Site icon Dharam Rahasya

कर्ण पिशाचिनी की उत्पत्ति और कहानी भाग 4

कर्ण पिशाचिनी की उत्पत्ति कहानी भाग 4

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल में आपका एक बार फिर से स्वागत है । जैसा की कहानी में आपने पिछली बार जाना था कि मित्र नाथ के सामने एक ऐसी कन्या थी । जो नग्न अवस्था में उसके सामने खड़ी हुई थी । उसके दांतो में मित्र नाथ का रक्त लगा हुआ था । मित्र नाथ को काट करके उसका रक्त चूसने की चेष्टा की थी । ऐसी अवस्था में उसे देख कर के मित्र नाथ ने उससे पूछा कौन हो तुम और कहां से आई हो और मेरी पत्नी रूपमती कहां है । और वह खिलखिला कर हंसने लगी । और उसने कहा क्या करूं अपनी सहेली से मिलने आई थी मैं । और उसने कहा जाओ कर लो कोशिश मित्र नाथ ने कहा क्या कह रही हो ।मुझे कुछ समझ में नहीं आया सबसे पहले तुम मुझे यह बताओ कि मेरी पत्नी कहां है । उसने इशारा करते हुए बाहर की तरफ कहा चलो मेरे साथ जंगल में । अब मित्र नाथ उस कन्या के साथ जंगल की तरफ चल पड़ा । जंगल में उसने देखा की एक काले हिरण का किसी ने शिकार किया हुआ था । उन्हें समझते देर न लगी निश्चित रूप से इस काले हिरण का शिकार उसकी पत्नी ने ही किया है ।अर्थात उसके पत्नी के अंदर पिशाचिनी का प्रवेश हो चुका है ।

और वह कहीं उसी अवस्था में दिखाई पड़ेगी । कुछ दूर और जाने के बाद मित्र नाथ ने उस कन्या से पूछा बताओ । आखिर कहां है मेरी पत्नी । उस कन्या ने कहा थोड़ा सब्र करो और दूर चलो सामने झरना आएगा थोड़ी दूर जाने के बाद एक झरना आया । झरने के नीचे बैठी सुखासन में नग्न रूपमती नहा रही थी । वह ऐसे बैठी हुई थी एक तपस्वी एकांत अवस्था में योग करता है । अपने पति को आते देख खिलखिला कर हंसी और कहने लगी क्या करूं स्वामी मैंने तो इसे मना किया था । अभी मत जाओ अभी मेरी साधना पूर्ण नहीं हुई है किंतु यह नहीं मानी फिर मित्र नाथ समझ गया । कर्ण पिशाचिनी मेरी पत्नी के शरीर पर हावी है । और इस वजह से उसने पूछा बताओ क्या हुआ था सारी बातें मुझे बताओ । कर्ण पिशाचिनी रूपमती के माध्यम से उसके शरीर में से बोलती है कि मुझे प्यास रात में अत्यधिक लगी । मैंने सोचा किसी का रक्त पान करूं चलिए जंगल में । तभी मैंने यहां एक काला हिरण देखा । तुम तो जानते ही हो मुझे काला हिरण अत्यधिक ही प्रिय है । काले हिरण का रक्त मुझे सबसे अधिक प्रिय है इसलिए काले हिरण का रक्त मुझे जो देता है । उस पर मैं अत्यधिक प्रसन्न हो जाती हूं  ।

मुझे एक काला हिरण दिखाई दिया था और मैं उसको ही शिकार बना लिया । और उसकी गर्दन तोड़ कर उसका रक्तपान किया । रक्तपान करने के बाद मेरे अंदर अत्यधिक ही काम ऊर्जा पैदा होने लगी । और सोचा अगर मैंने तुम्हारे साथ प्रणय किया तो मेरी साधना भंग हो जाएगी । फिर भला तुम मुझे सिद्ध कैसे कर पाओगे । यह तो मैं तुम्हें स्पष्ट बता दूं की । बहन या मां के रूप में तुम मुझे प्राप्त करना नहीं चाहते हो । क्योंकि अगर ऐसा तुम चाहते मुझे अपनी पत्नी के रूप में भैरवी चक्र में ना बैढाते । मैं यह सब जानती हूं इसलिए मैं अपनी कामवासना पर नियंत्रण रखते हुए आकर इस झरने के नीचे बैठ गई । ताकि मेरी काम इच्छा दबी रहे और अपने शरीर को मैंने इसी तरह शांत किया । लेकिन क्या करूं जब से तुमने मेरा आवाहन किया है । तब से प्रेत पिशाच मेरी योनि की । मेरी शक्ति और सिद्धियां मेरे नजदीक आ चुकी है । उनमें से यह एक काम पिशाचिनी मेरे सामने आई । और मुझ से प्रार्थना करने लगी कि क्या मैं एक प्रयास करूं । मैंने कहा हां ठीक है कर सकती हो तो कर लो । लेकिन ध्यान रखना कि ऐसा ना हो जाए कि उसकी साधना ना भंग हो जाए ।

