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कैलाश मंदिर एलोरा के यक्ष भाग 1

कैलाश मंदिर एलोरा के यक्ष भाग 1

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है । आज मैं आपके लिए एक ऐसा मंदिर लेकर आया हूं जो मंदिर अपने आप में बहुत ही ज्यादा प्रसिद्ध है ।यह है कैलाश मंदिर एलोरा , एलोरा वह स्थान है जहां के रहस्यो को आज भी जाना नहीं जा सका है । हम आज उसी के बारे में बात करेंगे । आज मैं इस मंदिर के बारे में और जो उसके गुण है वह बताऊंगा । और साथ ही साथ यहां की एक जो किवदंती कथा है जो सुनी सुनाई बात है हालांकि बहुत कम लोग यह बात जानते होंगे मुझे लगता है गिने चुने भी नहीं होंगे । इस मंदिर के रहस्य के बारे में कथा के रूप में मैं आपको वह बताऊंगा । साथ ही साथ आज के भाग में मैं आपको इस मंदिर की सारी विशेषताएं बताऊंगा । यह अद्भुत कहानी है इस कहानी को जानकर आपको बड़ा ही आश्चर्य होगा और शायद हमारे लिए विशेष शोध की भी बात होगी । इस कहानी का आनंद लीजिए साथ ही साथ इस विशालकाय महानतम मंदिर के बारे में भी जानिए  । तो यह जो मंदिर है यह बहुत ही विशालकाय बहुत ही उच्च कोटि का मंदिर माना जाता है । और इसमें शिल्पकारी का जो कार्य है वह अपने उच्चतम स्तर पर रहा ऐसे ऐसे शिल्पकारओ ने ऐसी-ऐसी रचनाओं का निर्माण किया जिसके बारे में सोचना भी कठिन है । यह लगभग 12 सौ  साल पुराना मंदिर है एक ही पत्थर को काटकर के जी हां यह एक पूरी की पूरी चट्टान या पत्थर को काटकर ही उसे मंदिर में तब्दील कर दिया गया । आप इसी से अनुमान लगा लीजिए कि एक सीधे-सीधे पत्थर को काटकर के सीधे एक मंदिर बनाना कितना कठिन कार्य है ।

यह जो मंदिर है आपको इस मंदिर के लिए महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में एलोरा यहां पर एलोरा की जो गुफाएं हैं वहां पर आपको जाना होगा इसको देखने के लिए । और यह बहुत प्रसिद्ध रचना के रूप में जाना जाता है कहते कि इस मंदिर को तैयार करने में लगभग डेढ़ सौ वर्ष लगे होंगे और लगभग 7000 मजदूरों ने इसमें काम किया होगा । यह जो है मंदिर की गुफा एलोरा सोला है वहां पर निर्मित है और महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में एलोरा की गुफाएं विशेष रूप से प्रसिद्ध है । इसमें 16 नंबर की जो गुफा है उसको ही शिव मंदिर कहा जाता है यह मंदिर जो है दो तल में बना है और लगभग 276 फीट लंबा और 154 फीट चौड़ा और लगभग 90 फुट ऊंचा इस मंदिर की स्थिति है । एक राजा महेश था उस वंश के राजाओं ने इसका निर्माण किया देश के निर्माण को करवाया था । जिसमें कृष्ण देव प्रथम इस मंदिर के निर्माण करवाया था । इनके जो परचोक्के है मूर्तियां है गर्भ ग्रह वगैरह आश्चर्यजनक नजर आता है । यहां भगवान शिव नंदी के साथ में विराजमान है और उनको सभी मुद्राओं में इस मंदिर में दिखाया गया है । यह मंदिर की जो गुफाएं हैं 12 मंजिली कही जाती है और यह अद्भुत नजारा है यानी कि 12 मंजिल की इतनी बड़ी ऊंचाई तक बनाया गया था इस मंदिर को । क्योंकि इस गांव के नजदीक ही एक जगह है जिसको हम एलोरा बोलते हैं इसे एलोरा गांव कहा जाता है । इसीलिए इसको एलोरा की गुफाओं के नाम से जाना जाता है । कैलाश मंदिर के बगल में बाकी जो मंदिर है वह 600 से 750 ईसवी के माने जाते हैं और इनका जो संबंध है बौद्ध धर्म से हिंदू धर्म से जैन धर्म से इसीलिए यहां पर तीनों धर्म के लोग यहां पर आते हैं । और इस आश्चर्यजनक रचना के निर्माण को देखते हैं ।

