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कर्ण पिशाचिनी साधना वैदिक विधि PDF

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। बहुत समय से ही मांग हो रही थी कि कर्ण पिशाचिनी की साधना के जो विधान है उसके बारे में बताएं। पर सभी लोग जानते हैं कि इस साधना में सभी ने अधिकतर अघोर पंथ या कापालिक पंथ और विभिन्न प्रकार का पूरी तरह से तामसिक तंत्र के ही विधानो को बताया है? इसी कारण से जो इसकी वैदिक पद्धति की सिद्धि है उसके बारे में लोगों को ज्ञान नहीं है। आज मैं उसी के बारे में आपको बताऊंगा और पीडीएफ के रूप में इसे प्रोवाइड भी करूंगा।

यह आपके लिए महत्वपूर्ण इसलिए होने वाला है क्योंकि इस तरह से किसी ने भी विधान नहीं बताया है क्योंकि कोई भी जब आपको कर्ण पिशाचिनी साधना के विषय में बताता है तो उसका विनियोग कैसे किया जाएगा। इसके बारे में कभी नहीं बताते,यह वैदिक पद्धति से की जाने वाली साधना है और यह पूरी तरह से वैसी ही साधना है जैसे अन्य साधना की जाती है। यह खतरनाक साधना इसलिए मानी जाती है क्योंकि यह तांत्रिक देवी है और पिशाचिनी स्वरूप में होने के कारण। इनकी शक्तियां बहुत ही तीव्रता से मनुष्य के ऊपर हावी हो जाती हैं या आ जाती हैं लेकिन यही चीज अच्छी भी है। इसी कारण से हमें पूरा विश्वास होता है कि ऐसी शक्तियां मौजूद है।

चलिए कहानी के साथ में आज मैं आपको इनका पीडीएफ दूंगा जिसके लिए आपको मेरे इंस्टामोजो अकाउंट पर जाना होगा, जिसका लिंक नीचे दे दूंगा। वहां से क्लिक करके आप इस साधना को डाउनलोड कर सकते हैं और इसके बारे में पूरी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। मैं यहां पर वैदिक विधि के ही बात करूंगा।

सबसे पहले जानते हैं कि इस पद्धति को लाने का श्रेय किसके हाथ में है ? बहुत सारे लोगों को यह पता नहीं है कि कर्ण पिशाचिनी जो होती है वह आपके कुंडलिनी मे वास की प्रतीक होती है जब आपकी मूल कुंडली शक्ति विभिन्न मार्गों से होकर गुजरती है, इसमें है कुछ ऐसे स्थान होते हैं जिनके कारण से शक्तियां। भयानक रूप धारण कर लेती हैं, उसमें से एक स्थान कान होता है। कान मल से कान में आपको यह आने वाले सभी प्रकार की बातों को बताती रहती है। अधिकतर लोगों को ऐसा लगता है कि कर्ण पिशाचिनी। भूत भविष्य वर्तमान बताती हैं किंतु यह पूरी तरह सत्य नहीं है।

यह साधक पर निर्भर करता है कि वह भविष्य जान सकता है अथवा नहीं, लेकिन भूत और वर्तमान को यह बहुत ही अच्छी तरह से बता देती है। इसी कारण से इसका साधक बहुत जल्दी प्रसिद्धि प्राप्त कर लेता है। साथ ही साथ इसकी साधना से बहुत ही बड़ा ज्योतिषी भी बना जा सकता है। चलिए शुरू करते हैं उनकी कहानी को कर्ण पिशाचिनी की वैदिक पद्धति के आधार पर।

आज से कई हजार साल पहले। भारतवर्ष में एक महान ऋषि हुए जिनका नाम था पिप्पलाद! ऋषि, पिप्पलाद विभिन्न प्रकार की साधना में पारंगत हुआ करते थे। ऐसे ही एक दिन वह एक सरोवर के निकट जा रहे थे। उन्होंने सोचा कि? क्या कोई ऐसा मार्ग नहीं हो सकता जिससे मैं विभिन्न प्रकार की सिद्धियों के विषय में जान सकूं। किसी के बारे में कुछ भी बता सकूं? वैसे ही सोचते जा रहे थे और अपने गोपनीय मंत्रों का उच्चारण कर रहे थे। तभी वहां जल्द से एक पिशाच प्रकट हुआ।

