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कर्ण मातंगी सिद्धि और रहस्य कथा मोढेरा भाग 1

कर्ण मातंगी सिद्धि और रहस्य कथा मोढेरा

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल में आप सभी का एक बार फिर से स्वागत है। आज हम एक बार फिर से मठ और मंदिरों की कहानी के साथ-साथ देवी के कर्ण मातंगी। स्वरूप की सिद्धि और साधना के पीडीएफ को भी लेकर उपस्थित हुए हैं तो इस कथा में हम लोग माता मातंगी के रहस्य को जानेंगे। साथ ही पीडीएफ इंस्टामोजो में मैंने उपलब्ध करवाया है ताकि भविष्य ज्ञान की सिद्धि अगर कोई प्राप्त करना चाहता है तो इन माता के स्वरूप को प्रसन्न करके प्राप्त कर सकता है। यह कथा असल में मोड ब्राह्मणों की कुलदेवी की कथा के रूप में शुरू होती है। एक कलश नाम का व्यक्ति जो की तंत्र विद्या में निपुण होना चाहता था। माता मातंगी से बहुत ज्यादा प्रभावित था। उस वक्त उसकी नगर में एक विद्वान ब्राह्मण रहा करते थे। वह उनके पास जाता है और माता मातंगी के रहस्य को जानना और समझना चाहता है। तब माता मातंगी के विषय में उसे और भी ज्यादा जानकारी प्राप्त करना आवश्यक था। इसलिए विद्वान ब्राम्हण ने उसे कहा कि तुम्हें मोड़ ब्राह्मणों की कुलदेवी जो कि मोहकपुर में निवास करती हैं और उन्हें मोढेरा के रूप में मातंगी स्वरूप में पूजा जाता है। आप वहां जाइए। उनके बारे में सारा ज्ञान आपको वहीं से प्राप्त हो जाएगा। तब? कलश नाम के इस विद्वान व्यक्ति ने यह सोचा कि अगर आपको उनके विषय में अच्छी जानकारी है तो मुझे बताइए तो वह कहते हैं कि मैं इस संबंध में जितना जानता हूं, मैं तुम्हें बताता हूं।

कहते हैं ब्रह्मा जी ने स्वयं। के मुख से श्री माता के इस स्वरूप को प्रकट किया था। मोहकपुर में बसे हुए ब्राह्मणों की रक्षा हेतु श्री माता की स्थापना की गई थी। माता के हाथों में पुस्तक कमंडल श्वेत वस्त्र और देवी के रूप में पूजी जाती हैं। श्री माता की रक्षा कवच में वास करते ब्राह्मणों को सैकड़ों वर्ष बीत गए थे। वहां एक कथा देखने को मिलती है। एक कर्नाट नाम का राक्षस हुआ जो ब्राह्मणों को बहुत परेशान करता। उनकी यज्ञ पूजा इतिहास में भारी विघ्न उत्पन्न करता था तो इससे थक हार कर ब्राम्हण श्री माता के पास पहुंचे। उन्हें प्रसन्न किया तब उन्होंने राक्षसों के बाद का वचन दिया। माता ने फिर यही मातंगी मुंडेश्वरी रूप में अवतरित हुई और देवी मां मातंगी। लाल रंग के वस्त्र धारण करती सिंह पर सवारी करती और। लाल रंग की पादुका लाल माला धारण करती उनके हाथों में खड़क कुल्हाड़ी, शंख, पाश, कटार, क्षेत्र, त्रिशूल, मद्य पात्र, अक्षमाला, शक्ति, तोमर और महाकुंभ इत्यादि था और वह श्वान यानी कि कुत्ते को अपने साथ रखती थी। मातंगी का यही स्वरुप मोढेश्वरी माता के रूप में आज भी साक्षात विद्यमान है। मातंगी के ऐसे स्वरूप को देखकर कर्नाटक राक्षस देवी के पास आया, लेकिन देवी ने उसे ललकार कर अंत में उसका वध कर दिया। कहते हैं विशेष रूप से माघ मास की कृष्ण तृतीया के दिन मातंगी की वट वृक्ष के नीचे पूजा करने का विशेष प्रभाव है। इतना ही नहीं यहां की एक अन्य कथा अनुसार  भगवान श्री राम रावण को मारकर जब उन्हें ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति हेतु कुल गुरु वशिष्ट से उन्होंने पूछा, तब कुल गुरु वशिष्ट ने उत्तर दिया। आप तो स्वयं भगवान के अवतार हो, लेकिन फिर भी आपको इस विधि को मनुष्य रूप में करना चाहिए।

