड़ा  तुम्हारे पास रखना है और एक टुकड़ा मैं अपने पास रख लूंगा । और फिर हमें तांत्रिक के पास जाना होगा तांत्रिक की बताई हुई विधि के अनुसार दोनों लोग आगे बढ़ते जा रहे थे ।

और अपने पीछे चलती हुई उन चुड़ैलों पर ध्यान नहीं दे रहे थे । विशंभर नाथ और दीनानाथ दोनों ही अंधेरा होते ही आ चुके थे ।क्योंकि तांत्रिक का कहना था कि रात्रि के किसी भी पहर वह कौवा आएगा । और उस पेड़ पर जाकर के बैठेगा और तभी वह एक बार चितावर की लकड़ी नीचे गिराएगा । अगर कोई उस लकड़ी को नहीं उठाता है तो वह एक बार फिर से उस लकड़ी को उठाकर के उड़ जाएगा और फिर अगली अमावस से पहले नहीं आएगा । और इसलिए मौका तुम्हारे पास सिर्फ यही है । विशंभर नाथ और दीना नाथ इस बात को समझते ही जैसे ही अंधेरा हुआ । वह दोनों उस २ श्मशान की तरफ बढ़ गए और उस शमशान में जाकर के वह पेड़ ढूंढ लिया । और उसके नीचे जाकर बैठ गए ।विशंभर नाथ और दीनानाथ बातें करने लगे और कहने लगे कहां हम इन सब चक्रों में पड़ गए जितना भी मुझे मिला था उतने में ही मुझे संतोष कर लेना चाहिए था । अघोरी से मिलने के चक्कर में हम बहुत बूरी समस्या में फंस चुके हैं ।दिसंबर नाथ ने दीनानाथ से इस तरह की बातें कहीं ।दीनानाथ ने कहा तुम तो फिर भी उत्तम हो तुम्हें तो बहुत कुछ प्राप्त भी हुआ मुझे क्या प्राप्त हुआ तुम्हारे चक्कर में आकर के मेरी पत्नी मुझसे ही नाराज है खाना तक नहीं बनाती है । कहती है मैं उसे उठाकर के पटक देता हूं अब उसे कौन समझाए कि मैं कभी भी रात में उसे धक्का नहीं देता हूं यह चुड़ैल करती है ।

और मेरा तो जीना ही हराम है मैं सो भी नहीं सकता क्योंकि मैं जैसे ही सोऊंगा उसकी लीलाए शुरू हो जाएंगी । और वह मेरे शरीर के साथ खिलवाड़ करना शुरू कर देगी आज कुछ भी हो जाए ।क्योंकि आज अमावस की रात है मैं नहीं सोऊंगा चाहे कौवा आए या ना आए लेकिन मैं ऐसे ही बैठा रहूंगा अपनी आंखें खोले हुए । विशंभर नाथ हंसते हुए कहते हैं हां आज तुम्हें पूरी रात उल्लू बने ही रहना होगा । दीनानाथ ने कहा ठीक है हंस लो लेकिन जब जिस पर यह बितती है तो बेचारा वही जानता है । मेरे पर बीत रही है इसलिए मैं यह जानता हूं बस जल्दी से जल्दी वह कौवा आ जाए । जिससे हमें चितावर की लकड़ी प्राप्त करनी है । तभी दीनानाथ ने पूछा हम बातों ही बातों में यह भूल ही गए कि चितावर की लकड़ी का पता लगाएंगे कि वास्तव में वह चितावर की लकड़ी है । विशंभर नाथ ने कहा मैंने तांत्रिक से बात की थी उसने कहा था कुछ खास बातें ही पता लगा देती हैं चितावर की लकड़ी कौन सी होती है । दीनानाथ ने उनसे पूछा विशंभर नाथ जी अगर आपने तांत्रिक से यह बात पूछ ली है तो कौन सी चितावर की लकड़ी है । इस बात का पता करना मुझे भी बताइए । विशंभर नाथ कहते हैं कि दीनानाथ आप अपने साथ देखिए कि थोड़ा सा पानी बाल्टी में लेकर के आए हैं । विशंभर नाथ की बात सुनकर के दीनानाथ ने कहा हां । बाल्टी तो मैं लाया ही हूं तो विशंभर नाथ ने कहा इसी से ही हमें पता लगेगा ।

