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काम या भोग पिशाचिनी की शुरुआत कहानी भाग 2

काम या भोग पिशाचिनी की शुरुआत कहानी भाग 2

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चेनेल में आप लोगो का एक बार फिर से स्वागत है । जैसा की काम या भोग पिशाचिनी की साधना का पहला भाग आप लोग जान ही चुके हैं । आप लोगों ने उसे काफी पसंद किया है । और मैं एक बात आपको बता दूं । कि इनकी कहानी से मिलती-जुलती कई  सारी कहानियां आपको इंटरनेट पर मिल जाएगी । लेकिन सबने एडिट करके अलग-अलग ढंग से बनाया हुआ है  । इस वजह से आप लोग कंफ्यूज ना होए यह कहानी सच्ची है । और यह बहुत ही दुर्लभ है । बताई नहीं जाती है । तो मैं अब आगे की कहानी बताता हूं । क्या हुआ और कैसे काम और भोग पिशाचिनी और गोपाल की कहानी आगे बढ़ती है । वह सारी बातें मैं आप लोगों को बताऊंगा । कैसे वहां पर उस लोक की रचना हुई । या यूं कहिए कि उन जो देविया थी वहां की यह । पिशाचिनी के रूप में मौजूद थी । जीवित पिशाचिनी और उन्हें उन्होंने अपना एक खुद का आइलैंड कैसे बना रखा था । उनकी खुद की एक नगरी थी । ढेर सारी बातों पर बात करेंगे तो चलो आगे बढ़ते हैं । इस कहानी में अब यह जो भोपाल सामने आ गई गोपाल ने उस स्त्री का नाम ध्रुवी रख दिया ।

गोपाल ने कहा मैं तुम्हें ध्रुवी के ही नाम से जानूगा पहचानुगा । क्योंकि तुम्हारी भाषा तो मुझे आती नहीं है । तुम मुझसे हिंदी में जो हमारी भाषा देवनागरी है । इसलिए बात कर पा रही हो क्योंकि तुमने हमारे किसी सैनिक को मार दिया था । उसकी आत्मा से बात करके यह भाषा सीखी है । अब इन्होंने पूछा तुम्हारा मंतव्य क्या है यानी असली वजह क्या है । तो ध्रुवी ने कहा मैं तुम्हें पसंद करती हूं । यह बहुत ही दुर्लभ होता है यहां पर किसी पुरुष का होना । हमारी प्रजाति में सिर्फ स्त्रियां ही है पुरुष नहीं है बिल्कुल भी । इस वजह से हमें पुरुष की तलाश रहती है । कहीं से पुरुष मिल जाए । लेकिन हम सिर्फ उसी पुरुष का चयन करती हैं जिसका शुद्ध रक्त होता है । और जिसके रक्त से हमें पुत्र की उत्पत्ति हो सके । तो गोपाल ने पूछा कि तुम यहां पर कैसे आई हो  कहानी तुम्हारी क्या है । तो उस स्त्री ने कहा आज से कई सौ सालों पहले की बात है जब हमारी भी उत्पत्ति नहीं हुई थी । तब एक जहाज जो है चक्कर लगाता हुआ यहां पर आ रहा था । पानी का जहाज था जैसे लकड़ी के बने होते हैं उस तरह लकड़ी का बना हुआ पानी का जहाज था । वो और उसके साथ एक तांत्रिक था । और राजा लोग ने अपने मनोरंजन के लिए वेश्याओं को यहां पर बुलाया हुआ था । यहां पर लगभग डेढ़ सौ के करीब वैश्याएं जहाज के ऊपर थी ।जहाज अपना रास्ता भटक गया ।

