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खुशबू वाली सुगंधा का सच्चा अनुभव भाग 14

प्रणाम गुरुजी 

आगे क्या हुआ, वो यहा मैं प्रस्तुत कर रहा हू. आपके आशिर्वाद की कामना करते हुए. 

गुरुजी, अगले दिन जब घर मे भीड़ भाड़ थोड़ी कम हुई. और मिलने आए हुए relatives भी जब चले गए. तब मैंने दादी से वो माला देखने की इच्छा जाहिर की. और दादी ने मुझे वो माला दिखाई. दादी मुझसे दुखी स्वर में बोली गुरुजी, कि बेटा ये तेरी अमानत है. शायद अब तक मैं इसीलिए जिंदा थी. की तेरी ये अमानत तुझे सौप सकू. गुरुजी, मैंने दादी से हाथ जोड़ कर विनती की, कि ऐसा मत बोलिए दादी. अभी मुझे आपकी बहुत जरूरत है . आपके अलावा और कोई नहीं है मेरे जीवन मे, जो मुझे सही मार्ग दिखा सके. गुरुजी उस माला को मैंने देखा, जो कि वाकई ऐसी लग रही थी. जैसे अभी अभी ताजे फूल तोड़ कर किसी ने माला बनायी हो. पर हकीकत में वो माला 30 साल पुरानी थी. और उन फूलों से गुलाब की नहीं, बल्कि रात रानी जैसी भीनी खुशबु आ रही थी. जैसी सुगंधा के आने से पूर्व मुझे हमेशा आती है. गुरुजी मैंने वो suitcase दादी को ही वापस रखने के लिए दे दिया. ये कहते हुए कि, जब सही समय आएगा दादी. तो मैं आपसे ये ले लूंगा. 


गुरुजी मेरे मन मे कई तरह के विचार, कई तरह के प्रश्न, और कई तरह की दुविधाओं के तूफान चल रहे थे. घर में मुझे अच्छा नहीं लग रहा था, तो मैं घर के पास मे ही बने एक गार्डन में चला गया. और एक बेंच पर बैठे बैठे यही सोच रहा था कि. क्या मैं सही कर रहा हू.? कहीं मैं, अनजाने में किसी के साथ अन्याय तो नहीं कर रहा? और जब जब मुझे योगिनी माता ने स्वप्न के माध्यम से दर्शन दिए, उनकी बातों को और अपनी कुलदेवी की बातों को याद करते हुए मैं काफी देर तक वहां अकेले बैठा रहा. और खुद को समझाता रहा कि नहीं. मैं सही कर रहा हू. मैं सही मार्ग पर हू. 
गुरुजी, मैं काफी देर तक वहां पर बैठा था. की तभी मुझे ऐसा लगा कि गार्डन के दूसरे छोर पर, दूर एक पेड़ के किनारे योगिनी माता बालिका रूप में खड़ी मुझे देख रही है. मैं बेंच से जैसे ही उठा. इतने मे बालिका स्वरूप माता मेरे सामने आकर खड़ी हो गई. मैं उनको दण्डवत प्रणाम करने के लिए जमीन मे लेटने लगा, तो माता ने ये कहते हुए रोक दिया कि (“रहने दे, उद्यान में लगी बेंच को प्रणाम मत कर, वर्ना दुनिया तुझे पागल समझेगी”). मैंने माँ को कांपते हुए स्वर में कहा गुरुजी, कि समझने दीजिए माँ. दुनिया क्या जाने, कि मेरे सामने कौन खड़ा है. “आपका प्रादुर्भाव, माता के क्रोध रूप से हुआ था. कई युद्धों मे आपने माता के साथ लड़ाई लड़ी है. और बड़े बड़े राक्षसों को मार गिराने में, आपने माता की सहायता की है. पुराणों एवं शास्त्रों मे भले आपको माता का अंश कहा गया हो. परंतु मेरे लिए तो आप जगत जननी माँ जगदंबा ही हो.” और मैंने माता के बालिका स्वरूप को दण्डवत प्रणाम किया गुरुजी. और पहली बार योगिनी माता ने अपने क्रुद्ध स्वर मे मुझे आशीर्वाद दिया. “विजयी भव”. 
गुरुजी माता ने मुझे कहा कि, समय आ गया है पुत्र. कल सूर्यास्त के पश्चात तुझे अपनी कुल देवी के मंदिर पर पहुचना होगा. मैं तुझे वही मिलूगी. माता ने जाते जाते मुझे पलट कर देखा गुरुजी. और बोलीं की वो माला और सिंदूर भी साथ में लाना. और माता अंतर्ध्यान हो गई गुरु जी. गुरुजी मेरे भीतर एक अजीब सी बेचैनी और एक असाधारण डर जिसको मैं शब्दों में बयान नहीं कर सकता, मैं काफी घबरा गया था. माता का आदेश सुन कर, मैं गार्डन से सीधा घर आ गया. घर वालों के सामने मैंने बहुत नॉर्मल रहने की कोशिश की. परंतु मेरे भीतर जो तूफान चल रहा था. वो तकलीफ सिर्फ मैं ही जानता था. मुझे रात होने का इंतजार था. मुझे सुगंधा के आने का बेसब्री से इंतजार था. और दिन था, कि काटे नहीं कट रहा था.

