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खुशबू वाली सुगंधा का सच्चा अनुभव भाग 9

प्रणाम गुरुजी
गुरूजी आज के पत्र में महादेव जी की पूजा विधी बताने जा रहा हू. और जिस प्रकार सुगंधा ने मुझको समझाया था. दर्शकों को समझाने का प्रयास करूँगा. मुझे और सुगंधा को इतना स्नेह देने के लिए दर्शकों को धन्यवाद
गुरूजी दर्शकों से निवेदन है कि पूजा विधी थोड़ी सी लंबी है, तो हो सकता है दर्शकों को एक बार में समझ मे न आए. लेकिन दो तीन बार जब आप लोग सुनेंगे तो समझ में आ जाएगी. दर्शकों को समझने मे कोई परेशानी न हो इसलिए विधी को 11 हिस्सों मे बाट दिया है. गुरुजी आशीर्वाद की कामना करते हुए आपके चरणों को स्पर्श करता हू और आज का पत्र शुरू करता हू.
1):- पूजा के कमरे मे प्रवेश करने की विधी.

गुरु जी सुगंधा ने अपनी मधुर आवाज मे मुझसे कहा, 
आप आचमन एवं स्नान आदि करके प्रणव का जप करते हुए सूर्य देव को अर्घ्य दे. फिर पूजा के कमरे के द्वार को ‘फट’ इस मंत्र द्वारा जल से सींच दे. इसके बाद ‘हां’ बीज सहित नंदी आदि द्वारपालो की पूजा करे. द्वार पर उदुम्बर, बेल या कदम्ब इत्यादि किसी भी पवित्र पौधे को, जो गमले मे स्थापित हो. द्वार पर रख दे. (गुरुजी पौधे लगाने की विधी भाग – 8 मे बताया था). गुरुजी सुगंधा ने मुझसे कहा, आपको पौधे की स्थापना करके उसके ऊपरी भाग मे गणपति, सरस्वती और लक्ष्मी जी की पूजा करनी चाहिए . पौधे की दाहिनी शाखा पर नंदी और मा गंगा की पूजा करे. तथा वाम शाखा पर महाकाल एवं यमुना जी की पूजा करनी चाहिए. अगर आपको आसपास किसी और की उपस्थिति महसूस हो या अचानक ठंडी या गर्मी का अनुभव महसूस होने लगे तथा तेज दुर्गंध या शरीर के रोंगटे अपने आप खड़े होने लगे तो तत्काल अपनी दिव्य द्रष्टि ( आज्ञा चक्र) के माध्यम से दिव्य विघ्नों का उत्सारण (निवारण) करे. मैं कुछ बोलता सुगंधा ने पहले ही बोल दिया आपको परेशान होने की जरूरत नहीं है मैं आपके साथ हू. और मेरी अनुपस्थिति मे योगिनी शक्तियां भी अदृश्य रूप से आपकी रक्षा के लिए है. मैंने सुगंधा से पूछा कि अगर किसी साधक के पास ऐसी कोई देवीय शक्तियां न हो तो वो क्या करे? सुगंधा ने बताया गुरुजी ऐसा साधक तब अपने गुरु की शरण में जाए. 
 अगर किसी साधक के चक्र जाग्रत नहीं है, तो साधक अपने गुरु का दिया हुआ गुरु मंत्र पढ़कर सभी दिशाओं में उनके ऊपर फूल फेंक कर प्रहार करे. और यह भावना करे कि आकाश चरी सारे विघ्न दूर हो गए. और अपने गुरु देव को मन मे प्रणाम करे, और इस पूजा में सहायता करने के लिए धन्यवाद करे. और गुरु से प्राथना करे कि हे गुरुदेव क्युकी मुझे आज्ञा चक्र की शक्तियां अभी प्राप्त नहीं हुई है अतः जिस प्रकार आपने आकाश चरी सभी विघ्नों को दूर कर दिया अब आप भूतल वर्ती सभी विघ्नों को भी दूर करने मे मेरी सहयता करे. इसके बाद साधक अपने गुरु का दिया हुआ गुरुमंत्र तीन बार पढ़ते हुए. दाहिने पैर की एड़ी से तीन बार भूमि पर आघात करे. और इस प्रकार साधक को सभी विघ्नों का निवारण करना चाहिए. 
