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कैलाश मंदिर एलोरा के यक्ष भाग 2

कैलाश मंदिर एलोरा के यक्ष भाग 2

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल मे आपका एक बार फिर से स्वागत है । जैसा कि कैलाश मंदिर एलोरा के यक्षो की कहानी चल रही है यह दूसरा भाग है । अभी तक आपने जिस प्रकार से जाना कि भद्रा  के ऊपर नागिन किस प्रकार से हमला करती है और उस नागिन के हमले से वह अपनी रक्षा मंत्र के द्वारा बच जाता है । वह यह सोचने लगता है आखिर मेरी तो उसमें कोई भी गलती नहीं थी आखिर क्यों इस कार्य के लिए मुझे इस प्रकार के अपराध से भोगता हो रही है । ऐसा क्यों हुआ कि एक नाग आता है और उसके यज्ञ कुंड में जाकर गिर जाता है और भस्म हो जाता है । और उसकी प्रेमिका या पत्नी उससे बदला लेने के बारे में सोचती हैं । जबकि मैंने तो मन में भी उन दोनों का बुरा नहीं चाहा था । अब क्या किया जाए यही सोच विचार करके अब वह अपनी आगे की साधना को पूरे करने के बारे में विशेष रूप से दिव्य ऊर्जा के माध्यम से प्राप्त करता है । वह जानने की कोशिश करता है कि उसको किस प्रकार से साधना करनी है उस गोपनीय विद्या को जिसको उसने अपने गुरु से प्राप्त किया था । उसके लिए एक दर्पण पर मंत्रों का प्रयोग करना होता था । इसलिए उसे सूखे हुए सफेद रंग के चावलों का इस्तेमाल करना पड़ता था । सफेद रंग के वह चावल लेकर आता है जो उसके पास पहले से मौजूद थे । क्योंकि उसने अपने खाने-पीने और पूजा की समस्त सामग्री उस घनघोर जंगल में अपनी कुटिया में स्थापित कर ली थी । क्योंकि उसे यह यकीन था कि उसे कुछ ही दिनों में या वर्ष पूर्ण होने से पहले ही उसे साधना संपन्न करके एक दिव्य सेना का निर्माण करना है ।

यह गोपनीय अत्यंत विद्या थी जो उसके गुरु से प्राप्त हुई थी ।और उसके लिए उसे दर्पण शक्ति की आवश्यकता थी दर्पण को उसने अपने आगे लगा लिया । और उस पर चावलों से अभिमंत्रित करके उन्हें मारने लगा । जब उन पर मारता तब वहां दिव्य ध्वनि प्रकट होती धीरे-धीरे करके वहां पर श्वेत रंग का एक धुए प्रकट हुआ । उस श्वेत रंग के धुए से पूरा उसका कमरा भर गया जिस कुटी में रहता था । वह पूरी की पूरी उस सफेद धुए से भरती चली जा रही थी । यह एक दिव्यतम प्रयोग था जो उसके गुरु ने उसे बताया था । अब वह उस धुंध में सब कुछ दिखना जब बंद हो गया तब उसने अपने अभिमंत्रित मंत्र को सात बार जपा और उसमें दृश्य देखने की कोशिश की । यही विद्या इस गोपनीय विद्या के बारे में कोई नहीं जानता था सिर्फ उसे ही पता था । और जैसे ही वहां सफेद रंग की धुंध पूरी तरह से कमरे को ढक ली पूरी तरह से उस में छा गई । तो फिर उसने अपने अभिमंत्रित मंत्रों से उसमें दृश्य दिखने से प्रारंभ हो गए । दृश्य दिखाई उसे इस प्रकार दिया कि उसे वह विधि वायु देव के द्वारा बताई जाने लगी के किस प्रकार से वायुसेना को प्रकट कर सकता है । उसकी विधि क्या है वायु देव उसके सामने प्रकट हुए और वायु में विचरण करते हुए उन्होंने वह विधि बताई । जो इस प्रकार से थी उन्होंने कहा के मंत्र ओम होंग होंग सेनायंग इस मंत्र का जाप करना है ।इससे वायु भूतेश्वर यक्षो की सेना प्रकट होती है यह अत्यंत ही गोपनीय मंत्र है । इस मंत्र के अनुष्ठान से तुमको निश्चित रूप से यक्षसेना की प्राप्ति होगी । यक्षो की एक बहुत बड़ी सेना तुम्हारी सेवा में सदैव रहेगी ।

