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कर्ण पिशाचिनी की उत्पत्ति और कहानी भाग 2

कर्ण पिशाचिनी की उत्पत्ति और कहानी भाग 2

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल में आपका एक बार फिर स्वागत है । अब आज हम जानेंगे कर्ण पिशाचिनी की साधना के बारे में आगे क्या हुआ । और कैसे शक्तियों का उत्पत्ति करण हुआ । कैसे मित्र नाथ और रूपमती की कहानी आगे बढ़ती है । वह आज के एपिसोड में आज बताऊंगा । तो चलिए शुरू करते हैं जैसा कि आपने पढ़ा था कि भैरवी चक्र में जब मित्र नाथ ने रूपमती को बैठा दिया था । उसके कर्ण पर जो है मल का प्रयोग किया गया था इससे उसकी सब शक्ति उत्पन्न हो और इसके बाद एक धूआ चारों तरफ उत्पन्न हो गया । उस धुए ने रूपमती को लपेटना शुरू कर दिया । लेकिन वह धूआ उसके शरीर में प्रवेश नहीं कर पाया । कारण यह कि वह पहले से ही भगवान शिव की भक्त रही थी । ऐसी अवस्था में अत्यंत तेज प्रयोग किया गया । तब उसमें और ऊर्जा से विचलित होकर के रूपमती वह भैरवी चक्र छोड़कर भाग खड़ी हुई ।इसी के साथ वह अनुष्ठान अधूरा रह गया । अनुष्ठान अधूरा रह जाने के कारण वह शक्ति जो वातावरण में काले धुएं सी उत्पन्न हुई थी । अदृश्य होकर किसी और दिशा में दौड़ती हुई सी चली गई । अर्थात वह काला धुआं वहां से हट गया ।

अपनी पत्नी रूपमती को विचलित देख कर के मित्र नाथ परेशान हुआ । उसने सोचा कि मैंने कहीं गलत प्रयोग तो नहीं कर दिया कहीं रूपमती की मानसिक स्थिति तो नहीं बिगड़ जाएगी । शक्ति का आवाहन हो चुका था लेकिन शक्ति प्रवेशित नहीं हो पाई थी । यह तांत्रिक प्रयोग तो सही दिशा में गया था उसका रिजल्ट नहीं आ पाया था । फिर उसके बाद मित्र नाथ शुद्ध गंगाजल से अपनी पत्नी का स्नान करवाया । फिर एक बंद कमरे में ले जाकर के वार्तालाप शुरू किया । रूपमती ने पूछा आप मुझ पर जब तंत्र प्रयोग कर रहे थे तब मैंने एक काले लिबास में एक भयानक स्त्री को देखा । जो मेरी तरफ तेजी से दौड़ती हुई चली आ रही थी उसके बड़े बड़े दांत थे । और रक्त या मांस खाए हुए थी । मुंह से खून टपकाए हुए सी वह मेरी तरफ तेजी से आ रही थी । ऐसा मैंने अपने सामने देखा मैं उस भय का सामना नहीं कर पाई मुझे लगा कि वह तेज़ी से मेरे कान के द्वारा मेरे शरीर में प्रवेश कर जाएगी ।

इस भीषणता और उसकी उग्रता को देख करके मुझसे रहा नहीं गया । मैंने भगवान शिव का नाम लेकर ओम नमः शिवाय कहते हुए वहां से उठकर के भाग गई थी । फिर मित्र नाथ ने कहा आपको परेशान होने की आवश्यकता नहीं है । मैंने आपकी सुरक्षा के लिए भैरवी चक्र में आपको स्थापित कर रखा था । वह शक्ति आपके शरीर को धारण करती फिर मैं उस से सिद्धियां प्राप्त करता । यह प्रयोग सफल रहा था तो फिर रूपमती ने एक बार फिर से पूछा अपने पति से कि आखिर यह कौन सी शक्ति है । जो आप मुझ पर प्रयोग करना चाहते हैं । जिसका आपने आवाहन किया था इसके बारे में कहा से वर्णन है यह कौन सी शक्ति है मेरे शरीर में प्रवेश कराना चाहते हैं । फिर मित्र नाथ ने उसकी बाद को समझते हुए प्रेम पूर्वक अपनी पत्नी को बैठाया और उससे कहा सुनो मैं तुम्हें वास्तविकता बताता हूं । आज से कई सौ सहस्त्र वर्ष पूर्व जब इस पुण्य भारत भूमि पर वैदिक युग चल रहा था ।

