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खुशबू वाली सुगंधा का सच्चा अनुभव भाग 6

प्रणाम गुरुजी

गुरूजी माता के आशीर्वाद से ही मुझे धर्म रहस्य चैनल यूट्यूब पर मिला, दर्शकों का इतना प्यार मिला और आपसे भी आशीर्वाद मागने का मौका मिला. ऐसा मैं मानता हूं. पिछले पत्र मे दर्शकों के comments ने भावुक कर दिया मुझे. जहा सभी दर्शकों ने आगे भी आपको पत्र भेजने के लिए मुझे कहा. गुरुजी आपकी आज्ञा से, और आपके माध्यम से. सुगंधा ने गुरु का महत्व जीवन मे कितना महत्वपूर्ण है जिस प्रकार बताया है मुझको बताने का प्रयास करूँगा. और तीन दिन पहले का एक भयानक अनुभव भी बताने की कोशिश करूगा. 

खुशबू वाली सुगंधा का सच्चा अनुभव भाग 5

कई दर्शकों ने साधनाओं की जानकारी मागी मुझसे. गुरुजी आपके माध्यम से मैंने पिछले पत्र मे भी ये निवेदन किया था सभी दर्शकों से, और आज फिर मैं सभी दर्शकों से निवेदन करूंगा कि पहले आप गुरु बनाए. बिना गुरु के कोई भी साधना करने की सोचना, या करना आपके लिए बहुत घातक हो सकता है. कई साधनाएं ऐसी होती है जिनमे गलती की कोई गुंजाइश नहीं होती. एक योग्य गुरु ही बता सकते है आपको, साधना कैसे करनी है? ? गुरु का आदेश प्राप्त कर आप गुरु के ही बताए गए नियमों के द्वारा, साधना करे. साधना किसकी करनी है? कितने दिन करनी है? ये आपके गुरु आपको विधिवत बतायेंगे. 

गुरुजी, सुगंधा ने गुरु क़ा मह्त्व जिस प्रकार बतलाया है मुझको. मैं आपके माध्यम से सभी दर्शकों को बताता हू. गुरुजी सुगंधा ने अपनी मीठी और मधुर आवाज में मुझसे कहा था कि जिसे पुत्र या पुत्र की तरह शिष्य ही संपादित कर सकता है. वह शिष्य आचार्य से दीक्षा लेने का भागी होता है . गुरु बना कर रोगी मनुष्य रोगों से मुक्त हो जाता है. राजा को राज्य, और स्त्री को पुत्र की प्राप्ति होती है. गुरु के जीवन मे आने से मन के सभी दुर विचारों का नाश हो जाता है

साधक को चाहिए मिट्टी के बहुत सारे पात्र मे उत्तम रत्न, अन्न, मिष्ठान, वस्त्र(गुरु और गुरु माता के वस्त्र) , फल, फूल, गुरुमाता (गुरु की पत्नी) के शृंगार का समान इत्यादि रख कर गुरु आश्रम के प्रांगण (आगन) मे रखे. और एक मन्डप का निर्माण करे. पहले एक घड़ा बीच मे रखे फिर उसके चारो ओर एक घट स्थापित करे. इस तरह के एक सहस्त्र या 100 घडो का घट स्थापित करे. सभी पात्रों में रखी हुई सामाग्री उत्तम से उत्तम होनी चाहिए. मन में ये धारणा होनी चाहिए कि स्वयं परब्रम्ह को ये सामाग्री देनी है.

मैंने सुगंधा से पूछा कि क्या मिट्टी के बर्तन ही जरूरी है? टोकरी या और कुछ नहीं चलेगा.?? और 100 घड़े जरूरी है क्या? सुगंधा ने हंसते हुए कहा कि इस म्रत्यु लोक मे सबसे पवित्र अगर कोई चीज है तो वो मिट्टी ही है. मिट्टी पांच महा भूतों मे से एक है. इसलिए मिट्टी के ही पात्र होने चाहिए. और सहस्त्र घडो का विधान सिर्फ उन्हीं लोगों के लिए है जो सम्पत्ति और धन से संपन्न है. गरीब व्यक्ती अपनी आस्था और परिस्थिती के अनुसार मिट्टी के छोटे पात्र भी ले सकते हैं.  Guruji सुगंधा ने फिर बताया कि एक सहस्त्र मिट्टी के पात्रों की स्थापना के बाद. मंडप के भीतर कमला कार मंडल मे पूर्व और ईशान कोण के मध्य भाग मे पीठ या सिंहासन पर भगवान विष्णु या महादेव को स्थापित करे.

