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कालीमठ मंदिर की दो गुप्त योगनियाँ 4 अंतिम भाग

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। कालीमठ मंदिर की दो गुप्त योगिनी या यह भाग 4 और अंतिम भाग है। अभी तक हम लोगों ने जाना कि ऋषि सुंदर को डाकिनी ने ठग लिया था और इसी कारण से अब जब 2 योगिनिया उनके पास आती हैं तो वह कहती हैं कि आपको माता काली की साधना करनी चाहिए। इस साधना के लिए वह अपने आप को तैयार करते हैं, लेकिन इस बात से डाकिनी बहुत अधिक नाराज थी। क्योंकि वह यह जानती थी। अगर इसने यह साधना एक ही तो मेरा अब तक का किया गया सारा प्रपंच नष्ट हो जाएगा और वह तो उससे विवाह करके उसकी सारी शक्तियां प्राप्त करना चाहती थी। इसलिए उसने धमकी दी कि अगर उसने माता काली की साधना की तो उसके साथ बहुत बुरा होगा। अब आगे क्या हुआ जानते हैं?
ऋषि सुंदर अब इस बात के लिए तैयार होकर वही साधना करने की कोशिश करने लगे। उन्होंने सबसे पहले माता काली के क्रीम बीज मंत्र का उच्चारण करना शुरू कर दिया। कुछ दिन करने के बाद में अचानक से उन्हें लगा कि वह गलत मंत्र का उच्चारण कर रहे हैं। इसी वजह से उन्होंने वह जाप कुछ दिनों बाद छोड़ दिया। एक दूसरे मंत्र का भी उन्होंने जाप करना शुरू किया, लेकिन जब वह मंत्र बोलते तो उससे कुछ और ही ध्वनि उत्पन्न होती थी। वह इस समस्या को समझ नहीं पा रहे थे। अचानक उनका ध्यान डाकिनी की ओर गया। वह वहां बैठी हुई हंस रही थी। अब वह समझ चुके थे कि सब कुछ डाकिनी ही कर रही है, लेकिन उनके मंत्र उच्चारण को कैसे यह डाकिनी परिवर्तित कर दे रही है। यह सोचने वाली बात थी। डाकिनी अपनी तंत्र शक्ति के माध्यम से ऐसा कर पा रही थी लेकिन? उनके द्वारा किए जाने वाले कार्यों में वह हस्तक्षेप कैसे कर ले रही थी? उन्हें इस बात का आभास नहीं हो पा रहा था। आखिर उन्होंने चौसठ योगिनी मंत्र का उच्चारण कर योगिनी शक्तियों को वापस बुलाया। जब वह आए और वहां पर प्रकट हो गई तो उन्होंने कहा, हमें किस वजह से तुमने बुलाया है।
कृपया बताओ तब ऋषि सुंदर ने कहा, मैं माता काली के जिस भी मंत्र का उच्चारण करता हूं। पता नहीं क्या होता है उसका सही उच्चारण में नहीं कर पाता और इसके कारण से मेरी साधना पूरी नहीं हो पा रही है। इसके पीछे जरूर कोई रहस्य है। आप बताइए ऐसा क्यों हो रहा है तब उन शक्तियों ने कहा, ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि तुम्हारा विवाह इस डाकिनी से हो गया था। अगर किसी का विवाह किसी डाकिनी से हो जाए तो फिर उसके शरीर का अर्धांग होने के कारण वह सारे कार्य जो तुम कर सकते हो जब तुम मंत्र का जाप करते हो तो यह उस मंत्र को बिगाड़ देती है। इसीलिए अब इसमें कुछ नहीं हो सकता है। आखिर इस समस्या से फिर कैसे निकला जाए। ऋषि ने उन योगनियों से पूछा। तब उन्होंने कहा कि इसके लिए आपको एक ऋषि के पास जाना होगा जो कुछ ही दूरी पर मौजूद है। वह माता काली के परम भक्त हैं। उन्होंने दिव्य सिद्धियां प्राप्त कर रखी है। जाइए, उनके पास जाइए और उनसे मार्गदर्शन लीजिए। इस प्रकार योगिनी शक्तियां वहां से गायब हो गई। अब ऋषि सुंदर उस स्थान की ओर जाने लगे। मार्ग में डाकिनी ने कहा। मैं जान गई हूं। तुम एक महान सिद्ध ऋषि के पास जा रहे हो। मैं तुम्हें रोकती हूं। अगर तुम वहां गए तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा। तुम क्यों पूजा-पाठ जैसी बेकार की वस्तुओं में समय बर्बाद कर रहे हो। जीवन का सुख लो। मेरे साथ भोग करो और जीवन के अन्य सभी पदार्थ प्राप्त करो। मैं तुम्हें राज्य तक दिलवा सकती हूं।
