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काम या भोग पिशाचिनी की कहानी 5 अन्तिम भाग

काम या भोग पिशाचिनी की कहानी भाग अंतिम

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल में आपका एक बार फिर से स्वागत है । जैसा की कहानी चल ही रही है अब मैं आपको आज आगे की कहानी बताऊंगा । और यह इस कहानी का अंतिम भाग सिद्ध होगा । काम पिशाचिनी और इसकी कहानी का । तो चलिए शुरू करते हैं जैसा की आप लोगों को पता ही है कि गोपाल अत्यधिक परेशान होकर कामनाथ मदद मांगता है । और कामनाथ उससे वह कपड़ा मांगता है । और साथ ही साथ कामनाथ ने उसे एक निर्देश भी दिया । कामनाथ ने कहा तुमने कई सारे स्त्रियों को दूषित किया है । कई स्त्रियों की जिंदगी बर्बाद की है इसलिए याद रखो तुम्हारे लिए यही प्रायश्चित है । आज के बाद संसार की किसी भी स्त्री से भोग नहीं करोगे । अगर तुमने कभी भी ऐसा किया तो फिर मैं तुम्हारी जान नहीं बचा पाऊंगा । और तुम्हारी रक्षा नहीं कर पाऊंगा क्योंकि इससे पिशाचिनी अत्यधिक क्रोधित हो जाएगी और वह तुम्हारा नाश भी कर सकती है । जब तुम यह प्रतिज्ञा तोड़ दोगे ।

इसलिए याद रखो आज से तुम्हें ब्रह्मचर्य धारण करना है ।और मृत्यु तक तुम्हें ब्रह्मचर्य का पालन करना पड़ेगा नहीं तो यह तुम्हारी जिंदगी का नाश कर देगी । और तुम्हें अपने लोक में खींच लेगी इस प्रकार से साथ ही साथ क्योंकि तुमने कई स्त्रियों का जीवन नष्ट किया है । जो भी तुम्हें स्नेह धन सोना चांदी आधी धन प्राप्त किया है उससे तुम गरीब कन्याओं अविवाहित कन्याओं उनका विवाह करवाओ ।इससे तुम्हारे पाप नष्ट हो जाएंगे इसके बाद गोपाल ने ऐसा ही किया । गरीब और अविवाहित कन्याओं का गोपाल ने विवाह करवाया । धीरे-धीरे करके उसका पाप नष्ट होने लगा इधर कपाली ने तांत्रिक क्रिया आरंभ कर दी 1 महीने तक चलने वाली तांत्रिक क्रिया में अब उसको अपने वश में करके अपनी पत्नी उसे बना लेना था । कामनाथ ने यह प्रयोग चालू रखें । इधर पिशाचिनी को जब यह बात पता चली कि उसका पति उसके हाथ से निकल गया है । और वह किसी दूसरे की पत्नी बनने वाली है अत्यधिक वह क्रोधित हो गई ।

वह तुरंत ही गोपाल के सामने प्रकट हुई और उसने कहा याद रखो तुमने मुझे धोखा दिया है । और अब तुमने किसी भी स्त्री से संबंध बनाया और तुम्हें मैं अपनी जिंदगी में खींच लूंगी  सदा सदा के लिए । और तुम मेरे गुलाम बन जाओगे इस बात से गोपाल सावधान होकर ब्रह्मचर्य का पालन करने लगा । लेकिन पिशाचिनी ने ऐसा जाल रचा जिसमें गोपाल को आखिर फसना ही पड़ा । कुछ दिनों के बाद गोपाल एक नगर में नए विवाह को कराने जा रहा था । तभी रास्ते में उसे प्यास लगी तो झरने पर उसने कुछ स्त्रियों को नहाते हुए देखा अचानक से उन स्त्रियों की नजर भी उस पर पड़ी और वे स्त्रियां वहां से भाग गई । उन्हीं में से एक कन्या का पैर फिसला और झरने के पास पड़े पत्थर से उसका सर टकरा गया । इस कारण से वह बेहोश हो गई क्योंकि शरीर के भीगे होने की वजह से वह बेहोश हो गई थी । इसलिए उस पर गोपाल को दया आ गई उसने उसे उठाया और अपने घर की ओर चला और सोचा इसे मैं होश में ले आऊंगा ।

