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कूवगम किन्नर मठ कथा भाग 1

कुवगम किन्नर मठ कथा भाग 1

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल में आपका एक बार फिर से स्वागत है । प्राचीन मठ मंदिरों की कहानियों में विशेष प्रकार की कहानियां मैं लेकर आया करता हूं । जो किंवदंतियों बन गई है । जिनका वर्णन अब कोई नहीं जानता है । बिल्कुल गुप चुप हो चुकी है छुप चुकी हैं इन कहानियों के माध्यम से हम लोग प्राचीन रहस्य को उजागर करते हैं । और उन कहानियों का आनंद भी लेते हैं तो आज मैं आपके लिए कुवागम किन्नर मठ कथा लाया हूं । जिसका आज पहला भाग में आपको बताऊंगा । तो सबसे पहले हम कुवागम के बारे में जान लेते हैं । जो कुवगम यह किन्नरों से संबंधित एक मंदिर है । जहां कभी किसी काल में महाभारत के समय में एक प्राचीन मठ उसके बाद स्थापित किया गया था । वहां पर एक साधना की गई थी । वह कहानी में आपको बताऊंगा । सबसे पहले कुवगम क्या है । और यह किन्नरों का तीर्थ इसे क्यों कहते हैं ।

इस बारे में जानते हैं यहां की सबसे विशेष बातें जो है । यहां के जो देवता हैं उनसे किन्नर लोग शादी भी करते हैं । तो सबसे पहले तो हम जान लेते हैं कि किन्नर वह प्रजाति होती है जिसे पुरुष और स्त्री दोनों के ही गुण मिले हुए होते हैं । किन्नरों के बारे में हम लोग सभी कोई जानते हैं । जिन्हें आम बोलचाल की भाषा में हिजड़े शब्द के रूप में जाना जाता है । इनके बहुत ही अद्भुत और अजीब तरह के रहस्य हैं । जो जुड़े हुए हैं । और उन्हीं में से एक रहस्य है किन्नरों का तीर्थ जिसे हम जानते हैं । यह ऐसा है कि दक्षिण भारत में यह स्थित है और दक्षिण भारत में किन्नरों के तीर्थ के नाम से जाना जाता है । यहां शोधकर्ता भी पहुंचते रहते हैं । असल में किन्नरों का यह तीर्थ तमिलनाडु के विल्लपुरम जिले में उल्लम दो पेटाई एक जगह है वहां का तालुका एक गांव है । कुवगम वहां पर स्थित है । जिसे हम कुथंदद्वार के नाम से भी जानते हैं । तो यह जो मंदिर है यह अरावन देवता को समर्पित है ।

और यह अरावन देवता को यहां के जो किन्नर है वह उनको अपना आराध्य मानते हैं । हर साल इस समय ऐसा समय आता है जब उनकी वार्षिक पूजा होती है ।नववर्ष की प्रथम पूर्णिमा के दिन में यहां पर कुथंदद्वार मंदिर में पहुंचकर उनकी पूजा और अर्चना यह शुरु करते हैं ।लगभग 15 दिन तक लगातार यह पारंपरिक उत्सव की तरह से यहां पर पूजा की जाती है । और उत्सव शुरू होने के बाद किन्नर हर रात पूरी तरह से श्रृंगार करके अपने अरावन की पूजा के लिए मंदिर पर आते हैं । और पूजा करते हैं किन्नरों की जो टोलियां यहां पर आया जाया करती हैं । और वह अत्यधिक शुभ अवस्था में आकर के नृत्य गायन वगैरह से प्रसन्न करने की उन्हें कोशिश करते हैं । इस उत्सव की सबसे बड़ी बात है कि  चौदहवे दिन अपने देवता किन्नर अरावण से यह लोग सभी लोग शादी करते हैं । और अगले ही दिन उन्हें विधवा भी कर दिया जाता है । तो सबसे पहले यह जान लेते हैं की कहानी क्या है क्यों यह अरावण देवता से विवाह करते हैं । किन्नर लोग और उसके बाद फिर विधवा भी हो जाते हैं । तो बताया जाता है कि जो कुवगम का जो मंदिर है ।

