Site icon Dharam Rahasya

कर्ण पिशाचिनी की उत्पत्ति और कहानी 7 अंतिम भाग

कर्ण पिशाचिनी की उत्पत्ति कहानी भाग अंतिम

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल में आपका एक बार फिर से स्वागत है । जैसा कि कर्ण पिशाचिनी की कहानी चल ही रही है । आज मैं आपको आगे का भाग बताऊंगा और बताऊंगा कि किस प्रकार से कर्ण पिशाचिनी की मुक्ति हुई ।इस कहानी में किस तरह से इस कर्ण पिशाचिनी का अंत हुआ । तो यह है अंतिम भाग मैं आप लोगों को बताने जा रहा हूं तो पढ़िए कि रूपमती माता काली के मंदिर में प्रवेश कर गई । वहां पर वह मां काली को पुकारने लगी । हे मां मेरी मदद करो मेरी रक्षा करो । मुझे कोई मार्ग बताओ । जिससे मैं कर्ण पिशाचिनी के चंगुल से अपने पति को छूड़ा सकूं । बार-बार पुकारने पर तभी एक कोने से जोर से आवाज आई क्यों मेरी साधना भंग कर रही है स्त्री क्यों इतना चिल्ला चिल्ला कर मां को पुकार रही है । रूपमती ने देखा एक साधु ऐसे बैठा था जैसे भगवान शिव साधना में बैठे होते हैं  । और उसके पीछे एक त्रिशूल गड़ा हुआ था वह उस अद्भुत त्रिशूल के साथ एक शिव स्वरूप की तरह लग रहा था वह तांत्रिक भगवान भैरव का बहुत बड़ा भक्त था । मां काली उसकी आराध्य देवी थी अपनी स्थिति को जानकर के रोते हुए वह बाबा के चरणों के पास आ पड़ी ।

अपना सारा वर्तान सुनाने लगी उसका सारा वर्तान सुनने के बाद बाबा हस्त प्रभ रह गए । उन्होंने देखा है कि क्या ऐसा भी संभव है तंत्र जगत का एक विशिष्ट चमत्कार हो चुका था । किसी पिशाचिक शक्ति ने एक राज्य को अपने अधिकृत कर लिया था । और उसकी पूजा राज्य में हो रही थी और सभी देवी देवताओं को निकाला दे दिया गया था ।ऐसी स्थिति पा करके तांत्रिक को बड़ा आश्चर्य हुआ । तांत्रिक का नाम बालकनाथ था । बालक नाथ नाम के उस तांत्रिक ने कहा मैं तेरी मदद करूंगा जा अभी तो निश्चिंत हो जा । मैं अपना एक दूत कर्ण पिशाचिनी के पास भेजता हूं और उसने तुरंत ही आवाहन मंत्र द्वारा  संग झंग फट मंत्र द्वारा एक प्रेत प्रकट कर दिया । और उस प्रेत से कहा जाओ । कर्ण पिशाचिनी के पास और उससे कहना तुरंत ही अपना असर और राज्य मित्र नाथ के ऊपर से हटा ले ताकि उसकी पत्नी को उसका पति मिल सके । अन्यथा वह इस युद्ध में पराजित होगी ।

और उसकी बुरी गति हो जाएगी । जब वह प्रेत कर्ण पिशाचिनी के पास पहुंचा कर्ण पिशाचिनी ने विकट ठहकाश करते हुए प्रेत का वध कर दिया । प्रेत का वध हो जाने की वजह से अब यह बात जब बालक नाथ को पता चली । बालक नाथ इस बात से तिलमिला गया । एक ऐसी शक्ति जो मेरे प्रेत का वध कर दे बहुत अद्भुत होगी ।उसने कहा मैं तुम्हारा निर्णय स्वीकार करता हूं तुम्हें मुझसे युद्ध चाहिए ना । तो मैं तुमसे युद्ध करूंगा आज रात मेरी सेना तुम्हारे पास आएगी और तुम्हें बंधी बना लेगी । यह बात कर्ण पिशाचिनी वहां बैठे बैठे देख रही थी । उसने कहा ठीक है मैं देखना चाहती हूं तुममें कितनी शक्ति है । इसके बाद शाम होते होते प्रेतों की एक बहुत बड़ी सेना अपने मंत्रों से अभिमंत्रित करके बालक नाथ ने कर्ण पिशाचिनी के पास भेज दी । कर्ण पिशाचिनी ने भी अपनी सेना को युद्ध करने के लिए तैयार किया जो 108 सैनिक मरे थे वह प्रेत बनकर के उस युद्ध में तैयार हो गए ।

