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खुशबू वाली सुगंधा का सच्चा अनुभव भाग 4

प्रणाम गुरुजी
गुरुजी मेरा ये चौथा पत्र है. पिछले तीन पत्र मैं आपको भेज चुका हू. जो कि इस प्रकार के थे. पत्र 1-खुशबु वाली सुगंधा का सच्चा अनुभव :- जिसमें मैंने बताया था, कि किस तरह सुगंधा बचपन से ही मुझको अपनी मौजूदगी का एहसास करवाती थी . पत्र 2-खुशबु वाली सुगंधा का सच्चा अनुभव भाग 2:- जिसमें सुगंधा ने मुझको शिव और शक्ति एक है, एक शिव स्तोत्र द्वारा बताया, कैसे सुगंधा ने मुझे मरने से बचाया, और मेरे जीवन को कैसे हर प्रकार के नशे से मुक्त कर, हमेशा सत्य बोलने का वचन मांगा. 
पत्र 3-खुशबु वाली सुगंधा का सच्चा अनुभव भाग 3:- जिसमें सुगंधा ने मुझको बताया कि मुझको रोज नहाना किस तरह चाहिए , और होली 10march 2020 को मेरी एक मनोकामना भी सुगंधा ने पूरी की. 
गुरुजी पत्र 1aur पत्र 2 मे बहुत अछे कमेंट्स आए. और ये जान कर खुशी भी हुई कि लोग अभी भी धर्म कर्म, पूजा पाठ में विश्वास रखते है. और लोग मुक्ति का मार्ग खोजना चाहते है. कई साधकों ने कहा कि आपको सुगंधा कुछ भी बताये जीवन को सुधारने के लिए तो आप हमसे भी वो जानकारी साझा करे. तो आज के पत्र मे कोशिश करूंगा गुरुजी जो कुछ थोड़ा बहुत सुगंधा से सीख पाया हू. आपके माध्यम से दर्शकों को बताने की कोशिश करूगा . वही एक साधक जी ने ये प्रश्न भी किया है? की क्या सुगंधा से अनुमती मागी थी आपने, अनुभव बताने से पहले.? तो जी हाँ गुरुजी मैं इस चैनल के माध्यम से अपने अनुभव बताता हू, ये बात सुगंधा को मालूम है. और अगर मेरे अनुभवों को देख कर अगर एक भी साधक माँ भगवती के थोड़ा और करीब पहुच जाता है, तो सुगंधा को बेहद खुशी मिलेगी. कुछ बातों के लिए सुगंधा ने मुझे पहले ही मना किया है. बताने से. जिसका मैं पालन karta हू. 
मैंने सुगंधा से जानने की कोशिश की थी. क्यु बोल रही हो ऐसा? क्यु इन कुछ बातों को मुझे किसी को नहीं बताना चाहिए? . जब तुम मेरे साथ हो तो क्या मुझे किसी से भी डरने की जरूरत है.?? सुगंधा ने हंसते हुए कहा. ये मैं अपनी सुरक्षा या आपकी सुरक्षा के लिए नहीं बोल रही. अपितु भविश्य मे जो माँ भगवती की अराधना आपको करनी है, और जिसके लिए मैं आपको तैयार कर रही हू, उस आराधना की सुरक्षा के लिए बोल रही हू. मृत्यु लोक मे देव शक्तियों के अलावा कई तमगुनी और राक्षसी शक्तियां भी विचरण करती है. और दुर्भाग्य वश मृत्य लोक के कई मनुष्य इन शक्तियों की उपासना करते है. कहीं आपकी आराधना के आखिरी चरण मे कोई विघ्न ना आ जाए. और माँ आदिशक्ति नाराज ना हो जाए. इसलिए बोल रही हू. माँ भगवती के आशिर्वाद से मुझमे इतना सामर्थ्य है कि मेरे रहते तुमको कोई भी बुरी शक्ति छू भी नहीं सकती. मेरे सर पे हाथ फेरते हुए सुगंधा ने मुझसे कहा. 
Guruji aapko प्रणाम करके मैं अपने आज के पत्र को शरू करता हू.गुरुजी सुगंधा की सारी बातें क्युकी संस्कृत मे होती है. तो उसकी बातों को हिन्दी मे translate करके मैं लिख रहा हू. लेकिन बहुत से ऐसे शब्द है मुझे जिनकी हिन्दी नहीं मिली. तो उन शब्दों को उसी तरह लिख दिया है मैंने. . गुरुजी शनिवार और रविवार को मेरी office की छुट्टी होती है. तो मैं आराम से 9 या 10baje तक सो कर उठता था. और सबसे पहले सुगंधा ने मेरी इसी आदत को छुड़वाया .
 सुगंधा ने मुझको रोज प्रति दिन ब्रह्ममुहूर्त  मे उठने की आदत डलवाई. पिछले पत्र मे मैने बताया था कि भोर होते ही 4 से 5 के बीच मे सुगंधा पूजा करती है , और घंटी और शंख बजा कर रोज मुझको उठा देती है. लेकिन फिर एक दिन मैंने सुगंधा से पूछा कि ब्रह्म मुहूर्त मैंने भी बहुत सुना है. लेकिन ऐसा क्या खास है इस समय मे जब मुझे इसी time उठना चाहिए. 
गुरुजी तब सुगंधा ने अपनी मीठी और मधुर आवाज मे मुझको चार प्रकार की संध्या देवियों के बारे मे बताया. सुगंधा ने कहा कि आपको ब्रह्म मुहुर्त जानने के लिए पहले संध्या देवियों को समझना होगा. 
