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अप्सरा साधना और मेरी सच्ची प्रेम कहानी भाग 2

अप्सरा साधना और मेरी सच्ची प्रेम कहानी भाग 2

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल में आप सभी का एक बार फिर से स्वागत है। सबसे पहले तो आप सभी लोगों को हमारे धर्म रहस्य ट्रस्ट में शामिल होने के लिए आप सभी का धन्यवाद। अब हम माता के संबंधित अन्य कार्यों को अवश्य कर पाएंगे तो आप लोग जानते हैं इस पत्र के माध्यम से आगे की घटना के विषय में जैसे कि पिछली बार अप्सरा साधना और मेरी सच्ची प्रेम कहानी के पहले भाग में हमने जाना कि एक व्यक्ति साधना करने के पश्चात उसे उसके जीवन में एक कन्या की प्राप्ति होती है और उसके बाद उससे उसकी मित्रता संबंध में आगे क्या घटित हुआ चाहिए। पढ़ते हैं इनके पत्र को और जानते हैं।

गुरुजी! जब मैंने बहुत बैग खोला तो मैंने देखा उसका मोबाइल मेरे बैग के अंदर था। यह तो बिल्कुल ही अजीब बात थी। मैंने सोचा नहीं था कि वह लड़की मेरे बैग में मोबाइल छोड़ सकती है। पर ध्यान देने पर मुझे याद आया कि वह जब साथ में चल रही थी तो उसने ही बैग मेरे मोबाइल में रखने को कहा था क्योंकि उसके हाथ में पसीना बहुत आ रहा था तो उसने कहा कि कुछ देर इसे अपने पास रख लो। हाथ में कब तक पकड़ कर चलूंगी और उसी बातचीत के दौरान? उसके विश्वास की वजह से उसने वह फोन मेरे बैग में रख दिया था और बाद में जब हम दोनों के रास्ते अलग-अलग हो गए तो वह भूल ही गई कि उसका मोबाइल मेरे पास है। इस वजह से अब मैं और भी ज्यादा उसकी तरफ आकर्षित हो गया। साफ-साफ ईश्वर की तरफ से ही इशारा था कि इससे मेरी दोस्ती होना तय है इसीलिए। मैंने उसके मोबाइल को देखा लेकिन समस्या आ ही गई। वह मेरे पास थी लेकिन मैं उससे दूर था। कारण यह था कि मोबाइल स्क्रीन लॉक था और इसे मैं नहीं जानता। कैसे खोला जाएगा।

पर अगर मैं इसे नहीं खोल पाया तो भला उसे उसका मोबाइल वापस कैसे करूंगा क्योंकि उसके अंदर ही तो नंबर वगैरह होंगे। अब मैंने अपना सर पकड़ लिया। सब कुछ आंखों के सामने था लेकिन फिर भी मैं कुछ नहीं कर सकता था। मैने एक बात सोची। मैं दूसरे गांव खुद ही अपनी बाइक से जाना चाहता था, क्योंकि हो सकता है पूरे गांव में अगर मैं जावू तो उसकी नजर मुझ पर पड़ जाए और ज्यादा जानकारी तो मुझे भी नहीं थी कि वह किस घर की होगी, कहां रहती होगी क्योंकि बातचीत में हमारा टॉपिक। आपस में इस तरह का था कि हम एक दूसरे के बारे में ज्यादा कुछ नहीं जान पाए। केवल इधर-उधर की बातें ही ज्यादा होती रही थी। इसी कारण से मैंने अब शाम के वक्त अपनी बाइक उठाई और चल दिया पूरे गांव का चक्कर लगाने के लिए जिस रास्ते से वह अपने गांव की ओर मुड़ी थी, मैं भी उसी तरफ़ अपनी बाइक लेके पहुंच गया। मैं इधर-उधर घूमता रहा। लगभग धीरे-धीरे लोगों के घर के आगे से निकलता।

पूरा गांव घूम लेने के बाद भी। मुझे उसका कोई संकेत प्राप्त नहीं हुआ। कितनी बड़ी विडंबना थी, किसी को मैं पसंद कर रहा था। मैं उस तक नहीं पहुंच पा रहा था। इधर वह भी शायद परेशान होगी। क्योंकि? उसका तो मोबाइल ही मेरे पास रह गया था।

लेकिन? सब्र आखिरकार सफलता दिलाता है। जब मैं घर पहुंचा तो मेरी मां ने कहा। यह किसका मोबाइल है, सुबह से बज रहा है?

