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कालकरणी महा पिशाचिनी सिद्धि अनुभव

कालकरणी महा पिशाचिनी सिद्धि अनुभव

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। आज हम जो अनुभव लेने जा रहे हैं, यह काल करणी महा पिशाचिनी साधना से संबंधित है। भेजने वाले एक साधक हैं जिन्होंने यह अनुभव यहां पर भेजा है तो चलिए जानते हैं इस काल करणी महाविनाशनी सिद्धि अनुभव के विषय में।

जय श्री दक्षिणामूर्ति मेरा.. नाम है। इसे मैं गुप्त रखना ही उचित समझूंगा। आपके चैनल से आपने कई लोगों के अनुभव सामने लेकर आए हैं तो मैंने सोचा, मैं भी अपना अनुभव आपके और चैनल के दर्शकों के साथ साझा करु। अगर यह अनुभव अच्छा लगे और चैनल संपर्क डालने लायक हो तो अवश्य सबसे इसे साझा करें। क्षमा करिएगा। विशेष परिस्थितियों के कारण मैंने अपना नाम और रहने का स्थान नहीं बताया है क्योंकि इससे भारी समस्या हो सकती है। सबसे पहले तो श्री सूरज प्रताप जी को मेरा दंडवत प्रणाम आज से कुछ समय पूर्व मैंने काल करणी पिशाचिनी की साधना सिद्धि की थी और आज मैं आपको उनकी साधना का अनुभव साझा करने वाला हूं। मैं तंत्र के क्षेत्र में बीते 7 से 8 महीने से हूं और गुरु कृपा से मुझे कम उम्र में ही काफी कुछ सीखने को मिला है। मैंने दक्षिण आचार साधक के रूप में शुरू किया था। पर समय के साथ कुछ ऐसा हो गया कि मुझे शीघ्र ही शमशान से दोस्ती करनी पड़ी। विष्णुपद धाम गया। यह मेरी साधना स्थली रही और यहां के महा श्मशान में मैंने बीते दिनों अनेक वाममार्गी साधना अंजाम दिया। मेरे कई गुरु रहे हैं जिसमें से एक गुरु कापालिक रहे थे, जिनकी देखरेख में मैंने साधना को सीखा है और अनेका अनेक विद्याओं को देखा है जिसमें से कई ने मुझे आचरज से भर दिया और कुछ ऐसी चीजें थी जिसे मैंने सीखा गुरुदेव से मैंने जब शक्ति सिद्धि की बात कही तो उन्होंने मुझे पहली बार देखते ही कह दिया। तुम कर लोगे। बस मन को दृढ़ कर लो। यह सुनकर मेरे मन में उत्साह भर गया था। साथ ही एक अजीब सा मीठा-मीठा भय भी आया था क्योंकि अभी तक मैंने केवल शमशान का नाम ही सुना था और घर में बैठकर मंत्र का जाप किया था। मेरे किसी मित्र ने मुझे शमशान से मिट्टी लाने की विधि एक बार पीडीएफ बनाकर बताई थी तो उसे देख कर ही डर गया था कि यह कितने नियम हैं? पर जब मैंने प्रैक्टिकल किया तो यह उतना भी कठिन नहीं था। गुरुदेव ने मुझे पहले रक्षा मंत्र सिद्ध करवाया और शरीर बंधन का विधान में निपुण करवाया।

फिर मुझे काल करनी महा पिशाचिनी की दीक्षा दी। यह साधना कुल मिलाकर 19 दिनों की थी और इसे अमावस्या से शुरू करना था। साधना में रेत पर रोज यंत्र बनाना था और श्मशान की शक्तियों को बलि देना था। उनकी आज्ञा लेनी थी। फिर 80 माला पर साधना शुरू करनी थी। नित्य 83 माला करनी थी। साधना के समय आंखों को खोलना, शरीर खुजलाना आसन बदलना या साधना छोड़कर भागना सर्वथा मना था। मैंने ललिता अंबा को याद करके अपने दिल को मजबूत किया और साधना करने बैठ गया। सभी सामग्री गुरुदेव ने उपलब्ध करवा दी थी। साधना के प्रथम रात्रि मैंने 10 बजे तक यंत्र बनाकर और बलि कर्म पूरा करके साधना को करने में और माला जाप करना शुरू कर दिया। अमावस के अंधेरे में बहुत ही गजब लग रहा था। पूरा शमशान सुनसान लग रहा था, जबकि मैं जिसे श्मशान में साधना कर रहा था, वह कभी खाली नहीं रहता है। मैंने माला फेरी और तब पूरा शमशान शांत होता जा रहा था। 50 ही माला को पूरा करते-करते मुझे ऐसा लगने लगा कि मैं शांत होने लगा हूं। अगर मुझे पहले से गुरु देव द्वारा तैयार नहीं किया जाता तो मुझे पक्का यकीन था कि उस दिन साधना खंडित कर देता। मैंने खुद को संभाला और होश में आकर साधना पूरी करी साधना पूर्ण होते ही रोज हमें लकड़ियों में आग लगाकर महा पिशाचिनी को देसी मुर्गी के अंडे को जलाकर भोग देना था और देसी शराब का स्नान कराना था। यह कृत्य मुझे करने में पहली रात बेहद अजीब लग रहा था क्योंकि मैं शुद्ध शाकाहारी हूं, परंतु मैंने इसे अपना कर्म समझ कर पूर्ण किया और फिर मैं अपने रूम में संपर्क में जा कर के सो गया।

