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कर्ण पिशाचिनी की उत्पत्ति और कहानी भाग 3

कर्ण पिशाचिनी की उत्पत्ति कहानी भाग 3

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है । आज हम बताएंगे कर्ण पिशाचिनी के उत्पत्ति का तीसरा भाग । जैसा कि आप जानते हैं वैदिक काल में कर्ण पिशाचिनी की पूजा ऋषि पिप्पलाद ने की थी । और उस साधना को तांत्रिक तरीके से मित्र नाथ और उनकी पत्नी रूपमती ने संपन्न करने की कोशिश की । और इस कार्य में वह सफल हुए कि नहीं । और इससे आगे चलकर के कैसे कर्ण पिशाचिनी को तंत्रलोक में आवाहन हुआ । इस कहानी के माध्यम से जानेंगे । चलिए शुरू करते हैं मित्र नाथ ने अपनी सारी कहानी और वैदिक काल में घटित वह घटना अपनी पत्नी को बता दी । रूपमती भी अब सहज हो गई । और वह इस कार्य के लिए तैयार हो गई । रूप मती ने कहा किसी भी प्रकार से आप इस कार्य को सिद्ध करिए ।और मैं कर्ण पिशाचिनी को अपने शरीर पर लेने के लिए तैयार हूं । और आप मेरी रक्षा का प्रबंध अवश्य ही कीजिएगा ।

ऐसा कह कर के एक बार फिर से भैरवी चक्र में रूपमती को पूर्णता नग्न करके उसमे बैठा दिया गया ।उसके बाद अभिमंत्रित करके एक रुद्राक्ष की बड़ी सी माला कमर में रूपमती के बांधी गई । ताकि अगर कोई गड़बड़ी हो तो उस माला के रहते कोई बड़ा नुकसान ना होने पाए । अनुष्ठान कार्य को संपन्न करने के लिए एक बार फिर से मंत्रों का आवाहन किया जाने लगा । अब यह साधना आगे बढ़ने लगी इस साधना को 21 दिन का संकल्प लेकर के करने की कोशिश मित्र नाथ ने की । उन्होंने सोचा कि अत्यधिक प्रभावशाली रूप में करने से अच्छा है । ऐसी अवस्था में करूं कि । जो वैदिक और तांत्रिक दोनों का मिलन एक ही प्रकार से हो 21 दिन की साधना वाला प्रयोग उन्होंने कोशिश की ना कि 3 दिन या 11 दिन वाला अनुष्ठान तांत्रिक साधना करने की कोशिश की । क्योंकि इस प्रकार के प्रयोगों में भी बाद में इसी आधार में बनाया ।

और निर्मित तांत्रिकों द्वारा संपन्न किया 3 दिन वाला प्रयोग अत्यधिक ही घृणआत्मक है । केवल महानतम अघोरी ही इसे कर सकते हैं । इसमें सर्वथा नग्न रहते हुए ही अपने ही मल का भोजन के रूप में ग्रहण करना और अपने ही वीर्य को पीना होता है । लेकिन इस बारे में अत्यधिक घृणआत्मक होने से व्यक्ति बहुत ही ज्यादा दूषित हो जाता है । इन कार्य को करने से लेकिन 3 दिनो में ही इसकी सिद्धि हो जाती है । लेकिन इसका वर्णन में इस समय नहीं कर रहा हूं । क्योंकि जो यह है काफी घृणात्मक है जो मित्र नाथ ने 21 दिन वाली साधना की इसके बारे में ही बात कर रहा हूं । कथा के रूप में अब धीरे-धीरे साथ 7 या 8 दिन बीत गए एक दिन अचानक से रात्रि के समय रूपमती को अत्यधिक जोर से प्यास लगी । अपने मटके के पास वह रात को उठकर गई उसने देखा के पानी नहीं है पानी के लिए उसे पनघट पर जाकर के मटके को भरना होगा । वह पनघट पर मटका लेकर चल पड़ी । लेकिन उसकी प्यास अत्यधिक तेजी से बढ़ती जा रही थी । तब तक उसने एक बकरे को टहलते हुए देखा काले रंग का एक बकरा जो अभी जवान नहीं हुआ था ।

