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कालीमठ मंदिर की दो गुप्त योगनियाँ भाग 3

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। पिछली बार हम लोगों ने। इस रहस्यमई मठ और मंदिर की कहानी में जाना था कि किस प्रकार से एक ऋषि सुंदर नाम के, एक आकाश गामिनी डाकिनी के प्रलोभन में आ चुके हैं। वह आकाश गामिनी डाकिनी इनकी साधना से प्रसन्न होकर इनके पास प्रकट हो चुकी थी और इनके पूर्व काल में घटित घटनाओं को समझते हुए उसने यह करने की कोशिश की कि उसका विवाह इन ऋषि के साथ संपन्न हो। अब जब ऋषि के पास वह पहुंची और उसने दो रूपों में यानी कि योगनियों के रूप में उनके पास जाकर कहा तो ऋषि प्रसन्न होकर कहने लगे.

मुझे यह वाली अधिक पसंद है और इस प्रकार से डाकिनी ने अपने दोनों रूपों में से एक रूप को वहां पर रखा और दूसरा रूप गायब कर दिया। ऋषि ने कहा, मैं आपको हृदय से चाहता था इसीलिए 1 वर्ष तक मैंने आपकी तपस्या और पूजा की थी। चौसठ योगिनी साधना के माध्यम से मैंने आप लोगों के कहे अनुसार साधना संपन्न कर ली है। आपको मैं अपनी पत्नी बनाना चाहता हूं। क्या मैं अब इस लायक हो चुका हूं? इस पर उस डाकिनी ने। अपनी मायावी योगिनी रूप में आकर कहा था कि अब आप विवाह करने के लिए पूरी तरह से तत्पर हैं और आपकी साधना से भी आप पूरी तरह से तैयार हो चुके हैं। बताइए आप मेरे साथ किस प्रकार विवाह करेंगे? तब ऋषि ने कहा, मुझे वैदिक विधि से आपके साथ विवाह करना है। डाकिनी जानती थी अग्नि के सात फेरे लेना उसके लिए उपयुक्त नहीं है। उसने कहा, मैं अशरीरी हूं यानी बिना शरीर की हूं। इसलिए अगर आपको मुझ से विवाह करना है तो फिर आप मुझसे गंधर्व विवाह कर ले। यह बात! ऋषि ने सुनकर कहा, आपकी जैसी इच्छा हो, मैं उसी प्रकार आप से विवाह कर लूंगा। आपकी अगर इच्छा इस प्रकार विवाह करने की है तो मैं अवश्य ही यह विवाह कर लूंगा। डाकिनी ने अपने हाथ में वरमाला ले ली और ऋषि के गले में डाल दी .

ऋषि ने भी अपने हाथ में पकड़ी हुई फूलों की माला डाकिनी के गले में पहना दी। इस प्रकार गंधर्व रीति से प्रेम विवाह संपन्न हो गया। अब प्रेम में पड़ी हुई डाकिनी ने कहा, चलिए उस पर्वत शिखर की ओर चलते हैं।ऋषि! पहले ही सम्मोहित थे इसलिए उसकी किसी बात को ना करने की क्षमता उनके अंदर नहीं थी और वैसे भी नया विवाह हुआ था तो प्रेम उनके अंदर भी उमड़ रहा था।वह दोनों पर्वत शिखर में क्रीड़ा करने लगे। दोनों एक दूसरे को छूते और भाग जाते इस प्रकार से उस पर्वत में। उन दोनों की चहल-पहल से पशु पक्षी इत्यादि भी डर कर इधर-उधर भाग रहे थे। यह देखकर ऋषि को बड़ा आश्चर्य हुआ। उन्होंने सोचा कि आखिर ऐसा क्या है कि हमारी इस प्रेम क्रीडा को देखकर? पशु और पक्षी भाग जाते हैं। उसने उसे मायावी डाकिनी से पूछा।

आप बताएं यह पशु और पक्षी हम लोगों को देखकर डर के मारे भाग क्यों जाते हैं? अभी तक तो ऐसा कभी नहीं हुआ था जब मैं साधना कर रहा था तब भी मेरे पास। सभी पशु और पक्षी आकर बैठ जाया करते थे लेकिन कोई मुझे! परेशान नहीं करता था। और ना ही किसी भी प्रकार से भयभीत होता था। डाकिनी ने इस बात को समझ लिया कि यह मेरे वास्तविक स्वरूप को जान गए हैं इसीलिए! मेरी माया का प्रभाव इन पर नहीं पड़ रहा।डाकिनी ने वहीं पास में एक हिरण को पकड़ लिया और उसे दुलार करने लगी। उसने कहा देखा यह हम से डर नहीं रहे हैं। सिर्फ हमारी चहल पहल से घबरा गए हैं। वरना इस हिरण को तो भाग जाना चाहिए था। असल में डाकिनी ने अपनी मायावी विद्या के प्रयोग से उस हिरण को सम्मोहित कर दिया था। इसी कारण वह उनके साथ में खड़ा हुआ शांत भाव से उन लोगों का साथ दे रहा था।

