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कैलाश पर्वत की अप्सराएं भाग 3

कैलाश पर्वत की अप्सराएं भाग 3

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल में आप सभी का एक बार फिर से स्वागत है। पिछले भाग को आगे बढ़ाते हुए अब जानते हैं आगे की कथा के विषय में। जैसे ही उस व्यक्ति के सामने उस व्याघ्र को आते हुए वह व्यक्ति देखता है। एकदम से बहुत घबरा जाता है। ऐसा तो आज तक उसके सामने कभी घटित नहीं हुआ था। वैसे तो पहाड़ी क्षेत्रों में व्याघ्र होते हैं। लेकिन? यहाँ पर आखिर व्याघ्र क्या कर रहा है। साधक ने एक बात सोची कि अगर मैं जरा सा भी ना हिला तो शायद यह मुझे पाषाण की प्रतिमा समझेगा। शायद इसी वजह से मुझे यहां से जाने देगा। इसलिए बिल्कुल भी इसकी और ध्यान न देते हुए मैं एक टक अपनी साधना करता रहूंगा। और उसने ऐसा ही किया। लेकिन वह यह बात नहीं जानता था कि जंगली जानवर इन सब चीजों को जल्दी समझ लेते हैं। साधना करते हुए भी बहुत सारे दिन उसे बीत चुके थे। तब तक ऐसा कुछ भी उसके साथ घटित नहीं हुआ था। इसी कारण से उसे लगता था कि यह एक माया हो सकती है। पर सत्य क्या था, जल्दी ही स्पष्ट होने वाला था? वह व्याघ्र नजदीक आता गया और उसने जब सूघकर देखा तो वह स्पष्ट रूप से समझ गया कि यह कोई इंसान है क्योंकि वह भूखा था इसीलिए उसने तुरंत ही एक जोरदार पंजा उसे मारा। पंजे की चोट से वह अपने साधना स्थल से नीचे गिर गया। अब अगले ही पल उसकी मृत्यु तिथि आ चुकी थी क्योंकि व्याघ्र ने उसकी गर्दन को पकड़ना। शुरू कर दिया था। लेकिन तभी जोर से वह व्याघ्र चिल्लाया। यह शिकार को दबोचने की आवाज नहीं थी, यह थी उसकी चीख! जो पहली बार निकली थी जैसे कि उसे किसी ने बड़ी तेज और जोर से मारा हो सामने एक साधु अपने।
त्रिशूल से उसे बड़ी तेजी से उसे मारा था। इससे वह घबराकर एक तरफ हट गया। उस साधु ने उसे डराया और फिर वह व्याघ्र वहां से दौड़ता हुआ पहाड़ी क्षेत्र से नीचे उतर गया। यह सब कुछ देखने के बाद। वह व्यक्ति।
जो सोच रहा था कि आज तो मेरी जिंदगी का आखरी दिन होता। भला हो इस साधु महाराज का जो यहां आ गए।
तब साधु महाराज ने कहा।
आप कौन हैं और यहां बैठकर कितने दिनों से तपस्या कर रहे हैं? यहां पर तपस्या करने का कोई प्रयोजन क्या है।  अगर ऐसे स्थानों पर कोई व्यक्ति इस तरह की साधना करता है तो उसे सदैव सचेत रहना चाहिए क्योंकि जंगली जानवरों का कोई भरोसा नहीं होता है आपको अपनी चारों तरफ! लकड़ियों की एक बाढ बनाकर साधना करनी चाहिए। यह एक प्रकार से आपकी जंगली जानवरों से रक्षा करेगा और कोई भी जानवर आपके पास नहीं आ पाएगा।
यह बात सुनकर उस व्यक्ति ने कहा आपका विशेष! रूप से धन्यवाद। मैं इस बात के लिए आपका सदैव आभारी रहूंगा। आपने मेरे प्राण बचाए हैं। तब उस साधु ने कहा ठीक है लेकिन मेरा भी कोई मूल्य है इसलिए जब तक आप मेरा मूल्य मुझे नहीं चुकाते हैं। मैं यहां से नहीं जाऊंगा। तब उस व्यक्ति ने कहा महाराज, आप क्या चाहते हैं मुझसे तब वह कहने लगा। कोई व्यक्ति पर्वत शिखर पर बैठकर इस प्रकार भयंकर साधना रात्रि के समय क्यों करेगा। निश्चित रूप से वह किसी विशालकाय सिद्धि को प्राप्त करना चाहता होगा। मुझे वह मंत्र बता दीजिए जिससे मैं।
आपकी तरह लाभान्वित हो जाऊं।
