Site icon Dharam Rahasya

कर्ण मातंगी सिद्धि और रहस्य कथा मोढेरा भाग 3

कर्ण मातंगी सिद्धि और रहस्य कथा मोढेरा भाग 3

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल में आप सभी का एक बार फिर से स्वागत है। कर्ण मातंगी, सिद्धि और रहस्य कथा मोढेरा यह तीसरा भाग है तो अभी तक आपने जाना कि किस प्रकार कलश नाम का एक व्यक्ति माता के कर्ण मातंगी। स्वरूप की सिद्धि का प्रयास करता है और एक स्त्री। जब उसके गले लगती है तब वह उस घटना में आगे क्या करता है। आइए जानते हैं?

इस प्रकार कलश उस पराई स्त्री से आकर्षित होने लगा। स्त्री उसके गले लग कर उसके कान में बोली।

सुनो कलश मैं तुम्हारे बारे में जानती हूं तुम यहां बैठकर। विशेष तरह की साधना कर रहे हो? यह ब्राह्मण व्यक्ति मेरा पति जबरदस्ती बन गया है। हमारे बीच में पति-पत्नी जैसा कभी कुछ भी नहीं हुआ।

मैं? इसके घर में थी। और यह? मुझसे गलत तरह की क्रियाएं करने को बोलता था तो मैंने इसे मना कर दिया। एक रात यह जबरदस्ती मुझसे विशेष तरह की चीजें करवा रहा था। तब मैंने यह सोचा कि मेरा यहां से चले जाना ही उपयुक्त होगा। तो मैं भागकर! यहां आ गई यहां में छिपके रहने लगी। पता नहीं इसे कैसे पता चल गया था? लेकिन मेरी रक्षा के लिए कुछ तांत्रिक सिद्धियां मेरे पास भी हैं। इसी वजह से यह यहां तक तो आ जाता था लेकिन इसके बाद यह भटक जाता था और। क्योंकि इसे मैं कहीं नजर नहीं आती थी इसीलिए यह मुझे गाली देने लगता था। और यह पता नहीं कब से यह कार्य कर रहा है? मैं इसके पास नहीं जाना चाहती। क्योंकि पति जैसा कोई कार्य इतने अभी तक नहीं किया है।

मुझे इससे बचाओ? क्योंकि अगर आपने मेरी रक्षा नहीं की तो यह मुझसे पता नहीं क्या गलत काम करवाएगा मैं वापस? अपने ससुराल में नहीं जाना चाहती हूं।

कलश ने अपने कान में उसकी कही गई। यह बातें सुनी तो वह! क्रोधित होकर उस ब्राह्मण से कहता है तुम यहां से चले जाओ। मैं स्वयं इसकी सहायता करूंगा। तब वह ब्राह्मण कहता है। तुम इस मामले से दूर ही रहो अन्यथा तुम्हारे लिए अच्छा नहीं होगा।

तब कलश कहता है। सुनो ब्राम्हण देवता यहां से चले जाओ। अन्यथा मैं तुम्हें यहां से मार कर भगा दूंगा।

यह सुनकर पहली बार वह स्त्री जो कि अभी तक घबराई हुई थी। हंस देती है।

तब उसे हंसता देखकर वह ब्राह्मण गुस्से से कहता है ठीक है। तू!

नया पुरुष प्राप्त कर चुकी है ना इसीलिए इतना ज्यादा हंस रही है, ठीक है। मैं भी तुझे सबक सिखाऊंगा और इसे तो मैं। इतना कष्ट दूंगा जितना इसने सोचा भी नहीं होगा। मैं अभी गांव वालों के पास जाता हूं। यहां शीघ्र ही कई सारे गांव वाले आ जाएंगे। और तब फैसला होगा देखते हैं। कि तुम दोनों कैसे? बचते हो? यह सुनकर अब कलश भी घबराने लगा। क्योंकि कलश ने कभी यह नहीं सोचा था कि यह मुसीबत इतनी बड़ी हो सकती है। वह सोचने लगा। अगर यहां गांव वाले आ जाते हैं तो भला मैं क्या उनसे कहूंगा? लेकिन उसने मन में एक बात तो निर्धारित कर ली कि सत्य का साथ देना सबसे बड़ा परोपकार होता है इसलिए मैं सत्य का साथ दूंगा। वह वापस जाकर अपनी साधना में बैठ गया।