अब यह बात पूरी तरह से ऋषि को समझ में आ गई कि उनके इस प्रेम आलाप क्रीडा की वजह से ही। पशु पक्षी डर रहे होंगे।तब ऋषि सुंदर ने उनसे कहा देवी चलो यहां से कहीं और अकेले स्थान पर चलते हैं। वही जा कर के हम लोग अपने प्रेम संबंधों को और आगे बढ़ाएंगे। डाकिनी ने ऋषि सुंदर की बात मान ली। अब दोनों पर्वत शिखर से एक विशेष स्थान की ओर जाने लगे। यह वही स्थान था जहां वर्तमान की काली शीला मौजूद है।डाकिनी और ऋषि सुंदर एक दूसरे को। छेड़ते हुए खेलने लगे और कुछ देर बाद अचानक से डाकिनी उस काली सिला पर पहुंच गई और वहां पर जैसे ही उसने अपना पैर धरा अचानक से ही उसका रूप परिवर्तित हो गया। वह अपने असली विशालकाय डाकिनी स्वरूप में दिखने लगी। ऋषि सुंदर ने जब उसे देखा तो वह आश्चर्य में भर गए। उन्हें समझ में नहीं आ रहा था। यह क्या घटित हो गया है? जो स्त्री उनके साथ खेल रही थी वह तो कोई शक्तिशाली डाकिनी है।

इसका वास्तविक स्वरूप इस शिला पर क्यों आ गया है, यह बात वह समझ नहीं पा रहे थे। वह उस शिला के पास पहुंचकर उससे कहने लगे। तुमने यह कौन सा रूप ले लिया है? तब उस डाकिनी ने कहा। क्या हुआ? क्योंकि डाकिनी को यह बात पता नहीं थी कि उसका वास्तविक स्वरूप अब ऋषि सुंदर को दिखाई पड़ रहा है। डाकिनी ने कहा, अरे मैं तो बस इस पत्थर पर आकर खड़ी हो गई हूं। क्या हुआ कोई समस्या है क्या? ऋषि सुंदर समझ गए थे, कुछ तो गड़बड़ जरूर है। इसीलिए उन्होंने मन ही मन चौसठ योगिनी के मंत्रों का उच्चारण करना शुरू कर दिया। और उस उच्चारण के फलस्वरूप अचानक से ही वहां पर वही दोनों योगनिया प्रकट हो गई। उन योगिनी शक्ति के वहां पर आते ही डाकिनी समझ गई कि उसका भांडा फूट चुका है। उसने नीचे देखा तो उसे पता चला कि वह! उस काली शिला पर खड़ी है जिस जगह कभी माता महाकाली के चरण पड़े थे और इसी कारण से उसकी माया नष्ट हो गई है।

 

योगनिया वहां पर प्रकट होकर कहने लगी। यह तुमने क्या कर दिया ऋषि सुंदर? यह तो एक डाकिनी है इसने तुम्हें अपने! माया जाल में फंसा लिया है। इससे तुमने गंधर्व विवाह भी संपन्न कर लिया है। अब तो मैं! या मेरी यह मित्र? विवाह तुमसे नहीं कर पाएंगे। क्योंकि तुमने तो किसी और स्त्री को चुन लिया है। यह सुनकर ऋषि सुंदर बहुत अधिक व्यथित हो गए। उन्होंने कहा, मेरी अब तक की गई सारी साधना! पूजा तपस्या क्या नष्ट हो गई है? मैं कैसे इस डाकिनी के फेरे में आ गया?

इधर डाकिनी ने भी अपना सुंदर रूप बनाकर शिला से उतरते हुए कहा कोई बात नहीं, मैं तो तुम पर पहले से ही प्रसन्न थी। अब अगर यह तुम्हें ना मिले तो भी कोई समस्या नहीं है! मैं तुम्हें सब कुछ प्रदान करूंगी। तुम्हें विवाह का सभी सुख! अपनी इच्छा अनुसार दूंगी। तुम कभी भी मेरा इन दोनों से संपर्क नहीं होने दोगे बस इतना ही मैं चाहती हूं। और? मैं तुम्हें सदैव खुश रखूंगी। ऋषि सुंदर ने कहा, मैंने आपको प्राप्त करने के लिए यह विवाह नहीं किया था। आपने मुझसे धोखा किया है। मैं केवल इन 2 योगनियों को प्राप्त करना चाहता था।अब मेरे लिए! कुछ भी करना यह सोचना सब कुछ भ्रम सा लग रहा है। उन दो योगनियों ने ऋषि सुंदर से कहा कि अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है। आप माता काली की साधना करें। और उनकी साधना करके आप?स्थिति को संभाल सकते हैं और फिर से अपने भाग्य में सुधार कर सकते हैं क्योंकि एकमात्र वही है जो योगनियों से भी कई ऊंची श्रेणी की हैं। उनके अधीन समस्त ब्रह्मांड है। इसलिए उनकी साधना करके आप अपनी स्थिति को बदल सकते हैं। इस प्रकार कहकर दोनों योग्य गायब हो गई।

डाकिनी वहीं खड़ी रही। तब ऋषि सुंदर ने माता काली की उस शिला पर बैठकर तपस्या करने की सोची लेकिन?योगनियों के गायब होने के बाद डाकिनी ने कहा, मैं तुम्हें काली माता की साधना नहीं करने दूंगी। तुम्हारा मेरा विवाह हो चुका है। अब विवाह के सुख लो।ऋषि सुंदर ने कहा, मैं माता काली की साधना करूंगा ही।डाकिनी ने कहा, मैं तुम्हें चुनौती देती हूं। अगर तुमने यह साधना की तो फिर मेरा क्रोध झेलोगे?इस प्रकार आगे क्या घटित हुआ हम लोग अगले भाग में जानेंगे? अगर आपको यह कथा और? यह पौराणिक कहानी पसंद आ रही है तो लाइक करें। शेयर करें, सब्सक्राइब करें। आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद।

कालीमठ मंदिर की दो गुप्त योगनियाँ भाग 4

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