Site icon Dharam Rahasya

खुशबू वाली सुगंधा का सच्चा अनुभव भाग 8

प्रणाम गुरुजी

गुरूजी अभी तक के सारे पत्रों को सभी दर्शकों ने इतना पसंद किया. और इतना स्नेह दिया. उसके लिए सभी दर्शकों को मेरा बारंबार धन्यवाद. और आपके चरणों को स्पर्श करके आज का पत्र शुरू करता हू.
गुरुजी पिछले पत्र मे आपने दर्शकों के जिन प्रश्नो की ओर संकेत दिया था. तो आज के पत्र में उन्हीं प्रश्नो के उत्तर देने की पूरी कोशिश करूंगा. गुरुजी माफी चाहता हू, महादेव जी की पूजा विधी थोड़ी लंबी है. और अगर इस पत्र में शामिल करता तो पत्र काफी ज्यादा लंबा हो जाता. इसीलिये अगले पत्र में महादेव जी की पूजन विधी बता दूँगा दर्शकों को. और आज के पत्र मे दर्शकों के प्रश्न के उत्तर और अंत में पौधे लगाने या वृक्ष रोपण की वैदिक विधी बताने का प्रयास करूँगा जैसा सुगंधा ने मुझको सिखाया था. 


गुरूजी सुगंधा के मुताबकि म्रत्यु लोक और अन्य लोकों में भी जीव आत्माये म्रत्यु के पश्चात तपस्या या पूजा पाठ करते है. और स्वर्ग लोक में रहने वाले देवी देवता भी पूजा पाठ करते हैं. और उन्हें उसका फल भी मिलता है. स्वर्ग लोक में रहने वाले देवताओ को भी समय समय पर कई घोर तपस्या करनी पडी है. अपनी शक्तियों को बढ़ाने के लिए, या किसी बड़ी समस्या के समाधान के लिए. जैसे देव विश्वकर्मा की पुत्री संध्या बहुत ही शीतल और शांत स्वभाव की थी, परन्तु उनका विवाह सूर्य देव के साथ हुआ जो कि अत्यंत तेजवान और असहनीय ऊर्जा के धनी है. देवी संध्या अपने ही पति के तेज को बर्दास्त करने मे सक्षम नहीं थी ऐसे मे घोर तपस्या के अलावा अन्य कोई चारा नहीं था देवी संज्ञा के पास. और यम लोक मे यमराज के साथ बैठने वाले देव चित्रगुप्त जिन्हें कायस्थ भी कहते है. उन्होंने भी घोर तपस्या की थी.

ये वरदान प्राप्त करने के लिए की किसी जीवात्मा के पुन्य और पाप के हिसाब मे मुझसे कभी कोई गलती न हो. और किसी निर्दोष को सजा मेरी गलती की वज़ह से न मिले. क्युकी ये काम और भी मुश्किल तब हो जाता है जब हजारो जन्मों का पाप और पुन्य को लिखना पड़े. और वो भी समस्त म्रत्यु लोक के प्राणियों का हिसाब रखना कोई आसान काम नहीं. देवताओ के अलावा त्रिदेवो को भी तपस्या करनी पडी है. स्वयं नर और नारायण ने भी घोर तपस्या की थी. जो बाद मे भगवान श्री कृष्न और अर्जुन माने गए. इसके अलावा भगवान विष्णु को भी महादेव की घोर तपस्या करनी पडी थी. क्युकी संसार की रक्षा के लिए उन्हें एक ऐसा अस्त्र चाहिए था जो अचूक हो. जिस पर कभी कोई विजय न प्राप्त कर सके. और एक घोर तपस्या के बाद ही भगवान नारायण को सुदर्शन चक्र की प्राप्ति हुई थी. 

म्रत्यु लोक से ऊपर के लोकों मे रहने वाले पितर, यक्ष, गंधर्व, ऋषि मुनि, देवता गण, सभी पूजा पाठ और उस परम पिता परमेश्वर की साधना मे लीन रहते है. और सबसे ऊपर के लोकों में जैसे कि  ब्रम्ह लोक, गौ लोक और सत्य लोक . जैसे लोकों मे अपना स्थान बनाना चाहते है. और इस सृष्टि के संचालन मे अपना योगदान देने के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं. 
गुरुजी सुगंधा के मुताबिक माँ भगवती का आशीर्वाद किसी भी लोक मे, किसी भी योनी मे रह रही जीवात्मा का उद्धार करने मे सक्षम है. माँ भगवती ही जगत जननी है. भुः, भुवर, और स्वः इन्हीं तीन लोकों को त्रैलोक्य कहते है. जिनमे भू लोक, भुवर लोक के गृह और स्वर्ग लोक शामिल है. इन तीनों मंडलों को मिला कर ही हम इसे एक ब्रहमांड कह सकते है. और माँ भगवती की शक्ति से ही इस ब्रह्मांड में जीवन पनपता है. शक्ति के बिना किसी ब्रम्हांड का निर्माण सम्भव नहीं है, और न ही उसका पालन पोषण और विनाश भी बिना शक्ति के सम्भव नहीं. इसलिए जगत जननी माँ पार्वती का आशिर्वाद मुझ जैसी तुच्छ अप्सरा को भी देवी की उपाधि प्रदान करने मे सक्षम है.

मेरी तपस्या से प्रसन्न होकर माता ने जब मुझे अपने सौम्य रूप मे दर्शन दिए थे. तब मैंने उनसे सिर्फ एक ही बात बोली थी. की मैं फिर से उन्हें प्राप्त करना चाहती हू. क्युकी उनकी कोई गलती नहीं थी. एक तरफ धर्म था तो दूसरी तरफ कर्तव्य माता. ऐसे धर्म संकट मे वो जिस रास्ते को भी चुनते उन्हें श्रापित किया ही जाता. माता अगर उन्होंने धर्म विरुद्ध कोई कर्म किया होता तो शायद मैं उनका चेहरा कभी नहीं देखती. लेकिन आप भी जानती है माता उनका कोई दोष नहीं था. और तब माता ने मेरे आंसू पोंछ कर मुझे पुत्री कह कर पुकारा और अपने सीने से लगा कर मुझे शांत करते हुए माता गौरी ने कहा कि तुझे जन्म किसी और ने दिया है. लेकिन तू आज से मेरी पुत्री है. अब और विलाप करने की आवश्यकता नहीं. माता ने जिस तिथि, जिस नक्षत्र और जो समय मुझको बताया था. ठीक उसी समय आपका जन्म मनुष्य योनी मे हुआ.

