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एकवीरा येलम्मा देवी रहस्य

एकवीरा येलम्मा देवी रहस्य

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। आज हम माता के एक ऐसे स्वरूप के बारे में जानेंगे जो कि परशुराम जी की मां के नाम से जानी जाती हैं और इन्हें देवी रेणुका, येलम्मा, एकवीरा, अमन पद्माक्षी, रेणुका और विभिन्न नामों से जानी जाती हैं। देवी मां के साथ एक रूप हो जाने के बाद यह देवी संसार भर में प्रसिद्ध हो गई हैं तो इनके बारे में आज एक साधक विशेष की इच्छा पर मैं आज आप लोगों के लिए इनके विषय में ज्ञान लेकर के उपस्थित हुआ हूं तो माता रेणुका येलम्मा और एकवीरा नाम से भी जाना जाता है। एक देवी है जो कि कर्नाटक, तमिलनाडु, तेलंगाना, केरल, आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र में पूजी जाती है और मूल रूप से भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम जी की माता के रूप में इन्हें दर्जा हासिल है। जगदंबा के इस स्वरूप का अलग ही वर्णन और विवरण हमें प्राप्त होता है तो सबसे पहले हम देवी रेणुका के विषय में जानेंगे।

राजा रेणु जो कि देवी रेणुका के पिता थे ने एक यज्ञ किया था। शांति और अच्छे स्वास्थ्य को बनाने के लिए उस दौरान उन्हें इसके फल के स्वरूप एक पुत्री की प्राप्ति हुई जो कि यज्ञ की अग्नि से उत्पन्न हुई थी। रेणुका एक उज्जवल और अत्यंत ही सौम्य स्वभाव वाली कन्या थी जब वह 8 वर्ष की हो गई तो राजा रेणु ने गुरु अगत्स्य से सलाह ली और तब उन्होंने बताया कि संसार में केवल एक ही पुरुष है जो इस कन्या के योग्य होगा और वह जमदग्नि होगा तो रेणुका ने विभिन्न अनुष्ठानों और पूजा के कार्यों में जमदग्नि की मदद करना शुरू कर दिया और इनका विवाह इनसे हुआ तब रेणुका को अंजना नाम की पुत्री हुई। इनके अंदर इनकी एकाग्रता पति भक्ति के कारण अद्भुत, सामर्थ्य और सिद्धि इन्हें प्राप्त हो गई थी। यह माला प्रभा नाम की एक नदी में स्नान करती थी और सिद्धि की वजह से रेत में जब वह रेत को ऊपर उठाती थी तो उससे घड़ा बन जाता था और उसी घड़े में पानी लेकर यह आ जाती थी और यही बाद में जल चढ़ाने और पूजा करने इत्यादि में इस्तेमाल होता था। इनके 5 पुत्र हुए शुमनवान, सुहोत्रा, वसु, विश्वावसु और राम भार्गव।

राम भार्गव सबसे छोटे और सबसे प्यारे थे। राम ने घोर तपस्या की और उन्हें एक परशु भगवान शिव ने प्रदान किया। इसीलिए इन्हें परशुराम कहा जाता है। एक दिन जब रेणुका देवी नदी पर गई तो उन्होंने देखा एक गंधर्व अपनी कई सारी पत्नियों के साथ। खुले में प्रेम कर रहा था। इस दृश्य को देखकर उनके मन में भी यह विचार आने लगे और वह स्वयं को और अपने पति को भी ऐसे ही देख कर सोचने लगी, लेकिन इसकी वजह से उनका ध्यान भी भंग हुआ और रेत के कच्चे बर्तन बनाने की जो सिद्धि थी, उसी वक्त नष्ट हो गई। अब वह चिंता में बिना पानी लिए अपने पति के आश्रम लौटाई। जमदग्नि ने देखा कि उनकी पत्नी के अंदर काम भाव आया। इसी के कारण उन्होंने सिद्धि खो दी है और रेत से घड़ा वह नहीं बना पाए। इस पर वह बहुत ज्यादा क्रोधित हो गए और

रेणुका यह देखकर कि उनके पति उन्हें श्राप देंगे। वह पूर्व दिशा की ओर चली गई और जंगल में जाकर ध्यान करने लगी। अपनी तपस्या में वह संत एकनाथ और जोगी नाथ से भी मिली। उनसे अपने पति की दया प्राप्त करने का अनुरोध उन्होंने किया लेकिन स्वयं को शुद्ध करने हेतु उन्होंने झील में स्नान किया भगवान शिव के शिवलिंग की पूजा की और घरों में चावल और भीख मांग कर उन्होंने भयंकर तपस्या करना प्रारंभ कर दिया। इस अनुष्ठान को “जोगा बेदोडु” नाम से जाना जाता है और मराठी में “जोगावा”, “येल्लम्मा जोगू” तेलंगाना में। बाद में इसी नाम से यह प्रसिद्ध भी हुई थी। चावल इकट्ठा करने के बाद उसे आधा संतो को देना आधे को गुड़ डालकर पके हुए चावलों को पूरी श्रद्धा के साथ खाना। उन्होंने यह कहा कि मैं 3 दिनों तक अनुष्ठान करूंगी और चौथे दिन पाप विमोचन करके पति के पास जाऊंगी।