क्योंकि मैं भी चाहती हूं कि वह मुझे सिद्ध करें उसने कहा ठीक है । मैं जाकर के बस थोड़ा बहुत खेलूंगी और अत्यधिक प्रयास नहीं करूंगी । मैं जानती हूं कि हम सभी पिशाचिनीया लिंग को अधिक पसंद करती हैं । लिंग का चुंबन करना हमें अत्यधिक पसंद है । और मैं भी यही करने का प्रयास करूंगी और तुम मुझे सिद्ध कर लोगे । अर्थात बाद में तांत्रिकों ने भी इसी आधार पर लिंग प्राचुंभित नाम । जो मंत्र है वह इसी आधार पर बना काम पिशाचिनी या भोग पिशाचिनी का मंत्र इसी आधार पर अघोरी मंत्र आता है ।बनाया गया बाद में । क्योंकि यह अत्यधिक सभी पिशाचिनी और को पसंद होता है । और सभी पिशाचिनीया साधक का लिंग का जाकर के चुंबन करती है सिद्ध हो जाती है । तो खैर वह तो अलग बात थी यहां पर कर्ण पिशाचिनी कहती है के ठीक है । मैंने इतना ही कहा था इसने जा करके तुम्हारे शरीर पर अंगों से सिर्फ हलचल दी तुम्हें आनंद की प्राप्ति हो । इसका उद्देश्य तुमसे भोग करना नहीं था । तुम इस पर नाराज ना हो और यह जो यह कन्या है गांव की एक कन्या है । वहां से उसके शरीर पर यह हावी हो गई और उस शरीर के माध्यम से यह तुमसे खेलना चाहती थी ।

तो यही इस समय में संपन्न हुआ । अब सुबह हो चुकी है तुम्हारी पत्नी का शरीर छोड़कर मैं जाती हूं । और आगे तुम साधना करते रहो । इस तरह दोनों ही पिशाचिनी और फिर वहां से गायब हो गई । और रूपमती को होश आ गया । जो पति अपने आप को निर्वस्त्र और झरने के नीचे पाकर आश्चर्य में पड़ गई । मित्र नाथ अपनी चादर उस पर उढा करके फिर उसे अपने घर ले आया । मित्र नाथ समझ चुके थे कि स्थिति भयानक भी हो सकती थी । साधना के दिनों में उन्होंने कुछ सावधानियां बरतनी शुरू कर दी । इस प्रकार करते करते 21 वा दिन आ गया जिस दिन उन्हें पूर्ण सिद्धि होनी थी । सबसे पहले गोपनीय तरीके से मित्र नाथ हनुमान मंदिर गए । वहां से एक मटका ले आए और भैरवी चक्र पर अपनी पत्नी को बैठा कर के फिर उसे नग्न करके उसके ऊपर ठीक थोड़ी सी ऊपर मटके को पेड़ के नीचे बांध दिया । और उस मटके की एक डोर और उसको तोड़ने का एक प्रबंध अपने हाथ में ले कर के उसके सामने एक सुरक्षा घेरा बना लिया । और बैठ गया । और अपने लिए हनुमान जी के मंत्र का एक सुरक्षा घेरा बनाया । और अपनी पत्नी के लिए भी हनुमान जी का सुरक्षा घेरा बनाया ।

और दो घेरे बनाने के बाद उन्होंने एक तीसरा घेरा बनाया । उसमें एक बड़ा सा कटोरा काले हिरण का रक्त से भरा हुआ उसमें उसको रख दिया । और अब धीरे-धीरे मंत्र जाप शुरू हुआ और रात्रि के 12 या 01 बजे कर्ण पिशाचिनी पूर्ण रूप से वहां उनकी पत्नी के शरीर में आ गई । पत्नी के शरीर में आ जाने के बाद में इस पिशाचिनी ने अपना भोग मांगा । मित्र नाथ ने कहा देखो प्याले में तुम्हारे लिए मैंने भोग रखा है । पहले उसे पी लो लेकिन पहले मुझे तीन बच्चन दो । और तीनों वचन देने के बाद फिर उसने रक्त पीने की तैयारी करी । वह जाकर के उस घेरे में बैठ गई और रक्त पीने लगी । इसी बीच मंत्र का आवाहन करने के बाद मित्र नाथ ने बड़ी ही जोर से कुल्हाड़ी फेकी और मटके को गिरा दिया । मटका बीच से टूट गया मटके से बहुत बड़ी मात्रा में लाल रंग का सिंदूर उसकी पत्नी के शरीर के ऊपर गिर गया । पूरी तरह से वह लाल सिंदूर से सन गई इधर इसने अपने सुरक्षा घेरे में चारों तरफ से इसे एक चक्र बना लिया । जब तक कर्ण पिशाचिनी रक्त तो पी रही थी । और चारों तरफ घेरा बनाने के बाद उसने कहा । हे देवी तुम मुझसे पूरी तरह सिद्ध हो चुकी हो ।

