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कर्ण मातंगी सिद्धि और रहस्य कथा मोढेरा भाग 4

कर्ण मातंगी सिद्धि और रहस्य कथा मोढेरा भाग 4

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल में आप सभी का एक बार फिर से स्वागत है। पिछली बार के भाग को आगे बढ़ाते हुए अब कलश के सामने यह बहुत ही बड़ी समस्या हो गई थी क्योंकि अपनी ही सुंदर स्त्री को देखकर उसके मन में कामवासना जाग गई थी। वह उसकी ओर बढ़ता है और उसे आलिंगन करता है। लेकिन तभी अचानक से उसे अपने गुरु की कही हुई बात याद आ जाती है। उनके गुरु ने स्पष्ट निर्देश दिया था कि साधना के बीच में आप काम क्रोध, मद, लोभ, इत्यादि वास्तविक शत्रुओं से बच कर रहना अन्यथा सिद्धि आजीवन प्रयास करने पर भी नहीं मिलेगी। इसलिए इसके बाद उसने। उसे छोड़ दिया। उसकी पत्नी उसके चरणों में गिर गई। उसने कहा, आप मुझे इस प्रकार क्यों त्याग रहे हैं। क्या मैं सुंदर नहीं हूं, आप क्या मुझसे प्रेम नहीं करते हैं?

तब? उसी वक्त कलश ने कहा, आप इस बात के लिए परेशान मत होइए। केवल समय का इंतजार कीजिए। अभी यह अवस्था इस कार्य के लिए उपयुक्त नहीं है। मैं साधना कर रहा हूं। आप मेरा साथ साधना में दीजिए पति का? जो भी कर्तव्य हो, पत्नी को उसी के अनुसार उसके साथ सहयोग करना चाहिए। जब पति काम क्रीड़ा करना चाहे तब पत्नी को मना नहीं करना चाहिए। लेकिन यदि पति गृहस्थी के कोई कार्य कर रहा हो तो गृहस्थी के कार्यों में उसका सहयोग करना चाहिए।  इसी प्रकार अगर कोई पति अपनी पत्नी के सहयोग से साधना कर रहा हो तो उसे साधना में सहयोग देना चाहिए। अर्थात जैसी परिस्थिति हो उसी अनुसार पत्नी को व्यवहार करना चाहिए। यह बहुत आवश्यक है। जीवनसाथी होने का वास्तविक अर्थ भी यही है जो जीवन भर का साथ निभाए, चाहे जैसी परिस्थिति हो जैसा कर्म हो उसी के अनुसार ही वह कार्य करें कभी भी अपने। हिसाब से दोनों अलग-अलग सोच ना रखें। इसीलिए मैं तुमसे कह रहा हूं कि यह वक्त सही नहीं है। जब इस कार्य का वक्त आएगा तब तुम्हें किसी भी प्रकार से संतुष्ट करना मेरा कर्तव्य होगा तो वह कहने लगी जैसी आपकी आज्ञा। इस कीड़े की वजह से आपकी साधना और ब्रह्मचर्य नष्ट हो जाता। इसी कारण से मैं आपसे क्षमा याचना करती हूं। आप निश्चिंत होकर जब तक चाहे तब तक अपनी साधना करते रह सकते हैं। इस प्रकार कलश उस उस परीक्षा में सफल रहा और ऐसे ही। कई गुप्त नवरात्रि उसकी बीतती चली गई। उसे अपने कान में विभिन्न प्रकार के स्वर सुनाई देने लगे थे। जो कि अलग-अलग तरीके से उसके कान में स्पंदन करते थे। इससे यह तो स्पष्ट हो चुका था कि यह साधना उसकी सिद्धि की तरह बढ़ती चली जा रही है। लेकिन किसी कमी के कारण यदि जल्दी नहीं मिल पा रही है। गुरु का भी कहना था कि कोई भी साधना सिद्धि में इतनी आसानी से सफलता नहीं मिलती है। इसी कारण से साधक को लंबे समय तक उस कार्य को तत्परता से करते रहना चाहिए। समय बीतता गया ऐसे ही एक अन्य गुप्त नवरात्रि का समय था।