मैं तब ध्यान मे लीन स्वर्ग लोक के पास ही एक ऋषि मुनियों के ज़न लोक मे बैठी थी. क्युकी स्वर्ग लोक और गंधर्व लोक की चमक मुझे रास नहीं आती थी आपके जाने के बाद. इसीलिए ज़न लोक मे रह कर ही मैंने तपस्या की और साधु संतों के इस ग्रह पर प्रकृति का स्वरूप भी बहुत निर्मल, शीतल और स्वच्छ था  . जो कि ध्यान लगाने के लिए सर्वोत्तम स्थान लगता था मुझे. और तभी ध्यान में मुझे किसी नवजात शिशु के रोने की आवाज आयी जो म्रत्यु लोक से ही आ रही थी. और तुरंत मैंने म्रत्यु लोक  पहुच कर आपके दर्शन दूर से किए. और फिर धीरे धीरे आप बड़े होते गए और मुझे पहचानते गए. गुरुजी मैंने सुगंधा से कहा कि शुरुआत में मुझे बहुत डर लगता था आपसे . आपको बहुत बुरा लगता रहा होगा न? जब मैं भूत भूत कह कर चिल्ला दिया था? और पूरा घर मेरा इकट्ठा हो गया था मेरे कमरे मे? हाँ थोड़ा बुरा लगता था. की जिसके साथ जन्मों तक रही वही आज मुझसे डर रहा है. मगर माता के आशीर्वाद मे मुझे संदेह कभी नहीं था. मुझे यकीन था कि एक दिन आप मुझे अवश्य पहचान लेगे. मैं चाहती थी कि आप मुझे खुद पहचाने और आपको खुद सब कुछ याद आ जाए. मगर माँ भगवती की सेविका शक्तियों ने आपको सब कुछ बता दिया मेरे बारे में. सुगंधा ने हंसते हुए कहा. 


गुरुजी मैंने सुगंधा से पूछा. की आपने माँ पार्वतीजी की ही तपस्या क्यु की.?? आप माता लक्ष्मी, भगवान नारायण या महादेव जी की भी तपस्या कर सकते थे. तो सुगंधा ने हंसते हुए कहा क्युकी माँ पार्वती ने भी अपने पति देवाधिदेव महादेव को एक घोर तपस्या के बाद ही प्राप्त किया था. उस समय मेरी पीड़ा माता गौरी के सिवा शायद और कोई नहीं समझ सकता था. शायद इसीलिए मेरे गुरु अग्नि देव ने मुझे माता गौरी की तपस्या करने की आज्ञा दी. 
गुरुजी मैंने सुगंधा से पूछा कि अगर तपस्या देवता गण भी कर सकते है. तो फिर शास्त्रों मे ऐसा क्यु लिखा है कि मनुष्य योनी ही एक मात्र उपाय है मोक्ष की प्राप्ति का? और देवता भी तरसते है इस मनुष्य योनी के लिए? तो गुरुजी सुगंधा ने मुझसे कहा कि शास्त्रों और पुराणों मे लिखी हुई बात पर आपको कभी संदेह नहीं करना चाहिए. ये बात बिल्कुल शत प्रतिशत सत्य है. क्युकी तिरासी लाख, निन्यानवे हजार, नौ सो निन्यानवे योनियों मे एक भी योनी मे जीवात्माओं के अंदर इतनी चेतना या इतनी समझ नहीं होती कि वो पुन्य कर्म करके मनुष्य योनी को प्राप्त कर सके. इस सृष्टि के हर मनुष्य को भगवान का वो अमूल्य आशीर्वाद प्राप्त हुआ है तभी वो आज मनुष्य योनी मे है. भगवान ने सारी योनियों के चक्र से निकाल कर मनुष्य जीवन आशीर्वाद रूप में प्रदान किया है. इसे यू ही बर्बाद नहीं करना चाहिए. मोक्ष की प्राप्ति मनुष्य अगर चाहे तो बड़ी आसानी से प्राप्त हो सकती है. देवता गण तो कुछ समय की तपस्या करके मात्र अपनी शक्तियां बढ़ा सकते है, और किसी गम्भीर समस्या का निवारण प्राप्त कर सकते है या स्वर्ग लोक के आगे के लोकों में जैसे कि तप लोक और ब्रम्ह लोक मे अपना स्थान बना सकते है. परंतु मोक्ष की प्राप्ति  के लिए अपनी जिम्मेदारी और कर्तव्यों को त्याग कर सन्यास धारण नहीं कर सकते. परन्तु मनुष्य ऐसा कर सकते है. मनुष्य संसार के भौतिक सुखों को त्याग सकते है, और ममता, माया और मोह के बंधनों से मुक्त होकर सन्यास धारण कर सकते है और सर्वस्व जीवन भगवान के चरणों मे अर्पित कर मोक्ष की प्राप्ति भी कर सकते है. 
गुरुजी सुगंधा ने मुझसे कहा कि माता अगर चाहती तो आप को देव योनी का पद फिर से दे सकती थी. मगर उन्होंने आपको मनुष्य जीवन दिया. आपको अंदाजा भी नहीं है. माँ ने आपको कितना बड़ा आशीर्वाद दिया है. माँ भगवती ने आपको साक्षात परम धाम बैकुंठ और सदाशिव लोक कैलाश जाने का रास्ता प्रदान किया है. जहा पहुच कर एक जीवात्मा की यात्रा हमेशा के लिए समाप्त हो जाती है. उसे फिर दोबारा जन्म और म्रत्यु के काल चक्र मे उलझना नहीं पड़ता . माँ भगवती का आशिर्वाद ही है, जहा इस म्रत्यु लोक मे लोग सुपारी चबाना नहीं छोड़ पाते आपने एक दिन मे ही मदिरा और धूम्रपान छोड़ दिया. माता के आशीर्वाद के कारण ही आपका ब्रम्हचर्य दिनों दिन और अखंड और मजबूत होता जा रहा है. नहीं तो अब इस म्रत्यु लोक मे साधक दो दिन भी ब्रम्हचर्य का पालन कठोरता के साथ नहीं कर पाते. अपने ब्रम्हचर्य की अखंडता के कारण ही आप अपनी कुलदेवी के दर्शन कर पाए, उनसे बात कर पाए. और योगिनी शक्तियों का आशीर्वाद और मार्ग दर्शन भी आपने प्राप्त किया. 
गुरुजी मैंने सुगंधा से पूछा कि क्या तपस्या म्रत्यु के बाद बिना शरीर के भी की जा सकती है? तपस्या या साधना के लिए जो पूजन सामग्री इकट्ठी करनी पड़ती है वो इस शरीर के खत्म हो जाने के बाद तो इंसान इकट्ठी नहीं कर सकता. और क्या देवी देवता म्रत्यु लोक मे आकर किसी मनुष्य के शरीर को धारण करके तपस्या करते है.?? गुरुजी सुगंधा ने मुझको बताया की, कभी भी कोई देवीय शक्ति किसी निर्दोष स्त्री या पुरुष के शरीर का उपयोग अपने स्वार्थ या मनोरथ को पूरा करने के लिए नहीं करती. ये काम प्रेत और पिशाचों का होता है. जो शरीर के अभाव में अपनी भोजन, जल या काम वासना की पूर्ति के लिए किसी के शरीर का उपयोग करते है. देवीय शक्तियां स्वर्ग लोक या स्वर्ग लोक से नीचे किसी भी लोक मे रह कर तपस्या कर सकती है.
और रहा सवाल म्रत्यु के पश्चात मनुष्यों के तपस्या करने का. तो हाँ ऐसा सम्भव है मगर उसमे एक शर्त होती है. म्रत्यु के पश्चात जीवात्मा अर्चि मार्ग या धूम मार्ग से यम लोक ले जायी गई हो तथा यम लोक पहुचने पर उस जीवात्मा का स्वागत पूर्व, पश्चिम या उत्तर के द्वार से किया गया हो. केवल तभी म्रत्यु के पश्चात म्रत्यु लोक मे रह कर या अन्य किसी लोक मे रह कर तपस्या और अराधना सूक्ष्म शरीर में भी की जा सकती है. 
मैंने सुगंधा से कहा गुरुजी की सुगंधा मैं समझा नहीं. सुगंधा ने अपनी मीठी और मधुर आवाज मे मुझसे कहा गुरुजी की म्रत्यु के पश्चात सर्व प्रथम जीव आत्मा यम लोक ले जायी जाती है. जो कि भुवर लोक के मंडल मे दक्षिण दिशा की ओर स्थित है. म्रत्यु लोक से यम लोक की दूरी लगभग 86 हजार योजन की है. यम लोक की राजधानी सयन्मणी मे कालीत्री नाम के राजमहल मे भगवान यमराज अपनी पत्नी धुमोरना के साथ रहते है. इसी राजमहल में उनकी सभा मे रखा हुआ उनका सिंहासन है जिसका नाम ‘विचार – भू’ है. जिस पर विराजमान होकर धर्मराज पापियों को दंड देते है.