थोड़ा छोटा ही था उसको देख कर के अत्यधिक उत्तेजना इस के मन में पैदा हो गई । इसने तुरंत अपना मटका फोड़ दिया वहीं पर पटक दिया झट से लपकी उस बकरे की तरफ । और उस बकरे को झट से पकड़ ली उसे उठा कर के अपने घर की तरफ ले आई । सुबह जब मित्र नाथ उठे और अपने कमरे से बाहर निकले तो उन्होंने ऐसा दृश्य देखा कि वह हस्तप्रभ रह गए।  खून से सनी हुई उनकी पत्नी रूपमती नग्न अवस्था में बाल खुले हुए जमीन पर पड़ी हुई थी । और उसकी तरफ एक बकरा था । जिसका शरीर छत नीछत था । जैसे कि शेर ने उसका शिकार किया हो आधा शरीर खाया हुआ और आधा शरीर के घितडे हुए हो । बड़ी दुर्लभ स्थिति को देखते हुए मित्र नाथ दौड़ा-दौड़ा अपनी पत्नी के पास आया । और अपनी पत्नी को उठाया और उनकी पत्नी को भी होश नहीं था ।और उसको स्नान करवाया और जब वह कुछ ठीक हुई ।

और रूपमती ने सारा दृश्य बताया उसने कहा रात्रि को मुझे बहुत प्यास लगी हुई थी । पानी पीने की इच्छा हुई तो मटके के पास जाकर देखा मटके में पानी नहीं था । तो मैंने सोचा कि पनघट से भर लाऊं बस थोड़ी ही दूर जाने के बाद अचानक एक काला सा धुआं मेरे पास आया । और मेरे शरीर में प्रवेश कर गया मेरी प्यास एकदम से हजार गुना बढ़ गई । और सामने देखा एक छोटे से बकरे को और इसकी गर्दन को देख कर मुझे अत्यधिक ही लार मेरे चेहरे पर और मुंह पर आने लगी । पता नहीं ऐसा कैसे हुआ मैंने इस बकरे को मार करके मुझे अपनी प्यास बुझाने की इच्छा हुई । और मैं झट से इस पर लपकी इसे पकड़ा और अपने यहां ले आई । और इसके बाद मैंने अपने दांत को इसके गर्दन में गड़ा दिए और इसे अपने दांतो से नोच दी । और भल भल भल खून गिरने लगा और मैं इसे लगातार पीती चली गई । पूरी तरह से जब तक यह बकरा मर नहीं गया और इसके बाद मैंने पता नहीं कितने इसके चिथडे किए ।

हर अंग में जहां भी मुझे रक्त और मांस मिला मैंने वह चूस लिया । इसके शरीर से इतनी तेजी से मुझे रक्त की प्यास लगी । ऐसी बात सुनकर के मित्र नाथ मन ही मन उत्तेजित भी हुआ और खुश भी हुआ । क्योंकि मित्र नाथ को पता था कि पिशाचिनी सिद्धि उसकी पत्नी के शरीर में आने लग गई है । इस शक्ति के द्वारा अब वह धीरे-धीरे ऐसे दुर्लभ कार्य कर लेगा जो कोई भी ना कर पाए । यही सोचते हुए वह मन ही मन प्रसन्न हुआ उसे लगा कि घबराने की कोई आवश्यकता नहीं है । उसने बताया कि तुम्हारे शरीर में उस पिशाचिनी का प्रवेश हुआ था । और पिशाचिनी की प्यास केवल रक्त ही बुझाता है । इसलिए तुम इस बकरे को जंगल से पकड़ लाई । और इसका रक्तपान किया तुमने इसकी गर्दन पर जो दांत गड़ा करके और इसकी गर्दन तोड़ दी । और वहां से इसका रक्त पीने लगी जैसे सिंह जंगल में अपने शिकार के साथ करता है ।