सुगंधा ने आगे बताया गुरुजी, तत्पश्चात  आपको पूजा के कमरे की देहली को लांघ कर पूजा के कमरे में प्रवेश करना चाहिए . द्वार पर रखे पौधे की वाम शाखा का आश्रय ले कर दाहिने पैर से कमरे में प्रवेश करे. और उस पौधे मे गुरु मंत्र या अस्त्र संबंधित मन्त्रों का न्यास करके. पूजा के कमरे के मध्य भाग मे भगवान शिव की पीठ या चौकी की स्थापना करे. और आधार भूमि मे ‘ओम हां वास्त्वधिपतये ब्रम्हणे नमः|’ इस मंत्र से वास्तु देवता की पूजा करे. सुगंधा ने मुझसे कहा गुरुजी की इस प्रकार पूजा के कमरे में आपको प्रवेश करना चाहिए.
2):- पूजा के लिए शुद्ध जल प्राप्त करने की विधी.
गुरुजी सुगंधा ने मुझसे कहा कि. इस विधी को जानना महत्वपूर्ण है क्युकी भगवान शिव की पूजा मे भगवान को स्नान कराने की विधी अत्यंत महत्वपूर्ण है. जो कि शुद्ध जल के बिना सम्भव नहीं है. सुगंधा ने बताया गुरुजी की निरीक्षण आदि शस्त्रों द्वारा शुद्ध किए हुए बाल्टी और लोटा ले कर भावना द्वारा आपको भगवान शिव से आज्ञा प्राप्त करके तथा मौन होकर गंगा आदि पवित्र नदी के तट पर जाना चाहिए. वहां अपने शरीर को पवित्र करके गायत्री मंत्र का जाप करते हुए. लोटे के मुख पर स्वच्छ वस्त्र लपेट कर. नदी का जल छान कर अपनी बाल्टी भरे. अगर नदी तट बहुत दूर है निवास स्थान से, तो बाल्टी मे स्वच्छ जल डाल कर गायत्री मंत्र का जप करते हुए गंगा जल मिला दे. तथा माँ भागीरथी का आव्हान उस जल में करे.  माँ गंगा का स्तोत्र पढ़ कर माता से प्राथना करे कि हे माता, भगवान शिव की आराधना करने मे मेरी सहायता कीजिए. अपने पुत्र को आशिर्वाद दीजिए माता. मैं आपका आव्हान करता हू. और इस प्रकार उस बाल्टी के जल को गंगा जल की तरह पवित्र बना ले. और कुछ जल की बूंदे अपने ऊपर भी छिड़क ले. और खुद को भी पवित्र कर ले. तत्पश्चात गंध, अक्षत, पुष्प आदि सब द्रव्यों को अपने पास एकत्र कर ले.
3):- शरीर की शुद्धि
गुरूजी शरीर शुद्धि की ये विधी सिर्फ उन्हीं लोगों के लिए है, जिनके चक्र जाग्रत हो चुके है या जिन्हें कोई बड़ी शक्ति सिद्ध है. बड़ी शक्ति से यहा तात्पर्य है कोई देवीय शक्ति. क्युकी गुरुजी मेरे चक्र अभी जाग्रत नहीं है तो मैं चंद्र देव का ध्यान करके ही अपना शरीर शुद्ध कर लेता हू. ये विधी भाग -7 मे भगवान नारायण की पूजा मे बता चुका हू. 