म्रत्यु के पश्चात जीव आत्मा को कर्म के अनुसार तीन मार्गों से म्रत्यु लोक के मंडल से बाहर निकाला जाता है. अर्चि मार्ग, धूम मार्ग और उत्पत्ति विनाश मार्ग. अर्चि मार्ग ब्रम्हा लोक और देव लोक की यात्रा के लिए होता है. इस मार्ग से यम लोक पहुचने वाली जीव आत्मा का स्वागत हीरे, पुखराज, मोतियों, नीलम से जड़ित पूर्व के द्वार से किया जाता है. और अप्सरा, गंधर्व, विद्याधर, तथा ब्रम्ह ऋषि तथा देवताओ के पुरोहित इस द्वार पर स्वागत सत्कार के लिए खड़े जीवात्मा का इंतजार करते है. 
तो वही धूम मार्ग पितर लोक की यात्रा पर जीवात्मा को ले जाता है. इस मार्ग से गयी हुई जीवात्मा का स्वागत यमलोक मे पश्चिम और उत्तर के द्वार से किया जाता है जो विभिन्न प्रकार के रत्नों और स्वर्ण से बने हुए द्वार होते है. यहा स्वागत के लिए. पितर लोक के पूज्य पितर, जन लोक के ऋषि मुनि तथा यक्ष लोक के यक्ष स्वागत सत्कार के लिए खड़े जीवात्मा का इंतजार करते है.

 
और तीसरा मार्ग पापियों के लिए है. जिन्होंने पूरे जीवन मदिरा और मांस भक्षण किया है, जिन्होंने कभी स्त्री का सम्मान नहीं किया. और हमेशा स्त्रियों को भोग की वस्तु के समान देखा, जिन्होंने पराई स्त्री पर कुदृष्टि डाली है, जिन्होंने कभी माता पिता की सेवा नहीं की. जिन्होंने कभी दान नहीं किया. और वो लोग भी जो ईश्वर को नहीं मानते. नास्तिक है. ऐसे सभी मनुष्यों को इसी मार्ग से यम लोक ले जाया जाता है. जिसका नाम उत्पत्ति विनाश मार्ग है. इस मार्ग पर सूर्य देव का तेज और ज्वाला मार्ग पर चलना और मुश्किल बना देती है, रास्ते पर न तो कोई सरोवर मिलता है, और न ही विश्राम करने के लिए कोई छाया दार वृक्ष. रास्ते पर नुकीले पत्थर और कीलें बिछा दी जाती है और यमदूत जीवात्मा को घसीटते हुए उस मार्ग पर ले जाते है. और रास्ते भर उसके द्वारा किए गए पापो का वर्णन करते हुए जाते है.

 
यमलोक पुरी के सोलह गांव के शुरुआत मे आसिप वन नाम का एक जंगल भी पड़ता है. जहा की झाड़ियों और वनस्पति के पौधों के पत्ते तलवार की तरह तेज धार वाले होते है. और यमदूत उन्हीं झाड़ियों से घसीटते हुए जीवात्मा को ले कर जाते है और जीवात्मा को लहू लुहान कर देते है. यमपूरी पहुचने से पहले वैतरणी नदी को पार करना पड़ता है. जो कि रक्त और पीप से भरी हुई होती है तथा उसमे रहने वाले नाना प्रकार के मासभक्क्षी जीव पापी आत्माओं के इंतजार में रहते है. इतने कष्ट झेलने के बाद आत्मा अपने सुक्ष्म शरीर मे लगे घावों को देखते हुए तथा विलाप करते हुए यम लोक के दक्षिण द्वार पर पहुंचती है जो कि लोहे का बना हुआ तथा मानव कंकालों और हड्डियों से सुसज्जित होता है. और द्वार पर जंगली भेड़िये शरीर से मांस नोचने के लिए इंतजार करते खड़े रहते है. सिर्फ दक्षिण द्वार से आए हुए लोगों से यमराज मिलते है. और चित्रगुप्त उस जीवात्मा के सभी पापो का वर्णन करते है कि कब, कितनी समय, किस तिथि को उसने कौन सा पाप किया था. उस जीवात्मा के किये हुए कर्मों के अनुसार धर्मराज उसे दंड सुनाते है. दंड रूप मे उसको प्रेत या पिशाच योनी भी दी जा सकती है. अथवा नर्क के कष्ट भोगने के लिए यमदूतो को सौप दिया जाता है. प्रेत योनी मे रह कर साधना या पूजा पाठ नहीं किया जा सकता.