पृथ्वी पर धर्मरान्य नाम का एक श्रेष्ठ तीर्थ है। वहां यमराज सूर्य शनि संध्या ने भी तप किया था। यह स्थान ब्रहम हत्या से निवृत्ति हेतु श्रेष्ठ माना जाता है। प्रभु श्री राम फिर पूरे परिवार के साथ वहां प्रवेश करते हैं कि तभी विमान हाथी घोड़े अचानक रुक जाते हैं। तब भगवान श्रीराम ने वशिष्ठ से पूछा तो कुल गुरु वशिष्ठ ने बताया कि पैदल चलकर ही जाना है। यहां से क्योंकि यहां कोई राजा नहीं चल सकता है। सभी सामान्य जनता ही हो पाएंगे क्योंकि यहां पर माता मातंगी का वास है। तब भगवान श्रीराम ने स्वर्ण नदी के किनारे विशाल पड़ाव डाला और अपने विमान घोड़े और हाथी को रोका नदी में स्नान विधि करी पैदल चलकर माता जी के दर्शन किए देवी की अनुशंसा से धर्मरान्य का जीर्णोद्धार करवाया कि राम ने त्रिमूर्ति अर्थात ब्रह्मा विष्णु महेश की आराधना की। तीनों की कृपा से वहां भव्य मंदिर का निर्माण किया और भगवान श्रीराम ने ब्राह्मणों को उस वक्त 55 गांव दान में दिए थे। इस प्रकार श्रीराम ने धर्म रान्य के प्रधान से एक खड़क और दो चम्मर भी वहां भेंट किए थे। यह इस प्रकार से क्षेत्र विभिन्न प्रकार से बौद्ध और वैष्णव धर्म के लिए अत्यंत ही उपयुक्त स्थान था। पूजा-पाठ और साधना इत्यादि करने के लिए। फिर इस स्थान पर ही देवी के इस स्वरूप को तभी से स्थापित मान लिया गया। आपको अगर वहां जाना है तो आप यह बात समझ सकते हैं कि यह स्थान मूल रूप से मोड़ ब्राह्मणों का है, जिनके इष्ट देव श्री राम है। उन्होंने ही हनुमान जी को मोड़ समाज की रक्षा हेतु मातंगी के निवास स्थल पर मोढेरा संरक्षक के रूप में भी नियुक्त किया था। मोड़ समाज की कुलदेवी मातंगी मानी जाती हैं। और यह मोड विद्वान ब्राह्मण मूल रूप से गुजरात के निवासी हैं। आपको वहां जाना चाहिए। वहीं पर आपको देवी की विभिन्न प्रकार के स्वरूपों के विषय में जानकारी मिलेगी और वहां जाकर आप विभिन्न प्रकार से माता की कृपा को प्राप्त कर पाएंगे। माता का एक स्वरूप है जिसे हम कर्ण मातंगी के रूप में भी जानते हैं। देवि का यह आंशिक स्वरूप है और इसके माध्यम से आप कर्ण पिशाचिनी साधना की तरह ही इन्हें सिद्ध करके इनसे कुछ भी जान सकते हैं। यह आपको भूत भविष्य वर्तमान सभी प्रकार की विद्याओं में निपूण बनाकर उस रहस्य को बताती है जो प्रश्न आप इन से पूछते हैं। देवी मातंगी राजमाता कहलाती हैं और इस 10 विद्या, महाविद्याओं में से एक मानी जाती हैं। देवी को अगर तुम प्रसन्न कर पाए तो अवश्य ही तुम्हारा कल्याण होगा। जाओ अब यहां से तुम सीधा। मोढेरा मोहनपुर में ब्राह्मणों के पास जाओ। वहां तुम्हें कोई ना कोई विद्वान ब्राम्हण अवश्य मिलेगा।

इस प्रकार कलश वहां से चला गया और मोहक पुर में बसे हुए सभी विद्वान ब्राह्मणों के बातों से चर्चा करता हुआ अंततोगत्वा एक विद्वान ऋषि के पास पहुंचा जिन्होंने जंगल में अपनी कुटिया बनाई हुई थी। लोग उनके पास प्रश्न पूछने के लिए आते रहते थे और वह सटीक उत्तर देकर सभी का कल्याण करते थे। वह पूरी तरह से बैरागी और एकांत में रहा करते थे। तब कलश उनके पास पहुंचा उनको प्रणाम किया। उनकी सेवा में लग गया। उनके लिए भोजन पानी, लकड़ी इत्यादि की व्यवस्था करता। यह बात उस महान ऋषि को समझ में नहीं आई कि यह व्यक्ति उनकी सेवा बिना कुछ बोले क्यों कर रहा है जब वह उससे पूछते तो वह कहता कि अभी आप की सेवा करना ही मेरा उद्देश्य है। अगर मैं इस लायक हुआ तो आप अपने श्री मुख से मुझे कुछ ना कुछ अवश्य ही देंगे इस पर। समय बीतता गया और एक दिन जब वह उसके लिए भोजन हेतु सामग्री अर्पित कर रहे थे और उससे कह रहे थे। तुम भी खाना खाओ, तब वह कहता है पहले गुरु जी आप खा लीजिए। मुझे 1 वर्ष हो गया है। इसलिए पहले गुरु खाए तभी शिष्य खाएगा तब?