अब बात करते हैं उस तथ्य कि । जो आज के विषय का सबसे महत्वपूर्ण है आपको आनंद देने वाला होगा । क्या कैलाश मंदिर को आम मानवों ने नहीं बनाकर के यक्षों ने बनाया है । जी हां यह प्रश्न है सबसे बड़ा कि क्या कैलाश मंदिर को याक्षो ने‍ निर्माण किया है । क्योंकि मानव के बस की यह बात नहीं और अगर मानव इसका निर्माण करते तो कितने अधिक वर्ष लगते कितना अधिक समय लगता । और फिर भी इस बियाबान इलाके में कोई क्यों ऐसा करता । अब मैं आपको इसके बारे में ऐसी बातें बताऊंगा कि जिसकी वजह से आपको यकीन होगा कि यह एक अद्भुत रचना है । कहते हैं इस मंदिर को बनाते समय पत्थरों के टुकड़ों को एक के ऊपर एक रखकर के जमा गया होगा और इस तरह से ही यह मंदिर बनाया गया । यह मंदिर एक पहाड़ के शीश के ऊपर से नीचे काटते हुए बनाया गया जैसे कि एक मूर्तिकार एक पत्थर को तराशता है । अब सोचिए कितनी बड़ी मूर्ति या कितने पहाड़ को एक साथ एक सिस्टम से तराशा गया । यानी कि उसके लिए कितना बड़ा मूर्तिकार होना चाहिए । कहने का मतलब है कम से कम 100 फुट 200 फुट ऊंचा मूर्तिकार होगा ।वही इस पत्थर को इस तरह से काट सकता है पहली बात ।दूसरी बात पत्थर को काट काटकरके खोखला मंदिर बनाया गया लंबे द्वारा नक्काशी वगैरा की गई । और इसके अलावा पानी की जो बारिश वगैरा पानी का सिस्टम है । पानी के बाहर निकालने के लिए नलिया मंदिर टावर पुल महीने का डिजाइन जो खूबसूरत छज्जे है यह सब और सब कुछ गुप्त अंडर ग्राउंड रास्ते से पत्थर को काटकर बनाना । यह कोई इंसान के बस की बात उस जमाने में नहीं नजर आती है ।आज के जो वैज्ञानिक और जो शोधकर्ता है वह अनुमान लगाते हैं कि लगभग मंदिर को बनाने के दौरान इकाई आधार पर लगभग चार लाख टन पत्थर को काट करके हटाया गया होगा । जी हां 4 लाख टन पत्थर को काटकर के हटाया गया ।

अगर इस हिसाब से आज के हिसाब से अगर देखा जाए तो इसमें लगभग 7000 मजदूर अगर डेढ़ सौ सालों तक काम करेंगे तभी यह मंदिर बनकर पूरा होगा । लेकिन ऐसा कहां जाता है कि 17 साल में ही बन गया था ।अब फिर यह बात सोचने में आती है कि 17 साल में 7000 मजदूर अगर काम करें और 150 वर्षों तक काम किया जाए तब यह मंदिर 150 सौ साल में बनता । यानी कि कितने गुना हो गया अनुमान लगा लीजिए । तो यानी कि 7 लाख लोग काम करें तो जाकर के कार्य हो जल्दी-जल्दी पूरा सकता है । 7 लाख या 8 लाख 10 लाख लोग एक साथ काम करें तब जाकर के तो इतनी बड़ी तो संख्या उस जमाने में जो है आबादी ही नहीं होती थी । इसके अलावा उस जमाने में जैसे क्रेन होती है आजकल मशीनें होती है और औजार होते हैं और काफी सारा पत्थर काटकर के कैसे एक जगह से दूसरी जगह तक ले करके जाया होगा ।टनो कुंटलो का पत्थर एक एक पत्थर । क्योंकि पत्थरों के हिसाब से अलग करके बनाया गया है तो यह एक एलियन टेक्नोलॉजी इसको कहा जाता है । पर गृह वासी टेक्नोलॉजीके नाम से भी कहा जाता है जाना है । यानी कि यह कार्य भी मनुष्य के लिए संभव बड़ा ही कठिन होगा  उस जमाने में । कैसे हुआ होगा यह जो मंदिर है राष्ट्रकुल के राजा कृष्ण प्रथम जी ने बनवाया था । लगभग 756 से लेकर के 773 ईसवी के बीच में ऐसा वर्णन आता है । और यह जरूर नहीं बताया गया है कि इसमें कौन सी जानकारी है टेक्नोलॉजी है यह इसके बारे में कोई वर्णन नहीं मिलता है । दीवारों पर जो लेख हैं वह बहुत पुराने हो चुके हैं और इनकी जो लिखी हुई भाषा है । वह भी नहीं कोई पढ़ पा रहा है । इस वजह से और भी समस्या है कि किस तरह कैसे जैसे कि ।

