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कामरूप मे अनुरागिनी यक्षिणी साधना भाग 1

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। आज लेंगे एक कई 100 वर्ष पुरानी! ग्रंथों में वर्णित कहानी को जहां कामरु प्रदेश में अनुरागिनी नाम की यक्षिणी की सिद्धि की गई थी। साथ ही नीचे में क्लिक करके वहां से वह साधना विधि डाउनलोड कर सकते हैं। इंस्टामोजो अकाउंट में जाकर के। तो चलिए शुरू करते हैं काम रूप में अनुरागिनी यक्षिणी की साधना भाग 1 को।

कामरूप को सबसे पहले जानना आवश्यक है। आखिर कामरूप कहते किसे हैं? कामरूप वर्तमान असम को कहा जाता है। यह वही स्थान है जहां पर पुराने समय में बहुत सारी तांत्रिक क्रिया की जाती थी। माता कामाख्या का क्षेत्र होने के कारण यह पूरा क्षेत्र उस दौरान कामरु प्रदेश के नाम से जाना जाता था। यह स्थान यक्षिणी किन्नरों अप्सराओं। योगनियों भैरवियों के लिए सबसे उपयुक्त स्थान माना जाता था। भैरवी साधना से लेकर के और विभिन्न प्रकार की 10 महाविद्याओं तक की साधना को यहां पर किया जाता था। यह शक्ति साधना के लिए विशेष प्रसिद्ध स्थल था। पूरे भारतवर्ष से ही नहीं कई दूसरे देशों से लोग आकर के यहां पर साधना किया करते थे। इसी कारण से कामरु प्रदेश बहुत ही अधिक प्रसिद्ध था।

कामरूप का मतलब होता है जो काम का स्वरूप हो। इसी कारण से यहां पर अप्सराओं योगिनियों और उस श्रेणियों की साधना विशेष रूप से प्रचलित थी। यहां पर की जाने वाली साधना में सफलता का प्रतिशत अत्यधिक होता था। इसी कारण से दूर-दूर से बड़े बड़े तांत्रिक और गुरु यहां पर आया करते थे। न सिर्फ सिद्धि प्राप्त करने के लिए बल्कि सिद्धियां प्रदान करने के लिए भी । यह कहानी मनोहर नाम के एक व्यक्ति की है। मनोहर के हृदय में सदैव से साधना और सिद्धियों को प्राप्त करने की इच्छा थी। मनोहर सदैव चाहता था कि वह एक ऐसी शक्ति को प्राप्त करें जिसके वजह से वह जीवन में चमत्कार दिखा सके। उसके मन में यह इच्छा कैसे पैदा हुई इसकी भी एक कहानी है।

मनोहर एक बार एक तालाब के किनारे भ्रमण कर रहा था। भ्रमण करते करते उसे थकावट लगी। वह सो गया। पेड़ के नीचे अपने सिर को रखकर जब वह सोने लगा तो अत्यधिक आनंद भरी हवाओं के कारण उसके मन में। वहां पर सोने का विचार आ गया। थोड़ी ही देर बाद वह गहरी निद्रा में हो गया। मनोहर स्वप्नलोक में चला गया था। थोड़ी देर बाद उसे एहसास हुआ जैसे कि कोई। सरोवर से बाहर निकल कर आई है। उसने उसके पास आकर उसे देखा और मुस्कुराने लगी। अत्यंत सुंदर वह कन्या। अद्भुत रूप में नजर आ रही थी। उसे देखकर पता नहीं क्यों? वह वहां पर आकर बैठ गई। उसने उसके सिर को अपनी गोदी में ले लिया और उसके सिर सहलाते हुए। चुपचाप बैठी उसे एकटक देखती रही। मनोहर! ऐसे ही लेटे लेटे उन सब बातों के बारे में सोच रहा था। उसके बाद फिर उसने उसका चुंबन लिया और अचानक से ही गायब हो गई।

झटके के साथ में अचानक से तेज हवा चली और मनोहर की नींद टूट गई। मनोहर को लगा कि अभी तक जो भी उसके साथ घटित हुआ वह सत्य था। इस कारण से क्योंकि उसके होठों में अभी भी उस चुंबन का असर महसूस हो रहा था। कौन थी वह कन्या जो पानी से बाहर निकल कर आई थी और उसके सिर को सहला करके अपना प्रेम उसने प्रदर्शित किया था। बेचारा उस स्थान पर काफी देर बैठा रहा। कुछ देर बाद फिर से लेट कर उसने सोचा कि शायद वह वापस आएगी, किंतु ऐसा नहीं हुआ। काफी देर उसी स्थान पर उस कन्या का इंतजार करने के बावजूद उसे कुछ भी हासिल नहीं हुआ। निराश और हताश हुआ मनोहर अब अपने घर की ओर लौटने लगा। उसके मन में ऐसा ख्याल था कि यह कोई जरूर अप्सरा होगी। जो उस से प्रेम करती है और उस जल से निकल कर बाहर आई थी।