साधना का दूसरा दिन फिर से मैंने निर्धारित संपर्क सब क्रिया पूर्ण कर के जाप करने बैठ गया और मुझे बेहद अच्छा एहसास हो रहा था। साधना के बीच मुझे गालों पर किसी के सांसो का गर्म हवा लग रही थी। यह बेहद अच्छा लग रहा था। मुझे इच्छा हो रही थी कि उनको अपने सीने से लपेट लू पर मैंने ऐसा नहीं किया और केवल जॉप पर ध्यान दिया। माला जब अंतिम जप रहा था तब मैं उसकी सांसों से मुस्कुरा दिया क्योंकि इतना प्रेम आनंद मुझे बिल्कुल भी सहन नहीं हो रहा था। मेरे मुस्कुराते ही मुझे मेरे गालों पर इतना जोर का थप्पड़ पड़ा कि एक पल को तो मैं होश ही खो बैठा। माला पूर्ण होने के बाद भी मुझे हिम्मत नहीं हो रही थी कि मैं अपनी आंखों को खोलो पर देखने के लिए मैंने जैसे-तैसे हिम्मत जुटाकर आंखें खोली और फिर भोग देने बैठा तो देखा कि मेरे द्वारा लाए हुए अंडे में से एक अंडा गायब हो गया था। परंतु मैंने इस पर अधिक ध्यान नहीं दिया क्योंकि शायद कोई जानवर इसे ले गया हो। साधना पूर्ण करके रात्रि को मैं कब सोया तो मुझे निद्रा में होने लगा। बार-बार ऐसा लग रहा था जैसे कोई मेरे लिंग को छू रहा हो। स्वप्न में ऐसा आभास हो रहा था कि कोई कन्या मुझे संबंध बनाने को आतुर है। पर तभी मेरी निद्रा खुल गई और मैं बच गया। दिन भर मैंने अपना इधर उधर का काम किया और रात के लिए तैयार हो गया। ऐसे ही कई रात भी थी। साधना में जिस में कभी किसी के साथ मेरे गालों पर कभी कोई बालों को सवारता एक दो बार तो कान के संपर्क किसी के होठ से भी हुए जोकि अत्यंत कोमल थे। यह सब अनुभव मेरे लिए नए थे पर इसमें कोई खास है, मुझे नहीं लग रहा था, परंतु आगे जो साधना के 15 रात्री को हुआ, वह बड़ा ही भयंकर था। बीच साधना में मुझे बंद आंखों से दो युवतियां और एक पुरुष आते हुए दिखाई दिए जो आकार में सामान्य लोगों से बड़े थे ।

सामने आने पर मैंने देखा कि स्त्रियां बेहद खूबसूरत और कपूर की भांति गौर वर्ण की थी। पुरुष भी बलिष्ठ था। मेरे सामने आकर उन्होंने बेहद अजीब हरकतें करनी शुरू कर दी। दोनों स्त्रियों ने एक दूसरे को उत्तेजना के साथ चुंबन करना शुरू कर दिया और उनकी यह बात बहुत आगे तक बढ़ गई थी और वह पुरुष मेरे पास आ गया उसकी सांसे।

