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खुशबू वाली सुगंधा का सच्चा अनुभव भाग 12

प्रणाम गुरुजी 
गुरुजी, पिछले पत्र के अनुसार. आगे के कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न आज फिर से लाया हू. जो कि दर्शकों ने पूछे थे. सभी दर्शकों को प्रणाम करता हू गुरुजी. और आपके चरणों को स्पर्श करते हुए आज का पत्र प्रारंभ करता हू 
प्रश्न 8:- गुरु जी आठवे प्रकार के प्रश्न मे ब्रम्हचर्य से जुड़े हुए प्रश्नो को लिया है, कई दर्शकों ने mail और comment मे ये प्रश्न पूछा है. क्या आपको ब्रम्हचर्य का पालन करने मे कोई समस्या आयी है?. क्या ब्रम्हचर्य साधना में जरूरी है?. कैसे इसका पालन किया जाय?. इत्यादि. 

उत्तर :- गुरुजी, सुगंधा जब मुझको अष्टांग योग के बारे में समझा रही थी. तब सुगंधा ने अपनी मीठी और मधुर आवाज में मुझसे कहा था कि, सभी आठ प्रकार के मैथुन के त्याग को ” ब्रम्हचर्य ” कहते है. अर्थात। – ‘स्त्री का स्मरण करना’, ‘स्त्री की चर्चा करना’, ‘स्त्री के साथ क्रीड़ा करना’, ‘स्त्री की ओर देखना’, ‘स्त्री से लुक छिप कर बातें करना’, ‘स्त्री को पाने का संकल्प करना’, तथा ‘स्त्री के साथ समागम करना’. मैथुन के इन आठ प्रकारों को त्याग देना ही “ब्रम्हचर्य” कहलाता है. ब्रम्हचर्य ही संपूर्ण शुभ कर्मों की सिद्धि का मूल है. उसके बिना सारी क्रिया निष्फल हो जाती है. 
गुरुजी सुगंधा ने आगे बताया था कि, परमात्मा ने चार प्रकार की “सुरा”(मदिरा) बनाई है. गौड़ी, पैष्टी, और माधवी – ये तीन प्रकार की सुरा ‘ग्रहस्थ’ और ‘सन्यासी’ दोनों के लिए हानिकारक है. परंतु चौथी सुरा। – “जहा ग्रहस्थ के लिए रक्षक है, तो वही संन्यासियों के लिए घातक है”. “चौथी सुरा जहा ग्रहस्थ पुरुष के लिए वरदान है तो वही सन्यासियों की लिये श्राप.” 
परमात्मा ने जिस चौथी सुरा का निर्माण किया वो आपके सामने बैठी है। – मैंने पूछा गुरुजी कि कौन, अप्सराएँ?? सुगंधा ने हंसते हुए कहा गुरुजी की ‘स्त्री’। -“मदिरा को पीने पर मनुष्य बस मतवाला होता है. परंतु, स्त्री को देखते ही उन्मत्त हो उठता है. नारी देखने मात्र से, मन मे उन्माद करती है”. इसलिए एक साधक को कभी भी किसी स्त्री पर दृष्टिपात नहीं करना चाहिए. तथा हर हाल मे अपने ब्रम्हचर्य की रक्षा करनी चाहिए. जिसने आजीवन ब्रम्हचर्य व्रत का पालन कर लिया , उसके भीतर इंद्र तक को परास्त करने का दुःसह प्रताप स्वतः ही आ जाता है. 

प्रश्न 9:- सुगंधा देवी ने आपके लिए खूब तपस्या की है भाई, उनसे पूछ कर ‘बीज मन्त्रों’ के ऊपर कुछ प्रकाश डालिए? कितने जप के बाद सिद्धियां प्राप्त हो जाती है? इसी से मिलते जुलते कई प्रश्न और भी पूछे गए थे गुरुजी, मुझे लगा ये महत्वपूर्ण जानकारी अन्य साधकों के साथ भी साझा करनी चाहिए. इसलिए इस प्रश्न को शामिल किया है. 