यह महाभारत काल का प्रतीक है तो महाभारत काल का मतलब है । जिस वक्त यह महाभारत का युद्ध चल रहा था भगवान कृष्ण अर्जुन और बाकी कौरवों के बीच में जो युद्ध हो रहा था । उस समय की यह बात है तो जो यह अरावन देवता है यह अर्जुन के पुत्र माने जाते हैं । तो उनकी ऐसी कहानी इस तरह से आती है कि पांडवों की विजय के लिए भगवान श्री कृष्ण के कहने पर । इन्होंने स्वेच्छा से मां काली के चरणों में अपनी बलि दी थी ।यानी मां काली को प्रसन्न करके और इसलिए यह जो हमारे पिताजी हैं यानी कि अर्जुन उनकी विजय हो जाए । इस कार्य में इसमें स्वेच्छा से अरावन ने स्वीकार किया था कि । मै अपनी स्वयं की मृत्यु कर दूंगा । तो एक जो इनकी माता थी वो विशेष प्रकार की थी । उनकी शक्ति से ही और अर्जुन के संयोग से दोनों लोगों के संयोग से जो है । अरावण देवता की उत्पत्ति हुई थी । लेकिन अरावन देवता ने कहा कि मैं मरना तो चाहता हूं मैं अपनी बलि दे दूंगा । लेकिन मुझे शादी करनी है क्योंकि अगर मैं विवाह किए बिना ही मर जाऊंगा तो मेरी इच्छा अधूरी रह जाएगी । कि मैं विवाह किए बिना ही मृत्यु को प्राप्त हो गया तो इस मान्यता के अनुसार अरावन देवता ने शादी करने के लिए फिर कोई तैयारी नहीं हुई ।

क्योंकि अरावन ने यह प्रतिज्ञा ली थी कि युद्ध से पहले मैं अपनी माता काली को अपनी बलि दे दूंगा । और ऐसी अवस्था में भला उससे कौन शादी करता कोई भी राजा महाराजा की कोई भी कन्या या स्त्री कोई भी किसी बात के लिए तैयार नहीं थी । कि अरावन से शादी की जाए क्योंकि सबको पता था अगले दिन उन्हें विधवा हो जाना है । इस कारण से कोई भी तैयार नहीं हो रहा था ।ऐसी अवस्था में भगवान श्री कृष्ण जी ने जान लिया कि अगर अरावन ने माता काली के चरणों में अपनी बलि दे दी तो फिर पांडवों को जीतने से कोई भी नहीं रोक सकता है ।लेकिन बिना विवाह किए अरावन ऐसा करेगा नहीं । तो भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं मोहिनी रूप धारण किया और एक रात के लिए वह अरावन की दुल्हन बने थे । क्योंकि उन्होंने ट्रांसजेंडर रूप बनाया था यानी किन्नरी किन्नरों को धारण किया था । इसी वजह से किन्नर लोग इनकी साधना और पूजा और उपासना करते हैं और 1 दिन के लिए भगवान श्री कृष्ण की तरह ही इनसे विवाह करते हैं ।

यह 14 दिन का पारंपरिक जो है विवाह यहां चलता है और अरावन एक रात के लिए सबके पति बन जाते हैं । अरावन के नाम का मंगलसूत्र यहां पर किन्नर धारण करते हैं । और दुल्हन की तरह श्रृंगार करते हैं मांग में सिंदूर भरते और रात भर चलने वाले आयोजन में जमकर के नाच गाना वगैरह होता है । अगले दिन सुबह जो अरावन की प्रतिकात्मक मूर्ति है वह कुवगम में घुमाई जाती है । यह कुवगम जो स्थान है वहां पर इसके बाद फिर उनको नष्ट दिया था ।अरावन की मूर्ति को नष्ट करने के साथ ही किन्नरों के मंगलसूत्र को मंदिर के पुजारी अपने हसीए से काट देते हैं ।चूड़ियों को नारियल से तोड़ दिया जाता है । और उनकी मांग के सिंदूर को पोछ दिया जाता है । इस प्रकार से और इस प्रकार वह अपनी पति की मृत्यु का मातम बनाती हुई ।इस कुवगम के समारोह इसको समाप्त कर दिया जाता है । तो यह तो हुई बात की कहां पर यह मंदिर है । तमिलनाडु में यह स्थित है तमिलनाडु के विल्लपुरम जिला है । उस जगह पर और उसमे भी कुल्लम दो पेटाई जो है तालुका है वहां का एक गांव है कुवगम वहां पर जाकर के यह प्रक्रिया होती है ।

