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कपालिनी देवी साधना और अनुभव

कपालिनी देवी साधना और अनुभव

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। आज जो हम साधना और इसके एक आसान से अनुभव को लेना चाहते हैं, यह अनुभव एक शिष्य द्वारा भेजा गया है जो कि इस तामसिक साधना के साधना और साथ में उसके अनुभव को यहां पर दर्शाते हैं। यह एक गोपनीय और अघोरियों के द्वारा की जाने वाली एक साधना है जिसको हम काली कपालिनी साधना के नाम से जानते हैं। इस साधना में विशेष तरह के तंत्र प्रयोगों को किया जाता है और किस तरह के उपद्रव इस साधना में होते हैं। क्या-क्या साधक साधना के दौरान समस्याएं झेल सकता है। इसका भी वर्णन उन्होंने यहां पर किया तो चलिए शुरू करते हैं। इस पत्र के माध्यम से इस साधना का ज्ञान
ईमेल पत्र-प्रणाम, गुरुजी, चरण स्पर्श गुरुदेव आज मैं आपका शिष्य आपको एक अनुभव भेज रहा हूं जो मुझे एक सिद्ध अघोरी की जुबानी प्राप्त हुआ। आप इस पर वीडियो बनाएं तो कृपया मेरा ईमेल आईडी! गुप्त रखें। यह साधना 27 दिन की होती है। कपालिनी साधक को कभी भी आकर वचन दे सकती है। साधक को हमेशा सावधान रहना चाहिए। मंत्र जाप के समय में जैसे ही कपालिनी की आवाज साधक को सुनाई दे तुरंत साधक उस से वचन ले ले। पूरे साधना काल में कपालनी साधक के आसपास ही घूमती रहती है। अदृश्य रूप में और उसके सहायक कपाल और कपाली भी घूमते हैं। काली कपालिनी का जो स्वरूप है, वह बहुत ही उग्र होता है। वहां महाउग्र कहलाता है। इस साधना को केवल पत्थर दिल साधक ही संपन्न कर सकते हैं। शेर दिल साधक भी शमशान छोड़कर भाग सकते हैं। कपालिनी वचन के अनुसार सभी कार्य करती है। वर्तमान में यह एक सिद्ध साधना मानी जाती है और तंत्र साधकों को यह सिद्ध करवाई भी जाती है। वर्तमान समय में यह साधना हमारे ही एक शिष्य श्मशान में संपन्न कर रहे थे। तब गुरु मंत्र के जाप के समय जो फोटो हमने खींचे, उसमें कपालिनी भी कैमरे में कैद हो गई। यह फोटो की सबसे बड़ी बात यह है। यह कपालिनी सूर्य प्रकाश में फोटो में गायब सी रहती है और रात्रि में फोटो में दिखाई देती है। डरपोक साधक इस फोटो को ना देखें।
यह साधना श्मशान में रात में मंगलवार से शुरू की जाती है। इस साधना में साधक अपने सामने लाल वस्त्र पर तलवार या छोटा छुरा रख सकता है। तेल का चिराग जलाए एक मिट्टी के प्याले में मदिरा और दूसरे में मांस रखें। मोगरा गुलाब चमेली की धूप जलाएं। तलवार का पूजन करें और अपने माथे और तलवार पर सिंदूर का तिलक लगाएं। तलवार पर लाल कनेर के फूल चढ़ाएं। पांच बूंदी के लड्डू, थोड़ा मांस, थोड़ी मदिरा भी इसमें चढ़ाएं 31 माला का जाप करें। लाल वस्त्र साधक पहने अपने चारों तरफ त्रिशूल से सुरक्षा रेखा खींच ले, मंत्र जाप शुरू करें और गुरु साधक को साधना में बैठाकर 35 मीटर की दूरी पर उससे बैठ जाए। मंत्र जाप करते हुए साधक के सामने पहले दिन चार प्रेत आत्माएं आती हैं और साधक पर हमला करती हैं। पूरे जप काल में यही रहता है। दूसरे दिन साधक के सामने श्मशान की स्त्री आत्माएं आती हैं और साधक को इसमें डराती धमकाती हैं तीसरे दिन साधक के सामने सांप आता है और सीधा सामग्री से होकर साधक की टांगों के बीच घुस जाता है। हालांकि यह एक भरम होता है। बंद आंखों में परीक्षा का, किंतु साधक इस बात से डरे नहीं चौथे दिन प्रेत आत्माएं आती है और साधक को परेशान करती है। इसी बीच साधक को अपने सामने की जमीन हिलती और डुलती नजर आती है। अर्थात कोई जमीन को ऊपर उठा रहा हो।
पांचवें दिन साधक के सामने जमीन उखड़नी शुरू हो जाती है और इसे उखाड़ती है कपालनी क्योंकि यह शमशान भूमि को फाड़ कर बाहर आती है। छठवें दिन साधक को ऐसा लगता है जैसे साधक का मांस कोई कुत्ता आकर खा गया, किंतु डरे नहीं, यह भी एक भ्रम होता है। सातवें दिन सभी प्रेत हंगामा श्मशान में होता है। इस दिन कपालनी साधक को श्मशान भूमि को उखाड़ कर जमीन से बाहर आकर निकालती है और गर्दन निकाल कर उसे देखती है। आठवें दिन नवे 10, 11, 12, 13, 14, 15, 16, 17, 18, 19 और 20 वें दिन इसी तरह के श्मशान में उपद्रव होते रहते हैं। कपालिनी साधक के चारों तरफ तीव्र हवा के झोंके की तरह घूमती है और अपना भोग ग्रहण करती है। अंतिम दिन का कपालिनी काली जाग जाती है और श्मशान की भूमि उखड़ना शुरू हो जाती है। जब यह सामने आती है तो उससे पहले भयंकर रूप में काली स्वरूपों में अनेक भुजाओं के साथ दर्शन भी देती है। साधक को भयभीत करती है। यदि साधक इन से डरा नहीं तो अंत में हाथ में त्रिशूल डमरू लिए हुए नाक चपटी दो दांत निकले हुए बाहर की ओर मुंह से बहता हुआ रक्त ऐसे स्वरूप में साधक को दर्शन देती है और तब साधक इन्हें वचन लेकर इन्हें सिद्ध कर सकता है और जब यह सिद्ध हो जाती हैं तो साधक का प्रत्येक कार्य करती हैं। एक फुटबॉल की तरह खोपड़ी के रूप में रहकर साधक के सभी कार्यों को यह करती रहती है। साधकों को यह बात यहां पर बता दूं कि यह काली कपालिनी देवी की सिद्धि है ना की किसी कपाल या कापाली की जय गुरुदेव।