उत्तर :-  गुरुजी, दर्शकों को बताना चाहता हू. की बीज मंत्र हृदय मे निवास करने वाला अविनाशी, चिन्मय, ज्योति स्वरूप और जीवात्मक है. उसकी आकृति कदंब के पुष्प के समान है. सुगंधा ने अपनी मधुर आवाज मे मुझसे कहा था गुरुजी की, ” जिस प्रकार घड़े के भीतर रखे हुए दीपक का उजाला एवं प्रकाश का विस्तार अवरुद्ध हो जाता है, परंतु दीपक घड़े के भीतर फिर भी जलता रहता है. उसी प्रकार ‘मंत्रेश्वर'(बीज) हृदय में विराजमान है. 
सुगंधा ने आगे बताया था गुरुजी की जिस प्रकार अनेक छिद्र वाले कलश मे जितने छेद होते है. उतनी ही भीतर रखे दीपक की किरणें बाहर को ओर फैलती है. ठीक उसी तरह नाडिय़ों द्वारा ज्योतिर्मय बीज़ मंत्र की रश्मियां शरीर को जीवित रखते हुए, देह के भीतर रहती है. सुगंधा ने मुझसे आगे कहा था गुरुजी की, अगर आप, ” शरीर रूपी प्राण वायु को जीतकर, जप और ध्यान मे तत्पर रहेगे. तो मंत्र जनित फल के भागी बनेंगे” . क्युकी, पंच भूत तन् की शुद्धि करके योगाभ्यास करने वाला साधक यदि सकाम हो तो अणिमा आदि सिद्धियां सरलता से प्राप्त कर लेता है. और यदि विरक्त (सन्यासी) हो तो, उन सिद्धियों को लाँघकर चिन्मय स्वरूप को प्राप्त कर भूतमात्र से तथा इंद्रियरूप से बने इस त्रिलोक से सदा सर्वदा के लिए मुक्त हो जाता है तथा वैकुण्ठ मे निवास करता है. 
मेरे एक अन्य प्रश्न का उत्तर देते हुए सुगंधा ने कहा था गुरुजी, कि बीज मंत्रो का एक लाख जप करने से, अन्य मन्त्रों का उनके अक्षरों के बराबर एक लाख बार जप करने से, विद्याओ को एक लाख बार जपने से, बुद्ध विद्याओ को दस हजार बार जपने से, स्तोत्रों का एक हजार बार पाठ करने से, अथवा सभी मन्त्रों को एक लाख बार जपने से, उन मन्त्रों की तथा अपनी भी ‘शुद्धि’ होती है. तथा दूसरी बार एक लाख जपने से मंत्र ‘क्षेत्रीक्रत’ होता है. बीज़ मन्त्रों का पहले जितना जप किया गया हो, उतना ही उनके लिए ‘होम’ करना चाहिए. तथा अन्य मन्त्रों मे, किए गए जप के अनुसार ‘दशांश होम’ करना चाहिए. 

प्रश्न 10:- सुगंधा दीदी के अनुसार प्रणव की परिभाषा क्या है?

उत्तर :- गुरुजी सुगंधा ने जब भगवान शिव की नित्य पूजा बतायी थी. तब ही प्रणव के बारे में विस्तृत जानकारी दी थी. उसके पहले तक मैं यही समझता था. की प्रणव किसी प्रकार का कोई स्तोत्र या मन्त्रों का समूह है. गुरुजी, सुगंधा ने अपनी मीठी और मधुर आवाज में मुझसे कहा था कि वेद प्रणव से ही आरंभ होते है, अतः प्रणव मे सम्पूर्ण वेदों की स्थिति है. वाणी का जितना भी विषय है सब प्रणव है. इसलिए प्रणव का अभ्यास करना चाहिए. प्रणव अथवा “ओंकार”।- मे अकार, उकार तथा अर्धमात्रा विशिष्ट मकार है. तीन मात्राएं, तीनों वेद, भू: आदि तीनों लोक, तीन गुण, जाग्रत, स्वप्न और सुषुप्ति – ये तीनों अवस्थाये, तथा ब्रम्हा, विष्णु और शिव – तीन देवता प्रणव स्वरूप है. ये सब क्रमशः ओंकार के ही स्वरूप है. 