बाल्टी में देखिए एक लोटा भी पड़ा हुआ है फिर दीनानाथ ने कहा हां । तो हम लोग पानी की वजह से जानेंगे और इसके अलावा आग भी बताती है की चितावर की लकड़ी कौन सी है । दीनानाथ ने कहा अब पहेलियां ना बुझाओ और मुझे पूरी बात समझाओ ताकि मैं जान सकूं कि चितावर की लकड़ी का असली राज है क्या । इस पर विशंभर नाथ जी ने बोला  मैंने तांत्रिक से इस बारे में पूछा था उसने हमें यह बताया जो लकड़ी आग में ना जले वह चितावर की लकड़ी होती है ।लेकिन इससे पता तब भी नहीं चल पाता क्योंकि आग चला कर रखने के बाद उस लकड़ी को ढूंढना बड़ा कठिन होता है  । इसलिए सबसे अच्छी सरल विधि है पानी है । दीनानाथ ने कहा वह तो मैं भी जानता हूं मैं इसीलिए तो पानी लेकर आया हूं लेकिन हम लोग पता कैसे करेंगे कि चितावर की असली लकड़ी है कि नहीं । विशंभर नाथ कहते हैं चितावर की लकड़ी की सबसे बड़ी विशेषता यह है वह पानी में उल्टी दिशा की ओर दौड़ती है । तो दीनानाथ कहने लगा हमने तो बाल्टी में पानी भरा है अब यह कैसे पता लगेगा कि वह लकड़ी पानी में उल्टी दिशा की तरफ कैसे दौड़ रही है ।क्योंकि पानी तो मेरे पास स्थित है और यह स्थिर पानी कभी भी नहीं बता सकता वह किधर की ओर बह रहा है ।विशंभर नाथ जी कहते हैं कि दीनानाथ आप बहुत सीधे हैं जो आप लोटा देख रहे हैं ना बस उसी का कमाल है सारा ।

विशंभर नाथ की बात को दीनानाथ फिर से नहीं समझे आप मुझसे घुमा फिरा कर बात ना कीजिए मुझे पूरे अच्छी तरह समझाइए कि चितावर की लकड़ी असली पहचान कैसे की जाती है । विशंभर जी ने हंसते हुए कहा यह तो बड़ा ही सरल है लकड़ी को हम इस बाल्टी के अंदर डाल देंगे और लोटे में हम पानी भर लेंगे और अब जब आप लोटे में पानी लेकर के इससे फिर बाल्टी में गिर आएंगे पानी जो है । वह नीचे की और बहेगा आप यह बात जानते ही हैं उसी समय चितावर की लकड़ी ऊपर उठना शुरू कर देगी । और आपकी धार के साथ वह लोटे में आने का प्रयास करेगी दीनानाथ ने कहा क्या ऐसा हो सकता है । तो इस पर विशंभर नाथ ने कहा कि अगर यकीन ना हो तो जब हम को लकड़ी मिल जाए तो यह मैं आपको करके भी दिखाऊंगा ।दीनानाथ ने कहा हां ठीक है कम से कम यह तो पता लगेगा उल्टी दिशा की और आखिर कैसे चितावर की लकड़ी भागती है । विशंभर नाथ की बात विश्वास करके दीनानाथ जी वही बैठ गए कुछ ही देर बाद दीनानाथ जी को नींद आने लगी । विशंभर नाथ जी ने उन्हें जगाया और कहा आपको सोना नहीं है । दीनानाथ जी ने कहा हा हा हा लेकिन क्या करूं आजकल बीवी खाना नहीं बनाती है । अपने आप ही मुझे ही बनाना पड़ रहा है इसलिए बड़ी समस्या है और थकावट भी लग जाती है । विशंभर नाथ और दीनानाथ दोनों रात को इंतजार करने लगे रात के 2:00 बजे तक कुछ भी नहीं हुआ । अचानक से दीनानाथ की आंख लग गई कुछ ही देर बाद दीनानाथ चिल्ला पड़े छोड़ दे मुझे छोड़ दे और उठ कर भागने लगे । विशंभर नाथ ने उनका हाथ पकड़ा और कहा क्या हुआ दीनानाथ जी सो गए थे क्या । तभी दीनानाथ को होश आया कि वह सो रहा था शायद बैठे-बैठे थक जाने की वजह से उस पेड़ के नीचे उन्हें नींद आ गई ।

