Site icon Dharam Rahasya

कर्ण पिशाचिनी की उत्पत्ति और कहानी भाग 5

कर्ण पिशाचिनी की उत्पत्ति और कहानी भाग 5
धर्म रहस्य में आपका एक बार फिर से स्वागत है । कर्ण पिशाचिनी की उत्पत्ति संबंधी जो कहानी चल रही है आज हम
उसके अगले भाग के बारे में जानेंगे । जैसा की अभी तक आपने पढ़ा कर्ण पिशाचिनी अपने भोग ना पाने से असंतुष्ट
थी । और उसने एक प्रस्ताव मित्र नाथ से रखा की अब तुम किसी भी प्रकार से मुझे संतुष्ट करो और मेरी भोग की
कामना को भी पूरा करो । शाम के वक्त पिशाचिनी अपनी अत्यंत प्रिय सहेली के साथ में अर्थात पिशाचिनीयों की
सेना के साथ में आ गई । और उसने कहा कोई मार्ग बताओ । अन्यथा आज तुम्हें नाश कर दूंगी । और अपनी सिद्धि
भी तुम खो बैठोगे । अब कोई चारा ना देख कर के मित्र नाथ ने सोचा क्यों ना ऐसा किया जाए कि । इन्हें कोई ऐसे कार्य
में लगा दिया जाए जिससे यह संतुष्ट हो जाए ।

नगर के बाहर नगर वधू और उनका कोठा नगरवधू उनको कहा जाता
था जो नगर की वेश्याएं होती थी । और यह नगर के बाहर ही रहा करती थी । वहां पर वैश्यालय होते थे इसने समस्त
पिसाचनियो को कहा जाओ और तुम नगरवधू की शरीर में प्रवेश करो । अर्थात मुख्य जो वैश्या है उसके शरीर में सारी
पीसाचनियो को वही भेज दो ताकि वह सभी संतुष्ट हो सके । ऐसा कहने पर अब पिशाचिनी और कर्ण पिशाचिनी की
सभी सेना वहां चली गई । और एक-एक करके सभी वेश्याओं के शरीर में प्रवेश कर गई । इस प्रकार उस रात वह सभी
संतुष्ट हो गई । इस संतुष्टि से खुश होकर के अगली रात्रि पर कर्ण पिशाचिनी प्रकट हुई । और उसने कहा क्यों छोटे-
मोटे प्रयोगों से तुम संतुष्ट हो रहे हो । मेरी शक्तियां बढ़ाओ मुझे और रक्त पिलाओ और भोग कराओ ।और मैं तुम्हें
वह सब कुछ दूंगी । जिसकी तुम कल्पना भी नहीं कर सकते हो । फिर अब ऐसा समय आ चुका था कि आप वह करता
भी तो क्या करता है । यह सोच कर के उसने सोचा कि चलिए इसकी बात मान ही ली जाए ।

उसे देखा भी तो जाए की
यह पिशाचिनी आखिर क्या कर सकती है । और इसकी कितनी सामर्थ्य हो सकती है ।इसलिए कर्ण पिशाचिनी से
कहा आखिर तुम चाहती क्या हो मुझे स्पष्ट बताओ । तो मित्र नाथ के इस प्रकार कहने पर कर्ण पिशाचिनी ने कहा
मुझे तुम किसी भी प्रकार से 108 मनुष्य की बलि दे दो । मैं तुम्हें यह राज्य ही प्रदान कर दूंगी इस पूरे राज्य का राजा
ही बना डालूंगी । और तुम एक साधारण व्यक्ति से इस नगर के राजा बन जाओगे । मन में मित्र नाथ के भी लालच आ
गया । मित्र नाथ ने कहा ठीक है अगर ऐसा संभव है बताओ । मुझे क्या करना होगा कर्ण पिशाचिनी ने उसके कान में
कहा मैं तुम्हें गोपनीय बात बताती हूं इस राज्य के राजा की कन्या है अत्यंत ही सुंदर है । अगर तुम मेरा आवाहन उस
कन्या के शरीर पर करो तो निश्चित रूप से मैं उसके शरीर में आकर फिर तुम्हारे पास आकर संबंध बनाऊंगी । और
तुम्हारे प्रेम में वशीभूत कर दूंगी । उसके बाद हमेशा के लिए वह तुम्हें अपना पति स्वीकार कर लेगी । तुम्हारी पत्नी
बनने की वजह से राजा को अंतोगत्वाव तुमसे विवाह करना ही होगा ।