तब उस व्यक्ति ने कहा, मैं आपको बता तो देता लेकिन जिस ने मुझे यह विद्या प्रदान की है, उसने स्पष्ट रूप से मना कर रखा है। तब वह साधु कहने लगा, कुछ भी हो लेकिन मैंने आपकी प्राणों की रक्षा की है। इसका मूल्य आपको चुकाना पड़ेगा। तब वो व्यक्ति कहने लगा। आप चाहे तो मुझे अपनी सेवा में भी रख सकते हैं। लेकिन मैं गोपनीय मंत्र आपको नहीं बता सकता हूं क्योंकि यह बताने के लिए स्पष्ट रूप से मुझे मना किया गया है। मैं अपनी साधना को पूर्ण करना चाहता हूं, तब वह साधु कहने लगा ठीक है। मैं भी यहां पर साधना करने के लिए ही आया था। आप इस स्थान पर साधना कीजिए। मैं आप से कुछ ही दूरी पर रहकर साधना करूंगा। मेरी भी कुछ तांत्रिक सिद्धियां प्राप्त करने की इच्छा है। बस आपको एक कार्य करते रहना होगा। आपको मेरे लिए भोजन की व्यवस्था करनी होगी। तब वह व्यक्ति कहने लगा। यह कोई बड़ा कार्य नहीं है। मैं आपके लिए भोजन की व्यवस्था अवश्य कर दिया करूंगा। वह व्यक्ति जानता था कि उसके पास एक दिव्य पात्र है। इसके कारण से वह जो भी फल या दूध इत्यादि की व्यवस्था चाहेगा, तुरंत हो जाएगी।
इस प्रकार साधु उससे कुछ दूरी पर स्वयं की कुटी बनाकर कोई विशेष तांत्रिक साधना करने लगा और इस व्यक्ति ने भी अपनी सुरक्षा के लिए अब अपनी चारों तरफ लकड़ी की एक बाढ बना दी।
और उसके अंदर बैठकर के इस प्रकार से साधना करने लगा।
फिर से वही व्याघ्र वहां पर आया लेकिन वह! जब देखता है तो वह चारों तरफ उसके घूमते हुए वहां से निकल जाता है। इस प्रकार अब साधना निर्विघ्नं हो रही थी, लेकिन काफी समय बीतने के बाद भी व्यक्ति को सिद्धि की प्राप्ति नहीं हो रही थी। तब अचानक से एक दिन वह साधु महाराज इसके पास आते हैं और वह उसे कुछ बता ही रहे थे कि तभी उनका शरीर एक पत्थर पर फिसल कर नीचे गिर जाता है। जिससे उन्हें बहुत चोट आती है उनके पूरे शरीर में खून ही खून था तब।
वह व्यक्ति परेशान हो जाता है और उनकी कुटी में लेकर उन्हें जाता है। अब समस्या यह थी कि उसे अपनी साधना भी पूर्ण करनी थी और इस साधु की रक्षा भी करनी थी।
इसीलिए वह पूरी कोशिश करता है, लेकिन उसके प्राण बचाने के लिए उसे कोई उपाय पता नहीं था कि आखिर करें तो आखिर करें क्या इसलिए वह? इधर उधर! सब चीजें ढूढ़ता है पर उसे कुछ भी नहीं मिलता है लेकिन तभी अचानक से उसके मन में एक ख्याल आता है।
उसने जब उस अप्सरा से बात की थी। तो उसने बताया था। जीवन में हर समस्या का हल आपके आंखों के सामने ही होता है पर माया के परदे के कारण हम ज्यादातर उस समस्या के हल को नहीं जान पाते हैं।
इस बात को बार बार सोचते हुए वह ध्यान करने लगता है कि अगर यह समस्या आई है तो इसका हल तो मेरे साथ ही मौजूद होगा। लेकिन कहां है तब वह अचानक से उसी पात्र को देखता है जो भोजन उत्पन्न करता था। तब उसने उस पात्र से कहा, हे पात्र! तुम मुझे भोजन के रूप में वही औषधि और वनस्पतियां दो जिन्हें खाने से चोट तुरंत ठीक हो जाती हो तब उसने चमत्कारिक स्वरूप में वहां पर विभिन्न प्रकार की वनस्पति कच्ची अवस्था में प्रकट कर दी।
इससे अब उसके पास प्राकृतिक वनस्पति या मौजूद थी। उन प्राकृतिक वनस्पतियों का काढा उसने साधु महाराज को पिलाना शुरू कर दिया और पत्थर पर उन वनस्पतियों को को जहां जहां उन्हें चोट लगी थी, वहां वहां पर रखकर उनकी सेवा करने लगे। लेकिन इस कार्य में उनके दो-तीन दिनों की साधना पूरी तरह बंद हो गई क्योंकि उन्हें साधु महाराज के प्राणों की रक्षा करनी थी। कुल मिलाकर आखिरकार पांचवे दिन साधु को होश आ गया और उसने जब सारी बात को जाना तो इस व्यक्ति से पूछा, तुमने मेरे प्राण बचाने के लिए अपनी तांत्रिक साधना को भंग कर दिया है। तुमने ऐसा क्यों किया?