चंद्रा! इसी प्रकार अपने पति की सेवा में व्यतीत थी कि तभी! उसका पति उससे कहता है सुनो मेरे लिए थोड़ा जल लेकर आओ मैं साधना करने से पहले जल पी लेना चाहता हूं क्योंकि मुझे पसीना बहुत आने लगा है। इसके कारण कहीं सिद्धि मिलने में कोई समस्या ना आ जाए और मैं बीच में सही से मंत्रों का उच्चारण भी कर पाऊं।

यह बात कलश को बिल्कुल पता थी कि अवश्य ही कुछ समय के भीतर ही उसे अब सिद्धि मिल जाएगी। इसके लक्षण उसे आने लगे थे। यह बात समझते हुए वह चंद्रा कहती है, ठीक है। मैं अभी बाहर से जल लेकर आती हूं। आप थोड़ा इंतजार कीजिए। अभी मैं तुरंत ही आपके लिए जल लेकर आ रही हूं और जैसे ही चंद्रा थोड़ी दूर गई। अचानक से उसके चीखने की आवाज बहुत तेजी से आने लगी। वह बचाओ बचाओ कह रही थी। हे नाथ मुझे बचाओ! इस प्रकार स्वर सुनकर।

कलश में तुरंत निकल कर देखा। तो ऐसा लगा जैसे कि कोई उसकी पत्नी का अपहरण करके ले कर जा रहा हो? यह कोई जानवर भी हो सकता है या फिर कोई इंसान भी? तब कलश ने। तुरंत ही।

अपना एक हथियार तलवार निकाली और तेजी से उस स्वर को सुनकर उसकी ओर दौड़ने लगा। वह स्वर इतना ज्यादा तीव्र था कि उस ओर जाना आसान हो जा रहा था।

यह बात समझ गया था कि अवश्य ही उसकी पत्नी कोई भारी संकट में है। लेकिन यह बात भी अजीब थी कि उसकी पत्नी का स्वर इतना तीव्र उसे सुनाई दे रहा था। कि उसके पीछे भागना आसान था। कि तभी वह पास के ही एक श्मशान भूमि में पहुंच जाता है। और तब जब वहां पहुंच कर देखता है तो उसकी पत्नी चिता पर बैठी हुई थी। उसके शरीर पर बहुत कम वस्त्र थे। ऐसा लगता था जैसे कि उन्हें फाड़ कर फेंक दिया गया हो। और उसे जंजीरों में जकड़ कर चिता के ऊपर बैठाया गया था। इस प्रकार का नजारा। देखकर वह बहुत चिंतित हो गया। वह तीव्रता से उस और दौड़ कर गया। लेकिन उसने एक चमत्कार घटित होते देखा!

उस श्मशान भूमि में जिस जगह पर चिता के ऊपर उसकी पत्नी को जलाने के लिए बैठाया गया था उसके चारों तरफ एक। रक्षा घेरा जैसा बनाया गया था। यह रक्षा खेरा तुरंत ही अग्नि की लपटों की तरह प्रज्वलित हो गया।

इससे? और भी ज्यादा आश्चर्य अब कलश को हुआ। कलश सामने से देखते हुए भी अपनी पत्नी तक नहीं पहुंच सकता था। वह उस रक्षा घेरे की चारों तरफ चक्कर मारने लगा।

मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था। कि तभी? वह पुरुष जो कि इसी स्त्री का पूर्व पति था, वहां पर खड़ा हुआ हंसता हुआ नजर आया। यह देखकर कलश को समझ में आ गया। कि अवश्य ही किसी ने मेरी पत्नी का अपहरण किया है और यही इसे लेकर के यहां पर आया है ताकि अपना बदला शायद यह ले सके, लेकिन शायद इसमें किसी तरह के तंत्र का प्रयोग किया है।

