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कंकाल नाथ की सिद्धि यात्रा भाग 1

कंकाल नाथ की सिद्धि यात्रा भाग 1

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य पर आपका एक बार फिर से स्वागत है आज एक बार फिर से आप के लिए मंदिर और मठों की कहानियां लेकर के हाजिर हुआ हूं और आज की हमारी एक जो कहानी है वह एक कंकाल नाथ नाम के शिव अघोरी तांत्रिक की कहानी है जिन्होंने अपनी यात्रा के द्वारा विभिन्न क्षेत्रों को घुमा और उसमें साथ साथ किस तरह के अनुभव हुए और किस तरह की उन्होंने सिद्धियां प्राप्त की इसके बारे में है बिल्कुल गोपनीय कहानी है कहीं सुनी नहीं है और बहुत ही ज्यादा आपके लिए मनोरंजन होने वाली है तो चलिए शुरू करते हैं आज हम कंकाल नाथ की सिद्धि की यात्रा के बारे में हम लोग सबसे पहले यह जानना पड़ेगा झांसी के श्री भैरव सरकार के मंदिर के बारे में जहां से यह कहानी शुरू होती है कहते हैं आज से 2000 साल पहले यह स्थान पर बहुत ही सुंदर 1 गांव हुआ करता था और उस गांव में भैरव जी की पूजा की जाती थी वही भैरव जी की कृपा से वहां पर एक घर में एक बालक का नाम बाद में जो है कंकाल नाथ पड़ा और उसी की यह यात्रा की कहानी है आज हम जानेंगे कि जब बालक का जन्म हुआ तो उसका नाम कंकाल नाथ ही क्यों पड़ा कहते हैं इस बारे में यह वर्णन आता है कि माता-पिता ने जब बालक को देखा तब वह बिल्कुल ही कमजोर पैदा हुआ था और उसका शरीर सूखकर कांटा सा नजर आ रहा था ।

लोगों को यह उम्मीद थी कि यह बालक शायद नहीं बच पाएगा बहुत ही कमजोर अवस्था में उस बालक को देख करके उसे सब कंकाल कंकाल कहने लगे लेकिन फिर भी भैरव जी के उपासक मां बाप ने जब भैरव जी की उपासना की तो अद्भुत चमत्कार हुआ और वह बालक उसी अवस्था में कमजोर ही कमजोर रहा लेकिन फिर भी उसका जीवन बच गया इसी वजह से सब उसे कंकाल नाथ के नाम से बाद में लोग जानने लगे यह स्थान अत्यधिक प्रसिद्धि उसके करीब 500 साल बाद उसने प्रसिद्धि प्राप्त की और इसके संबंध में भी एक कथा आती है और मैं उसके बारे में भी आपको वर्ण कर देता हूं तो यह स्थान श्री भैरव जी सरकार के नाम से लोहागढ़ मोर जिला झांसी उत्तर प्रदेश में स्थित है और आस्था का यह प्रतीक है यहां पर आने वाले लोगों की मनोकामनाएं पूर्ण होती है यदि कोई भूत बाधा से परेशान है तो इस मंदिर में दर्शन करके उस स्थान से अपने सारे कष्ट उसके दूर हो जाते हैं मंदिर जो है वह लोहागढ़ गांव में स्थित दक्षिण दिशा में है और वहां का जो निजी बस स्टैंड है वहां पर लगभग 1 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है ।

आस्था और विश्वास के सरोवर से भरा हुआ यह जगह बहुत ही ज्यादा प्रसिद्ध है भैरव सरकार का प्रसिद्ध मंदिर जो लोहागढ़ ग्राम में है वह दक्षिण दिशा में स्थित है और आज से लगभग 500 वर्ष पहले एक घटना घटित भी हुई थी लोगों का कहना है कि है जगह एक घना जंगल हुआ करता था और जिसमें एक धन्य पेड़ों के झुरमुट टाइप की थी जिसमें एक गोल पत्थर नाम की आकृति रखी हुई थी जिसे सभी लोग भैरव जी की मूर्ति शायद लोग मानते थे वहां पर एक रास्ता था जो लोहा गढ़ से खोजा चंकी के लिए जाता था और वहीं पर एक किसान अपनी बेल गाड़ी से जा रहा था तो उसी के गाड़ी अचानक उसी झुरमुट के पास खराब हो जाती है और किसान ने उसे ठीक करने के लिए उस पत्थर का उपयोग किया और उसको बैलगाड़ी में रख लिया लेकिन जब उसकी गाड़ी आगे नहीं बढ़ी तो किसान बहुत ही ज्यादा इस बात के चमत्कार से परेशान होने लगा और उसने वहां पर जो बहुत सारे पशु चरा रहे लोग थे उनको आवाज दी और वह वहां पर पहुंचे मदद की कोशिश की गई लेकिन गाड़ी आगे नहीं बढ़ पाई फिर एक आदमी ने कहा तो पत्थर गाड़ी में रखा है ।