और बहुत ही बड़ा उत्सव 14 दिन तक भी लगा रहता है । तो यह तो हो गई इनकी बात अब।  बात करते हैं कि यहां पर जब यह कार्य पहली बार हुआ इन्होंने अपनी बलि दी । फिर और उसके बाद में एक स्थान इसी जगह पर मंदिरों और मठों की एक जानकारी मिलती है । कि यहां पर स्थापित हुए और यहां पर पूरी तरह से कुछ गोपनीय तरह की साधना की जाने लगी । और गोपनीय साधना में क्योंकि किन्नर शक्ति के रूप में यहां पर स्थिति प्रस्थापित थी । इस कारण से यहां पर किन्नरों किन्नरी की साधना भी गोपनीय रूप से की जाएगी । हालांकि उसके बाद बंद हो गया । और क्योंकि हमारे देश में बहुत से ऐसी प्रक्रिया जो गोपनीय तरीके से उत्पन्न हुई । और गोपनीय तरीके से समाप्त भी हो गई । तो यहां पर किन्नरी साधना की विषय में एक कहानी आती है मैं उसी को बता रहा हूं । यह कहानी है चंद्रन की और मंजू घोष किन्नरी की । तो चंद्रन और मंजू घोष किन्नरी कि इस कथा में आप जानेंगे किस प्रकार से दोनों एक दूसरे के प्रति समर्पित हुए । कहानी में किस प्रकार से चंद्रन को सफलता प्राप्त हुई । और मंजू घोष किन्नरी कौन सी है उसकी साधना की उपासना क्या है । तो सबसे पहले तो यहां पर जो गुरु मठ स्थापित था । उस जगह पर किन्नर साधना की जाती थी । क्योंकि किन्नर के रूप में यहां पर इन देवता की उपासना की जाती थी ।

तो इसके कारण से गोपनीय तांत्रिकों ने इस कार्य को सोचा कि अगर हम लोग यहां पर किन्नर शक्तियों को पूजन करे । तो निश्चित रूप से और भी ज्यादा उनकी सिद्धि मिल सकती है । क्योंकि जो भी जिस प्रतीक का स्थान होता है वहां पर जब साधना की जाती है । जैसे कामाख्या में आप जाकर के साधना करेंगे ।तो वहां तंत्र साधना का अधिक प्रभाव दिखाई पड़ेगा । आप इसी प्रकार के कोई भी तंत्र पीठ पर जाएंगे । और उस देवता देवी की उपासना करेंगे जो उस देवी देवता की जगह है । तो वहां पर वह साधना स्पेशल रूप से अधिक प्रभावी हो जाती है । इसी कारण से कुवगम में किन्नरी साधना अत्यधिक प्रबलशाली है । किन्नर साधना यहां पर शक्तिशाली मानी जाती है । किन्नरी और किन्नरों में अंतर है ।हालांकि किन्नर अलग शक्ति होती हैं और किन्नरी शक्तियां अलग होती है । किन्नरी शक्तियां एक प्रकार की ऐसी शक्तियां है जिनका शरीर नीचे का जो है स्त्री का होता है ऊपर वह किसी का भी मुख ले सकती हैं । जैसे कि किसी जानवर का मुंह किसी का भी । उनकी शक्ति के आधार पर होता है कभी भी चाहे तो बन सकती है । चाहे तो वह स्त्री रूप मैं रह सकती है ।

