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कर्ण मातंगी सिद्धि और रहस्य कथा मोढेरा भाग 5 अंतिम भाग

कर्ण मातंगी सिद्धि और रहस्य कथा मोढेरा भाग 5 अंतिम भाग

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल में आप सभी का एक बार फिर से स्वागत है। कर्ण, मातंगी, सिद्धि और रहस्य कथा मोढेरा यह पांचवा और अंतिम भाग है। आज के इस वीडियो के माध्यम से हम जानेंगे कि कैसे कलश के जीवन में। जब उसे पता चला कि उसकी पत्नी एक चंडालिनी है तो आगे क्या घटित हुआ? जैसे ही यह बात सत्य सिद्ध हो गई, कलश अंदर तक हिल गया। उसे इस बात का बिल्कुल भी आभास नहीं था कि क्या उसकी ही पत्नी एक चांडालनी? और श्मशान में विचरने वाली एक शक्ति हो सकती है।

चांडाल शक्तियां शमशान की अतृप्त आत्माओं का भक्षण करती है। यह बात स्वयं चंद्रा ने उसे बताएं। चंद्रा ने उसे कहा, मुझे इस बात के लिए आपसे माफी मांगी है। लेकिन मुझे तो यह बात पहले से ही पता थी कि आप जैसा कोई योग्य ही मुझे प्राप्त कर सकता है।

इसीलिए मैं एक सुंदर स्त्री का स्वरूप धारण करके आपके साथ यहां आई थी। रही बात इस ब्राह्मण की तो इसे अब सबक सिखाना आवश्यक हो गया है। और तब चंद्रा ने कहा। हे ब्राह्मण देव नजदीक आइए। आखिर मैं आपकी पत्नी जो हूं।

तब वह ब्राम्हण बहुत जोर जोर से हंसता हुआ। कलश को देख कर मुस्कुराते हुए कहने लगा। देखा कलश आखिर हो गए ना बर्बाद! तुमने क्या सोचा कि यह स्त्री? कौन है? क्या तुम्हें कभी इस बात का आभास भी हुआ कि यह स्त्री तुम्हारे साथ इतनी आसानी से विवाह करने के लिए क्यों तैयार हो गई? चंद्रा ने कहा बेकार की बातें करना तुम बंद करो। पहले मेरे पास आओ मैं तुम्हें। अवश्य ही स्वीकार कर लूंगी। मैं तुम्हें वचन देती हूं कि अब तुम सदैव। मेरे पास ही रहोगे?

मेरे अंदर ही तुम्हारा निवास होगा और यह कहते हुए वह विशालकाय रूप में आ गई। उसकी सुंदर सी दिखने वाली पत्नी इतनी ज्यादा भयानक कुरूप और विशालकाय शक्तियों की स्वामिनी होगी। बिल्कुल यह बात कलश ने नही सोची थी। कलश यह सब देख कर अंदर तक हिल गया था।

उसकी पत्नी एक पिशाचीनी एक महाशक्तिशाली चांडालनी। हो सकती है यह उसने कभी सोचा भी नहीं था। और?

अपना मुंह बड़ा कर लिया और वहां की वायु को अपने अंदर ग्रहण करने लगी। तब जैसे ही उसने तीव्र हवाओं की शक्तियों को अपने अंदर लेना प्रारंभ कर दिया। चमत्कार घटित होने लगा। वहां उपस्थित विभिन्न प्रकार की आत्माएं विभिन्न प्रकार की अदृश्य शक्तियां सब उसके मुंह के अंदर प्रवेश करने लगे और वह हवा इतनी तीव्र थी और इतनी ज्यादा मायावी थी कि उस हवा का। जो झोंका था वह किसी भी पर्वत को हिला कर रख देता। इसी में ब्राह्मण देव भी फंस गए और उड़ते हुए सीधे चांडालनी के मुख के अंदर समा गए।

यह देखकर कलश स्तब्ध रह गया। कलश यह सारी बातें अपनी आंखों से देख रहा था। यह कैसी माया है और यह कितनी ज्यादा शक्तिशाली चंडालिनी शक्ति है, इसने तो ब्राह्मण को खा लिया है। ब्राह्मण को खाने के बाद चंडालिनी ने अपने विशालकाय स्वरूप में हंसने लगी। वह जोर-जोर से। चिल्लाते हुए कह रही थी। मेरा पेट भर गया है। मैंने एक ब्राह्मण को खा लिया है। यह बात! और भी ज्यादा खतरनाक थी कलश के लिए कलश ने सोचा जैसे यह ब्राम्हण को खा गई। एक दिन मुझे भी अवश्य खा जाएगी। इसकी शक्तियां मेरी समझ से परे है। गुरुदेव ने मुझे कैसे मार्ग में फंसा दिया है? अब मैं क्या करूंगा? यह! शक्तिशाली इतनी ज्यादा है कि मेरे जैसे व्यक्ति को एक क्षण में समाप्त कर सकती है। और अभी जो मैंने देखा, वह तो सच में बहुत विचित्र है। यह अपनी ही पति को खा गई। यद्यपि यह उस से प्रेम नहीं करती थी। लेकिन अगर यह इतनी ज्यादा शक्तिशाली थी तो फिर इसने पहले ही अपनी पति का वध क्यों नहीं कर दिया? पहले उसी क्यों नहीं खा गई यह सारे प्रश्न एक के बाद एक बहुत तेजी से कलश के मस्तिष्क में आ रहे थे। कल बार-बार इन बातों को लेकर परेशान हो रहा था। कि तभी वह! चंडालिनी कलश को देख कर कहने लगी।