सुगंधा ने बताया :- क्युकी संध्या देवी प्रातःकाल मे ब्रह्म शक्ति के रूप मे मृत्यु लोक के आकाश और वायु मंडल मे विचरण करती है. उनकी अंगकांति यानी साड़ी लाल रंग की होती है. वो चार मुख एवं चार भुजाएं धारण करती है. उनके दाहिने हाथ मे कमल और स्फटिक की माला है. तथा बाये हाथ मे दंड और कमंडल शोभा पाते है. इसीलिये मृत्यु लोक के सभी मनुष्यों को ब्रह्म मुहूर्त मे ही उठना चाहिए. और संध्या देवी का आशिर्वाद प्राप्त करना चाहिए. जिससे कि मनुष्य को सही मार्ग दर्शन और जीवन मे गम्भीर परिस्थितियों मे भी लड़ने के लिए शारीरिक और मानसिक बल प्राप्त हो सके 
दूसरी संध्या :- मध्याह्न काल मे वैष्णवी शक्ति के रूप में संध्या विचरण करती है. वे गरुड़ की पीठ पर कमल के आसान पर विराजमान होती है. उनकी अंगकांति यानी साड़ी स्वेत (सफेद) रंग की है. वो बाये हाथ मे चक्र धारण करती है. और दायें हाथ मे गदा और अभय की मुद्रा से सुशोभित है. 
तीसरी संध्या :- सायंकाल मे संध्या देवी रुद्र शक्ति बनकर म्रत्यु लोक के वायु मंडल मे विचरण करती है. और वृषभ की पीठ पर बने कमल के आसान पर बैठती है. उनके तीन नेत्र है. वो मस्तक पर अर्ध चंद्र से विभूषित हैं. दाहिने हाथ मे त्रिशूल और रूद्राक्ष धारण करती है. और बाये हाथ मे अभय की मुद्रा और शक्ति दंड सुशोभित है.
ये संध्याये कर्मों की साक्षी है. अपने आप को उनकी प्रभा से अनुगत समझो. सुगंधा ने मेरे सर पे हाथ फेरते हुए कहा. सुगंधा मेरी पीठ के पीछे बैठ कर ये सब बोल रही थी. और मैं दूसरी तरफ़ लेट कर ये सब लिख रहा था. फिर मैंने पूछा चौथी संध्या.??
सुगंधा ने कहा चौथी संध्या जो केवल ज्ञानी के लिए है. उनका आधी रात के बाद मे बोध देने वाला साक्षात्कार होता है. ये तीन संध्याये हृदय, बिंदु और ब्रम्हा मे स्थित है. चौथी संध्या का कोई रूप नहीं है. वो परम शिव मे विराजमान होती है. क्युकी शिव सबसे परे है. इसीलिए इन्हें परमा संध्या भी कहा जाता है.और तभी से गुरुजी मैं रोज ब्रम्हा मुहुर्त मे उठता हू. और उठने के बाद सुगंधा के ही बताये हुए तरीको से नहाने की कोशिश भी करता हू. स्नान करने के कई तरीके सुगंधा ने मुझको सिखाये थे. जो कि मैं पिछले पत्र मे यानी तीसरे भाग मे सभी दर्शकों को बता चुका हू. 
Guruji सवेरे उठना और स्नान करना तो मैं सीख चुका हू. लेकिन एक और जरूरी बात है जो मुझे लगता है साधक हो या फिर कोई आम आदमी जैसे कि मैं. सब को जरूर follow करनी चाहिए. और वो है योग. सुगंधा ने मुझको योग की परिभाषा जिस प्रकार समझाई है. मैं आपके द्वारा धर्म रहस्य channel के सभी दर्शकों को बताने की कोशिश करता हू. 
सुगंधा ने अपनी मीठी मधुर आवाज मे मुझको कहा था. हर मनुष्य को योग के द्वारा ही अपना जीवन यापन करना चाहिए. एक योगी पुरुष को शास्त्रों ने नरोत्तम कह कर पुकारा है. ऐसा मनुष्य कभी नर्क नहीं जाता. अपितु, देव, दिक्पाल, गंधर्व या यक्ष योनियों को प्राप्त होता है. जहा अपने इष्ट को प्राप्त करना और आसान होता है. वहीं पापी मनुष्य शास्त्र को नहीं मानते और ना ही किसी भी नियम का पालन करते है. ऐसे मनुष्य को नाना प्रकार के नरकों मे कस्ट भोगने पड़ते है. और उसके बाद भी 84lakh योनियों मे भटकना पड़ता है. और ये भटकना भी किसी नर्क से कम नहीं. सुगंधा ने मुझे कुछ नरकों के नाम भी बताये जैसे 1) तमिस्त्र  2) अंध मिस्त्र 3) रोवर 4) महा रोवर  5)कुम्भीपाकम 6) काल सूत्र 7)आसिप वन 8) सकूर मुख 9)अंध कूप 10) मिभोजन 11)संदेश 12)तप्त सूरमी 13) वज्रकटक सतमली 14) बैतरनी 15) पूयोध 16)प्राण राधे 17)वीरासन 18) लाल भक्ष 19) सारये यादन 20) अथ: पान 21) क्षर कर्दम 22)रक्षोगण भोजन 23) अविचि 24) शूलपोत्र 25) दंद शूक 26) अवनिरोधन 27)पर्यावर्तन  28)सूचीमुख…. ? मैंने सुगंधा को कहा बस करो, रहने दो मुझे नाम सुन कर ही डर lag रहा है. ये घोर नर्क बताने के बाद सुगंधा ने कुछ नर्क कुंड के बारे मे भी बताया… जिनके मुख्य यम दूतों के बारे मे भी सुगंधा ने मुझको बताया. और उनके बारे मे जान कर मेरे रोंगटे खड़े हो गए थे गुरुजी. फिर सुगंधा ने मेरे कंधे पे हाथ रख कर कहा. तुम परेशान मत हो. मैं वहां तुमको कभी नहीं जाने दूँगी. फिर सुगंधा ने एक एक करके योग के 8 प्रकार मुझको बताये. जो इस प्रकार है. यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, ध्यान, धारणा और समाधी. मैं एक एक करके इन सभी के बारे मे बताता हू जैसा सुगंधा ने मुझको बताया था. 
