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कालिका कुक्कुट पिशाचिनी साधना

कालिका कुक्कुट पिशाचिनी साधना

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। आज मैं आप लोगों को एक गोपनीय और तांत्रिक साधना के विषय में जानकारी दूंगा। यह एक पिशाचिनी साधना है। यह साधना रावण के काल में बहुत सारे राक्षसों द्वारा संपादित की गई थी। इसकी सिद्धि जल्दी हो जाती है और केवल 11 दिन के प्रयोग मात्र से इसकी सिद्धि की जा सकती है। यह एक शक्तिशाली और तीव्र कार्य करने वाली पिशाचिनी ही मानी जाती है और इससे आप कई प्रकार के कार्य करवा सकते हैं। इसके अधीन बहुत सारी भूतनी प्रेतनी शक्तियां। मौजूद रहती हैं जिसकी वजह से इसकी साधना करके व्यक्ति के पास बहुत सारी अलौकिक प्रेत आत्माएं इकट्ठा हो जाती हैं और उन्हें वह जो भी आदेश देता है वह सब कुछ वह कर सकने की योग्यता प्राप्त कर लेता है। लेकिन क्योंकि यह एक तांत्रिक प्रयोग है इसलिए जो व्यक्ति पूरी तरह निडर हो। गुरु मंत्र का अनुष्ठान पूरा कर चुका हो या जिसने भगवान शिव के किसी भी महामंत्र का 10 लाख से ज्यादा जाप कर लिया हो।

अपने गुरु के मार्गदर्शन में ही वह यह साधना करें। अन्यथा हानि होने पर कोई भी उसकी रक्षा के लिए नहीं आता है।

इसलिए इन बातों को समझते हुए ही ऐसी तांत्रिक और तामसिक साधनाओ में हाथ डाले।

इस साधना के लिए आपको क्या क्या करना है, इसके बारे में जान लेते हैं। एक पूर्णतः तामसिक साधना है? लेकिन इसे करने के लिए! अश्विन की नवरात्रि से आप!

जब तक।

बसंत ऋतु का समय नहीं आता है। तब तक कर सकते हैं यानी इन 5-6 महीनों के अंतर्गत की जाती है। जब सूर्य का प्रकाश धरती पर कम पड़ता है।

इस प्रकार इस साधना के लिए सबसे पहले साधक अपने गुरु से आज्ञा लेकर। किसी भी एकांत या शमशान में। इस साधना के लिए प्रबंध करले अब जिस स्थान पर।

एक बड़ा वृक्ष लगा हो उस स्थान पर बैठकर। काले कंबल का आसन ग्रहण करें।

पूर्ण तरह नग्न होकर रात्रि में 11:00 बजे से यह साधना शुरू करें।

काले हकीक की माला से मंत्र का जाप करेगा और अगर वह बिना माला के करना चाहता है तो वह इस साधना को बिना माला के भी कर सकता है।

इस मंत्र का रोजाना 51 माला जाप उसे करना होगा।

उस वृक्ष की जड़ पर एक काले मुर्गे को लाकर एक पिंजरे में बंद कर दे। उसके आगे।

तिल के तेल का दीपक जलाकर रखें और मंत्र जाप करें। इस मुर्गे को रोजाना आपको भोजन में काले रंग की सामग्री ही खिलानी है।

और इसे? पिशाचिनी का भोग मानते हुए। उसका स्वरूप मानते हुए ही साधना करनी है। यानी जीवित रूप में पिशाचिनी ही समझना है, ऐसी उसकी सेवा करनी है। इस प्रकार! 11 दिन मंत्र जाप समाप्त होने के बाद मुर्गे को बाहर निकाल ले। इस पूरे काले रंग के मुर्गे को गर्दन से पकड़ कर।

देवी का आवाहन करते हुए कहे कि मैं आपके लिए अपना उत्तम भोग आपको प्रदान करता हूं। आप आये इसे ग्रहण करें और मुझे आकर दर्शन दें। उसकी गर्दन काटकर पीठ पीछे फेंक दें। तब वह मुर्गा! दौड़ता हुआ इधर-उधर भागता है।

और तभी अचानक से एक शक्ति आकर इस मुर्गे को ग्रहण कर लेती है। और साक्षात आपके सामने प्रकट होकर आपसे! आपकी इच्छा पूछती है। तब साधक को चाहिए कि वह उसे प्रणाम करते हुए कहे कि आप आज से मेरी प्रिय प्रेमिका बने।