आजकल हम लोग 3D डिजाइन बनाते हैं सॉफ्टवेयर वगैरह होते हैं । मॉडल वगैरह बना करके उसके बाद हर क्वालिटी के कंप्यूटर की आवश्यकता होती है । तब जाकर के कोई सटीक चीज बन पाती है । लेकिन यह सब जाने बिना उस जमाने में इतना बड़ा अच्छा और इतना जबरदस्त मंदिर कैसे बना गया । तो यह एक चमत्कार है और यह चमत्कार कैसे किया गया इसकी कहानी और किवदंती अलग ही किवदंतीयो की कोई सच्चाई जान नहीं सकता है । लेकिन फिर भी हम जो है कहानी के माध्यम से इसको जानेंगे समझेंगे कि आखिर हुआ । क्या किस प्रकार से यह चीज घटित हुई और कैसे इस दुनिया में बदल की गई कैसे यह मंदिर इतना विशालकाय इतना अद्भुत केवल पत्थर की चट्टान को काटकर पूरा का पूरा पत्थर पहाड़ को काटकर के एक मंदिर बना दिया गया । तो यह कहानी है भद्रा तांत्रिक की और उसकी यक्ष साधना की । भद्रा तांत्रिक ने इसी स्थान पर रहकर के यक्ष साधना की थी । और उस यक्ष साधना के कारण उसे अद्भुत शक्तियों की प्राप्ति हुई थी उसी की कहानी है । और उसमें कैसे उसकी शक्तियां बाद में आकर के इन मजदूरों में घुसी होंगी यह ही इस कहानी का मूल है । तो इसमें हम यह सबसे पहले जानने की कोशिश करते हैं जहां पर आज एलोरा गांव स्थित है वहां पर किसी जमाने में जब यह मंदिर का निर्माण नहीं हुआ था  । उस जमाने में भद्रा नाम का एक तांत्रिक रहा करता था ।भद्रा तांत्रिक के पास में अपने जीवन में सिद्धि प्राप्ति के लिए बहुत ही उसकी उत्सुकता थी वह कोशिश किया करता था । कि किस प्रकार से मैं कैसे भी करके भयंकर भयंकर सिद्धियों को प्राप्त कर सकूं । क्योंकि उस जमाने में बिल्कुल पूर्ण जंगल का इलाका होता था पूरे के पूरे जंगल थे । पेड़ ही पेड़ चारों तरफ भरे हुए होंगे ऐसी स्थिति में इतने घने जंगल में वह ऐसे स्थान पर रहा करते था । केवल तांत्रिक सिद्धियों के लिए तांत्रिक सिद्धियां प्राप्त करने के लिए जो उद्देश्य है ।

वह सभी कालों में सभी समय एक ही जैसा रहा है लोगों का अपनी शक्ति बढ़ाना अपनी सामर्थ्य बढ़ाना अपने अंदर ऊर्जा और शक्ति निर्माण करना ।इसलिए भद्रा तांत्रिक ने भी यही सोचा और उसने अपने गुरु दीक्षा ली । उसके बाद उसके गुरु ने उसे यक्ष साधना करने को कहा । उसके गुरु ने उसे कहा कि तुम यक्ष साधना करो यक्ष साधना से तुम असंभव से संभव कार्य को भी संपन्न कर पाओगे । क्योंकि यह पूरा इलाका हिंदू बौद्ध उज्जैन इत्यादि ही इन्हीं धर्मों से संबंधित था । तो निश्चित रूप से यह साधना के लिए योग्य गुरु मिले होंगे गुरुओ की सलाह के बाद ही यह यक्ष साधना शुरू की होगी । इसलिए उसने यहां पर रहकर महायक्ष सेना की शक्ति प्राप्त करने की चेष्टा की । उसने सोचा कि यक्षसेना में ऐसी बनाऊ जिसकी शक्ति से कोई भी पराजित हो जाए और मैं अद्भुत शक्ति से संपन्न हो जाऊं । इसलिए भद्रा तांत्रिक ने यहां पर रह करके यक्ष साधना करने की सोचा । सबसे पहले उसने  एक कुटी निर्माण करा और उस कुटी में उसने पर्याप्त वस्तु का संरक्षण किया स्थितियों को रखा था ताकि उसके भोजन वगैरह और अन्य चीजों की सामग्रियों की आवश्यकता ना पड़े । ताकि वह सहजता से जितने भी दिन वह यक्ष साधना करें वह कर पाए । गुरु ने 1 वर्ष की यक्ष साधना करने के लिए कहा था । मगर इस घनघोर जंगल में रह करके साधना करोगे तो यक्ष निश्चित रूप से सिद्ध होगा और साथ में साथ में तुमको अद्भुत शक्तियों की प्राप्ति होगी । भद्रा ने सबसे पहले यक्षराज कुबेर की साधना शुरू की ।