उसने कहा, आपने भी तो मेरे प्राण बचाने के लिए व्याघ्र से लड़ाई की थी और साधना तो मैं दोबारा भी कर सकता हूं, लेकिन आप के प्राण में कैसे जाने दे सकता था? आपकी रक्षा करना मेरा सबसे बड़ा कर्तव्य था और व्यक्ति का धर्म! सबसे पहले उसे यही सिखाता है कि सबसे उपयुक्त आचरण को सबसे उपयुक्त समय पर ही करना चाहिए।
साधना और सिद्धि प्राप्ति के लिए मेरे पास पूरी जिंदगी पड़ी है, लेकिन किसी के प्राण बचाने के लिए मेरे पास एक यही मौका था। यह सुनकर साधु बहुत प्रसन्न हुआ।
उसने कहा ठीक है, मैं तुम्हें कुछ देना चाहता हूं तब इस व्यक्ति ने पूछा। बताइए आप मुझे क्या देना चाहते हैं तब साधु ने कहा मेरे पास!
दिव्य अप्सराओं के सिद्ध किए हुए मंत्र हैं।
अगर तुम इन मंत्रों का जाप करोगे तो तुम्हारे पास बहुत सारी अप्सराएं आ जाएंगी। और जिस भी अप्सरा को तुम चाहते होंगे वह तुम्हारी! प्रियसी बनकर तुम्हारे साथ जीवन भर रहेगी।
यह बात सुनकर! वह व्यक्ति बहुत प्रसन्न हो गया। उसने कहा, आपने तो मेरी परेशानी का हल ही भेज दिया है। आपके कहे अनुसार। अगर मैं आपके द्वारा दिए गए मंत्रों की साधना करता हूं तो मुझे अप्सराओं की प्राप्ति होगी। इसलिए मैं अपनी मनचाही अप्सरा को प्राप्त कर पाऊंगा क्योंकि वह तो मुझे छोड़ कर चली गई। शायद कि वह वापस आए क्योंकि मुझे तो कई महीने बीत चुके हैं।
लेकिन इतना मुझे अवश्य पता है कि किया गया कोई भी कार्य कभी असफल नहीं जाता है। मुझे भगवान शिव पर पूर्ण विश्वास है।
यह संपूर्ण कैलाश का क्षेत्र जहां से हिमालय है वहां से लेकर हिमालय के अंतिम छोर तक। मां पार्वती का क्षेत्र है। यह भगवान शिव की ससुराल भी है। इसीलिए यह दिव्य सिद्धियों से भरे हुए क्षेत्र है। मुझे आपकी यह इच्छा पूरी तरह मान्य है। आपने मेरे प्राण की रक्षा की थी इसीलिए मैंने भी की किंतु फिर भी साधु सबसे उत्तम होता है और आपने स्वयं!
मुझसे भी आगे जाते हुए एक बार फिर से मुझ पर ऋण चढ़ा दिया है। मैं आपके दिए हुए मंत्रों को अवश्य जाप करूंगा। क्योंकि जिसके लिए मैं यह सब कुछ कर रहा हूं। उसको प्राप्त करने के लिए आपने ही मुझे मार्ग बताया है। यह सुनकर वह साधु भी प्रसन्न हो गया। उसने कहा ठीक है। मैं तुम्हें अत्यंत गोपनीय अप्सराओं को सिद्ध करने की विद्या प्रदान करता हूं। इसका जाप करो आओ मेरे पास आओ। मैं तुम्हारे कान में इस मंत्र को पढ़ता हूं।
इस प्रकार से साधु के पास जाकर व्यक्ति बैठ गया और साधु ने उसके कान में मंत्र बोलना शुरु कर दिया। मंत्र को सुनने के बाद अब व्यक्ति ने कहा साथ महाराज आप यही रहे मेरे गुरु बनकर मैं अपनी तपस्या को शुरू करना चाहता हूं। आपके कहे अनुसार रात्रि के समय मैं रोजाना इस मंत्र का अखंडित रूप से जाप करूंगा। जब तक कि स्वयं स्वर्ग लोक की अप्सराएं यहां आकर मुझे दर्शन ना दे दें। इस प्रकार जब वह व्यक्ति रोजाना साधना करने लगा और उसके कुछ ही दूरी पर साधु अपनी कुटिया में बैठा हुआ। अपनी साधना करता रहता था। लेकिन एक दिन उस व्यक्ति ने एक दृश्य देखा। साधु की कुटिया में साधु की जगह एक अत्यंत ही रूपवती कन्या तपस्या करते हुए दिखाई दे रही थी जिसके पास।
वही व्याघ्र तेजी से आ रहा था जिसने एक बार पहले उस पर हमला किया था। यह व्यक्ति बड़ी तेजी से इस बात के लिए घबराने लगा कि यह व्याघ्र उस कन्या को खा जाएगा। आगे क्या हुआ जानेंगे हम लोग अगले भाग में तो यह थी  जानकारी और कहानी आप लोगों को पसंद आ रही है तो लाइक करें। शेयर करें सब्सक्राइब करें आपका दिन मंगलमय हो जय मां पराशक्ति।
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कैलाश पर्वत की अप्सराएं भाग 4

 

 

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