 
गुरुजी शाम हुई तो दादी, चाय लेकर मुझे ढूँढते हुए छत पर आयी. मुझे उन्हें बताने की भी जरूरत नहीं पडी. मेरा चेहरा देखते ही वो समझ गयी. की मैं परेशान हू. मैंने दादी को, दोपहर मे घटी घटना के बारे में भी बताया. गुरुजी, मैंने दादी से पूछा. दादी मैं सही तो कर रहा हू ना? दादी ने हंसते हुए कहा गुरुजी. की बेटा सही और गलत का फैसला करने वाले हम कौन होते है. तू वही कर रहा है जो माँ भगवती चाहती है. गुरुजी दादी ने सुगंधा का देव लोक का नाम लेते हुए कहा कि ये कुछ दशकों का मनुष्य जीवन उस देवी की तपस्या और इंतजार के आगे कुछ भी नहीं. उसने बहुत इंतजार किया है इस दिन का. वो तुझे ब्रम्हांड की अनंत यात्रा पर ले जाएगी. अब पीछे मुड़ कर मत देख बेटा. अब म्रत्यु लोक की तरफ मत देख. तू बिल्कुल सही कर रहा है.

काश तूने मेरी कोख से जन्म लिया होता. और इतना कह कर दादी अपनी आखों के आंसू छुपाते हुए नीचे चली गई गुरुजी. 
गुरुजी, रात का खाना खाने के बाद मैं अपने कमरे में चला गया. मैंने गेट खोला तो सुगंधा और अंधक पहले से ही मेरे कमरे में मौजूद थे. सुगंधा उस दिन बहुत खुश थी गुरुजी. सुगंधा को पहले से ही जानकारी थी. की योगिनी माता ने अगले दिन सूरज ढ़लने के बाद मुझे डोगरा माता के मंदिर पर बुलाया है. सुगंधा ने कुछ पूजन सामग्री भी लिखवाई मुझे. सुगंधा ने मुझसे पूछा कि आप खुश तो है ना? गुरुजी, मैंने सुगंधा को जवाब दिया था, कि ब्रम्हांड की सबसे सुन्दर लड़की से मेरा विवाह होने जा रहा है. मुझसे ज्यादा खुश अब और कौन होगा. 

गुरुजी अगली सुबह मैंने सबसे पहले देवाधिदेव महादेव की विधी वत पूजा की और उनसे आशीर्वाद माँगा. गुरुजी दोपहर के 3 बजे मैं दादी से मिलने गया. उनका आशीर्वाद प्राप्त करने. दादी ने मुझसे पूछा कि क्या ले जा रहा अपनी दुल्हन के लिए.? मैंने कहा कुछ नहीं. उसने कुछ माँगा नहीं है. दादी ने हंसते हुए कहा गुरुजी की, वो कुछ मांगेगी नहीं, तो क्या उसे कुछ देगा नहीं? दादी ने मुझे कंगन दिए. और मुझसे बोली कि ये उसे पहना देना. और उसके बाद दादी ने मुझे वो सूटकेस दिया. गुरुजी मुझे पता नहीं था कि कब तक मैं घर वापस आ पाउंगा, इसलिए मैंने अपनी माँ से झूट बोला कि.

मम्मी मैं अपने कुछ पुराने दोस्तों से मिलने जा रहा हू. और हो सकता है, आज रात घर न आ पाऊ. कल सवेरे आ जाऊँगा. गुरुजी पहले भी मैं अपने दोस्तों के यहा रुकता था. इसलिए मम्मी को कोई शक नहीं हुआ. और इतना कह कर मैं 3 बजे लगभग घर से निकल गया. गुरुजी डोगरा माता का पहाड़ मेरे घर से लगभग 50 km की दूरी पर है. और सुगंधा द्वारा बतायी हुई सारी पूजा सामाग्री खरीद कर. मैं सूर्यास्त होते होते वहां पहुच गया.

 
गुरुजी, दर्शकों को भी ये बात पता होगी. की गांव देहात मे सूरज ढलने के बाद ही रात्रि हो जाती है. जब तक कोई emergency ना हो. ज्यादातर लोग बाहर निकलना पसंद नहीं करते. सूरज ढलने के बाद जंगलों में और जल्दी अंधेरा हो जाता है. अभी शाम के 6:00 ही बजे थे. पर ऐसा लगता था मानो रात के 9 बज चुके है. और जंगल की आवाज काफी डरावनी होती है. और मन तब भयभीत होने लगता है, जब अंधेरा हो चुका हो. और पैरों के नीचे भी जब कुछ ना दिखाई दे रहा हो, कि आपका अगला कदम किसी कांटे दार झाड़ी पर पड़ेगा या किसी विषैले सांप पर.

