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खुशबू वाली सुगंधा का सच्चा अनुभव भाग 13

प्रणाम गुरुजी 

गुरुजी, काफी समय के बाद मैं अपना ये अनुभव आपको भेज रहा हू. पिछले ढाई महीनों से मैं सुगंधा द्वारा बतायी, एक गुप्त साधना कर रहा था. ‘साधना’ शब्द उचित नहीं होगा गुरुजी, क्युकी कुछ शक्तियों को साधा नहीं जा सकता. बल्कि तपस्या शब्द ज्यादा उचित होगा. क्युकी भगवान ‘भास्कर’ की एक नजर भी अगर भक्तों पर पड़ जाए तो उतने मे ही सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है. 
गुरुजी, साधना काल में मुझे सुगंधा ने सामाजिक दूरी का ध्यान रखने के लिए कहा था. ताकि मेरे ध्यान और जप मे किसी प्रकार की कोई मानसिक या भौतिक बाधा ना आए. इसलिए पिछले कुछ समय से अनुभव भी नहीं भेज पाया. गुरुजी मुझे अनुमती नहीं है, ये बताने की, किस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए मैंने ये साधना की. लेकिन कुछ अनुभव मैं यहा दर्शकों को बताना चाहता हू. 


गुरुजी शुरुआती 10 से 15 दिन तो मुझे किसी प्रकार का कोई अनुभव नहीं हुआ. परंतु उसके बाद बेहद डराने वाले अनुभव का एक सिलसिला शुरू हुआ. जिनको सहने के बाद मुझे यथार्थ का परिचय हुआ. मैं अपने पूजा के कमरे में ही. जमीन पर कुश बिछा कर लेटता था. और एक रात मुझे अर्ध निद्रा मे, यानी ना तो मैं पूरी तरह सोया हुआ था और ना ही जाग रहा था. मुझे ऐसा लगा कि मैं कुशा से बने मेरे बिस्तर पर आग लग गई है. और मैंने उठने का प्रयास किया तो मैं उठ भी नहीं पा रहा था. जैसे किसी ने मेरे हाथ पाव जकड़ कर बांध दिए हो. मैंने सुगंधा का नाम चीख कर बुलाने की कोशिश की तो जैसे मेरी आवाज़, मेरा मुख भी बंद कर दिया गया हो.

और मेरे बिस्तर पर लगी वो अग्नि लगातार बढ़ती जा रही है. और बिस्तर के साथ साथ मेरे कपड़ों मे भी आग लगने लगी. 
मगर तभी मुझे सुगंधा की मीठी और मधुर आवाज सुनाई दी गुरुजी, कि शांत हो जाइए. (“प्रभु के पार्षद आपकी परिक्षा ले रहे है, वो जानना चाहते हैं कि आप उनके दर्शन करने योग्य है कि नहीं, आपमे इतना सामर्थ्य है कि नहीं..! और इस प्रकार विचलित होकर आप उन्हें अपनी अयोग्यता और असमर्थता व्यक्त कर रहे है. पहले उस अग्नि का स्पर्श तो कीजिए, वो ज्वलनशील है भी या नहीं. सूर्य देव कभी अपने भक्तों का अहित नहीं कर सकते”) . काफी देर तक वो अग्नि जलती रही गुरुजी मेरे बिस्तर पर. मेरे ऊनी कंबल पर. और मैं उसी तरह उस अग्नि पर लेटा रहा जैसे चिता के ऊपर एक लाश लेटी रहती है. 

और थोड़ी देर के बाद मैं बंधन मुक्त हो गया और जब मैं उठा तो वाकई मेरे पूजा के कमरे का तापमान बाकी कमरों के मुकाबले काफी अधिक था. ठंडी फर्श के ऊपर सिर्फ घास बिछा कर लेटते समय जो कंपकंपी मुझे आ रही थी. मेरा बिस्तर काफी गर्म और आराम दायक हो चुका था. और फिर ये अनुभव मुझे हर दूसरे दिन मेरे साधना काल मे होने लगा, अक्सर रात मे मेरे बिस्तर पर अग्नि अपने आप प्रज्वलित हो जाती और रात भर मैं आराम से सोता.