यह भैरव जी है तब उस पत्थर को दूसरी जगह रखा गया किसान ने अपनी गलती मनाई और उसके गाड़ी सहयोगी अपने आप अपनी गाड़ी के साथ अपने गांव पहुंच सका तब यह बात उसने अपने गांव के लोगों को बताई तब इसी वजह से यह मंदिर बना इस घटना से पंद्रह सौ साल पहले यह घटना है जब कंकाल नाथ पैदा हुआ था कंकाल नाथ क्योंकि कंकाल नाथ को बचपन से ही यह बात सिखाई गई थी और बताई गई थी कि आपका जो जीवन है वह बाबा काल भैरव की देन है और बाबा कंकाल भैरव के नाम से भैरव जी कई नामों से जाने जाते हैं इसमें तुम भगवान कंकाल भैरव के भक्त बनना क्योंकि जो हमारे भैरो जी हैं वह कई सारी रूपों में प्रकट होते हैं उसमें सबसे उत्तम स्वरूप तुम्हारे लिए जो है वह कंकाल भैरव जी है क्योंकि तुम कंकाल के ही रूप में पैदा हुए थे प्रकट हुए थे इस दुनिया में आए थे यह कारण है जिसकी वजह से तुम अपने जीवन को बदल सकते हो बचपन से ही यह बातें सुन सुन कर के कंकाल नाथ के मन में यह बात आ गई कि उसे भैरव जी के स्वरूप यानी कि कंकाल भैरव को सिद्ध करना जरूरी है अगर वह कंकाल पैरों को सिद्ध कर पाया तो निश्चित रूप से उसके जीवन को सफलता मिलेगी और वह जीवन में सफल हो पाएगा ।

इन बातों से ही प्रभावित होकर के वह गुरु को ढूंढने लगा लेकिन कहते हैं ना कि गुरु को ढूंढना एक बहुत ही कठिन कार्य होता है अपने सभी प्रयासों में वह इधर-उधर भटकता लेकिन कहीं भी उसे कोई गुरु प्राप्त नहीं हो पाया धीरे-धीरे करके कंकाल नाथ जवान होने लगा घर परिवार के लोगों ने कहा कंकाल नाथ तुम्हें शादी कर लेनी चाहिए लेकिन कंकाल नाथ का मन शादी विवाह जैसी चीजों में नहीं लगता था कंकाल नाथ को सभी प्रकार के प्रबल दिए गए संसारिक्त में लाने के लिए कई सारी कोशिश की गई लेकिन कंकाल नाथ को किसी भी प्रकार से किसी ने की प्रभावित करने की जो भी कोशिशें की गई वह सब लोग असफल ही रहे इस प्रकार कंकाल नाथ जीवन में केवल और केवल भैरव जी को ही प्रसन्न करना चाहते थे उनके उस स्वरूप यानी कि कंकाल पैरों को सिद्धि करने की दृढ़ इच्छा थी एक बार उन्होंने एक साधु के टोली के साथ यात्रा करने की सोची परिवार से इस और आज्ञा ले ली क्योंकि वह जानते थे कि अगर परिवार को बताएंगे तो निश्चित रूप से परिवार उन्हें घर से बाहर नहीं जाने देगा ।