क्योंकि राजा की एक ही संतान है यह
राजकुमारी है । इसलिए तुम राजा घोषित हो जाओगे । उसके प्रस्ताव मन में आकर के मित्र नाथ ने सोचा कि हां यह
होना संभव तो है । इसलिए अब वह राजा से मिलने गया । राजा के कई सारे गोपनीय प्रश्नों के जवाब देने की वजह से
राजा उससे बहुत संतुष्ट हुआ ।और अपना अतिथि ग्रहण कराने के लिए महल में रख लिया । मित्र नाथ तो यही
चाहता था । और मित्र नाथ ने राजा के महल में घूमने की आज्ञा मांगी । ताकि वह पूरे राज्य महल को देख सकें । तो
उसके मन में एक ही बात थी कि मैं राजकुमारी को देख सकूं । और फिर उस राजकुमारी को अपने वश में कर सकूं ।
मित्र नाथ उस राज्य महल में घूमने निकल पड़ा घूमते घूमते आगे बढ़ते हुए राजकुमारी के कक्ष की ओर बढ़ गया ।
राजकुमारी अपनी सहेलियों के साथ में कुछ कार्य कर रही थी । राजकुमारी को देखकर मित्र नाथ को अत्यधिक

आश्चर्य हुआ अत्यंत ही सुंदर एक कन्या जो सचमुच में ही राजकुमारी होने की है। क्योंकि उसकी सुंदरता कोई क्षमता
नहीं है उसे देख कर के राजकुमारी को अपने पास बुलाया । और उसके कुछ प्रश्नों के जवाब देने लगा । राजकुमारी
आश्चर्यचकित रह गई कि कोई उसके प्रश्नों के इतनी आसानी से जवाब दे सकता है । अब मित्र नाथ की बातों से
संतुष्ट होने लगी संतुष्टि बढ़ने के साथ ही जब मित्र नाथ ने सोचा अब यह मेरे वश में आ सकती है । तो उन्होंने बड़ी
सहजता से कहा मेरे लिए जल मंगाइए पीने के लिए । जल मेरे लिए लाया जाए और राजाओं के मंत्रियों ने तुरंत
दौड़कर उनके लिए पानी ला दिया । तब तक मित्र नाथ ने कहा राजकुमारी जी मैं आपको एक चमत्कार दिखाना
चाहता हूं । यह पानी जो आप देख रही है मैं इस पानी को शरबत में बदल दूंगा ।

और यह अत्यंत ही मीठा द्रव्य होगा
आपने कहीं पिया भी नहीं होगा । ऐसा कहने पर राजकुमारी को अत्यंत ही आश्चर्य हुआ । और वह हंसते हुए बोली
क्यों नहीं मित्र नाथ जी । आप तो बड़े जादूगर हो आपने मेरे को आपने मेरे गोपनीय प्रश्नों के जवाब दे दिया है । तो
क्यों नहीं आपके लिए ऐसे चमत्कार दिखाना संभव हो इसलिए ठीक है । आप ऐसा चमत्कार दिखाइए कि ऐसा द्रव्य
बनाइए । उसमें बहुत ही अधिक सुगंध आ रही हो और साथ ही साथ पीने में वह अत्यंत ही मधुर हो । अब ऐसी
अवस्था को देखते हुए । मित्र नाथ ने वहां पर एक सोने के गिलास में उस जल को परोसा उसके बाद कर्ण पिशाचिनी
का मंत्र आवाहन करके उसके मंत्र को बोलकर उस जल में फूंका उस पात्र में फूटने पर कर्ण पिशाचिनी की शक्तियां उस
जल में प्रवेश कर गई । इस कारण से वह जल अत्यंत ही मधुरम बहुत ही मीठा और अत्यंत ही सुगंधित जल बन गया
। थोड़ा सा उसे पीकर उसने कहा यह तो शरबती योग्य हो गया है ।

राजकुमारी के मन में भी कुतूहल वर्ष यह जल
कितना मीठा और मधुर इसे बना दिया गया है । क्या आप इसे मुझे नहीं पिला सकते हैं ऐसा कह कर के मित्र नाथ को
अपनी बात से राजकुमारी ने आकर्षित किया । मित्र नाथ तो यही चाहता था किसी भी प्रकार से यह वशीकरण वाला
जल मैं राजकुमारी को पिला सकूं । उसने एक बार फिर से वैसे ही जल बनाया और पिशाचिनी के मंत्र का आवाहन
किया । और पिशाचिनी से कहा कि जल के माध्यम से आप इसके शरीर में प्रवेश कर जाइए हुआ भी वही । अपने मंत्र
को पढ़ते हुए उसने 7 बार उस जल को राजकुमारी को पीने के लिए दिया । राजकुमारी ने जल पिया और वह अत्यंत ही
खुश हो गई । और वह कहने लगी इतना सुगंधित द्रव्य मैंने आज तक नहीं पिया इसका स्वाद अत्यंत ही मधुर है और
बहुत ही अच्छा है । मैं अपने पिता से भी कहूंगी आप उनके लिए भी ऐसा ही जल बनाए और वह इसे पीकर के अत्यंत
ही खुश होंगे । इस प्रकार से वह अत्यंत ही संतुष्ट होंगे । कर्ण पिशाचिनी राजकुमारी के शरीर में प्रवेश कर चुकी थी ।
रात्रि में जब वह अपने कमरे में सोया हुआ था तब मित्र नाथ ने पिशाचिनी मंत्र का आवाहन किया ।

