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कायाकल्प करने और शिवरात्रि मोहिनी सिद्धि प्रयोग सच्चा अनुभव भाग 1

कायाकल्प करने और शिवरात्रि मोहिनी सिद्धि प्रयोग सच्चा अनुभव भाग 1

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। आज एक नया रहस्य जानेंगे और समझेंगे क्योंकि एक बार फिर से हिमालय क्षेत्र से साधक महोदय ने अपने कुछ गोपनीय अनुभव और इसके साथ ही एक गुप्त साधना को भी बताने का आज चयन किया है। यह वही साधक है जिन्होंने श्रीराम तारण योगिनी साधना और रति भैरव रहस्य के विषय में हमें बताया था। चलिए पढ़ते हैं इनके पत्र को और जानते हैं। इनके अनुभव जिसके माध्यम से आप सभी निश्चित रूप से लाभान्वित होंगे और एक महान रहस्य से पर्दा उठेगा ।

ईमेल पत्र-नमस्कार मित्र पिछले पत्र में मैंने आपको ईमेल के माध्यम से यति भैरव रहस्य के बारे में बताया था जिसे सभी धर्म रहस्य के दर्शकों ने काफी पसंद किया था। आज मैं अपने ही जीवन की एक प्रसिद्ध घटना और महान रहस्य से आप सभी को अवगत कराऊंगा। मैं यह जानता हूं कि साधना काल में रहने के कारण हम लोगों के पास इतना समय नहीं बचता कि हम उस दुर्लभ ज्ञान को सभी तक पहुंचा सके, लेकिन आप और आपके चैनल के माध्यम से एक वास्तविक ज्ञान लोगों तक पहुंच रहा है इसके लिए मैं आपकी प्रशंसा करता हूं और चाहता हूं कि आप इसी प्रकार लोगों का मार्गदर्शन आजीवन करते रहे। अब आज जो मैं अनुभव आपको बताना चाहता हूं, यह बहुत ही दुर्लभ और गोपनीय रहा मेरे जीवन के लिए और इस रहस्य को खुद मैं भी अच्छी तरह नहीं समझ पाया था। यह अनुभव था। कायाकल्प की एक विधि से संबंधित जिसमें एक सिद्ध व्यक्ति ने मुझे कायाकल्प करके दिखाया था। कई नए साधक!

इस रहस्य को नहीं समझते होंगे कि आखिर कायाकल्प क्या होता है तो उनकी जानकारी के लिए मैं बता दूं कि कायाकल्प एक ऐसी विधि है जिसके माध्यम से आप अपने बुढ़ापे को जवानी में बदल सकते हैं। यहां तक कि आप फिर से नया शरीर प्राप्त कर सकते हैं। इसकी बहुत सारी विधियां प्राचीन काल में प्रचलित थी, लेकिन इस विषय की कुछ गंभीरता भी है। इसे आप सार्वजनिक नहीं कर सकते। इसलिए मैं इसकी विधि को आप को नहीं बताऊंगा। सिर्फ इसके अनुभव को आपको बताऊंगा। लेकिन एक साधना जिसे शिवरात्रि पर किया जा सकता है। आप लोगों के लिए प्रस्तुत अवश्य करूंगा ताकि आप सभी का सभी प्रकार से भला हो सके तो मैं अब अपने विषय पर आता हूं। मैं जब नया नया तंत्र साधना के क्षेत्र में उतरा था तो उस वक्त मेरे सामने सिद्ध व्यक्ति को ढूंढना सबसे बड़ी परेशानी थी तो इसी प्रकार हम लोग इलाहाबाद के स्थल पर एक गुप्त साधु के विषय में पता करते हैं। मैं और मेरा एक मित्र उन साधु जी महाराज के पास पहुंचते हैं। उनकी अवस्था 91 वर्ष की थी। यानी जीवन के अंतिम पलों की वह तैयारी कर रहे थे। ऐसे में उनके पास जाकर सीखना बहुत ही अद्भुत था। इसलिए मैंने सोचा कि चले इनके पास चलते हैं क्योंकि इनके पास जीवन के 91 वर्ष है। इसलिए इन्होंने तंत्र से बहुत ज्यादा जानकारी हासिल की होगी।

