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खुशबू वाली सुगंधा का सच्चा अनुभव भाग 18

प्रणाम गुरुजी   

गुरुजी आगे जो कुछ हुआ, वो यहा मैं प्रस्तुत करने जा रहा हू. आशीर्वाद की कामना करते हुए, अपना पत्र प्रारम्भ करता हू.
गुरुजी, मेरे सो जाने के पश्चात, मुझे नहीं मालूम सुगंधा रात मे कब अंतर्ध्यान हो गई. हालाँकि मेरे फोन पर चार बजे का अलार्म हमेशा ही लगा रहता है. औऱ अपनी आदत के अनुसार मंदिर की फर्श पर से आंखे मीजता हुआ, मैं ब्रम्हमुहूर्त मे उठ बैठा. गुरुजी, मैं हैरान रह गया जब मैंने देखा कि पुजारी बाबा एक टक नजरो से मुझे सवेरे चार बजे देख रहे थे. ना तो वो मुझसे कुछ बोल रहे थे, ना मेरी किसी बात का जवाब दे रहे थे, बस मंदिर के किनारे पडी एक शिला पर बैठे बैठे मुझे देख रहे थे. गुरुजी मैं तब उठा ही था. औऱ अपना दिमाग नहीं खराब करना चाहता था. इसलिए मैंने उनको उस समय इग्नोर किया. औऱ मंदिर के बाहर अपने जुते ढूँढने लगा. वहाँ पर बहुत अंधेरा था गुरुजी उतनी देर. इसलिए मैंने phone की flash light जलाई औऱ मैंने देखा कि मेरे shoes के पास एक सांप कुंडली मार कर बैठा है.
गुरुजी, मैं सोच ही रहा था कि अब क्या करू?. सुगंधा औऱ अंधक भी नहीं हैं यहा. पहले तो गुरुजी मैंने छोटे पत्थर फेंक कर प्रयास किया कि शायद वो सांप वहाँ से चला जाए. लेकिन शायद गुरुजी, उस सांप को मेरे shoes इतने पसंद आ गए थे. की वो वहाँ से हटना ही नहीं चाहता था. फिर गुरुजी मैंने पुजारी बाबा की तरफ देखा, तो वो मुझे तब भी घूरे ही जा रहा थे. मैंने उनसे पूछा आपके पास कोई डंडा है? या कोई बड़ी लकड़ी?? ताकि मैं इस सांप को यहा से भगा सकू??. गुरुजी वो सन्यासी बाबा, उस शिला से उठे. औऱ उस सांप को ऐसे अपनी गर्दन पर लपेट कर चल दिये जैसे वो कोई सांप नहीं, कोई तौलिया या कपड़े का गमछा हो. जाते हुए वो वही गीत गा रहे थे . औऱ गुरुजी अब तक तो ये सुगंधा का ही नहीं, अपितु मेरा भी पसंदीदा गीत था. परंतु अब मुझे इस गीत से नफरत हो चुकी थी.
गुरुजी मंदिर के पीछे बने एक कुए पर मैं गया. जहा रस्सी औऱ बाल्टी भी रखी हुई थी. मैंने कुए से पानी निकाल कर आचमन इत्यादि कर. जिनके पूर्वजो ने उस मंदिर का निर्माण करवाया था. उनके घर पर गया. उस समय सुबह के लगभग 5 बज रहे थे गुरुजी. औऱ अभी भी उजाला नहीं हुआ था. मुझे उन लोगों को जगाते हुए बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा था गुरुजी. लेकिन मेरे पास समय बहुत कम था. इसलिए मैं मजबूर था. मैंने उनसे पूछा गुरुजी की, कि यज्ञ शाला का निर्माण करवाने के लिए इतनी घास मैं अकेले नहीं काट पाउंगा. मुझे कुछ मजदूर की जरूरत है. तो उन्होंने मुझसे कहा आप निश्चिंत रहिए. आसपास जंगलों मे पर्याप्त “घास” है औऱ मजदूरों को भी ढूढ़ने जाने की आवश्यकता नहीं है. बहुत से मजदूर है जो हमारे खेतों पर काम करते है. आपका काम दो दिन मे हो जाएगा. गुरुजी, मैंने उनको कुछ advance पैसे भी दिए. औऱ गाँव से शहर की तरफ जा रही दुध औऱ सब्जी की एक गाड़ी से लिफ्ट माग कर मैं उसमे बैठ गया. अब मैं निश्चिंत था गुरुजी, अब मुझे अपने hometown पहुच कर सिर्फ मिस्त्री ढूँढना था. जो मेरी यज्ञशाला का निर्माण कर सके.
गुरुजी, सबसे पहले तो मैं अपने होटल गया. जहा मैंने room ले रखा था. औऱ स्नान इत्यादि कर, मिस्त्री लेकर दोपहर के लगभग 12 बजे तक दोबारा उसी गाँव पहुच गया. मंदिर जब मैं पहुचा गुरुजी तो मेरी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था. इतने कम समय मे, मजदूरों ने घास काट काट कर, एक बहुत बड़ा ढेर मंदिर प्रांगण मे जमा कर दिया था. पास ही खड़े सरपंच औऱ मंदिर के निर्माता, दोनों ही बुजुर्गों का मैंने अभिवादन किया औऱ इतनी सहायता करने के लिए बारंबार उन्हें धन्यवाद कहा. गुरुजी, मैंने चाचाजी से पूछा कि कितने गठ्ठर होगे चाचा जी घास के? तो उन्होंने जवाब दिया कि बेटा वो तो नहीं गिने! हाँ दो टाली घास है ये. अभी भी मजदूर काट रहे है. जैसे ही कट जाएगी तो ट्रैक्टर भेज देगे. तीसरी टाली भी आ जाएगी.
गुरुजी, जितनी बड़ी कुटिया का निर्माण मुझे करवाना था. मिस्त्रियों के कहे अनुसार हमारे पास पर्याप्त घास थी. इसलिए मजदूरो को वापस बुला लिया गया. औऱ मैंने चैन की सास ली गुरुजी, कि आखिरकार कार्य प्रारम्भ हो ही गया. गुरुजी इतने मे, जिन्होंने मंदिर बनवाया था. चाचा जी ने मुझसे कहा कि मुझे पता है बेटा, सवेरे से तुमने कुछ नहीं खाया होगा. आज दोपहर का भोजन हमारे साथ ही करो. गुरुजी, मैंने थोड़ा झिझकते हुए उनके आमंत्रण को स्वीकार कर लिया. दूसरी वज़ह ये भी थी गुरुजी की मैं नजदीकी शहर से 35 km की दूरी पर था. औऱ दोपहर के डेढ़ बज चुके थे. औऱ वाकई मुझे भूक लग रही थी. मैंने, सरपंच जी ने औऱ वहाँ पर मौजूद गाँव के अन्य दो बुजुर्गों ने उनके यहा उस दोपहर एक साथ भोजन किया.