तब वह कहने लगा, अब तू इसे नहीं बचा सकता है।

कोई शक्ति इसे नहीं बचा सकती है। हां, एक कार्य तू कर सकता है। अगर तू इसके साथ चीता में बैठ जाए तो इसकी रक्षा हो सकती है क्योंकि तंत्र विद्या के अनुसार इसका पति ही इसके साथ बैठकर इसकी रक्षा कर सकता है। लेकिन इससे शायद तू ही ना बचे क्योंकि अगर तुझ में और इसमें। प्रेम का अभाव हुआ या किसी वजह से दोनों का एक दूसरे पर भरोसा नहीं हुआ तो यह तंत्र काट कार्य नहीं करेगी और तुम दोनों ही चिता में जलकर भस्म हो जाओगे। यह कहकर! वह ब्राह्मण फिर से हंसने लगा। आपको यह बात गलत को समझ में नहीं आई। उसने कहा, तुम ऐसा क्यों कर रहे हो मेरी यह पत्नी है? जब यह तुम्हारी पत्नी थी तब बात दूसरी थी। अब यह मेरी पत्नी है इसलिए इस पर तुम्हारा कोई हक नहीं है। और इसे? प्राप्त करना या इसे दंड देना तुम्हारे लिए बिल्कुल भी अच्छा नहीं है। इससे तुम महा पाप के भागीदार बनोगे। तब वह कहने लगा अच्छा चल तेरी पत्नी से पूछते हैं।

तो वह! चंद्रा से कहने लगा। बताओ! इसी सच्चाई बताओ कि तुम कौन हो? क्या तुम इसकी पत्नी हो? या कुछ और हो? अगर तुमने झूठ बोला? तो भी तुम यहां पर भस्म हो जाओगी। यह तंत्र विद्या से बनाई गई चिता है।

असत्य में केवल सत्य प्रवेश कर सकता है।

और यह मैंने इस प्रकार निर्माण कराई है कि अगर तुम्हारा और तुम्हारे पति का प्रेम सच्चा है तो यह चिता तुम्हें नहीं जलाएगी। अन्यथा तुम और तुम्हारा पति दोनों जलकर भस्म हो जाओगे। अब मैं तुम्हें जाने का मार्ग देता हूं। जाओ। कलश इस मार्ग से जाओ और चिता में अपनी पत्नी के साथ बैठ जाओ।

तभी तुम इसकी रक्षा कर पाओगे और कोई मार्ग नहीं है। तब कलश ने कहा, अगर तुमने मेरी पत्नी के साथ कुछ किया तो मैं सत्य प्रतिज्ञा करता हूं कि मैं तुम्हारा वध कर दूंगा। तब यह सुनकर ब्राह्मण हंसने लगा। उसने कहा, मैंने कहा ना यह माया विद्या मैंने एक बहुत पहुंचे हुए तांत्रिक से प्राप्त की है। मैंने बदला लेना ही था क्योंकि इसने मुझे धोखा दिया था।

इसे सबक सिखाना जरूरी था। अब ना तो तुम मुझ तक पहुंच सकते हो ना ही मुझे मार सकते हो बल्कि अगर तुम दोनों का प्रेम सच्चा नहीं हुआ जिसकी मुझे पूर्ण उम्मीद है क्योंकि यह तो पहले से ही चरित्रहीन है। तभी तो इसने इतनी जल्दी तुम्हारा चयन कर लिया था। इसीलिए मुझे विश्वास है कि मेरा बदला अब अवश्य पूरा होगा। देखो अग्नि धीरे-धीरे चिता में जलनी शुरू हो जाएगी। और सच में वहां पर उस चिता की अग्नि जलना शुरू हो जाती है।

