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कामरूप मे अनुरागिनी यक्षिणी साधना भाग 2

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। कामरूप में अनुरागिनी यक्षिणी साधना भाग 1 में अभी तक आपने जाना। कि मनोहर नाम के एक व्यक्ति को एक यक्षिणी अपना प्रेम देती है जिसके कारण वह उसकी सिद्धि करने के लिए कामरूप तक पहुंच जाता है। वहां गुरु उसे उसके बारे में सब कुछ बताते हैं। अब मनोहर की सिद्धि की शुरुआत करने का समय हो चुका था। आगे जानते हैं आगे क्या घटित हुआ?

मनोहर अपने गुरु से कहता है अब मुझे साधना को शुरू करने का मार्ग बताइए। मैं आज से ही साधना शुरू करना चाहता हूं। इस पर उनके उस महान ऋषि गुरु ने कहा। इससे पहले तुम इस साधना को शुरू करो। यह जान लेना आवश्यक है कि साधना में प्रयुक्त होने वाली सारी सामग्री तुम्हारे पास है अथवा नहीं। मनोहर कहता है गुरुदेव जो बातें आपने मुझे अनुरागिनी के विषय में बताई हैं, वह सारी चीजें मेरे पास तो उपलब्ध है। अब मुझे कुछ नहीं करना है। इस पर उसका गुरु कहता है कि नहीं अभी तुम्हें अनुरागिनी की जो मूर्ति बनानी है, उसके लिए आवश्यक होता है कि तुम्हें वहां जाना पड़े और उसकी आज्ञा लेनी पड़े।

इस पर मनोहर कहता है किस प्रकार मुझे आज्ञा लेनी होगी और कहां जाना होगा? अब जब मनोहर अपने गुरु की बात सुनता है तो बहुत भौचक्का रह जाता है। क्या यह करना होगा मुझे गुरुदेव? इस पर गुरुदेव कहते हैं, अवश्य ही तुझे यही करना होगा। मनोहर कहता है गुरुदेव मैं ऐसा नहीं कर सकता मैं कैसे वैशाली के पास जाऊंगा? गुरु कहते हैं तुम्हें वहां जाना ही होगा और उसकी सेवा करनी होगी। तभी वह तुम्हें सब कुछ प्रदान करेंगी। मनोहर! परेशान हो जाता है, गुरु कहते हैं बिना समर्पण के कोई विद्या काम नहीं आती है। इसलिए जाओ तुम्हें तुरंत ही वैशाली के पास जाना है।

मनोहर अपनी इच्छा को पूरी करने के लिए अपने गुरु की आज्ञा मान लेता है। मनोहर नगर निवासियों से पूछता हुआ वैशाली के घर तक पहुंचता है। वैशाली के भवन में बड़े-बड़े! राजा महाराजा और साहूकार सभी आते थे। वैशाली का भवन अत्यंत उत्तम था। मनोहर! घृणित मन से वैशाली को दूर से देखता है और कहता है मुझे वैशाली के पास आना क्यों पड़ा है? गुरु ने मुझे परेशान कर दिया। अब मैं कैसे इस स्त्री को अपने कार्य के लिए मना लूंगा? मनोहर बहुत ही परेशान था, किंतु जब गुरु की आज्ञा होती है तो शिष्य मना नहीं कर सकता। मनोहर के साथ भी यही बात थी। अगर उसे अपनी साधना में आगे बढ़ना था तो वैशाली को प्रसन्न करना ही पड़ेगा। मनोहर अंदर गया।

वहां खड़ी अनेक सुंदर स्त्रियों से कहने लगा। देवियों मुझे! आपकी रानी वैशाली से मिलना है। कहां मुझे मिलेंगी वह वैशाली? इस पर वहां खड़ी बहुत सारी स्त्रियां उसे देखकर आश्चर्य में पड़ जाती हैं। क्योंकि ऋषि वेशभूषा में वह व्यक्ति वहां पर आया था। आखिर किसी ऋषि जैसी वेशभूषा वाले व्यक्ति का उनके यहां क्या काम? सभी हंसने लगती हैं। कहती हैं क्या तुम्हें भी शारीरिक सुख नहीं मिल पा रहा है? साधना करते करते क्या थक गए हो? जो हम सब के पास आए हो। मनोहर! मन ही मन बहुत कुछ सोचता है, लेकिन अपने चेहरे पर किसी प्रकार के भाव नहीं आने देता। मुस्कुराते हुए उन सभी स्त्रियों को प्रणाम करते हुए कहता है।

मुझे केवल आपकी देवी वैशाली की आवश्यकता है। उन तक पहुंचने का मार्ग बताइए। मैं उनको जाकर अपने हृदय की सारी बात बता देता हूं। दूर खड़ी हुई वैशाली सारी बातें सुन रही थी। वैशाली ने अपनी उन सहायिकाओं को आदेश दिया कि वह उसे उसके पास लेकर चले जाएं। मनोहर! वैशाली के पास जाता है, उन्हें प्रणाम करता है और कहता है कि – मुझे साधना करने के लिए यह विशेष कार्य करना होगा। क्योंकि मैं एक विशेष प्रकार की यक्षिणी की साधना करना जा रहा हूं। इस पर वैशाली हंसते में कहती हैं ऐसे कैसे मैं आपकी मदद कर दूं। पहले आपको मेरी सेवाएं करनी होंगी। आपको मुझे गुरु मान करके मेरी सारी बातों को मानना होगा।