इसलिए तुम बिल्कुल भी चिंता ना करो और इस प्रकार तुम इस साधना में मेरा सहयोग करती रहो । यह कारण कि ऐसा अनेकों बार ऐसा होगा ।लेकिन तुम घबराना मत मैं तुम्हें महा पिशाचिनी बना करके और वह सिद्धय्या तुमसे प्राप्त कर लूंगा । बाद में उसको साक्षात करके भी तुम्हारे शरीर से बाहर निकाल लूंगा । इस प्रकार से उस दिन की यह घटना घटित हुई । घटना इस प्रकार घटित होते हुए 11 दिन बीत गए । और 11 दिन अचानक से रूपवती उठी और जंगल की तरफ दौड़ती हुई भाग गई । यह रात के ही समय हुआ । लेकिन मित्र नाथ सोते हुए उन्हें कुछ पता नहीं लगा थोड़ी देर बाद वहां से एक कन्या 16 17 वर्षीया आई । और मित्रनाथ के बगल में सर्वथा नग्न होकर के बगल में लेट गई । और धीरे-धीरे करके उसके पेट के ऊपर अपने हाथ के उंगलियां फिराने लगी । और अपनी नाखूनों से उसके शरीर के साथ छेड़खानी करने लगी ।

यह कन्या को मित्र नाथ समझ नहीं पाए उन्होंने सोचा मेरी पत्नी ही मेरे बगल में लेटी हुई है । और शायद प्रणय क्रिया करने की कोशिश कर रही है । मित्र नाथ ने उसे अपने शरीर से दूर करते हुए कहा कि सुनो जब तक हमारी साधना चल रही है । ऐसा कोई भी कार्य हमें नहीं करना चाहिए । ताकि हमारी साधना ना भंग हो जाए ।इसलिए तुम ऐसा कुछ भी मत करिए । थोड़ी देर बाद चुप रहने के बाद एक बार फिर से उस कन्या ने मित्र नाथ का आलिंगन कर लिया । और गर्म गर्म सांसे उनके कान में फूटने लगी ऐसी अवस्था में एक बार फिर से काम उत्तेजित करने की कोशिश करने लगी । मित्र नाथ एक बार फिर से घबराने लगा । फिर से उसे अपने शरीर से दूर करते हुए कहा सुनो ऐसा ना करो तुम और मैं अभी साधना में है । तुम अपने आसन पर चली जाओ और वहां जाकर सो जाओ ।अंधेरा होने की वजह से मित्र नाथ इसे समझ नहीं पा रहा था ।

यह स्त्री या लड़की कोई और है । और जो की इस तरह की हरकत कर रही है।  इस बात को समझाने की वजह से बार-बार उससे आग्रह कर रहा था । हे देवी रूपमती तुम समझा करो । ताकि यह साधना किसी भी प्रकार से भंग ना हो । थोड़ी देर बाद एक बार फिर से वही हरकत करने की शुरू की इस बार उसके बाएं कंधे के नीचे उस कन्या ने दांत गड़ा दिए । दांत गड़ाने की वजह से मित्र नाथ के कंधे से खून निकलने लगा । दर्द से करहाते हुए मित्र नाथ ने उसे धक्का दे दिया । मित्र नाथ ने कहा क्या बदतमीजी कर रही हो क्या हो गया है तुम्हें । और उठकर तुरंत दीपक जला दिया दीपक जलाते ही उसने सामने दृश्य देखा । कि एक 16 से 17 वर्ष की कन्या पूर्णता नग्न अवस्था में उसके सामने खड़ी है । और उसे देख रही है और उसके मुंह में पूरी तरह से खून लगा हुआ है । और उसके बाल पूरी तरह बिखरे हुए हैं । और मित्र नाथ को देख कर हंस रही है । अब आगे क्या हुआ इसके चौथे भाग में जानेंगे । आपका दिन मगलमय हो धन्यवाद् ।

कर्ण पिशाचिनी की उत्पत्ति और कहानी भाग 4

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