लेकिन जमदग्नि क्रोधित थे और उन्हें कोई बात समझ नहीं आ रही थी। इस प्रकार अपने पत्नी को गायब देखकर और भी ज्यादा उन्हें क्रोध आ गया। तब उन्होंने अपने चारों पुत्रों को आदेश दिया जाए। इस स्त्री का सर काटकर लाओ लेकिन सभी के सभी ने इस कार्य के लिए मना कर दिया क्योंकि कोई भी अपनी मां का सिर काट कर नहीं ला सकता। जमदग्नि ने उन! बच्चों को भस्म कर दिया। अब उन्होंने अपने पांचवें पुत्र परशुराम को बुलाया जो भगवान शिव का ध्यान कर रहे थे। जब वह आए तो उन्हें यह कार्य पिता ने सौंपा तब बिना देर करते हुए माता से मन ही मन क्षमा मांगते हुए इन्होंने माता के सर को काट दिया। परशुराम की भक्ति के कारण जमदग्नि प्रसन्न हुए और उनसे वरदान मांगने को कहा, जब उन्होंने अपने पिता से वरदान मांगे तो बड़ी ही समझदारी के साथ उन्होंने तीन वरदान मांगे- माता को पुनर्जीवित कर दो उन्हें और मेरे मित्र! भाई इसमें उन्हें याद ही ना रहे और सभी मेरे भ्राता चेतना युक्त हो जाए। लेकिन जमदग्नि ने कहा, मैं तुम्हारे भाइयों को तो जीवित कर दूंगा, लेकिन तुमने अपनी माता का वध कर दिया है इसलिए वह जीवित नहीं हो सकती। यह संसार के नियम विरुद्ध है लेकिन 21 दिन के भीतर तुम्हारी! माता रेणुका तुमको दर्शन देंगी। माता रेणुका का मंदिर मध्यप्रदेश के खंडवा जिले के समीप छैगांवदेवी में है। मान्यता है की यहां चैत्र मास शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी के दिन माता रेणुका स्वयं प्रकट होती है और इसी की वजह से बाद में उनका रूप स्वरूप परशुराम जी को दर्शन योग्य मिला। माता की कोई गलती ना होने के कारण उनकी पक्की भक्ति के कारण मां शक्ति ने उन्हें अपने स्वरूप का अंश प्रदान किया और तब से वह देवी रेणुका के रूप में येलम्मा के रूप में एक वीरा के रूप में संसार भर में पूजी जाने लगी। इसके अलावा तांत्रिक शक्तियों के रूप में उन्हें माता छिन्नमस्तिका का स्वरूप भी माना जाता है।

माता ने अपना अंश माता छिन्नमस्तिका के रूप में भी उन्हें प्रदान किया है। इस प्रकार देवी माता रेणुका संसार भर में कहीं एकवीरा कहीं येलम्माऔर कहीं रेणुका देवी के रूप में संसार भर में प्रसिद्ध है। कोली लोगों की कुलदेवी के रूप में एकवीरा के रूप में इनको माना जाता है। एकवीरा मंदिर महाराष्ट्र के लोनावाला के पास कार्ला गुफाओं में स्थित एक हिंदू मंदिर है। यह विशेष रूप से एक सिद्ध स्वरूप है जहां पर एक वीरा के साथ जोगेश्वरी देवी की भी मूर्तियां स्थापित है। इससे आप समझ सकते हैं कि संसार भर में माता रेणुका देवी एक तांत्रिक देवी होने के साथ-साथ एक भक्तों की रक्षा करने वाली देवी के रूप में प्रसिद्ध हो गई और माता रेणुका माता काली की शक्ति बनकर संसार भर में प्रसिद्ध हो गई। तब से अभी तक विभिन्न रूपों में इनकी पूजा प्रार्थना साधना की जाती है। इनका बहुत सारे मंत्र हैं जिसमें एक मंत्र इस प्रकार से है।ॐ ह्रीं क्रों ऐं रेणुका नमः इस मंत्र का जाप करने से देवी प्रसन्न होती हैं वैसे इनके बहुत सारे अनुष्ठान और विधियां उपलब्ध हैं, जिनमें आप रेणुका कवच, रेणुका खड्गमाला, रेणुका न्यास विधियां, अष्टोत्तर शतनाम, रेणुका स्त्रोतम, रेणुका गायत्री मंत्र जैसे ॐ महापार्वत्येय विद्महे परशुराममातायै धीमहि तन्नो रेणुका प्रचोदयात् और भगवान परशुराम कृत श्री रेणुका स्त्रोतम भी बहुत ही अच्छा है। यह सारे स्त्रोतों के माध्यम से हम देवी रेणुका को प्रसन्न कर सकते हैं।