गुरुजी cities मे रहते रहते ,मुझे इस तरह के माहौल की आदत छूट चुकी थी. Cities की street lights और जगमगाती सड़कों पर तो रात 12 बजे भी शाम का एहसास होता है. पर जंगल की ये शाम मुझे बहुत डरावनी लग रही थी. और खास तौर पर डर तब और बढ़ जाता है जब आपने बचपन से ये किस्से सुने हो कि इन जंगलों मे डोगरा कबीले के लोगों की आत्मायें आज भी भटकती है. और इसी कारण से शाम के बाद कोई भी इंसान इन जंगलों मे नही जाता. यहा तक कि जंगल से लगे हाईवे पर चलने वाले ट्रक, बस, या कोई भी मुसाफिर इस जगह पर गाड़ी नहीं रोकता. क्युकी ऐसी सैकड़ों घटनायें हो चुकी है, जब लोगों को अपनी गाड़ी रोकने की कीमत अपनी जान देकर चुकानी पडी थी. 


गुरुजी मैंने महामृत्युंजय मंत्र का जप किया और गाड़ी हाईवे से नीचे उतार कर जंगल मे थोड़ा अंदर ले जा कर रोक दिया. गुरुजी मेरे पास दो बैग मे पूजा का समान था. और दादी का दिया हुआ वो सूटकेस. मैंने गाड़ी lock की, और समान उठा कर कुलदेवी के पर्वत की तरफ चल दिया. इतने मे मुझे पीछे से आवाज आयी. समान वही रख दे. और इस तरफ आजा. पहले तो मैं इतना डर गया गुरुजी की सारा समान मेरे हाथो से छूट कर जमीन मे गिर गया. लेकिन फिर मुझे अंधक दिखाई दिया. जो कि दौड़ते हुए मेरी तरफ ही आ रहा था. अंधक को देखने के बाद मेरी जान मे जान आयी. और फिर मुझे बालिका स्वरूप योगिनी माता मुझे अपनी तरफ आती दिखी. योगिनी माता ने मुझसे पूछा कि कपड़े लाया है नये? . मैंने कहा जी माता, सुगंधा ने लिखवाया था पूजन सामाग्री मे. माता ने कहा गुरुजी की, कपड़े निकाल कर स्नान कर ले पहले. मैंने माता से पूछा कि माता ये समान? तो उन्होंने जवाब दिया, समान ऊपर पहुच जाएगा, तू पहले स्नान कर. 


गुरुजी जंगल से ही निकली एक नदी मे मैने स्नान किया. और सुगंधा की ही बतायी हुई विधी से स्नान करते हुए. मैंने देखा कि अंधक तो अपने मे ही मस्त है. पर योगिनी माता मुझको ही घूरे जा रही थी. उनकी लाल आंखे मेरी ही तरफ थी. जिसके कारण मैं, सहज महसूस नहीं कर पा रहा था. स्नान के बाद मैंने खरीदी हुई नई धोती पहनी. गुरुजी, माता ने मुझसे पूछा कि किसने सिखाया इस प्रकार स्नान करना और ये धोती पहनना? मैंने सुगंधा का देव लोक का नाम लेकर बताया कि उन्होंने ही सिखाया सब. गुरुजी माता ने मुस्कुराते हुए पूछा कि “खड़ाऊ” है? वर्ना पैर कट जायेगे यहा. अभी बहुत चलना है. मैंने कहा जी सुगंधा ने लिखवाया था उसे भी. गुरुजी मैंने लकड़ी की पादुका बैग से निकाली और माता के पीछे पीछे चल पड़ा.

 
पूजन सामाग्री पीछे ही रह गई थी गुरुजी. मैं चाहता तो दोनों बैग उठा सकता था. यहा तक कि मेरे पैंट shirt भी नदी किनारे घाट पर पड़े थे. जिसमें मेरी गाड़ी की चाभी से लेकर, debit इत्यादि card, मेरी id, और भी न जाने क्या-क्या सब कुछ नदी किनारे ही रह गया था. लेकिन मेरी हिम्मत नहीं हुई योगिनी माता को टोकने की. और मन ही मन सुगंधा को याद कर रहा था. की आज सुगंधा क्यु नहीं आयी. योगिनी माता को क्यु भेज दिया. ये जानते हुए भी कि मैं कितना डरता हू इनसे. अचानक मैंने ध्यान दिया गुरुजी की हम दूसरे रास्ते पर थे. माता की चौकी की तरफ जो रास्ता जाता है, वो उत्तर की तरफ था. पर योगिनी माता मुझे पूर्व की तरफ जंगल के और अंदर लेकर जा रहीं थीं. मैंने माता को टोकना ठीक नहीं समझा गुरुजी. मैं नहीं चाहता था, कि मेरी किसी भी हरक़त की वजह से ये क्रोधित होकर अपने मूल स्वरूप मे आ जाए. और इसी जंगल से कल मेरी सिर कटी लाश लोगों को मिले. इसलिए मैं चुप रहा और माता के पीछे चलता गया. और अंधक मेरे साथ साथ ही चल रहा था. 