सुगंधा ने आगे बताया गुरुजी की, ॐकार मात्रा से रहित अथवा अनंत मात्राओं से युक्त है. द्वैत की निवृत्ति कराने वाला तथा शिव स्वरूप है. ऐसे “ॐ” को जिसने जान लिया वही ‘मुनि’ है। दूसरा कोई नहीं. सुगंधा ने आगे कहा कि, आपको चाहिए कि, मन से हृदय मे स्थित आत्मा या ब्रम्ह का ध्यान करे. तथा जिव्हा से प्रणव का जाप करे. प्रणव धनुष है, जीवात्मा बाण है, तथा ब्रम्ह उसका लक्ष्य कहा जाता है. सावधान होकर उस लक्ष्य का भेदन करना चाहिए. ये एकाक्षर ही परम तत्व है, यह एकाक्षर प्रणव ही ब्रम्ह है. जो मनुष्य प्रतिदिन बारह हजार प्रणव का जाप करता है, उसे बारह महीने मे परब्रम्ह का ज्ञान हो जाता है. एक लाख जप पूरा करने से सरस्वती आदि देवियों की कृपा प्राप्त हो जाती है. तथा एक करोड़ जप पूर्ण कर लेने पर अणिमा आदि सिद्धियां स्वतः ही प्राप्त हो जाती है. 
गुरुजी कई दर्शकों ने mail के माध्यम से विभिन्न प्रकार की सिद्धियों की जानकारी मुझसे पूछी है कि,  कैसे निम्न सिद्धियों को प्राप्त किया जाय. जैसे कि अनूर्मिम, दूरश्रवणम, दूर दर्शनम, मनोजवम, कामरुपम, परकायाप्रवेशनम, स्वच्छन्द म्रत्यु (इच्छा म्रत्यु) , देवनां सह क्रीणा, यथासंकल्प सिद्धि, जल गमन, वायु गमन, पूर्ण पुरुषत्व इत्यादि.  गुरुजी, दर्शकों को बताना चाहता हू, कि मात्र प्रणव के जप से ये सभी सिद्धियां प्राप्त की जा सकती है. 
प्रश्न 11:-  गुरुजी ग्यारहवें प्रश्न में, कल्कि तथा बुद्ध अवतार से जुड़े हुए  प्रश्नो को ले रहा हू. ये प्रश्न भी दर्शकों ने comment मे बहुत बार पूछा है. दर्शकों ने कई बार मुझे कहा, कि कल्कि तथा बुद्ध अवतार के बारे में देवी से पूछिये? 
उत्तर :- बुद्ध अवतार।— गुरुजी सुगंधा ने पहले बुद्ध अवतार का वर्णन किया था, उसके बाद कल्कि अवतार का वर्णन किया था. गुरुजी दर्शकों को बताना चाहता हू की, पूर्व काल में देवताओ और असुरों का घोर संग्राम हुआ था. उसमे दैत्यों ने देवताओ को हरा दिया था. तब देवगण मदद की गुहार लगाते वैकुण्ठ श्री हरि के पास पहुचे. गुरुजी, सुगंधा के मुताबिक, तब भगवान ने माया मोह रूप लेकर राजा शुध्दोधन के पुत्र रूप में इस धरती पर अवतरित हुए. तथा दैत्यों को मोहित किया. और उनसे वैदिक धर्म का परित्याग करवा दिया. वे सभी दैत्य बुद्ध के अनुयायी ” बौद्ध ” कहलाये. इस प्रकार ये परम्परा आगे बढ़ी फिर “उन बौद्धों ने अन्य लोगों से भी वेद और धर्म का परित्याग कराया”. विडंबना है कि सनातन धर्म आज ‘वेदव्यास’ को नहीं जानता, महर्षि भृगु को नहीं जानता. परन्तु ‘आर्हत’ के सामने नतमस्तक अवश्य हो जाता है. सुगंधा ने आगे बताया गुरुजी की, जब सम्पूर्ण जम्बूद्वीप पर आर्हत साम्राज्य स्थापित हो जाएगा. तब वेद और धर्म मे रुचि रखने वाले सन्यासी बहुत कम बचेंगे. तथा पाखंडी अधिक होगे. तब सभी आर्हत मिल कर नर्क में स्थान पाने वाले कार्य करना प्रारंभ कर देगे. 
गुरुजी, सुगंधा ने आगे बताया कि वे सब के सब कलयुग के अंत मे ‘वर्णसंकर’ होगे. और नीच पुरुषों से दान लेगे. अथवा, अपना छोटे से छोटा कार्य संपन्न कराने के लिए नीछ से भी नीछ व्यक्ती को दान देगे. क्युकी उन्हें ईश्वर की माया से, कभी कोई सिद्ध आश्रम या सिद्ध मनुष्य दान देने के लिए मिलेगा ही नहीं. तथा कलयुग के अंत तक वाजसनेय (बृहदारण्यक) मात्र ही ‘वेद’ कहलायेगा. वेद की दस पांच शाखाएं ही प्रमाणभूत मानी जाएगी. धर्म का चोला पहने हुए सब लोग अधर्म मे ही रुचि रखने वाले होगे. राजारूपधारी म्लेच्छ मनुष्यों का ही भक्षण करेगें, चोरी, डकैती, तथा समस्त दिशाओं मे पाप का साम्राज्य स्थापित होगा. तब। – 
कल्कि अवतार ।— तदनंतर, भगवान कल्कि प्रकट होगे. वे श्री विष्णुयशा के पुत्र रूप से अवतीर्ण होगे. तथा याज्ञवल्क्य को अपना पुरोहित बनाएंगे. उन्हें समस्त अस्त्र तथा शस्त्र विद्या का सम्पूर्ण ज्ञान होगा. प्रभु, समस्त म्लेच्छो का सर्वनाश तथा चारो वर्णो और समस्त आश्रमों मे शास्त्रीय मर्यादा पुनः स्थापित करेगे. समस्त प्रजा धर्म के उत्तम मार्ग पर पुनः आएगी. पुनः वैदिक मन्त्रों का उच्चारण स्वर्ग लोक तक सुनाई देगा. पुनः अप्सराएं तथा गंधर्व कन्याएं अपनी अपनी पसंद के सरोवर जम्बूद्वीप पर ढूढ़ने आया करेगी. फिर तो पूर्ववत सतयुग साम्राज्य होगा. हर जगह पवित्रता होगी. उसके बाद श्री हरि कल्कि रूप का परित्याग कर पुनः अपने धाम मे वापस चले जायेगे. 
गुरुजी सुगंधा अपनी मीठी और मधुर आवाज मे, मुझसे बोली कि, भगवान विष्णु के अवतारों की कोई नियत संख्या नहीं है. अनंत अवतार प्रभु के हो चुके है. और अनंत अभी शेष है. उनके अवतारों की गणना कर पाना असंभव है. 