रेणुका कवच

जमदग्निप्रियां देवीं रेणुकामेकमातरं
सर्वारम्भे प्रसीद त्वं नमामि कुलदेवताम् ।
अशक्तानां प्रकारो वै कथ्यतां मम शङ्कर
पुरश्चरणकालेषु का वा कार्या क्रियापरा ॥

श्री शङ्कर उवाच ।
विना जपं विना दानं विना होमं महेश्वरि ।
रेणुका मन्त्रसिद्धि स्यान्नित्यं कवच पाठतः ॥

त्रैलोक्यविजयं नाम कवचं परमाद्भुतम् ।
सर्वसिद्धिकरं लोके सर्वराजवशङ्करम् ॥

डाकिनीभूतवेतालब्रह्मराक्षसनाशनम् ।
पुरा देवासुरे युद्धे माहिषे लोके विग्रहे ॥

ब्रह्मणा निर्मिता रक्षा साधकानां सुखाय च ।
मन्त्रवीर्यं समोपेतं भूतापस्मारनाशनम् ॥

देवैर्देवस्य विजये सिद्धेः खेचरसिद्धये ।
दिवा रात्रमधीतं स्यात् रेणुका कवचं प्रिये ॥

वने राजगृहे युद्धे ब्रह्मराक्षससङ्कुले ।
बन्धने गमने चैव कर्मणि राजसङ्कटे ॥

कवच स्मरणादेव सर्वं कल्याणमश्नुते ।
रेणुकायाः महादेव्याः कवचं शृणु पार्वति ॥

यस्य स्मरणमात्रेण धर्मकामार्थभाजनम् ।
रेणुकाकवचस्यास्य ऋषिर्ब्रह्मा विधीयते ॥

छन्दश्चित्राह्वयं प्रोक्तं देवता रेणुका स्मृता ।
पृथ्वी बीजं रमा शक्तिः पुरुषार्थचतुष्टयम् ॥

विनियोगो महेशानि तदा काले प्रकीर्तितः ।
ध्यात्वा देवीं महामायां जगन्मातरमम्बिकाम् ॥

पूर्णकुम्भसमायुक्तां मुक्ताहारविराजिताम् ।
स्वर्णालङ्कारसम्युक्तां स्वर्णसिंहासनस्थिताम् ॥

मस्तके गुरुपादाब्जं प्रणम्य कवचं पठेत् ।
इन्द्रो मां रक्षतु प्राच्यां वह्नौ वह्निः सुरेश्वरि ॥

याम्यां यमः सदा पातु नैरृत्यां निरृतिस्तथा ।
पश्चिमे वरुणः पातु वायव्ये वायुदेवता ॥

धनश्चोत्तरे पातु ईशान्यामीश्वरो विभुः ।
ऊर्ध्वं ब्रह्मा सदा पातु अनन्तोऽधः सदाऽवतु ॥

पञ्चान्तको महेन्द्रश्च वामकर्णेन्दुभूषितः ।
प्रणवं पुटितं कृत्वा तत्कृत्वा प्रणवं पुनः ॥

समुच्चार्य ततो देवी कवचं प्रपठे तथा ।
ब्रह्माणी मे शिरः पातु नेत्रे पातु महेश्वरी ॥

वैष्णवी नासिकायुग्मं कर्णयोः कर्णवासिनी ।
कण्ठं मातु महालक्ष्मीर्हृदयं चण्डभैरवी ॥

बाहू मे बगला पातु करौ महिषमर्दिनी ।
कराङ्गुलीषु केशेषु नाभिं मे चर्चिकाऽवतु ॥

गुह्यं गुह्येश्वरी पातु ऊरू पातु महामतिः ।
जानुनी जननी रामा गुल्फयोर्नारसिंहिका ॥

वसुन्धरा सदा पादौ पायात्पादाङ्गुलीषु च ।
रोमकूपे मेदमज्जा रक्तमांसास्थिखण्डिके ॥

रेणुका जननी पातु महापुरनिवासिनी ।
रक्षाहीनं तु यत् स्थानं वर्जितं कवचेन तु ॥

पूर्वं बीजं समुच्चार्य सम्पुटक्रमयोगतः ।
मुद्रां वध्वा महेशानि गोलं न्यासं समाचरेत् ॥

अस्य श्रीरेणुका कवचमन्त्रस्य ब्रह्मा ऋषिः अनुष्टुप् छन्दः रेणुका देवता लं बीजं रेणुका प्रीत्यर्थे गोलन्यासे विनियोगः ।