गुरुजी लगभग 1 घंटा चलने के बाद हम एक स्थान पर पहुचे जहा पर चट्टानें बिल्कुल सीधी खड़ी थी. और वहां से ऊपर जाने का कोई रास्ता नहीं था. और माता की चौकी अभी भी लगभग 200 फीट ऊपर थी. हम पहाड़ के पीछे तरफ के हिस्से में थे. मैंने माता से कहा माता हम गलत रास्ते पर आ गए हैं शायद. माता ने मुझसे कहा इस जगह को जानता है? . मैंने कहा नहीं माता इस तरफ कभी नहीं आया मैं, उन्होंने कहा तू आ चुका है. माता ने इशारा करते हुए नीचे जंगल में रखी एक चट्टान की तरफ इशारा किया. और बताया वो वही स्थान है, जहा तेरी कुलदेवी ने तुझे स्वप्न में दर्शन दिए थे. और ये चट्टान नहीं है तेरी कुलदेवी की गुफा का द्वार है. गुरुजी, रास्ते पर बहुत सारी मोटी मोटी लकड़ियां पडी हुई थी.

चट्टान के ऊपर तो मानो मोटी लकड़ियों का ढेर सा पड़ा हुआ था. और योगिनी माता एक एक लकड़ी को उठा कर पहाड़ के नीचे फेंक रही थी. मैंने सोचा मुझे भी मदद करनी चाहिए. लेकिन जल्द ही मुझे अपनी गलती का पता चल गया. जिनको मैं लकड़ियां समझ रहा था. दरसल वो लंबे-चौड़े सांप थे. हर एक कि लंबाई कम से कम 5 फीट तो रही होगी. 


माता ने अंधक को पुकारा. माता ने अंधक से संस्कृत में कहा कि, इनको हटाओ यहा से, ताकि मैं द्वार खोल सकू. और अंधक जैसे टूट पड़ा उन सब पर. कुछ को पंजों से उछाल कर पहाड़ से नीचे फेंक दिया, तो कुछ को अपने मुह मे दबा कर पहाड़ से नीचे फेंक दिया. गुरुजी मेरे जीवन मे सुगंधा के प्रत्यक्ष रूप से आने के बाद, बहुत सारे डरावने अनुभव मुझको हुए थे. और अब तक मुझे किसी भी प्रकार के अनुभव को झेलने मे ज्यादा समस्या नहीं होती थी. परंतु अब मुझे वाकई डर लगने लगा था. और मैं गुफा के भीतर नहीं जाना चाहता था. पर योगिनी माता ने मुझे कहा अंदर चलो और पैर उठा कर चलना. पैर में पत्थर मत लगवा लेना. और योगिनी माता ने 20 फीट ऊँची उस चट्टान को खिसका कर ऐसे किनारे कर दिया, जैसे वो कोई लकड़ी का टुकड़ा हो. 


गुरुजी, भीतर एक दम अंधेरा था. और बहुत सारी (सर सर) जैसी आवाज आ रही थी. अंधक हालाकि मेरे पीछे ही था. पर फिर भी डर के मारे मेरा गला सूख चुका था. मुझे अंधेरे में महसूस हो रहा था कि वो काफी सकरा रास्ता था. और थोड़ा अंदर जाने पर हम लोग एक खुली जगह पर पहुच गए. वहां चारो तरफ सिर्फ अंधकार था. मैंने मन में सुगंधा को पुकारा, “कि सुगंधा मुझे बहुत डर लग रहा है. मुझे जरूरत है तुम्हारी. मुझे यहा अकेला फंसा कर कहा चली गई तुम?” इतने मे मुझे सुगंधा की खुशबु आ गई गुरुजी. और सफेद साड़ी में सुगंधा गुफा के दरवाजे से अंदर आ रही थी. और उसके शरीर से निकलते हुए तेज से, मैं साफ़ साफ़ देख सकता था. की जिस रास्ते से मैं अभी आया हू. वहां जमीन पर भी और दीवारों पर भी कितने सारे सांप हैं. गुरुजी सुगंधा ने सबसे पहले योगिनी माता को झुक कर प्रणाम किया. और योगिनी शक्ति ने भी सुगंधा का अभिवादन किया. और सुगंधा के आने से, उसके तेज से थोड़ी रोशनी भी वहां हो गई थी. और अब मैं ठीक था गुरुजी. 