उसके बाद नीचे ज़मीन पर साधक अपनी मिट्टी की मूर्ति की स्थापना करे. सिंहासन पर बैठे भगवान गुरु है और जमीन पर बैठा ये मैं हू. ऐसा साधक को सोचना चाहिए. और फिर भगवत पूजन पूर्वक गुरु की अर्चना करके और कलश के जल से bhagwan की मूर्ति का अभिषेक करे. और मन मे यही धारणा रखे कि गुरु का अभिषेक कर रहा हू. उस समय गीत, संगीत और वाद्य का उत्सव होता रहे. फिर योग पीठ आदि गुरु को अर्पित कर दे और प्राथना करे :- गुरुदेव! गुरुदेव! आप हम सब मनुष्यों को कृपा पूर्वक अनुग्रहीत करे!. गुरु भी उनको दीक्षा देकर. उस समय के अनुकूल अपने विचारो का उपदेश दे. इससे गुरु और साधक भी सम्पूर्ण मनोरथ के भागी बन जाते है. मैंने सुगंधा से पूछा क्या आपने कभी गुरु बनाया है स्वर्ग में? 


सुगंधा ने बताया गुरुजी, कि हाँ मैंने भी गुरु दीक्षा ली है. सर्वप्रथम मैं देव गुरु ब्रहस्पति जी की शरण में गई थी. उन्होंने मुझे कहा कि (तुम्हारे दुखों को मैं दूर नहीं कर सकता पुत्री, देवताओ को यश, वैभव और भोजन मनुष्यों के किये हुए यज्ञ से प्राप्त होता है. यज्ञ मनुष्य करते है परंतु माध्यम तो अग्नि देव ही है. तुम्हें अग्नि देव की शरण में जाना चाहिए) . और तभी मैंने अग्नि देव की गुरु रूप मे अराधना की. और अग्नि देव ने मुझे गुरुदिक्षा देकर आशिर्वाद दिया. और मेरी तपस्या से खुश होकर अपनी आत्मा की शीतल रूप कि अग्नि ज्योति वरदान रूप में ये कहते हुए मुझे दी थी, कि ये ज्योति सदा तुम्हारी रक्षा करेगी.

और मुझे माता गौरी की तपस्या करनी चाहिए ऐसा आदेश देकर मुझे आशिर्वाद दिया था . एक लंबी तपस्या के बाद माता गौरी ने मुझे दर्शन दे कर पुत्री कह कर पुकारा . अग्नि देव के आशीर्वाद से ही मैं माता को प्रसन्न कर पाई. मैंने सुगंधा से हैरान होकर पूछा क्या आपने और भी तपस्या की है?? सुगंधा ने हंसते हुए कहा नहीं. सिर्फ दो तपस्या, गुरु रूप मे अग्निदेव की और माता रूप में माँ भगवती की. फिर सुगंधा ने मुझसे कहा, आपको अग्नि देव को प्रणाम करना चाहिए और मैंने ये सब लिखते हुए. अपनी पेन छोड़ कर दोनों हाथ जोड़ कर सुगंधा के ही बताये हुए अग्नि स्तोत्र पढ़ कर उनको प्रणाम किया. फिर सुगंधा ने मुझे कहा कि अब आपको देवगुरु ब्रहस्पति जी को भी प्रणाम करना चाहिए, जिन्होंने मुझे एक सही दिशा दी. सुगंधा के बताए गए स्तोत्र को पढ़ते हुए मैंने उनको भी प्रणाम किया. 