और कई दिनों के बाद इधर यह जहाज भटकता भटकता इस आइलैंड के पास यानी कि इस द्वीप पहुंच गया । और हम जो हमारे पूर्वज थे यहां पर आए । क्योंकि खाने का कुछ हिसाब हमें पता नहीं था । और भोजन की बड़ी विडंबना कमी आ गई तो हमने मांस भक्षण शुरू कर दिया । हम रक्त और मांस भक्षण पर आधारित गए मतलब रक्त पीते थे और मांस खाते थे। और इतनी अधिक भूख बड़ी हमारी यहां आने के बाद । आप इसे आप कुछ भी समझिए हमें रक्त पीना बहुत ही प्रिय हो गया । धीरे-धीरे करके उस तांत्रिक ने हमें कुछ ऐसी शिक्षाएं और शक्ति प्रदान कि जो बहुत दुर्लभ थी उसी ने हमें यहां पर महा पिशाचिनी देवी की साधना करना बताया महा पिशाचिनी देवी की हमने एक बहुत बड़ी मूर्ति बनाई । जो तुम सामने देख रहे हो । इस मूर्ति के जो दो बड़े-बड़े दांत हैं इसे रक्त पसंद है और भोग पसंद है । समस्या यह थी क्योंकि हम सारी स्त्रियां और वह सिर्फ एक मात्र वह तांत्रिक था । तब हम सब ने तांत्रिक को ही अपना पति मान लिया यह हमारी  पीढ़ी से कई सौ साल  पीढीयो की बात है । सभी स्त्रियां उस एक तांत्रिक संभोग करती थी वह स्त्रियां धीरे-धीरे करके गर्भवती हो जाती थी । लेकिन ऐसी स्थिति पैदा हो गई साधना से के सिर्फ ओर सिर्फ कन्याय ही पैदा होने लगी । तब उस अवघड ने मरने से पहले कहा जहां से भी जो भी पुरुष आए अगर उसका रक्त  रक्त शुद्ध हो तो उस से पुत्र की प्राप्ति करना । और उस पुत्र को इस देवी के लिए चढ़ा देना अगर तुम इस देवी को उस पुत्र को चढ़ा दोगी  । तो निश्चित रूप से तुम्हारी हमेशा शक्तियां बनी रहेगी । और इस प्रजाति में हमेशा स्त्रियां ही रहा करेगी पुरुष नहीं रहेंगे पुरुष केवल बाहर से ही आएंगे ऐसा कह कर के उस तांत्रिक ने हमे मार्ग बताया । और तब से हम साधना करते चले आ रहे हैं ।

हम में से जो सबसे पहले अपने पुत्र की बलि देती है इस महा पिशाचिनी देवी को उसी को ही यहां पर महा पिशाचिनी की मुख्य पुजारीका बनाया जाता है ।और उसके पास अद्भुत शक्तियां आ जाती है  मेरे पास भी बहुत सारी अद्भुत शक्तियां है मैंने जब से तुम्हारा रक्त चखा है तब से मैं तुम पर आकृष्ट हो गई हूं और तुम्हें बहुत पसंद करती हूं मैं तुम्हें अपना स्वामी पति बनाना चाहती हूं । क्या तुम तैयार हो क्योंकि मेरे पास कोई और विकल्प नहीं है ।तुमसे मैं अपनी संतान की उत्पत्ति चाहूंगी तो गोपाल को कुछ समझ में नहीं आया । उसने कहा किसी भी तरह से मुझे यहां से बाहर निकालो उसने कहा ठीक है मैं तुम्हें निकालूंगी । लेकिन मेरी इच्छा की पूर्ति करो गोपाल मान गया । शाम हुई एक प्याले में बड़ा सा प्याला था  लगभग कुल्लड़ टाइप का । उसमें एक द्रव्य लेकर आई और कहा इसे तुम आधा पियो आधा मैं पियूंगी । जो गोपाल था उसने आधा पीलिया और आधा उसने ध्रुवी को दे दिया । ध्रुवी ने आधा उसे पी लिया । इसके बाद एक-दो घंटे बाद ही अत्यधिक उत्तेजना उसके शरीर में आई कि गोपाल की स्वयं इच्छा होने लगी मैं भोग करू ध्रुवी ने रात भर उसके साथ भोग किया । दोनों ही एक दूसरे के साथ भोग करते रोज यह सिलसिला चलता रहा । रोज वह द्रव्य ले आती आधा गोपाल को देती और आधा स्वयं पी लेती । और इसके बाद दोनों अत्यधिक भोग करते रात भर भोग करते रहते हैं । ऐसा कोई अभिमंत्रित या कोई औषधियों का बना कोई द्रव्य था । जो अत्यधिक उत्तेजना शरीर में पैदा कर देता था ।