योगिनी माता ने मुझसे कहा कि पिछले तीस दिनों से यानी, जब से तेरा जन्म हुआ तब से देवी यहीं रहती आ रही है. और एक तू है, जो डर के मारे कांप रहा है. तब मुझे पता चला गुरुजी की सुगंधा मेरे जन्म के बाद से कभी स्वर्ग लोक गई ही नहीं. वो यहा इस गुफा मे इन खतरनाक सर्पों के साथ रहती थी. सुगंधा ने बहुत पहले मुझे बताया था. कि “म्रत्यु लोक के एक वर्श के बराबर स्वर्ग लोक का एक दिन होता है”. बालिका स्वरूप योगिनी माता ने सुगंधा का हाथ पकडते हुए आगे कहा कि, अभी देवी को 50 दिन यहा और रहना है. योगिनी माता ने सुगंधा से आगे कहा गुरुजी, कि मुझे इसको यहा तक लाने की अनुमती थी. मेरा कार्य यहा पर पूर्ण हुआ. योगिनी माता के अंतर्ध्यान होने से पहले, सुगंधा ने योगिनी शक्ति से, संस्कृत मे कहा कि. देवी, माता से कहना मैं जल्द ही उनसे मिलने आऊंगी. इस पर योगिनी माता ने कहा कि, “उन्हें हमेशा आपकी सुरक्षा की चिंता रहती है. वो हमेशा आपका इंतजार करतीं हैं”. अंत मे मैने और सुगंधा ने उनकी स्तुति की. उनके चरण छुए और योगिनी माता हम दोनों को आशीर्वाद देकर, अन्तर्ध्यान हो गई गुरुजी.

गुरुजी सुगंधा ने कहा कि समय निकला जा रहा. आपको माता की पूजा आरंभ करनी होगी. वहां बहुत अंधेरा था गुरुजी इसलिए सुगंधा ने अपने गुरु अग्नि देव का स्मरण करते हुए ऊपर की ओर देख कर बोली, गुरुदेव, सहायता कीजिए. और उस गुफा में अलग अलग जगह पर, अलग अलग कोनों पर एवं हवन कुंड पर भी अग्नि अपने आप प्रज्वलित हो गई. तब जा कर वहां पर्याप्त उजाला हुआ गुरुजी. और मैंने उस जगह को ठीक से देखा. गुफा के भीतर मंदिर का एक गर्भ बनाया गया था. जहा बीचो बीच एक बहुत बड़ी लगभग 10 फीट ऊंची कंकाल नुमा माता की पत्थर की मूर्ति स्थापित थी. उनका पूरा शरीर मानव कंकाल की तरह था. उस मूर्ति का चेहरा देखने में ही इतना डरावना लग रहा था, कि अचानक कोई दिल का मरीज़ उस चेहरे को देख ले तो उसकी म्रत्यु निश्चित है.


सुगंधा ने मुझसे कहा कि यही है डोगरा माता. आपकी कुल देवी. मैंने सुगंधा से पूछा तो फिर ऊपर जो चौकी बनी है?. सुगंधा ने बताया गुरुजी की बहुत पहले डोगरा कबीले के मुखिया की धोखे से हत्या कर दी गई थी. डोगरा कबीले के लोग कुशल और निडर योद्धा थे. और अक्सर यहा के क्षत्रिय राजवंश के राजा युद्ध में डोगरा कबीले की सहायता लिया करते थे. डोगरा कबीले के लड़ाके कुशल योद्धा तो थे. परन्तु राजनीतिक बातें नहीं समझते थे. जो भी राजवंश उन्हें ज्यादा मोहरे देता उसी की तरफ से लड़ते और उनकी जीत सुनिश्चित हो जाती. और इसी कारण एक बार धोखे से ,सांप के ज़हर से युक्त भोजन एक राजा ने उन्हें कराया. और कबीले के सरदार के साथ साथ हज़ारों डोगरा सैनिकों की भी हत्या कर दी. सरदार की पत्नी,

अपने पति के शव के साथ ही आत्मदाह कर सती हो गई. जिस जगह वो सती हुई उस जगह को आप माता की चौकी कहते है. और यहा उनकी मूर्ति बनाई गई. डोगरा माता की मूर्ति, क्युकी सती होने के बाद जब भी सरदार की पत्नी कबीले के अन्य सदस्यों को स्वप्न मे दिखाई देती. तो इसी रूप मे दिखाई देती. अग्नि से पूरी तरह जले शरीर मे बची हुई उनकी अस्थियां और उनका जला हुआ डरावना चेहरा. गुरुजी सुगंधा ने बताया कि आज डोगरा देवी, मा भगवती की प्रमुख योगिनी शक्तियों मे से एक है. मगर बाकी के ये डोगरा सिपाहियों को अभी तक मुक्ति नहीं मिली. इनके द्वारा किए नरसंहार के कारण ,और धोखे से हुई हत्या के कारण ये रात होने पर, पहाडियों मे पिशाच एवं ब्रम्हराक्षस बन कर घूमते है.

और दिन होने पर सर्प का रूप धारण कर अपनी डोगरा माता की शरण में आ जाते है. ये सभी वो सिपाही है जिनकी म्रत्यु सर्प के विष के कारण हुई थी. गुरुजी मैंने सुगंधा से पूछा कि, अभी तो रात्री हो चुकी है. फिर अभी ये बाहर क्यु नहीं निकले. गुरुजी सुगंधा ने बताया कि आज पूर्णिमा है, इसीलिए ये बाहर नहीं निकले. और अमावस्या की रात्रि मे, इनकी शक्तियां चरम पर होती है. 
मैंने सुगंधा से पूछा गुरुजी, कि आखिर इन लोगों को मुक्ति कब मिलेगी सुगंधा?. गुरुजी सुगंधा ने बताया कि आज के ही दिन इन्हें इस योनी से सदा सर्वदा के लिए मुक्ति मिल जाएगी. डोगरा कबीले के सरदार और उनकी पत्नी एक दूसरे से सच्चा प्रेम करते थे. और दोनों माँ भगवती के सच्चे भक्त भी थे.