1 यम :-यम के पांच प्रकार है :-  अहिंसा :- शब्दों, विचारो या कर्मों से किसी को हानि न पहुंचाना.  सत्य :- विचारो और जीवन मे सत्यता.  अस्तेय :- चोरी ना करना.  ब्रह्मचर्य :- चेतना को ब्रह्म ज्ञान मे स्थिर रखना. और ये तभी सम्भव है जब हम अपनी इंद्रियों को संयम मे रखे.  अपरिग्रह :- आवश्यकता  से अधिक संचय ना करना. 
2 नियम :-नियम के भी पांच प्रकार है. – शौच :- शरीर और मन की शुद्धि. – संतोष :- संतुष्ट और प्रसन्न रहना. – तप :- स्वयं से अनुशासित रहना. – स्वाध्याय :- आत्मचिंतन करते रहना. – ईश्वर प्रणिधान :- ईश्वर पर पूर्ण श्रद्धा रखना.
3 आसन :- योगासनों के द्वारा शारीरिक नियंत्रण 
4 प्राणयाम :- सास संबधित खास तकनीकों के द्वारा प्राण पर नियंत्रण. 
5 प्रत्याहार :- प्रत्याहार का अर्थ होता है, जब इंद्रियाँ विषयो को छोड़ कर विपरीत दिशा मे अर्थात सत्य की ओर मुड़ जाए. इस अवस्था को प्रत्याहार कहते है. 
सुगंधा ने मेरे सर पे हाथ फेरते हुए कहा. अब इसके आगे से एक योगी की परीक्षा शुरू होती है. और ये इस बात पर निर्भर करता है कि पिछले पांच नियमों का उसने कितनी कठोरता से पालन किया है. 
6 ध्यान :-  सुगंधा ने बताया कि किसी बड़े उदेश्य, या अपने इष्ट की प्राप्ति मे अपना पूरा जीवन ही समर्पित कर देने की आहुति को ही ध्यान कहते है. ध्यान किसी भी मनुष्य के जीवन मे घटने वाली कोई घटना नहीं हो सकता. और ना ही कुछ समय की क्रिया को हम ध्यान कह सकते. 
ध्याता जब अपने ध्येय की प्राप्ति के लिए एक चित्त होकर, अपने पूरे जीवन को ही जब परब्रम्ह परमेश्वर के चरणों मे समर्पित कर देता है. चित्त की उसी अवस्था को शास्त्रों ने ध्यान कहा है. 
7 धारणा :- ध्यान मे पारंगत होने के बाद एक योगी इस पड़ाव पर पहुंचता है. चित्त को किसी एक विचार मे बाँध लेने की प्रक्रिया को ही धारणा. लेकिन ये इतना आसान नहीं. मन बहुत चंचल होता है. सुगंधा ने मेरे कान मरोड़ कर कहा. तुमसे भी ज्यादा चंचल. मैंने पूछा तो फिर इस चंचल मन को कंट्रोल करने का कोई तो फार्मूला होगा. 
Yogi को चाहिए कि वो बस अपने प्रभु की लीलाओं मे खोया रहे, भजन करता रहे. इस संसार मे रेहता हुआ भी, सारे कार्य करता हुआ भी. अपने इष्ट का सुमिरन karta रहे. और अपना सर्वस्व इष्ट के चरणों मे समर्पित कर दे. उसके बाद ही मन एक चित्त हो पाता है. और इसे ही परम धारणा कहते है. 
8:- समाधी :- यह ध्यान की बहुत ही गहरी अवस्था है. मेरे बालो को सहलाते हुए सुगंधा ने कहा कि इस अवस्था मे योगी समस्त प्रकृति, समय या काल, सभी प्रकार के बंधनों से मुक्त हो जाता है. साधक का शरीर तो इसी म्रत्यु लोक मे रेहता है परंतु उसकी चेतना सभी बंधनों से मुक्त हो जाती है. 
उसके बाद सुगंधा ने मुझसे कहा. की जब कोई मनुष्य योग के ईन आठ द्वारों (अर्थात यम, नियम, आसन, प्राणयाम, प्रत्याहार, ध्यान, धारणा, और समाधी) को पार करके एक योगी बन जाता है. तब उसके लिए कोई भी आराधना या सिद्धि प्राप्त करना कोई बहुत मुश्किल कार्य नहीं होता.
 गुरुजी दूसरे और पहले पत्र में कुछ दर्शकों के comment आए . Korona के बारे में सुगंधा से पूछिये. और उसका समाधान भी. सुगंधा ने korona के बारे मे जो कुछ बतलाया है. हिन्दी में ट्रांसलेट करके मे आपके माध्यम से सभी अपने भाइयों को बतलाता हू. सुगंधा ने कहा :-सादा जीवन-उच्च विचार के विपरीत चलने से, प्राचीन पवित्र परंपराओं को नहीं अपनाने  से, शुद्धिकरण, पवित्रता का ध्यान न रखने के कारण सूर्यदेव संक्रमित होकर रोग-विकार,महामारी उत्पन्न करने लगते हैं… सूर्य का प्रकोप है-कोरोना. 