गुरुजी सुगंधा ने अपनी मधुर आवाज में मुझसे कहा कि, शरीर में शून्य का चिंतन करते हुए पांच भूतो का क्रमशः(आकाश, अग्नि, जल, वायु और प्रथ्वी) इनका शोधन करे. पैरों के दोनों अंगूठों को पहले बाहर और भीतर से शून्य रूप से देखे. फिर कुंडली शक्ति को मूलाधार से उठा कर हृदय कमल (अनाहत चक्र) से संयुक्त करके इस प्रकार चिंतन करे – “मेरे ह्रदयन्धृमे (अनाहत चक्र मे) स्थित अग्नि तुम तेजस्वी हो. तुम्हारे ‘हूं’ बीज़ मे मेरी कुंडलिनी शक्ति विराज रही है.” इस प्रकार ध्यान लगा कर आप अपनी प्राण वायु का अवरोध करे और ‘हूं फट’ के उच्चारण पूर्वक क्रमशः आगे के चक्रों को यानी विशुद्ध चक्र और आज्ञा चक्र को भेद कर, कुंडलिनी को बृह्मान्धृमे यानी (सहस्त्रार चक्र) मे ले जाकर स्थापित कर दे. और इस प्रकार कुंडली शक्ति के साथ साथ ‘हूं’ बीज भी आपके सहस्त्रार चक्र मे स्थापित हो जाएगा. जो कि चेतना युक्त जीव स्वरूप है तथा आपके सूक्ष्म शरीर का ही एक अंश है. 
प्रकृति के द्वारा ह्रदय स्थित ‘हूं’ बीज़ पर पूरक प्राणयाम के माध्यम से चैतन्य भाव जाग्रत किया गया है. सहस्त्रार चक्र मे ‘हूं’ का न्यास करके शुद्ध बिंदु स्वरुप जीव का चिंतन करे. फिर प्राण वायु अवरोध करके उस एकमात्र चेतन्य गुण से युक्त जीव को अनंत(शिव) के साथ जोड़ ले. इस प्रकार आपको अपनी पार्थिव देह के साथ साथ अपने सूक्ष्म शरीर की भी शुद्धि करनी चाहिए. मैंने सुगंधा से कहा गुरुजी की अभी तो मैं सक्षम नहीं हू इस क्रिया को करने मे. सुगंधा ने मुझे कहा समय आने पर आप सक्षम हो जायेगे. माँ भगवती पर भरोसा रखिए.
4):- शिव (परम शून्य या अनंत) मे ध्यान लगाने की विधी 
गुरूजी सुगंधा ने अपनी मीठी और मधुर आवाज में मुझसे कहा की. शिव ही परम शून्य है और शिव ही अनंत है. शिव मे लीन होने के लिए जो ध्यान लगाया जाता है इसे सबीज रेचक या नि: सारण भी कहते है. (गुरुजी नि: सारण आत्मक शरीर के बारे में भाग – 8 मे बता चुका हू. जो कि तेजस शरीर का दूसरा प्रकार है) गुरुजी सुगंधा ने कहा की पुराणों में भी इसका वर्णन है. परन्तु अलग अलग पुराणों मे इस विधी को अलग अलग प्रकार से बताया गया है. जिससे साधक भ्रमित हो जाते है. और पुराणों को झूठा या गलत कहना प्रारम्भ कर देते है. एक योग्य गुरु और एक धर्मात्मा ऋषि जिसने सभी पुराणों का अध्यन पूरी गहनता के साथ किया हो. वही बता सकता है कि पुराणों में लिखी हुई विधी सत प्रतिशत सत्य है. बस उन विधियों को सही क्रम मे जोड़ने की आवश्यकता है. मगर वेदों मे नि:सारण ध्यान (यानी सबीज रेचक) का सम्पूर्ण और विस्तृत वर्णन मन्त्रों के रूप मे दिया गया है. मेरी बतायी हुई इस वैदिक विधी से अगर आप रोज ध्यान लगाएंगे तो अवश्य ही कुछ समय के पश्चात आपके शरीर के सभी चक्र धीरे-धीरे जाग्रत होने लगेंगे.  