तब मैंने ध्यान ही नहीं दिया कि मैं तो मोबाइल रख कर ही भूल गया था। हर कोई अपने मोबाइल नंबर को कैसे भूल सकता है। यह बात मेरे दिमाग में आई क्यों नहीं और वह तो फोन लगातार कर ही रही थी लेकिन जब मैंने देखा तब तक फिर से बहुत देर हो गई क्योंकि जिस स्थान पर मैंने मोबाइल ऊपर की तरफ कर रखा था। अब तक कितनी बार फोन बजा की? धीरे-धीरे करके काफी घंटे बीत जाने के बाद।

वह मोबाइल डिस्चार्ज हो चुका था तो मैंने सोचा। फिर से गड़बड़ी हो ही गई।

लेकिन चलो एक काम करता हूं। इसे चार्ज करता हूं लेकिन फिर से मुसीबत आ गई। शाम के समय जैसे ही मैंने उसे चार्ज में लगाने के लिए पिन ढूंढा। तो पता चला कि उसका मोबाइल में लगने वाली पिन मेरे किसी भी मोबाइल में नहीं लगती है। उसका फोन कुछ अलग तरीके का था। अब मैं क्या करता तो मैंने अब उस मोबाइल को लेकर एक दुकान के पास जाना ठीक समझा। तो हमारे गांव से कुछ ही दूरी पर एक मोबाइल वाले की दुकान थी और उसके पास मैं मोबाइल लेकर गया। मैंने कहा, इस मोबाइल के लिए चार्जर चाहिए। तब उसने उसे देखा और कहा कि उसके पास नहीं है। ऐसा करो यह मोबाइल यहाँ छोड़ दो ।

मैं तुम्हें कल सुबह इसे चेक करके इसके लिए चार्जर दे दूंगा। मैंने भी क्योंकि उस पर विश्वास करता था और उसी के यहां से मोबाइल रिचार्ज करवाना और कई सारे मोबाइल संबंधी कार्य हमारे घर के वहीं से होते थे इसलिए उसकी बात पर विश्वास कर लिया। और? तब मैंने उसे मोबाइल दे दिया क्योंकि वैसे भी मेरे पास रहता तो? कोई ना कोई? समस्या ही थी। इस समस्या का हल तो यही व्यक्ति दे सकता था इसलिए मैंने उसे अपना उस लड़की वाला मोबाइल दे दिया और कहा अगर चार्जिंग हो जाए और कॉल आए तो बताना कि। मोबाइल उसी लड़के के पास है जिसके बैग में आपने डाला था, फिर उसने भी बड़ी समझदारी से सारी बातें पूछी। मैं भी सीधा साधा व्यक्ति था, इसलिए सारी बातें उसे बता दी। अगले दिन बड़ी बेसब्री के साथ में उसके पास फिर से पहुंचा तब उसने कहा।

एक बहुत बड़ी गड़बड़ी हो गई है।

मेरा मोबाइल शहर जाते वक्त किसी दुकान में वह रखकर भूल गया।

मैं आपसे माफी मांगता हूं और मोबाइल मुझे नहीं मिल पा रहा है। वह मोबाइल जितने का हो, मैं उतने पैसे भी देने को तैयार हूं। तब मैंने उससे कहा, पैसे का मैं क्या करूंगा। तुमने तो सारा काम ही बिगाड़ दिया है। ऐसा कैसे हो गया? कैसे काम करते हो तुम अगर मेरा मोबाइल होता तो एक बार को मैं तुम्हें माफ भी कर देता पर तुमने तो किसी दूसरे का मोबाइल खो दिया है। अब आगे क्या होगा मैं अपना सर पकड़ कर वहीं बैठ गया।