पिशाच ने उन्हें प्रणाम किया और कहा आप मेरी मुक्ति करवा दें? मेरी मुक्ति बहुत ही आवश्यक है। क्योंकि मैं बहुत से जन्मों से भटक रहा हूं। इस पर उन्होंने कहा कि ठीक है। मैं तेरी मुक्ति करवा दूंगा किंतु मुझे कोई मार्ग बता जिससे मैं सभी प्रकार के लोगों के प्रश्नों के उत्तर दे दिया करूँ। तभी उसने कहा, आप क्यों नहीं वैदिक रीति से कर्ण पिशाचिनी नाम की एक शक्ति की उपासना करते हैं? उसकी साधना करके आप बहुत अधिक शक्तिशाली हो जाएंगे और वह आपके सभी प्रकार के प्रश्नों के जवाब देंगी। क्योंकि व्यक्ति स्वभाव से ही जिज्ञासु होता है और अपने हर प्रश्न का उत्तर जानना चाहता है।

और प्रेत ने उन्हें वह विधि सिखाई। इसके बाद ऋषि पिप्पलाद ने उस पिशाच को जीवन मुक्त कर दिया और वह पित्र लोक की ओर चला गया। अब बारी थी 14 दिन की साधना की। उस 14 दिन की साधना को उन्होंने एकांत स्थान ,एक श्मशान में करने की सोची। और वहां जाकर उन्होंने वह साधना शुरू कर दी। क्योंकि वह नहीं चाहते थे कि घर के आस-पास। उनकी कोई साधना को देख सकें इसलिए उन्होंने इस साधना के लिए अपने घर को ना चुनकर श्मशान को चुना था।

अपनी साधना में। इस प्रकार से जाप करते रहें। जैसे ही 14वां दिन हुआ। उस रात को अचानक से ही ज़ोर से हवाएं चलने लगी। उन्हें ऐसा लगा कि चारों ओर का वातावरण बदल रहा है। विभिन्न प्रकार के भूत प्रेत पिशाच,चारों ओर उनके मंडराने लग गए। जिनसे उनको भय हो रहा था। किंतु अपने आत्मबल और पूर्व मंत्रों की सिद्धि के कारण उन्होंने अपने आप को नियंत्रित कर रखा था। तभी जमीन से उत्पन्न होती हुई एक पिशाचिनी उनकी ओर तेजी से दौड़ी।

आकर उसने इन पर वार किया। किंतु अपने मंत्रों से सुसज्जित और रक्षा कवच धारण किए हुए ऋषि पिप्पलाद को कुछ भी नहीं हुआ। साधना पूर्ण होते ही उन्होंने अपनी आंखें खोल दी। सामने एक सुंदर सी पिशाचिनी खड़ी थी। उसने इन को प्रणाम किया और कहा आपने मुझे क्यों पुकारा है? मैं आपकी क्या सहायता कर सकती हूं? और आपने मुझे किस रूप में प्राप्त करने की इच्छा की है? ऋषि पिप्पलाद ने कहा, तुम क्या-क्या कर्म कर सकती हो, पहले मुझे बताओ।

उसने कहा, मैं आपके सभी प्रकार के कर्मों को कर पाऊंगी। खासतौर से आपके सभी प्रश्नों के उत्तर दूंगी। आपकी सेवा करूंगी। मेरे पास भी पिशाचों की सेना है। मैं उनकी देवी हूं। इस कारण से आपकी हर आज्ञा का पालन उन से करवा सकूंगी। किंतु मेरी भी शर्त है, आपको मुझे पत्नी स्वीकार करना होगा। ऋषि पिप्पलाद ने कहा, क्या मैं किसी अन्य रूप में आपकी साधना? के फल के रूप में नहीं प्राप्त कर सकता। इस प्रकरण पर पिशाचिनी ने कहा, अगर आपको मेरी संपूर्ण सिद्धियां और शक्तियां चाहिए तो मुझे पत्नी रूप में ही प्राप्त कीजिए।

आपके लिए कुछ भी असंभव नहीं, क्योंकि आपके पास पहले से ही बहुत सारी सिद्धियां हैं। आपके पास पहले ही बहुत अधिक तपोबल है। इस पर पिप्पलादने कहा ठीक है! मैं तुम्हें पत्नी रूप में ही स्वीकार करता हूं। कर्ण पिशाचिनी खुशी के मारे नाचने लगी। उसने कहा ठीक है, किंतु आपको भी वादा करना होगा। मैं जब भी आप से भोग करना चाहूंगी, आप भोग के लिए मना नहीं करेंगे। ऋषि पिप्पलाद ने कहा, ठीक है जैसी तुम्हारी इच्छा मैं अवश्य ही तुम्हें संतुष्ट रखूंगा। और ऐसा कहते ही तुरंत ही पिशाचिनी उनके शरीर से लिपट गई। और उसने तुरंत ही भोग करना शुरू कर दिया।