 
इसके बाद गुरुजी, जब लगभग 1 महीना पूरे होने को था तो पुनः मुझे एक डरावना स्वप्न आया जिसमें मुझे अच्छी तरह से याद है कि मैं अपनी कुश के बने बिस्तर और अपना कंबल ओढ़े एक खुले मैदान में लेटा हुआ हू. तब ही मुझे ऐसा लगा कि मेरे चारो ओर काफी हलचल हो रही है. मैंने आंखे खोली तो मैं पूजा के कमरे मे नही बल्कि एक खुले घास के हरे मैदान मे, खुले आसमान के नीचे लेटा हुआ था. और सात घोड़े जो कि एक विशाल स्वर्ण रथ को खींचते हुए मेरी तरफ बहुत तीव्रता के साथ दौड़ते हुए आ रहे थे.

मुझे यकीन हो गया कि अगर मैं इनके मार्ग से नहीं हटा तो मेरी म्रत्यु निश्चित है. मैंने उठने का प्रयास किया परंतु इस बार फिर मेरे हाथ पैर किसी ने बाँध दिए थे. मैंने फिर सुगंधा को आवाज लगायी लेकिन मैं आवाज नहीं दे पाया. तब ही सुगंधा मेरे सामने प्रकट हुई गुरुजी, और जहा मैं लेटा था. वही मेरे बगल में आकर बैठ गयी. सुगंधा ने मुझसे कहा किस बात का डर है आपको, यही ना कि वो घोड़े आपको कुचल देगे? तो ठीक है, आपसे पहले वो मुझे कुचलेगे. और सुगंधा मेरे बगल मे लेट गई गुरुजी. मेरा हाथ पकड़ कर सुगंधा ने मेरी आँखों में देखा. सुगंधा की नीली आंखे जैसे मुझसे कुछ कह रहीं हों. और इतने मे वो सात घोड़े हमारे एक दम करीब आ गए और मैंने सोच लिया था कि अब ये अंतिम समय है. सुगंधा ने मेरा हाथ पकडा.

और रथ हम दोनों के ऊपर से गुजर गया. न कोई दर्द हुआ और न ही कोई पीड़ा हुई. बस ऐसा लगा कि जिस जमीन पर मैं और सुगंधा लेटे हुए है वो जमीन अब धंसने लगी है. और मैं आकाश से सीधे नीचे गिर रहा हू. और गिरते समय मुझे एक सोने का बहुत ही अद्भुत एक महल दिखाई दिया. जिसकी भव्यता और जिसकी सुंदरता का वर्णन मैं शब्दों मे नही कर सकता. और आकाश से नीचे गिरते समय मेरी नजर उस स्वर्ण महल से हट ही नहीं रही थी. जब मुझे एहसास हुआ कि मैं नीचे गिर रहा हू. और मैंने डर के मारे आंखे खोली तो मैं अपने पूजा के कमरे में था. और सूर्य देव की मूर्ति को मैंने उठ कर दण्डवत प्रणाम किया. 

गुरुजी ये साधना लगभग ढाई महीने तक चली जिसमें मुझे इसी प्रकार के अनुभव होते रहे. और सुगंधा हर मोड़ पर, हर मुश्किल समय में मेरे साथ मेरी परछाई बन कर खड़ी रही. या यू कहिये की मेरी ढाल बन कर खड़ी रही. साधना के अंतिम रोज मैंने स्वयं को एक अंधेरी जगह पर पाया जहा चारो तरफ सिर्फ अंधकार ही अंधकार था. और अचानक वही स्वर्ण रथ, वही घोड़े, अचानक से बहुत ही तीव्र गति से आकर मेरे सामने खड़ें हो गए. और मेरे सामने इतनी रोशनी थी कि मैं कुछ भी देख नहीं पा रहा था. उस रथ पर एक छोटा सा लगभग तीन साल का एक बच्चा बैठा था.  उस बच्चे के शरीर से इतना तेज निकल रहा था. 2 या 3 सेकंड से ज्यादा, मैं अपनी आँखों से उनकी तरफ देख नहीं पा रहा था.