उस वक्त बहुत से ऋषि मुनि अनेक प्रकार की तांत्रिक और आध्यात्मिक शक्तियों का संचय करते रहते थे ।जीवन में उस समय दो ही कार्य होते थे एक पशु पालन और दूसरा ध्यान और भजन यही आर्यों की विशेषता थी ।उसी समय बहुत से ऐसे ऋषि मुनि हुए जिन्होंने अपनी आध्यात्मिक शक्तियों के द्वारा गोपनीय से गोपनीय रहस्य को जाना । और शक्तियों को प्रकट किया उन्हीं में से एक ऋषि मुनि थे पिप्पलाद ऋषि । पिप्पलाद अत्यंत ही ऊर्जावान व्यक्ति थे । और उन्होंने भयंकर भयंकर तामसिक साधनाएं सभी प्रकार की साधना । जो की वह प्रभावशाली होते चले जा रहे थे । उनका योग स्तर बहुत ही ऊंचा था तो एक बार जब वह योग साधना में बैठे हुए थे । मानसिक जप कर रहे थे उसी समय उनके हृदय में बहुत तीव्रता से हृदय चक्र का जागृत हो रहा था । हृदय चक्र का जागृत होने से उन्हें पता लगा कि यह ही है जो रक्त हमारे शरीर में ऊपर से लेकर के नीचे पैर तक दौड़ता रहता है ।

अगर यह बहना बंद हो जाए तो शरीर सुन्न हो जाएगा । और यह हृदय वैसे ही फव्वारे की तरह बहता हुआ ऊपर नीचे चारों तरफ गति करता रहता है । हृदय की धड़कन तभी तक चल रही है जब तक आप जीवित है । अर्थात रक्त की शक्ति तंत्र में या मंत्र में बहुत ही शक्तिशाली होगी । तो उसका जो यह मूल अर्थ है सुन्या था । ऐसी काली शक्ति माता काली का यह रक्त की वाहिनी है । और रक्त के रूप में बहती है लेकिन इनका प्रयोग मनुष्य के जीव के रूप रक्त ही रक्त को चाहता है । यानी कि रक्त ही रक्त को प्राप्त करता है । जब कोई जानवर होता है तब दूसरे जानवर को मारकर उसको खा लेता है । और उसका रक्त पी लेता है इसी प्रकार हम मनुष्य जब मर जाते हैं तो हमारा रक्त धरती पी लेती है । उसी पर पौधे उत्पन्न करती है पानी के रूप में उस रक्त को फिर से धरती व्यक्तित्व में ग्रहण कर लेती है।  व्यक्तित्व मैं उसको फल-फूल वनस्पतियों के रूप में फिर प्राणियों को प्रदान करती है ।

तो रक्त का ऐसा प्रभार चल रहा है जो हृदय से संचालित हो रहा है । हृदय से चलने वाले लेकिन अगर कोई तामसिक या तांत्रिक कोई भी प्रयोग होगा तो इस चीज में देवी अवश्य होगी हृदय चक्र की उस शक्तिशाली देवी को जागृत करने उन्होंने अब आध्यात्मिक ऊर्जा शक्ति को अपने मंत्रों के द्वारा गोपनीय विद्या उन्हें प्राप्त थी । उनका उन्होंने जाप शुरु कर दिया उस मंत्र का इस प्रकार से उन्होंने मंत्र जाप शुरू किया । कि तब ध्यान में उन्हें पता लगा ऐसी देवी है जो चिता पर आसन लगाकर नरमुंड माला से विभूषित अपने कर कमलों में उपस्थित माला धारण किए मनुष्य की आंतों माला धारण किए मैली कूचेली धारण करने वाली और अत्यंत ही भयानक दिखने वाली है ।