तभी उन्होंने देखा कि हां देखो मैं जैसे ही सोया उसने मेरी जांघ पर अपना हाथ फेरना शुरू कर दिया । देखो क्या स्थिति उसने मेरी कर दी अभी भी मेरी जांघ पर कोई है । विशंभर नाथ जी ने तुरंत ही उनसे कहा कि आप अपना पजामा ढीला कीजिए । दीनानाथ जी ने जैसे ही पजामा ढीला किया । उनके पजामे से एक मेंढक निकला और वह मेंढक को दूर करते हुए बोले कैसे कैसे दिन आ गए हैं अब मेंढक मेरी जांघ में उछल कूद मचा रहा है । और मैंने कुछ और ही समझा विशंभर नाथ दीनानाथ को देखकर हंसने लगे और कहने लगे हर जगह चुड़ैल नहीं आएगी ।आप इतना परेशान क्यों होते हैं दीनानाथ जी बेचारे विशंभर नाथ को देखते हैं और कहते हैं । अब जिसके ऊपर बीत रही हो वही जानता है । पता नहीं आज कितनी देर तक यहां बैठना होगा और मुझे तो वैसे भी बहुत भय लगता है इन सब चीजों से । देखा नहीं था पिछली बार कि उस तांत्रिक की वजह से हम लोगों को वहां से भागना पड़ा था और सारी समस्या उसी दिन से शुरू हुई । विशंभर नाथ ने कहा हां । यह बात तो ठीक कह रहे हो चलिए शांत हो जाइए सुबह होने से पहले देखते हैं कि क्या होता है । तभी वहां पर कुछ दूर पर उन्होंने पंचापो की आवाज सुनाई दी पंचापो की आवाज सुनते ही । विशंभर नाथ जी ने तुरंत ही अभिमंत्रित पानी अपने चारों तरफ छिड़क लिया जो कि तांत्रिक ने उन्हें दिया था । विशंभर नाथ जी के ऐसा करने पर दीनानाथ ने उनसे कहा यह काम आपने बहुत अच्छा किया है । अब अपनी तरफ आपने एक सुरक्षा घेरा बना लिया है इस सुरक्षा घेरे के कारण अब कोई भी बुरी शक्ति हमारी तरफ नजदीक नहीं आ सकती ।

क्योंकि शक्तियां अब यह चाहेंगे कि हम उस कव्वे से वह चितावर की लकड़ी ना छीन पाए । विशंभर नाथ ने कहा मैंने इसीलिए ऐसा किया है क्योंकि तुमको और मुझको दोनों को एक ही तरह की आवाज आई निश्चित रूप से यह कोई चुड़ैल थी । वह यहां पर आने की कोशिश कर रही थी अब हम लोग सुरक्षित हैं और हमने अपने चारों तरफ पानी छिड़क दिया है  । और अपने आप पर भी पानी छलक लिया है । यह अभिमंत्रित जल था जिसकी वजह से हम लोग सुरक्षित हैं ।अब हमें इंतजार करना है उस कौवा का कब आएगा ।अचानक से थोड़ी ही देर बाद अजीब सी घटना घटी वहां हल्की-फुल्की सी आंधी आने लगी आंधी के कारण वहां पर बड़ा ही भयंकर वातावरण सा बन गया । आंधी में विशंभर नाथ और दीनानाथ ने एक दूसरे का हाथ पकड़ लिया और कहा हमें पेड़ से चिपके रहना है । और किसी भी प्रकार से हमें कोई भी शब्द उच्चारित नहीं करना है बिल्कुल चुप बने रहना है अभी थोड़ी देर बाद हल्का सा पेड़ हिलने लगा ।विशंभर नाथ और दीनानाथ दोनों एक दूसरे देखकर घबराते हुए मन ही मन दिए गए मंत्रों का जाप करते रहें । तभी जैसे ही आंधी थमी बहुत सारे कौए आकर आकाश में उड़ते हुए भयानक कर्कश स्वर में उस पेड़ की ओर आते रहे । उन सारे के सारे कौओ को देख कर के उनके मन में बड़ा डर लगा । तभी उनमें से कुछ कौवे पेड़ की ओर लपके और कुछ उस पेड़ पर आकर बैठ गए ।

जिस पेड़ के नीचे विशंभर नाथ और दीनानाथ दोनों ही बैठे हुए थे । उनका वहा की आने की वजह से अब दोनों के दोनों समझ रहे थे कि । इन्हीं में से कोई एक कौवा निश्चित रूप से चितावर की लकड़ी लेकर आया है । बाकी कोवे श्मशान में मंडराते हुए कुछ देर घूमे और उसके बाद वह अपने स्थान की ओर उड़ते गए । रात्रि के समय ऐसा होना बहुत कम देखा जाता है । लेकिन फिर भी इस तरह का चमत्कार उन्होंने अपनी आंखों से देखा था । और इस चमत्कार के बाद दोनों बिल्कुल सजब हुए । वह दोनों कोवे को देख रहे थे कुछ देर बाद अचानक से दीनानाथ और विशंभर नाथ पर वह कोवे टूट पड़े उनको भगाते हुए विशंभर नाथ और दीनानाथ ने अपने हाथ में पकड़े हुए लकड़ी के डंडों से उन कोवे पर वार किया  । और देखते ही देखते वह सारे कोवे वहां से भाग गए सिर्फ एक कौवा पेड़ की सबसे ऊपरी डाल पर बैठा हुआ । अरे वाह उन्हें देख रहा था । उसने एक विशालकाय रूप ले लिया था और उस विशालकाय रूप के साथ ही साथ उसने अपने मुंह में दबाई हुई चितावर की लकड़ी जमीन पर गिरा दी । वह विशालकाए रूप में उन दोनों को देखता चला जा रहा था । विशंभर नाथ और दीनानाथ ने कहा कुछ भी हो जब तक यहां से नहीं जाता हमें यह लकड़ी नहीं उठानी है । हां अगर यह लकड़ी उठाने का प्रयास करें । तब हमें इससे यह लकड़ी छिननी होगी ।