तन-मन, आत्मा और विचारों को शुद्ध-पवित्र बनाए रखने से शरीर स्वस्थ्य-तंदुरुस्त बना रहता है। भगवान भास्कर की कृपा बनी रहती है। शास्त्रों में सूर्य को इसी वजह से स्वास्थ्य प्रदाता कहा है। सृष्टि में सभी चराचर जीव-जगत की आत्मा सूर्य ही है। ‘सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुषश्च‘ सूर्य को आत्मा की ऊर्जा मानने की पुष्टि करता इस मंत्र में सूर्य को स्थावर-जंगम पदार्थों की आत्मा माना गया है।सूर्य की प्रसन्नता से हम जीवेमशरदः शतम्‌ सौ वर्ष तक स्वस्थ्य रहकर,100 साल जीवित रह सकते हैं।बोलने-सुनने की प्रार्थना भी ईश्वरस्वरूप सूर्य से की जाती है। यदि ऊर्जा-ऊष्मा हमारे अंदर सुरक्षित रह सके, तो हम चार सौ वर्ष तक निरोगी होकर जीवित रह सकते हैं। 

कोरोना के लक्षण : मृत्युश्च तस्मिन् बहु पिच्छिलित्वात्त्। शीतस्य जंतो: परित: सरत्वात।। स्वेदो ललाटे गृहं स मृत्य: 