स्त्री भी उसी के पास बैठ गई। उसने कहा, मैं आपके हर साधना में आपका साथ दूंगी। मेरे पास भी कुछ गुप्त सिद्धियां है। आप चिंता मत कीजिएगा। आप अपनी साधना निर्विघ्नं होकर कीजिए। मैं आपको किसी भी प्रकार से हस्तक्षेप ना करते हुए आपकी साधना में कोई विघ्न नहीं डालूंगी। यह बात सुनकर! कलश नहीं सोचा यह स्त्री। अच्छी है। और इसे पुरुषों की इज्जत करना भी आता है। इसलिए वह अपनी साधना को पूरा करने लगा। इधर! लगभग! रात्रि में तीसरा पहर। चल रहा था कि बहुत सारे ब्राह्मण अपने हाथों में मशाले लेकर। चिल्लाते हुए उस और आने लगे। इस बात से एक बार फिर से कलश की साधना में विघ्न पड़ा। और उसने देखा तो वहां बहुत सारे गांव भर के ब्राह्मण लोग इकट्ठा हो गए थे। वह सभी शायद इस ब्राह्मण के बुलाने पर ही आए होंगे।

मैंने गलत नहीं सोचा जो होगा अब माता की जो इच्छा। उसी के अनुसार मुझे आगे बढ़ना चाहिए। मेरा उद्देश्य इस स्त्री की रक्षा करना है।

सभी लोग चिल्लाकर उस स्त्री और कलश को बुलाने लगे। तब कलश नीचे उतरकर आया। और वह उसी स्त्री के साथ एक ओर खड़ा हो गया। तब उस ब्राह्मण ने कहा, इसने मेरी स्त्री को अपने पास रख लिया है। अब भला!

कोई पुरुष यह बात कैसे बर्दाश्त कर सकता है? इस स्त्री पर भी इस व्यक्ति ने जादू टोना किया है। तभी यह उसके वश में हो गई है। आप लोग खुद देखें यह तांत्रिक साधना कर रहा था। इसने मेरी पत्नी को वश में कर लिया है इसलिए आप लोगों को फैसला करना होगा। इसे? मारकर यहां से भगा दीजिए। और मेरी स्त्री को वापस मुझे दिला दीजिए।

यह बात सुनकर वहां के सारे ब्राह्मण एक स्वर में कहने लगे।

इसे यहां से भगा दो। किसकी पत्नी को इस आदमी से छीन लो? जो भी तंत्र मंत्र हुआ होगा हम सब मिलकर पूजा करके उतार देंगे। तब कलश ने कहा, सभी ब्राह्मण लोगों का यहां पर स्वागत है। मैं कुछ कहना चाहता हूं। कृपया मेरी बात को ध्यान पूर्वक सुने। मैं यहां बैठकर। माता की आराधना कर रहा था। और तब एक स्त्री? को अपशब्द कहता हुआ यह पुरुष यहां पर आया। और तब यह स्त्री बाहर निकल कर आई। तो पुरुष इसे जबरदस्ती अपने साथ ले जाने लगा। मैंने इसे रोका स्त्री ने मुझे बताया कि यद्यपि यह उसका पति है लेकिन पति जैसा कोई व्यवहार आज तक इसने नहीं किया है। यह उसे जबरदस्ती अपने घर में गलत कार्य करवाने के लिए तड़पाता है।

इसी कारण से यह वहां नहीं जाना चाहती है। अब एक स्त्री की रक्षा करना मेरा दायित्व था। शरण में आए हुए की रक्षा करना अनिवार्य होता है।

इसीलिए मैंने! इस ब्राह्मण को यहां से।

बता कर भगा दिया कि तुम इसके लायक नहीं हो और अपनी इच्छा से यह जहां रहना चाहे वहां रह सकती है।

तब उनमें से कई ब्राह्मणों ने कहा।

कि कुछ भी हो यह इसकी पत्नी है।

तब कलश ने कहा पति पत्नी! केवल सात फेरे लेने से नहीं बन जाते हैं। दोनों का मानसिक जुड़ाव भी होना आवश्यक है और आज तक इन दोनों के बीच में कोई संबंध भी नहीं बना है।

यह सुनकर वह ब्राह्मण चिल्लाने लगा। कुछ नहीं हुआ। तू ऐसा कैसे कह सकता है तब कलश ने कहा। यह बात स्वयं तुम्हारी पत्नी ने ही मुझे बताई है।

और तुम इससे?