गुरुजी, भोजन करते समय मैंने चाचाजी से पूछा कि, आपके मंदिर के पुजारी थोड़ा अजीब है?? मेरे इतना कहते ही गुरुजी, वहां भोजन कर रहे सभी लोग औऱ साथ ही साथ मौजूद अन्य परिवार के सदस्य जोर जोर से हंसने लगे. जैसे मैंने कोई चुटकुला सुना दिया हो. गाँव के सरपंच ने मुझसे कहा कि बेटा, सब को पहली नजर मे यही लगता है उन्हें देख कर. परंतु असलियत मे उनसे बड़ा सिद्ध तुम्हें कहीं औऱ देखने को नहीं मिलेगा. गुरुजी तब मुझे उन पुजारी बाबा के बारे मे सम्पूर्ण जानकारी मिली. गुरुजी, चाचाजी ने बताया कि, वो मंदिर मेरे पिताजी ने सन् 1989 मे बनवाया था. कुछ दिनों तक तो वो स्वयं पूजा करते रहे. परंतु कुछ ही दिनों मे आकस्मिक रूप से उनकी म्रत्यु हो गई. उसके बाद कुछ अन्य पंडितों एवं पुजारियों को हमने रखा. औऱ उनके साथ भी कई प्रकार की आकस्मिक घटनाये एवं बेहद डराने वाले अनुभव उनको होने लगे. हालत ये हो गई थी. की कोई भी व्यक्ती बाबा वीरभद्र की पूजा करने को तैयार ही नहीं था.
औऱ हम लोगों के मन में भी ये विचार आने लगा था कि कहीं हमने मंदिर का निर्माण करवा कर, गलती तो नहीं कर बैठे. दरसल मंदिर का निर्माण हमारी मजबूरी थी. सन् 1989 से पहले गांव मे ना जाने किसका श्राप या बुरी नजर लगी थी. की एक एक करके गांव के सभी मवेशियों की म्रत्यु होने लगी थी. इतने बड़े गांव मे किसी एक भी व्यक्ती के घर दुध की एक बूंद नहीं थी. यहा तक कि आकस्मिक रूप से गांव के सभी कुए औऱ तालाब पूरी तरह से सूख गए थे. बहुत से लोग तो उस ज़माने मे गांव से पलायन ही कर गए बेटा. मैंने उनसे पूछा गुरुजी की, चाचा दुध के बिना तो व्यक्ती फिर भी रह सकता है. परंतु पानी के बिना तो इंसान का गुजारा नहीं हो सकता. तो उन्होंने बताया कि यहा से 15 km औऱ आगे जाओगे तो डोगरा माता का पहाड़ है. ये जो मन्दिर से लगा हुआ जंगल देख रहे होना बेटा. ये वही जंगल है. ये जंगल यहा से डोगरा माता के पहाड़ तक लगा हुआ है. तब डोगरा माता ने हमारी बड़ी रक्षा की, हमे प्यासा मरने से बचाया. उनके पर्वत के किनारे किनारे निकली एक नदी. से हम उस समय पानी लाते थे.
गुरुजी, चाचाजी ने आगे बताया कि. फिर मेरे पिताजी को डोगरा माता का एक स्वप्न आया. जिसमें पिताजी को उनके दर्शन तो नहीं हुए. परंतु स्वप्न मे उन्होने उसी पर्वत को देखा. औऱ वो पर्वत से एक स्त्री की आवाज आ रही थी. गांव के बाहर “वीरभद्र” की स्थापना करने के लिए उनसे स्वप्न मे कहा गया. पिताजी तुरंत उठे. औऱ समझने मे देर नहीं लगी. ये औऱ कोई नहीं माता डोगरा ही हैं. औऱ तब इस मंदिर का निर्माण मेरे पिताजी ने औऱ समस्त गांव वालों ने मिल कर कराया. मेरे पिताजी के गुजर जाने के बाद, जब कोई पुजारी हमको नहीं मिल रहा था. तब ये साधु अचानक से एक दिन हमारे गांव आए. औऱ इन्होंने कहा कि मैंने सुना है कि आपको पुजारी की तलाश है. हम पूजा करेगे. हमने तो सोच लिया था बेटा. दो तीन दिन मे ये भी भाग जायेगे. चलो दो तीन दिन ही सही. दो तीन दिन घर के दूसरे काम तो कर सकेंगे. परंतु आज तक ये कहीं नहीं गए. तब से लेकर आज तक यही पूजा करते है, हमारे बाबा साहब की.
गुरुजी, मैंने आखिरी सवाल पुजारी बाबा के संबंध में पूछा कि, चाचा कितना समय हो गया होगा इनको इस गांव में? तो चाचाजी ने जवाब दिया बेटा बसंत का मौसम था उस समय मुझे अच्छे से याद है. फरवरी का महीना था. सन् 1990 से यहा वो रहते आ रहे है. औऱ गुरुजी ये जान कर मैं हैरान रह गया. गुरुजी, मेरा जन्म भी सन् 1990 के फरवरी महीने मे ही हुआ था. औऱ उस दिन बसंत पंचमी थी. गुरुजी, मैं भोजन कर चुका था. हाथ धोने के बाद. मैंने उन सबसे वापस जाने की अनुमती मांगी. तो चाचाजी कहने लगे कि इतनी जल्दी क्या है बेटा थोड़ी देर आराम कर लो. फिर चले जाना. मैंने कहा नहीं चाचा जी, अभी बहुत काम बचा हुआ है. अभी जाने दीजिए, मैं जल्द ही वापस आऊंगा. उन्होंने मुझसे मेरा नाम पूछा गुरुजी, मैंने उनको अपने नाम सहित अपने पिताजी औऱ स्वर्गीय दादाजी का भी नाम बताया. औऱ मुझे ये जान कर बिल्कुल भी हैरानी नहीं हुई गुरुजी की वो सभी लोग मेरे दादाजी को बहुत अच्छे से जानते थे. गुरुजी, मेरी सहायता करने के लिए मैंने उनको धन्यवाद कहा. औऱ चाचाजी से उनका contact no. लेकर, सभी के पैर छूकर, आशिर्वाद प्राप्त करने के बाद मैं वापस मंदिर की तरफ चल दिया.
गुरुजी, गाँव से मंदिर की तरफ जाते हुए मेरे मन मे यही विचार आ रहा था. की ये सब कुछ मात्र संयोग नहीं हो सकता. अचानक से एक खुशहाल गाँव मे इतनी मुश्किलों का आना, डोगरा माता का इस गाँव के लोगों को बाबा साहब की स्थापना करने के निर्देश देना, इतने बड़े भारत देश में सिर्फ इसी एक गांव में मुझे साधना करने के लिए सुगंधा का भेजना, औऱ मेरे यहा आने से पूर्व मेरे बारे में उस पुजारी बाबा का अवगत होना. ये सब कुछ मात्र एक संयोग नहीं हो सकता था. मैं जल्द से जल्द उस पुजारी बाबा से बात करना चाहता था गुरुजी. मैं जानना चाहता था गुरुजी की, उनको मेरे बारे में, सुगंधा के बारे में यहा तक कि अंधक के बारे में भी उनको जानकारी कैसे प्राप्त हुई.??