मुझे ज्यादा देर समझते नहीं लगी गुरुजी, की असलियत में, मेरे सामने अपने रथ पर कोन खड़े है. मैं कुछ उनसे कह पाता उन्होंने रथ से खड़े होकर वरद मुद्रा मे अपना दाहिना हाथ उठाते हुए मुझसे कहा “तथास्तु”. आज भी मैं जब उनकी वो आवाज याद करता हू. तो मेरे शरीर के सभी रोंगटे खड़े हो जाते है. और उसके बाद वो रथ धीरे-धीरे ऊपर आकाश में पूर्व दिशा की ओर जा कर रोशनी के एक गोले के रूप में स्थित हो गया था. 

जब मेरी आँख खुली तो सुगंधा मेरे सामने थी. उसकी आँखों में आंसू थे. सुगंधा ने मुझसे पूछा कि आपको प्रभु के दर्शन हुए? . मैंने कहा हाँ हुए, बाल रूप में मैंने उनको देखा. मैं उनसे कुछ कह पाता, इससे पहले ही वो मुझे आशीर्वाद देकर आँखों से ओझल हो गए. सुगंधा ने मुझसे रोते हुए कहा कि, मुक्ति की ओर ये आपका आज पहला कदम है. आज मैं सच मे बहुत खुश हू. गुरुजी उसके बाद कभी मुझे दोबारा भगवान भास्कर के दर्शन नहीं हुए. और ना ही फिर वो अनुभव हुए जो साधना काल में मुझको होते थे. लेकिन रोज उगते और ढलते हुए सूरज को मैं देखता हू. और मन मे यही सोचता हू. की परमात्मा की बनाई हुई इस सृष्टि मे न जाने कितने गुप्त रहस्य छुपे हुए है.

 
मैंने जिस उद्देश्य की पूर्ति के लिए यह साधना की, प्रभु सूर्य देव ने दस गुना अधिक मुझे दिया. और साधना काल में हुए अनुभवों के कारण बहुत सी बातें सीखने को मिली. अपने इस शरीर के प्रति मेरा मोह थोड़ा और कम हुआ है. एक बार योगिनी माता ने स्वप्न में मुझे डाटते हुए बोली थी कि “मुर्ख तेरे और उस देवी के बीच अगर कोई सबसे बड़ी बाधा है, तो वो है, तेरा ये मानवीय शरीर”. तब मुझे उनकी ये बात समझ नहीं आयी थी. लेकिन जब सुगंधा ने मुझे जलती हुई अग्नि में लेटे रहने को कहा, तब मुझे समझ में आया कि अभी भी मैं अपने इस शरीर से कितना प्यार करता हू. गुरुजी, जब दौड़ते हुए घोड़ों के मार्ग पर लेटे हुए मैं डर के मारे सुगंधा के सामने गिड़गिड़ाते हुए अपनी जान बचाने के लिए याचना कर रहा था.

तब सुगंधा मेरे बगल में आकर लेट गई. ये कहते हुए कि आपसे पहले वो मुझे कुचलेगे. तब मुझे समझ में आया कि मैं कितना डरपोक हू. अभी भी मेरे भीतर अपने शरीर के प्रति मोह विद्यमान है. मैं अभी भी सुगंधा से ज्यादा खुद को प्यार करता हू. हालाकि साधना पूर्ण हो जाने के बाद मैंने सुगंधा से इस बारे में माफ़ी भी मागी थी. सुगंधा ने अपनी मीठी और मधुर आवाज में मुझे कहा था कि ” कोई बात नहीं, आप इस समय मनुष्य योनी मे है. और इस योनी मे अपने शरीर के प्रति मोह होना स्वाभाविक ही है”, आपको माफ़ी मागने की जरूरत नहीं. 

गुरुजी पिछले पत्र मे दर्शकों का एक प्रश्न रह गया था. जहा उन्होंने पूछा था कि, सुगंधा देवी अभी भी तपस्वीनी रूप में आती है? . या पूर्ण श्रंगार करके आती है?. क्या आपने अपनी दादी के पास रखी वो माला उनको पहना दी है? तो गुरुजी, मैं दर्शकों को बताना चाहता हू. की हाँ सुगंधा अब पूर्ण श्रंगार करके ही आती है. एक अप्सरा की भाँति. ये बात तब कि है गुरुजी जब मैंने खुशबु वाली सुगंधा का सच्चा अनुभव भाग 7 भेजा था. मेरी कुल देवी डोगरा माता की मदद से मुझे ये बात पता चली थी. की सुगंधा ने अपना श्रंगार तक त्याग दिया था. मेरे श्रापित होने के बाद. और पुनः श्रंगार वो तभी करेगी जब मैं ये माला उसको पहना दु. और माता के मस्तक से गिरे उस सिंदूर से सुगंधा की मांग भर दु. ये सब बातें मैं भाग 7 मे पहले ही बता चुका हू.