केवल अपने कर्मों के माध्यम से पूर्व, उत्तर और पश्चिम के द्वार से निकलने पर ही साधना और तपस्या की जा सकती है. कर्मों के अनुसार प्राप्त हुए लोक मे रह कर या उसके आसपास के लोकों मे रह कर भी तपस्या की जा सकती है. म्रत्यु लोक मे बद्रीनाथ धाम से लेकर कैलाश मानसरोवर तक कई ऐसे गुप्त स्थान है, गुप्त गुफाएं है. जहा आज भी प्राचीन ऋषि मुनि, और सन्यासी सूक्ष्म रूप में विद्यमान हैं. और ध्यान में लीन है. हालाकि इन सभी तपस्वियों का स्वागत यम लोक के उत्तर तथा पूर्व के द्वार पर हुआ था. वो अगर चाहे तो स्वर्ग में रह कर भी ध्यान और समाधी लगा सकते है. मगर वो अपने गुरु के बताये हुए स्थान को छोड़ना नहीं चाहते. उनके लिए वो गुप्त गुफाएं और पर्वत श्रखंलाये ही स्वर्ग है. और योग्य साधकों को आज भी दर्शन देकर उनका मार्गदर्शन करते रहते है. और तपस्या करने के लिए पूजन सामग्री से भी ज्यादा जरूरी है भगवान पर अटूट श्रद्धा और ध्यान. और ये दोनों नियम सूक्ष्म शरीर में रह कर भी निभाए जा सकते है. बिना किसी पार्थिव देह के भी तपस्या की जा सकती है. 
गुरूजी मैंने सुगंधा से पूछा कि जैसे हम मनुष्य गुरु की शरण में जा कर साधना की विधी और पूजा पाठ करने के सही नियम सीखते है. परन्तु हमारे मरने के बाद तो शरीर को जला दिया जाता है. और शरीर के साथ हमारा दिमाग़ जहा ये सब जानकारी स्टोर थी. वो दिमाग भी जल जाता है तो मरने के बाद भी हिमालय मे सूक्ष्म रूप रहने वाले या पितर लोक या स्वर्ग लोक मे रहने वाले प्राचीन ऋषि मुनि पूजा पाठ कैसे करते है.?? क्या वो फिर से सब कुछ सीखते है मरने के बाद?? 


सुगंधा ने मुस्कुराते हुए बड़ी शालीनता से मुझसे कहा कि ऐसा नहीं होता है. वो फिर से सब कुछ नहीं सीखते. उन्हें सब याद रहता है. शरीर कई प्रकार के होते हैं. जब मैं आपको कुंडलिनी शक्ति के बारे में बताऊंगी तब आपको सभी प्रकार के शरीर, तथा चक्रों के बारे मे, और उनकी शक्तियों के बारे में विस्तार से बताऊंगी. अभी ये जानकारियां आपके किसी काम की नहीं है. पहले आप अपने ध्यान को और गहरायी तथा मजबूती से लगाना सीखिए. लेकिन मेरे बार बार जिद करने पर सुगंधा ने सूक्ष्म शरीर के बारे मे जानकारी दी मुझको. गुरुजी सुगंधा ने बताया कि पांच ज्ञानेन्द्रियों, पांच कर्मेन्द्रियों, मन, बुद्धी, अहंकार और पांच सूक्ष्म भूत इन अठारह तत्वों के समुदाय को सूक्ष्म शरीर कहते है. “आपस” सूक्ष्म शरीर का वाचक है तथा सूक्ष्म शरीर आपस, तेजस और प्रथ्वी तीनों के मिश्रण से बना है. किन्तु आपस की अधिकता होने के कारण सूक्ष्म शरीर मे आपस की अधीनता मानी गई है. मनुष्य की म्रत्यु के पश्चात मुख्य प्राण अपने सूक्ष्म शरीर को लेकर दूसरी देह में प्रवेश करता है. 
मैंने हैरान हो कर सुगंधा से पूछा गुरुजी की इसका मतलब कि मेरे श्रापित होने के बाद आज तक. मेरा सूक्ष्म शरीर मेरी आत्मा के साथ ही है? सुगंधा ने कहा बिल्कुल सही. स्थूल शरीर और औदारिक शरीर ही नष्ट होते है . परंतु सूक्ष्म शरीर आत्मा का ही एक हिस्सा है. इसी शरीर में आत्मा निवास करती है. और ये शरीर कभी नहीं मिटता. चाहे आत्मा अनंत काल तक जन्म लेती रहे. उसका सूक्ष्म शरीर उसके साथ ही गमन करता रहता है. ये सभी शरीरों मे सबसे शक्ति शाली शरीर है. सूक्ष्म शरीर के अंदर कई प्रकार के शरीर होते है जो सोई हुई अवस्था मे रहते है.