प्रश्न 12:- क्या मंत्रो के द्वारा किसी बीमारी को ठीक किया जा सकता है, और क्या मंत्र के द्वारा किसी अनिष्ट को होने से रोका जा सकता है. कृपया सुगंधा दीदी से पूछ कर ऐसा कोई मंत्र बताये जो बड़े से बड़े अनिष्ट को रोकने मे सक्षम हो. तथा बड़ी से बड़ी बीमारी को भी दूर कर सकता हो. 

उत्तर :- इस प्रकार के कई प्रश्न मुझसे, mail में और comment section मे पूछे गए थे गुरुजी. और मैं दर्शकों से ये निवेदन करना चाहता हू. की “गुरुमंत्र” से बड़ा और कोई मंत्र हो ही नहीं सकता. जितना मैंने सुगंधा को देख कर सीखा है. “एक तो वो कभी यु ही परेशान होती नहीं है. हमेशा एक मुस्कान उसके चेहरे पर रहती है. लेकिन जब कभी वो थोड़ी चिंतित होती है. तो सबसे पहले वो अपने गुरु अग्नि देव का ही नाम लेती है”. गुरु शिष्य परम्परा स्वयं महादेव की बनाई हुई है. और समस्त विघ्नों का निवारण गुरुमंत्र की शक्ति से सम्भव है. गुरुमंत्र पर संदेह अर्थात स्वयं महादेव पर संदेह करने जैसा समझना चाहिए. 