सुगंधा ने फिर मुझसे अपनी मधुर और मीठी आवाज मे कहा कि. सृष्टि की रचना करने के बाद, सृष्टि की शुरुआत में स्वयं ब्रम्हा जी ने अपने मन में संकल्प लें कर सप्त ऋषियों को जन्म दिया (मरिचि, अत्रि, अन्गिरा, पुलत्स्य, पुलह, कृतु, और वसिष्ठ) . और वेदों की रचना करके खुद के शरीर के दो हिस्से कर दिए थे. एक हिस्सा पुरुष का जो स्वयंभू मनु कहलाये. और दूसरा हिस्सा स्त्री रूप में तपस्विनी माता शतरूपा कहलाई. इस सृष्टि के पहले प्राणी वही दोनों है. और इस संसार के पहले गुरु भी स्वयंभू मनु ही है. सुगंधा ने मुझे इन सभी को प्रणाम करने को कहा. मैंने सप्त ऋषियों सहित, भगवान मनु, माता शतरूपा और सभी वेदों को प्रणाम किया गुरुजी . और उसके बाद सुगंधा ने गुरुजी मनु, कश्यप आदि ऋषियों के वंशों का वर्णन किया, और मुझे समझाया कि कैसे देवताओ का जन्म हुआ.


मैंने सुगंधा से पूछा गुरुजी, कि तपस्या कितने प्रकार की होती है.? सुगंधा ने बताया गुरुजी की मूलतः तपस्या दो ही प्रकार की होती है. एक परा, और दूसरी अपरा. ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, और अथर्ववेद, वेद के छह अंग – शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरूक्त, ज्योतिष, और छंद शास्त्र. इनके अलावा मीमांसा, धर्मशास्त्र, पुराण, न्याय, आयुर्वेद, गंधर्व वेद (संगीत), धनुर्वेद और अर्थ शास्त्र. इन सब विद्या और शक्तियों को प्राप्त करने के लिए की गई तपस्या अपरा कहलाती है. और परा तपस्या वह है, जिससे उस अदृश्य, अग्राह्य, गोत्र रहित, चरण रहित, नित्य, अविनाशी परब्रम्ह का बोध हो जाए. परा तपस्या करने की अनुमती किसी को नहीं है.

केवल त्रिदेवो से अनुमती मिलने के बाद, संसार के कल्याण और धर्म की रक्षा और स्थापना के लिये ही उस तपस्या को किया जाता है. मैंने सुगंधा से पूछा अगर कोई फिर भी करे तो? सुगंधा ने हंसते हुए कहा गुरुजी, तो देवतागण उस तपस्या को पूरा नहीं होने देते. किसी न किसी रूप से उसे खण्डित कर देते है. त्रिदेवो ने पुन्यआत्मा के लिए स्वर्ग बनाया है, और पापियों के लिए नर्क. किसी को भी स्वयं का स्वर्ग या नर्क बनाने की अनुमती नहीं है. और अगर कोई ऐसा करता है तो वो ईश्वर की नियती मे हस्तक्षेप कर रहा है. पुरातन काल मे भी कई ऋषि मुनियों ने परा विद्या हासिल करने की कोशिश की थी. परन्तु देवराज इंद्र ने सभी कोशिशों को असफल कर दिया था. मैंने सुगंधा से पूछा अप्सराओ को ही हमेशा भेजते है देवराज?

सुगंधा ने हंसते हुए कहा. ऐसा नहीं है देवराज माता अदिती और महाऋषि कश्यप के पुत्र है, और ऋषि कश्यप की अन्य पत्नियों से देवता, अप्सराएँ, नाग और दैत्य इत्यादि उत्पन्न हुए. इस रिश्ते देवराज इंद्र  रिश्ते मे अप्सराओ के बड़े भाई है. और सबसे बड़ा भाई पिता समान होता है. अप्सराएं रूप कि देवी होती है. पुष्प की सुंदरता से लेकर, सुन्दर स्त्रियों के रूप तक, अप्सराओ के ही कारण है जगत मे. अप्सराओ को ये पता होता है कि किस सिद्ध पुरुष के मन मे कौन सी अधूरी इक्षा है. और वही अप्सराएं प्रहार करती है अपनी सुंदरता का. एक बार साधक के मन में काम वासना के जाग्रत होते ही. न संकल्प रह जाता था , न ब्रम्हचर्य, और न ही तपस्या. और अप्सराएं स्वर्ग लोक वापस लौट जाती थी. ये सबसे आसान तरीका था. किसी हठी साधक की तपस्या खंडित करने का.