तभी वह एक बात भूल गया की यह भी एक कुंवारी कन्या है । वही हुआ जो हमेशा होता रहा था और कई दिनों से उसके शरीर की प्यास अधूरी थी ।गोपाल का फसना अवश्य संभव हो गया । यह एक सोची-समझी रणनीति थी । पिशाचिनी की कन्या ने जब गोपाल उसकी चिकित्सा कर रहा था । गीले कपड़े होने के कारण उसको बुखार आ गया था बुखार होने की वजह से कोई आसपास किसी ओर लोग का  ना होना । उसने उसके कपड़े उतारना शुरू कर दिए । और उसके शरीर को पोछने लग गया तभी एकदम से उसके मन में कामवासना फिर से जाग उठी । जैसे-जैसे वह कन्या रात में जागती गई गोपाल के भी मन में ऐसी भावना आने लग गई । एक बार फिर वही कामवासना उसके मन में जागृत हो गई । उसने अपने आप को रोकने की कोशिश की तभी कन्या ने उसको भिच करके उसे पकड़ लिया । कन्या के नग्न शरीर को देखकर एक बार फिर से उसके मन में काम भावना प्रवेश कर गई ।

और उन्होंने उसी प्रकार रात भर भोग किया । सुबह होते ही कन्या चिल्ला कर वहां से भागी और तभी वहां पर पिशाचिनी प्रकट हो गई । पिशाचिनी ने तुरंत ही उसके शरीर पर अपना कब्जा कर लिया । और गोपाल के साथ भोग करने लगी बिना शरीर के भी वह भोग कर रही थी । और उसने कहा मैं तुम्हारा रक्त पान भी करूंगी क्योंकि मैंने तुमसे कहा था अगर तुमने कभी किसी पराई स्त्री भोग किया । तुमने मेरे विवाह के बाद तलाक लिया है मतलब किसी दूसरे से कराने जा रहे हो मेरा विवाह इस वजह से वह अत्यधिक क्रोधित अवस्था में उसके पास आई । उसने काम के दौरान ही उसके गर्दन पर दांत गड़ा दिए । और रक्त पीने लगी और तब तक पिटाई रही जब तक कि गोपाल की मृत्यु नहीं हो गई । गोपाल की मृत्यु हो जाने पर गोपाल एक प्रेत बन गया  । और उसकी सेवा करने लगा इधर अनुष्ठान के 28 दिन पूरे हो चुके थे । तो अब ध्रुवी को यह लगा अब शायद मैं हार जाऊंगी । और यह जो तांत्रिक है मुझे अपने वश में कर लेगा इस बात को समझते हुए प्रेत बने अपने पति को उसने कहा जाओ । उस तांत्रिक का वध कर दो जहां जो जो सामग्री रखी हो तोड़ फोड़ देना ।

किसी भी प्रकार से उसे नष्ट करके आओ।  तुरंत ही गोपाल प्रेत के रूप में वहां गया और उसने वहां तबाही मचाना शुरू कर दी । कामनाथ यह सब जान गया और उसने एक मंत्र ओम कालिकाएं नमः से उस प्रेत को रोक लिया । अर्थात गोपाल को बंधी बना लिया  । गोपाल को बंधी बनाकर जब उस पर अभिमंत्रित जल छिड़का तो गोपाल को होश आया । और उसे अपनी पुरानी कहानी याद आई कि किस प्रकार से उसके जीवन में क्या क्या घटित हुआ । उसने उससे कहा कि मेरे को आपने आजाद कर दिया है । तो आप इसका भी कुछ ना कुछ करिए यह कुछ ना कुछ ऐसा जरूर करेगी जिसकी वजह से आपकी भी शक्तियां और सिद्धियां नष्ट हो जाए । और आपके साथ कुछ ना कुछ गलत कर सके आप बड़ी सावधानी से इससे छुटकारा पाइए । और मुझे इस जीवन से मुक्त कर दीजिए । अभिमंत्रित जल के प्रयोग से कपाल नाथ ने हमेशा के  लिए उसे मुक्त कर दिया । मां के चरणों में उसकी बलि चढ़ा दी । काली के चरणों में बलि चढ़ाने की वजह से उसका जीवन मुक्त हो गया । अर्थात भूत प्रेत योनि से वह मुक्त हो गया । और उसने कपाल नाथ को धन्यवाद दिया ।