गुरुजी, मंदिर की उत्तर की दिशा में दो कमरे बने हुए थे. जिनमे से एक कमरे में वो बाबा रहा करते थे. औऱ दूसरे कमरे में मंदिर का समान रखा था. मैंने देखा गुरुजी मिस्त्री लोग यज्ञ शाला का निर्माण करने मे लगे हुए थे. परंतु पुजारी बाबा के कमरे पर ताला लगा हुआ था गुरुजी. गुरुजी मैंने मिस्त्रियों से पूछा कि इस कमरे में एक बुजुर्ग से बाबा रहते है. क्या आप लोगों ने उन्हें देखा है? वो किस तरफ़ गए है? तो उन लोगों ने जंगल की तरफ इशारा करते हुए कहा कि अभी थोड़ी देर पहले वो इसी तरफ गए है. गुरुजी मैं थोड़ी दूर तक अंदर भी गया जंगल के. आवाज भी लगायी उनको. लेकिन अंत में मैं वापस मंदिर आ गया गुरुजी. गुरुजी जब भी मैं उनसे बात करने का प्रयास करता, वो इसी प्रकार जंगलो मे पता नहीं कहा गायब हो जाते थे. इसलिए अब मैंने सुगंधा से उनके बारे में जानने का फैसला कर लिया था. औऱ मैं सुगंधा से उनके बारे में सब कुछ पूछने वाला था.
गुरुजी, अपनी working सिटी वापस आने के बाद, मैंने सुगंधा से इस बारे में पूछा. की सुगंधा ये सब कुछ पहले से तय था ना? तुम जानती थी, कि डोगरा माता ने मेरे जन्म से पहले ही उन गांव वालों को उस मंदिर के निर्माण के निर्देश दे चुकी थी. सुगंधा ने कुछ जवाब नहीं दिया गुरुजी, औऱ चुप चाप बैठी रही. सुगंधा वो पुजारी, जिससे मैं कभी मिला नहीं. वो तुम्हारे बारे में, तुम्हारे पसंद के गीत के बारे में, यहा तक कि अंधक के बारे में भी वो कैसे जानते है? गुरुजी, सुगंधा का गला भर आया था मेरे सवालों के जवाब देते समय. सुगंधा दुखी स्वर में बोली कि, अगर मुझको अनुमती होती. तो सब कुछ मैं आपको बहुत पहले बता देती. आपको धैर्य से काम लेना होगा. जैसे जैसे समय बीतता जाएगा. आपको अपने सभी प्रश्नों के उत्तर भी मिलते चले जाएंगे. गुरुजी सुगंधा मेरे सवालों से आहत होकर दुखी हो गई थी. इसलिए मैंने फिर उस गांव से संबंधित औऱ कोई प्रश्न उनसे नहीं पूछा. मैंने topic को change करते हुए. सुगंधा से कहा कि, हमारे पास आज ये आखिरी दिन है. कल से तो गुप्त नवरात्रि प्रारम्भ भी है. औऱ अभी तक मुझे उन योगिनी शक्ति के बारे में कुछ भी जानकारी नहीं है. Plz सुगंधा मुझे उनके बारे में कुछ बताओ. हालाकि मैं कई बार उनके बालिका स्वरूप के दर्शन कर चुका था गुरुजी. स्वप्न के माध्यम से भी औऱ प्रत्यक्ष रूप से भी. परंतु वाकई मुझे उनके बारे में तब तक कोई जानकारी नहीं थी.
गुरुजी तब सुगंधा ने ना सिर्फ उनका बल्कि अन्य योगिनी शक्तियों के बारे में विस्तृत जानकारी मुझको दी. गुरुजी, सुगंधा मुझसे अपनी मधुर आवाज मे बोली कि. ” यु तो योगिनी शक्तियाँ लाखो की संख्या में है, परंतु चौसठ योगिनी शक्तियों का अपना एक खास महत्वपूर्ण स्थान है”. औऱ इन्हीं चौसठ योगिनी शक्तियों मे से एक है, वो देवी. जिनकी आपको साधना करनी है. गुरुजी सुगंधा ने आगे बताया कि :-
1):- अक्षोभ्या, ऋक्षकर्णी, राक्षसी, क्षपणा, क्षया, पिगांक्षी, अक्षया, औऱ क्षेमा।- ये आठ शक्तियां माता के ब्रम्हाणी स्वरूप से उत्पन्न हुई थी.
2):- इला, लीलावती, नीला, लंका, लंकेश्वरी, लालसा, विमला, औऱ माला।-  ये आठ शक्तियां माता के माहेश्वरी स्वरूप से उत्पन्न हुई थी.
3):- हुताशना, विशालाक्षी, हुंकारी, बगलामुखी, हाहारवा, महाक्रूरा, क्रोधना, औऱ खरानना।-  ये आठ शक्तियां माता के कौमारी स्वरूप से उत्पन्न हुई थी.
4):- सर्वज्ञा, तरला, तारा, ऋग्वेदा, हयानना, सारा, स्वयंगृॉहा, तथा शाश्वती।- ये आठ माता के वैष्णवी शरीर से उत्पन्न हुई थी.
5):- तालुजिव्हा, रक्ताक्षी, विद्युत जिव्हा, करन्किणी, मेघनादा, प्रचंडा, कालकर्णि, औऱ कलीप्रिया।- ये आठ माता के वाराही स्वरूप से उत्पन्न हुई थी.
6):- चम्पा, चम्पावती, प्राचम्पा, ज्वलितानना, पिशाची, पिचु वक्त्रा, तथा लोलुपा।- ये आठ शक्तियां माता के इंद्राणी स्वरूप से उत्पन्न हुई थी.
7):- पावनी, याचनी, वामनी, दमनी, विंदुवेला, ब्रहत् कुक्षी, विद्युता तथा (गुरुजी, इनका नाम लिखने की अनुमती नहीं है, सुगंधा ने मना किया था)।- ये आठ बहने माता के चामुंडा स्वरूप से उत्पन्न हुई थी.
8):- यम जिव्हा, जयंती, दुर्जया, यमन्तिका, विडाली, रेवती, जया औऱ विजया। – ये आठ देवियाँ, माता के महालक्ष्मी स्वरूप से प्रकट हुई थीं.
गुरुजी, सुगंधा ने इसके बाद मुझे साधना काल में पालन करने वाले कुछ अत्यंत महत्वपूर्ण नियमों के बारे में विस्तार से बताया. औऱ कुछ वचन भी मुझसे मांगे. क्युकी जिन योगिनी माता की साधना मैं करने जा रहा था. वो साक्षात माता चामुंडा के शरीर से उत्पन्न हुई थी. इसलिए सुगंधा थोड़ी चिंतित थी गुरुजी, कि मैं ये साधना कर भी पाउंगा या नहीं. गुरुजी सुगंधा ने एक बड़ी सी ड्रॉइंग शीट पर सभी दिशाओं मे वीर, क्षेत्रपाल औऱ योगिनी शक्तियों के मंडल बना कर मुझको बताये कि, किस दिशा मे कौन से देवता की स्थापना करनी है. औऱ योगिनी माता तथा मेरे आसन से कितनी दूरी पर कौन सा मंडल होना चाहिए. गुरुजी सभी दिशाओं में मंडलों का निर्माण करने के बाद जब बीचो बीच सुगंधा ने मेरा औऱ योगिनी माता का आसन बनाया तो वो ड्रॉइंग किसी जटिल सुरक्षा घेरे की तरह दिख रही थी. औऱ सुगंधा की बनाई हुई उस ड्रॉइंग को देख कर अब तक मैं समझ चुका था. की ये साधना मेरी सोच से भी अधिक खतरनाक होने वाली है.