और इसीलिए माता के कहे अनुसार आज का दिन इनकी मुक्ति के लिए तय किया गया है. माता की यही इच्छा थी, कि इस पर्वत पर एक सच्चा प्रेमी जोड़ा एक दूसरे से अलग हुआ. और इन्हें मुक्ति भी तभी मिलेगी जब इसी पर्वत पर पुनः एक सच्चा प्रेमी जोड़ा दोबारा से मिलेगा. सुगंधा ने मुझसे कहा गुरुजी की आज, आप अगर यहा नहीं आते. या किसी और स्त्री संग विवाह करने को अगर आप मान जाते, तो निश्चित ही इन सबकी मुक्ति फिर से हज़ारों या लाखो वर्षो तक के लिए टाल दी जाती. मैंने हैरान हो कर सुगंधा से पूछा गुरुजी, कि सुगंधा ये सब बातें तुमने मुझे पहले क्यु नहीं बतायी?. 
तुम तो किसी भी हालत मे मुझसे विवाह करने को तैयार ही नहीं हो रही थी.

और मैं ये सोच सोच कर परेशान था. की अचानक से तुम्हें हो क्या गया है. तुम मना क्यु कर रही थी? गुरुजी सुगंधा ने बताया कि माँ आपकी परीक्षा लेना चाहती थी. मगर आप परीक्षा मे उत्तीर्ण हुए. आज मुझसे ज्यादा मेरी माँ प्रसन्न होगीं. और ये कहते हुए सुगंधा की आँखों में आंसू आ गए थे गुरुजी. और मेरी भी आँखों में भी .  गुरुजी मैंने सुगंधा से अगला प्रश्न पूछा कि आपने आज तक बताया क्यु नहीं, की आप यहा इस गुफा मे रहते हो? गुरुजी सुगंधा ने बताया कि आपके श्रापित हो जाने के बाद मैंने स्वर्ग लोक हमेशा हमेशा के लिए त्याग दिया था. यहा तक कि गंधर्व लोक मे भी हमेशा का गीत, संगीत और नृत्य मुझे रास नहीं आया.

इसलिए, जनलोक मे रह कर मैंने अग्नि देव और माँ जगत जननी की तपस्या की. वहां के ऋषि मुनियों तथा पवित्र देवी देवताओं से भरे संसार में, और वहां की प्रकृति की सुन्दर मनमोहक छाया में, मेरा दुखी मन शांत हो जाता था. माता के कहे अनुसार जब आपका जन्म म्रत्यु लोक मे मनुष्य रूप मे हुआ, तब मैं ध्यान लगा कर जनलोक मे ही बैठी थी.  मैंने ध्यान मे आपके रोने की आवाज सुनी. और मैं आपको देखने म्रत्यु लोक आ गई. आपको दूर से देखने के बाद जब मैं वापस जन लोक की तरफ जाने लगी. तब आपकी कुल देवी मुझे प्रथ्वी के बाह्य मंडल मे मिली. उन्होंने मुझसे कहा कि वापस जाने की आवश्यकता नहीं है

देवी. आप मेरे स्थान पर चलिए. सर्वप्रथम तो मैंने इंकार करने का प्रयास किया परंतु जब वो ये कहते हुए मुझसे विनती करने लगी कि, अगर माँ जगत जननी की पुत्री उनके इस स्थान पर रहेगी तो इससे उनका गौरव बढ़ेगा. तो मैं चाह कर भी उनकी विनती को ठुकरा नहीं पायी. और तब से मैं यही रह गई. 
गुरुजी, मैंने सुगंधा को कहा कि ” आज तक मैं यही समझता था, कि आप मुझसे मिलने के बाद वापस स्वर्ग लोक चली जाती थीं . मैं नहीं जानता था, कि आप इतने कठिन स्थान पर पिछले 30 साल से रह रही है.? अगर मुझे पता होता. तो मैं कभी आपको यहा नहीं रहने देता. आपको मैं अपने साथ रखता. 