तो मंजू घोष किन्नरी की साधना यहां पर चंद्रन ने क्यों कि । जब गुरु ने चंद्रन को कहा कि अगर तुम्हें कोई सिद्धि प्राप्त करनी है । तो क्यों नहीं तुम किन्नरी साधना करते हो । इस कारण से चंद्रन ने कहा कि । हां मैं गुरुदेव आपकी कृपा से निश्चित रूप से किन्नरी साधना करना चाहता हूं । लेकिन मेरी एक इच्छा है मैं जानवरों को अपने वश में करने की विद्या जानना चाहता हूं । जानवर सारे के सारे जितने भी जीव जंतु हैं वह सब मेरे अधीन हो जाए । मैं सब को अपने वश में कर सकूं ऐसी कोई साधना मुझे बताएं । तो गुरु ने कहा अगर तुम मंजू घोष किन्नरी की साधना करते हो । तो वह तुम्हें दिव्य रसायन देगी उस दिव्य रसायन का प्रयोग जब भी तुम करोगे । जिस जानवर पर कर दोगे वह तुम्हारा पूरी तरह से गुलाम हो जाएगा । तुम्हारे बस में हो जाएगा । इस पर चंद्रन ने कहा ठीक है । गुरुदेव मुझे जो भी इसकी विधियां और जो भी इसकी प्रक्रिया है ।वह सारी आप मुझे बताइए । और मैं इस कार्य को अवश्य संपन्न करूंगा । चंद्रन ने अपने गुरु की आज्ञा ले करके । फिर उस साधना को करने की सोची । सबसे पहले गुरु से गुरु मंत्र किन्नरी मंत्र को प्राप्त किया । मंजू घोष किन्नरी का मंत्रों ने प्राप्त करने के बाद में । फिर उस साधना को शुरुआत की । उस साधना की शुरुआत हुई तो उन्होंने एक ऐसा उसी जगह एक स्थान को चुना जहां एकांत था ।

वहां पर उन्होंने अपनी कुटिया बनाई । और उस कुटिया में घास फूस की जो कुटिया जिस तरह बनाई जाती थी । उसी तरह उनका निर्माण किया । और उन्होंने स्पेशल रूप से एक बड़ी सी जो है चकोर लकड़ी की बनी हुई चौखट बनवाई । उस चौखट के ऊपर उन्होंने लाल कपड़ा बिछाकर के मंजू घोष किन्नरी की प्रतीकात्मक मूर्ति बनाई । उस प्रतीकात्मक मूर्ति की वह साधना उपासना करने लगे । पहले दिन की उनकी साधना निर्विघ्न संपन्न हुई । दूसरे  दिन जब वह साधना कर रहे थे । तब अचानक से उन्हें किसी लड़की की चिल्लाने की आवाज सुनाई दी । लड़की की चिल्लाने की आवाज उन्हें सुनाई पड़ी तो उन्होंने सोचा ऐसा ऐसा क्यों हो रहा है ।क्योंकि उस जमाने में घने जंगल हुआ करते थे । और कहीं कोई ऐसी इंसान की आवाज नहीं आती थी । तो वह आकर्षित करने वाली बात से जल्दी-जल्दी चंद्रन ने उस दिन की साधना संपन्न की । और साधना संपन्न करने के बाद तुरंत वह उठा क्योंकी वह लड़की की आवाज लगाता चिल्लाने की आ रही थी । वह जाकर के देखता है तो दूर एक झाड़ी में एक बहुत ही सुंदर कन्या जो अद्भुत एक देवी कन्या नजर आ रही थी ।

आठ दस साल की उम्र उसकी रही होगी । वो एक झाड़ी में फंसी हुई थी । और उसके कपड़े भी फंसे हुए थे । उसको वहां से उसने बड़ी मुश्किल में झाड़ियों को काट काट करके निकाला और वह रोती हुई उसके गले से लग गई । चंद्रन ने उसे गले लगाया और उससे पूछा कि कौन हो  तुम । उसने कहा मेरा कोई नाम नहीं है क्योंकि मेरा नाम किसी ने रखा नहीं सब लड़की लड़की कहते हैं । और कन्या कन्या के नाम से अर्थात मुझे जाना जाता है । तो कन्या कन्या कहकर के ही मुझे पुकारा जाता था । मेरे माता पिता मुझसे बिछड़ गए । वो इस मार्ग से व्यापार करते थे । और पता नहीं कहां चले गए । चंद्रन ने सोचा इस बिचारी छोटी सी बच्ची का अब क्या होगा । ठीक है    उन्होंने कहा मैं अपनी साधना संपन्न करने तक तो कुछ तुम्हारी मदद नहीं कर सकता हूं । क्योंकि मैं यह स्थान छोड़कर नहीं जा सकता हूं । लेकिन अगर तुम चाहो तो मेरे साथ रह सकती हो । बस थोड़ा बहुत भोजन वगैरा बनाकर देना । और मैं जो भी काम तुम्हें कहूं वह तुम कर लिया करना अवश्य ही । जिस दिन मेरी साधना संपन्न होगी मैं अपनी सिद्धियों से तुम्हारे माता-पिता का पता लगाकर तुम्हें वहां छोड़ कर चला आऊंगा ।