ओं रां अङ्गुष्ठाभ्यां नमः ।
ओं रीं तर्जनीभ्यां नमः ।
ओं रूं मध्यमाभ्यां नमः ।
ओं रैं अनामिकाभ्यां नमः ।
ओं रौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।
ओं रः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ।

एवं हृदयादिन्यासः ।

ओं पं नमः मूर्ध्नि ।
ओं फं नमः दक्षिणनेत्रे ।
ओं बं नमः वामनेत्रे ।
ओं भं नमः दक्षिणनासापुटे ।
ओं मं नमः वामनासापुटे ।
ओं यं नमः दक्षिणकर्णे ।
ओं रं नमः वामकर्णे ।
ओं लं नमः मुखे ।
ओं वं नमः गुदे ।

कवचम् ।
ब्रह्माणी ब्रह्मभागे च शिरो धरणिधारिणी ।
रक्ष रक्ष महेशानि सदा मां पाहि पार्वती ॥

भैरवी त्रिपुरा बाला वज्रा मे तारिणी परा ।
रक्ष रक्ष महेशानि सदा मां पाहि पार्वती ॥

एषा मेऽङ्गं सदा पातु पार्वती हरवल्लभा ।
महिषासुरसंहर्त्री विधातृवरदायिनी ॥

मस्तके पातु मे नित्यं महाकाली प्रसीदतु ।
आकाशे ताडका पातु पाताले वह्निवासिनी ॥

वामदक्षिणयोश्चापि कालिका च करालिका ।
धनुर्बाणधरा चैव खड्गखट्वाङ्गधारिणी ॥

सर्वाङ्गं मे सदा पातु रेणुका वरदायिनी ।
रां रां रां रेणुके मातर्भार्गवोद्धारकारिणी ॥

राजराजकुलोद्भूते सङ्ग्रामे शत्रुसङ्कटे ।
जलाप्नाव्ये व्याघ्रभये तथा राजभयेऽपि च ।
श्मशाने सङ्कटे घोरे पाहि मां परमेश्वरि ॥

रूपं देहि यशो देहि द्विषतां नाशमेव च ।
प्रसादः स्याच्छुभो मातर्वरदा रेणुके भव ॥

ऐं महेशि महेश्वरि चण्डिके मे
भुजङ्गधारिणि शङ्खकपालिके ।
कनककुण्डलमण्डलभाजने
वपुरिदं च पुनीहि महेश्वरि ॥

इदं श्रीकवचं देव्याः रेणुकाया महेश्वरि ।
त्रिकालं यः पठेन्नित्यं तस्य सिद्धिः प्रजायते ॥

ग्रहणेऽर्कस्य चन्द्रस्य शुचिः पूर्वमुपोषितः ।
शतत्रयावृत्तिपाठाद्मन्त्रसिद्धिः प्रजायते ॥

नदीसङ्गममासाद्य नाभिमात्रोदकस्थितः ।
रविमण्डलमुद्वीक्ष्य जले तत्र स्थितां शिवाम् ॥

विचिन्त्य मण्डले देवी कार्ये सिद्धिर्भवेद्ध्रुवम् ।
घटं तव प्रतिष्ठाप्य विभूतिस्तत्र वेशयेत् ।
दीपं सर्षपतैलेन कवचं त्रिः पठेत्तदा ॥

भूतप्रेतपिशाचाश्च डाकिन्यो यातुधानिका ।
सर्व ते नाशमायान्ति कवचस्मरणात्प्रिये ॥

धनं धान्यं यशो मेधां यत्किञ्चिन्मनसेप्सितम् ।
कवचस्मरणादेव सर्वमाप्नोति नित्यशः ॥

इति श्री भैरवरुद्रयामले रेणुका कवचम् ।

इसके अलावा इनकी गोपनीय सिद्धियां भी होती हैं, जिनका विवरण भविष्य में आप को दिया जाएगा तो यह है विवरण! माता रेणुका का और उनकी शक्तियों सामर्थ्य का इनकी जीवनी कि किस प्रकार यह येलम्मा रेणुका देवी और एक वीरा के रूप में संसार भर में प्रसिद्ध हो गई और इनकी सिद्धि से असाधारण व्यक्तित्व व्यक्ति को प्राप्त होता है और संसार में ऐसा कोई कार्य नहीं है जो इनकी  कृपा से संभव ना हो पाए तो माता रेणुका के रूप में संसार भर में प्रसिद्ध यह देवी मां का स्वरूप सदैव, पूज्यनीय और आदरणीय बना रहने वाला है अनंत काल तक तो यह था आज का वीडियो आप लोगों को पसंद आए तो लाइक करें। शेयर करें, सब्सक्राइब करें। आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद।

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