सासों से टकराने लगी। उसने मेरे कानों पर चुंबन किया। मैं थोड़ा सा सकुचाया हल्का हिला तभी उसकी सास ने मेरे गाल पर जोरदार तमाचा मारा और कहा कि मैं तो रोज तेरे साथ प्रेम करता हूं। तब तो तू मुझसे नहीं घबराता। आज प्रत्यक्ष प्रेम कर रहा हूं तो ऐसा क्यों ? यह बातें सुनकर मेरे कलेजा मेरे मुंह में आ गया रोज जिसकी सांसे और स्पर्श मैं स्त्री का स्पर्श समझता था। वह अधेड़ उम्र का दिखने वाला पिशाच निकला। मैं बिल्कुल टूट गया की सिद्धि होगी या नहीं होगी। वह तो बाद की बात है। यहां तो आध्यात्मिक स्तर पर मेरा बलात्कार हो रहा है। मेरी आंखों से आंसू बहने लगे। पर फिर मुझे गुरुदेव की बात याद आई कि मन को दृढ़ रखना और मैंने वही किया साधना पूर्ण होते ही वह गायब हो गया था और भोग देने के बाद में रोते हुए घर आया। रात भी रोते रोते मेरी आंखें लाल हो गई। परंतु अब जब गड्ढे में उतरा तो इसे उचित रूप से पूरा करना आवश्यक था। 16 और 17 वें दिन भी बिल्कुल ऐसा ही हुआ। वह पिशाचिनी आई और आपस में संबंध बनाते रहे। यह पिशाच मेरे साथ घिनोनी हरकतें करता रहा। मुझे पूर्ण विश्वास हो गया था कि पिशाच योनी इनको सही मिली है क्योंकि इनका आचरण जितना गंदा है तो जीवन काल में यह लोग और भी ज्यादा घटिया रहे होंगे। अगले रात्रि में साधना में बैठा और जानता था कि आधी रात को फिर वह तीनों आएंगे और मेरा शोषण करेंगे, परंतु आज मैंने हथियार डाल दिए थे। पूर्ण रूप से गुरु की बात पर समर्पित हो गया और सोच लिया कि जो होना है होने दो मेरे बस शुरू में कुछ नहीं था और कितना भी प्रयास कर लो। मेरे हाथों में कभी कुछ नहीं रहेगा। जिस गुरु ने दिया है वही तारेंगे और मारना होगा तो वही मारेंगे। ठीक है।

पहले की तरह साधना के बीच में फिर वह तीनों आ गए पर अपना दैनिक कार्यक्रम शुरू किया पर मैं अचल था। उन्होंने बहुत प्रयास किया। पर जब मैं बिल्कुल नहीं हिला और एकाग्र चित्त जॉप करता रहा। तभी मुझे कुछ दृश्य दिखने लगे और ऐसा होते ही तीनों मिलकर मुझ पर प्रहार। करना शुरू कर दिए तभी सामने से एक सफेद रोशनी आई और एक अत्यंत क्रूर स्वभाव वाली हाथ में रक्त पात्र में लिए हुए एक शक्ति प्रकट हुई। उन तीनों को बालों से पकड़कर उठाया और खाते हुए खुद में विलीन कर लिया। यह दूसरी बार था जब मेरा कलेजा मेरे मुंह पर आ गया। पर मैं आश्चर्य से देखता रहा तभी उन्होंने अपना कटार घुमाया और सीधे मेरे गले संपर्क पर चला दिया। मैं समझ गया। मैं आज राधा रानी के गोलोक को प्राप्त होने वाला हूं और मैंने समर्पण से अपनी नियति स्वीकार कर ली। तभी मैंने देखा कि मैं दैनिक जॉप के आखिरी मनके पर पहुंच गया और उन देवी का कटार भी गले संपर्क पर रुक गया और मेरी आंखें खुल गई। वह भयंकर मुस्कान देकर अदृश्य हो गई। रात भर मैं बेचैन रहा, क्योंकि मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था। पर मन में अजीब शांति थी, जिससे कोई भय नहीं था। साधना के आखिरी दिन विशेष रूप से प्राथमिक पूजा करना था और फिर साधना में बैठना था। मैंने बिल्कुल वैसा ही किया परंतु आज पूर्ण रूप से शांति रही और 70 माला होने तक कुछ भी नहीं हुआ। मैं समझ गया था। शायद मेरी साधना सिद्धि नहीं हुई पर ऐसा नहीं था। अचानक से मेरे सामने एक बेहद आकर्षक और मादक युवती प्रकट हुई जिसके तीनमुह और तीन नेत्र थे। गौर वर्ण और हरे रंग के वस्त्र थे।

अलग-अलग आयुध है। माला पूर्ण करके मैंने उनको प्रणाम किया। उन्होंने भी नमस्कार किया। उनके नमस्कार करने पर मैं चौक गया। तब उन्होंने अपना परिचय देते हुए कहा कि उनका नाम काल कर्णी है और वह मेरे आवाहन करने पर आई हैं। फिर मैंने उनको कहा कि आपने मुझे दर्शन दे दिया है पर मुझे लगा शायद आप नहीं आएंगी। तब उन्होंने बताया कि गुरु निष्ठा और मेरे पूर्व कर्मों के बल संपर्क पर उन्हें यहां आना पड़ा। अन्यथा आज के समय उनकी साधना पूर्ण कहा गुप्त है। इसकी परीक्षा बेहद कठिन होती है। मैंने उनसे पूछा आपने तो मेरी परीक्षा ले ली है। तब वो खिलखिला कर हंस दी और उन्होंने कहा कि आप ऐसा कैसे कह सकते हैं। मैं काल करनी हूं और मैं व्यक्ति को त्रिकाल ज्ञानी बना देती हूं। उसकी क्षमता के अनुसार मैंने तुम्हारी बेहद कड़ी परीक्षा ली है और तुम उसमें बखूबी फलित हुए हो। काम क्रोध लोभ तो कई लोग संभाल लेते हैं तुम्हें उससे भी बड़ी चीज को संभाला है। मैं बिल्कुल आश्चर्य में था।