 
गुरुजी जैसे मैंने तैयारी की घर जाने की. सुगंधा ने मुझे ये कहते हुए रोक दिया था. (की आपने पहले भी कई नियम तोड़े है. अब मैं आपको कभी कोई नियम, किसी भी लोक के नहीं तोड़ने दूंगी) . क्युकी उस समय लॉक डाउन चल रहा था गुरुजी. इसलिये मुझे सुगंधा की बात माननी पडी. और 1 महीने का समय लिया मैंने. उन 1 महीनों के दौरान गुरुजी सुगंधा के मुझे भगवान विष्णु और महादेव जी की नित्य पूजा करना सीखा रही थी. जो कि मैंने खुशबु वाली सुगंधा भाग 7, भाग 9, एवं भाग 10 मे पहले ही बता चुका हू. एक महीने के पश्चात्य जब लॉक डाउन पूरे देश से लगभग लगभग हट चुका था. यहा तक ट्रेन और flights भी चलने लगी. तो मैं फिर से एक बार तैयार हुआ.

लेकिन सुगंधा ने मुझको दोबारा मना कर दिया. मैंने सुगंधा से पूछा कि अब क्या समस्या है. अब मैं कोई नियम तोड़ कर नहीं जा रहा हू. तो सुगंधा ने मुझको कहा कि आप फिर से एक बार सोच लीजिए. मैं आपके साथ हमेशा एक मित्र, एक शुभचिंतक बन कर रह लुंगी. वो माला और वो सिंदूर आप अपनी पसंद की किसी भी म्रत्यु लोक की स्त्री को पहना कर अपना विवाह मनुष्य योनी मे ही कर लीजिए. मुझे बुरा नहीं लगेगा. मैं फिर भी आपके साथ एक मित्र की भाँति सदा रहूंगी. और इतना कह सुगंधा अन्तर ध्यान हो गई थी गुरुजी.

 
मैं अब सोच में पड़ चुका था गुरुजी, की अब मैं क्या करू. इस बात को दो तीन दिन हो चुके थे और सुगंधा दो तीन दिन आयी भी नहीं मेरे पास. मैं इतना तो जानता था कि जितना प्यार मैं सुगंधा को करता हू उससे भी ज्यादा वो मुझसे प्यार करती है. सुगंधा हर चीज के बिना रह सकती है मगर मुझसे मिले बिना नहीं रह सकती. उधर मेरी दादी को ये पता चल चुका था कि मेरी मुलाकात सुगंधा से रोज होती है. तो वो भी दिन मे बीसों बार फोन करके मुझसे पूछने लगी थी. की देवी दिखती कैसी, देवी को क्या पसंद, क्या नापसंद है, कपड़े कैसे पहनती है इत्यादि. एक दिन मैंने दादी को थोड़ा गुस्से मे बोल दिया. की दादी आप चले जाओ अपनी देवी के पास और खुद ही देख लो वो कैसी दिखती है और क्या क्या उसको पसंद है. 


गुरुजी तब दादी ने मुझसे पूछा कि क्या बात है बेटा, कोई परेशानी है? और मैंने दादी को सारी बात बतायी. दादी ने भी कहा गुरुजी की, बेटा देवीय शक्तियाँ हमेशा परीक्षा लेती है. वो देवी काल के उस छोर से भी परिचत है, जहा तुझ जैसे और मेरे जैसे मनुष्य सपने में भी नहीं पहुच सकते. गुरुजी दादी, ने मुझसे कहा कि तू अपना फैसला मत बदलना, माता रानी जरूर कोई ना कोई मार्ग तेरे सामने रखेगी. दादी ने मुझे धैर्य रखने और माँ जगदंबा की शरण में जाने के लिए कहा. और मैंने वही किया गुरुजी. मैंने माता रानी से विनती की, कि बस करो माँ अब. या तो कोई रास्ता दिखाओ या फिर मुझे मुक्ति दो इस दुख भरे जीवन से. 