महाराज! आप शायद मेरी इस दुर्लभ और खतरनाक स्वरूप को देखकर डर गए हैं। मैं आपसे क्षमा याचना करती हूं। मैं अब अपने फिर से सुंदर स्वरूप में आ रही हूं। और यह कहकर वह चंडलिनी दोबारा से बहुत सुंदर स्त्री के रूप में बदल गई और अपने पति के पास! फिर से आकर कहने लगी। आपको मेरी वजह से इतनी परेशानी हुई। इसके लिए मैं आपसे क्षमा याचना करती हूं। क्या करूं इस ब्राह्मण ने मुझे बहुत परेशान कर दिया था। इसी कारण से आखिरकार मुझे इसे अपने पेट में रखना ही पड़ा। अब मेरी भूख समाप्त हो गई है।

चलिए अब घर चलते हैं।

उसकी बात सुनकर कलश और भी ज्यादा डर गया। वह कुछ बोल नहीं पा रहा था। सिर्फ सुन रहा था।

तब कलश ने। धीरे-धीरे उसके साथ चलना शुरू कर दिया।

कि तभी वह कहने लगा। मुझे बहुत जोर से प्यास लगी है। क्या यहां कहीं पानी मिल सकता है? तब? चांडालनी ने कहा। ठीक है। आप बहने वाली नदी से पानी पी लीजिए। और उस नदी का पानी बहुत ही उत्तम है।

तब? कलश ने कहा, ठीक है! देवी चंद्रा आप यहां आराम कीजिए, मैं अभी पानी पी कर आया। चंद्रा वहीं बैठ गई और कलश जाकर नदी के समीप पहुंच गया। और घबरा कर उसने अपना चेहरा देखा। उसे यह लग रहा था कि उसकी मृत्यु निश्चित है। इसलिए उसने तुरंत ही नदी में छलांग लगा दी और नदी पार करने लगा। उसने सोचा था, यही एकमात्र रास्ता है जिसके माध्यम से वह इस चंडालिनी से बच कर आगे निकल सकता है।

और तभी इसके प्रभाव से वह मुक्त हो सकता है। भागकर वह अवश्य अपने गुरु के पास जाएगा और उनसे पूछेगा। आप यह कैसी साधना मुझे करवा दिए हैं जिसके कारण मेरे जीवन में इतना संकट आ गया है। लेकिन जैसे ही नदी पार कर वह दूसरे किनारे पर पहुंचा।

सामने चंद्रा बैठी हुई उसे मिली।

तब चंद्रा ने कहा आपको?

वास्तव में बहुत दिन हो गए थे बिना नहाए हुए? इसलिए आपको नहाना आवश्यक था, ठीक है चलिए! अब घर चलते हैं।

एक बार फिर से कलश! बिना कुछ कहे उसके साथ चलने लगा।

उसे यह बात तो स्पष्ट रूप से पता थी। की? इसके सामने कुछ भी उसकी नहीं चलने वाली है।

चंडालिनी उसे। उस जगह तक लेकर आ गई जहां वह साधना किया करता था। तब चंडालिनी ने कहा।

अब क्योंकि आपको मैं प्राप्त हो चुकी हूं। मैं स्वयं सिद्धि ही हूं। इसीलिए अब आप अपनी साधना को बंद कर दीजिए। आप जो भी मुझे आज्ञा देंगे, मैं पूरी करूंगी। मैं आपको वचन देती हूं कि आप की सिद्धि बंन कर मैं आपके साथ रहूंगी।

कलश यह सारी बातें सुनकर आश्चर्य में तो पहले से ही था। अब और भी ज्यादा घबराने लगा। उसने कहा, मुझे तुम्हारी जैसी शक्ति नहीं चाहिए।

क्योंकि मैंने तो यह कभी नहीं सोचा था कि मेरे साथ ऐसा कुछ घटित होगा। मैंने आपसे विवाह भी आपकी रक्षा के लिए किया था। अगर मुझे पता होता कि आप इतनी ज्यादा बलशाली है तो मैं आपसे विवाह नहीं करता।

आप मुझे क्षमा कीजिए। आप यहां से चली जाइए। मैं आप को मुक्त करता हूं। विवाह के बंधन से और मैं अब फिर से साधना करूंगा। मुझे देवी को प्रसन्न करना है।