मेरी नासमझी को देखकर वह मुस्कुराए और फिर उन्होंने कहा कि मैं तुम्हें समझाती हूं। जो दो स्त्रियाँ और एक पुरुष आते थे, वह मेरे ही दूत थे। तुम्हारी परीक्षा लेते थे। दोनों स्त्रियां भूतकाल भविष्य काल थी जो कि निरंतर आपस में समागम करती थी और वह पुरुष वर्तमान था जो तुम पर हावी होने की कोशिश करता रहता था और जब भी तुम खुद को मुक्त करने की कोशिश करते, वह तुम पर घात करता। तुमने बिना विचलित हुए उनका सामना किया और एक समय ऐसा आया। जब तुम्हें पूर्णता ज्ञान हो गया कि तुम्हारे हाथ में कुछ नहीं है। ना ही कभी कुछ होगा तुम तो निमित्त मात्र हो जिसको अपना कर्म करना है और इसी क्षण वह भयंकर काली स्त्री प्रकट होकर उन तीनों को खा गई। खुद में मिला लिया। वह स्त्री और कोई नहीं महाकाली थी जिसने तुम्हारे समर्पण के फलस्वरूप तुम्हें दर्शन दिए। तुम्हे यह दिखाया कि काल को भी निगलने वाली महाकाली है।

और उनके अधीन में तीनों आते हैं। जब तुम्हें अपने खड़क के सामने समर्पण किया तब वह बेहद प्रसन्न हुई और मुस्कुराते हुए तुम्हें आशीर्वाद देकर चली गई। फल स्वरुप आज मैं तुम्हारे सामने प्रकट हुई हूं। बताओ तुम मुझे किस रूप में प्राप्त करना चाहते हो पर ऐसा बोल कर वह अपने होठों को दांतो से दबा दी जिससे खून आ गया। वह तो अत्यंत कामुक लग रहा था। परंतु स्वयं महाकाली ने दर्शन दिए थे। सुनकर मैं चौंक गया। भले ही शक्ति सच बोल रही हो या झूठ पर यह मेरे लिए अत्यंत गौरव की बात थी। मैंने इसी भाव में आकर देवी रूप में प्राप्त करने को कह दिया। उसी क्षण वह सजी और स्वर्ण अलंकारों से युक्त युवती के रूप में आ गई।

प्रेम या कामुकता में फस के मुझे पत्नी या प्रेमिका बना लेते तो तुम मेरे ग्रास बन जाते परंतु तुम्हें यहां भी मेरी परीक्षा पार कर ली है फल स्वरुप उन्होंने मेरे सर पर हाथ रख कर मुझे मेरे 10 पूर्व जन्म दिखा दिए और मेरी कई सारी पूर्व सिद्धियां खोल दी। आशीर्वाद दिया कि मैं किसी को देखने या सोचने मात्र से उसका भूत भविष्य और वर्तमान जान जाऊंगा। परंतु मुझे यह बात केवल अपने तक रखनी है और इसका कोई विशेष समय ही प्रदर्शन करना है। अन्यथा मेरे लिए समस्या होगी। उन्होंने मुझे गले से लगाया और उसमें अत्यंत ममता थी। अश्रु भरे नेत्रों से मुझे वरदान दिया। मैंने उनको प्रणाम किया और वह अंतर्ध्यान हो गई। गुरुदेव को सारा वृत्तांत बताने के और संपर्क करने पर वह मुस्कुराए और कहने लगे जिससे राजा बनना होता है। भले ही वह कहीं भी पैदा हो नियति उसे राजा बना ही देती है। कृपया मेरा ईमेल आईडी भी किसी को ना दीजिएगा क्योंकि मुझे पूर्ण गुप्तता में रहने का आदेश है।

मैंने तो बस कौतूहल वश आपको अनुभव भेजा है। मुझे लिखना अच्छे से नहीं आता। इसलिए क्षमा कीजिएगा आपको और सभी दर्शकों को नमस्कार।

सन्देश- यहां पर आप लोगों ने काल करनी महा पिशाचिनी सिद्धि अनुभव के इनके वर्णन को सुना है। इसी प्रकार के अनुभव साधकों को ऐसी साधनों में होते हैं और दक्षिण मूर्ति भगवान शिव की कृपा से अवश्य ही इसी तरह की सिद्धियां और संस्कार भी हासिल होते हैं तो यथा आज का अनुभव अगर आपको यह वीडियो पसंद आया है तो लाइक करें। शेयर करें, सब्सक्राइब करें। आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद।

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