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आनंद भैरव और शक्तिशाली केसी पिशाचिनी भाग 2

आनंद भैरव और शक्तिशाली केसी पिशाचिनी भाग 2

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है । आनंद भैरव और शक्तिशाली केसी पिशाचिनी भाग 1 में अभी तक आपने जाना है कि मलय नाम का एक व्यक्ति गुणनाथ के पास जाता है । और उनसे आनंद भैरव विद्या को प्राप्त करने की कोशिश करता है । बाद में केसी पिशाचिनी अपने जीवन के बारे में बताती है वही आपने अभी तक जाना है । अब आगे जानते हैं कि केसी पिशाचिनी ने गुरु को आगे क्या बताया । केसी कहने लगी मैं और रूपा हम तो कन्याएं बहुत ही सुंदर हुआ करती थी । हम दोनों नगर बिहार किया करती थी अचानक एक दिन हम लोगों ने एक व्यक्ति को बीच बाजार में चमत्कार करते हुए देखा । हम दोनों कोतूहलवर्ष उसके पास गई उससे पूछा कि तुम नगर के निवासियों को चमत्कार करके कैसे दिखा रहे हो । इस पर वह हंसते हुए कहने लगा यह सब तो गुरु प्रतप्त विद्या है । गुरु जब शिष्य को कोई विशेष तरह की सिद्धि प्रदान करता है तभी ऐसा होता है । मैं कोई भी चीज का विभिन्न रूप बना सकता हूं विभिन्न प्रकार की सिद्धियों का प्रदर्शन कर सकता हूं । इस पर मैंने उससे कहा क्या यह विद्या तुम हमें भी सिखा सकते हो । उसने कहा यह विद्या मै आपको नहीं सिखा सकता । क्योंकि यह गुरु की आज्ञा के विरुद्ध है इस शक्ति के बारे में बताने के लिए गुरु ने मना किया है । उन्होंने यह भी कहा है अगर तुम किसी भी ऐसे ही व्यक्ति को यह विद्या सिखा दोगे तो यह सिद्धि तुम्हारे हाथ से चली जाएगी । और वह व्यक्ति वहा से चल दिया । उसके बाद मै और मेरी सखी हम दोनों उस व्यक्ति के पीछे पीछे जाने लगे । वह कहता रहा मेरे पीछे पीछे मत आओ । पर हमें तो ऐसी विद्या की ही तलाश थी अंततोगत्वा वह व्यक्ति हार कर हमसे कहने लगा देवियों इस प्रकार मेरे पीछे पीछे क्यों चली आ रही हो । मैंने कहा ना मैं यह विद्या आप को नहीं सिखा सकता क्योंकि मैं गुरु वचन को नहीं तोड़ सकता हूं । इस पर मैंने उससे कहा क्या आप हमें किसी और तरीके से यह विद्या नहीं सिखा सकते है क्या कोई अन्य मार्ग नहीं है जिसके माध्यम से यह विद्या को हम प्राप्त कर सके । इस पर उसने कहा एक ही मार्ग बचता है कि वह यह है कि अगर आप मेरे गुरु की सेवा में जाए और वह स्वता ही यह विद्या आपको प्रदान करें । तो अवश्य ही आप तांत्रिक विद्या में निपुण हो सकती हैं ।

मैंने अपनी सखी से कहा चल हमें यह विद्या सीखनी ही है । और इससे हम दुनिया की सबसे रूपवान स्त्री बनकर किसी राजा महाराजा के महल में निवास करेंगे उनकी रानी बनकर  । मेरे प्रस्ताव को मेरी सखी ने स्वीकार कर लिया मैंने जब उससे यह बात कही वह तुरंत ही तैयार हो गई । उस व्यक्ति के पूछने पर कहा कि एक घने वन में उसके गुरु एक कुटी बनाकर रहते हैं । हम लोगों को उनके पास जाना होगा और उन्हें इस बात के लिए तैयार करना होगा जिससे हमारा भला हो सके । उसकी बात में हम समझ गए थे कि गुरु को किसी भी तरह हमें इस बात के लिए तैयार करना होगा कि वह हमें तांत्रिक विद्या को सिखाएं । अब यह बड़ा ही कठिन प्रशन था और हम दोनों ने यह निश्चय कर लिया कि कुछ भी होगा हमको यह विद्या सीखनी ही है । इसलिए हम लोगों ने उससे वह मार्ग पूछा और जहां उसके गुरु रहा करते थे । धने वन में एक स्थान पर उसके गुरु का निवास था हम लोग चलते-चलते उस घने वन में जाने लगे । भय भी लग रहा था इसलिए हम लोग अपने साथ कुछ हथियार भी रख लिए ताकि अगर हम पर कोई हमला करें चाहे वह जानवर हो कोई डाकू हो या कोई अन्य उन सब का सामना भी हम कर सके । इस प्रकार रात्रि के समय उसके बताए गए दिशा अनुसार उसके गुरु के स्थान पर पहुंच गए । दूर उसकी कुटी के पास जलती हुई आग हमें आकर्षित कर रही थी हम लोग अब तैयार थे की घने वन में यही कुटी थी जिसके कारण हम लोग संतुष्ट हो गए । और विश्वास करने लगे कि यही गुरुदेव की कुटी है और यही रहते होंगे । हम लोग उस कुटी के द्वार पर पहुंचे हमने दरवाजा खटखटाया गुरु ने थोड़ी देर बाद दरवाजा खोला । सामने दो कन्याओं को देखकर वह आश्चर्य में पड़ गए उन्होंने कहा नगर में रहने वाली गुणवती कन्याओं यहां तुम किस लिए आई हो । इस पर हमने उनसे कहा कि आप तो सर्वज्ञ है गुरुदेव । आप ही जान लीजिए कि हम लोग आप की शरण में आए हैं । इस पर उन्होंने अपनी तंत्र विद्या के माध्यम से इस सत्य को जान लिया कि हमारे वहां आने का उद्देश्य क्या है । उन्होंने तुरंत ही मना कर दिया और कहा जाओ कन्या यहां से चली जाओ तुम्हारे बस का यह कार्य नहीं है । तंत्र सिद्धि साधारणता पुरुष ही करते हैं और तुम जैसी कन्या भला कैसे तंत्र सिद्धि कर पाओगे यह कोई बच्चों का खेल नहीं है । जिसे तुमने अपने हंसी मजाक और मनोरंजन के लिए करने की सोची हो ।