गुरुजी अगले दिन, सबसे पहले माता रानी तथा महादेव की पूजा करने के पश्चात. मैंने साधना प्रारंभ की, औऱ लगभग तीन हफ्तों तक मैं अपने पूजा के कमरे में ही साधना करता रहा. गुरुजी, उन तीन हफ्तों में मुझे किसी भी प्रकार के गम्भीर अनुभव नहीं हुए. हाँ एक दो बार मुझे स्वप्न मे कुछ दृश्य जरूर दिखाई दिए थे. लेकिन मुझे ठीक ढंग से याद नहीं है गुरुजी की उन सपनों मे मैने क्या देखा था. देखते ही देखते गुरुजी, 21 दिन मेरी साधना के पूरे हो चुके थे. औऱ अंतिम चरण के सात दिनों की साधना मुझे उस जंगल में बनी अपनी यज्ञ शाला में करना था. औऱ मेरे होश तब उड़ गए गुरुजी, जब सुगंधा ने साथ चलने से मना कर दिया. सुगंधा मुझसे बोली, कि अंतिम चरण की ये साधना आपको अकेले पूर्ण करनी होगी. मुझे अनुमती नहीं दी गई है. गुरुजी मैंने सुगंधा से पूछा कि अगर मुझसे कोई गलती हो गई. तो किससे पूछूँगा मैं? गुरुजी सुगंधा ने जवाब दिया कि, मंदिर के पुजारी. वो आपकी सब प्रकार से सहायता करने मे सक्षम हैं. वो सही मायनों में एक सिद्ध पुरुष हैं. जिन्होंने अपना सर्वस्व जीवन अपने इष्ट वीरभद्र के चरणों में अर्पित कर चुके है. वो आपकी सहायता करेगे. औऱ आपको उनसे घ्रणा नहीं अपितु उनकी सेवा करनी चाहिए.
गुरुजी, मैं किसी तरह से उस गांव तक पहुचा. इस बार अपने hometown जाते समय कई प्रकार की घटनाये मेरे साथ हुई. जैसे कि कोई चाहता था, कि मैं ये साधना पूर्ण ना करू या उस साधना स्थल तक ना पहुच पाऊँ. लेकिन मैंने अपनी यात्रा जारी रखी गुरुजी, औऱ अंततः मैं उस मंदिर तक पहुच गया. गुरुजी, सबसे पहले तो मैंने अपनी कुटिया को भीतर जा कर देखा. की निर्माण सही ढंग से हुआ है या नहीं. उसके बाद मैंने बाबा साहब के दर्शन के किये. औऱ पुजारी बाबा के भी चरण छुए. औऱ मैं हैरान रह गया गुरुजी. जब उन्होंने पहली बार मुझसे बात की, “कि आ गया”?
गुरुजी, इस बार पुजारी बाबा काफी बदले बदले से थे. वो मुझसे बहुत बात किया करते थे. औऱ सबसे खुशी की बात मेरे लिए ये थी. की उन्होंने मुझे घूरना बंद कर दिया था. गुरुजी दिन भर मैं पुजारी बाबा की सेवा करता. उनके हाथ पैर दबाता, ईंटों को जोड़ कर मैंने अपने लिए चूल्हा बनाया था गुरुजी. औऱ पहली बार मुझे पता चला कि पुराने समय मे लकड़ी औऱ उपले जला कर रोटियां बनाने मे कितनी समस्या होती थी लोगों को. पुजारी बाबा के कपड़े बहुत ही ज्यादा गंदे थे गुरुजी, तो उनके कपड़े भी धोए मैंने. औऱ उनके कपड़े इतने ज्यादा गंदे थे गुरुजी की, पानी गरम करके मुझे उनके कपड़े धोने पड़े. तब भी वो कपड़े साफ़ नहीं हुए. दिन भर मेरा यही काम होता था गुरुजी. औऱ शाम ढ़लने के बाद मंदिर में ही बने एक कुए मे मैं स्नान करके पुजारी बाबा के सानिध्य मे अपनी साधना प्रारम्भ कर देता.
गुरुजी, पहले दिन जब मैंने साधना प्रारम्भ की. औऱ मेरे आसन के चारो तरफ बने देवी देवताओं के मंडल, तथा सुसज्जित कलशो को देख कर. पुजारी बाबा बोले कि, इतना मुश्किल सुरक्षा घेरा मैंने आज तक नहीं देखा. तेरे ऊपर तो स्वयं, देवराज इंद्र भी हमला नहीं कर सकते. गुरुजी, साधना के पहले रोज ही मुझे इतना डरावन अनुभव हुआ, कि मेरी आत्मा तक हिल गई. गुरुजी सुगंधा ने मुझे साधना स्थल पर ही विश्राम करने के लिए बोली थी. इसलिए साधना पश्चात मैं अपनी यज्ञशाला पर ही विश्राम करता था . औऱ पुजारी बाबा मंदिर प्रांगण में बने अपने कमरे मे सोते थे. पहले ही दिन गुरुजी मुझे एक भयानक स्वप्न आया. सपने में, मैंने देखा कि एक सर्प मेरे सीने पर बैठा हुआ है. गुरुजी, ना तो मैं चीख सकता था, ना ही मैं हिल सकता था. क्युकी मैं नहीं चाहता था कि वो सांप मुझे डस ले. इतने मे मुझे अनुभव हुआ गुरुजी की सभी दिशाओं से हज़ारों सर्प मेरी ही तरफ आ रहे है. गुरुजी मेरी यज्ञशाला के खंबो पर तथा यज्ञशाला की छत पर भी हज़ारों सर्प लिपटे हुए थे. मेरे पास औऱ कोई रास्ता नहीं था गुरुजी, इसलिए मैंने सुगंधा के ही बताये हुए योगिनी माता के मूलमंत्र को जपना शुरू कर दिया. गुरुजी, मैंने अभी जाप प्रारम्भ ही किया था. की तभी पुजारी बाबा ने अपने कमरे का दरवाजा खोला. औऱ उनके दरवाजा खोलते ही जैसे सारे सर्प वहाँ से गायब हो गए. औऱ मैं सांप सांप चिल्लाते हुए उठ बैठा. गुरुजी नीद से जागने के बाद मैंने देखा कि वहां पर कोई सांप नहीं थे. गुरुजी मैंने पीछे मुड़ कर देखा तो पुजारी बाबा के कमरे का दरवाजा बंद था. औऱ वो सो रहे थे.