इस कारण से उन्होंने साधुओं की टोली के साथ तीर्थ यात्रा पर जाने के लिए बात कही असल में उद्देश्य था कंकाल नाथ जी का कि वह किसी भी प्रकार से ऐसे गुरु की तलाश करें ऐसे गुरु को ढूंढें जिस गुरु की सहायता से उन्हें जीवन में सिद्धि की प्राप्ति हो इस प्रकार साधुओं की टोली के साथ घर परिवार से आज्ञा लेकर वह चल दिए कुछ दूर एक तीर्थ स्थल पर जाने पर कंकाल नाथ में सोचा की मेरा यह मार्ग अलग हो गया है यानी कि मैं अब इन लोगों के साथ नहीं जाऊंगा इसलिए कंकाल नाथ ने अब अपनी अलग राह पकड़ ली और वह एक जंगल की ओर बढ़ने लगे शायद प्रेरणा थी भगवान काल भैरव अपने काल कंकाल भैरव स्वरूप में शायद उन्हें इसी प्रकार आकर्षित कर रहे होंगे इसीलिए वह उस दिशा की ओर आगे बढ़ चले भीषण जंगल में है जैसे ही घुसने लगे दिन में भी वहां पर पूरी तरह से अंधकार था वह जंगल डराने वाला था धीरे धीरे अप्रत्याशित रूप से ही कंकाल नाथ उस दिशा की ओर बढ़ते चले जा रहे थे कुछ दूर जाने के बाद में उन्होंने एक कुटी देखी उस कुटी में उन्हें समझ में आया जरूर यहां पर कोई सिद्ध पुरुष रहता होगा क्योंकि जंगल के इतने घने वातावरण में भला कोई क्यों रहेगा उन्होंने सोचा शायद मेरी यात्रा यहां पर मुझे अवश्य ही कुछ ना कुछ दिलाएगी यही सोच कर के कंकाल नाथ में उस कुटी के पास जाकर के वह बैठ गए जब उन्होंने अंदर की ओर छाका तब वहां पर कोई नहीं था कंकाल नाथ में सोचा कि क्यों ना इंतजार किया गया क्योंकि जो भी यहां पर व्यक्ति आएगा वह निश्चित रूप से मैं उससे बातचीत करूंगा।

कंकाल नाथ को भूख लगने लगी कंकाल नाथ भूखे पेट ही वहीं पर किनारे झाड़ियों में लेट कर सो गया कुछ देर बाद अचानक से बहुत ही तेज आवाज आई कंकाल नाथ ने जैसे ही अपना सिर ऊपर किया सामने एक भयानक सा आदमी जो पूरी तरह से काला था उसके सामने खड़ा था उसे देख कर के कंकाल नाथ अचानक से डर गया कंकाल नाथ ने सोचा कि यह कौन है और तुरंत ही उसको प्रणाम करके कहा मैं यहां पर आप ही का इंतजार कर रहा था मैं जानना चाहता हूं कि आप इस कोठी में रहकर के क्या करते हैं और मेरा मार्गदर्शन क्या आप करेंगे वह व्यक्ति इधर-उधर कूदता फांदता सा जैसे गिलहरी कूदती है अजीब तरह का वातावरण अपना बना रहा था और उसी में अपना स्वभाव दिखा रहा था कंकाल नाथ ऐसे व्यक्ति को देखकर आश्चर्य में पड़ गया उसने सोचा कि आखिर यह कौन है ?

इस प्रकार से यह उछल उछल कर के इधर उधर क्यों जा रहा है वह इधर उधर उछलने के बाद तुरंत ही पेड़ों पर चला गया तेजी से पेड़ों पर चढ़कर कुछ पल तोड़कर ले आया और कंकाल नाथ के आगे बैठ गया और कहने लगा भूख लगी होगी तुझे भूख लगी होगी तुझे ले खा ले मैं जानता हूं कि मैं तेरे पेट के अंदर देख सकता हूं तेरी आंते हिल डूल रही है इन्हें भोजन नहीं मिला है इसी कारण तेरा शरीर सशक्त हो गया है तू कमजोर हो रहा है इससे पहले कि तू कुछ और जाने पहले तू कुछ खा ले कनकालय नाथ में देखा तो उसके पास कई तरह के फल रखे हुए थे और वह व्यक्ति इतनी तीव्रता से वह कार्य कर के लाया था जैसे कोई बंदर पेड़ पर चढ़कर के फटाफट फलों को तोड़ कर के ले कर आ जाता है इस तरह का अद्भुत चमत्कार पहली बार इन्होंने अपनी आंखों से देखा था इन्हें कुछ समझने की आवश्यकता नहीं थी कारण यह था कि जब पेट में भूख होती है तो व्यक्ति बाकी बातों के बारे में नहीं सोचता है और वह तुरंत ही भोजन करने लगा धीरे-धीरे करके कंकाल नाथ ने उस भोजन को समाप्त कर दिया ।

अभी कंकाल नाथ कुछ बोल ही बातें तभी उनके हाथ में एक मिट्टी का बना हुआ प्याला था जिसमें पानी भरा हुआ था वह व्यक्ति कुत्ते कुत्ते एक बार फिर से कंकाल नाथ के पास वह चीज लेकर आ गया कंकाल नाथ ने उसे नमस्कार करते हुए वह जल पी लिया और उसके बाद तुरंत ही वह व्यक्ति अंदर अपनी कुटी की ओर चला गया कंकाल नाथ ने दरवाजे पर खड़े होकर के उस व्यक्ति से आज्ञा मांगी की वह कुटी के अंदर आना चाहता है वह व्यक्ति कहने लगा तेरा काम तो हो गया अब तू जा अब यहां क्या करेगा कंकाल नाथ ने कहा आपने मेरी सेवा की है मुझे भोजन दिया पानी दिया मैं आपसे कुछ सहायता चाहता हूं मुझे पता है कि यह करने की विद्या किसी के पास नहीं होती है जो आप ने अभी अति सरल तरह से मुझे दिखाया है फिर वह व्यक्ति हंसते हुए कहने लगा क्या दिखाया है तुझे क्या दिखाया है कुछ कंकाल नाथ ने कहा आप जिस तरह से व्यवहार करते हैं यह किसी सिद्धि को दर्शाता है ।