तुम इन साधना और पूजा जैसी साधारण वस्तुओं के पीछे क्यों भाग रहे हो? इस पर ऋषि सुंदर ने कहा, मुझे बेवकूफ मत बनाओ। मेरा मार्ग मत रोको। मैं उस ऋषि के पास अवश्य जाऊंगा और उनसे ज्ञान प्राप्त कर लूंगा। मेरे दिव्य नेत्र मुझे राह दिखाएंगे। बहुत समझाने पर भी जब डाकिनी की बात ऋषि सुंदर ने नहीं मानी तो डाकिनी ने कहा, मैं तुम्हें अब अंधा कर देती हूं। देखती हूं, तुम कैसे उस ऋषि तक पहुंच पाते हो और डाकिनी स्वयं उसके नेत्रों में बैठ गई। इस प्रकार ऋषि सुंदर अंधे हो गए। अब उन्हें कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। उनके पास अब कोई मार्ग नहीं था। उस ऋषि तक पहुंचने का उन्होंने सोचा, अब मेरा जीवन तो निरर्थक हो चुका है। मुझे तो मर ही जाना चाहिए। इस प्रकार उन्होंने पहाड़ से नीचे कूदने की कोशिश की तभी चमत्कार घटित हुआ। कहते हैं अवश्य ही देवता सहायता करते हैं। जब आप बड़ी मुसीबत में होते हो। दोनों योगनीया वहां पर प्रकट हो गए उन्होंने। ऋषि सुंदर के हाथ पकड़कर उन्हें हवा में ही ले जाकर उस दूसरे ऋषि के आश्रम में छोड़ दिया। डाकिनी ने जब यह देखा तो वह बहुत अधिक क्रोधित हुई, लेकिन उसके पास अब कोई और विकल्प नहीं था क्योंकि वह एक सिद्ध ऋषि के आश्रम में पहुंच चुके थे।
ऋषि ने तुरंत ही उस ऋषि सुंदर का स्वागत किया और उन्हें देखकर वह समझ गए। उन्होंने तुरंत ही मंत्रों का प्रयोग करके नेत्रों में निवास करने वाली डाकिनी को भगा दिया डाकिनी को ऋषि का परिसर छोड़ना पड़ा क्योंकि अब? वह एक ऐसे ऋषि के क्षेत्र में थी जो अपनी शक्तियों से अपने क्षेत्र को बांध कर रखते थे। अब! ऋषि महाराज ने ऋषि सुंदर से पूछा, तुम्हारा यहां आने का उद्देश्य क्या है? कौन सी समस्या में हो और मैं जान चुका हूं कि डाकिनी ने तुम्हारा क्या हाल किया है। इसीलिए मैंने तुम्हारे नेत्रों से उसे निकाल दिया। ऋषि सुंदर ने अपनी अभी तक की सारी कथा उन्हें सुनाई कि उनके जीवन में क्या-क्या घटित हो चुका है। ऋषि महाराज ने तब ऋषि सुंदर से कहा, केवल एक मात्र माता कालिका सहस्त्रनाम ही तुम्हारी रक्षा कर सकता है। माता कालिका सहस्त्रनाम अद्भुत शक्ति संपन्न है। उसकी शक्तियां अनंत है। मां काली का इससे बड़ा कोई स्त्रोत नहीं है। आप इसी का पाठ कीजिए और इससे आपको वह प्राप्त होगा जिसकी आपने कल्पना भी नहीं की होगी। मैं स्वयं इस का पाठ करता हूं और देखो मेरा यह पूरा क्षेत्र सुरक्षित है। माता की कृपा से सब शक्तियां मेरे अधीन रहती हैं। इसलिए मैं आपको काली सहस्त्रनाम पाठ की विधि प्रदान करता हूं।
इसे बिना गुरु के भी व्यक्ति अगर जाता है तो भी उसे सभी प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती हैं। यह माता काली सहस्त्रनाम अतुलनीय है। इस की बराबरी कोई और पाठ नहीं करता है। इसलिए इसका स्मरण करो और इसका जप तुरंत आरंभ करो। ऋषि सुंदर ने माता काली के सहस्त्रनाम का पूरा पाठ उस ऋषि महाराज से याद कर लिया और पहुंच गए। मां काली के उस प्रगट स्थान पर जहां पर माता प्रकट हुई थी, अब उन्होंने वहां पर जाप करना प्रारंभ कर दिया। इस प्रकार लगभग रोज वह एक माला उन पाठ की पढ़ते थे। इस प्रकार से कुल 1008 दिनों बाद अचानक से ही चारों ओर का वातावरण बदल गया। ऋषि सुंदर को लगा वह स्वर्ग में पहुंच गए हैं। पूरा वातावरण बदल चुका था। सामने साक्षात माता काली अपनी दिव्य स्वरुप में खड़ी थी। उन्होंने प्रसन्न होकर कहा तुमने मेरे इन सहस्त्रनाम का पाठ किया है इसके पाठ से समस्त संकटों के साथ दिव्य सिद्धियां और अनंत फल प्राप्त होते हैं। इसलिए मैं तुम्हें सब कुछ प्रदान करूंगी। बोलो तुम्हारी इच्छा क्या है?