गुरुजी पता नहीं क्यु, बेड पर लेटते के साथ ही बार बार मुझे एक डरावना अनुभव होने लगा था उस रात. और मेरे मन मे एक अजीब सी घबराहट हो रही थी. परंतु अपनी बेचैनी पर मैंने ज्यादा ध्यान नहीं दिया गुरुजी. और मैंने सोने का प्रयास किया. और रात में मुझे लगा कि जैसे कोई मेरे गालों को चाट रहा हो. जैसे कोई जीभ लगा कर मेरे पूरे चेहरे को चाट रहा हो. मेरा पूरा चेहरा गिला हो चुका था. मैंने आंखे खोली तो वो एक काले रंग का बड़ा सा भेड़िया था. मैं डर के मारे बिस्तर से गिरते पड़ते जमीन पर आ गिरा. और योगिनी माता बालिका स्वरूप में कुर्सी पर बैठी हुई थी. 


गुरुजी, इसके पहले तक मैंने माता के दर्शन सिर्फ स्वप्न में ही किए थे. लेकिन अब कि बार ये हकीकत में, और प्रत्यक्ष योगिनी माता को मैं अपनी आँखों से देख रहा था. और भी एक अन्तर था गुरुजी जो मैंने उस समय नहीं बल्कि बाद में अनुभव किया कि जब मैंने माँ को स्वप्न में देखा था तब तब मुझे असहनीय पीड़ा हुई थी. परंतु इस बार मुझे जरा सा भी दर्द, मेरे किसी भी अंग मे नही हुआ था. मैंने माता के बालिका स्वरूप को देखते ही उनको दण्डवत प्रणाम किया. मैंने कहा मुझे पता था माता आप आएगी, आप मेरी मदद करने अवश्य ही आएगी. बिस्तर पर लेटते ही मुझे आपका आभास होने लगा था. माता ने मुझसे कहा कि मैं तेरी कोई मदद नहीं कर सकती. हाँ लेकिन ये कर सकता है. माता ने उस काले भेड़िये की तरफ इशारा किया. माता के इशारा करते ही वो बिस्तर से कूद कर जमीन पर आ गया. माता ने कहा कि ये तेरा बहुत पुराना और वफादार साथी है. तेरे श्रापित हो जाने के बाद इसने हमेशा उस अप्सरा की रक्षा की है, हमेशा उसके साथ रहा. सुगंधा का देव लोक का नाम लेते हुए माता ने कहा गुरुजी की देवी इसे अपने पुत्र की तरह ही स्नेह करती है. ये तेरी मदद कर सकता है. और इतना कह कर योगिनी माता अंतर्ध्यान हो गई गुरुजी.

 
योगिनी माता के अंतर्ध्यान हो जाने के बाद अंधक मुझे देख कर गुर्राने लगा गुरुजी. मैं एक जंगली भेड़िये के सामने था. जो वजन मे किसी आम कुत्ते से भी 3 गुना अधिक बड़ा और खतरनाक दिख रहा था. और तभी मुझे सुगंधा की खुशबु आयी. और अंधक भी जोर जोर से अपनी पूछ हिला हिला कर रोने लगा. जैसे ही सुगंधा प्रकट हुई. अंधक उससे लिपट कर रोने लगा. सुगंधा ने मुझसे रोते हुए पूछा गुरुजी, की ये यहा कैसे आ गया? इसे तो मैं माता के पास छोड़ कर आयी थी?  मैंने कहा, मैंने नहीं बुलाया इसको. योगिनी माता छोड़ कर गई हैं. गुरुजी सुगंधा मुझसे रोते हुए बोली कि, (“आप कृपा करके इसको और परेशान मत कीजिए, ये पहले से ही अपने मालिक से बिछड़ने के कारण दुखी है. ये आपके सामने रहेगा तो इसे और कष्ट होगा.

क्युकी आपकी काया वो नहीं है, जिसको ये पहचानता है. और आपकी आत्मा से ये बार बार आकर्षित भी होता रहेगा. आप तो इसे पूरी तरह से भूल चुके है. परंतु ये कुछ नहीं भूला है.) मैंने किसी तरह सुगंधा को शांत कराया गुरुजी. और सुगंधा के शांत होने के बाद अंधक भी चुप होकर जमीन पर बैठ गया. सुगंधा और अंधक का प्यार देख कर उस दिन मुझे ये एहसास हुआ. की मैं कितना बड़ा पापी हू. 