अर्थात-रोगी का शरीर ठंडा और चिपचिपा हो, ललाट पर चिपकता ठंडा पसीना,आ रहा हो तथा श्वास कंठ में, तो चलती हो पर वक्ष यानि फेफड़ों तक न पहुंचती हो। सात दिन से लगातार सूखी खांसी, जुकाम सर्दी हो। ऐसा व्यक्ति संक्रमित हो जाता है। अतः इसे छूने से दूसरे व्यक्ति को भी संक्रमण हो सकता है। यदि ऊपर के सभी लक्षण मिलते हैं, तो ऐसा संक्रमित मनुष्य किसी भी पल यमालय को जाने वाला है यानि तत्काल मौत के मुख में जा सकता है।
वह ज्यादा घंटे भी नहीं जी सकता। वर्तमान में फैले कोरोना वायरस के भी यही लक्षण हैं। 
दक्षापमान  संक्रुद्ध: रुद्रनि: श्वास सम्भव: 
अर्थात यह रौद्र यानि सूर्य द्वारा प्रकोपित
महाभयानक व्याधि उत्पन्न होगी, जिससे आधा संसार नियति के नियमों को अपनाने पर मजबूर हो जाएगा। संक्रमनस्तु पूजनैवार्वाsपि सहसैवोपशाम्यति।।
 अर्थात  संक्रमण या किसी तरह के खतरनाक वायरस व्याधि  है। वायरस से बचाव हेतु सूर्य की किरणों के सामने बैठें। सूर्य का ध्यान, सूर्य नमस्कार करें।
 अग्नि पुराण में संक्रमण से सुरक्षा तथा शांति के लिए सूर्य देवर्चना पूजा का विधान बताया है। इसलिए किसी भी तरह के संक्रमण में रुद्र या सूर्य उपासना करने से सहसा दूर हो जाता है। 