ऐसे गुरु मिलना बहुत बड़ी बात होती है और मेरे लिए यह बात अनिवार्य थी क्योंकि मैं अति गोपनीय तंत्र को सीखना चाहता था तो किसी ने कहा कि इनके पास बहुत ही दुर्लभ सिद्धियां है। लेकिन यह किसी को बताते नहीं है अपने शिष्यों को भी नहीं। तब मैंने उनसे मिलने का निर्णय किया। वह एक घुप अंधेरे कमरे में जो कि मंदिर के पास ही था, उसमें हवन कर रहे थे। जिस वक्त में वहां पहुंचा, मैंने देखा वह हवन कर रहे थे। इसलिए मैं और मेरा मित्र बाहर ही बैठ गए क्योंकि उन्हें किसी भी प्रकार से परेशान करना हमारा उद्देश्य नहीं था। तकरीबन रात भर उनका हवन चला और वह इतने थके थे कि अच्छे से उठ भी नहीं पा रहे थे। तभी उनके कुछ शिष्य वहां आ गए और उन्हें उठाकर बाहर लेकर आए। तब वह किसी प्रकार खड़े हुए। तब हमने उनसे कहा, गुरु जी आप यहां पर कौन सी साधना कर रहे थे। आपका शरीर तो काफी वृद्ध हो चुका है। इसके लिए आप भी इस प्रकार कठोर साधना करेंगे तो कैसे काम चलेगा। अगर आप बीमार पड़ जाते हैं या किसी रोग से ग्रसित हो जाते हैं तो फिर आप की सेवा किस प्रकार से हो पाएगी। यह सुनकर उस बूढ़े व्यक्ति ने मुस्कुराते हुए कहा। जीवन तो एक यात्रा है और मेरी यात्रा पूरी होने वाली है। लेकिन मेरी साधना तो अभी भी अधूरी है। इसीलिए कुछ बड़ा करने की सोच रहा था।

मेरे गुरु ने मुझे कई गोपनीय विद्या सिखा कर इस दुनिया से विदा ली थी। अब सोचता हूं कि उस विद्या का प्रयोग लगता है, मुझे कर लेना चाहिए। उन्होंने मेरी ओर देखा और कहा, तू तो बड़ा सिद्ध होने वाला है। तू मेरे लिए सबसे उपयुक्त व्यक्ति लगता है। इसीलिए उन्होंने कहा, ऐसा कर तू अपने मित्र का साथ छोड़ दें और इस त्रिवेणी के पार एक स्थान पर मुझे आकर मिल।

उनके कहे अनुसार मै अपनी जगह पर अकेला ही अपने मित्र को छोड़कर चला गया। मेरे मित्र ने भी मेरा सहयोग किया। वह यह बात समझ गया था कि यह बूढ़ा विद्वान व्यक्ति कुछ न कुछ अवश्य ही तांत्रिक क्रिया मेरे मित्र से करवाना चाहता है। इसीलिए उसने भी मुझे रजामंदी दी और कहा जाओ। इनकी सेवा में जाओ। मैं नदी के पार उनके बताए गए एक वीरान स्थान पर पहुंच गया। वहां पर उनके लिए उनके शिष्यों ने झोपड़ी का निर्माण करवा दिया था। अब! वह बैठे कुछ देर साधना किए तब तक मैं उनके पास उनके चरणों में सेवा के लिए बैठा रहा। तब उन्होंने साधना पूर्ण कर मेरी तरफ देख कर कहा, तुझे एक योग्य सिद्धि देखनी है। इसीलिए तो यहां पर आया है ना तेरा भाग्य बहुत प्रबल है क्योंकि मेरी जिंदगी का सारा निचोड़ तू देख लेना चाहता है।