जिससे। उसे भयंकर पीड़ा होने लगती है। चंद्रा चिल्लाने लगती है, मैं जल जाऊंगी। मुझे यहां से निकालो। तब? कलश के सामने कोई विकल्प नहीं था। कलश ने जो तांत्रिक मार्ग ब्राम्हण ने दिखाया था, उसी मार्ग से चलकर चिता की ओर जाना ही उचित समझा।

और अपनी पत्नी के साथ चिता में बैठने के अलावा उसके पास कोई अन्य विकल्प शेष नहीं था। अगर वह ऐसा नहीं करता तो निश्चित रूप से उसकी।

पत्नी की मृत्यु जलते हुए हो जाती।

तत्काल उसने सोचा। ठीक है जैसी माता की इच्छा अब मुझे यह कार्य तो संपन्न करना ही होगा। अगर यही मेरे भाग्य में था तो यही सही! और वह जाकर चीता में बैठ गया।

ब्राह्मण और जोर से हंसने लगा। और कहा चलो एक और सत्य जिसे सुनकर? तुम्हें बड़ा जोर का झटका लगेगा।

बता ही देता हूं लेकिन मजा तो तब आएगा जब यह बात स्वयं चंद्रा तुम्हें बताएं क्योंकि अब तुम मेरे तंत्र में पूरी तरह आ गए हो। और अब कोई व्यक्ति अगर झूठ या असत्य का सहारा लेगा, उसी क्षण चिता की अग्नि जलाने लगेगी और जलकर दोनों ही मारे जाओगे। इसीलिए मैं अब एक प्रश्न चंद्रा से पूछता हूं। बताओ चंद्रा! तुम कौन हो? और? तुम? इस व्यक्ति से क्यों जुड़ गई हो?

कलश ने कहा। मैं सब कुछ जानता हूं। इससे क्या पूछ रहे हो? तुम अभी भी अपनी पत्नी पर कितना शक करते हो जिसकी मुझे?

इतनी उम्मीद थी। कि तुम अब तक सुधर चुके होंगे क्योंकि ब्राह्मण कितने समय तक पापी रह सकता है?

वह ईश्वर की शरण में होने के कारण जल्दी ही शुद्ध हो जाता है। अपनी साधना पूजा पाठ से उसकी बुद्धि अवश्य ही खुल जाती है। पर ऐसा यहां पर तो कुछ दिखाई नहीं पड़ता। तुम कितने सिरफिरे व्यक्ति हो? तुम्हें अपनी पत्नी और उसके पति को जलाने में मजा आ रहा है।

तब?

ब्राह्मण ने कहा, मैंने कहा ना? अगर तुम दोनों सत्य कहोगे और सत्य पर टिकोगे तो तुम्हें यह अग्नि नष्ट नहीं कर पाएगी। इसीलिए तो मैंने कहा बताओ चंद्रा तुम्हारा वास्तविक! स्वरूप क्या है? तब कलश ने कहा।

ठीक है चंद्रा इस ब्राह्मण को बताओ। तुम कौन हो और हम लोग जल्दी ही इस चिता से बाहर निकल जाएंगे, तब चंद्रा रोने लगी और चंद्रा ने तब कहा कि मैं एक? चांडालिनी।

और शक्तिशाली पिशाचिनी हूं।

यह सुनकर कलश एकदम स्तब्ध रह गया।

ब्राह्मण जोर जोर से हंसने लगा।

और चिता की अग्नि! थोड़ी देर के लिए शांत हो गई अर्थात! चंद्रा ने बिल्कुल सत्य कहा था।

आगे क्या घटित हुआ जानेंगे हम लोग अगले भाग में तो अगर यह कहानी और जानकारी आपको पसंद आ रही है तो लाइक करें। शेयर करें सब्सक्राइब करें आपका दिन मंगलमय हो जय मां पराशक्ति।

कर्ण मातंगी सिद्धि और रहस्य कथा मोढेरा भाग 5

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