रात्रि के समय बड़ी उधम चौपड़ी मची चारों तरफ पेड़ हिलने लगे और बवंडर उठने लगे और भीषण युद्ध शुरू हो गया । जनता यह देख रही थी कि यह आंधी चल रही है तूफान आ रहा है लेकिन वास्तव में वह युद्ध हो रहा था । अत्यंत ही भयानक माहौल हो गया था । हर जगह से कुत्ते सियार लोमड़ी उनके चिल्लाने और गुराहट की आवाज बहुत तेजी से आने लगी । जनता भयभीत होने लगी यह सब हो क्या रहा है । चारों ओर वातावरण में अंधेरा छाया हुआ था । डरावनी आवाजें और हवाएं आ रही थी । कुछ देर बाद उसके सैनिक पराजित होने लगे कर्ण पिशाचिनी के सैनिक का पराजय होने के कारण कर्ण पिशाचिनी को बड़ा बुरा लगा । उसने कहा मुझे कोई उपाय निकालना होगा उसने तुरंत आदेश दिया मित्र नाथ को की जाओ नगरवधू के ग्रह पर जहां वह रहती है वहां आग लगा दो । मित्र नाथ ने तुरंत सैनिकों को आदेश दिया तो सैनिकों ने उस घर में आग लगा दी क्योंकि रात को सभी वेश्याएं सोई हुई थी ।

इस वजह से जब रात्रि को आग लगाई गई तो सारी वेश्याएं उसमें जलकर मरने लगी जैसे-जैसे वेश्याएं मरती जाती आवाहन मंत्रों के द्वारा प्रेत योनि में पिशाचिनीया बनती चली जा रही थी । उन पिशाचनियो के बनने से अब सारी पिशाचिनीयो की एक सेना फिर से तैयार हो गई । और कर्ण पिशाचिनी ने उनसे कहा कि तुम्हें युद्ध नहीं करना है तुम्हें भोग करना है उन प्रेतों के साथ जाओ उनसे भोग करो उन को पराजित कर दो । इस भोग के द्वारा आखिर वही हुआ सारी पिशाचिनीया दौड़ते हुए भोग करने लगी । और ऐसा अद्भुत नजारा बालक नाथ ने सोचा भी नहीं था बालक नाथ ने स्वयं की सेना को पराजित होते देखा । सारे के सारे प्रेत इसी कामवासना में मारे गए भोग के बाद पिशाचिनीया उन प्रेतों को मार डालने लगी उनकी शक्ति छीन कर के सब के सब सारे प्रेत मारे गए । पिशाचिनीयों की सारी सेना अब बालक नाथ की तरफ दौड़ने लगी बालक नाथ के सामने अब कोई विकल्प नहीं था ।

बालक नाथ ने रूपमती को कहा सुनो अगर तुम जीवन भर सती रही हो तो । अपने सतीत्व की शक्ति से माता का आवाहन करो । और उनसे कहो अपनी शक्तियां वह मुझे प्रदान करें ताकि मैं इस युद्ध में विजयी हो सकूं । इसके लिए तुम्हें अपनी रक्त की बूंदों से मां का अभिषेक करना होगा । यह सोच कर तुरंत ही रूपमती ने अपने हाथ को काट लिया रूपमती अपने रक्त से मां को यज्ञ में अपने रक्त का आहुति चढ़ाने लगी । और प्रार्थना करने लगी मैंने मन वचन कर्म से अपने पति को ही पति माना किसी भी पुरुष के प्रति कभी भी कोई क्रू विचार नहीं लाई तो मुझे ऐसी शक्ति प्रदान कीजिए । और इस शक्ति को इन बाबाजी को प्रदान करें ताकि यह उन किस पीसचनियो की सेना को पराजित कर सके । मां कुछ ही देर में प्रसन्न हो गई और उन्होंने अद्भुत शक्ति एक स्त्री के रूप में उत्पन्न की जो नर मुंडो की माला धारण करें हुए थी । उसको विकट ढहकार करते हुए भयंकर रूप धारण करने वाली वह स्वयं बालक नाथ ने उसे भैरवी नाम से संबोधित किया । हमारा भाग्य की स्वयं भैरवी प्रकट हुई है । आप तो यह युद्ध निश्चय ही अपनी नीति पर ही पहुंचेगा ।