ठीक है अब तू मेरी सेवा कर मैंने कहा गुरुदेव आपकी सेवा करना मेरा सौभाग्य होगा। आप मुझे बताइए कि मुझे क्या करना है? वह कहने लगे जो कार्य में तुझे सौप रहा हूं। क्या वह तू कर पाएगा? क्योंकि अगर तू ऐसा नहीं कर पाया तो फिर मेरा कार्य भी रुक जाएगा। इसलिए अगर डरता है तो अभी चला जा मैं किसी दूसरे व्यक्ति को ढूंढ लूंगा। मैं समझ चुका था। कोई भयंकर तांत्रिक क्रिया साधु महाराज करने वाले हैं। लेकिन मैंने उन्हें गुरु माना था। इसलिए गुरु का साथ किसी भी दशा में आप नहीं छोड़ सकते। मैंने उन्हें प्रणाम कर कहा, कितना भी भयंकर कार्य होगा। मैं तैयार हूं तो उन्होंने मुझसे कहा ठीक है। यही पास में नदी में जाकर छलांग लगा दे। और जो भी तेरे हाथ में आए उसे ऊपर ले आना। चाहे वह कुछ भी हो। मैंने कहा ठीक है आपकी बस अगर ऐसी ही इच्छा है तो मैं अवश्य ही इस कार्य को पूर्ण कर दूंगा क्योंकि मैं एक अच्छा तैराक था, इसलिए मेरे लिए कोई समस्या नहीं थी, नदी में अंदर जाने में।

उन्होंने कहा अभी रुको, मैं तुम्हें शुभ मुहूर्त बताऊंगा तभी तुम जाना 2 दिन के इंतजार के बाद अचानक से ही रात के 3:00 बजे उन्होंने मुझे जगाया और कहा समय आ चुका है। ग्रह नक्षत्रों की स्थिति बिल्कुल सही है। जाओ तुरंत नदी में छलांग लगाओ उन्होंने मुझे। दक्षिण दिशा की ओर नदी में तैरने को कहा और उसके बाद एक विशेष स्थान पर नीचे जाने के लिए।

मुझे संदेश दिया था। मैं तुरंत ही नदी में छलांग लगा दिया क्योंकि गुरु की आज्ञा थी इसलिए बिना विचारे ही करना था। अंधेरे में ज्यादा कुछ दिखाई नहीं पड़ता है। मैं यह सोच रहा था कि अगर कुछ दिखेगा भी तो मैं जान कैसे पाऊंगा। क्या है फिर भी गुरु की आज्ञा थी तो कार्य तो करना ही था। थोड़ी देर करने के बाद अचानक से मुझे ऐसा महसूस हुआ। मुझे थोड़ा और गहराई में जाना चाहिए। और तभी एक सफेद चमकती सी चीज मुझे दिखाई दी। मैंने उसे पकड़ लिया। ऐसा लगा जैसे मैंने किसी का पैर पकड़ लिया हो और मैं उसे खींचकर ऊपर लाने लगा। अंधेरा बहुत ज्यादा था। वह शायद अमावस्या ही रही होगी। इसलिए कुछ भी देखना संभव ही नहीं था। मैं उसे खींचकर ऊपर ले आया और नदी के किनारे पर पहुंचकर गुरुदेव की ओर बढ़ने लगा। पर मुझे बहुत ज्यादा डर लगने लगा। मुझे लगा कि मैं लगता है किसी आदमी के बच्चे की लाश लेकर अपने गुरु की ओर जा रहा हूं।

तब मैं भी सोच में पड़ गया। आखिर बच्चे की लाश का मेरे गुरुदेव क्या करेंगे, मैं उनके पास उस लाश को रख दिया। बच्चा तकरीबन सात आठ वर्ष का रहा होगा गोरे बदन वाला शरीर और अभी अभी जल्दी ही इसकी मृत्यु हुई होगी पानी में डूबने की वजह से।

तब मेरे गुरु ने मुस्कुराते हुए कहा, तुमने एक अच्छा कार्य किया है। अब आगे का कार्य शुरू करो। मैंने कहा गुरुदेव मुझे क्या करना होगा तब गुरु ने वहां पर रखे एक आंवला चूर्ण, भृंगराज चूर्ण,, काले तिल का चूर्ण और गाय के दूध इन चीजों की व्यवस्था कर रखी थी। उन्होंने इन सब को एक साथ मिलाकर उस बालक के बदन पर लगाने के लिए कहा।

और इस दौरान वह कुछ मंत्र का उच्चारण करते रहे।

इसके बाद क्या हुआ जानेंगे अगले भाग में तो अगर आज का वीडियो और कहानी आपको पसंद आ रही है तो लाइक करें। शेयर करें, सब्सक्राइब करें। आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद।

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कायाकल्प करने और शिवरात्रि मोहिनी सिद्धि प्रयोग सच्चा अनुभव भाग 2

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