गुरुजी, अगले दिन सुबह जब मैं, मंदिर की साफ़ सफाई करने के बाद पुजारी बाबा के कमरे मे झाड़ू पोछा लगा रहा था. तब उन्होंने मुझसे पूछा, कि रात में सांप सांप क्यु चिल्ला रहा था? महादेव का भक्त भी है? औऱ सांप से डरता भी है?? ये कैसी भक्ति हुई?? गुरुजी, मैंने उस समय बाबा के प्रश्नो का कोई उत्तर नहीं दिया. या शायद मैं उस समय उत्तर देने की हालत मे था ही नहीं. रात के उस भयंकर स्वप्न से शायद तब तक मैं सदमे में था. इसलिए, स्नान इत्यादि कर मैं चुप चाप अपने नित्य कामों को निपटाने मे लगा रहा. औऱ मेरे मन में एक गिनती भी चल रही थी गुरुजी, कि एक दिन तो बीत गया अभी 6 दिन औऱ बाकी है. गुरुजी,  जैसे तैसे शाम हुई. औऱ मैं स्नान इत्यादि कर, सुगंधा द्वारा बतायी गयी विधी से सभी देवी देवताओं की पूजा अर्चना करने के बाद, योगिनी माता के मूल मंत्र का जाप कर रहा था. गुरुजी, मुझे अच्छे से याद है लगभग 8 बजे के आसपास मैंने जाप प्रारंभ किया था. औऱ शुरुआत मे तो मुझे कोई समस्या नहीं हुई. परंतु, रात्री मे लगभग एक बजे के आसपास अचानक
मंदिर औऱ मंदिर से लगे जंगलों के वृक्ष अपने आप हिलने लगे.
पहले तो मैंने ध्यान नहीं दिया गुरुजी, औऱ मन्त्रों के जाप पर ही ध्यान लगाए रखा. लेकिन फिर इतनी जोर जोर से देवी वृक्ष हिलाने लगी. की उनमे बैठे, हुए पक्षी शोर मचाते हुए अपने अपने घोंसले से उड़ गए. गुरुजी, उस समय जंगल में इतना शोर अचानक होने लगा था. की मैं चाह कर भी मन्त्रों का जाप नहीं कर पा रहा था. की तभी पुजारी बाबा अपने कमरे से बाहर निकल आए. औऱ मुझे बोले कि मन्त्रों का जाप चालू रख अन्यथा कोई नहीं बचेगा. ना तू जीवित बचेगा, ना मैं जीवित बचुगा, औऱ ना ये मंदिर बचेगा. गुरुजी, मुझे लगा कि पुजारी बाबा, यज्ञशाला के अंदर मेरा हौसला बढ़ाने आयेगे. लेकिन वो भगवान वीरभद्र के मंदिर मे जा कर छिप गए. गुरुजी, योगिनी माता ने जंगल औऱ मंदिर के वृक्षो को इतनी तेजी से हिलाना प्रारम्भ कर दिया था. की जैसे वो समस्त वृक्षो को जड़ सहित उखाड़ कर फेंक देगी. गुरुजी, थोड़ी बहुत आग जो मैंने जला कर रखी थी उजाले के लिए वो भी बुझ चुकी थी. औऱ उस स्थान पर एक दम अंधेरा था. तब गुरुजी, मैंने मंदिर के भीतर से बाबा वीरभद्र के घंटे की आवाज सुनी. जो, कि पुजारी बाबा जोर जोर से बजा रहे थे. तब गुरुजी, वहां का माहौल शांत हुआ. औऱ माता का क्रोध भी शायद शांत हो गया था. क्युकी फिर से एक बार उस जंगल में शांति थी.
गुरुजी, उतनी देर तो पुजारी बाबा ने मुझे कुछ नहीं कहा औऱ सीधे अपने कमरे में चले गए. औऱ मैं इस घटना के बाद रात भर सो नहीं पाया गुरुजी, सवेरे पुजारी बाबा ने मुझसे पूछा कि सच सच बता तू किस शक्ति की साधना कर रहा है? गुरुजी, मैं काफी परेशान था. औऱ मुझे अपनी परेशानी का समाधान चाहिए था. इसलिए मैंने उनको सब कुछ सच सच बता दिया. की, वो एक योगिनी शक्ति है, औऱ माँ चामुंडा के कुल से आती हैं. मैंने योगिनी माता का नाम सहित उनका पूर्ण परिचय सन्यासी बाबा को बता दिया. गुरुजी, सन्यासी बाबा ने मुझसे कहा, कि मूर्खता की भी कोई सीमा होती है. लाखो योगिनी शक्तियों मे से तुझे चामुंडा कुल की ही योगिनी मिली थी सिद्ध करने के लिए? औऱ वो भी, वो शक्ति जो साक्षात माँ के शरीर से उत्पन्न हुई थी?. गुरुजी, सन्यासी बाबा ने मुझसे कहा कि, अभी तो सिर्फ दो ही दिन हुए है. अभी तो पांच दिन औऱ बाकी है. औऱ अपनी चारपाई से उठ कर, सुगंधा का वही पसंदीदा गीत गाते हुए वहां से चले गए.
गुरुजी, दिल से कह रहा हू. तब तक मैं इतना थक चुका था. इतना ज्यादा परेशान हो चुका था. की अब मैं ये साधना नहीं करना चाहता था. सहसा, मुझे याद आया गुरुजी जब सुगंधा ने मुझसे बार बार पूछा था. की वाकई आप योगिनी माता की साधना करना चाहते है? औऱ मैंने सुगंधा को जवाब दिया था गुरुजी, की कुलदेवी की डरावनी मूर्ति को देखने के बाद तो योगिनी माता की ही साधना ठीक रहेगी, मेरे लिए. औऱ सुगंधा मेरा जवाब सुन कर मुस्करा दी थी. मुझे सुगंधा की हंसी को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए था. लेकिन तब मेरे पास औऱ कोई विकल्प नहीं बचा था गुरुजी.  गुरुजी, तीसरे दिन मैंने साधना प्रारंभ करने से पहले माता रानी से विनती की. (“कि माता ये जीवन आपका ही दिया हुआ है, आप अगर इसे छीन भी लेती है तो मुझे कोई दुख नहीं होगा. बस मरने से पहले मैं सुगंधा की ये इच्छा पूरी करना चाहता हू. सुगंधा चाहती थी, कि मैं ये साधना करू. इस साधना को पूर्ण करने मे मेरी मदद कीजिए माँ”).
गुरुजी माता रानी से इस प्रकार प्राथना कर, मैंने योगिनी माता के मन्त्रों का जाप प्रारम्भ किया. औऱ सच बताऊ गुरुजी, तो अब तक तो मैं डर के मारे ये भी भूल चुका था. की कितने जाप मेरे हो चुके है. औऱ कितना जाप मुझको करना है. मेरे दिमाग में उस समय सिर्फ महाशिवरात्रि दिख रही थी. जब मेरी ये साधना पूर्ण होनी थी. की तभी गुरुजी, मुझे आभास हुआ कि मेरे पीछे से कोई पैर पटकते हुए मेरी तरफ आ रहा है. गुरुजी ये पुजारी बाबा नहीं थे. क्युकी उनकी इतनी उम्र हो चुकी थी. की इतनी तेज वो पैर पटक कर नहीं चल सकते थे. गुरुजी, मुझे समझते देर नहीं लगी कि, ये औऱ कोई नहीं अपितु स्वयं योगिनी माता ही है. मैंने मन्त्रों का जप चालू रखा गुरुजी. हालाकि मैं पहले भी कई बार योगिनी माता के बालिका स्वरूप के दर्शन कर चुका था. लेकिन उस दिन गुरुजी, मेरा दिल इतनी जोर जोर से धड़क रहा था. जैसे मेरा अंत समय अब निकट ही हो. गुरुजी, माता पहले तो यज्ञशाला के चारो तरफ पैर पटक पटक कर चक्कर लगा रही थी. औऱ उसके बाद वो अचानक से एक स्थान पर खड़ी हो गई.