क्युकी अगर इंद्रदेव भयंकर तूफान, बारिश और प्रलय ला देते धरती पर. तो उस मनुष्य के साथ साथ बहुत से निर्दोष प्राणियों और जीवों की भी हत्या होती.
 फिर सुगंधा ने मुझे सोने के लिए कहा गुरुजी. की रात्रि बहुत हो गई है. अब आपको सोना चाहिए. और मैंने सुगंधा से आखिरी सवाल पूछा कि जब आप देवगुरु ब्रहस्पति जी के पास गयी थी. तो क्या दुख था आपको? और अग्निदेव ही समाधान कर सकते हैं? ऐसा क्यु कहा उन्होंने? सुगंधा ने कुछ जवाब नहीं दिया गुरुजी. उसने आंखे नीचे कर रखी थी. मैंने पूछा क्या हुआ सुगंधा? और फिर मेरी तरफ देख कर उसने कहा समय आने पर आप सब जान जायेगे. क्यु मैंने अग्नि देव और माता आदि शक्ति की तपस्या की?? . और ये कहते कहते उसकी आँखों से आंसू बह निकले.

मैं इससे पहले कि sorry bol पाता. सुगंधा अन्तरध्यान (गायब) हो गई गुरुजी. 
उस दिन सुगंधा शाम होते ही आ गई थी गुरुजी. नीली साड़ी और नीले रंग के फूल उन्होंने अपने बालो मे लगा रखे थे. रोज की तरह उन्होंने उस दिन ज्यादा आभूषण नहीं पहने थे. और शायद इसीलिए उस दिन उनके शरीर से निकालता हुआ तेज बहुत सुन्दर और शीतल लग रहा था. और वो काफी खुश भी थी पूरे time. मेरे सवालों के जवाब वो हंसते हुए दे रही थी. उनकी हंसी भी उस दिन बहुत खूबसूरत लग रही थी. मगर अचानक मेरे आखिरी सवाल पर वो इतना दुखी क्यु हो गई?? . ये मैं समझ नहीं पा रहा था.

मैंने माता रानी के सामने जा कर माफ़ी मागी. मन ही मन सुगंधा से भी माफ़ी मागी. और काफी देर तक वही माता और महा देव के पास बैठा रहा. और माता से निवेदन किया. मुझे मेरे पिछले जन्म के बारे में ही बता दीजिए माँ.?जहा सुगंधा ने मुझे इतना ग्यान और इतनी सारी बातें बताई है कि 10 डायरी भर चुका हू अभी तक मैं??? . तो क्या सुगंधा इतनी छोटी सी बात नहीं बता सकती मुझको??? . या फिर शायद आपने ही अनुमती नहीं दी उसको.??? और काफी देर तक रोता हुआ वही बैठा रहा गुरुजी. 

तब तक रात के 1 बज चुके थे गुरुजी. मैंने अपनी पुरानी डायरियों मे से पहली डायरी निकाली और वो पन्ना खोला जब सुगंधा ने first time पहली बार कान मे सपने में मुझे बोला था. (आत्मना नाम, त्वम मम एक्यम) .और सवेरे उठ कर मैंने हिंदी मे translate किया था (तुम और मैं एक है खुद को पहचानो) . पहले पत्र में भी मैंने इसके बारे में बताया था आपको गुरुजी. एक और sentence सुगंधा सपने में मुझे बोलती थी. (सहस्त्र वर्शम, त्वयि स्नेहयामिः) सैकड़ों वर्श से मैं तुमसे प्यार करती हू. गुरुजी ये बात भी मैंने apne पहले पत्र में बतायी थी. तब मुझे सुगंधा दिखाई नहीं देती थी.सिर्फ सुनाई देती थी, वो भी सिर्फ सपने में ये बात 2013 की है जब मैंने अपनी job start की थी. इन्हीं दोनों पंक्तियों को देखते देखते मैं सो गया था गुरु जी. और अचानक मेरे फोन से अलार्म बजता है!(आत्मना नाम, त्वम मम एक्यम). की आवाज मे.

