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काली तीव्र कवच साधना

काली तीव्र कवच साधना

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। आज हम जिस दुर्लभ कवच की साधना के विषय में ज्ञान प्राप्त करेंगे इसे हम माता काली के एक गुप्त कवच के रूप में जानते हैं।

अलग-अलग पुस्तकों में और अत्यधिक ज्ञान में सभी जगह अलग-अलग स्वरूपों में काली कवच का वर्णन किया गया है लेकिन यहां पर जो काली कवच। मैं बताने जा रहा हूं या तांत्रिक काली कवच है और तीव्र है इसलिए बिना गुरु के। आदेश और उनसे दीक्षा प्राप्त किए हुए। उनके मुख से सुने बिना और स्वयं उनसे इसका ज्ञान प्राप्त करने के पश्चात ही इस का पाठ करना चाहिए। साधारण व्यक्ति इस कवच का पाठ करने से बचना चाहिए क्योंकि इसमें कुछ जो बातें हैं, वह नुकसानदेह भी हो सकती हैं

तो चलिए शुरू करते हैं काली कवच पाठ को और अर्थ सहित इसको जानते हैं-

कैलाशशिखरासीनं शङ्करं वरदं शिवम् ।
देवी प्रपच्छ सर्वज्ञं देवदेवं महेश्वरम् ।।

भगवन् देवदेवेश देवानां मोक्षद प्रभो।
प्रब्रूहि मे महाभाग गोप्यं यद्यपि च प्रभो ।।

शत्रूणां येन नाशः स्यादात्मनो रक्षणं भवेत् ।
परमैश्वर्य्यमतुलं लभेद् येन हि तं वद।।
वक्ष्यामि ते महादेवि सर्वधर्म्म हिताय च
अद्भुतम कवचं देव्यास्सर्वरक्षाकरं नृणाम् ।।

सर्वारिष्ट-प्रशमनं सर्वोपद्रवनाशनम्।
सुखदं भोगदं चैव वश्याकर्षणमद्भुतम् ।।

शत्रूणां संक्षयकरं सर्वव्याधिनिवारणम्
दुःखिनो ज्वरिणश्चैव स्वाभीष्टप्रहतास्तथा ।।
भोगमोक्षप्रदं चैव कालिका कवचं पठेत् 

विनियोग-

ॐ अस्य श्री कालीकवचस्य श्री भैरव ऋषिः गायत्री छन्दः श्रीकालिका देवता ममाभीष्टसिद्धये पाठे विनियोगः ।

ध्यनाम्-

ध्यायेत कालीं महामायां त्रिनेत्रां बहुरूपिणीं ।
चतुर्भुजां ललज्जिह्वाम् पूर्णचन्द्रनिभाननाम् ।।
नीलोत्पल दलश्यामां शत्रुसंघविदारिणीं ।
नरमुण्डं तथा खड्गं कमलं च वरं तथा ।
निर्भयां रक्तवदनां दंष्ट्राली घोररूपिणीम् ।
साट्टहासाननां देवी सर्वदा च दिगंबरीम्।।
शवासनस्थितां कालीं मुण्डमालाविभूषितां।
इति ध्यात्वा महाकालीं ततस्तु कवचं पठेत्।।

मूल कवच पाठ-

ॐ कालिका घोररूपाढ्या सर्वकामप्रदा शुभा ।
सर्वदेव-स्तुतां देवी शत्रुनाशं करोतु मे ।।

ह्रीं ह्रीं स्वरुपिणीं चैव ह्रीं ह्रीं हूं रूपिणीं तथा।
ह्रीं ह्रीं क्षें क्षें स्वरूपा सा सदा शत्रून्विदारयेत्।।

श्रीं ह्रीं ऐं रूपिणी देवी भवबन्धविमोचिनी।
हसकल ह्रीं ह्रीं रिपून् सा हरतु देवी सर्वदा।।

यथा शुम्भो हतो दैत्यो निशुम्भश्च महासुरः।
वैरिनाशाय वन्दे तां कालिकां शङ्करप्रियाम्।।

ब्राह्मी शैवी वैष्णवी च वाराही नारसिंहिका।
कौमार्यैन्द्री च चामुण्डा खादयन्तु मम द्विषः। 

सुरेश्वरि घोररूपा चण्ड-मुण्ड-विनाशिनी ।16।
मुण्डमालावृतांगी च सर्वतः पातु माम् सदा।

ह्रीं ह्रीं कालिके घोरंदष्ट्रे रुधिरप्रिये रुधिरपूर्ण-वक्त्रे रुधिरवृत्तस्तनि मम शत्रून् खादय खादय हिंसय हिंसय मारय मारय भिन्दि भिन्दि छिन्धि छिन्धि उच्चाटय उच्चाटय द्रावय द्रावय शोषय शोषय स्वाहा स्वाहा ।