फिर मैंने सोचा कि चलो मोबाइल ना सही एक बार फिर से उसी गांव का चक्कर लगाता हूं। शायद वह कहीं मुझे दिख जाए और मैं एक बार फिर से घर जाकर खाना खाकर दूसरे गांव बाइक से जाने के लिए तैयार हो गया। मैंने कहा आजकल! रोज रोज इस वक्त तुम बाइक से कहां चले जाते हो तो मैंने उन्हें बताया। और? यह कहा कि पास के गांव में ही कुछ काम है इसलिए वहां चला जाता हूं।

तब मैंने कहा ठीक है जल्दी आ जाना। तो मैं तुरंत ही अपनी बाइक से फिर निकल गया और मैंने सामने देखा गांव की एक घर के बाहर वह एक फूल को तोड़ रही थी। मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। मैंने जब उसे दूर से देखा तो दिल ही खुश हो गया और मैं उसके पास जाने के लिए बड़ा ही बेसब्र हो गया था। मैंने उसके घर के बाहर अपनी बाइक खड़ी की और उसके पास धीरे-धीरे जाने लगा। उसने मुझे दूर से ही देख लिया था, लेकिन उसका चेहरा जैसे बदल गया।

मुझे लगा था मुझे देख कर उसके चेहरे पर खुशी आएगी। पर यहां पर तो वैसा कुछ भी नहीं हो रहा था। वह तो जैसे मुझे इग्नोर कर रही हो। ऐसा क्यों था इसे समझने के लिए मेरा उसके पास पहुंचना बहुत ज्यादा आवश्यक हो गया था। मैं उसके पास पहुंचा। मैंने हाय हेलो किया और उससे कहा, मैंने आपको बड़ा ढूंढा तब जाकर आप मिली हैं। तब वह कहने लगी। मैंने तो सोचा था कि आप एक अच्छे इंसान होंगे, लेकिन आप तो बहुत ही बुरे इंसान हो, आप से दोस्ती करना चाहती थी, लेकिन आप तो दोस्ती के काबिल ही नहीं हो। इस प्रकार उसके कहने पर मुझे बड़ा। आश्चर्य हुआ। मैंने सोचा यह कैसे हो सकता है कल तक तो इसका स्वभाव बड़ा ही हंसमुख था। मुझसे क्या गलती हो गई तब मैंने थोड़ा दिमाग लगाया। मैं समझ गया। मैंने उसका मोबाइल इसे वापस नहीं किया है इसी से यह मुझसे गुस्सा है। तो मैंने उससे कहा, मैंने आपका मोबाइल खो दिया है। इसलिए मुझे आप माफ कीजिए। फोन मोबाइल जितने का हो, मैं आपको उतने पैसे भी देने को तैयार हूं। मेरी गलती की वजह से आपका मोबाइल खो गया है। मैं सच कह रहा हूं, तब वह कहने लगी। मैंने तो सोचा था कि आप? एक अच्छे इंसान हो पर आप तो झूठे भी हो। यह देखो उसने वही मोबाइल जो मेरे पास था, अपने हाथ में दिखाया और गुस्से से आंखें लाल करके कहने लगी कि आप झूठ भी बोलते हैं।

तब मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ। आखिर ऐसा कैसे हो गया? इसके पास मोबाइल वापस कैसे आ गया है और यह मुझे झूठा इंसान क्यों कह रही है। गुरु जी इसके आगे की घटना को मैं आगे के भाग में आपको बताऊंगा।

आप सभी का धन्यवाद! जय मां पाराशक्ति।

तो देखिए यहां पर इन्होंने आगे की अपनी कहानी को लिखकर भेजा है। इसके आगे की घटना अगले पत्र के माध्यम से जानेंगे। आप सभी का दिन मंगलमय हो जय मां पराशक्ति।

अप्सरा साधना और मेरी सच्ची प्रेम कहानी भाग 3

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