इनको ध्यान के माध्यम से जाग्रत किया जा सकता है. सूक्ष्म शरीर के अंदर. वैकिृयिक शरीर (यही शरीर देवताओ का होता है), आहारक शरीर, तेजस शरीर, तेजस शरीर के दो भाग होते है अनिस्सरणात्मक तेजस ( हमे नींद मे स्वप्न इसी शरीर के माध्यम से आते है) और निस्सरणात्मक तेजस (ये शरीर केवल साधु ज़न और सिद्धों के पास होता है. जिसे वो कठोर तपस्या करके जाग्रत करते है. जिससे वो समाधी मे यात्रा कर सकते है, और इस शरीर को कितना भी बड़ा या छोटा बना सकते है. इस शरीर के भी दो प्रकार होते है एक है शुभ तेजस और दूसरा है अशुभ तेजस.), और आखिरी मे कारण शरीर जिसमें आत्मा निवास करती है(कारण शरीर भी सूक्ष्म शरीर के अंदर ही होता है).
गुरुजी सुगंधा ने बताया कि इन सभी शरीरों को ध्यान के द्वारा जाग्रत किया जा सकता है. और सभी चक्रों को यानी मूलाधार से लेकर सहस्त्रार चक्र तक सारे चक्र खुलने के बाद मनुष्य की कुंडलीनी शक्ति जाग्रत हो जाती है तथा वो मनुष्य फिर कोई साधारण मनुष्य नहीं अपितु देवता बन जाता है और इसी म्रत्यु लोक मे देव योनी को प्राप्त कर लेता है. अर्थात देवताओ के समान परम ज्ञानी और पूज्यनीय हो जाता है.

 
सुगंधा ने आगे बताया गुरुजी की मृत पुरुष की वाणी अग्नि में लीन हो जाती है, प्राण वायु मे, आंख आदित्य मे, मन चंद्रमा मे, श्रोत्र दिशाओं में ,और शरीर प्रथ्वी मे लीन हो जाता है. मेरे सर पर हाथ फेरते हुए सुगंधा ने मुझसे कहा कि इंद्रियाँ, मन, प्राण देखने सुनने की क्षमता का प्रकृति मे लय हो जाने का अर्थ एक माया मात्र है. इसका सही अर्थ यह है कि ये इन पदार्थों के समान गुण वाले है. इनका वास्तव में लय नहीं होता. ये सूक्ष्म शरीर के रूप में जीवात्मा के साथ आगे गमन करते है. सुगंधा ने मुझको बताया गुरुजी की पुराणों मे भी ऐसी कई कहानिया प्रेतों के बारे में है. जब प्रेत और पिशाच किसी सिद्ध योगी या धर्मात्मा के सामने प्रकट होकर अपने बुरे कर्मों के कारण हुई अपनी दुर्दशा सुनायी. और मदद की गुहार लगाते हुए, गया इत्यादि तीर्थों मे उनका श्राद्ध और तर्पण करने के लिए याचना की.

आप इससे भी समझ सकते है कि सूक्ष्म शरीर में बोलने, सुनने और पिछले जन्म की सारी बातों को याद रखने की क्षमता होती है. जब प्रेत और पिशाच जैसी योनियों मे सूक्ष्म शरीर कुछ भी नहीं भूलता तो स्वर्ग लोक और पितर लोक जैसे उच्च लोकों मे जा कर जीवात्मा और उससे जुड़ा सूक्ष्म शरीर और शक्ति शाली हो जाता है और देव रूप धारण कर लेता है. अर्थात वैकिृयिक शरीर को धारण कर लेता है. और देव शरीर प्राप्त करने के बाद तो भूली हुई सिद्धियां याद आ जाती है, जीवात्मा भूलती कुछ भी नहीं है देव योनी मे पहुचने के बाद. सुगंधा ने हंसते हुए कहा. 


गुरुजी मैंने एक आखिरी सवाल फिर पूछा सुगंधा से, कि सुगंधा. मुझे स्वर्ग लोक और उससे जुड़े हुए लोकों के बारे में please बताओ जो महत्वपूर्ण हो आपकी नजर मे.? सुगंधा ने मुझसे कहा कि ठीक है मैं बताती हू मगर आप वचन दीजिए की ये आखिरी प्रश्न है. इसके बाद आप सोने का प्रयास करेगे. मैंने कहा गुरुजी की हाँ मैं वचन देता हू इसके बाद सो जाऊँगा. गुरुजी सुगंधा ने स्वर्ग लोक का स्थान उत्तर की ओर ध्रुव तारे की तरफ बताया. सुगंधा ने अपनी मीठी और मधुर आवाज में कहा कि म्रत्यु लोक या भू लोक के आकाश मंडल से बाहर. विशाल अंतरिक्ष व्याप्त है. और यही से भुवर लोक की शुरुआत हो जाती है. इस लोक मे कई मंडल है जिसके कारण ये लोक सभी लोकों मे क्षेत्रफल के हिसाब से सबसे बड़ा लोक है. म्रत्यु लोक के सबसे करीब लगभग 30 हजार योजन की दूरी मे चंद्र लोक स्थित है, तथा उसके आगे सौर मंडल के सभी ग्रह 3 लाख महायोजन मे स्थित है.

क्युकी गुरुजी भौतिक विज्ञान के अनुसार भी हमारा सौर मंडल लगभग 5 अरब किलोमीटर तक फैला हुआ है. और सुगंधा ने भी यही बताया था. की सौर मंडल का विस्तार 3 लाख महा योजन तक है. 1महा योजन लगभग 16,500 km का होता है. तो उस हिसाब से. 3,00,000×16,500 =4,95,00,00,000km. चार अरब 95 करोड़ km की बात विज्ञान के आधार पर भी साबित हो जाती है. (लगभग 5 अरब km.)

जहा मनुष्य इस पार्थिव शरीर मे 1 क्षण भी जीवित नहीं रह सकता. सूक्ष्म शरीर या देव शरीर को जाग्रत या धारण करके ही वहां जाया जा सकता है. जो या तो म्रत्यु के पश्चात सम्भव है या कठोर तपस्या करके.
गुरुजी सुगंधा ने आगे बताया कि सौर मंडल के ग्रहो को पार करने के बाद अगला पड़ाव नक्षत्र लोक होता है जहा विभिन्न प्रकार के लोक है. इन्हीं लोकों मे सप्त ऋषि मंडल भी स्थित है. जहा सप्त ऋषि गण आज भी अपने सूक्ष्म शरीर में ध्यान मे लीन विराजमान हैं. जिनके नाम क्रमशः है मरिचि, अत्रि, अंगिरा, पुलस्त्य, पुलह, कृतु और वशिष्ट. इनके साथ नक्षत्र से जुड़े देवता गण यहा निवास करते है तथा प्रभु की भक्ति में लीन रहते है. इसके बाद आता है ध्रुव लोक.


