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कुम्भ कथा प्रयागराज नागा साधू और उसका चिमटा भाग 4

कुंभ कथा प्रयागराज नागा साधु और उसका चिमटा भाग 4

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है । जैसा कि हमारी कुंभ कथा प्रयागराज में अभी तक नागा साधु और उनका चिमटा में आपने जाना किस प्रकार से गुरु सिद्धा बाबा के सामने यक्ष रूपी की समस्या आ चुकी थी । वह यक्ष इतना शक्तिशाली था कि वो बकरे के मुंह वाली मूरना देवी को हरा चुका था और दूसरा तीसरा चरण उसकी परीक्षा का शुरू हो चुका था । लेकिन गुरु सिद्धा बाबा इस बात को जानते थे और अपने चिमटा सिद्धि के लिए उन्होंने अपनी पूरी कोशिश करनी शुरू कर दी थी । वह यह बात जानते थे कि हो सकता है उन्हें पूरी तरह सफलता ना भी मिले लेकिन वह प्रयास करना नहीं छोड़ सकते है । क्योंकि समय और प्रारब्ध किसी ने नहीं देखा है लेकिन प्रयास तो हमारे हाथों में होता है और प्रयास करते रहना ही हमारे हाथ में है इसी से हमारी सफलता भी सुनिश्चित होती है । ईश्वर ने प्रयास करने की संपूर्ण क्षमता हम को दे रखी है इसलिए हमें प्रयास करना कभी नहीं छोड़ना चाहिए भले ही समय और परिस्थितियां हमारे अनुकूल या प्रतिकूल हो । यही सोच करके उन्होंने बाघ

के रूप वाले उस यक्ष से कहा आपकी जो भी इच्छा हो आप कीजिए मैं आपकी सबसे पहले पूजा करना चाहता हूं । यक्ष इस बात से प्रसन्न हुआ और जितनी भी उन्हें पूजा करने की विधि विधान पता थे वह सारे उन्होंने उस बाघ रूपी यक्ष की प्रार्थना के लिए किए । उनके साथ उनके दोनों शिष्यों ने भी साथ दिया और उन्होंने धूप दीप नैवेद्य के द्वारा उस यक्ष रूपी बाघ की सेवा सत्कार की । जो जो गुरु कहते उनके शिष्य वही करते यद्यपि कोई यह नहीं जानते थे कि उनके साथ क्या घटित हो रहा है तब भी वह सारे कार्यों का संपादन कर रहे थे । बाघ प्रसन्न हुआ और उसने कहा यद्यपि मैं तो तुझे खाने आया था लेकिन खाऊंगा तो मैं अभी भी क्योंकि बिना खाय तेरा कार्य सिद्ध होने वाला नहीं है इसलिए मैं तुझे खा जाऊंगा । लेकिन याद रख अगर तेरे पास संजीवनी विद्या नहीं हुई संजीवनी मंत्र नहीं हुआ तो तू असफल हो जाएगा जीवन में और इस प्रकार इस तेरे शरीर में तेरी आत्मा वापस लौट के नहीं आएगी । तो बता क्या चाहता है तो मैं तुझे खाऊं या ना खाऊं । गुरु सिद्धा बाबा बोले क्या इसका कोई दूसरा विकल्प नहीं है या कोई ऐसा कोई कारण या कोई ऐसा तात्पर्य ऐसी कोई शक्ति जिसके माध्यम से मैं जीवित रह सकू । तो उस बाघ रूपी यक्ष ने कहा कि बाबा तू बड़ा ही चतुर है । लेकिन मैं तुझे पहले ही बता दू यह विधि वैसे ही काम करेगी जैसे मैंने बताया ।