यह देवी कर्ण पिशाचिनी है जब उन्हें इस बात का ज्ञान अपनी आध्यात्मिक शक्ति के द्वारा हुआ । तो फिर उन्होंने इनके मंत्र की रचना की और मंत्र इस प्रकार है ओम हरीम क्रीम कर्ण पिशाचिनी आगछ स्वाहा उन्होंने रचना की और इस मंत्र का उच्चारण शुरू कर दिया । इस मंत्र का प्रयोग उन्होंने इस प्रकार किया ओम अति कर्ण पिशाचिनी पिप्पलाद ऋषि कर्ण पिशाचिनी अभीष्ट सिद्धार्थ योगा और अन्य प्रकार के जितने भी सन्यास होते हैं । और सब कुछ करते हुए देवी का आवाहन करने लगे इस प्रकार प्रथम बार आध्यात्मिक तरीके से देवी का आवाहन और शक्ति उन्हें देखी तीन से चार लाख मंत्र जाप जपने थे । और एक दिन यह देवी प्रकट हो गई लेकिन देवी का स्वरूप ऐसा था  कि रक्त प्रिय था । देवी ने कहा मुझे रक्त प्रिय है और देवी ने कहा कि तुमने मेरी साधना देविक रूप से करती है किंतु भूत प्रेत पिशाचो कि मैं देवी हूं । और उन सबको मैं अपने अधीन रखती हूं हर प्रकार से वासना में जीवन व्यतीत करने वाले भूत प्रेत का मैं रूप ग्रहण करती हूं ।

मैं ऐसी ही भयानक और अत्यंत बलवान शक्तिमान हूं । और आगे आने पर इसी समय मेरे वाम मार्ग में मेरी साधना भी की जाएगी उस वाम मार्ग की साधना को जो सिद्ध करेगा उसको मैं तेज गति से कार्य करूंगी । और जल्दी सिद्ध होंगी इतना कहकर के उन्होंने पिप्पलाद ऋषि को वह शक्तियां प्रदान की उन्हें भूत भविष्य वर्तमान की ज्ञान होने लगा । लेकिन याद रखिए वैदिक तरीके से की गई साधना भूत और भविष्य का ही ज्ञान होता है । लेकिन भूत और वर्तमान का ज्ञान वाम मार्ग में नहीं होता है । वर्तमान और भूत का ज्ञान होता है और इस शक्ति के द्वारा भयंकर से भयंकर मानव तंत्र और भयंकर से भयंकर शक्तियों को अपने वश में ला सकते हैं । इस शक्ति के बाद यह शक्ति धीरे-धीरे लुप्त हो गई मेरे जो अत्यंत प्रिय रिश्तेदार थे । कामनाथ जी उनसे ज्ञान मेरे पिता को प्राप्त हुआ । और उसके बाद मुझे प्राप्त हुआ तब मैंने इस प्रयोग को करने की सोची ।

कि मैं इस प्रयोग का अगर मैं वाम मार्ग से आवाहन करूं तो निश्चित रूप से यह प्रकट होगी और मेरे से यह सिद्ध भी होगी । अघोर शक्तियां देने वाली और बहुत तरह की गोपनीय बातें बताने वाली एक मात्र यही सिद्धि है जो सिद्ध अवश्य होती है । और जो कलयुग में फलदाई कही गई है इस प्रकार कर्ण पिशाचिनी साधना मैं अगर करूं निश्चित रूप से मुझे सफलता मिलेगी । इसके लिए मुझे एक ही मार्ग सूजा अगर महानतम वाम मार्ग में सबसे बड़ी साधना होती है । उसे भैरवी साधना कहते हैं सबसे उच्च कोटि की यह साधना है मैंने सोचा अगर मैं भैरवी साधना करूं उस माध्यम से मैं तुम्हें इस शक्ति को प्रवेश कराओ । निश्चित रूप से इस शक्ति को विवश होकर आना ही होगा । तो वही प्रयोग में कर रहा था जिससे भयभीत होकर आज तुम भाग खड़ी हुई । और अब मैं तुम से निवेदन करता हूं अबकी बार तुम भागना नहीं निश्चित रूप से इस सिद्धि को सिद्ध करके मैं अत्यंत ही बलवान हो जाऊंगा । तो इस प्रकार मित्र नाथ ने अपनी पत्नी को समझाया अगले चरण की प्रक्रिया के लिए रूपमती को तैयार कर लिया । अब रूपमती एक बार फिर से उस प्रक्रिया के लिए तैयार हो गई अब आप अगले एपिसोड में जानेंगे कि आगे क्या हुआ । आपका दिन मंगलमय हो धन्यवाद ।

कर्ण पिशाचिनी की उत्पत्ति और कहानी भाग 3

 

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