उसके बाद जैसे ही पिशाचिनीयों की सेना पास आई एक-एक करके सब का सर धड़ से अलग करती चली गई । वह मां भैरवी थी । महा भैरवी अत्यंत ही क्रोधित हो चुकी थी इधर कर्ण पिशाचिनी को लग गया कि मेरी पराजय अब निश्चित ही संभव है इसलिए उसने मित्र नाथ को कहा की है मित्र नाथ तू अपने सिर की बलि मुझे दे दे नहीं तो मैं पराजित हो जाऊंगी । मित्र नाथ ने कहा नहीं मैं अपनी बलि कैसे दे सकता हूं । तो अब कर्ण पिशाचिनी क्रोधित हो गई उसने कहा मैंने तेरे जीवन भर सारे कार्य किए हैं क्या तू इतना भी नहीं कर सकता है मूर्ख प्राणी । क्या तू जीवन मृत्यु के ही चक्कर में फंसा रहेगा नहीं तो आजा मेरे लोक में मेरे लोक को प्राप्त कर । मित्र नाथ भयभीत होकर वहां से भागने लगा कण पिशाचिनी ने कहा तेरी बली लेकर के । मैं अवश्य ही मैं नया जीवन प्राप्त करूंगी तेरी शक्ति और तेरी पूजा के सामर्थ से मैं भैरवी जी को भी पराजित कर दूंगी ।

उसने अपनी पिशाचिनीयों में महान पिशाचिनी को राजकुमारी के शरीर में प्रवेश करा दिया राजकुमारी दौड़ती हुई गई और मित्र नाथ की गर्दन पर काट लिया । उसके शरीर से रक्त बहने लगा और उस रक्त को वह उस यज्ञ कुंड में प्रवाहित करने लगी ।कर्ण पिशाचिनी की शक्तियां अब बहुत तेजी से बढ़ने लगी ।अब सीधा सामना महा भैरवी से कर्ण पिशाचिनी का था ।कर्ण पिशाचिनी ने अलग-अलग मंत्रों का प्रयोग किया ।क्योंकि वह सभी प्रेत भूत पिशाच की देवी बन चुकी थी । कभी मोहन कभी वशीकरण कभी उच्चाटन सब शक्तियों का प्रयोग वह महा भैरवी पर करती चली गई । लेकिन महा भैरवी हर एक शक्ति को काटती चली गई अंततोगत्वा उसने मित्र नाथ की गर्दन को सामने रखकर उसे काटने की कोशिश की । मैं इस की बलि चढ़ा दूंगी अगर देवी तूने मुझे हराने की कोशिश की तो । इस पर उसकी पत्नी चिल्लाई और कहने लगी हे मां रुक जाओ शांत हो जाओ मेरा पति मुझे प्राप्त होना चाहिए यह मारा नहीं जाना चाहिए ।