गुरुजी सुगंधा के मुताबिक, पाशुपतास्त्र जैसा मंत्र किसी अनिष्ट को क्या, प्राकृतिक आपदा को भी रोकने मे सक्षम है. तो वही मृत संजीवनी मंत्र किसी रोग को समाप्त ही नहीं, अपितु मरे हुए को भी जीवित करने मे सक्षम है. गुरुजी, दर्शकों से निवेदन है कि, किसी भी प्रकार के जप को प्रारम्भ करने से पहले, दर्शक गण भगवान शिव की पूजा (जो कि भाग – 9 एवं भाग – 10 मे पूजा विधी बता चुका हू) तथा योग्य गुरु का सानिध्य प्राप्त करले. तदनंतर, दोनो मन्त्रों को सिद्ध कर सकते है. गुरुजी, दर्शकों को बताना चाहता हू, कि ये दोनों मंत्र इतने शक्तिशाली हैं, की मात्र एक बार पढ़ लेने से ही आने वाला कोई भी अनिष्ट टल जाता है. पत्र के अंत में दोनों मंत्र लिख दूँगा गुरुजी. 
लेकिन मैं अभी भी यही कहूँगा गुरुजी, कि गुरुमंत्र से बड़ा और कोई मंत्र हो ही नहीं सकता. और हर व्यक्ती को गुरुमंत्र लेना ही लेना चाहिए. और जिसको गुरुमंत्र प्राप्त है, उसका अनिष्ट कभी हो ही नहीं सकता. वो व्यक्ती किसी प्रकार के रोग या पीड़ा से ग्रसित हो ही नहीं सकता. 
प्रश्न 13:- आपने एक बार कहा था कि, “कुछ सृष्टियों का निर्माण अभी भी अलग अलग आयामों में चल रहा है. तो कुछ सृष्टियों का अंत अब प्रारंभ हो चुका है”. सृष्टि से तात्पर्य यहा किसी एक planet से है? या पूरी की पूरी galaxy ही खत्म कर दी जाएगी?. सुगंधा भाभी की आँखों से कुछ नहीं छुपा होगा भाई, “अंत का प्रारम्भ कैसा होता है?”. भाभी से पूछ कर बताने की कृपा करे.
उत्तर :- गुरुजी सुगंधा के मुताबिक प्रलय या ‘अंत’ चार प्रकार का होता है। – नित्य, नैमित्तिक, प्राकृत और आत्यंतिक. सुगंधा ने अपनी मीठी और मधुर आवाज मे मुझसे कहा था गुरुजी की जगत में प्राणियों की रोज होने वाली म्रत्यु को “नित्य प्रलय” कहा जाता है.एक हजार चर्तुयुग बीतने पर जब ब्रम्हा जी एक दिन समाप्त होता है उस समय जो सृष्टि का लय होता है, उसे ब्रम्हलय कहते है. इसी को नैमित्तिक प्रलय भी कहते है. पांचो भूतो का प्रकृति मे लय हो जाने को प्राकृत प्रलय कहते है तथा आत्म ज्ञान हो जाने पर जब आत्मा परमात्मा मे स्थित हो जाती है, उस अवस्था को आत्यंतिक प्रलय कहते है. लेकिन सबसे ज्यादा डरावना नैमित्तिक प्रलय ही होता है. जिसे देख कर देवता भी भयभीत हो जाते है. 
सुगंधा ने अपनी मधुर आवाज मे मुझसे कहा था गुरुजी की, जब चारो युग एक हजार बार बीत जाते है. उस समय तक भूमंडल प्रायः क्षीण हो जाता है. तब सौ वर्षो तक निरंतर बारिश होती है. जिसके कारण सभी जीव जंतु का विनाश हो जाता है. तदनंतर सदाशिव सूर्य की सात किरनों मे स्थित होकर सूर्य को सात गुना और अधिक आकार प्रदान कर देते है. सूर्य के इतने अधिक ताप से पाताल और समुद्र का सम्पूर्ण जल सूख जाता है. उस समय प्रथ्वी किसी कछुए की पीठ की तरह दिखाई देती है. तत्पश्चात भगवान सदाशिव की श्वास से काल अग्नि रुद्र का प्रादुर्भाव होता है. रुद्र नीचे के सभी पातालों को भस्म कर डालते है. तत्पश्चात भूलोक को, फिर भुवर्लोक को, तथा अंत मे स्वर्ग लोक को भी भस्म कर देते है. उस समय समस्त त्रिभुवन जल रहा होता है. तथा स्वर्गलोक इत्यादि के निवासी उस समय असहनीय ताप के कारण तपलोक तथा सत्य लोक इत्यादि लोकों की शरण प्राप्त करते है. तथा, रुद्र संपूर्ण जगत को जला देने के बाद पुनः सदाशिव मे विलीन हो जाते है. तत्पश्चात सभी ऋषि ज़न मिल कर भगवान नारायण की स्तुति और वंदना करते है. जिसके कारण आकाश मे नाना प्रकार के बादल उमड़ आते है. वे बादल लगातार सौ वर्षों तक बरस कर