ऋषि सुंदर ने अपनी सारी समस्या बता दी। माता काली हंसकर कहने लगी, ठीक है। तुम्हें रूप और सौंदर्य की तलाश है। साथ ही तुम्हें सब कुछ प्राप्त करना है। इसलिए मैं तुम्हें इंद्र बनाती हूं। तुम्हारे अधीन करोड़ों अप्सराएं रहेंगी। जितना भी रूप और सौंदर्य तुम्हें चाहिए। तुम्हें सब तुम्हारी इच्छा अनुसार मिलेगा। तुमने मेरे सहस्त्रनाम का पाठ किया है इसलिए तुम सहस्त्र शक्ति संपन्न हो जाओगे। इस प्रकार वहां पर डाकिनी तुरंत आ गई और माता से प्रार्थना करने लगी। कहने लगी माता आपने इसका तो भला कर दिया पर मेरा नहीं किया। मैं तो इसकी अर्धांगिनी हूँ मुझे ऋषि सुंदर चाहिए। आपके सामने अगर न्याय नहीं होगा तो जगत आप पर हंसेगा। माता काली मुस्कुरा कर कहने लगी। ठीक है, ले जाओ ऋषि सुंदर को, डाकिनी सुंदर को लेकर अपने साथ अपने लोक में लेकर चली गई। ऋषि सुंदर यह देखकर आश्चर्य में पड़ और वहां उपस्थित अन्य देवता भी यह देखकर आश्चर्य में थे। वहां उपस्थित सभी योगनियां भी आश्चर्य में थी। ऋषि सुंदर के 1000 रूप थे, जिसमें से एक रूप डाकिनी अपने साथ लेकर चली गई थी।
ऋषि सुंदर 999 रूपों में वहां पर उपस्थित थे जिसे देखकर सुंदर ने कहा, मैं समझ चुका हूं। माता आपकी शक्ति और आपका यह काली सहस्त्रनाम अनंत शक्तियों से संपन्न है। मुझे आपने दिव्य बना दिया। ब्रह्मांड का स्वामी बना दिया। मैं इंद्र बन गया। अब स्वर्ग में जाकर समस्त सुखों का भोग करूंगा। माता आपकी कृपा से सब कुछ संभव है। मैं इस काली सहस्त्रनाम का जीवन पाठ करूंगा। इस प्रकार। माता ने अपनी। कृपा से उस ऋषि सुंदर को इंद्र बनाकर इंद्रलोक में निवास करने हेतु भेज दिया। इस प्रकार यह कथा यहां पर समाप्त होती है जो कि उस कालीमठ में घटित हुई थी। अगर आपको काली सहस्त्रनाम का पाठ करना है और इसके फल को जानना है तो इसका लिंक भी मैंने नीचे दे दिया है। वहां से आप इसे इंस्टामोजो में जाकर डाउनलोड करके खरीद सकते हैं और आप भी अपने जीवन में ऋषि सुंदर की तरह ही काली सहस्त्रनाम का तुल्य प्रभाव ला सकते हैं। इसकी शक्तियां और प्रभाव अनंत है तो अगर आपको यह पीडीएफ खरीदना है तो नीचे लिंक दे दिया गया। माता काली सबका भला करें और सबके जीवन में खुशियां लाएं। जय मां महाकाली।
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