गुरुजी लोकों की दूरी को मैंने किलो मीटर मे बदल दिया है ताकि दर्शकों को समझने मे कोई परेशानी न हो. क्युकी सुगंधा की दूरी बताने की इकाई वैदिक और संस्कृत में है जहा वो योजन और महा योजन जैसे शब्दों का प्रयोग करती है. सुगंधा के मुताबिक म्रत्यु लोक से ध्रुव लोक की दूरी चार पद्म, दस नील, चालीस खरब, किलोमीटर है मतलब 4 के आगे 15 शून्य लगाओ इतनी दूरी तक हम प्रथ्वी से दूर आ चुके है. और आज का भौतिक विज्ञान भी मानता है कि ध्रुव तारे की दूरी प्रथ्वी से 433 प्रकाश वर्श है. अगर हम इसे किलोमीटर मे बदले तो हमे लगभग इतनी ही दूरी प्राप्त होगी.
गुरुजी सुगंधा ने आगे बताया कि ध्रुव लोक ही स्वर्ग लोक का द्वार है. इस लोक के आगे से स्वर्ग लोक की सीमाएँ शुरू हो जाती है. तथा ध्रुव लोक मे भी देवताओ की सहायक शक्तियां निवास करती है.

ध्रुव लोक के भीतर ही चित्र लोक भी स्थित है जहा देव चित्र गुप्त निवास करते है जो कि यमराज के मुन्शी है. इसके अलावा विद्याधर तथा यक्षो के सेवक, द्वारपाल भी ध्रुव लोक में निवास करते हैं. इसके आगे एक करोड़ योजन अर्थात लगभग 12 करोड़, 29 लाख, 53 हजार, 881 km के बाद स्थित है महर लोक. जो लोग सामन्य जीवन जीते है और कभी किसी का बुरा नहीं सोंचते, पूजा पाठ और तीर्थ स्थानो की यात्रा करने वाले मनुष्य म्रत्यु के पश्चात इसी लोक मे एक मंडल है जिसका नाम है पितर लोक. और यही पर पितर निवास करते है तथा पूजा पाठ और तपस्या मे लीन रहते है और सदा तृप्त रहते है, महर लोक मे ही यक्ष लोक है. जो सुन्दर सरोवर, सुगंधित पुष्प और ऊंचे महलों के लिए जाना जाता है तथा महर नामक ऋषि मुनि भी अलग अलग मंडलों मे इसी लोक मे निवास करते है. यहा के ऋषि मुनियों की पूरी आयु ब्रम्हा जी के एक दिन के बराबर होती है. अर्थात 432 करोड़ साल. इस लोक में केवल यक्षो को देवताओं से मिलने की अनुमती होती है. वो भी किसी महत्वपूर्ण कार्य आने पर. इस लोक में रहने वाले पितर, यक्ष और महर ऋषि मुनि भी तपस्या मे लीन रहते हैं.
गुरुजी सुगंधा ने आगे बताया कि महर लोक के आगे 2 करोड़ योजन यानी 24 करोड़, 59 लाख 7 हजार 763 km के पश्चात आता है जन लोक. इस मंडल मे वैराग्य नामक देवता रहते है. जिनका कभी अंतिम संस्कार नहीं किया जाता. ये तत्व ग्यान को जानने वाले तथा अंतिम समय में तत्व बन कर संसार के कल्याण के लिए तत्व मे विलीन हो जाते है. यहा म्रत्यु के पश्चात सिर्फ उन्हीं मनुष्यो को रहने का अवसर प्राप्त होता है जिन्होंने पूरा जीवन धर्म की नीति पर जिया होता है, तथा जो स्वयं के स्वार्थो को त्याग कर दूसरों के हित के बारे में सोचते है. ऐसी पुन्य आत्माओं को यहा शरीर धारण करके रहने का अवसर प्राप्त होता है. यहा पर रहने वाले ऋषि मुनि देवताओ के दर्शन कर सकते है. इस लोक से 8 करोड़ योजन आगे स्वर्ग लोक के तेजस्वी मंडल स्थित है. जिनमे गंधर्व लोक जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाता है, और तप लोक जो कि ब्रम्ह ऋषियों के लिए जाना जाता है. इसी स्थान पर सनात, सनत, सनन्दन, और सनातन चारो ब्रम्ह ऋषि निवास करते है. जिनकी आयु हमेशा 4 साल के बच्चे जैसी रहती है. देवताओ के पुरोहित गुरु ब्रहस्पति तथा मान्य ऋषि गण भी तप लोक मे निवास करते है.

इन लोकों में स्थान प्राप्त करने के लिए. बहुत कड़ी परिक्षा देनी पड़ती है. यहा पर केवल साधु, ऋषि, मुनि और सन्यासी ही जा सकते है. जिन्होंने मनुष्य जन्म मे जीवन के सभी सुखों को त्याग कर केवल ईश्वर की अराधना, सद्कर्म तथा यज्ञ किया है. केवल वो ही लोग स्वर्ग लोक में रह सकते है. इन सभी लोकों के बीच मे स्थित है इस स्वर्ग लोक मंडल की राजधानी जिसका नाम अमरावती है. जहा देवताओ के राजा इंद्र, सभी देवता अपनी पत्नियों के साथ निवास करते है , अप्सराएँ, तथा इंद्राणीया भी यही निवास करती है. यहा के घोड़े पंख वाले होते है जिन्हें उच्चरेवा कहते है तथा हाथियों के रंग सफेद होते है जिन्हें ऐरावत कहते है. यहा अप्सरा, इंद्राणीया, देवताओ की पत्निया सरोवर और पारिजात वृक्षो के वन मे विहार, गायन और नृत्य करती रहती है जहा हमेशा बसंत ऋतु प्रकृति को दुल्हन की तरह सजाये और सँवारे रखती है. जहा सुन्दर स्त्रियों को काम भाव से नहीं अपितु विनम्र भाव से देवी या पुत्री कह कर संबोधित किया जाता है. और हर हाल में एक स्त्री के गौरव और स्वाभिमान की रक्षा की जाती है. उसी स्थान का नाम अमरावती है. जहा मैं निवास करती हू. और कभी आप भी निवास किया करते थे. और ये कहते कहते सुगंधा की आँखों से आंसू बह निकले गुरु जी. 