आप कूद कूद कर के इधर से उधर जाते हैं इन सब का क्या कारण है वह व्यक्ति हंसने लगा कहने लगा कुछ नहीं कुछ नहीं यह सब तो हनुमान जी की माया है मैं हनुमान जी का भक्त रहा और उनकी ही सेवा करता हूं तो कुछ गुण तो उनके आएंगे ही मुझे कूदना तेजी से इधर-उधर जाना बहुत ही ज्यादा पसंद है इसी कारण से मैं जंगल में रहना पसंद करता हूं अब मुझे भोजन चाहिए तो भला पूरे जंगल में कहां तक दौडूंगा लेकिन हनुमान जी की कृपा रहती है पूरे जंगल में कहीं किसी भी पेड़ पर कोई भी फल को मुझे उसकी गंद आ जाती है और मैं कूदते कूदते वहां पहुंच जाता हूं देख अभी भी कुदा और तुरंत कहीं भी पहुंच गया यह सब हनुमान जी की कृपा है यह जीवन उन्हीं को समर्पित है कंकाल नाथ ने कहा आपका जीवन हनुमान जी को समर्पित है लेकिन मुझे किसी भी प्रकार से भगवान भैरव को प्रसन्न करना है फिर वह सामने व्यक्ति हंसने लगा और कहने लगा कि ठीक है तुझे मैं तुझे रास्ता दिखाऊंगा तेरी यात्रा बड़ी लंबी होने वाली है ।

मुझे दिखाई दे रहा है तेरी यात्रा बड़ी लंबी होने वाली है कंकाल नाथ ने कहा आपको क्या दिखाई दे रहा है मुझे बताइए उसने कहा तुझे कई साधु संत मिलेंगे और उन सब से जीवन में तू बहुत कुछ सीखेगा पहला तो मैं मिल ही चुका हूं तुझसे और आगे भी तेरे साथ बहुत कुछ होने वाला है चलो ठीक है मैं तुझे मार्ग बताता हूं ऐसा कर जंगल के दूसरे कोने में एक जगह है उस जगह पर हनुमान जी की एक मूर्ति रखी हुई है मूर्ति बहुत पुरानी है कोई पूजा नहीं करता है जा उस मूर्ति को उठाकर के ले मैं तुझे मार्ग बताता हूं कंकाल नाथ ने बिना देरी किए हुए और चलने लगा आगे वह चलता चला गया और वह जंगल के उस आखिरी कोने तक पहुंचा जहां पर हनुमान जी की मूर्ति सचमुच में विराजमान थी ।

लेकिन वह जैसे ही मूर्ति को छूने और आगे बढ़ने के लिए गया अचानक से मूर्ति जो थी वह चिल्ला कर के बोलने लगी और कहने लगी मूर्ख मुझे उठाने की तेरी हिम्मत कैसे हुई अभी चाहूँ तो तुझे समाप्त कर दूं आखिर यहां क्यों आया है डरते हुए कंकाल नाथ ने कहा आपके ही एक भक्त ने मुझे आज्ञा दी है कि मैं आप की मूर्ति उठाकर के लाऊं फिर मूर्ति जोर से बोली और कहने लगी कि मूर्ख अगर तू ऐसा समझता है तो मूर्खता करता है तू क्या जाने उसके बारे में कौन है वह और तू मुझे मेरे ही स्थान से हटाकर कहीं दूर रखना चाहता है मैं तुरंत ही तुझे समाप्त कर दूंगा और वहां पर बहुत सारी झाड़ियां आकर के कंकाल नाथ के चिपक गई उन में लगे हुए काटे शरीर को छेदने और काटने लगे कंकाल नाथ चिल्लाने लगा कंकाल नाथ डर के मारे भयभीत हो गया और जोर जोर से चिल्लाने लगा आगे क्या हुआ हम लोग जानेंगे अगले भाग में–

कंकाल नाथ की सिद्धि यात्रा भाग 2

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