मुझे यह बात सुनकर के बड़ा ही क्रोध आया मैंने उनसे कहा चाहे जैसी भी परिस्थिति हो गुरुदेव मैं आपकी तंत्र विद्या को अवश्य ही सीखूंगी । चाहे इसके लिए मेरे प्राण ही क्यों ना चले जाएं मेरी हिम्मत देखकर मेरी सखी भी यही बात कह देती है । गुरु ने कहा अगर ऐसा है तो चलो आज ही से तुम्हारी परीक्षा लेता हूं जाओ यहां से कुछ ही दूरी पर एक सरोवर है उस सरोवर से भर कर जल मेरे लिए ले आओ । रात्रि हो चुकी है और तुम्हें वहां दोनों को जाना होगा और मेरे लिए पानी की व्यवस्था करनी होगी मेरे पास पानी नहीं रह गया है । तुम्हारा पहला यही गुरु कर्म है । उनकी बात को सुनकर हम लोग थोड़ा घबराई क्योंकि अब रात्रि और इसी घने वन में हमें सरोवर भी ढूंढना था वहां जाकर हमें गुरु के लिए जल भर के भी लाना था । अगर हम मना करते तो गुरु देव हमें विद्या नहीं सिखाएंगे इसलिए यह कार्य तो हमें करना ही था । अब हमारे पास जब कोई विकल्प नहीं रहा हम दोनों ने एक दूसरे की आंखों में देखा और गुरु को प्रणाम करके कहा हम लोग जाते हैं । हम लोग धीरे-धीरे उस जंगल मे आगे बढ़ते जा रहे थे । डर और भय हमें बहुत ज्यादा लग रहा था । गनीमत इतनी ही सी थी वह एक चांदनी रात थी जिसके कारण से प्रकाश हो रहा था । लेकिन घने जंगल में उतना प्रकाश पर्याप्त नहीं होता है और इस प्रयास को करने के लिए उतना प्रकाश कम ही पड़ता है । फिर भी डर और भय को किनारे रखते हुए हमारा उस दिशा में आगे बढ़ने का विचार पक्का था । इसलिए हम लोग आगे बढ़ने लगे काफी दूर ढूंढने के बाद भी हमको सरोवर दिखाई नहीं दिया ।

मैंने अपनी सखी से कहा कहीं गुरु ने कोई मजाक तो नहीं किया है क्योंकि इतनी देर ढूंढने के बाद भी यहां कहीं भी सरोवर हमें दिखाई ही नहीं पड़ रहा । कुछ देर इधर-उधर भटकने के बाद अचानक से हम लोग रास्ता भी भूल गए अब समस्या और भी बढ़ गई थी । क्योंकि ना तो गुरु कर्म पूरा हुआ था और ना ही हम अपने उद्देश्य में सफल हो पा रहे थे । मैंने अपनी सखी से कहा अब क्या किया जाए उसने कहा क्यों ना किसी पेड़ पर बैठकर रात गुजार ले यही सबसे उत्तम बात होगी । क्योंकि अब जंगली जानवरों का कोई भरोसा नहीं कहीं कोई हिंसक जीव आ जाए और हम पर हमला कर हमारी इसी समय मृत्यु करवा दे हमारे पास कोई दूसरा विकल्प भी नहीं है । क्योंकि हम कर्म छोड़कर चले जाते हैं तो भी यहां आने का उद्देश्य असफल हो जाएगा । इसके बाद दोनों कन्याएं पेड़ के ऊपर चढ़ जाती है और रात्रि वही बिताती हैं । लेकिन मध्य रात्रि में उन्हें एक ऐसा नजारा देखने को मिलता है जिसकी उन्होंने कल्पना भी नहीं की थी । उनके सामने एक सिंह मुखी कन्या वहां पर गरजते हुए चारों तरफ घूम रही थी । उसका सारा शरीर स्त्री का था और सिर पर सिंह का मुख लगा हुआ था । ऐसी अद्भुत स्त्री को देखकर दोनों डर के मारे कांपने लगी । क्योंकि अभी तक उन्होंने ऐसा कुछ नहीं देखा था वह स्त्री उनके पेड़ के नीचे आकर बैठ जाती है । और अपने पंजों से उस पेड़ को रगड़ने लगती है । अब इनका भय के मारे बुरा हाल था क्योंकि अगर अब यह नीचे उतरती वह स्त्री इनकी हत्या कर देती । आगे क्या हुआ हम लोग जानेंगे अगले भाग में । अगर आपको यह कहानी और जानकारी पसंद आ रही है तो लाइक करें शेयर करें सब्सक्राइब करें चैनल को । आपका दिन मंगलमय हो धन्यवाद ।

आनंद भैरव और शक्तिशाली केसी पिशाचिनी भाग 3

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