उसे मालूम था
पिशाचिनी अब राजकुमारी के शरीर में स्थित है । और राजकुमारी को होश नहीं रहा और राजकुमारी उसी अवस्था में
वहां से भागती हुई सभी सैनिकों को चकमा देती हुई राज महल के उस कमरे में आ गई । जहां मित्र नाथ सोया हुआ था
। और मित्र नाथ के बगल में आकर सो गई लगातार उसके मुंह पर चुंबन लेने लगी । इससे मित्र नाथ जाग गए मित्र
नाथ समझ गए मेरा किया हुआ प्रयोग सफल हो चुका है । मित्र नाथ उसके चुंबन को रोकते हुए उससे कहने लगे सुनो
मैं तुम्हें प्रेम करता हूं । और तुम से विवाह करना चाहता हूं इसके लिए तुम्हें अपने पिता को मनाना होगा । कुछ भी
करके तुम अपने पिता को मना लो । और जिससे हमारा विवाह हो सके । उसकी बात को सुनकर के वह अत्यंत ही खुश
हो गई । और कहने लगी मैं कुछ भी करके आपको प्राप्त करना चाहती हूं । आपके सिवा मुझे कोई अन्य पुरुष पसंद
नहीं है । आपके शरीर से आती सुगंध मैं उससे काम विवरण हो चुकी हूं मैं । आपसे संबंध बनाना चाहती हूं आपसे एक

पुत्र उत्पन्न करवाना चाहती हूं । मुझ में इतनी बेचैनी बढ़ गई है कि मैं अब कहूं तो क्या कहूं । आपके कहे अनुसार मैं
आपसे विवाह करने के लिए तुरंत ही तैयार हूं । कल सुबह मैं अपने पिता से इस संबंध में पूरी बात करूंगी । और उन्हें
इस बात के लिए तैयार करूंगी ।स्थिति की गंभीरता को देखते हुए मित्र नाथ ने फिर कर्ण पिशाचिनी मंत्र पढ़ा । और
उसके अंदर से काम शक्ति को हटा दिया । ताकि ऐसा ना हो कहीं कोई गुप्त चर या सैनिक इस अवस्था में हमें देख ले
। और बनी बनाई बात बिगड़ जाए । अगले दिन राजकुमारी राजा के पास गई । और उन्हें सारी बात बताई मैं मित्र
नाथ से प्रेम करने लगी हूं । और मैं उससे शादी करना चाहती हूं । लेकिन राज्य में मंत्री सुमित ने इस बात का विरोध
किया । पता नहीं कहा से आया तांत्रिक मुझे कुछ ठीक नहीं लगता है ।

इसलिए आप इसकी जांच पड़ताल कीजिए ।
और तभी ऐसा कार्य करिए । अन्यथा इस कार्य को आप ना ही करिए । क्योंकि मुझे इस तांत्रिक पर शक हो रहा है ।
सुमित की बात सुनकर राजा ने कहा मैं दोनों ही बातों पर विचार करूंगा । और वह राज्य के पुरोहित के पास चले गए ।
राज्य के पुरोहित ने कहा अगर यह सच में तांत्रिक है तो इसके पास सेना भेज दीजिए । अगर यह सेना को पराजित
कर देगा । तो ही यह वास्तविक तांत्रिक होगा । अन्यथा इसकी शक्तियां केवल मजाक है । और लोगों को मूर्ख बनाने
के लिए है राजकुमारी को बरगला के आपका राज्य हड़प्पना चाहता होगा । इसलिए जाइए और इसके पास सैनिक
भेजिए जहां यह रहता है । और इसको पराजित कर डालो अगर यह मारा जाए तो यह भी सही है क्योंकि ऐसे व्यक्ति
का होना से ना होना ही अच्छा है । जो आते ही राजकुमारी को अपने प्रेम मैं फसा ले । उसकी बात को मान करके राजा
ने अपने सैनिकों को आदेश दिया । और आदेश दिया जाओ और इसे पकड़ कर ले आओ । अगर वह कोई प्रयोग ना कर
पाए । तो उसे वही ही मार डालना । अब इसके बाद क्या हुआ जानेंगे हम अगले भाग में । धन्यवाद

कर्ण पिशाचिनी की उत्पत्ति और कहानी भाग 6

Exit mobile version