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अनुरागिनी यक्षिणी से मेरा सामना 4 अंतिम भाग

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य में आपका एक बार फिर से स्वागत है हमारी कहानी चल रही है आज हम जानेंगे अनुरागिनी यक्षिणी से मेरा सामना अंतिम भाग – जैसा कि आप लोग जानते ही हो कि मैंने यक्षिणी की परीक्षा ली थी उसमें वह सफल रही थी । मुझे भी अब यकीन हो गया था की जो मैं सपने में देख रहा हूं वह सब सही है यक्षो की दुनिया होती है । यह सारी बातें मैंने अपने भाई को बताई तो उसने कहा तभी मुझे सिद्धि नहीं मिल रही है । शायद चलो ऐसा करो कि तुम भी मेरे साथ ही बैठकर जाप करो देखते हैं क्या होता है मैं मान गया ।

अब मैं भी रात को उनके साथ ही बैठकर जाप करने लगा दोनों ने मिलकर साथ में उस रात को पूजा की लेकिन कोई अनुभव नहीं हुआ फिर भाई ने कहा ऐसा करो तुम अलग कमरे में जाकर जाप करो मेरे ही साथ नहीं । मैंने कहा ठीक है रात को 2:00 बजे तक जाप करता रहा और  जाप करते करते थक कर सो गया । अचानक ही फिर सपने आने शुरू हो गए । मैंने देखा सपने में वही जगह बैठा हूं जाप कर रहा हूं तभी मेरे पीछे कई जानवरों के दौड़ने की आवाज आ रही थी । मैंने पीछे मुड़ कर देखा तो जानवर भागते हुए मेरे पास आ रहे थे तो मैं उठकर भागा कि यह कहीं मुझे कुचल ना दे । तभी एक सफेद रंग की गाय आकर मेरे पास खड़ी हो गई और उसने सभी जानवरों को अपनी सींगो से डरा कर भगा दिया ।

वह गाय बहुत सुंदर थी पता नहीं मेरे अंदर यह भावना कहां से आई कि मैं उसे चूमने लगा और मैंने उसके स्तन पकड़ लिए और उनमें मुंह लगा दिया और दूध पीने लगा तभी मैंने ध्यान दिया तो मैं स्तब्ध रह गया । वह कोई गाय नहीं एक सुंदर स्त्री थी जो पूर्णता नग्न थी । जिसे मैंने चूमा था जिसके स्तनों का पान करा रहा था, वह गुस्से से चिल्लाते हुए बोली यह क्या किया तुमने मेरा स्तनपान कर लिया मैं तुम्हें अपना प्रेमी बनाना चाहती थी और तुम मेरे पुत्र कैसे बन गए । ओहो अच्छा तो यह माता दुर्गा की माया थी तभी मैं स्त्री नहीं गाय होकर तुम्हें दिखी और तुम मेरे साथ वो नहीं कर पाए ।मैं स्त्री बनकर ही शुरू से आई थी लेकिन दिखी तुम्हें गाय के रूप में तुम देवी पार्षद का पद पा चुके हो इसलिए मैं तुमसे माफी मांगती हूं ।

तुम केवल अपने जीवन में उच्च साधना ही करो और नश्वर जीवन से मुक्ति की ओर आगे बढ़ो भोगो में मत फंसना कह कर वह चली गई । उस दिन मेरे भाई को अनुरागिनी ने दर्शन दिए और पूछा क्या चाहते हो भाई ने कहां तुम मेरी पत्नी बनो तो यक्षिणी ने कहा तुम्हारी तो पत्नी है तो भाई ने कहा मैंने उसे त्याग दिया है मुझे बस तुम ही चाहिए ।

देवी बोली ठीक है लेकिन पहले मुझे संभोग द्वारा संतुष्ट करो भाई खुश होकर बोला ठीक है यक्षिणी फिर बोली अगर संतुष्ट नहीं कर पाए तो मैं चली जाऊंगी और फिर कभी सिद्ध नहीं हो पाऊंगी । भाई ने कहा ठीक है दोनों में संभोग शुरू हो गया थोड़ी ही देर में यक्षिणी अत्यंत भयानक चुड़ैल में बदल गई और संभोग करने लगी इससे भाई इतना अधिक घबरा गया है कि उसे छोड़कर भाग खड़ा हुआ यक्षिणी ने पीछे से कहा तुमने मुझे मूर्ख बनाया है तुमने अपनी पत्नी को लेकर भी झूठ बोला । इसलिए मैंने ऐसा रूप धरा अब मैं कभी सिद्ध नहीं हो पाऊंगी कह कर वह चली गई । यह बात सुबह मुझे मेरे भाई ने बताई इस पर मैंने कहा तुम्हें देवी से झूठ नहीं बोलना चाहिए था । इस प्रकार यह मेरा वास्तविक अनुरागिनी देवी का अनुभव रहा था । आपको यह अवश्य ही पसंद आया होगा । यह सभी साधकों के लिए एक सबक है किसी गलत भावना से कभी साधना ना करें धन्यवाद ॥

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