संक्रमण के लक्षण बताए हैं-

 स्वेदारोध: संताप: सर्वाग्रहणं तथा।
 युगपद् यत्र रोगे च स ज्वरो व्यपदिश्यते।।

अर्थात- जिस बीमारी में स्वेदवह(शरीर से पसीना निकलना) स्त्रोतों का प्रायः अवरोध हो जाए, सारे अंग में अकड़न महसूस हो और संताप यानिदेहताप (अंदर गर्माहट बाहर जुकाम) तथा मनस्ताप (भय-भ्रम, डर)उत्पन्न हो जाए। सर्दी-जुकाम, सर्दी-सूखी खांसी निरंतर बनी रहे, तो मनुष्य संक्रमण से पीड़ित हो रहा है। ऐसे लोगों का जीवन क्षण भंगुर होता है. 
शनि करते हैं पिता सूर्य का सम्मान :- दरअसल शनि के पिता सूर्य हैं और सूर्य को जगत की आत्मा कहा गया है। 

जब लोग नियम-धर्म या प्रकृति के विपरीत चलते हैं,तो सूर्य की शक्ति क्षीण और आत्मा कमजोर हो जाती है। 
 शनि, गुरु, केतु यह तीनों भौतिकता या एशोआराम के विपरीत ग्रह हैं। दुनिया जब अपनी मनमानी करने लगती है, तब शनि कष्ट देकर, निखारकर लोगों को धर्म, ईश्वर, सद्मार्ग, अध्यात्म से जोड़कर धार्मिक बना देते हैं।शनि उन्हीं को पीड़ित करते हैं,जो धर्म या ईश्वर को नहीं मानते। प्रकृति के खिलाफ चलने वालों को शनिदेव नेस्तनाबूद करके ही दम लेते हैं।

बिना स्नान किए अन्न ग्रहण, बिस्कुट आदि का सेवन करने से यह बहुत ज्यादा परेशान करते हैं। शनि को सीधा निशाना उन लोगों पर भी होता है, जो शनिवार के पूरे शरीर में तेल लगाकर स्नान नहीं करते। 
 शनिदेव को खुशबूदार इत्र, गुलाब,चन्दन, अमॄतम कुंकुमादि तेल,जैतून, बादाम तेल अतिप्रिय हैं।

क्या है विकार नामक संवत्सर- 

जैसे साल में बारह महीने होते हैं, वैसे ही संवत्सर 60 होते हैं। यह वर्ष में 2 आते हैं। तीस साल बार पुनः प्रथम संवत्सर का आगमन होता है। विकार या विकारी नामक संवत्सरों में से एक है। 

यह 60 संवत्सरों में तेतीसवां है। इस संवत्सर के आने पर विश्व में भयंकर विकार या वायरस फैलते हैं। इसीलिए इसे विकारी नाम संवत्सर कहा जाता है। जल वृष्टि या वर्षा अधिक होती है। मौसम में ठंडक रहती है। इस समय पृथ्वी/प्रकृति के स्वभाव को समझना मुश्किल होता है।

विकार नामक संवत्सर के लक्षण/फल :  
मांस-मदिरा सेवन करने वाले दुष्ट व शत्रु कुपित दुःखी या बीमार रहते हैं और श्लेष्मिक यानि कफ, सर्दी-खांसी, जुकाम का पुरजोर संक्रमण होता है। पित्त रोगों की अधिकता रहती है। चंद्रमा को विकारी संवत्सर का स्वामी कहा गया है।