मैं तुझे खा जाऊंगा तेरी आत्मा यक्ष लोक चली जाएगी तुझे वहां जाकर के श्वेतांबर मणि को ढूंढना है । श्वेतांबर मणि जब तुझे मिल जाएगी तो फिर तू वापस आ सकता है ।लेकिन समस्या यह नहीं है समस्या यह है कि जब मैं तुझे खाऊंगा तो तू सशरीर यक्ष लोक में चला जायेगा और तेरी मृत्यु हो जाएगी । अगर तुझे मृत संजीवनी विद्या मंत्र नहीं आता है तो तू जीवित नहीं हो पाएगा मृत संजीवनी विद्या मंत्र वह मंत्र नहीं है जो तू सोच रहा है । क्योंकि यह मृत संजीवनी विद्या मंत्र क्रोध भैरव का है अगर क्रोध भैरव के इस मंत्र को तो जानता होगा तभी तू बच पाएगा । यह कोई भगवान शिव द्वारा शुक्राचार्य को दिया गया मृत संजीवनी मंत्र नहीं है । बल्कि यक्ष लोक में प्रवेश करने की एक विधि है इसको अगर तू नहीं जानता है या तेरे गुरु तुझे ना बता पाए तो मैं यहां से चला जाता हूं और तेरी सिद्धि भी नष्ट हो जाएगी अर्थात तू चिमटा सिद्धि को नहीं कर पाएगा । तो बता तू चिमता सिद्धि करना चाहता है अथवा नहीं । कुछ देर सोचने के बाद गुरु सिद्ध बाबा बोले मैं हर प्रकार से तत्पर हूं आप मुझे कुछ क्षण दीजिए मैं अपने गुरु से परामर्श करना चाहता हूं । तभी काली भूतनी कान में आकर वह बोलने लगी कि बाबा अगर मंत्र गलत हो गया तो तुम कभी जीवित नहीं हो पाओगे । तो इस पर गुरु सिद्धा बाबा ने कहा कि पता है मुझे यक्ष लोक देखने को मिलेगा मेरे लिए इतना ही बहुत है । अगर मैं यक्ष लोक पहुंच गया मेरी आत्मा भी यक्ष लोक पहुंच जाएगी भले ही मेरा शरीर नष्ट हो जाए तो भी मैं यक्ष लोक का वासी होऊगा ।

इसलिए मुझे बिना किसी डर और भय के यह साधना करनी चाहिए और इनकी कही हुई बात को मानना चाहिए । उनकी बात को सुनकर काली भूतनी प्रसन्न होते कहने लगी मुझे पूरा विश्वास है कि आप अवश्य सिद्ध होंगे अवश्य ही इस कार्य को संपन्न कर लेंगे इसके लिए आपको अपने गुरु को याद करना चाहिए । एक बार फिर से उन्हें मंत्र को जानने की कोशिश करनी चाहिए और इस मंत्र का जाप करने के बाद आप फिर से जीवित हो जाएंगे आप कि आत्मा जब इस मंत्र का जाप करेगी तो आपका शरीर जीवित हो जाएगा और आप यक्ष लोक में उस मणि को ढूंढने के लिए आगे बढ़ जाएंगे । उनकी बात को समझते हुए अब गुरु सिद्धा बाबा ने अपनी सांस रोक कर के अपने गुरु का ध्यान करना शुरू किया अपने गुरु मंत्र का ध्यान करते हुए गुरु मंत्र की सिद्धि से तुरंत गुरुदेव प्रकट हुए और उन्होंने उन्हें वह मंत्र सिखाया उस मंत्र को जानने के बाद में एक बार फिर गुरु सिद्धा बाबा ने उस मंत्र को कंठस्थ किया । और पूरे ध्यान से उस मंत्र को पढ़ा और दिखा क्योंकि उन्होंने वह दृश्य अंतरतम में देखा था इसलिए उन्हें वह मंत्र को याद कर लेना बहुत ही ज्यादा आवश्यक था । क्योंकि अगर वह ऐसा नहीं कर पाएंगे तो यक्ष लोक में मारे जाएंगे इसलिए उन्हें पूरी सामर्थ्य के साथ अपने मन को एकाग्र करके उस मंत्र को याद करना था ।