मनोहर अब बड़ी मुसीबत में फंस चुका था। स्त्रियों के बीच रहकर और यह सब चीजें देखने के लिए वह मजबूर था। नगरवधू और उसका वेश्यालय, उस वक्त बहुत ही प्रसिद्ध हुआ करता था। नगरवधू नगर की सबसे सुंदर स्त्री मानी जाती थी। जोकि। वेश्यालय की सबसे बड़ी संरक्षिका होती थी। वैशाली भी वैसी ही थी। वैशाली एक महत्वपूर्ण और ताकतवर नगरवधू थी। उसके पास कई सैनिक और बहुत सारी स्त्रियां थी। इसलिए उसका रुतबा किसी से कम नहीं था। मनोहर के सामने अब कोई और विकल्प नहीं था। उसे उसकी सेवा करना आवश्यक था। वह प्रत्येक कमरे में जाकर जल रखता। विभिन्न प्रकार की सेवाएं उन सभी स्त्रियों को प्रदान करता।

भोजन बनाने से लेकर के वहां के सभी प्रकार के प्रबंधन कार्यों को उसे 7 दिन तक करना आवश्यक था। मनोहर को 7 दिन वहां रहना अब आवश्यक हो गया था। 7 दिन में ऐसे ऐसे दृश्य देखता। जिन्हें देख कर के वह अचंभित रह जाता। काम भावना का एक ऐसा उद्गार उसके मन में पैदा होता।वह सोचता कि यौवन सुख मुझे भी प्राप्त करना चाहिए। किंतु उसी क्षण उसके गुरु की कही हुई बात उसे याद आती। कि उस स्थान पर जाना अवश्य लेकिन उस मोह माया में फसना नहीं। क्योंकि सिद्धि का पहला चरण यहीं से शुरुआत करता है। मनोहर को बाहर रहना पड़ा। वह स्त्रियॉं को संभोग करते देखता था। वैश्यालय में शराब पीकर आते हुए पुरुषों को उनकी गलत हरकतों को देखता था। ऐसे माहौल में। उसके पास अब और करने को कुछ नहीं था।

वह सोचता कब मुझे इस नरक से मुक्ति मिलेगी? स्त्रियां! उसके पास आकर उसे छेड़ कर चली जाती। किंतु वह करता भी क्या उनके हंसी मजाक को मुस्कुरा कर सह लेता था क्योंकि उसके पास और कोई विकल्प नहीं था। गुरु की आज्ञा थी कि 7 दिन तक वहां पर वैशाली की सेवा करना आवश्यक है। तभी 7 दिन बाद वह तुम्हें वही वस्तु प्रदान करेगी, जिसको लेने के लिए तुम वहाँ गए हो। इस प्रकार से धीरे-धीरे करके 7 दिनबीत गए मनोहर वैशाली से बोला वह सामग्री प्रदान कीजिए। इस पर वह उसे आंगन में ले जाती है और कहती है कि अवश्य तुम इस पात्र में अपनी आवश्यक सामग्री को भर लो।

मनोहर! उनके पैर छूकर उनसे आशीर्वाद लेता है। क्योंकि गुरु के कहे अनुसार 7 दिन तक वैशाली ही उसकी गुरु थी। 7 दिन के पश्चात। उनसे प्राप्त सामग्री को लेकर अब वह अपने आश्रम को वापस लौटता है। वैशाली उसे आशीर्वाद देते हुये कहती है, अवश्य ही तुम साधना में सफल रहोगे। क्योंकि तुम पर हमारे क्षेत्र का कोई भी प्रभाव असर नहीं कर पाया। वह गुरु के पास पहुंचता है और कहता है गुरु आपने मुझे ऐसे स्थान पर क्यों भेजा? मैं अपना ब्रह्मचर्य किस प्रकार रक्षित कर पाया हूं, यह केवल मैं ही जानता हूं। मैं ऐसे ऐसे दृश्य रोज देखता था। जिसकी कल्पना करना भी कठिन है। एक साधु के लिए यह सब देखना मर जाने जैसा ही है। आखिर वह अपनी साधना में कैसे सफल हो पाएगा। अगर वह यही सब कुछ देखता रहेगा।

गुरु कहता है तुम्हारी पहली परीक्षा में तुम! सफल रहे हो? क्योंकि मैंने जिस स्थान पर तुम्हें भेजा था, वह तुम्हारी काम परीक्षा ही थी। काम परीक्षा से सफल हुए बिना इस यक्षिणी को जीतना असंभव है। क्योंकि इसका मूल उद्देश्य एवं यौवन सुख ही देना है। अगर यौन सुख की चाह में तुमने इसकी साधना की तो तुम सफल नहीं हो सकते। कामसुख जैसी शक्तियों को अपने हृदय से जीते बिना आप अपनी साधना में सफल नहीं हो सकते। इसी कारण से इस साधना में उस सामग्री को वैशाली जैसी नगरवधू से प्राप्त करना आवश्यक होता है। अब अगले चरण की ओर। अपने कदम बढ़ाओ। आगे क्या हुआ हम लोग जानेंगे अगले भाग में? आपका दिन मंगलमय हो धन्यवाद!

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कामरूप मे अनुरागिनी यक्षिणी साधना भाग 3

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