ऋषि पिप्पलाद ने क्योंकि वचन दे दिया था। इस कारण से उन्होंने उसका साथ दिया। इसके तुरंत ही बात उसने कहा, मैं अब आपके कान पर बिराजती हूं। वह उनके कान पर बैठ गई। इसके बाद जब लोग ऋषि के पास आते हैं तो वह उनके सारे प्रश्नों के उत्तर दे दिया करते, उत्तर इतने सटीक होते कि लोग आश्चर्य में पड़ जाते कि आखिर इनके पास सारा ज्ञान कहां से आ रहा है? इस प्रकार लगभग 3 वर्षों तक उन्होंने कर्णपिशाचिनी को अपने कर्ण पर बैठा के रखा। समय बीतता चला गया।वह उनके शरीर के साथ अपना शारीरिक संबंध बनाती और उनको और स्वयं को आनंद मे रखती।

आनंद में उसने कभी भी कोई बुरा कार्य नहीं किया। सिद्धियों का अलग-अलग स्वभाव होता है। जैसा साधक होता है, सिद्धि उसी के अनुसार बन जाती है। यहां पर धीरे-धीरे करके तपोबल की उर्जा पिशाचिनी को मिल रही थी और इस कारण कर्ण पिशाचिनी बहुत ही अधिक शक्तिशाली होती जा रही थी। एक दिन उसने देवी का रूप धारण कर लिया। और ऋषि पिप्पलाद को प्रणाम करते कहा, अब मुझे आप विदा कीजिए।

मैं आपकी ऊर्जा सहने में समर्थ नहीं हूं और मैं भी अब! बड़े लोक की ओर गमन करना चाहती हू कारण कि आपकी ऊर्जा को मैंने शारीरिक संबंध बनाकर उसे प्राप्त किया है। इसी कारण मेरा स्वरूपा देवी जैसा हो चुका है। पर मैं अब आपको आपके मोक्ष मार्ग से हटाना नहीं चाहती इसलिए मुझे विदा कर दीजिए। जो भी व्यक्ति मेरी सिद्धि। इसी प्रकार विदा कर देगा। मैं उसके मोक्षमार्ग को नहीं रोकूंगी। लेकिन जो मेरे माया जाल में फंसा रहेगा उसे मैं भ्रमित करती रहूंगी।

वैसे भी आप महान ऋषि हैं। आपको इस प्रकार लोभ में नहीं पड़ना चाहिए। ऐसा कहती हुई कर्ण पिशाचिनी उनके सामने अपनी सारी इच्छा रख चुकी थी। उसकी बात को सुनकर ऋषि पिप्पलाद ने प्रसन्न होते हुए कहा ठीक है, मैं तुम्हारी विसर्जन क्रिया करूंगा। और यही संदेश! अपने आने वाले शिष्यों को दूंगा कि अगर तुम पिशाचिनी सिद्धि करते हो तो केवल कुछ ही वर्षों तक उसे अपने साथ रखो। उसके भ्रम में ना आओ और उसके बाद उसे विदा कर दो। उसका विसर्जन करना आवश्यक है।

विसर्जन करने के लिए वह! अपने गुरु मंत्र का प्रयोग करते हुए। मंत्र के आगे उस शक्ति का नाम लेते हुए हुए विसर्जन शब्द का प्रयोग करें। इस प्रकार उसका विसर्जन संपूर्ण हो जाएगा यह हवन उसे लगातार इतने दिन करना होगा जितने दिन उसने साधना की थी। कर्ण पिशाचिनी ने जाते जाते उन्हें एक गोपनीय धन का मार्ग भी बता दिया। इसके कारण ऋषि पिप्पलाद के पास। एक सहस्त्र गाय खरीदने तक का धन हो गया और उन्होंने एक सहस्त्र गाय उससे खरीद ली ! इस प्रकार उनकी सिद्धि और उनकी वैदिक विधि आगे आने वाली पीढ़ियों को प्राप्त हुई। वही विधि मैंने आज आपको बताई है कि किस प्रकार से आपको इसमें विनियोग करना है क्योंकि ज्यादातर साधना में लोग। खासतौर कर्ण पिशाचिनी की साधना में उसका विनियोग नहीं बताते हैं।

नीचे क्लिक करके आप मेरे इंस्टामोजो अकाउंट में पहुंच सकते हैं और इस विधि को डाउनलोड कर सकते हैं। तो यह ठीक कर्ण पिशाचिनी की साधना और उससे जुड़ी हुई पीडीएफ के रूप में कहानी। अगर यह आपको पसंद आई है तो लाइक करें सब्सक्राइब करें। आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद।

कर्ण पिशाचिनी साधना पीडीएफ़ लिंक क्लिक करे

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