बढ़ी हुई अग्नि को शांत कर देते है. ऐसी ही बारिश हर लोक मे होती है. जब सप्तर्षियों के स्थान तक पानी पहुच जाता है. तब भगवान विष्णु के मुख से निकली हुई श्वास के कारण सौ वर्षो तक प्रचंड वायु चलती है. जिससे समस्त लोकों मे बरस रहे बादल नष्ट हो जाते है. तत्पश्चात सदाशिव अपनी समाधी मे एक कल्प तक के लिए लीन हो जाते है. और भगवान नारायण भी एक कल्प तक के लिए अपनी मायामयी योगनिद्रा मे सो जाते है. तदनंतर दोनों के जागने पर, ब्रम्हा जी पुनः सृष्टि की रचना करते है. 
गुरुजी, दर्शकों के ये कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न थे. जो मुझे लगा कि इनके उत्तर मुझे समय रहते देने चाहिए. क्युकी, गुरुजी मुझे सुगंधा के नाम का सहारा लेकर, किसी भी प्रकार के social media account या यूट्यूब channel को खोलने की अनुमती नहीं दी गई है. और हो सकता है कि आगे मुझे पूर्ण रूप से गुप्त रहने के लिए कहा जाए. जिसके संकेत भी अब मुझे मिलने लगे है. क्युकी सुगंधा ने हाल ही मे मुझे कहा था कि, वो समय आने वाला है जब आप अपने अनुभव सिर्फ अपने गुरु को बता पायेगे, अन्य किसी को नहीं. 
गुरुजी, 11 अप्रैल 2020 को जब आपने “खुशबु वाली सुगंधा भाग 1” प्रेषित किया था. तब मैंने ये नहीं सोचा था कि दर्शकों का इतना प्रेम मुझे मिलेगा. जिसके लिए मैं धर्म रहस्य परिवार के सभी सदस्यों का आजीवन आभारी रहूँगा. दर्शकों के प्रेम, सौहार्द और करुणा से भरे comments ने मुझे मेरे अकेलेपन मे कितना सहारा दिया है. उस अनुभूति को, मैं शब्दों में बयान नहीं कर सकता. शायद सुगंधा भी नहीं कर सकती.  
गुरुजी, दर्शकों के दो प्रश्न अभी शेष है, जहा दर्शकों ने मुझसे पूछा है (प्रश्न 14)कि आपने, अपनी ‘दादी’ के पास रखी वो माला सुगंधा को पहनाई या नहीं? और (प्रश्न 15)किस कारण आपको सुगंधा से अलग होना पड़ा, क्या आपको वो कारण पता चला? गुरुजी, मैं किस कारण से, श्रापित किया गया? इसका जवाब मुझे अभी तक नहीं मिला है. परंतु प्रश्न 14 का उत्तर यानी सुगंधा को माला पहनाने मे किस प्रकार योगिनी शक्तियों ने मेरी सहायता की, और सुगंधा को पूर्ण श्रंगार मे देख कर कैसे, मेरी आत्मा और मन का “तिल तिल अंश” तक पवित्र हो गया. और किस प्रकार योगिनी शक्तियों ने मेरी मुलाकात एक मेरे पुराने साथी से करवाइ . जिसने मेरी गैर मौजूदगी मे न सिर्फ सुगंधा की हमेशा रक्षा की. अपितु जब उसके साथ कोई नहीं था, तब भी उसके साथ रहा. और अपनी वफादारी निभाई. 
गुरुजी अंत में, दर्शकों से निवेदन है, कि जो मंत्र मैंने दिए है. ये पूर्ण रूप से सुगंधा द्वारा सुरक्षित है. इनको सिद्ध कर लेने के पश्चात भी. परमात्मा की बनाई हुई सृष्टि और प्रकृति के नियमों में हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता. अर्थात, सुगंधा द्वारा करवाये गए कुछ संशोधन के कारण. निम्न लिखित ‘मृत संजीवनी मंत्र’ -। किसी म्रत्यु प्राप्त व्यक्ती को पुनः जीवन प्रदान करने मे सक्षम नहीं है. परंतु, हर प्रकार के रोग और व्याधियों को दूर अवश्य कर सकता है. इसी प्रकार निम्न लिखित ‘पाशुपतास्त्र मंत्र’ किसी भी प्रकार के मारण प्रयोग मे कार्य नहीं करेगा. लेकिन, किसी भी अनिष्ट या संकट को टालने मे सक्षम अवश्य है. तो दोनों ही मंत्र सामाजिक एवं आध्यात्मिक, दोनों ही द्रष्टिकोण से सुरक्षित है गुरुजी. 
गुरुजी, आशा करता हू. की अब आप पहले से अधिक स्वस्थ्य होंगे. आशीर्वाद की कामना करते हुए गुरुजी आपके चरणों को स्पर्श करता हू. और आज का पत्र यही समाप्त करता हू. 


