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कर्ण पिशाचिनी की उत्पत्ति और कहानी भाग 6

कर्ण पिशाचिनी की उत्पत्ति कहानी भाग 6

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य में आपका फिर से स्वागत है । जैसा कि कर्ण पिशाचिनी की कहानी चल ही रही है । और  आज आगे का पाठ मैं आपको बता रहा हूं कि क्या आगे हुआ चलिए शुरू करते हैं । जब यह बात हो गई थी कि सेनापति को तांत्रिक के ऊपर हमला करना है यानी कि मित्र नाथ के ऊपर अब आक्रमण होने वाला था । तो जैसे ही शाम हुई कर्ण पिशाचिनी प्रकट हो गई और मित्र नाथ से कहने लगी कि । आज रात तुम पर आक्रमण होगा तुम्हें जान से मारने की कोशिश की जाएगी । और यही मैं चाहती थी । ऐसा कोई स्वर्ण अवसर आए । और राजा बनने का मौका तुम्हें प्राप्त हो सके । मित्र नाथ ने पूछा हे देवी । वह मुझे मारने क्यों आ रहे हैं इसका क्या कारण है । तो फिर कर्ण पिशाचिनी ने बताया तुम्हारा प्रेम संबंध राजकुमारी के हो जाने से राजा और राजा के मंत्रियों ने आदेश दिया है कि तुम्हें मार दिया जाए । अगर तुम उन्हें तंत्र शक्ति से पराजित कर पाए तो निश्चित रूप से तुम्हारा विवाह राजकुमारी से हो जाएगा अन्यथा आज तुम मारे जाओगे । मित्र नाथ घबराकर कर्ण पिशाचिनी से कहा हे देवी मुझे कोई मार्ग बताओ ऐसा कोई कार्य करो जिसकी वजह से मैं युद्ध में विजय हो जाऊं । कर्ण पिशाचिनी एक खतरनाक मुस्कान देते हुए बोली सुनो । मैं जो कहती हूं वैसा ही करो और तुम ना सिर्फ इस युद्ध से विजय हो जाओगे ।

बल्कि तुम यहां के राजा भी बनोगे लेकिन मैं जैसा बोलती हूं वैसा वैसा करो ।मित्र नाथ ने पूछा हां देवी बताइए । ऐसा मुझे क्या करना होगा उसने कहा जंगल के बीच में जाओ । जहां पर बहुत सारे वृक्ष लगे हुए हैं वहां पर एक मैदान खाली पड़ा हुआ है उधर एक कोना होगा उधर एक बड़ा सा पत्थर होगा । और उस पर बैठ जाना और अपना जितना भी सोना है वह सब सोना अपने साथ लेकर चलो । उससे कई सारे श्रमिकों को तैयार कर लो मैं जैसा कहती हूं वैसा ही करना । एक त्रिकोना गड्ढा बनाओ जो 50 50 मीटर की दूरी के बराबर अर्थात तुम्हें बहुत ही विशालकाय त्रिकोणना गड्ढा बनाना है । उस त्रिकोण पर मैं तुम्हारी मदद करूंगी । रात्रि होने पर 12: 00 बजे के करीब तुम पर हमला होगा । उस वक्त मैं तुम्हें वह बना कर दे दूंगी । जो तुम अपने साथ श्रमिक लेकर जाओगे उन श्रमिकों के अंदर में भूत प्रेत पिशाचनीयों को बैठा दूंगी । जिससे वे इस कार्य को अति तेजी से संपन्न कर देंगे । मित्र नाथ ने कहा ठीक है देवी । जैसा जैसा आप कहते जाइए वैसा वैसा मैं करता जाऊंगा । फिर शाम को 6 या 7 बजे ही तुरंत अपना धन लेकर के और श्रमिकों को लेकर के वह उस जंगल में चला गया । और जंगल में जा करके उस पत्थर पर बैठकर के पिशाचिनी के मंत्र का जाप करने लगा । यहां कर्ण पिशाचिनी ने श्रमिकों की संख्या 400 500 थी उनके शरीरों में भूत प्रेत पिशाच बैठा दिए ।

और श्रमिक 1000 भाले लेकर आ गए । 1000 भालों को सीधा करके अर्थात भालो का नुकीला हिस्सा ऊपर करके उसे गड्ढों में गाड़ दिया गया । वह 1000 भाले कुंड में गाड़ दिए गए । इस प्रकार से पूरी की पूरी एक विचित्र स्थिति पैदा कर दी गई । कर्ण पिशाचिनी ने कहा सुनो बहेलिया से जाल मंगा लो । और वह जाल इस पूरे के पूरे गड्ढों पर डाल दो । और इसको चारों तरफ से कीलो से ठोक करके एक जाल सा बना लो  । इस तरह जाल बना देने के बाद उसने कहा । जंगल में जितने भी पत्ते हैं सारे सूखे पत्ते इस जाल पर बिछा दो मित्र नाथ ने कर्ण पिशाचिनी के मंत्र का प्रयोग किया और सभी भूत प्रेत पिशाचओ ने हवा के द्वारा सारे पत्ते जितने भी जमीन पर गिरे हुए थे । वह सारे उस जाल के ऊपर डाल दिए । अब ऐसी स्थिति पैदा हो गई अब केवल आपको पत्ते ही दिखाई देंगे नीचे एक बड़ा सा जाल था । उस जाल के नीचे सीधे खड़े भाले थे । और वहां इन सब के नीचे लकड़ीया बिछी हुई थी ।