तो उस कन्या ने कहा ठीक है । आप जैसा कहोगे मैं वैसा करूंगी । चंद्रन ने कहा वास्तव में यह कन्या बहुत ही बुद्धिमान है । इससे बात करने के अंदाज से लगता है कि बहुत ही बढ़िया और अच्छे खानदान से है । उन्होंने कहा ठीक है बेटा । आज से तुम मेरे साथ ही रहोगी । उसके लिए उन्होंने घास फूस की व्यवस्था की और उस घास फूस पर एक बिस्तर का निर्माण किया । ताकि वो वहां पर बैठकर के उनके साथ में रह सके । उन्होंने उस कन्या से कहा कभी भी मेरी किसी भी कार्य में विघ्न मत डालना और खासतौर से जब मैं साधना कर रहा हूं । चंद्रन ने जब साधना शुरू की अचानक से हल्के हल्के से बादल उमड़ आए । और वह कन्या बाहर जाकर के नृत्य करने लगी ।

चंद्रन अपनी साधना में लीन रहा उसने सोचा कि अवश्य ही यह कन्या बच्ची है । उसे बारिश अच्छी लग रही होगी इसी वजह से वह नृत्य कर रही है । तो वह नृत्य करती रही अद्भुत सुंदर उस कन्या को देखकर के चंद्रन सोचता था कि काश मेरी अगर पुत्री होती तो इतनी ही खूबसूरत होती ।इस प्रकार से वह वहां पर नृत्य करती रहती । चंद्रन हमेशा यह देखता जब वह साधना पर बैठता वह कन्या बाहर जाकर के नृत्य करने लगती जैसा भी उसे नृत्य आता था ।एक बार जब से चंद्रन उस साधना से उठ जाता वह जाकर देखाता तो वहां पर हल्का-फुल्का नृत्य कर रही होती थी । और फिर आकर करके उसे देखते ही बैठ जाती । चंद्रन ने उससे पूछा तुम इतना अच्छा नृत्य कैसे कर लेती हो । तो उसने कहा मैंने यह अपनी माता से सीखा है । और मैं यहां पर रह करके अपनी इच्छा अनुसार कभी-कभी मन में जो अत्यंत ही उमंग उत्पन्न होती है तो नाचने लगती हूं ।

अगर आपको बुरा ना लगता हो तो मैं तभी नाचना चाहती हूं जब आप आराम से अपनी साधना कर रहे होते हो । चंद्रन कहता यह तो अजीब बात है कि जब भी मैं पूजा करने बैठता हूं तभी तुम नाचती हो । ऐसा क्यों करती हो । उन्होंने कहा कि मैं जब बाहर चली जाती हूं और मैं सोचती हूं कि अब आप अपने काम से निपट चुके हो तब मैं इस नाचने का अपना आनंद लेती हूं । चंद्र ने भी सोचा क्या करना है मुझे ।यह कन्या इतनी सुंदर और इतनी प्रभावशाली है । और मेरे सारे कार्यों में सहयोग करती है । तो भला इसके नाचने से मुझे क्या समस्या हो सकती है । इस प्रकार से चंद्रन यह देखा करता था । और उसके आनंद में और भी वृद्धि हो जाती थी । जब उसे वह नृत्य करता हुआ देखता था । उसे भी आनंद आता था । आखिर वो नृत्य क्यों करती थी यह हम जानेंगे अगले भाग में ।

कूवगम किन्नर मठ कथा भाग 2

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