वह थोड़ी दूर अपने घर में वापस आ जाता है। उसे रात भर नींद नहीं आती। वह जानना चाहता था कि वह स्त्री कौन है? अत्यंत रूपवती उसके मन में एक अलग ही अमिट छाप छोड़ कर चली गई थी। अब अगर उसे प्राप्त करना है तो उसे क्या करना होगा। उसने साधनाओं के बारे में सुना था। वह यह जानता था कि अगर उसने इस तरह की कोई शक्ति को चाहा है तो उसे प्राप्त भी कर सकता है। लेकिन उसकी सहायता कौन करेगा? यही प्रश्न उसके हृदय में उपस्थित था। सुबह-सुबह गांव में टहलते हुए अचानक से इस बात का शोर मच गया। गांव के सारे लोग एक विद्वान ब्राह्मण तपस्वी ऋषि के पास जा रहे थे। सब उसके बारे में बड़ी-बड़ी बातें कर रहे थे। सब कहते थे उसके पास कोई भी प्रश्न लेकर जाओ। वह उसका उत्तर तुरंत दे देता है। इसी कारण से सभी लोग अपना अपना भाग्य जानने के लिए उसके पास जा रहे थे।

सारे के सारे इस बात के लिए आतुर थे कि उनके भाग्य में क्या लिखा है? यह बात जब मनोहर को पता लगी तो उसके मन में भी यह बात आई कि उसे भी जाकर उससे कुछ पूछना चाहिए। मनोहर वहां जाकर खड़ा हो गया। उस स्थान में काफी भीड़ लगी हुई थी। ऋषि इतना अधिक तपस्वी और तेजस्वी लग रहा था जैसे उसने कई वर्षों तक तपस्या की हो। लोग उसके पास एक-एक करके आते अपने प्रश्नों को लाते वह उनका उत्तर देता। इस प्रकार से चलता रहा। अपना नंबर आने पर मनोहर उनके पास पहुंच गया। उसने उनके चरण स्पर्श किए और कहा, गुरु जी मेरी भी समस्या का हल दीजिए। तेजस्वी ब्राह्मण ऋषि ने उसकी तरफ देखा और मुस्कुराने लगा। उसने कहा नवयुवक हो? मन में प्रेम की लहरें दौड़ रही हैं। ऐसा मुझे आभास होता है। बताओ तुम्हारी समस्या क्या है?

इस पल मनोहर ने कहा, आपने सत्य ही कहा है? प्रेम प्राप्त करना इस जीवन का एक प्रमुख उद्देश्य है। किंतु मेरे साथ ही विचित्र घटना घट गई है। मैं उसके बारे में आपको बताना चाहता हूं। यह घटना मेरे साथ अचानक ही हुई जब मैं सरोवर के निकट लेटा हुआ था। इस प्रकार से मनोहर ने अपने हृदय की सारी बात और उसके साथ घटित हुई घटना को उन्हें ऋषि को बता दिया। ऋषि ब्राह्मण ने जब सारी बातें सुनी तो मुस्कुराने लगे। कहने लगे अगर तुम्हें सच में उसे प्राप्त करना है तो इसके लिए तो तुम्हें साधना करनी होगी और कड़ी परीक्षाएं भी देनी होंगी। अगर तुम उसे प्राप्त करना चाहते हो तो तुम्हें? एक निष्ठ हो करके। कई दिनों तक साधनाएं करनी पड़ सकती हैं। इस पर मनोहर ने कहा, आप केवल आज्ञा दीजिए। मैं अवश्य ही इस कार्य को संपादित कर ही दूंगा। मेरा विचार पक्का है, मुझे उसे किसी भी प्रकार से प्राप्त करना है।

दृढ़ निश्चय देख कर के उस ऋषि ब्राह्मण ने कहा ठीक है किंतु इसके लिए तुम्हें अपना गृह त्याग करना होगा और कामरुप प्रदेश में जाना होगा। मैं तुम्हें वहां के ऋषि के बारे में बता दूंगा। उनके पास जाकर मेरा परिचय देना। अगर तुम ऐसा करोगे तो अवश्य ही वह तुम्हें शिष्य स्वीकार करेंगे। जब तुम्हें उनसे शिष्यता प्राप्त हो जाए। तब अपने हृदय की सारी बात उन्हें बताना। अवश्य वह तुम्हारी सहायता करेंगे। यह सुनकर अब मनोहर काफी प्रसन्न था । वह जानता था कि अब उसका कार्य निश्चित रूप से सफल होगा। क्योंकि गांव वालों मे सभी को ऋषि ब्राह्मण ने संतुष्ट कर दिया था। अगले दिन ऋषि ब्राम्हण से आज्ञा लेकर कामरु प्रदेश के लिए मनोहर रवाना हो गया। बहुत ही लंबे और दुर्गम मार्ग पार करता हुआ।उस दौर में, वह जहां से होकर गुजरता वहां घने जंगल मिलते थे। किसी गांव में किसी प्रकार रात्रि गुजरता था और अगले दिन फिर नई यात्रा पर चल पड़ता।