संदेश-तो देखिए यहां पर इन्होंने एक तांत्रिक साधना जिसे हम काली कपालिनी साधना के नाम से जानते हैं दिया है। इस साधना में अन्य साधनाओं की तरह ही मिठाई के साथ में मांस और मदिरा भी चढ़ाई जाती है। ऐसी साधनाओं को करने के लिए साधक में आत्मबल होना बहुत आवश्यक है। गुरु मंत्र का पूरा अनुष्ठान उस व्यक्ति ने कर रखा हो। इसके अलावा साधक निडर भी होना आवश्यक है क्योंकि जिसमे निडरता नहीं होती है, ऐसे साधनाओ को साधक जब करता है।

तो भय से सामना होने पर या तो वह साधना छोड़ कर भाग जाता है या फिर ऐसी साधनाओं के जंजाल में फंसकर अपना मानसिक संतुलन खो सकता है यानी, पागल तक हो जाता है। इसके अलावा इस तरह की जो ऊर्जा है उस ऊर्जा को संभालने के लिए आपका मस्तिष्क प्रबल होना आवश्यक है और यह सारी बातें तभी आती है। जब व्यक्ति का गुरु मंत्र जाप अनुष्ठान पूर्ण हो, उसके अंदर पूर्ण आत्म बल हो। पूर्ण समर्पण उसका देवी या उसके इष्ट देवता के प्रति हो  तभी व्यक्ति मृत्यु के भय से अपनी साधनाये नहीं छोड़ता है और तभी उसके अंदर एक क्षमता पैदा होती है। ऐसी साधनाओं को करने के लिए । पहले व्यक्ति अपने सुरक्षा घेरे को सिद्ध करले और स्वयं की रक्षा के लिए मजबूत कवच का भी निर्माण अवश्य करके रखें। हालांकि मूल शक्ति कभी किसी भी साधक को नष्ट नहीं करती है, लेकिन उसकी सहायक और सेविका शक्तियां कुछ भी बुरा साधक के साथ बड़ी आसानी से कर सकती हैं। इसीलिए उनको संभालने के लिए ही सुरक्षा घेरा, रक्षा कवच इत्यादि की आवश्यकता पड़ती है। मंत्र जाप के समय केवल आपको मंत्र जाप करना है और हो रहे अनुभव पर ध्यान नहीं दिया जाता है। जो भी अनुभव होता रहे उससे कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए। तभी आप साधना में सफल हो सकते हैं। और इस साधना में तो गुरु भी साथ में दूर बैठता है। अपने गुरु पर साधक को विश्वास होना चाहिए और जो भी अनुभव हो रहा है, यह समझना चाहिए कि यह माया जाल है और इसमें मुझे नहीं फसना है। लेकिन साधना चाहे कोई भी हो। ब्रह्मचर्य का पालन वह मानसिक कायिक वाचिक तीनों ही तरह का होना चाहिए। तभी व्यक्ति सिद्धि को संभाल सकता है और सिद्धि उसकी बनी भी रहेगी। तो यह थी एक साधना जिसमें हम काली कपालिनी नाम की शक्ति को सिद्ध करते हैं। अगर आज का वीडियो आपको पसंद आया है तो लाइक करें। शेयर करें, सब्सक्राइब करें। आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद।

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