ऐसा कहने पर बड़ी ही स्थिति विकट हो गई । लेकिन देवी विकट ठाहस करते हुए देवी अपने पैर पटकने लगी । जिससे भीषण धूल धरती हिलने लगी । उस महा भैरवी के क्रोध से सभी देवी देवता वहां आ गए । वह भी प्रकट होकर के देखने लगे यह विकट स्थिति कैसे पैदा हो गई है । इधर कर्ण पिशाचिनी उसकी शक्तियां लेती चली जा रही थी अब स्थिति बड़ी विकट हो चली थी । बड़ी ही चतुराई के साथ में वह बालक नाथ बाबा ने अपने गुप्त बेताल को प्रकट किया । गुप्त बेताल ने तुरंत ही चुपके से अपने एक प्रेत को मित्र नाथ का रूप दे दिया । अब ऐसा रूप जो मित्र नाथ के जैसा बन गया था । बेताल ने मित्र नाथ के शरीर को उठा कर के उसकी जगह दूसरा मित्र नाथ रख दिया । और कर्ण पिशाचीनी ने उसकी गर्दन काट दी । उसको शक्तियां तो अवश्य प्राप्त हुई मगर मित्र नाथ बच गया । मित्र नाथ को बेताल उठा कर के उसकी पत्नी के पास ले गया ।

अब अंतिम युद्ध शुरु होने वाला था कर्ण पिशाचिनी और महा भैरवी के बीच महायुद्ध छिड़ गया । भयंकर युद्ध छिड़ने के बाद तुरंत ही कर्ण पिशाचिनी के सारे अस्त्र शस्त्रों को एक पल में ही गिरा दिया । अपनी पराजय सामने देख कर के उसने आत्मसमर्पण करके कर्ण पिशाचिनी ने कहा ठीक है देवी मैं यह हार स्वीकार करती हूं । और सदा के लिए श्मशान में विलीन हो जाती हूं । अब मैं किसी भी जब कोई तांत्रिक मेरी शक्तियों का आवाहन या मुझे पुकारेगा नहीं तब तक मैं स्वयं उसके पास नहीं आऊंगी । आप मुझे क्षमा कर दीजिए । महा भैरवी ने विकट ठहकर करते हुए कहां । चली जा आज से शमशान वासिनी हो जा और श्मशान में ही रह और अघोरी और पैशाचीक शक्तियों की स्वामी बनी रह । याद रख जब तक तुझे कोई ना पुकारे तब तक प्रकट नहीं होना । उसके बाद कर्ण पिशाचिनी विलीन हो गई । महा भैरवी ने भी विकट ठहकर लिया और वह भी आकाश में विलीन हो गई ।

इस प्रकार से कर्ण पिशाचिनी आज भी उस श्मशान में वास करती है । और उसकी शक्तियां असीम है जब तक कि कोई व्यक्ति उसको नहीं पुकारता उसकी शक्तियां सोई रहती है । तांत्रिक तंत्र में इसका प्रयोग विभिन्न तरह से तांत्रिकों ने किया है । और करते चले आ रहे हैं । और इसकी शक्तियां अगर वश में ना हो तो विनाशकारी है ।अगर वश में हो जाए तो कल्याणकारी भी है । अघोरियों ने इन्हें सिद्ध करके बहुत ही अच्छे अच्छे कार्य भी किए हैं । लेकिन अगर उसके प्रलोभन में आ जाओ । तो वह आपका विनाश ही करती है । इसलिए ऐसी शक्तियों से साधारण जन को दूर ही रहना चाहिए । जो विशिष्ट तांत्रिक हैं वह इस शक्ति का वशीकरण में रखने की आवश्यकता है । यह एक बहुत बड़ा कार्य है ।

जिसको केवल विशिष्ट गुरु और महा तंत्र का प्रयोग करने वाले महान तांत्रिक गुरुओ से ही सीखना और करना चाहिए । इसका प्रभाव अलग-अलग प्रकार से मनुस्यो पर अलग-अलग तरह से होता है । यह और इसके साथ ही काम पिशाचिनी यह दोनों शक्तियां अमर है । और श्मशान में वास करती हैं । यह भयानक पिशाच और पिशाचिनी की स्वामिनी बन जाती है । और इनकी शक्तियां बढ़ती चली जाती है अगर कोई साधक इनकी साधना लगातार करता रहे तो । तो दोस्तों यह था कर्ण पिशाचिनी की उत्पत्ति की कहानी कैसे कर्ण पिशाचिनी उत्पन्न हुए किस प्रकार वह संसार में व्याप्त है । अपने श्मशान में वह रहा करती है । इस कहानी को पढ़ने के लिए धन्यवाद आपका दिन मंगलमय हो ।

Exit mobile version