इस प्रकार उसे पूरा एक माह लगा कामरु पहुंचने में। कामरूप पहुंचकर वह उन महान विद्वान। एक ऋषि को ढूंढने लगा। जो कि काफी अधिक प्रसिद्ध थे। उनकी प्रसिद्धि का कारण था उनका चमत्कारिक होना। जिस से भी उसने पूछा, उसने कहा कि वह! माता कामाख्या के निकट ही मिलेंगे। इस प्रकार वह उस क्षेत्र में पहुंच गया जहां पर वह ऋषि विराजमान थे। उनके पास बहुत सारे शिक्षकों की उपस्थिति थी। अत्यधिक संख्या में वहां पर शिष्य विराजमान थे और उनकी सेवा किया करते थे। इस प्रकार मनोहर जब उनके पास पहुंचा, तुरंत उनके चरणों में गिर पड़ा। और उनसे? अपने ऋषि ब्राह्मण द्वारा दिए गए निर्देश का वर्णन किया।

उनका नाम सुनकर इन विद्वान ऋषि ने कहा, अगर उन्होंने तुम्हें भेजा है तो मैं अवश्य ही तुम्हें अपना शिष्य स्वीकार करता हूं। जाओ जंगल से लकड़ियां काट कर लाओ। इसपर मनोहर जंगल में चला जाता है और वहां से लकड़ियाँ काटकर गुरु सेवा में समर्पित करता है। इसके बाद गुरु कहते हैं रात्रि के समय मेरे पास आना। तुमसे वहीं पर वार्तालाप करूंगा। इस प्रकार से जब रात्रि का समय आता है। तो मनोहर उन महान ऋषि के पास पहुंचता है। ऋषि अपनी खाट पर बैठे आराम कर रहे थे। उनके चरणों में बैठकर अब मनोहर उनसे कुछ प्रश्न करता है। इस पर ऋषि की कही हुई बातों को वह सुनते हैं और कहते हैं तुम्हारे यहां आने का मूल उद्देश्य क्या है मुझे बताओ? आखिर उन्होंने तुम्हें यहां पर क्यों भेजा है और तुम्हारे हृदय में क्या है वह सब कुछ भी मुझे बताओ।

मनोहर कहता है गुरुदेव। आपने अगर मुझे पूर्णतः शिष्य स्वीकार कर लिया हो तभी मैं अपने हृदय की बात आपको बताना चाहता हूं। इस पर ऋषि कहते हैं। अवश्य ही मैंने तुम्हें हृदय से अपना शिष्य स्वीकार कर लिया है। अब अपने हृदय की बात को तुरंत ही मुझे बताओ। मनोहर उसके साथ घटित हुई सारी घटना को बता देता है। ऋषि कहते हैं- तुम्हें साधना करनी होगी? यह एक तांत्रिक साधना है और जिस स्त्री का तुम नाम ले रहे हो वह और कोई नहीं अनुरागिनी यक्षिणी है। यक्षिणी अत्यधिक शक्तिशाली होती है। और प्रेमिका रूप में या पत्नी रूप में प्राप्त होने पर सभी प्रकार की सिद्धियां और शक्तियां प्रदान करती है। इसकी शक्तिअद्भुत है और तुम्हें हर प्रकार से योवन सुख प्रदान करती है। यौवन सुख देने में इससे अधिक उपयुक्त यक्षिणी कोई नहीं है। यह उग्र यक्षणियों में भी नहीं आती है।

इसी कारण से इसकी साधना मे अगर व्यक्ति सफलता प्राप्त कर ले तो समस्त भौतिक सुखों का उपभोग वह कर सकता है। इस पर मनोहर कहता है गुरुदेव आप मुझे इसकी विद्या का ज्ञान दीजिए। यह साधना कैसी होगी? किस प्रकार से मै इसे करूंगा और कैसे मुझे सफलता प्राप्त होगी? इस पर गुरु कहते हैं सबसे पहले अनुरागिनी को जानो। मैं तुम्हें उसके विषय में बताता हूं और उसकी साधना के भी विषय में जानकारी देता हूं। इस प्रकार उन्होंने उसे यक्षिणी के बारे में संपूर्ण जानकारी दी। अपने नए शिष्य को यक्षिणी की जानकारी दी मनोहर भी उनसे ज्ञान प्राप्त कर तृप्त हो गया। अब बारी थी साधना को शुरू करने की। आगे क्या हुआ हम लोग जानेंगे भाग 2 में। नीचे आप इंस्टामोजो अकाउंट पर जाकर के इस साधना को खरीद भी सकते हैं। आपका दिन मंगलमय हो धन्यवाद!

कामरूप मे अनुरागिनी यक्षिणी साधना भाग 2

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