गुरुजी, सुगंधा ने कहा कि मुझे कोई परेशानी नहीं हुई यहा रहते हुए. और फिर मैं बिना विवाह किए आपके साथ रह भी नहीं सकती थी. गुरुजी मैंने कहा कि क्यु नहीं रह सकती थी? ये स्वर्गलोक नहीं है, ये म्रत्यु लोक है. और यहा इस समय सतयुग नहीं, बल्कि कलयुग चल रहा है. और भारत मे ही नहीं बल्कि पूरी पृथ्वी पर लाखो, करोड़ों लोग बिना शादी किए एक दूसरे के साथ रहते ही है. गुरुजी, सुगंधा ने मुझसे कहा कि रहते होंगे. कम से कम आप तो, ये शास्त्र विरोधी बातें मत कीजिए. मैं आपके साथ बिना विवाह किए रह तो लेती. पर अपनी माँ को क्या जवाब देती? उनकी आँखों से तो कुछ नहीं छुपा है. वो तो इस सृष्टि के हर कण मे विद्यमान है. गुरुजी सुगंधा ने कहा कि आप बेवजह ही परेशान हो रहे है. मुझे कोई परेशानी नहीं हुई यहा रहने मे. और फिर आपकी कुलदेवी भी थीं मेरे साथ. उनके रहते हुए भला मुझे क्या कोई समस्या हो सकती थी. गुरुजी सुगंधा ने मेरा हाथ पकड़ कर कहा कि जिस प्रकार माता ने कभी आपको प्रेत योनी से मुक्ति दी थी. आज माता की ही वज़ह से, आपके और मेरे द्वारा इन हज़ारों प्रेतों की मुक्ति होगी. यही माँ की इक्षा है. क्या आप जगत जननी माँ की इच्छा पूरी नहीं करेगे? 


गुरुजी, फिर हमने ज्यादा समय बर्बाद नहीं किया. और पूजा प्रारम्भ की. माता रानी की पूजा, और उनका आशिर्वाद प्राप्त करने के बाद सुगंधा ने मुझसे कहा आप अंधक के साथ ऊपर पहाड़ी के शिखर पर जाये. मैं यहा का द्वार बंद करके आती हू. गुरुजी पहाड़ी के शिखर पर पहुंच कर मैंने और सुगंधा ने हमारी कुलदेवी डोगरा माता की विधी वत पूजा और वंदना की और उनका भी आशीर्वाद प्राप्त किया. गुरुजी, माता ने मुझे चुना. इन सभी पिशाचों की मुक्ति मेरे हाथो होनी थी. उन्होंने मेरा चुनाव किया. इसके लिए मैंने माता का बारंबार धन्यवाद किया. 


गुरुजी, कुछ अन्य पूजा-अर्चना (जिनको मुझे बताने की अनुमती नहीं है) करने के बाद, आखिर वो समय आ गया जब मुझे वो माला सुगंधा को पहनाना था. सुगंधा ने कहा कि पहले आपको ये सिंदूर लगाना है, और फिर ये माला पहनानी है. और उसके बाद आप मुझसे थोड़ा दूर चले जाना, अन्यथा आप मेरे तेज से जल जाएंगे. मैंने कहा ठीक है मैं समझ गया. और मैंने बिल्कुल वैसा ही किया गुरुजी. मैंने सुगंधा के ही बताये अनुसार सिंदूर लगा कर, वो माला सुगंधा को पहना दी. और लगभग 10 फीट दूर खड़ा हो गया सुगंधा से . सुगंधा ने कहा गुरुजी की थोड़ा और दूर.

तो मैं 10 फीट और पीछे चला गया. जब सुगंधा ने देखा कि मैं सुरक्षित दूरी पर खड़ा हुआ हू. तब उन्होंने अपनी आंखे बंद की और उनके शरीर से अचानक तेज निकलने लगा. सुगंधा से 20 feet की दूरी पर खड़े होने के बावजूद सुगंधा के शरीर से निकल रही वो गर्मी मैं बर्दास्त नहीं कर पा रहा था. सुगंधा के शरीर से इतनी ऊर्जा, इतनी अत्यधिक रोशनी  निकल रही थी. की ज्यादा देर मैं सुगंधा की तरफ देख भी नहीं पा रहा था. और सुगंधा का तेज और ज्यादा बढ़ता ही जा रहा था. इसलिए मैं 10 फीट और पीछे जा कर खड़ा हुआ गुरुजी. सुगंधा के शरीर से निकलते तेज के कारण वहां चारो तरफ काफी रोशनी फैल गई थी. 


गुरुजी मैंने सुगंधा को उस दिन उनके सभी आभूषणों के साथ. एक अप्सरा रूप में देखा. उस दिन सुगंधा को मैंने पहली बार उसके देवीय स्वरूप में साक्षात देखा. सुगंधा की height उस समय प्रथ्वी की लड़कियों जितनी नहीं थी. बल्कि 10 से 12 फिट हाइट उस समय उनकी रही होगी. तरह तरह के आभूषण उन्होंने पूरे शरीर पर पहन रखे थे. ऊपर से नीचे तक तरह तरह के आभूषणों से सुसज्जित सुगंधा के देव स्वरूप के दर्शन करने के बाद. थोड़ी देर के लिए मैं भूल गया गुरुजी की सुगंधा मेरी पत्नी बन चुकी है. और मैं उनको नमस्कार करने की मुद्रा में बैठने लगा था. और उसके बाद गुरुजी सुगंधा के शरीर से निकलता तेज धीमा हुआ .