उनकी साधना एक माह करने के पश्चात गुरु के कहे अनुसार अब भगवान शिव के यक्ष स्वरूप की साधना की ।ताकि भगवान शिव की आज्ञा और आशीर्वाद उसे प्राप्त हो  सके । एक माह तक भगवान शिव की इस प्रकार उसने साधना संपन्न की । अपनी साधना में अधिक स्तर पर पहुंचता चला जा रहा था । क्योंकि कोई भी उसे रोकने टोकने वाला नहीं था और अकेले जब कोई भी साधना की जाती है तो वे निश्चित रूप से सफलता दिलाती है । तो इस कारण से उसके जीवन में धीरे-धीरे करके तंत्र शक्तियों का प्रवेश शुरू होने लगा था । वह जिस स्थान पर रहता था वहां पर धीरे-धीरे करके सर्पों का वास हो गया । यह केवल उसकी 2 महीने की साधना में ही ऐसा होना संभव हो गया था । दूसरे माह जब भगवान शिव की साधना कर रहा था और साथ ही साथ उसमें हवन करने भी शुरू कर दिए ।भगवान शिव को अर्पित किए गए 30 हवन ठीक उसी प्रकार से । जैसा कि उसने कुबेर साधना में 30 हवन उनको समर्पित किए थे यानी प्रत्येक दिन साधना के पश्चात वह हवन करता था । और उसमें आहुतियां उसी मंत्र की स्वाहा करते डालता था । जैसे कि आजकल भी हम लोग करते हैं इसलिए वह धीरे धीरे करके अपनी साधना में पारंगत होता चला जा रहा था । इधर यक्षराज और उधर भगवान शिव की कृपा बरस रही थी । इसी के कारण से अब वह भयंकरतम यक्ष साधना करने के लिए उत्सुक था । वह महायक्ष सेना को बनाना चाहता था । महायक्ष सेना एक ऐसी सेना थी जिसका सामना कोई भी करने में संभव नहीं था ।

मनुष्य की तो क्या बात देवता और राक्षस भी उस महायक्ष सेना का सामना नहीं कर सकते थे । इसलिए उसने ऐसी सेना बना करके जगत विजय की बात उसने मन में सोची थी । कि मैं विजय कर लूंगा इसी बहाने मैं सारे संसार पर अपना साम्राज्य स्थापित करूंगा । इसलिए वह साधना करने के लिए अब भगवान शिव से आज्ञा लेने की चेष्टा में लगा था । और वे लगातार भगवान शिव की इस प्रकार 1 माह तक साधना और आराधना की अंतिम दिन जब वह अपनी अंतिम आहुति डाल रहा था । तभी गलती से ऊपर से जिस कुटिया में वह रहता था वहां ऊपर सांप चढ़ा हुआ था वह सर्प उसके यज्ञ कुंड में गिर गया । और वह जलने लगा उसे देख कर के भद्रा भयभीत हो गया । भद्रा ने सोचा यह कैसे हो गया मेरी इस साधना में किस प्रकार से यह सर्प की बलि चढ़ गई । अब उसके मन में भय व्याप्त हो रहा था । वह इस बात को सोच रहा था कहीं ऐसा ना हो कि इसकी वजह से भगवान शिव नाराज हो जाए कि उनके गले की हार को भी उसने इस प्रकार से अपने यज्ञ कुंड की आहुति दे दी हो । अब इस बात को घबराते हुए वह सोचते हुए वह अभी कुछ सोच ही रहा था तभी वहां पर एक नागिन प्रकट हो गई । नागिन ने कहा यह मेरा पति था और आपको देख कर के आपकी साधना का कुछ फल प्रतिफल प्राप्त करने के लिए यहां पर नजदीक आया था लेकिन गलती से ऊपर से फिसल के नीचे गिर गया । और जल गया लेकिन यह सब तुम्हारी गलती है । इसलिए मैं तुम्हें किसी भी प्रकार से माफ नहीं करूंगी और मैं तुमसे अवश्य ही बदला लूंगी । यह कहते हुए नागिन ने उसे इस प्रकार धमकी दी जिसको देखकर भद्रा को एक बार फिर से भय हुआ । कि वह कौन से कार्य को संपन्न करने जा रहा था यह सब उसके साथ क्या घटित हो रहा है । भद्रा ने तुरंत ही अपने ऊपर अभिमंत्रित फूंक मारी जिसकी वजह से नागिन जब उसे डशा तो वह उसे डश ही नहीं पाई । और इस प्रकार भद्रा तांत्रिक ने अपनी जीवन की रक्षा कर ली । लेकिन नागिन क्रोध से फूकारती हुई झाड़ी में जाकर छिप गई । और कहती हुई गई कि कुछ भी होगा मैं तुमसे अपने पति की मृत्यु का बदला अवश्य लूंगी । आगे क्या हुआ हम यह जानेंगे कैलाश मंदिर एलोरा के यक्ष भाग 2 में । आपका दिन मंगलमय हो धन्यवाद ।

कैलाश मंदिर एलोरा के यक्ष भाग 2

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