क्योंकि तांत्रिक ने ऐसा ही बताया है । विशंभर नाथ और दीनानाथ दोनों उस विशालकाय कौवे को देखते रहे वह कौवा उन्हें घूरता रहा कुछ देर इंतजार करने के बाद में अचानक से वह उड़ गया । उसके उड़ते ही वहां से जाने पर तुरंत विशंभर नाथ और दीनानाथ लकड़ी की ओर दौड़े और उन्होंने उस लकड़ी को उठाया जो बिल्कुल तिरछी तिरछी थी । उसमें बार-बार कई सारे तिरछापन थे जैसे की सीधी लकड़ी होती है उस तरह की वह लकड़ी नहीं थी । बिल्कुल वी शेप में जिसे कहते हैं उसी अनुसार उसमें बहुत सारे वी शेप थे । इसलिए वह  लकड़ी लेकर के उन्होंने कहा यही है वह लकड़ी । विशंभर नाथ और दीनानाथ ने उस लकड़ी को तोड़ लिया उस लकड़ी को तोड़ कर के उसके दो भाग कर लिए । अब विशंभर नाथ ने कहा दीनानाथ जी अब देखिए इस का चमत्कार यह लकड़ी का एक भाग मेरे पास और लकड़ी का दूसरा भाग आपके पास है । अब पहली लकड़ी को पानी में डालिए विशंभर नाथ और दीनानाथ में से दीनानाथ ने अपनी लकड़ी को उस बाल्टी में डाली और वह लकड़ी पानी में चक्कर लगाने लगी क्योंकि पानी हल्का-फुल्का हिल रहा था । फिर विशंभर नाथ जी ने कहा लोटा भर पानी लेकर के इस लोटे के पानी को इस बाल्टी में डालिए । दीनानाथ ने ऐसे ही किया वह पानी लोटे से बाल्टी में डालने लगे तभी एक चमत्कार सा हुआ । और उससे सिद्ध हो गया वास्तव में यह चितावर की ही लकड़ी है ।

उन्होंने जब ऐसा किया तो वह लकड़ी उस पानी जो गिर रहा था ऊपर चढ़ने लग गई गिरते हुए पानी से वह चढ़ते हुए वह लौटे की तरफ बढ़ने लगी । ऐसा चमत्कार उन्होंने पहली बार देखा था और सोचने लगे कि वास्तव में चितावर की लकड़ी उल्टी दिशा की ओर बहुत तेजी से भागती है और पानी जिधर से आ रहा हो उसी दिशा की ओर बढ़ती है । पानी में चढ़ने के कारण जाना जा सकता है कि यह चितावर की ही लकड़ी है । दोनों बहुत ही ज्यादा खुश हुए और दोनों ने उस चितावर की लकड़ी को उस तांत्रिक के पास ले जाने की सोची । तभी उन्होंने उस कौवे को वापस आते हुए देखा वह विशालकाय कौवा एक बार फिर से उनकी ओर उड़ता हुआ चला आ रहा था । और उसने अपने पंजे से दीनानाथ और विशंभर नाथ के ऊपर प्रहार किया विशंभर नाथ और दीनानाथ दोनों के दोनों ही नीचे गिर गए साथ ही उनके हाथ से चितावर की लकड़ी भी छिटक गई । विशंभर नाथ और दीनानाथ ने कहा कि जल्दी से अपनी लगड़ी संभालो इससे पहले कि यह अपनी लकड़ी लेकर उड़ जाए । और उस चितावर की लकड़ी से बचने के लिए वह शक्तियां ऐसा कार्य कर रही है । वह सोचने लगे कि हो सकता है कि यह उन चुड़ैलों का ही काम हो जिसकी वजह से यह कौवा आया है । दोनों तेजी से उस लकड़ी की ओर दौड़े और इसी प्रकार वह तेजी से कौवा उनकी ओर दौड़ा । आगे क्या हुआ यह हम जानेंगे अगले भाग 5 अंतिम में । धन्यवाद आपका दिन मंगलमय हो ।

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