मैंने सुगंधा को कहा गुरुजी की स्वर्ग और तप लोक के आगे मुझे नहीं जानना है. ऐसी कोई भी बात मुझे नहीं जाननी है जिसे याद करके तुम्हें दुख पहुचे. लेकिन सुगंधा ने अपने आंसू पोछते हुए मुझसे कहा कि नहीं मैं ठीक हू. आगे लिखिए आप. बस कुछ याद आ गया था इसलिए आंसूओ को रोक नहीं पायी. तप लोक के बाद लगभग 12 करोड़ योजन यानी 1 अरब, 47 करोड़, 54 लाख, 46 हजार, 589 km आगे है ब्रम्ह लोक. यहा पर केवल वहीं मनुष्य जा सकते है जिन्होंने जन्म जन्मांतर मे अनेकों पुन्य किए हो, पितर लोक, जन लोक, स्वर्ग लोक तथा तप लोक मे रहते हुए भी ईश्वर की भक्ति नहीं छोड़ी. और तपस्या मे लीन रहे. और अंतिम सत्य ईश्वर को पाने की चाह रखने वाले इस लोक मे निवास करते है. स्वयं देव ऋषि नारदजी का निवास स्थान भी यही लोक है. इसी लोक मे ब्रम्हा जी स्वेतवर्णी माँ सरस्वती के साथ निवास करते है. इस स्थान तक आते आते काल यानि समय बिल्कुल शून्य सा हो जाता है. इस मंडल मे रहने वाले ऋषि मुनि भी तपस्या और साधना मे लीन रहते है.


सुगंधा ने आगे बताया गुरुजी की ब्रम्ह लोक ही हमारी इस तीन आयामी सृष्टि का आखिरी छोर है. इसे पांचवा आयाम अर्थात ब्रह्म आयाम भी कहते है. मैंने सुगंधा से पूछा कि मैं समझा नहीं सुगंधा आयाम का मतलब? तो सुगंधा ने बताया गुरुजी की ये प्रथ्वी  सभी लोक, मंडल और स्वर्ग लोक ये सब तीन आयामी सृष्टि के अंतर्गत आते है. जिसे हम त्रैलोक्य कहते है यानी आप म्रत्यु लोक मे आगे पीछे, ऊपर नीचे और बाये-दाएं तीन प्रकार से गति कर सकते है. चौथा आयाम है काल यानि समय जो सिर्फ आगे ही बढ़ता है इसमे पीछे नहीं जाया जा सकता. और न ही काल चक्र को रोका जा सकता है. मात्र त्रिदेव ही समय को रोक सकते है या आगे पीछे कर सकते है मैंने आपको परा विद्या के बारे में बताया था ये वही विद्या है. द्वापर युग मे अर्जुन को गीता का ग्यान देने के लिए भगवान ने इसी विद्या का उपयोग कर काल चक्र को रोक दिया था और समय वही ठहर गया था. देवताओ के अंदर भी इतना सामर्थ्य नहीं की काल की गति को रोक सके. इसलिए म्रत्यु लोक से लेकर स्वर्ग लोक तक कि सृष्टि इन्हीं चार आयाम पर बनी हुई है. 

तब मुझे समझ मे आया गुरुजी की सुगंधा dimensions की बात कर रही है और हमारी पृथ्वी भी 3-dimentional ही है. चोथा dimension time है. Aur ब्रम्हांड का निर्माण जिन ब्रम्हा ने किया है वो पाँचवे आयाम मे रहते है. ये बात कई देशों की space agency भी मान चुकी है कि big bang जिससे हमारा अंतरिक्ष और सौर मंडल और प्रथ्वी बनी है. वो big bang किसी और dimension मे हुआ होगा क्युकी big bang से पहले तो ये अंतरिक्ष था ही नहीं. ये तो big bang के बाद बना. तो सवाल ये था कि आखिर वो विस्फोट किस डायमेंशन मे हुआ होगा. जिसके बाद इस अंतरिक्ष का निर्माण हुआ. और सुगंधा ने मुझे बता दिया था कि वो पांचवा आयाम ब्रम्ह आयाम है जहा से इस पूरे अंतरिक्ष का निर्माण हुआ. 


सुगंधा ने बताया गुरुजी की इसी पाँचवे आयाम से कई ब्रह्मांड उत्पन्न होते है. कुछ ब्रम्हांड अभी भी बन रहे है उनमे जीवन की शुरुआत अभी नहीं हुई. कुछ ब्रह्मांड अपनी आयु पूरी कर चुके है. और महादेव के द्वारा उनका विनाश होना शुरू हो चुका है. हर ब्रह्मांड की रचना ब्रम्ह देव स्वयं करते है. इस स्थान पर पहुच कर चारो तरफ अलग अलग ब्रह्मांड दिखाई देते है. और शायद गुरुजी इसी को science की भाषा मे हम multiple universe कहते है. इसके बाद गुरुजी सुगंधा ने  बताया कि इस पांचवे आयाम के बाद छठा आयाम है. जहा महा विष्णु निवास करते है. मैंने सुगंधा से पूछा गुरुजी की इस लोक की दूरी कितनी है ब्रम्ह लोक से. तो सुगंधा ने बताया कि हम यहा दूरी नहीं नाप सकते. क्युकी दूरी नापने के लिए समय और गति दोनों आवश्यक है. परंतु समय तो यहा है ही नहीं. ऐसे में हम इन मंडलों को लोक न कह कर सम्पूर्ण आयाम कहते है. महा विष्णु के भी तीन रूप है. महा, गर्भोधकस्य,और कसीरोधकस्य.

 
इसमे महा विष्णु तत्व का निर्माण करते है, जिससे इन पांच आयामों का निर्माण होता है इसे ही महा तत्व कहा जाता है. गर्भोधकस्य विष्णु हर ब्रम्हांड का निर्माण करवाते है उन्हीं से ब्रह्मा का जन्म होता है. उसके बाद है कसीरोधकस्य विष्णु जो हमारी तीन आयामी सृष्टि के हर तत्व और परमाणु मे विलीन है. इसके बाद आता है सातवां आयाम जिसे सत्य आयाम या ब्रम्ह ज्योति भी कहते है. इसी आयाम से वेद उत्पन हुए है. वेदों मे लिखा ज्ञान इसी आयाम से अवतरित हुआ है. वेदों का अध्ययन देवता भी करते है, मैं भी करती हू. इसके अलावा जब योगी गहन साधना करते है तो इसी आयाम को महसूस करते है. इसके बाद आता है आठवां आयाम जिसे कैलाश कहते है. इस आयाम मे भगवान शिव अपने भौतिक शरीर मे निवास करते है मा भगवती के साथ. उनका काम ही सभी सात आयामों का संतुलन बनाए रखना है. यही स्थान मोक्ष का द्वार है. इस स्थान पर पहुच कर मनुष्य जीवन और मरण के चक्र से बाहर हो जाता है.