गुरुजी, मैं उनकी मौजूदगी, का आभास कर सकता था. वो यज्ञशाला के बाहर ही खड़ी थी. की तभी गुरुजी, मुझे अपने शरीर में कुछ परिवर्तन सा महसूस हुआ. मेरा शरीर हल्का होने लगा था गुरुजी, औऱ मैं जिस मुद्रा मे बैठ कर साधना कर रहा था. उसी मुद्रा में अपने आसन से ऊपर उठने लगा था. मानो जिस स्थान पर मैं बैठा था. वहाँ पर प्रथ्वी का गुरुत्वाकर्षण बल ही समाप्त हो गया हो. अब गुरुजी मैं औऱ बर्दास्त नहीं कर सकता था. मन में चल रहे मेरे जाप को मैंने रोका औऱ ये सोचने लगा कि मदद के लिए अब सबसे पहले किसको पुकारु? सन्यासी बाबा को या सुगंधा को??
की तभी गुरुजी, माता यज्ञशाला के भीतर आ गई औऱ मुझे गर्दन से पकड़ कर हवा मे ऊपर उठा लिया. औऱ अब मैं ये समझ गया था गुरुजी, कि ये मेरा अंतिम समय है. गुरुजी, मैंने अपनी आंखे खोली औऱ जो माता का चेहरा मैंने देखा है. उसका वर्णन करने की अनुमती मुझको नहीं है. सुगंधा ने मना किया था. बस इतना ही कह सकता हू गुरुजी की वो बहुत डरावना चेहरा था. गुरुजी मैंने नीचे देखा तो मेरे पैर हवा मे थे. औऱ माता ने दूसरे हाथ में एक बड़ा सा चमकता हुआ “फरसा” पकड़ रखा था. औऱ गुरुजी मेरे होश तब उड़ गए जब मैंने खुद को आसन पर आँख बंद करके बैठा हुआ देखा. इतने मे गुरुजी पुजारी बाबा अपने कमरे से बाहर आए. औऱ कुछ देर तक यज्ञशाला की तरफ देखते रहे. मैंने किसी तरह उनको बुलाने की कोशिश भी की गुरुजी. माँ के हाथ की पकड़ से, लाख छूटने की कोशिश की. लेकिन मैं छूट नहीं पाया. पुजारी बाबा मेरी या माँ की तरफ देखने की बजाय मेरे निर्जीव शरीर को आवाज दे रहे थे. मेरे पास आने के बजाय वो मेरे मृत शरीर को छू कर हिलाने का प्रयास कर रहे थे. कभी वो वीरभद्र मंदिर की तरफ हाथ जोड़ते तो कभी ऊपर आकाश की तरफ. औऱ बार बार यही बोलते की “ले गई योगिनी शक्ति बच्चे को अपने साथ”, “आज ही समझाया था कि इतनी खतरनाक शक्ति की साधना मत कर, औऱ आज ही ले गई वो शक्ति”.
गुरुजी, हैरानी की बात ये थी. की मुझे उनकी हर बात सुनाई दे रही थी. लेकिन ना तो वो मुझे देख पा रहे थे औऱ ना ही मुझे वो सुन पा रहे थे. गुरुजी ये सब देखने के बाद मेरे भीतर से सभी प्रकार का डर खत्म हो गया. औऱ माता के डरावने चेहरे औऱ उनकी भयंकर लाल रक्त जैसी आँखों की तरफ देख कर, मैंने उनको हवा मे लटके हुए ही प्रणाम किया. औऱ मुझे मेरे डर से हमेशा के लिए आजाद करने के लिए उन्हें धन्यवाद कहा. गुरुजी माता ने मेरे आज्ञा चक्र के स्थान पर अपनी तर्जनी उंगली रखी. जिसके कारण मैं थोड़ा बेहोश सा हो गया. औऱ जब मैंने आंखे खोली तो मैं इतने सुन्दर स्थान पर था. जिसकी भव्यता औऱ जिसकी सुंदरता का वर्णन शब्दों मे नही किया जा सकता. उस स्थान की सुंदरता औऱ पवित्रता को बस मेहसूस ही किया जा सकता है.
गुरुजी, मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा जब मैंने अंधक को अपनी तरफ आते देखा. औऱ सुगंधा को उसके भव्य श्रंगार मे जब मैंने देखा तो बस देखता ही रह गया. सुगंधा ने मुझसे कहा, कि कैसा लगा वापस घर आ कर? मैंने कहा अच्छा लगा सुगंधा. बहुत अच्छा लगा. गुरुजी सुगंधा मुझसे बोली कि मैं आपसे थोड़ी नाराज भी हू. मैंने पूछा कि मैंने क्या किया है? तो सुगंधा ने जवाब दिया गुरुजी की, ऐसे करते है तपस्या?, जैसे आप कर रहे थे? आपकी तपस्या मे भक्ति औऱ भावना तो है ही नहीं? . सिर्फ डर औऱ बेचैनी ही है. गुरुजी सुगंधा को मैंने जवाब दिया कि नहीं, अब नहीं डरूगा मैं. अभी भी शिवरात्री को चार दिन बाकी है सुगंधा. मैं बाकी बची हुई साधना पूर्ण भक्ति औऱ श्रद्धा के साथ करूगा. लेकिन सुगंधा एक सवाल है मेरा, आपने तो कहा था कि योगिनी माता शिवरात्री की रात अपने मूल स्वरूप मे दर्शन देगी. लेकिन उनके दर्शन तो मैं कर चुका हू अभी थोड़ी देर पहले मैंने उनके दर्शन किए. गुरुजी, सुगंधा ने बताया कि वो उनका मूल स्वरूप नहीं है. उनका मूल स्वरूप इतना सुन्दर है कि, संसार की समस्त अप्सराओ का सोंदर्य भी उनके सामने फीका पड़ जाये. गुरुजी, मैंने सुगंधा से पूछा क्या आगे की साधना मुझको यहा करनी है? गुरुजी, सुगंधा ने बताया कि नहीं. उसी यज्ञशाला मे आपको अपनी बची हुई तपस्या पूर्ण करनी होगी. “समय बहुत कम बचा है. आपके पास सिर्फ एक दिन का ही समय है “.
गुरुजी सुगंधा से मैं कुछ बोल पाता उसने मेरे आज्ञा चक्र पर तर्जनी उंगली रख कर मुझे शांत कर दिया.