माता रानी की जय हो माता रानी सबका कल्याण करे 

मृत संजीवनी मंत्र. ।- “ॐ हं सः हूं हूं सः हः सौः” 


पाशुपतास्त्र मंत्र. ।- “ॐ नमो भगवते महापाशुपतायतुल बलवीर पराक्रमाय त्रिपन्जनयनाय नानारूपाय नाना प्रहणोद्मताय सर्वाग्ङस्काय भिन्ननिक्रन्तनरताय सर्व सिद्धि प्रदाय भक्तानुकम्पिने संख्यवक्त्र भुजपादाय तस्मिन् सिद्धाय वेतालवित्रासिने शाकिनी भोजन काम व्याधि निग्रह कारिणे पाप भक्षनाय सूर्य सोमार्गिनेत्राय विष्णुकवचाय खडगवज्रहस्ताय यमदण्डंवरुणपाशाय रुद्रशूलाय ज्वलजिव्हाय सर्वरोग विद्रावणाय ग्रहनिग्रह कारिणे दुष्टनागक्षय कारिणे। ॐ कृष्न पिंगलाय फट।  हूंकरास्त्राय फट। वज्रहस्ताय फट। शक्तये फट। दंण्डाय फट। यमाय फट। खड्गाय फट। नैर्ऋताय फट। वरुणाय फट। वज्राय फट। पाशाय फट। ध्वजाय फट। अंगकुशाय फट। गदायै फट। कुबेराय फट। त्रिशूलाय फट। मुद्राय फट। चक्राय फट। पद्माय फट। नागास्त्राय फट। ईशानाय फट। खटेकास्त्राय फट। मुण्डाय फट। मुण्डास्त्राय फट। कंकालास्त्राय फट। पिच्छिकास्त्राय फट। क्षुरिकास्त्राय फट। ब्रम्हास्त्राय फट। शक्तयेस्त्राय फट। गंधर्वास्त्राय फट। पूर्वास्त्राय फट। दक्षिणास्त्राय फट। वामास्त्राय फट। पश्चिमास्त्राय फट। मंत्रास्त्राय फट। शाकिन्यस्त्राय फट। योगिन्यस्त्राय फट। दण्डास्त्राय फट। महादण्डास्त्राय फट। नमोऽस्त्राय फट। शिवास्त्राय फट। ईशानास्त्राय फट। पुरुषास्त्राय फट। अघोरस्त्राय फट। सद्योजातास्त्राय फट। हृदयास्त्राय फट। महास्त्राय फट। गरुणास्त्राय फट। राक्षसास्त्राय फट। दानवास्त्राय फट। क्षौं नरसिंहास्त्राय फट। त्वष्ट्रस्त्राय फट। सर्वस्त्राय फट। नः फट। वः फट। पः फट। फः फट। मः फट। श्रीः फट। पेः फट। भूः फट। भूवः फट। स्वः फट। महः फट। जनः फट। तपः फट। सत्यः फट। सर्वलोक फट। सर्वपाताल फट। सर्वतत्व फट। सर्वप्राण फट। सर्वनाड़ी फट। सर्वकारण फट। सर्वदेव फट। ह्रीं फट। श्रीं फट। हूं फट। स्त्रुं फट। स्वां फट। लां फट। वैराग्य फट। मायास्त्राय फट। कामास्त्राय फट। क्षेत्रपालाय फट। हुंकारास्त्राय फट। भास्करास्त्राय फट। चंद्रस्त्राय फट। विघ्नेश्ररास्त्राय फट। गौःगां फट। र्खौं र्खों फट। हौं हों फट। भ्रामय भ्रामय फट। संतापय संतापय फट। छादय छादय फट। उन्मूलय उन्मूलय फट। त्रासय त्रासय फट। संजीवय संजीवय फट। विद्रावय विद्रावय फट। सर्वदुरिन्त नाशय नाशय फट।”

खुशबू वाली सुगंधा का सच्चा अनुभव भाग 13

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