और इसकी सिद्धि के लिए तुम्हें 1 वर्ष तक इसका अनुष्ठान करना होगा । यह साधना तुम्हें पुंवस्चक पूर्वक करनी होगी । और इस मंत्र का जाप लगातार 1 वर्ष तक करना होगा । पूर्णिमा की रात्रि में आपको विधिवत पूजा करनी होगी बलि आपको देनी होगी । और यह बलि आप देने के बाद अक्षत घी इकशु खीर भेंट करके गूगल की धूप को इस शक्तिशाली देव प्रतिमा को देंगे । एक यक्ष देव प्रतिमा वायु देव ने वहां पर प्रकट कर दी है और सभी यक्ष सेना तुम्हारी भृत्य अर्थात दास बन जाएगी । उसमें से जो मुख्य यक्ष होंगे वह अपराजित देवता के नाम से जाने जाएंगे । वह अपराजित यक्ष होंगे और आपको भृत्यय बनकर आपकी सेवा सदैव करेंगे । आपको राज्य प्रदान करेंगे शत्रुओं का नाश करेंगे और सुंदर रमणीय स्त्रियां लाकर दे देंगे और सातों कल्पों तक आपकी सेवा करेंगे । यह मंत्र क्योंकि आपको गुरु से प्राप्त हुआ है इसलिए इसकी साधना आपको करनी है और इस साधना में आपको किसी भी प्रकार से याद रखिएगा कि छोड़ना नहीं है । इस साधना को बीच में छोड़ने पर आप की मृत्यु भी हो सकती है इसलिए इस बात को ध्यान में रखते हुए आप इस साधना को संपन्न कीजिए । मेरा आशीर्वाद आपके साथ रहेगा । इस प्रकार वायु देव वहां से गायब हो गए । वायुदेव ने वायु भूदेश्वर यक्ष सेना के बारे में जो कुछ भी बताया था उसको जानकर भद्रा बहुत प्रसन्न हुआ । और उसे पता चल चुका था कि किस प्रकार से उसे इस मंत्र का जाप करना है और क्या-क्या विधि-विधान उसको अपनाना है ।

लेकिन वह इस प्रश्न का उत्तर नहीं जान पाया कि आखिर उसके साथ ऐसा संभव ही क्यों हुआ जिसकी वजह से आज वह एक नागिन के क्रोध का भाजन बन रहा है । यह एक ऐसी दुर्लभ स्थिति थी जब वह साधना करने के पक्ष में था तो तब उसे किसी के बदले का भागी बनना पड़ रहा था । इधर उसने अपनी तैयारी शुरू कर दी और साधना करने के लिए रोज रात्रि को उसी स्थान पर बैठकर के साधना करना प्रारंभ शुरू कर दिया । इधर नागिन उसकी कुटिया के चारों तरफ चक्कर लगाती लेकिन कुटिया में प्रवेश ही नहीं कर पाती थी एक अद्भुत तंत्र का जाल भद्रा में अपने चारों तरफ बिछा दिया था । क्योंकि वह यह बात जान चुका था कि एक बार जब नागिन क्रोध में आ सकती है तो अवश्य ही वह क्रोध में रहेगी और निश्चित रूप से उसका नुकसान कर सकती है । लेकिन नागिन और इस तरह की जो भी शक्तियां होती हैं वह विवेक से कार्य नहीं लेती अगर वह विवेक से कार्य लेती तो अवश्य ही इस बात को जान पाती कि वह कार्य स्वभाविक रूप से उसका पति का मरण तय था । और वह एक निमित्त मात्र और यज्ञ की आहुति बनी जिसमें वह  जलकर के भस्म हो गया । लेकिन जैसे किसी चीज का स्वभाव होता है वह स्वभाव सदैव उसी तरह से रहने वाला होता है । इसी प्रकार नागिन का जो स्वभाव है उसका वैसे ही स्वभाव रहने वाला था । उसके मन में क्रोध था उसके मन में निराशा थी उसके मन में अत्यंत बुरे भाव थे । लेकिन एक अद्भुत चमत्कार उसके साथ घटित हो रहा था । क्योंकि वह नागिन वहां रहकर हर रोज मंत्रों का जाप सुनती थी और उसे भी दिव्यतम ऊर्जाजाए प्राप्त होती थी । इसलिए उसकी शक्ति बढ़ती चली जा रही थी धीरे-धीरे करके कुछ मास बीतने के बाद में अचानक से वहां दिव्यतम उर्जाए प्रकट होने लगी ।