बहुत ही बुरे कर्म करवाना चाहते थे, इसीलिए यह छोड़कर तुम्हें यहां आ गई।

इनमें से उपस्थित कुछ बूढ़े ब्राह्मणों ने कहा इस बात का फैसला! स्त्री से करवा लेना उपयुक्त रहेगा। तब उन्होंने स्त्री से पूछा, तुम क्या चाहती हो? उसने कहा कि मैं? अपने पति के पास नहीं जाना चाहती। क्योंकि यह व्यक्ति इस लायक नहीं है। मैं अपने जीवन को नष्ट नहीं कर सकती।

लेकिन तब वहां मौजूद बहुत सारे लोगों ने कहा, यह तो ठीक है लेकिन एक स्त्री बिना पुरुष के नहीं रह सकती है। अब या तो तुम्हें? इस पुरुष से विवाह कर लेना चाहिए। हम इसे मान्यता प्रदान कर देंगे। केवल तभी तुम अपने पुराने पति को छोड़ सकती हो?

क्योंकि तुम्हारा विवाह, विवाह होकर के भी विवाह जैसा कुछ भी नहीं है इसीलिए इस बात की मान्यता के लिए। और जबरदस्ती किए गए कर्म के लिए तुम्हें मुक्त किया जा सकता है किंतु तुम्हें इन दोनों में से किसी एक को पति स्वीकार करना होगा।

यह बात सुनकर कलश आश्चर्यचकित हो गया। उसने कुछ नहीं कहा।

आप लोग इसे मेरी पत्नी क्यों बनाना चाहते हैं?

तब वहां के ग्रामीण लोगों ने कहा। कोई भी रिश्ते की एक पवित्रता होना आवश्यक है। एक स्त्री को अकेले नहीं छोड़ा जा सकता। अब या तो यह अपने पुराने पति के पास लौट जाए या फिर उससे संबंध तोड़ कर तुमसे विवाह करें। केवल यही अवस्था!

उपयुक्त है अन्यथा समाज में।

जो संदेश जाएगा उसमें यही होगा कि एक स्त्री पति को छोड़कर स्वच्छंद पराए पुरुषों के साथ संबंध बनाकर इधर-उधर घूम रही है। यह हम समाज में नहीं होने दे सकते।

अब तुम ही बताओ?

तब वह स्त्री।

जिसका नाम चंद्रा था। बोली कि मैं?

कलश के साथ ही रहना। स्वीकार करती हूं। आप मेरा इनसे विवाह करवा दें क्योंकि पति का सबसे बड़ा कर्तव्य अपनी पत्नी की सुरक्षा करना होता है जो कि मेरे पुराने पति ने कभी नहीं किया। इसलिए वह पति होने के लायक नहीं है।

मेरा विवाह भी मेरी मर्जी के बिना जबरदस्ती किया गया था इसलिए यह विवाह भी मुझे मान्य नहीं है।

और किसी का भी जबरदस्ती विवाह नहीं किया जा सकता है। और रही बात अकेले रहने की तो मैं रह सकती थी किंतु अगर आप सभी की ऐसी सोच है तो मैं। कलश के साथ विवाह करना स्वीकार करती हूं।

यह सुनकर कलश और भी ज्यादा आश्चर्यचकित हो गया। उसने सोचा यह स्त्री तो अब मेरे पीछे ही पड़ गई है।

तब कलश ने कहा किंतु मै! विवाह नहीं कर सकता हूं क्योंकि मैं इस कार्य के लिए यहां नहीं आया था।

पर गांव वालों के क्रोध और इस प्रकार संकट को देखकर आखिरकार कलश ने हां कह दी। लेकिन कलश ने कहा, मैं इन से विवाह अवश्य करूंगा किंतु मैं यहां पर अपनी साधना करने के लिए आया था तो मेरी साधना जब तक पूर्ण नहीं हो जाती तब तक मैं विवाह कैसे करूं?