और अपने लोक के रास्ते पर चल पड़ा इधर अपने प्रेत से हार जाने पर ध्रुवी क्रोधित होती हुई । ध्रुवी ने अपने उस शक्तिशाली प्रेत को आवाहन किया जिस प्रेत ने उनकी डलिया को खींचा था । जिस वक्त वह जवान थी और गोपाल के साथ अपने द्वीप को छोड़ कर के भारत की धरती की तरफ आ रही थी । वह पर भेजा गया प्रेत । अत्यंत कई शक्तिशाली शक्तियो से उस प्रेत ने युद्ध किया । लेकिन प्रेत सब को हराते ही चला जा रहा था । फिर कामनाथ ने एक बार फिर से माता काली का आवाहन किया । माता काली की शक्ति से प्रेत को बांध लिया गया प्रेत को बांधने पर काम नाथ ने उससे पूछा तू तो बड़ा शक्तिशाली है । तू मेरे लिए क्यों नहीं कार्यकर्ता तो प्रेत ने बड़े ही दुष्ट भरी निगाहों से देखते हुए कहा कि । तुम मुझे सिद्ध करने की क्या बात करते हो । मुझसे हजार गुना शक्तिशाली प्रेत है । उसे प्रेतराज कहते हैं तुम प्रेत राज को सिद्ध करो । और फिर तुम्हारे लिए संसार में कोई भी कार्य असंभव नहीं रहेगा ।लेकिन याद रखना जब वह प्रकट हो तो उसे तुरंत कार्यशोप देना । उसके बाद ही वह तुम्हारा सच्चा समर्थक बना रहेगा । और कार्य ऐसा होना चाहिए कि वह तक्षण कर लाए मतलब फिर से कार्य उसे सौंप देना उसे ।  अविलंबता पसंद नहीं है  उस प्रेत को । इस प्रकार कहने पर कपलनाथ के मन में एक भावना आई और इसकी विधि उस प्रेत से सीख ली ।

इसके बाद इस प्रेत को भी उसने जीवन मुक्त कर दिया  । इधर तीसवा दिन प्रारंभ होने पर तुरंत ही साधना इसकी भी पूरी कर ली जो गुप्त विधि बताई थी प्रेत की । उसकी भी साधना कपालनाथ ने पूरी कर ली । अब स्थिति की गंभीरता को समझते हुए ध्रुवी ने एक चतुराई दिखाई । और इसमें कामनाथ का फसने का समय आ चुका था । अचानक ध्रुवी उसके सामने प्रकट हुई और ध्रुवी ने कहा की मैं जोकी तुम्हारी पत्नी बन चुकी हूं तो अब मुझे संतुष्ट करो । और मुझे कोई कार्य सौंपो उसके बाद ही अगर तुम मुझे वश में रख पाए तो निश्चित रूप से तुम्हारे कार्य करती रहूंगी । क्योंकि तुमने मेरे पति को मुझ से छीना है तो कोई ऐसा कार्य ही मुझे बताना । मुझसे कार्य कराना जिसके बाद तुम दूसरा कार्य तुरंत करा सको । अगर नहीं करा पाए और मैं मुक्त हो गई तो मैं तुम्हारा वध कर दूंगी । इतना उसने कहा ही था उस महा प्रेत की सिद्धि कर ही रहा था वह प्रकट हो गया । महा प्रेत के प्रकट होने पर महा प्रेत ने कहा कि क्यों मुझे बुलाया है मुझे कोई कार्य सोपो कि मैं तुरंत उस कार्य को तक्षिण कर लाओ । क्योंकि यह मेरा स्वभाव है अगर कार्य मैं तक्षण नहीं करता हूं तो मुझे स्वयं में बेचैनी हो जाती है । इसलिए तुरंत मेरे से कोई कार्य संपन्न कराओ । याद रखो अगर दूसरा कार्य भी मेरे लिए उसी समय तैयार रखो ।अगर पहला कार्य करने के बाद दूसरा कार्य में मुझे देरी की या मुझे कोई अविलंबता हुई ।