और उन्होंने वही कार्य किया इसके बाद उन्होंने अपनी आंखें खोल दी और बाघ रूपी यक्ष से कहा यक्षराज आप मुझे खा सकते हैं आप मेरा भक्षण किजिए । बाघ रूप वाले उस यक्ष ने मुस्कुराते हुए कहा ठीक है देखते हैं कि तेरी और तेरे गुरु मंत्र की सामर्थ कितनी है । इस पर बाघ ने विशालकाय का रूप धर लिया और मुंह में गुरु सिद्धा बाबा को धर लिया और चबाते हुए उन्हें खा गया । इसी के साथ ही गुरु सिद्धा बाबा से शरीर यक्ष लोक में प्रवेश कर गए यक्ष लोक में पहुंचकर उन्होंने देखा कि चारों तरफ प्रकाश ही प्रकाश है ।वहां की दिव्य सुगंधे बह रही हैं हर जगह सोने के बने हुए ऐसी ऐसी इमारतें हैं जैसे पृथ्वी लोक पर भवन होते हैं राजमहल होते हैं ठीक उसी तरह वहां का दृश्य था । लेकिन सभी पीले रंग से दिखाई दे रहे थे यानी सारी जितनी भी वहां पर ईमारते बनी हुई थी उस सब की सब सोने की बनी हुई थी । क्योंकि वह सोने की तरह से थी लेकिन उपभोग के लिए कोई आवश्यकता नहीं थी अर्थात अगर वह धरती पर होता तो ऐसा संभव नहीं होता क्योंकि सोना यहां पर बहुत बड़ी चीज है । किंतु वहां सोने का कोई कार्य नहीं था फिर भी सोने की बनी हुई उन सुंदर इमारतों को देखकर वह आगे बढ़ने लगे तभी पीछे से काली भूतनी वहां उनके साथ ही प्रवेश कर गई । क्योंकि सशरीर थी वो । उसने उन्हें बताया कि आपको सबसे पहले अपना शरीर ढूंढना है । तो सबसे पहले आप चलिए और अपने शरीर को ढूंढिए । मैं आपको बताती हूं कि आपका शरीर यहां पर सबसे मुख्य जगह पर होना चाहिए क्योंकि मुझे ऐसे संकेत आ रहे हैं ।काली भूतनी की बात को सुनकर के गुरु सिद्धा बाबा ने सबसे विशालकाय इमारत की ओर देखा जो कि एक राज महल जैसी नजर आ रही थी । वो बहुत ही अधिक सुंदर थी प्रकाशित हो रही थी चमक रही थी उसके चारों तरफ सुंदर-सुंदर स्त्रियां जो शरीर पर केवल फूल माला ही धारण करती थी और पूरे शरीर में फूलों को ही अपने वस्त्र के रूप में पहनती थी अद्भुत सुंदर नजर आ रही थी ।

ऐसी सुंदर स्त्रियां पृथ्वी पर कहीं भी देखने को नहीं मिलती लेकिन उन्हें देखकर उनके मन में कोई कामवासना नही जाग रही थी ।उनकी सुंदरता को देखकर वह प्रभावित हुए जा रहे थे ।लेकिन फिर भी उनको अपना कार्य संपन्न करना था अर्थात उनकी आत्मा को उनके शरीर तक पहुंचना जरूरी था यह सोचते हुए वह धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगे । और एक नगर के प्रवेश द्वार पर पहुंचकर वहां पर उन्होंने एक विशालकाय यक्ष को खड़े हुए देखा । जिसके वह घुटने तक आ रहे थे उस यक्ष के पैर पर उन्होंने कुछ मंत्र पढ़ा और मंत्र को पढ़ने के बाद में यक्ष का दृश्य उन पर पड़ा और वह हंसते हुए बोला कौन सी आत्मा है तू और हमारी इस धरती पर कैसे आ गई तू कौन है और क्या करना चाहता है । इस पर गुरु सिद्धा बाबा ने कहा कि आपके ही बाघ रूपी  यक्ष ने मेरा भक्षण किया है उन्होंने मुझे आज्ञा दी कि मैं अपने शरीर के पास जाऊं और यहां जो कार्य दिया गया उसको संपन्न करो । ओह तो तुझे उन्होंने भक्षण किया है बढ़िया है तो इसका अर्थ यह हुआ कि तू हमारे इस यक्ष लोक में आगंतुक है ठीक है मैं तेरी मदद किए देता हूं । जा अंदर चला जा और इस प्रकार गुरु सिद्धा बाबा उस यक्ष से आज्ञा लेकर अंदर प्रवेश कर गए । वहा जितने भी यक्ष और यक्षिणिया थे बहुत ही लंबे और ऊंचे थे उनकी धरती के लोगों से ऊंचाई 20 गुना 25 गुना अधिक थी । इसलिए उनकी आत्मा काफी छोटी थी उन सब के आगे धीरे-धीरे करके वह महल में बड़े-बड़े विशालकाय स्तंभों को देखते हुए प्रवेश करने लगे और तेजी से आगे बढ़ने लगे ।