कर्ण पिशाचिनी ने वापस रूपमती के शरीर में जाने का प्रयास किया । लेकिन उसे बहुत तेज झटका लगा वह समझ गई थी कि रूपमती के शरीर में जाना अब संभव नहीं है । उसके शरीर पर जो लाल रंग का सिंदूर गिराया हुआ है वह हनुमान के मंदिर से लाया गया है । वह अभिमंत्रित है मैं कभी इसके शरीर में अब प्रवेश नहीं कर पाऊंगी । अब केवल मैं इसे साक्षात रूप में ही दिखाई दूंगी । उसके चतुराई पर हंसते हुए कर्ण पिशाचिनी ने कहा ओ तो तुमने बड़ी समझदारी से अपनी पत्नी से मुझे अलग कर दिया । और सिद्ध भी कर लिया । इतनी सहजता से तुम मुझे सीधे ही बुलाते तो मैं इतनी आसानी से सिद्ध नहीं हो पाती । तुमने भैरवी चक्र का प्रयोग करके अपनी पत्नी के माध्यम से मुझे बहुत ही आसानी से सिद्ध कर लिया । और अपने पत्नी का शरीर से भी मुझे अलग भी कर लिया । अब मैं तुम्हारी पत्नी के शरीर में कभी भी प्रवेश नहीं कर पाऊंगी ।बहुत ही चतुर हो तुम । ठीक है मैं तुमसे सिद्ध होती हूं और तुम्हारे तीनों वचनों का पालन भी करूंगी । बताओ सबसे पहला कार्य मेरे लिए क्या है । क्योंकि मैं वर्तमान और भूतकाल दोनों ही बातें तुम्हें बता सकती हूं ।

अब तुम ऐसा करना कल से भविष्यवक्ता बनकर नगर में विराजे और सभी लोगों के प्रश्नों के जवाब दो । कोई भी किसी भी तरह का प्रश्न तुमसे पूछे । मैं उसका जवाब तुम्हारे कानों में बताती रहूंगी । इस प्रकार से अगले दिन नगर में मित्र नाथ नगर में विराजने लगे । उन्होंने घोषणा कर दी । किसी की कोई भी समस्या हो उसका मैं हल दूंगा । लोग आते उनसे प्रश्न पूछते और चढ़ावे के रूप में सोना या चांदी उन्हें दे जाते  । धीरे-धीरे करके नगर का सबसे धनवान व्यक्ति मित्र नाथ बन गया । मित्र नाथ में अब धीरे-धीरे घमंड आने लगा । और ऐसी भावनाएं उसके अंदर पैदा होने लगी पिशाचिनी ने एक शब्द कहा था मुझे प्रतिदिन भोग देना और मित्र नाथ रोज ही एक मुर्गा उसे चढ़ा दिया करता था । और वह उसका रक्त पी लेती थी लेकिन रक्त की प्यास कर्ण पिशाचिनी की बढ़ती जा रही थी । कर्ण पिशाचिनी के साथ-साथ उसकी सेना भी तैयार थी । क्योंकि वह एक चावर की अधिकारनी बन चुकी थी । चावर एक क्षेत्र होता है कम से कम 10 एकड़ या 20 एकड़ क्षेत्र उस एकड़ के क्षेत्र में आने वाले जितने भी भूत प्रेत पिशाच होते हैं । वह सभी उसके अधीन होते हैं । तो चावर धारणी पिशाचिनी का स्वरूप धारण कर चुकी थी । और उसकी प्यास अधिक बढ़ती जा रही थी । इधर और पिशाचिनीया उससे रक्त मांगने लगी थी । इसलिए उसकी प्यास और बढ़ती जा रही थी । भोग वह कर नहीं पा रही थी । इस बात से बहुत क्रोधित थी । तो उसने उससे एक दिन कहा अगर तुमने मेरी भोग की कामना को पूरा नहीं किया तो मैं तुम्हें छोड़ कर चली जाऊंगी।  विकट स्थिति को देखते हुए तब मित्र नाथ ने क्या किया । उसकी भोग की कामना को कैसे पूरा किया । यह हम जानेंगे अगले पांच भाग में। धन्यवाद आपका दिन मंगलमय हो ।

कर्ण पिशाचिनी की उत्पत्ति और कहानी भाग 5

Exit mobile version