गुरुजी, सबसे पहले तो मुझे आभास हुआ कि मेरी सासें चल रही है, उसके बाद मुझे मेरे हाथ औऱ पैरों का अनुभव हुआ. मेरे सिर मे काफी दर्द हो रहा था गुरुजी. औऱ मुझे काफी देर तक उल्टियां भी हुई. यहा तक कि आंखे खोलने के बाद मुझे थोड़ी देर तक चीजे धुंधली सी दिखाई दे रही थी. औऱ मैंने देखा कि सन्यासी बाबा मेरी तरफ घूर घूर कर देख रहे थे. गुरुजी जब मुझको पूरी तरह होश आया तब सन्यासी बाबा ने मुझको बताया कि तू पिछले तीन दिन से इसी प्रकार इसी स्थान पर बैठा था. परंतु गुरुजी मेरे हिसाब से मैं एक या दो मिनट ही सुगंधा से उस स्थान पर मिला था. इसलिए गुरुजी मैंने अपने phone पर date check की. जिसमें वाकई तीन दिन बाद की date लिखी हुई थी.
गुरुजी, मैंने पुजारी बाबा को धन्यवाद कहा, कि अच्छा किया आपने बाबा. मुझे मरा हुआ समझ कर आपने मेरा अंतिम संस्कार नहीं किया. गुरुजी, इस पर सन्यासी बाबा ने कहा कि ये जो सैकड़ों मंडल औऱ सैकड़ों कलश की स्थापना, तुझे उस देवी ने करना बताया था. ये सुरक्षा घेरा किसी देवीय शक्ति के लिए नहीं, बल्कि इस म्रत्यु लोक के प्राणियों से तेरी रक्षा के लिए था. तेरे समाधी मे जाते ही. इन सभी मंडलों से तथा कलशो से एक अजीब प्रकार की धीमी सी आवाज औऱ ऊर्जा निकल रही थी. औऱ वो कंपन औऱ तरंगे कहीं औऱ नहीं बल्कि यज्ञशाला मे तेरे आसन की तरफ जा रही थी. गुरुजी बाबा ने मुझसे कहा कि बेटा पुराने समय मे ऋषि मुनि भी इसी प्रकार समाधी मे जाया करते थे. ये विद्या अति प्राचीन है. उनके शरीर के चारो तरफ विद्युत प्रवाह छोड़ने वाले सुरक्षा घेरे हुआ करते थे. ताकि उनके शरीर को किसी जंगली जानवर से किसी प्रकार की हानी ना पहुचे. औऱ इस प्रकार वो सालो साल तक समाधी मे लीन रहा करते थे. गुरुजी, पुजारी बाबा ने कहा कि बेटा ये विद्या मुझको भी सीखनी है. मैंने कहा बाबा, मुझे खुद नहीं आता ये सब. हाँ लेकिन मेरे पास एक चार्ट है. जिसमें एक drawing के माध्यम से मुझे उन देवी ने समझाया था, कि कितनी दूरी पर कौन सा कलश बाहर के मंडल पर रखना है. औऱ कितनी दूरी पर अंदर के मंडल पर रखना है. अगर मुझे अनुमती मिलेगी तो अगली बार मैं जब भी आऊंगा वो चार्ट आपके लिए लेकर आऊंगा.
गुरुजी अगले दिन मैंने, दिन से ही साधना प्रारम्भ कर दी थी. क्युकी वो आखिरी दिन था गुरुजी, मेरी साधना का. गुरुजी पिछले तीन दिनों से मैंने कुछ भी नहीं खाया था. लेकिन फिर भी मुझे एक भी कमजोरी नहीं लग रही थी. औऱ साधना के आखिरी रोज मेरा मनोबल दुगुना था. शाम होने के बाद रात्रि होने पर. मैं जप मे मगन था. की तभी मुझे एक बहुत ही प्यारी सी आवाज आयी. पुत्र!, मैंने ध्यान नहीं दिया गुरुजी औऱ आंखे बंद करके अपना जप करता रहा. की तभी मुझे दोबारा आवाज आयी. पुत्र आंखे खोल!. गुरुजी मेरे सामने एक तपस्विनी के रूप मे लगभग 20 वर्ष की योगिनी माता बैठी हुई थी. जिनके शरीर से निकल रहा तेज, जिनके चेहरे से निकल रहे तेज का वर्णन मैं नहीं कर सकता. माता मेरी तरफ देख कर मुस्कुरा रही थीं गुरुजी. औऱ मैं पहली बार उनके मूल स्वरूप के दर्शन करके सब कुछ भूल चुका था गुरुजी, इस संसार को भी भूल चुका था यहा तक कि अपने आप को भी भूल चुका था.
गुरुजी, मैंने माता से किसी भी प्रकार का वरदान नहीं मागा, बस आशिर्वाद मांगा की. सुगंधा की जितनी भी अपेक्षायें है मुझसे. मैं उन्हें पूरा कर सकू. औऱ हमेशा माँ भगवती औऱ महादेव का आशिर्वाद प्राप्त करने के योग्य बना रहा हू. लेकिन फिर भी गुरुजी, उन्होंने एक आशिर्वाद दिया मुझको. जिसके बारे में बात करने की अनुमती मुझको नहीं है. औऱ आशिर्वाद देकर योगिनी माता अंतर्ध्यान हो गई गुरुजी. औऱ इस प्रकार सुगंधा के बताये अनुसार मैंने महाशिवरात्रि की रात योगिनी माता के मूल स्वरूप के दर्शन किए. बहुत कष्ट मिला मुझे इस साधना मे, काफी तकलीफें झेलनी पडी, जंगल मे भी रहना पड़ा, लकड़ी औऱ उपले से रोटी बनाते समय कई बार मेरा हाथ भी जला, औऱ कुए से पानी भरते भरते मेरी दोनों हथेलियां भी घायल हो गई थी. लेकिन अंततः माता के दर्शन करने के बाद, उनका आशिर्वाद प्राप्त करने के बाद. मेरा सारा दर्द औऱ तकलीफ गायब हो चुकी थी.
गुरुजी, पुजारी बाबा ने मेरे साधना प्रारंभ करने से पहले ही गांव वालों को अगले 7 दिनों तक मंदिर ना आने की हिदायत दे दी थी. इसलिए मैं पिछले सात दिनों से उन लोगों से मिल नहीं पाया था. औऱ आखिरी बार मैं गांव के सरपंच औऱ मंदिर का निर्माण करवाने वाले परिवार से मिला औऱ उन्हें एक बार फिर से धन्यवाद कहा मेरी इतनी सहायता करने के लिए. गुरुजी, जाने से पहले मैं आखिरी बार पुजारी बाबा से भी मिला. औऱ मैंने उनसे पूछा कि, बाबा जब से मैंने आपको पहली बार देखा है, तब से ही कुछ प्रश्न पूछना चाहता था आपसे, आपको कैसे पता चला था?, कि मेरे साथ यहा एक अप्सरा औऱ एक काले रंग का भेड़िया भी आएगा?? तो उन्होंने मुस्कराते हुए गुरुजी, मंदिर की तरफ इशारा किया. औऱ बोले कि, भगवान वीरभद्र उन्हें सब कुछ बता देते है. उन्होंने कहा कि, सपने मे मुझे मंदिर से आवाज आती है. औऱ मंदिर के अंदर बाबा साहब के अलावा तो औऱ कोई है नहीं. तेरे आने से पूर्व ही मुझे तेरे बारे में सारी जानकारी मिल गई थी.