मैं जब भी आपके मंत्रों का आवाहन करके आपको बुला लूंगा तब आपको आना होगा और मेरा कार्य निश्चित रूप से करना होगा।

आप सदैव मेरी रक्षा करेंगी और मेरी इच्छा अनुसार ही कार्य करेंगी।

कभी मुझे नुकसान नहीं पहुंचाएंगी और अपनी इच्छा से कोई कार्य नहीं करेंगी।

तब वह प्रसन्न होकर कहती है कि जब भी मुझे तुम किसी कार्य के लिए आवाहन दोगे, मैं तुरंत प्रकट हो जाऊंगी। तुम्हारा कार्य करने के पश्चात मुझे मेरा प्रिय भोग देना और मैं संतुष्ट होकर तुम्हारे हर कार्य को करती रहूंगी। यानी जब भी आप पिशाचिनी को बुलाएंगे उसे मुर्गे की बलि भोग के रूप में देंगे। तो वह आपका कार्य निश्चित रूप से कर देती है। आप इसे हर प्रकार के तांत्रिक कार्य करवा सकते हैं। इसके अलावा अगर साधक को स्त्रियों की इच्छा है तो भी यह स्वयं आकर साधक से भोग करती है। इसके अलावा कई प्रकार की प्रेतनी और भूतनीयों को भी साधक के लिए भोग हेतु आमंत्रित करती है। इतना ही नहीं मानवी स्त्रियों को भी वश में करके। अपने साधक के भोग के लिए अर्पित कर देती है। लेकिन याद रखें कि यह साधना एक तामसिक साधना है और इसमें आपको पाप भी लग सकता है इसलिए! केवल विशेष कार्यों के लिए ही पिशाचिनी को आवाहन देना चाहिए।

राक्षस लोग इसका आवाहन शत्रुओं पर कर देते थे तब यह उनका भक्षण करके उन्हें मृत्यु दे देती थी। इसीलिए यह साधना रावण के काल में बहुत ही प्रसिद्ध थी। यह इतनी तीव्र गति से काम करती है कि अगर साधक जिस पर यह हमला करने जा रहे हैं। वह मंत्र ना बोल पाए उससे पहले ही यह उसके प्राण ले लेती है। इसीलिए इसे काफी प्रसिद्धि प्राप्त थी रावण काल में और राक्षस इसका प्रयोग मारण प्रयोग में अधिकतर करते थे।

इस पिशाचिनी को भोग में आपको सदैव मुर्गा देना ही होगा। अगर कभी किसी साधक ने इसे आवाहन दिया और अपना कार्य इसने संपन्न कर लिया।

किसी कारणवश साधक अगर इसे भोग नहीं दे पाता है।

तो साधक को तुरंत ही इसके साथ शारीरिक संबंध बना लेना चाहिए। अन्यथा यह गुस्से में आकर अपने ही साधक के प्राण भी ले सकती है। क्योंकि भोजन ना मिले तो फिर केवल इसे शारीरिक भोग से संतुष्ट किया जा सकता है।

यह साधना पूर्णता तामसिक साधना है और अकेले में जहां किसी भी व्यक्ति की साधना के दौरान नजर न पड़े। वहां की जाती है। साधक साधना काल में स्वयं भोजन बनाए। पूर्णता ब्रह्मचर्य का पालन करें और किसी भी व्यक्ति से संपर्क ना रखें। पूरे 11 दिन उसे संसार से पूरी तरह विरक्त रहना अनिवार्य है, अन्यथा सिद्धि की प्राप्ति नहीं होती है।

और जैसा भी है जो भी कार्य करवाना हो उसके लिए आप इसके मंत्रों से इसका आवाहन देकर।

आप? मुर्गा देकर वह कार्य संपन्न करवा सकते हैं और लोगों का भला कर सकते हैं। मंत्र मैं यहां पर नहीं बोल रहा हूं। क्योंकि इसके मंत्रों को सार्वजनिक रूप से बोलना उत्तम नहीं माना जाता है। आपके स्क्रीन के ऊपर मंत्र चल रहा है। यही इसका मंत्र है- क्रीं क्रीं कालिका कुक्कुट पिशाचिनी आगच्छ शीघ्र कार्य सिद्धि कुरु कुरु ह्रीं

आप भी इसके मंत्र को यूं ही ना बोले तो यह था एक गुप्त पिशाचिनी की सिद्धि। अगर आज का वीडियो आपको पसंद आया है तो लाइक करें। शेयर करें, सब्सक्राइब करें। आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद।

https://youtu.be/P9g_4UKP2oc

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