इस समय गुरु-केतु की युति से चांडाल योग निर्मित हुआ। यह बड़े-बड़े चांडाल, बेईमान दयाहीन, अहंकारी लोगों को सड़कों पर लाकर खड़ा कर देगा।  एक आंख में सूरज थामा, दूसरे में चंद्रमा आधा। चारों वेदों में सूर्य को ऊर्जा का विशालस्त्रोत और महादेव की आंख माना है। 
दीर्घमायुर्बलं वीर्यं व्याधि शोक विनाशनम् 
सूर्य पादोदकं तीर्थ जठरे धारयाम्यहम्।।

भावार्थ: सूर्य ही एक मात्र ऐसी शक्ति है,जो देह को रोगरहित बनाकर लंबी उम्र,बल-बुद्धि एवं वीर्य की वृद्धि कर सभी व्याधि-विकार, रोग-बीमारी,शोक-दुःख का विनाश कर देते हैं।
संक्रमण/वायरस प्रदूषण नाशक सूर्य 
सूर्य एक चलता-फिरता, प्राकृतिक चिकित्सालय है। सूर्य की सप्तरंगी किरणों में अद्भुत रोगनाशक शक्ति होती है।
 ‘उत पुरस्तात् सूर्य एत, दुष्टान् च ध्नन् 
 अदृष्टान् च, सर्वान् च प्रमृणन् कृमीन्।’

 अर्थात-
 सूर्य के प्रकाश में, दिखाई देने या न 
दिखने वाले सभी प्रकार के प्रदूषित जीवाणुओं-कीटाणुओं और रोगाणुओं को नष्ट करने की क्षमता है। सूर्य की सप्त किरणों में औषधीय गुणों का अपार भंडार है। 

प्रातःकाल से सूर्यास्त के मध्य भगवान सूर्य अनेक रोग उत्पादक विषाणुओं-कीटाणुओं तथा संक्रमणों का नाश करते हैं। वात रोग, त्वचा के विकार और किसी भी तरह के संक्रमण या वायरस मिटाने के लिए सूर्य की किरणें सर्वश्रेष्ठ औषधि है। 

सूर्य का प्रकाश और हवा सबसे बड़ी दवा है। प्रातः की वायु, आयु बढ़ाती है। सूर्य में सात रंग की किरणें जगत में ऊर्जा व चेतना भरती है।सूर्य की ऊर्जा व रोशनी में मानव शरीर के कमजोर अंगों को, हड्डियों को पुन: सशक्त और सक्रिय बनाने की अद्भुत क्षमता है। स्वस्थ्य शरीर हेतु जिस रंग की कमी हमारे शरीर में होती है, सूर्य के सामने प्रणाम करने, अर्घ्य देने, सूर्य की उपासना  से वे उपयुक्त किरणें हमारे शरीर को प्राप्त होती हैं।…

अंत में सुगंधा ने मेरी पीठ पर हाथ रख कर कहा. और मैंने तिरछी आँखों से सुगंधा को देखने की कोशिश की बिना पीछे मुड़े. एक बहुत ही सुन्दर सी देवी, तरह तरह के आभूषण पहने हुए. मेरे bed पे बैठी हुई थी. 

आदित्यस्य नमस्कारं ये कुर्वन्ति दिने दिने।  भाग्योदय हेतु सूर्योदय के समय सूर्यमुखी होकर सूर्य नमस्कार करने से हर दिन यश, स्वास्थ्य, सम्मान, बुद्धि और धन की प्राप्ति होती है. 

आपको प्रणाम करके मैं अपना पत्र खत्म karta hu गुरुजी

Mata rani ki jai ho

Mata rani sabka kalyan kare

खुशबू वाली सुगंधा का सच्चा अनुभव भाग 5

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