उन दिव्यतम उर्जाओ कि स्थिति ऐसी थी कि वह चारों तरफ फैली हुई थी । तो जो भी चीजे उनके असर में आ रही थी वह सब में ऊर्जा शक्ति का निश्चित रूप से प्रादुर्भाव होता चला जा रहा था । वह सब शक्तियां इस प्रकार से वहां घूम रही थी जैसे कि छोटे बच्चे आंगन में घूमा करते हैं उन शक्तियों के प्रभाव के कारण नागिन के भी ब्रह्मरंध्र में अचानक से तेज प्रकाश उत्पन्न हो गया । क्योंकि वह वहां रहकर सदैव यही चेष्टा किया करती थी कि किस प्रकार से वह भद्रा को डसेगी । लेकिन वह ऐसा कर नहीं पा रही थी । इसलिए बहुत ही समस्या में फसी हुई नागिन वहां लगातार चक्कर काटती रही । जिसका उसको अत्यधिक लाभ प्राप्त हो रहा था इसी कारण से देवीय बात कही जाती है कि साधको के समीप रहने वाले लोगों को विशेष रूप से फायदा होता है । उनके बिना साधना किए पश्चात लेकिन यह सदैव साधक के लिए बुरा होता है । क्योंकि साधक ने जो ऊर्जा अपने तप के द्वारा प्राप्त की है वह यूं ही दूसरे लोगों को प्राप्त होने लगती है ।यह उस नागिन के साथ हो रहा था । ब्रह्मानंद में लगातार जाने वाली ऊर्जा ने वहां पर उसे उसकी मणि को जागृत कर दिया । उसके मणि के जागृत होने के कारण वह इच्छाधारी नागिन के स्वारूप में तब्दील हो गई । इच्छाधारी नागिन बनने के कारण अब उसके अंदर दिव्यतम ऊर्जा आ चुकी थी । उसकी साधना को वह ग्रहण कर रही थी और लगातार ग्रहण करती चली जा रही थी । फायदा यह हुआ कि अब वह एक इच्छाधारी नागिन बन चुकी थी । लेकिन भाव वही आज भी ।

इतनी उर्जा प्राप्त करने के बावजूद भी उसके मन में यह भाव नहीं आ रहे थे जहां से मुझे इतना लाभ हुआ है क्या मैं उसे माफ नहीं कर सकती हूं या उसे क्षमा नहीं कर सकती हूं । लेकिन कहते हैं जिसका जैसा स्वभाव होता है वैसे ही आचरण करता है । तो नागिन का स्वभाव ही ऐसा था कि वह माफ करने की बात तो छोड़िए वह उनसे बदला लेने और उनका वध करने के बारे में सदैव सोचती रहती थी । अब वह चुकी इच्छाधारी हो चुकी थी इसलिए अब उसने पहली बार मानवी का रूप धारण किया । एक मानवीय स्त्री के रूप में वह बदल गई और अत्यंत ही रूपवान स्वरूप बनाकर जंगल में विचारने लगी । एक बार भद्रा पानी भरने के लिए वहीं कहीं एक नलकूप के पास जहां पर एक बड़ा सा कुआं था । उस कुए से ऐसा एक स्थिति बनी हुई थी कि उसमें बाल्टी डाल कर के पानी को भरा जाता था और निकाला जाता था । तो इस प्रकार से एक बना बनाया बहुत ही प्राचीन कालीन कुआ उसे प्राप्त हुआ था । और उसी कुएं से पानी भरकर के अपने लिए लाया करता था । उसको ऐसे करके उस कि जल की पूर्ति संभव होती थी । साधना रात्रि को साधना करने के बाद दिन में सुबह के समय में सो जाया करता था । और दोपहर से पहले उठकर के अपने लिए पानी का प्रबंध करने वह वहां से बाहर निकला करता था । तो उस कुएं के पास सदैव पानी भरा करता था जब वह कुएं के लिए निकलता था ।अपने आप को अभिमंत्रित कर लेता था क्योंकि उसे पता था कि उस पर कोई बुरी शक्ति कोई बुरा प्रभाव ना डाल सके । क्योंकि वह साधना में भी है ऐसे में उसके साथ कुछ भी बुरा हो सकता है । इसलिए वह अपने ऊपर अपने आप को अभिमंत्रित मंत्रों से कर लिया करता था । यही कारण था कि नागिन कुछ भी नहीं कर पा रही थी । नागिन के सामने अब कोई विकल्प नहीं था ।