 
गुरुजी इसके बाद सुगंधा ने बताया कि इसके बाद आता है नौवा आयाम जिसे कहते है बैकुंठ. इसी आयाम मे नारायण निवास करते है. जो हर आयाम को चलाए रखते है. मोक्ष प्राप्त करने का अर्थ है मनुष्य का इसी आयाम मे आकर भगवान मे समा जाना. मोक्ष प्राप्ति पर हर आत्मा शून्य होकर इस आयाम मे लीन हो जाती है. इस आयाम मे बोध भी खत्म हो जाता है. हर आयाम इसी से बना है. यही आयाम निर्माण का स्तोत्र है. मैंने सुगंधा से पूछा गुरुजी की जो भगवान नारायण की पूजा बताई थी तुमने वो इसी बैकुंठ की पूजा है? सुगंधा ने कहा हाँ वो इसी बैकुंठ की पूजा है. 


इसके बाद है दसवा आयाम यानी अनंत आयाम. जहा परम सत्य परमात्मा निवास करते है. इस पूरे आयाम को हम आयाम न कह कर हम सत्य परमात्मा भी कह देते है. अलग अलग पंथ के लोग इन्हें अलग अलग नामों से बुलाते है. इन्हें ही निराकार अनंत सदा शिव कहा जाता है, इन्हें ही सत्य विष्णु भी कहा जाता है, इन्हें ही आदि परा शक्ति या त्रिदेव जननी भी कहा जाता है. अलग अलग नामों से लोग इन्हें बुलाते है. इन्हीं का अंश सभी  चौरासी आयामों में अपना कार्य कर रहा है. सुगंधा ने बताया गुरुजी की 20 आयाम ऐसे है जहा के कुछ ब्रह्मांड अब नष्ट होने लगे है क्युकी उनकी आयु पूरी हो चुकी है. और कुछ अभी बन रहे है. उनमे अभी जीवन ठीक से पनपा भी नहीं है. बाकी के चौसठ आयामों में जीवन मौजूद है और गतिशील है. सुगंधा ने कहा गुरुजी की, आपने जिद की थी जानने की तो ये 10 महत्वपूर्ण आयाम मैंने बता दिए आपको. इन्हीं 10 आयामों के बीच बाकी के आयाम भी मौजूद है. जब मैं सृष्टि की उत्पत्ति और त्रिदेवो की उत्पत्ति के बारे मे बताऊंगी आपको तब बाकी के आयामों के बारे मे भी बता दूंगी. अब आपको सोना चाहिए बहुत रात्री हो चुकी है. ऐसा कह कर सुगंधा ने मेरी डायरी मुझसे छीन ली और टेबल पर रख दिया उसको. और फिर मुझे सोना प़डा था गुरुजी. 


गुरुजी दर्शकों के जो भी प्रश्न थे, जैसे तपस्या स्वर्ग मे नही कि जा सकती?? या सुगंधा ने तपस्या क्या किसी स्त्री के शरीर को धारण करके या जन्म ले कर म्रत्यु लोक मे किया था?? मुझे उम्मीद है दर्शकों को उनके प्रश्नो के उत्तर मिल गए होगे गुरुजी. अंत में गुरु जी पौधा लगाने की विधी जो कि दर्शक चाहे तो गमले मे, किसी उद्यान मे, या अपने घरों पे भी लगा सकते है. ये विधी इसलिए बता रहा हू क्युकी आज के पत्र मे यमलोक के आसिप वन का जिक्र आ गया जहा के पौधों के पत्ते तेज धार तलवार की तरह होते है. और जीवात्मा को बहुत पीड़ा देते है. सुगंधा के मुताबिक जो मनुष्य जीवन में कई वृक्ष लगाता है. उसके आसिपवन पहुचने पर उन पत्तों की जगह मुलायम और सुगंधित पुष्प अपने आप खिल जाते है. और जीवात्मा को कोई पीड़ा नहीं होती. इससे ये भी हमे जानने को मिलता है कि इस कर्मलोक मे किया हुआ कोई भी पवित्र कर्म कभी खाली नहीं जाता. उसका अच्छा परिणाम एक न एक दिन मिलता जरूर है.

 
गुरुजी सुगंधा ने अपनी मीठी और मधुर आवाज मे मुझसे कहा था कि पौधे लगाने से, भोग और मोक्ष प्रदान होता है. पौधे को स्वच्छ जल से स्नान करवा दे, सुगंधित चंदन के चूर्ण से विभूषित कर मालाओं से अलंकृत कर वस्त्र चढ़ा दे. और सर्व प्रथम उस वृक्ष को यज्ञोपवित पहना कर उसकी पूजा करे. वेदिका पर सात फल रखे. और प्रत्येक वृक्ष का अधिवासन करे. तथा कुम्भ समर्पित करे. फिर इन्द्र आदि दिक्पालो के उदेश्य से बलि प्रदान करे (नारियल फोड़े). वृक्ष के अधिवासन के समय ऋग्वेद, यजुर्वेद, या सामवेद के मन्त्रों से अथवा वरुण देवता संबंधी तथा मत्तभैरव संबंधित मन्त्रों से होम करे. श्रेष्ट ब्राम्हण वृक्ष को वेदी पर रख कर कलश के जल से वृक्ष को स्नान करवाये. और खुद यजमान अलंकृत होकर ब्राम्हणों को गौ, भूमि, आभूषण तथा वस्त्र इत्यादि दक्षिणा दे. तथा चार दिनों तक क्षीरयुक्त भोजन कराए. इस कर्म मे तिल, घृत, और पलाश समिधाओ से हवन करना चाहिए. आचार्य जी को दुगुनी दक्षिणा देनी चाहिए.(आचार्य जी को दक्षिणा देने की विधी भाग – 6 मे बतायी थी. ठीक उसी प्रकार मंडप का निर्माण करे और मिट्टी के पात्रों मे दक्षिणा अर्पित करे) इस प्रकार वृक्ष या उद्यान की प्रतिष्ठा से समस्त पापो का नाश होता है. और परम सिद्धि की प्राप्ति होती है. ऐसा सुगंधा ने मुझसे कहा था गुरुजी

गुरुजी आपके चरणों को प्रणाम करता हू और सभी दर्शकों को भी प्रणाम करता हू और आज का पत्र यही समाप्त करता हू.

Exit mobile version