तुमने दूसरा कार्य नहीं सौंपा । तो मैं तेरा वध कर दूंगा । ऐसी स्थिति होने पर दोनों ने ही अपनी अपनी शर्ते रख दी । स्थिति खराब हो जाने पर इस बात की गंभीरता को बड़े धैर्य से समझा । अगर मैंने इसके कार्य को सौंपा तो उसको कार्य में अभिलंबता होगी । अगर उसको कार्य सौंपा तो इसके लिए कार्य कि अविलंबता हो जाएगी । और इन दोनों में से कोई ना कोई मेरा वध कर देगा    । तो ऐसा होने पर कामनाथ ने दोनों से कहा दोनों से प्राथना कि मुझे एक रात्रि का समय दो । और उसके बाद ही मैं तुम दोनों को आवश्य ही कार्य दूंगा । और तुम दोनों से सहायता लूंगा अभी मैंने पूर्ण अनुष्ठान तुम दोनों की नहीं किया है ।इसलिए तुम लोग अभी जाओ और इसके बाद जब इच्छा हो एक साथ आ जाना।  मैं तुम दोनों को कार्य सोपुंगा ।उसके बाद तुरंत ही तुम दोनों को दूसरा कार्य दूंगा । क्योंकि पूर्ण आहुति नहीं हुई थी । शक्तियां पहले ही प्रकट हो गई थी । इसलिए दोनों शक्तियों में से कोई ना कुछ बोल सकी ।इस प्रकार दोनों वहां से गायब हो गए । अब बात कामनाथ पर आई । कामनाथ ने सोचा अगर मैंने इसे कोई काम सौंपा और उसके बाद तक्षक दूसरा कोई कार्य नहीं सौंपा समय अंतराल मिलने पर तो निश्चित रूप पर यह मेरा वध कर देंगे । ध्रुवी ने भी अपने समस्त पिशाचिनीयो का आवाहन कर लिया । अपनी शक्तियां बढ़ाने के लिए और महा प्रेत का यह स्वभाव भी था कि उसे एक काम सौंपा जाए ।

तो उसे दूसरा तुरंत चाहिए । अगर तुरंत दूसरा कार्य उसे नहीं सौंपा जाए तो भी यह साधक को मार देता है । जिसने उसे सिद्ध किया है उसे मार देता है । ऐसी स्थिति बड़ी खराब होने पर अब कामनाथ के सामने कोई चारा नहीं था । और फिर कामनाथ ने रात्रि के समय अखंड दीपक जलाकर माता की पूजा करनी शुरू कर दी । अपनी माता को पुकारने लगा । और रोते-रोते पुकारते हुए अंतर्गतवा उसको मां के दर्शन प्राप्त हुए । माता से उसने पूछा कि क्या मार्ग है माता । इस प्रकार से दोनों में से मुझे कोई ना कोई मार ही डालेगा मुझे फंसाया गया है । मुझे महा प्रेत की साधना के लिए जिस प्रेत ने उसे उकसाया था । और वो भी ध्रुवी ने भेजा था । और आपने तो ध्रुवी को अमरता का वरदान भी दे रखा है । तो माता बोली कि पुत्र सुनो काम शरीर के अंदर एक ऐसी प्रक्रिया है जो कभी खत्म नहीं होती है । यह संसार काम के पीछे जागृत रहने वाला है । यानी की इससे मोहित होने वाला है । इस संसार में काम मृत्यु यह अखंड सत्य हैं । हर जीव काम से बंधा हुआ है । और इसको पराजित किए बिना किसी की भी मुक्ति नहीं होती है । इसलिए तुमने देखा होगा बचपन से ही कामवासना जैसे-जैसे उम्र बढ़ती जाती है बढ़ती चली जाती है । हर स्त्री हर पुरुष इस में फंसा हुआ है । एक दूसरे को आकर्षित करने के फेर में यह एक दूसरे को आकर्षित नहीं करते हैं ।

यह एक शरीर दूसरे शरीर को आकर्षित करता है । अर्थात काम ही काम को आकर्षित करता है । यह दोनों ऐसे शत्रु है जो हर जीवन में सदा के लिए व्याप्त है । यह हर प्रकार से नाश कर देते हैं मनुष्य का । तो इससे मुक्त हुए बिना किसी का जीवन मुक्त नहीं हो सकता यही वजह है । यही वजह है कि काम की पुजरिन होने के करण मैने ध्रुवी को उसे अमरता का वरदान दिया । क्योंकि काम नष्ट नहीं होता है वासना नष्ट नहीं होती है । इच्छाओं का कोई अंत नहीं है । और यही तुम्हारे लिए रास्ता भी है जो कि जानते हो की इच्छाओ का अंत नहीं होता है । वासना का कोई अंत नहीं होता है । इसलिए इसी शक्ति का तुम उपयोग करो बुद्धि और युक्ति का प्रयोग करो । कामनाथ माता के इशारे को समझ चुका था । अगले दिन वह दोनों अंतिम आहुति के समय वह दोनों एक साथ प्रकट हो गए प्रकट हो गए पर सबसे पहले कामनाथ ने ध्रुवी से पूछा और कहा । हे ध्रुवी तुम इस पर अपनी काम शक्ति से इसे पूरा संतुष्ट करो । अर्थात दोनों एक दूसरे को संभोग के साथ एक दूसरे को संतुष्ट करें । तुम दोनों एक दूसरे को संतुष्ट कर लो उसके बाद ही दूसरे कार्य के लिए मेरे पास आना ।