ह्रीं ह्रीं कालिकायै मदीय शत्रून् समर्पयामि स्वाहा।

ॐ जय जय किरि किरि किटि किटि कुट कुट कट्ट कट्ट मर्दय मर्दय मोहय मोहय हर हर मम रिपून् ध्वंसय ध्वंसय भक्षय भक्षय त्रोटय त्रोटय यातुधानि चामुण्डे सर्व जनान् राज्ञो राजपुरुषान् योषा रिपून् मम वश्यान् कुरु कुरु तनु तनु धान्यं धनमश्वान् गजान् रत्नानि दिव्यकामिनीः पुत्र-पौत्रान् राजश्रियं देहि देहि भक्ष भक्ष क्षां क्षीं क्षूं क्षैं क्षौं क्षः स्वाहा ।

फलश्रुति-

इत्येत कवचं दिव्यं कथितं शम्भुना पुरा।
ये पठन्ति सदा तेषां ध्रुवं नश्यन्ति शत्रवः।।

प्रलयः सर्व-व्याधीनां भवतीह न संशयः।
धनहीनाः पुत्रहीनाः शत्रवस्तस्य सर्वदा ।।

 सहस्र-पाठनात्सिद्धिः कवचस्य भवेत्तथा ।
ततः कार्याणि सिद्ध्यन्ति यथा शङ्करभाषितम् ।।

श्मशानाङ्गारमादाय चूर्णोकृत्य प्रयत्नतः ।
पादोदकेन स्पृष्ट्-वा च लिखेल्लौह-शलाकया ।।

भूमौ शत्रून् हीनरूपान् उत्तराशिरसस्तथा ।
हस्तं दत्त्वा तद्हृदये कवचं तु स्वयं पठेत् ।।

शत्रोः प्राणप्रतिष्ठान्तु कुर्यान्मन्त्रेण मन्त्रवित् ।
हन्यादस्त्र-प्रहारेण शत्रुर्गच्छेद् यमालयम् ।।

ज्वलदंगार-तापेन भवन्ति ज्वरिणोSरयः ।
प्रोक्षणैर्वामपादेन दरिद्रो भवति ध्रुवम् ।।

वैरिनाशकरं प्रोक्तं कवचं वश्यकारकम् ।
परमैश्वर्यदं चैव पुत्रपौत्रादिवृद्धिदम् ।।

प्रभातसमये चैव पूजाकाले प्रयत्नतः ।
सायंकाले तथा पाठात् सर्वसिद्धिर्भवेद् ध्रुवम्।।

शत्रुरुच्चाटनं याति देशाच्च विच्युतो भवेत्।
पश्चात्किंकरमाप्नोति सत्यं सत्यं न संशयः ।।

शत्रुनाशकरं देवी सर्व-संपत्प्रदे शुभे ।
सर्वदेवस्तुते देवी कालिके त्वां नमाम्यहम् ।।

इस प्रकार यह संपूर्ण कालिका कवच है। इसका पाठ करने से अनगिनत लाभ होते हैं। विशेष रूप से शत्रु दमन होता है और विभिन्न प्रकार की सिद्धियां भी प्राप्त होती है। इसलिए इसका पाठ हर प्रकार से कल्याण कारक होता है, लेकिन इसे गुरु मंत्र लिया। साधक गुरु मुख से सुने और गुरु से प्राप्त करें। तभी इसका फल पूर्ण प्राप्त होता है। इसके अलावा स्वयं पाठ करने वाले व्यक्ति को इसे नहीं करना चाहिए। इससे उसके ऊपर बुरा प्रभाव भी हो सकता है क्योंकि इसमें लगे हुए कुछ बीज मंत्र ऐसे हैं जिनका दुष्प्रभाव भी देखने को मिल सकता है तो अगर आप माता काली के सच्चे भक्त हैं और आपके गुरु माता शक्ति के उपासक हैं तो उनसे आप इस कवच को सुनकर और प्राप्त कर सकते हैं और इसका पाठ कर सकते हैं। इसके कई सारे विधान भी हैं जिन्हें आप श्मशान में अथवा विभिन्न प्रकार के तांत्रिक प्रयोगों में कर सकते हैं जिससे आपको अनगिनत लाभ प्राप्त होता है। तो यह था माता काली के कवच का पाठ जो कि एक भयंकर तंत्र में भी प्रयोग किया जाता है और बुरी शक्तियों से बचाव और इसके अलावा विभिन्न प्रकार की तांत्रिक साधना में कवच के रूप में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है। तंत्र विद्या ओं की प्राप्ति हेतु और विभिन्न प्रकार की भयंकर प्रयोगों में अपनी रक्षा के लिए किया जाता है और विशेष रूप से शत्रु के नाश के लिए भी इसका प्रयोग किया जाता है। आज का वीडियो आप लोगों को पसंद आया है तो लाइक करें। शेयर करें, सब्सक्राइब करें। आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद।

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