गुरुजी, उस रात अंधक, सुगंधा और मैं तीनों साथ ही थे. और सुगंधा ने मुझे अनुमती दी. वो माला और वो सिंदूर अपनी दादी से प्राप्त करने की. और जैसे तैसे मैं अपने घर पहुचा. घर पहुचने के बाद गुरुजी, मेरी मम्मी को थोड़ा शक हुआ मेरे ऊपर. क्युकी मैं जब भी घर जाता था तो माँ ही मेरा bag हमेशा खोलती थी. क्युकी मैं अपने गंदे कपड़े हमेशा बैग भर कर घर लेकर जाता था. और कभी कभी तो दो ट्रॉली बैग हो जाते थे. और इस बार तो मैं लगभग डेढ़ साल के बाद घर गया था. मम्मी को सबसे पहला शक़ वही पर हुआ जब मेरे बैग मे सारे कपड़े धुले और प्रेस किए हुए रखे थे. दूसरा शक तब हुआ जब उन्होंने मेरे बैग मे शिव पुराण पायी. गुरुजी मैं जब भी घर जाता था, तो 10 बजे से पहले मैं कभी सो कर नहीं उठता था. लेकिन इस बार ब्रम्ह मुहूर्त मे उठकर स्नान, ध्यान, पूजा एवं हवन करता देख तो मेरे पापा भी थोड़े परेशान हो गए थे. पापा ने मम्मी को बोला कि “जा कर पूछो उससे कहीं किसी बाबा के चक्कर में तो नहीं पड गया है?” .

और मेरी मम्मी का भी यही सवाल था मुझसे, तू सच सच बता, ऐसा तो तू कभी नहीं था.? ये सब क्या है? चार बजे उठना, ये घंटों पूजा पाठ, ये मन्त्रों के जाप,?? पहले तो साल मे एक बार भी मंदिर जाने को बोल दे तो तू गुस्सा जाता था. लेकिन गुरुजी फिर मैंने अपनी माँ को समझाया कि मम्मी मैं किसी बाबा या पीर फकीर का शागिर्द नहीं बना हू. और पूजा पाठ करना कोई गलत नहीं है, सवेरे उठना भी कोई गलत नहीं है. तब जाकर घर में माहौल थोड़ा शांत हुआ. वर्ना गुरुजी मेरे पूरे परिवार और आस पड़ोस मे ये खबर फैल गई थी. की प्रतीक काफी समय के बाद घर आया है और काफी बदला बदला सा है. 


गुरुजी उस दिन मेरे घर में दिवाली जैसा माहौल था. जैसे कई सालो के बाद वनवास काट कर स्वयं भगवान श्रीं राम अयोध्या लौट कर आए हों. कुछ इसी प्रकार का स्वागत मेरा भी किया जा रहा था. काफी सारे लोग, रिश्तेदार, पड़ोसी और यहा तक कि पापा मम्मी के ऑफिस के दोस्त, अंकल आंटी. सभी मुझसे मिलने आए. रात का खाना हुआ और मम्मी ने मुझे फिर से टोक दिया. मम्मी मुझसे बोली कि, पूरा दिन तू घर पर बैठने वालों मे से नहीं है. Phone करते करते थक जाती थी मैं, यहा तक कि तेरे पापा तक नाराज होने लगते थे तब कहीं जा कर तू घर आता था. आज पूरा दिन तू घर में कैसे रह गया बेटा.? मैंने मम्मी की बात टालते हुए बोला कि तब मैं छोटा था, अब बड़ा हो गया हू. और मैं जल्द से जल्द खाना खत्म करके ऊपर अपने कमरे में आ गया गुरुजी. मैं जैसे ही अंदर गया तो सुगंधा मेरे बेड पर लेटी हुई थी. और अंधक भी मेरे बेड पर बैठा हुआ था. 