नागिन ने सोचा अब क्योंकि वह इच्छाधारी हो चुकी है और मानवीय स्वरूप धारण कर सकती है । तो अब उसे ऐसा कार्य करना चाहिए जिससे भद्रा भी चौक जाए और वह समझ ही ना पाए कि आखिर यह हुआ क्या । उसने इसी प्रकार एक योजना बनाई और कुएं में जाकर के नीचे कूद गई । जैसे ही भद्रा आया वह चिल्लाने लगी बचाओ बचाओ बचाओ उसे देखकर भद्रा ने सोचा यह कोई स्त्री है । जो अत्यंत ही रूपवान है आखिर वे यहां पर आई कैसे और इस भीषण बीच बने इस जंगल में इस प्रकार से कैसे यह इसके अंदर गिर गई है । उसको देख कर के बहुत ही जल्दी उसने वहट रस्सी को उसकी तरफ फेंका और कहा इसे पकड़ लो और तुरंत ही मैं तुम्हें ऊपर खींचता हूं । भद्रा ने जो रस्सी नीचे फेंकी थी उसे उस नागिन ने पकड़ लिया और मानवी स्त्री रूप होकर के उसे पकड़े पकड़े उसे खींच कर के उसे ऊपर खींचता हुआ लेकर आया । जब वह उसे खींच रहा था तो उसका वजन उसे बहुत ही हल्का महसूस हुआ पहली बार किसी स्त्री का वजन उसे इतना हल्का महसूस हुआ था । उसने सोचा कोई स्त्री इतनी हल्की कैसे हो सकती है लेकिन यह बात उसके मन के विचार में नहीं थी । यह कोई मायावी शक्ति भी हो सकती है लेकिन उसने किसी भी प्रकार से उसको उस कुए से ऊपर खींच लिया और उसे बाहर निकाला ।

वह पूरी पानी में भीगी हुई थी उसे देख कर के वह कहने लगा आपको तुरंत ही ग्राम की ओर निकल जाना चाहिए । वहां जा कर के अपना यह वस्त्र बदल लीजिए । क्योंकि बहुत ही ठंडा समय है यह और सर्दियों के समय होने के कारण आपको तुरंत ही कोई ना कोई रोग पकड़ लेगा । जिसकी वजह से आपकी तबीयत खराब हो सकती है ऐसी बात उसने उसे कहीं । लेकिन वह रोने लगी उसे रोते हुए देख कर के भद्रा को कुछ समझ में नहीं आया । भद्रा ने कहा क्या बात है आप मुझे बताइए । तब वह कहने लगी मुझे पता नहीं मुझे कौन यहां छोड़ कर चला गया मैं तो अपने परिवार में थी आप मेरी मदद कीजिए । भद्रा ने कहा यह स्त्री को कोई छोड़ गया है उसने सोचा कि चलो इसे अपनी कुटिया में ले चलते हैं और वहां ले जाकर के कुछ ना कुछ व्यवस्था अवश्य करेंगे । भद्रा ने उसे अपनी कुटिया में प्रवेश दे दिया । जिससे वह बहुत ज्यादा खुश हो गई क्योंकि हो सकता है अब उसकी इच्छा पूरी हो सके अब ।उसे वहां जो भी वस्त्र रखे हुए थे उनमें से एक साड़ी उसे दी और कहा अपने वस्त्र बदल लो । और आप यहां तब तक रह सकती हैं जब तक कि मैं आपके परिवार वालों को ढूंढ नहीं लेता हूं । जल्दी ही मैं तंत्र विद्या से पता लगा लूंगा कि तुम्हारे परिवार वाले कहां है । लेकिन जैसे ही वह तंत्र विद्या का प्रयोग करने की कोशिश करता है । नागिन उसका हाथ पकड़ लेती है और कहती है कि रुक जाइए एक क्षण । मैं आपको कुछ बताना चाहती हूं । वह क्या बात थी हम जानेंगे इसके अगले भाग 3 में । आपका दिन मंगलमय हो धन्यवाद ।

कैलाश मंदिर एलोरा के यक्ष भाग 3

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