इस वजह से दोनों पूरी रात रात भर भोग किया करते थे । कुछ दिन बीते 15 या 20 दिन के बाद गोपाल का मन भर गया ।गोपाल अपनी इच्छा व्यक्त करने लगा लेकिन ध्रुवी ने कहा नहीं मैं कुछ भी हूं हम सब में शक्तियां हैं रक्त और भूख के बिना नहीं रह सकते है । तुम्हें जब तक मुझसे भोग करना होगा कि मैं गर्भवती नहीं हो जाती । बिना इच्छा के गोपाल उसके साथ लगातार संबंध बनाता रहा और वह भी लगातार उसके साथ संबंध बनाती रही । क्योंकि वहां पर कोई वस्त्र नहीं था इसलिए गोपाल को भी कोई वस्त्र नहीं मिले इसलिए उसने खाल जानवरों की उसी को अपना वस्त्र बना लिया । और इसी प्रकार चलता रहा । यह सब से शरीर से वह अत्यधिक कमजोर होता चला गया । हर 15 दिन के बाद भोग करते समय गर्दन की नस को काट कर के गोपाल का रक्त पिया करती थी । और उसके साथ भोग करने लगती थी वह ऐसा इसलिए करती थी अगर वह रोज रक्त पिए तो शक्तिशाली तो बहुत हो जाएगी इससे गोपाल की मृत्यु भी हो सकती है इसलिए 15 दिन पर जब तक कि उसके शरीर में खूब सारा रक्त ना बन जाए तब तक वह ऐसा नहीं करती थी । इस तरह लगातार भोग करती थी रात्रि भर और उसका रक्त पीती थी । लेकिन रक्त 15 दिन के अंतराल में ही पिया करती थी । गोपाल बहुत ही ज्यादा परेशान हो गया था वह सोचने लगा । मैं इस चंगुल से कैसे छूटूंगा लेकिन एक दिन बड़ी खुशी की बात हुई और पता चला की ध्रुवी गर्भवती हो चुकी है वह खुशी के मारे कूद रही थी । वह खुशी के मारे गोपाल से गले लग गई ।

इसने भी उसे प्रेम दिया और कहने लगा ठीक है अब तुम मुझे किसी तरह का मार्ग बताओगी । और उसने कहा हां मैं तुम्हें यहां से निकलने का धीरे-धीरे मार्ग बताऊंगी । लेकिन अभी नहीं जब तक कि मेरा पुत्र उत्पन्न नहीं हो जाता है । और मुझे विश्वास है कि पुत्री नहीं केवल पुत्र ही उत्पन्न होगा । क्योंकि मैंने तुम्हारा रक्त चका था मैं उसी दिन समझ गई थी  तुम में पुत्र पैदा करने की शक्ति है । और निश्चित रूप से मुझे पुत्र ही उत्पन्न होगा । फिर धीरे-धीरे करके 9 महीने बीत गए और एक दिन वह आ ही गया । जब उसे अपना पुत्र उत्पन्न करना था सारी वहां की स्त्रियों ने उसे घेर रखा था । क्योंकि उन्हें विश्वास था अगर पुत्र उत्पन्न हुआ तो इसे यहां की पूजारनी बनाया जाएगा । जो वहां की महापूजारनी थी जो महा पिशाचिनी की पूजा करती थी उसने एक कपाल खंडों की बिस्तर बनाया और रक्त डाल दिया । और उस स्त्री को लेटाल दिया । लेटालने के बाद थोड़ी देर बाद जब प्रसव का समय आया । तो इसने उसकी योनि में हाथ डालकर उस बच्चे को बाहर निकाल लिया । यह इतना अद्भुत चीज थी कि गोपाल इसे देखकर गोपाल के रोंगटे खड़े हो गए । गोपाल को कुछ समझ ही नहीं आ रहा था और उस पिंड को देवी के चरणों में रखा गया ।जो  महा पिशाचिनी थी और उस बच्चे के कई टुकड़े कर दिए गए । और हर एक टुकड़े को धीरे-धीरे करके खाने को दौड़ी सभी स्त्रियां सारी स्त्रियों ने थोड़ा-थोड़ा करके बच्चे के पिंड को खाया । जो अभी-अभी पैदा हुआ ही था । ऐसा नजारा देखकर के गोपाल का दिमाग ही खराब हो गया ।