  मै ये सोचते हुए उठ जाता हू की फोन को क्या हुआ मेरे. मेरा फोन भी सुगंधा की तरह बोलने लगा. और मैंने देखा कि मेरे बेडरूम मे कुर्सी पर एक छोटी सी बच्ची बैठी है. ये वही बच्ची थी गुरुजी. जो योगिनी माताओं के मेरे दर्शन के समय सबसे आगे बैठी थी. और मेरे सवालों का ज़वाब भी दे रही थी. और मुझे सुगंधा का देव लोक का नाम बताया था. लेकिन गुरुजी इस बार उन yogini माता का चेहरा थोड़ा अलग था. उनकी आंखे लाल रक्त जैसे थी. उनके बालो से जैसे धुआ निकल रहा था. और अंधेरे कमरे में उनकी वो लाल रक्त जैसी आंखे मुझे देख रही थी. उनको देखते ही मैंने बिस्तर से उछलकर उनके छोटे छोटे चरणों मे गिर कर उन्हें प्रणाम किया. योगिनी माता ने अपनी भारी और क्रोधित आवाज में मुझसे कहा उठ क्यु गया? वो देवी नहीं है तो क्या हुआ चल मैं सुला देती हू.?? मैंने रोते हुए कहा नहीं माता माफ़ कर दीजिए. मैं जानता था आप आएगी. अपनी सभी तिरसठ बहनो के साथ.

 
गुरुजी योगिनी माता ने कहा नहीं तू हमे माफ़ कर दे. पिछली बार जब मैंने तुझे दर्शन दिए थे. तेरे पापी शरीर को जरा सा दर्द क्या हुआ? तूने तो शिकायत कर दी हमारी? इतना मोह करता है अपनी इस देह से? तू जानता भी है वो तपस्विनी कब से दर्द मे है? जाने अनजाने तूने हमेशा उसको पीड़ा दी है. हमेशा विलाप करने पे मजबूर किया है. मैंने माता से पूछा कि सबसे अधिक कष्ट मैंने कब दिया उनको माता? योगिनी माता ने कहा कि जब तू प्रेत योनि मे था. उस प्रेत अग्नि की ज्वाला से न तो वो तुझको बचा सकती थी. और न ही तुझे जलता हुआ देख सकती थी. जब किसी ने उसकी पुकार नहीं सुनी तब महादेव के परम भक्त देवगुरु ब्रहस्पति ने उसे सहारा दिया, और अग्नि देव की तपस्या करने को कहा. और तभी तुझको हज़ारों वर्षों की प्रेत योनि से मुक्ति मिली. उसके बाद भी वो देवी रुकी नहीं. माता आदिशक्ति की घोर तपस्या कर तुझे मनुष्य जन्म दिलवाया. और तभी उसके जीवन मे कुछ खुशिया आयी.

 
गुरुजी योगिनी माता अन्तर ध्यान हो गई. और उसके बाद मेरा 4 बजे का अलार्म बजा फोन ki रिंगटोन की आवाज में. मेरी नीद खुली और मैं उठा बिस्तर से. गुरुजी मुझे बुखार था उस पूरे दिन. और पूरे शरीर में असहनीय दर्द. लेकिन गुरुजी मेरे मन में चल रहे कई सवालों के कारण मेरा ध्यान बुखार और दर्द पर नहीं गया. मैंने रोज की तरह स्नान करके माँ गौरी और महादेव की पूजा की. और उन्हें धन्यवाद किया मुझे ये मानव जीवन देने के लिए. शाम को सुगंधा जब आयी. तो उसको देखते ही मेरे शरीर का दर्द पूरी तरह से गायब हो गया गुरुजी. सुगंधा ने संस्कृत मे जब मुझसे पूछा मेरे माथे को छू कर. बहुत बुखार(ज्वर) है? और मेरे माथे को छुते ही मेरी बुखार भी उतर गई थी. मैंने दिन भर से कुछ खाया नहीं था. तो सुगंधा के कहने पर मैंने उनके बताये गये मन्त्रों और विधी अनुसार ही भोजन बनाया. और उसके बाद फिर खाया . सुगंधा मुझे भोजन करते हुए देख रही थी गुरुजी. और उन्होंने बोला कि अब मैं आपको राक्षस नहीं कहूँगी. सुगंधा के इस comment से दिन भर बाद मुझे हंसी आयी. (Actually पहले मेरे खाने के तरीक़े देख कर, सुगंधा बहुत नाराज हुआ करती थी. और कैसे राक्षसो की तरह खाते हो. मुझे बोला करती थी.) और दिन भर बाद सुगंधा के इस comment से थोड़ा हंसी आयी. 
सभी दर्शकों को और आपको गुरुजी प्रणाम करके मैं आज का पत्र यही समाप्त करता हू. माता रानी की जय हो माता रानी सबका कल्याण करे

खुशबू वाली सुगंधा का सच्चा अनुभव भाग 7

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