क्योंकि माता महामाया की कृपा उनकी बनाई हुई । इस दुनिया का रहस्य ही यही है इच्छाएं कभी भी खत्म नहीं होती । तो फिर दोनों ने भोग करना शुरू कर दिया । यह क्रिया कामनाथ की मृत्यु तक चलती रही । अर्थात 75 साल उसके बाद कामनाथ जिया । वह दोनों 75 साल तक लगातार भोग करते रहे दूसरा कार्य करने के लिए उनके पास आने का उनके पास समय ही नहीं मिला । क्योंकि इच्छाएं अनंत है । जब शरीर नहीं होता तो उसी इच्छा में फंसा हुआ इंसान अर्थात काम या भोग फसा हुआ लगातार वही कार्य करता रहा । उन्होंने एक दूसरे की संतुष्टि के लिए कि मैं इसे संतुष्ट करूं पूरी तरह से इच्छाएं भर लु । अपनी ध्रुवी ने भी सोचा कि मैं इससे पूरी तरह संतुष्ट हो जाऊं । और इसकी इच्छा पूरी कर दू दोनों संभोग लगातार करते रहे । 75 वर्ष तक लगातार संभोग जब तक कामनाथ नहीं मरा तब तक कामनाथ की मृत्यु के बाद भी दोनों भोग करते रहे । क्योंकि वह वरदान से तो मुक्त हो चुके थे । अर्थात जो वचन लिए गए थे लेकिन अब उन्हें कोई दूसरा जीव नहीं मिल रहा था । वह आज भी यानी कि हजारों साल बाद भी लगातार श्मशान में संभोग करते चले आ रहे हैं ।

तो यह थी वास्तविकता वह कहानी किस प्रकार से काम पिशाचिनी कैसे अपने चरम पर पहुंची । क्या आज भी शमशान में वह प्रतिक्रिया चल रही है तो वह आज भी यह ढूंढ रही है कभी कोई दूसरा मिले इसके अलावा और वह प्रेत आज भी यह ढूंढ रहा है कि । मैं इस काम से कब मुक्त हूं । काश कोई मुझे ऐसा व्यक्ति सिद्ध कर ले जो मुझसे तड़ा तड़ तुरंत ही दूसरा तीसरा चौथा कार्य संपन्न कराएं । क्योंकि यह सुहाग दिखता स्वाभिकता भी होती है । कि जब से यह कार्य सौंपा जाए तो उसे तुरंत दूसरा कार्य सौंप देना चाहिए । तो बड़े-बड़े जो तांत्रिक लोग हैं वह इस प्रयोग को करते भी हैं महा प्रेत को सिद्ध भी कर लेते हैं ऐसे से कार्य संपन्न कराते हैं । जिसके बारे में आप सोच भी नहीं सकते । जैसे कि वह कहेंगे कि जाइए हिमालय से आप वहां की बर्फ को उठाकर हिंद महासागर में डालें और वहां का पानी उठा कर के हिमालय में डालिए और ऐसी प्रतिक्रिया चलती रहती है । कि उनका कार्य कभी खत्म ना हो । और फिर मैं बीच में दूसरा कार्य सौंप देते हैं । इस प्रकार से ही प्रेत को अपने वश में करके रख पाते हैं । और पिशाचनियो की बात ही अलग है सब कुछ देने वाली भोग से इतना अधिक की आप को नष्ट कर देती है । कि आप कुछ नहीं चाह पाते या तो अघोरी इतना शक्तिशाली हो  । जो इसी तरह कामनाथ की तरह दिमाग का प्रयोग कर ले । स्वयं भी भोग करें और उसको दूसरे के भोग के कार्य में लगा दे । क्योंकि पिशाचिनी धन वैभव सोना चांदी सब कुछ प्रदान करती है । लेकिन आपकी जिंदगी भी छीनती सी चली जाती है । जैसा कि गोपाल के साथ हुआ । तो यह थी काम पिशाचिनी की कहानी और उसका अंतिम भाग । धन्यवाद आपका दिन मंगलमय हो ।

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