गुरुजी, मैंने पुजारी बाबा को देखते हुए मन मे सोचा कि, ये भी एक सिद्धि की अवस्था है. जहा पर इंसान साधना करते करते पवित्रता औऱ अपवित्रता के भेद से ही मुक्त हो जाता है. मैंने उनसे आखिरी सवाल पूछा गुरुजी, कि बाबा मेरे जाने के बाद आपको रोटी कौन बनाएगा? तो इस पर पुजारी बाबा ने मंदिर की तरफ इशारा करते हुए जवाब दिया, गुरुजी की तेरे आने से पूर्व जो रोटी देता था वही आगे भी देगा. कोई ना कोई गांव वाला रोटी दे ही जाता है बेटा. नहीं तो इतना बड़ा जंगल है, मेरे प्रभु की कृपा से कुछ ना कुछ खाने को मिल ही जाता है.
गुरुजी, सन्यासी बाबा ने मुझे निर्देश दिए. की इस यज्ञशाला को औऱ बीचो बीच बने चबूतरे को मैं कभी नहीं हटने दूँगा. इस स्थान पर माँ चामुंडा की अंश शक्ति प्रकट हुई थीं. तू प्रयास करना, बहुत बड़ा नहीं तो छोटा सा ही एक मंदिर इस स्थान पर शीघ्र अतिशीघ्र बनवा कर, उनकी स्थापना यहा कर देना. औऱ गुरुजी, सन्यासी बाबा की आंखे भर आयी थी ये कहते हुए कि, बाबा वीरभद्र का आशिर्वाद तो पूरा जीवन मिला मुझे, अब अंतिम समय मे एक माता की सेवा करने का भी अवसर प्राप्त हो जाएगा. गुरुजी सन्यासी बाबा ने ये कहते हुए मेरा बायां हाथ पकडा की, आते रहना बेटा. इस स्थान को औऱ मुझे भूल मत जाना. तूने मेरी वाकई बहुत सेवा की. औऱ ये कहते कहते गुरुजी, उन्होंने मेरी कलाई पर अपने नाखुन से हमला कर दिया.
गुरुजी जब तक मैं अपना हाथ उनसे छुड़ाता, उन्होंने दो तीन बार अपने नाखुन से मेरी कलाई काट दी थी. गुरुजी cut ज्यादा तो नहीं था. लेकिन खून बहुत निकल रहा था. औऱ मुझे ऐसा लग रहा था कि शायद मेरी नस कट गयी है. क्युकी खून बंद होने का नाम नहीं ले रहा था. औऱ गुरुजी, सन्यासी बाबा को मैं कुछ बोल पाता उससे पहले ही वो सुगंधा का वही पसंदीदा गीत गाते हुए पता नहीं जंगल मे कहा विलीन हो गए. गुरुजी वहाँ से नजदीकी हॉस्पिटल 25 km की दूरी पर था. औऱ मुझे बेहोश होने से पहले वहां पहुचना था. क्युकी मेरी नस वाकई कट गयी थी. तभी मुझे सुगंधा की खुशबु आयी गुरुजी. औऱ सुगंधा के आते ही मैंने कहा, सुगंधा बाबा ने मेरा हाथ काट दिया. ये व्यक्ती वाकई सनकी है.
गुरुजी, सुगंधा ने अपनी साड़ी से टुकड़ा फाड़ कर मेरी कलाई पर लपेट कर अच्छे से बाँध दिया औऱ मुझसे बोली कि ऐसा नहीं कहते, उन्होंने आपकी सेवा से प्रसन्न होकर आपको आशीर्वाद दिया है. गुरुजी मैंने सुगंधा को कहा था, कि ये कैसा आशिर्वाद है?, किसी का हाथ ही फाड़ दो?. गुरुजी सुगंधा ने मुझको बताया कि, उन्होंने अपनी सिद्धि का एक अंश आपको आशिर्वाद रूप मे दिया है. अब आपको किसी सर्प से डरने की जरूरत नहीं. किसी सर्प का विष अब आपको नहीं लगेगा. औऱ आप अपनी कुल देवी के दर्शन किए बिना ही लौट रहे थे? गुरुजी मैंने सुगंधा से कहा कि कुलदेवी का पहाड़ यहा से 15 km दूर है सुगंधा, इतना पैदल चलने की हिम्मत नहीं है मुझमे. तो सुगंधा ने कहा कि आप इस मुख्य मार्ग की बात कर रहे है. लेकिन अगर हम लोग जंगल के रास्ते जाएंगे तो मात्र 4 km मे ही पर्वत तक पहुच जाएंगे.
गुरुजी, मैं, सुगंधा औऱ अंधक जंगल के रास्ते डोगरा माता के स्थान पर पहुचे. गुरुजी, रास्ते पर चलते चलते ही मैंने सुगंधा को अपने सभी अनुभवों के बारे में बताया. औऱ मैंने महसूस किया गुरुजी, मेरी कलाई का घाव लगभग पूरी तरीके से सूख चुका था. वो देखने मे ऐसा लग रहा था कि जैसे हफ्तों पहले मुझे वो घाव हुआ हो. उसमे dark brown colour की लेयर पड़ चुकी थी. परंतु असलियत मे सिर्फ आधे घंटे पहले ही मैं खून से नहाया हुआ था. औऱ डोगरा माता के पर्वत पर पहुच कर मैंने उनका भी आशिर्वाद लिया. औऱ उसके बाद मैं अपनी working city वापस आया गुरुजी.
गुरुजी, पिछले पत्र मे मैने एक “साधना” बताने के लिए कहा था. तो वो साधना मैं अगले पत्र मे जरूर भेजूंगा. गुरुजी, साधना वैदिक है औऱ इसलिए थोड़ी सी लंबी भी है. इस पत्र में अगर साधना को भी शामिल कर्ता तो शायद ना तो ढंग से अनुभव बता पाता औऱ ना ही साधना विधी पूरी बता पाता. इसलिए अगले पत्र मे, श्री विद्या के पश्चिम द्वार पर विराजने वाली देवी, जो कि माँ चामुंडा का आंतरिक अंश भी कहीं गई है. इसके अलावा “सिद्ध कुंजीका”, आसान भाषा मे कहे तो “दुर्गा सप्तशती खोलने की चाभी” के भीतर भी यही देवी विराजमान होती हैं. औऱ गुरुजी सुगंधा के मुताबिक इतनी बड़ी महाशक्ति का आशिर्वाद जब साधक को प्राप्त हो जाता है. तो सिद्धियां तो मिलती ही है. साधक का हर प्रकार से कल्याण भी हो जाता है.
गुरुजी, अगले पत्र में माता का सम्पूर्ण परिचय औऱ उनको प्रसन्न करने की वैदिक विधी लेकर आऊंगा. सभी दर्शकों को प्रणाम करता हू गुरुजी. औऱ आशिर्वाद की कामना करते हुए आपके चरणों को भी स्पर्श करता हू. औऱ अपना आज का पत्र यही पर समाप्त करता हू 
माता रानी की जय हो 
माता रानी सबका कल्याण करे 
खुशबू वाली सुगंधा का सच्चा अनुभव भाग 19
https://youtu.be/yKV9AcGU3zw
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