तभी वह एक ऐसी जगह पर पहुंचे जहां राज सिंहासन था उसके नीचे ही उनका शरीर पड़ा हुआ था । उसको देखकर के वह अत्यंत खुश हो गए और उन्होंने कहा कि अंततोगत्वा मुझे मेरा शरीर वापस मिल गया है । यह बहुत ही अच्छी बात है उन्होंने अपने शरीर के पास पहुंच करके उसे हिलाने और डूलाने लगे लेकिन वह शरीर कहां उठता । क्योंकि बाघ ने पहले ही बताया था कि उसके लिए तुम्हें मंत्र की आवश्यकता होगी उन्होंने एक बार फिर से ध्यान लगाया और कोशिश की उन्हें मंत्र याद आए । पर वह मंत्र याद नहीं आ रहा था तो अब कोई ऐसी अवस्था नहीं थी जिसकी वजह से वह जीवित हो पाते डर गए और भयभीत होने लगे  । तभी उन्होंने सोचा कि क्यों न गुरु मंत्र का जाप यहां बैठकर किया जाए । क्योंकि यह संसार में कोई स्थान नहीं है क्योंकि यह ऐसा कहीं नहीं है ऐसा संसार में कोई स्थान नहीं है ऐसा कोई लोके नहीं है जहां पर गुरुशक्ति कार्य ना करें । गुरु मंत्र कार्य ना करें भले ही मैं अपनी सारी विद्या कर भूल गया हूं लेकिन गुरु मंत्र अभी भी मेरे हृदय में स्थापित है । और वह गुरु मंत्र का बैठकर जाप करने लग गए तकरीबन 1 दिन जाप करने के पश्चात अचानक से ही तीव्र प्रकाश वहां पर उत्पन्न हुआ । बस प्रकाश में से गुरु शक्ति उन्हें नजर आई और उसने एक बार फिर से उन्हें वही मंत्र दिखा दिया । अपने उस भूले हुए मंत्र को याद करके उन्होंने और क्रोध भैरव मृत संजीवनी मंत्र को देखा और खुश हो गए । उस मंत्र को देख करके उन्होंने अब उस मंत्र का जाप अपने शरीर के ऊपर करना शुरू किया सबसे पहले वह अपने शरीर की छाती पर बैठ गए ।

आत्म रूप में होने के कारण बिल्कुल सुन्य भार था उनका और अपने शरीर के हृदय पर बैठकर या छाती पर बैठकर उन्होंने उस मंत्र का जप शुरू किया और प्रसन्नता के साथ में उस मंत्र को जपने लगे । मंत्र इस प्रकार से था भानु सूर्य हुम हुम नमः जन्म दादीनी पूर्वास्तीन नमः काल क्रोधितम भैरवा नमः यशस्विनी नमः जन्म निर्धारण नमः इति सिद्धांधम ।उन्होंने इस क्रोध मंत्र का मृत संजीवनी रूप में जाप किया और केवल कुछ ही क्षण जाप करने पर अचानक से उनकी आत्मा उनके शरीर में प्रवेश कर गई । और फिर उन्होंने अपनी आंखों से उस अद्भुत दृश्य को देखा कि वह किस लोक में है । वह बहुत ही सुंदर लोक में थे हर तरफ वहां अद्भुत सुंदरता के साथ में प्रकाशित हुए सफेद रंग की धुआएं का स्वरूप दिखाई दे रहा था चारों तरफ सुंदरता फैली हुई थी चारों तरफ प्रकाशमान था । सब कुछ अद्भुत था ऐसा अद्भुत नजारा उन्होंने कहीं नहीं देखा था । यद्यपि वहां की शक्तियां यक्ष और यक्षिणीया बहुत ही ज्यादा सुंदर और विशालकाय स्वरूप वाले थे अर्थात बहुत ही ऊंचे ऊंचे थे । और फिर भी उनकी लंबाई उनके घुटनो तक आती थी अब उस स्थान को ढूंढने लगे जहां उन्हें मणि को देखना था मणि को ढूंढना था मणि को ज्ञात करना था मणि कि अपनी स्थिति को पता लगाना था । मणि के बारे में जानने के लिए उन्होंने इस विशेष प्रयोजन को किया और अपने गुप्त गोपनीय गुरु मंत्र का जाप करना शुरू कर दिया । गुरु मंत्र के जाप से उन्हें एक प्रकार की विशेष विद्या की प्राप्ति हुई ।और वह एक बाड पर बैठ गए वह बाड अद्भुत शक्तिशाली था । विशालकाय बाड उन्हें एक ऐसी दिशा की ओर ले कर गया जहां मणि रखी हुई थी । लेकिन उसके सामने बहुत सारी समस्याएं थी वह समस्या‌ क्या थी । यह जानेंगे हम लोग अगले भाग में । आपका दिन मंगलमय हो धन्यवाद ।

कुम्भ कथा प्रयागराज नागा साधू और उसका चिमटा भाग 5

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