गोपाल ने कहा मुझे यहां से किसी भी तरह से बचकर निकलना ही होगा । वह इस तरह की घृणित हरकत देख कर के पागल सा हो गया । और कहां मैं कहां इन पिशाचनियो के बीच फंस गया । पर यह चीज बड़ी दर्दनाक थी । लेकिन जो कि पुत्र की बलि दी थी । उस ध्रुवी ने।  इसी वजह से उसके बाद ध्रुवी को ही वहां की महा पुजारिन का पद दे दिया गया । ध्रुवी यह बात जानती थी और ध्रुवी ने यह कहा मैं अब पुजारिणी तो बन जाऊंगी लेकिन बिना भूख के मेरी इच्छा पूरी नहीं होगी ।इसलिए उसने एक दिन प्रस्ताव को गोपाल के सामने रखा । मैं तुम्हें यहां से लेकर निकल जाऊंगी और यह दुनिया छोड़कर तुम्हारी दुनिया में चली जाऊंगी बस शर्त यही है । कि तुम्हें पूरी जिंदगी मुझे प्रति रात्रि मुझसे भोग करना होगा । और तुम्हारा 15 15 दिन पर रक्त पीती रहूंगी । बस किसी भी तरह से तुम मुझे संतुष्ट रखना इन दोनों चीजों के बिना मैं जीवित नहीं रह पाऊंगी ।और मेरी इच्छा है अभिलाषा है तभी मैं ही यहां से मार्ग बनाऊंगी । तुम मुझे अपनी पत्नी स्वीकार कर लो कोई मार्ग ना देखते हुए । गोपाल ने ऐसी मजबूरी देखते हुए । क्योंकि अब सभी स्त्रियां लालाइत उसके दायित्व में हो गई थी कि हमें यह गोपाल पुत्र देगा तो एक पुरुष मात्र यही है । क्योंकि इसने जो है महा पिशाचिनी देवी की उसे पुजारिन बना दिया है । और उसको पुत्र दिया है निश्चित रूप से यह हमें भी महा पूजारीन बना देगा और हर स्त्री गोपाल के पास आकर के खून पीने लगी । और उसे वही द्रव्य पिलाने लगी ऐसी स्थिति पैदा होने पर बड़ी ही खराब ही स्थिति पैदा हो गई ।

गोपाल के लिए गोपाल का मृत्यु जैसा समय आ चुका था । गोपाल ने कहा इस तरह से तो मैं मर जाऊंगा । तुम मेरी रक्षा करो और यहां से निकाल दो । किसी तरह कुछ भी करो तो इस प्रकार से 1 दिन फिर ध्रुवी ने वहां से भागने का इसके साथ एक योजना बनाई । और उन्होंने एक डलिया बड़ी सी बना ली । उस डलिया से उन्हें वह समुंदर पार करना था । डलिया तैयार करके वह चुपचाप उस डलिया में बैठ गए । वहां से भागने की सोचने लगे । लेकिन अभी लोग यहां के जितने भी स्त्रियां थी ।उन्होंने इन्हें देख लिया । उन्होंने जहर भरे तीरों को उन दोनों के ऊपर छोड़ना शुरू कर दिया।  उसी में से एक तीर उस स्त्री के कंधे पर लग गया । तो यह हल्का सा घायल हो गई लेकिन उसने अपनी शक्तियों से उस घायल जगह को जो कंधे पर तिर लगा था । उसे तुरंत ही ठीक कर लिया और उस डलिया में बैठ गई । फिर उसने महा प्रेत का आवाहन किया उस महा प्रेत का आवाहन हुम फट मंत्र से उसने किया । और इस मंत्र को लगातार वह जपती रही । वहां पर महा प्रेत प्रकट हुआ और कहने लगा क्या आज्ञा है देवी । तो ध्रुवी ने कहा तुम मेरी डलिया को पकड़ लो और इतनी त्रिविता से इसे खींचते हुए चलो की इनके बाणो से हमारी रक्षा हो सके । और यहां से हम भाग कर के भारतदीप के समीप पहुंच सके । कुछ भी करो मगर तेजी से यह कार्य करो प्रेत ने उनकी डलिया पकड़ ली वह बहुत ही तेज़ी के साथ खींचता हुआ अत्यधिक ही तेज गति से वह समुद्र के बीच में जाने लगा । तो यह था दूसरा भाग । धन्यवाद आपका दिन मंगलमय हो ।

काम या भोग पिशाचिनी की शुरुआत कहानी भाग 3

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