ऐसी स्थिति पैदा होते देख मित्र नाथ को कुछ समझ में नहीं आया । यह क्या हो रहा है और अब कर्ण पिशाचिनी ने कहा तुम इस के एक कोने पर बैठ जाओ । और दूसरे कोने से तुम्हारी तरफ आने का कोई मार्ग ना हो केवल तीन तरफ से ही आने का मार्ग हो । और मित्र नाथ को फिर से एक कोने में बैठा दिया गया  । रात्रि होते ही राजा ने कहा जाओ इस रात्रि में उस पर हमला कर दो और सैनिकों को पता लगा कि । तांत्रिक अपने घर पर नहीं है मित्र नाथ के बारे में खबर लगी कि वह जंगल में चला गया है । सेना जंगल की ओर चल पड़ी सामने थोड़ी देर बाद उन्हें मित्र नाथ दिख गया । और सब ने बड़ी तेजी से उस पर हमला किया । इधर पिशाचिनी का मंत्र मित्र नाथ ने सैनिकों के ऊपर कर दिया जैसे ही मित्र नाथ ने सैनिकों के ऊपर मंत्र का प्रयोग किया । धूल भरी एक बहुत तेज आंधी चली और कुछ भी दिखना बंद हो गया । सेना तेजी से दौड़ते हुए आगे बढ़ती चली गई और वही बड़े से जाल में फस गई । सेना और मित्र नाथ की तरफ उनको कुछ दिखाई ही नहीं दे रहा था । वह यह नहीं देख पाए के सामने एक बड़ा सा कुंड है ।

धीरे-धीरे करते सैनिक उसमें गिरते चले गए जो सैनिक उस में गिरता वह भालों से छिद जाता ऐसा होते होते 108 सैनिक मारे गए । तभी कर्ण पिशाचिनी उस बवंडर को रोक दिया बवंडर के रुकते ही ।सैनिक चकित रह गए । सारे के सारे 108 सैनिक मारे गए हैं उस कुंड में गिर गए हैं । इधर सैनिकों की ऐसी पराजय देखकर सैनिक वापस भागने लगे लेकिन कर्ण पिशाचिनी का कार्य संपन्न हो चुका था । कर्ण पिशाचिनी ने मित्र नाथ से कहा सुनो अब तुम्हारे हवन का समय हो चुका है संकल्प लो कि तुम 108 सैनिकों की बलि मुझे अर्पण करते हो । मेरी अपने सामने एक मूर्ति बनाओ और मूर्ति का पूजन करो । पूजन किया गया और तंत्र प्रयोग के द्वारा वहां पर एक तिकोना कुंड था । कर्ण पिशाचिनी ने कहा तुम्हें 108 आहुतियां मुझे अर्पण करनी है । 108 सैनिकों की लाशें नीचे लकड़ियो पर  पड़ी हुई है । तुम्हें एक जलता हुआ कपूर मात्र डालना है और आहुतियां देते रहना है । और लगातार आहुतियां देते रहना मित्र नाथ ने ऐसे ही किया ।उसने जलता हुआ कपूर उस हवन कुंड में फेंक दिया  ।क्योंकि वह तिकोना बनाया हुआ विशाल कुंड था और वह इतना विशाल कुंड था । कि उसमें 108 सैनिक मरे हुए पड़े थे । अब पूरा कुंड जलने लगा मित्र नाथ उस पर आहुतियां देता गया धीरे-धीरे करके आत्माएं मुक्त होने लगी ।

108 सैनिकों की एक विशाल सेना भूत प्रेत के रूप में कर्ण पिशाचिनी को समर्पित हो गई । कर्ण पिशाचिनी ने ठहका कर लिया और बहुत जोर जोर से हंसने लगी । उसने कहा चलो अब से तुम राजा हुए । तुमने मेरी शक्तियों को असीम बना दिया है समय बीता जा रहा है ऐसा करो चलो उस राजकुमारी को अपने पास बुलाओ आवाहन करो मेरा  ।और मित्र नाथ ने आवाहन किया मित्र नाथ ने जैसे ही आवाहन किया । वह पिशाचिनी अब राजकुमारी के शरीर में प्रवेश कर गई । राजकुमारी राज महल से दौड़ती हुई भागी और कहती रही मित्र नाथ मित्र नाथ मित्र नाथ मित्र मैं तुमसे विवाह करूंगी । उसके पीछे राजा की पूरी सेना भागी और राजा ने आदेश दिया किसी भी प्रकार से राजकुमारी को रोको राजकुमारी कैसे रुकने वाली थी । उसकी चलने की गति उड़ने के समान हो गई । कारण कि उसके शरीर में पिशाचिनी ने प्रवेश किया था । और वह किसी भी तरह से मित्र नाथ को अपने पति के रूप में प्राप्त करना चाहती थी ।और मित्र नाथ को अपना पति बनाना था । इतनी तेजी से दौड़ती हुई राजकुमारी के पीछे सेना काफी सारे लोग और राजा सभी दौड़ते दौड़ते उसके पीछे जा रहे थे । राजकुमारी को कुछ ही पल लगे तेजी से जाते हुए वह मित्र नाथ के पास पहुंच गई । मित्र नाथ ने यज्ञ वेरी कुंड अलग से बना रखा था अपने विवाह के लिए ।