चंडालिनी ने कहा, ठीक है, किंतु मैंने आपसे विवाह किया है। और अभी तक मैंने आपके साथ सुहागरात भी नहीं मनाई है। इसलिए मुझे विदा करने से पहले कम से कम मुझे संतुष्ट कर के तो भेजिए जैसे कि आपने काफी पहले मुझसे वादा किया था।

यह सुनकर! कलश और भी ज्यादा घबरा गया। उसने नहीं सोचा था कि एक भयानक स्वरूप वाली चांडालनी। के साथ उसको शारीरिक रूप से जुड़ना पड़ेगा।

तब उसने कहा, मुझे माफ कीजिए। लेकिन चंडालिनी ने कहा। आपको यह तो करना ही होगा। अन्यथा। मेरा और आपका रिश्ता टूट जाता है। और अगर हम दोनों का रिश्ता! टूट गया तो फिर आप मेरे पति नहीं रहे और अगर आप मेरे पति नहीं हैं तो मैं फिर आप का भक्षण करूंगी। क्योंकि आप मेरा सत्य जानते हैं?

तब यह सुनकर! कलश!  जैसे उसके प्राण उसके हाथों में आ गए हो?

वह अंदर से कांपने लगा।

तब उसने कहा। ठीक है आपकी जो इच्छा आपके लिए। किंतु आप? मुझे! अपने जीवन से अलग कर दीजिए। तब चंडालिनी हंसने लगी। कहने लगी, ठीक है चलिए आप मंत्र का जाप करते रहिएगा। और मैं बाकी सब कुछ स्वयं कर लूंगी।

तब वह बैठकर जाप करने लगा।

और?

चंद्रा उसके गले लग गई। उसने कहा कि आप? बस मंत्रों का जाप कीजिए, बाकी सारी क्रिया मैं करूंगी। और वह उसके साथ रतिक्रिया करने लगी।

इसमें अद्भुत आनंद की प्राप्ति कलश को होने लगी। कलश ने कभी नहीं सोचा था कि ऐसा कुछ भी उसके साथ हो सकता है। उसने! संतुष्ट होकर कहा देवी आपने तो मेरे अंदर ऊर्जा का संचार भर दिया है।

मैं?

गलत सोच रहा था? आप? मेरी शक्ति है मुझे आभास हो रहा है। अब वास्तविकता से मेरे साथ ही जुड़ जाइए। यह सुनकर खुश होकर सामने वह चंडालिनी अपनी विशालकाय स्वरूप में फिर से प्रकट हो गई और हंसकर कहने लगी। आप की परीक्षा में आप सफल रहे हैं। आपने?

मुझे स्वीकार कर लिया।

देवी की आराधना करते वक्त देवी की सेविका होने के कारण उन्होंने ही मुझे आपकी परीक्षा लेने के लिए भेजा था। उन्होंने कहा था कि अगर यह तुम्हारी सारी परीक्षा में सफल रहा तो तुम! इससे सिद्ध हो जाना। देवी मातंगी ही अपने स्वरूप की शक्तियों को अपनी सेविका शक्तियों को अपने साधकों के पास भेज देती हैं। उनकी सिद्धि के रूप में मैं भी आप ही की सिद्धि हूं। अब मैं आपके शरीर के। एक! कर्ण में बात करूंगी।

आपके कान में हमेशा मेरा निवास होगा। आप चाहें तो मुझे पत्नी के रूप में अपने कान से बाहर निकाल भी सकते हैं। और चाहे तो हमेशा मुझे अपने कान में रख सकते हैं। आप मुझसे जो कुछ भी पूछेंगे, मैं उसका सही और सटीक उत्तर दूंगी। आप काम परीक्षा, क्रोध परीक्षा और वाममार्गी! कुंडली जागरण शक्ति तीनों में सफल रहे हैं।

मैंने आपकी शुरू से परीक्षा ली है। वह ब्राह्मण भी एक पिशाच था।

वह मेरा ही सेवक है।

इस प्रकार अब मैं आपके जीवन में सदैव आपके कर्ण में निवास करूंगी। और आप?

अगर! किसी अन्य स्त्री से विवाह करेंगे तो मेरी सिद्धि चली जाएगी। मुझे आपको छोड़ कर जाना होगा। अन्यथा मैं आपकी पत्नी बनकर आपके कान में हमेशा निवास करूंगी। यह सुनकर अब! कलश को सच में अच्छा लग रहा था कि यह सारी माया केवल उसकी परीक्षा ही थी जो शुरुआत से ही। उसके साथ चली जा रही थी। कलश धीरे-धीरे बहुत प्रसिद्ध हो गया। समस्त समाज में उसे।

एक महान ज्योतिषी के रूप में जाना जाने लगा। वह सभी के प्रश्नों का सही और सटीक जवाब देता था। कलश ने कभी भी विवाह नहीं किया। इस प्रकार चंडालिनी उसकी पत्नी बनकर सदैव उसके साथ रात्रि में साकार रूप लेकर रहती थी और सारे दिन उसके कान में निवास करती थी। यह थी कर्ण मातंगी सिद्दीकी रहस्य कथा।

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