और सुगंधा की हाइट भी यहा की नॉर्मल ल़डकियों जितनी हुई. और मैंने सुगंधा से तब पूछा गुरुजी. की छू सकता हू आपको?, हाथ तो नहीं जल जाएगा मेरा.? और गुरुजी सुगंधा मुझसे लिपट कर रोने लगी. सुगंधा रोते हुए मुझसे पूछने लगी गुरुजी. की आप मुझे छोड़ कर कहा चले गए थे?, आपको एक बार भी मेरी याद नहीं आयी?, एक बार भी आपने नहीं सोचा कि मेरा क्या होगा, मैं कैसे रहूंगी?. कितना दूर आ गए आप हम दोनों को छोड कर?. और मुझे समझ मे नही आ रहा था. की सुगंधा के सवालों का क्या जवाब दु. और कैसे मैं इनको चुप करवाऊं.

किसी तरीक़े से मैंने सुगंधा को शांत किया गुरुजी. क्युकी पुरानी बातें याद करके वो वाकई उस दिन बहुत दुखी हो गई थी. और उनका देव लोक का नाम लेकर मैंने कहा कि, क्यु ना बड़े बड़े ऋषि मुनियों की तपस्या भंग हो जाए. आपको देख कर. आप है ही इतनी सुन्दर. तब वो थोड़ा मुस्काई गुरुजी. और उन्होंने आंसू पोछते हुए कहा कि, मैं कभी नहीं गई, किसी ऋषि मुनि की तपस्या भंग करने. ये काम दूसरी अप्सराओ को दिया जाता था. तो गुरुजी मैंने सुगंधा को कहा, “कि इंद्र देव जानते थे ना, कि अगर इसको भेजूंगा तो पक्का ये उनकी तपस्या भंग करने की जगह पूर्ण करवा कर ही आएगी” . तब सुगंधा थोड़ा खुल कर हंसी गुरुजी. 


गुरुजी, मैंने सुगंधा से पूछा कि, क्या मैं अब अपने कपड़े पहन सकता हू. मुझे नीचे जाना पड़ेगा, नदी के किनारे पड़े है मेरे कपड़े. सुगंधा ने कहा गुरुजी. की अंधक ले आया है , उसने बहुत मेहनत की है आज, कई बार वो नीचे उतरा है. और सारा समान ऊपर लेकर आया है. और आपने अभी तक उसको शाबाशी भी नहीं दी. मैंने कपड़े पहने गुरुजी. और अंधक को धन्यबाद कहा. माता डोगरा की चौकी के सामने ही मैं, सुगंधा और अंधक चादर बिछा कर पूरी रात खुले आसमान के नीचे बैठे रहे. सवेरा होने पर गुरुजी, सुगंधा ने मुझसे कहा कि मुझे अपने गुरु अग्नि देव और माता से मिलने जाना है. सुगंधा ने बताया कि 30 दिन हो गए और मैं उनसे मिली नहीं हू.

वो काफी परेशान हैं मुझे लेकर. सुगंधा के लिए वो सिर्फ 30 दिन थे गुरुजी, मगर मेरे लिए 30 साल. सुगंधा ने कहा गुरुजी की मैं जल्द से जल्द आने का प्रयास करूंगी. मैंने कहा ठीक है कल तक तो आ ही जाओगी. तो सुगंधा ने कहा कि कम से कम एक महीना लगेगा. उससे ज्यादा भी लग सकते है. गुरुजी मैं सुगंधा को मना भी नहीं कर सकता था. और मैंने सुगंधा को कहा आप आराम से आना और सबसे अच्छे से मिल कर आना. 6 महीने भी लग जायेगे, तो भी मैं इंतजार कर लूंगा. और अंधक को अपनी सुरक्षा के लिए लेते जाओ.

सुगंधा और अंधक के अंतर्ध्यान होने के बाद गुरुजी. मैं भी  सुबह 8 बजे तक अपने घर आ गया. और दादी को मैंने सब कुछ बताया, जो जो मेरे साथ उस रात घटित हुआ था. और दादी ने मुझसे कहा, कि मैंने कहा था ना,  तू बिल्कुल सही दिशा की तरफ जा रहा है. तेरे कारण आज हज़ारों प्रेत योनियों मे फंसी जीवात्माओं को मुक्ति मिली है. स्वयं माँ पार्वती की पुत्री तुझसे प्रेम करती है. ना जाने आगे और क्या क्या तुझसे कराया जाए. 


गुरुजी पत्र काफी लंबा हो चुका है, इसलिए आगे के, यानी इसके बाद मेरे साथ क्या क्या घटित हुआ वो मैं अगले पत्र मे बताऊँगा. गुरुजी, सुगंधा से विवाह करने के बाद मेरी दादी की तबीयत बहुत ज्यादा खराब हो गई थी. इस बात को  मैंने ” खुशबु वाली सुगंधा का सच्चा अनुभव भाग 10″ मे बताया भी है कि मेरी दादी की तबीयत बहुत खराब थी उस समय. गुरुजी कैसे सुगंधा ने मेरी दादी को ठीक किया ये भी अगले पत्र में बताऊँगा गुरुजी. 

गुरुजी, सभी दर्शकों को प्रणाम करता हू. और आपके चरणों को स्पर्श करते हुए आज का पत्र यही समाप्त करता हू. माता रानी की जय हो माता रानी सबका कल्याण करे 

खुशबू वाली सुगंधा का सच्चा अनुभव भाग 15

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