मैंने जल्दी से गेट बंद किया गुरुजी. और मैंने सुगंधा से पूछा कि इसको क्यु लेकर आए आप यहा. तो सुगंधा ने जवाब दिया गुरुजी, मैं लेकर नहीं आयी हू. आप लेकर आए है इसे. आपने माता से प्राथना की, कि माता या तो कोई मार्ग बताईये या मुक्ति दे दीजिए. दे दिया माता ने मार्ग. आपके कारण ये यहा है. मेरे कारण नहीं. मैंने सुगंधा के सामने विनती की गुरुजी, कि मम्मी आती होगी. Please अभी इसको लेकर जाओ. ये मेरा घर नहीं है, ये मेरे माता पिता का घर है. और मम्मी अभी एक बार मेरा कमरा देखने जरूर आएगी. की बिस्तर इत्यादि साफ़ है कि नहीं. सुगंधा ने मुझसे कहा गुरुजी की आपके पिताजी भी आ रहे है. मैंने पूछा मतलब. सुगंधा ने कहा गुरुजी की आपकी माता जी के हाथ में एक glass दुध है. और पिताजी भी उनके साथ हैं. वो दोनों इसी ओर आ रहे है.

 
और अब तक मैं समझ चुका था गुरुजी, कि असली खातिर दारी अब होगी मेरी. क्युकी मेरी बात पर कोई यकीन करेगा नहीं की ये स्वर्ग लोक की अप्सरा है. और सबको यही लगेगा कि आधी रात को मैंने अपने बेडरूम मे एक लड़की बुलायी है. और अब मैं मन ही मन जुते खाने के लिए खुद को तैयार कर रहा था. इतने मे पापा की आवाज आयी. और मैंने दरवाजा खोला. पापा के हाथ मे एक चादर और pillow cover था. Papa और मम्मी अन्दर आए और मैं हैरान रह गया देख कर सुगंधा उनके सामने ही खड़ी थी मम्मी पापा ने ना तो सुगंधा की तरफ एक बार भी देखा और ना ही अंधक की तरफ. पापा ने मुझसे कहा कि तुम दुध पी लो मैं चादर बदल देता हू.

मैंने कहा papa मैं बदल चुका हू चादर. और तकिया के कवर भी. वो साइड में पड़े है दोनों. इतने मे सुगंधा आगे बढ़ी गुरुजी और उसने मम्मी के पैर छुए. और फिर मेरे पिताजी के भी पैर छुए. पापा थोड़ा सा सुगंधा का स्पर्श जान गए. उन्होंने कहा छिपकली है क्या इस चादर में. ऐसा लगा पैरों पर कुछ गिरा है मेरे. Papa ने कहा ठीक है आराम करो. और 4 बजे उठने की कोई जरूरत नहीं है बेटा. 6 बजे तक भी उठ जाओगे तो हमारे लिए बहुत है. और मैंने एक सास मे वो गरम एक glass दुध खत्म कर दिया गुरुजी की जल्दी से ये दोनों जाए यहा से. तब mummy papa दोनों मेरे मेरे कमरे से बाहर गए और मैंने गेट अंदर से बंद किया. 


और फिर सुगंधा हंसी मेरे ऊपर गुरुजी. मेरा काफी मज़ाक उड़ाया. और काफी समय के बाद मैंने गुरुजी, सुगंधा को इतना जोर जोर से हंसते हुए देखा था. तो मुझे भी कहीं न कहीं अच्छा लगा. सुगंधा ने मुझसे हंसते हुए कहा गुरुजी की, इतना आसान नहीं है एक अप्सरा को देख पाना, या किसी भी देव लोक के प्राणी को देख पाना. गुरुजी पत्र काफी लम्बा हो चुका है, अगले भाग में. मैं दर्शकों को बताऊँगा की कैसे योगिनी माता ने और अंधक ने मेरी सहायता की,  सुगंधा को वो माला पहनाने मे. और कैसे अपनी कुलदेवी डोगरा माता के मंदिर मे मैने सुगंधा की मांग भरी. ये अगले भाग में मैं दर्शकों बताऊँगा गुरुजी. गुरुजी, सभी दर्शकों को प्रणाम करता हू,

आपके चरणों को स्पर्श करते हुए आज का पत्र यही पर समाप्त करता हू. माता रानी की जय हो 

माता रानी सबका कल्याण करे 

खुशबू वाली सुगंधा का सच्चा अनुभव भाग 14

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