तब? ब्राह्मणों ने कहा, ठीक है कोई बात नहीं, तुम विवाह कर लो। बाकी तुम्हारी मर्जी तुम साधना करो या कोई अन्य कार्य हम तुम्हें नहीं रोकेंगे। और इस ब्राह्मण को भी यहां से हटना होगा क्योंकि तब यह तुम्हारी पत्नी होगी। इस प्रकार गांव वालों की मर्जी। और भय के कारण? दोनों! चंद्रा और कलश का विवाह वहां पर संपन्न करवा दिया गया। वहां पर भारी भीड़ के बीच में दोनों ने सात फेरे लिए। कलश यह बात सोच रहा था कि मैं यहां तांत्रिक साधना करने आया था। सिद्धि प्राप्ति मेरा उद्देश्य था किंतु यह सब कुछ मेरे साथ क्या घटित हो रहा है। मैंने तो कभी यह सोचा भी नहीं था कि मैं यहां पर विवाह करने के लिए आया या साधना करने के लिए।

अपने गुरु को क्या उत्तर दूंगा? वह भी सोचेंगे कि यह कैसा है आया था, तांत्रिक साधना करने और यहां पर विवाह करके बैठ गया है।

किंतु शीघ्र ही गांव वालों ने एक कुटिया बनाकर कलश को और चंद्रा को दे दी। चंद्रा दिखने में बहुत ही सुंदर!नवयुवती थी।

एक तरफ तो कलश ने यह भी सोचा कि इतनी सुंदर स्त्री मिलना संभव नहीं है। किंतु यह आसानी से मुझे मिल गई लेकिन समय और परिस्थिति सही नहीं है।

उनके लिए सुहाग की सेज सजा दी गई। किंतु? कलश और चंद्रा! को विदा कर जब सारे।

ब्राह्मण गांव लौट गए, तब कलश ने कहा, मैं यद्यपि आपको अपनी पत्नी बना चुका हूं किंतु आपके साथ शारीरिक रूप से नहीं जुड़ सकता हूं। जब तक कि मेरी साधना पूर्ण नहीं हो जाती। इस? सुहागरात को अपने हृदय में। धारण ना करें। तब उस स्त्री चंद्रा ने कहा, ठीक है आप मेरे पति हैं मेरी। यही इच्छा है कि मेरा पति जहां और जिस भी परिस्थिति में हो उसका सहयोग मैं करती रहूं। इसलिए मेरा कार्य केवल आपके लिए भोजन बनाने से लेकर साधना में हर प्रकार से आपकी सहायता करना होगा। इसके लिए आप मुझे मना मत कीजिएगा।

तब चंद्रा उसके लिए।

बेहतरीन व्यंजन और। साधना के लिए सारी सामग्री का। पूरा व्यवस्था करने लगी।

ऐसे ही एक दिन जब!

कलश सोने की तैयारी कर रहा था तभी। अचानक से।

चंद्रा वहां आती है।

उसके ऊपर।

एक जंगली कीड़ा शरीर पर गिर जाता है चंद्रा इससे घबराकर अपने। कपड़े को झाड़ते हुए अपने शरीर के सारे वस्त्र उतार कर फेंक देती है। यह देख कर! कलश घबरा जाता है क्योंकि अपनी सुंदर स्त्री को।

निर्वस्त्र देखकर उसके मन में अलग ही भावना जाग गई थी। आगे क्या हुआ जानेंगे हम लोग अगले भाग में।

अगर यह साधना कोई खरीदना चाहता है तो इंस्टामोजो में इसका लिंक दिया हुआ है।

वहां जाकर आप इसे खरीद सकते हैं और भविष्य वर्तमान और भूत दर्शन की विधि को प्राप्त कर सकते हैं। आप सभी का दिन मंगलमय हो जय मां पराशक्ति।

कर्ण मातंगी सिद्धि और रहस्य कथा मोढेरा भाग 4

कर्ण मातंगी सिद्धि और रहस्य कथा खरीदने के लिए यहाँ क्लिक करे

 

Exit mobile version