प्रसन्न होकर उस ऋषि ने कहा, मैंने इतने दिनों से तुम्हारी इस प्रकार की सात्विक सेवा को देखा है जैसा आजकल देखने में नहीं आता है। कोई ना कोई व्यक्ति मेरे पास कुछ ना कुछ स्वार्थ लेकर ही आता है। हो सकता है, तुम भी आए हो लेकिन तुमने स्वार्थ को तिलांजलि देकर सबसे पहले गुरु सेवा की है। इसीलिए मैं तुमसे प्रसन्न हो चुका हूं। अब मैं तुम्हें मनोवांछित वरदान देना चाहता हूं। बताओ यहां क्यों आए हो और क्या उद्देश्य है। मैं अवश्य ही तुम्हारी सहायता करूंगा इस प्रकार कहने पर। वह व्यक्ति कलश बहुत प्रसन्न हुआ। तब उसने कहा गुरु जी अगर आप मुझ पर प्रसन्न है और 1 वर्ष तक मैंने जो आपकी सेवा की है इस बात से आप पूरी तरह संतुष्ट हैं तो मुझे। कर्ण मातंगी विद्या प्रदान कीजिए।

इस विद्या के माध्यम से मैं लोगों का भला स्वयं का भी भला और गोपनीय रहस्य को जानना चाहता हूं। इसीलिए आप की कृपा से मैं इस क्षेत्र में आगे बढ़ना चाहता हूं। अगर आप मुझे इस लायक समझते हैं तो प्रसन्न होइए और मुझे यह विद्या सिखाइए। इस प्रकार अनुनय विनय करके और। अपनी श्रेष्ठ सेवा के कारण वह ऋषि पूरी तरह प्रसन्न हो चुके थे और कलश से कहते हैं। तुमने निश्चल भाव से मेरी सेवा की है। तुम शिष्य होने के पूरी तरह काबिल हो। मैं तुम्हें यह विद्या प्रदान करता हूं। लेकिन इसमें तुम्हारी जो परीक्षा होगी उसके लिए तुम सदैव तैयार रहना, क्योंकि कोई भी देवी। जब तक साधक उपयुक्त नहीं लगता तब तक उसे सिद्धि प्रदान नहीं करती हैं। मुझे देखो मुझे भी इस साधना में 5 वर्ष लगे थे। लेकिन देवी की कृपा अब ऐसी है कि संसार में कोई प्रश्न नहीं है जो मैं नहीं जान सकता। उसका उत्तर मेरे लिए निकालना केवल एक क्षण की ही बात होती है। देवी मातंगी की कृपा से अद्भुत रहस्य खुलते जा रहे हैं।

तब? कलश ने कहा गुरुदेव इस परीक्षा में। मुझे क्या क्या सावधानी रखनी होगी? तब उन्होंने कहा। ठीक है शरीर में जो इंद्रियां होती है। वही विषय के स्थान माने जाते हैं।

इन विषयों को व्यक्ति सुख के रूप में ग्रहण करता है। आज से भूल जाओ। तुम्हें किसी भी इंद्री से कोई सुख ग्रहण नहीं करना है। अगर तुमने यह कर लिया तो तुम सफल हो जाओगे।

तब कलश ने कहा, मैं तैयार हूं। आपकी हर प्रकार की परीक्षा में मैं उत्रीर्ण रहूंगा। यह मुझे विश्वास है और आप मुझे इस मंत्र की दीक्षा विधि प्रदान कीजिए। तब उस ऋषि ने कलश को वह गुप्त विद्या प्रदान की।

कर्ण मातंगी सिद्धि और रहस्य कथा मोढेरा भाग 2

यह साधना विधि मैंने इंस्टामोजो पर उपलब्ध करवा दी है। आप चाहें तो इसे इंस्टामोजो में जाकर वहां फॉर्म भरकर खरीद सकते हैं और फिर उसे पीडीएफ के रूप में डाउनलोड करें। ई-मेल पर भी आपके लिंक अवश्य आता है ताकि उसे डाउनलोड करने में आपको समस्या ना हो आगे की कथा हम लोग जानेंगे अगले भाग में। तो अगर आपको जानकारी और कथा पसंद आई है तो लाइक करें। शेयर करें सब्सक्राइब करें आपका दिन मंगलमय हो जय मां पराशक्ति।

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