यह बात कर्ण पिशाचिनी ने उसे पहले ही समझा रखी थी । अब उसने राजकुमारी की मांग में सिंदूर भरा और दोनों ने एक दूसरे को वरमाला पहनाई मित्र नाथ ने राजकुमारी को मंगलसूत्र पहनाने के बाद सात फेरे लेकर यह विवाह संपन्न किया गया । इस प्रकार यह गंधर्व विवाह हो गया राजकुमारी आलिंगन लेकर वहां पर खड़ी हो गई । प्रजा सैनिक राजा सब वहां पहुंच गए । अब मित्र नाथ ने बहुत तेज आवाज में कहा राजकुमारी आज से मेरी हो गई है यह मेरी पत्नी है इसलिए राजन आप यहां से चले जाइए या तो मुझे आप अपना शहज दामाद स्वीकार कीजिए । अन्यथा मैं तो अपने प्राण दूंगा ही और राजकुमारी भी अपने प्राण त्याग देगी । अब भावुक तरह का ऐसा प्रभाव बना की राजा हस्त प्रभाव रह गया । उसने सोचा कि इससे अच्छा तो यही है कि इसे अपना दामाद स्वीकार कर लूं । और अपने राजमहल में ले चलूं । राजा ने मित्र नाथ को आमंत्रित किया और कहा ठीक है मैं तुम्हें स्वीकार करता हूं । आज से तुम मेरे दामाद हुए चलो राजमहल की ओर लेकिन साथ ही साथ अब एक कार्य और संपन्न करना था । वह यह था की मित्र नाथ ने एक शर्त रखी मेरी शक्तियां मेरे साथ जाएगी इसलिए आप आज से कोई भी देवी देवता या भगवान का पूजन याचन नहीं करोगे । मेरे पास एक विशालकाय मूर्ति है इसी का पूजन याचन किया जाएगा और जो मूर्ति थी वह कर्ण पिशाचिनी की थी ।

इस प्रकार मित्र नाथ उस राज्य में पहुंच गया वहां पर एक बहुत बड़ी विशालकाय कर्ण पिशाचिनी की मूर्ति बनाई गई । और उसके सामने लगातार हवन और पूजन की तैयारी की गई । अब केवल इसी देवी की पूजन यहां पर होगी । और किसी भी देवी देवता कि नहीं और मित्र नाथ की शक्ति को कौन रोक पाता उसके सामने तो वैसे भी सब नतमस्तक थे । राजा ने भी आज्ञा पालन कर दी । और उस राज्य में सभी देवी देवताओं की पूजा पर प्रतिबंध लग गया । और अन्य पूजन सामग्री यहां से हटा दी गई । ऐसी अद्भुत अवस्था में धीरे-धीरे करके कर्ण पिशाचिनी की शक्तियां चरम पर पहुंचने लग गई थी । इधर जब यह बात रूपमती को पता चली कि उसका पति अब उसका नहीं रहा और वह रोते-रोते उसके पास पहुंची । स्वामी यह आप क्या कर रहे हैं तुमने दूसरा विवाह भी कर लिया । तुम्हारे जीवन में मेरा कोई स्थान नहीं है मुझे अपने जीवन में कोई भी स्थान नहीं देना चाहते हैं ।

कुछ तो बोलिए । मित्र नाथ उसे देखकर बड़ी तीखी नजरों से देखते हुए कहा । मुझे जब राजकुमारी प्राप्त हो गई है तुम्हारी क्या आवश्यकता है मुझे । मित्रा नाथ ने कहा जाओ तुम अपने पिता के पास वापस लौट जाओ । मेरे जीवन में तुम्हारी कोई आवश्यकता नहीं है । अपने दुविधाने पन से रोते हुए वह अपने घर की तरफ चलने लगी । और उसे याद आया कि काश कि मैं कुछ ऐसा कर पाती जो अजीब सा के हुआ है यह सब । कर्ण पिशाचिनी की साधना के कारण हुआ है यह सब अगर मैं इस शक्ति को रोक पाती तो भला कुछ ना कुछ तो अवश्य ही करती । उसके बाद रूपमती काली मंदिर में प्रवेश कर गई वहां जाकर के उसको एक ऐसा समाधान मिला जो आगे चलकर इस समस्या को हल करने वाला था । आगे क्या हुआ यह जानने के लिए आपको अगले भाग में । धन्यवाद आपका दिन मंगलमय हो ।

कर्ण पिशाचिनी की उत्पत्ति और कहानी 7 अंतिम भाग 

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