सुगंधा ने आगे बताया गुरुजी की भूमंडल का स्वरूप चतुष्कोण है. इसका रंग स्वर्ण के समान पीला है. यह कठोर होने के साथ ही वज्र के चिन्ह से तथा ‘हां’ इस भु बीज़ से युक्त है. इसमे ‘निवृत्ति’ नामक कला है. (शरीर मे पैर से लेकर घुटने तक भूमंडल की स्थिति है. तथा पांच गुणों से युक्त है. इस प्रकार शोधन करके गुणों की प्राप्ति के लिए ध्यान लगाये. हम जैसे जैसे तत्वों की ओर बढ़ते जायेगे आपका ध्यान स्वतः और गहराता जाएगा.
जल का स्वरूप अर्ध चंद्राकार है. यह द्रव्य स्वरूप है, चंद्रमंडलमय है. इसकी कांति या वर्ण उज्जवल है. यह दो कमलों से चिन्हित है. तथा ‘ह्रीं’ इस बीज से युक्त है. तथा ‘प्रतिष्ठा’ नामक कला के स्वरूप को प्राप्त है. यह वामदेव तथा तत्पुरुष मन्त्रों से जल तत्व चार गुणों से युक्त है. इस प्रकार (घुटने से नाभि तक जल का विस्तार है ) इस प्रकार जल तत्व का शोधन करके गुणों की प्राप्ति के लिए ध्यान लगाए रखिए. 
अग्नि मंडल त्रिकोणाकार है. इसका वर्ण लाल है (नाभि से हृदय तक इसकी स्थिति है) यह स्वास्तिक के चिन्ह से युक्त है. इसमे ‘हूं’ बीज अंगित है. यह ‘विद्याकला’ स्वरुपित है. विद्या कला ही इसका अघोर मंत्र है. तथा यह तीन गुणों से युक्त है और जल भूत है. इस प्रकार चिंतन करते हुए अग्नि तत्व का शोधन करते हुए गुणों की प्राप्ति के लिए ध्यान लगाए रखिए. 
इसके बाद वायु मंडल षटकोणाकार है. (शरीर मे हृदय से लेकर भौहों के मध्य भाग (आज्ञा चक्र) तक उसकी स्थिति होती है यह छः बिंदुओं से चिन्हित है. इसका रंग काला है. यह ‘हैं’ बीज तथा सद्योजात – मंत्र से युक्त है और ‘शांतिकला’ स्वरूप है. इसमे दो गुण है तथा प्रथ्वी भूत है. इस प्रकार चिंतन करते हुए वायु तत्व का शोधन करे और गुणों की प्राप्ति के लिए ध्यान लगाए रखिए. 
आकाश का स्वरूप व्योमकार, नाद – बिंदुमय प्राप्त है और शक्ति विभूषित है तथा शुद्ध स्फटिक मणि के समान निर्मल है. तथा शरीर में भौहों के मध्य भाग से लेकर सहस्त्रार चक्र तक स्थित है. यह ‘हौं फट’ इस बीज से युक्त है. तथा शान्त्यतीत कलामय को प्राप्त है. शान्त्यतीत कलामय के भीतर चार कलाये आती है. इन्धिका, दीपिका, रेचिका, और मोचिका. आकाश एक गुण से युक्त तथा परम विशुद्ध है. इस प्रकार चिन्तन करते हुए. आकाश तत्व का शोधन करे और उस एक परम गुण तथा परम विशुद्धी को प्राप्त करने के लिए ध्यान लगाए रखिए. 
और इस प्रकार ध्यान के द्वारा सभी तत्वों के गुणों को एक एक करके प्राप्त किया जाता है. और अब तक आप ध्यान मे बहुत गहरायी तक पहुच चुके होगे. यही मार्ग है परम शिव या परम शून्य को प्राप्त करने का. भगवान से स्वयं को इसी प्रकार जोड़ा जाता है. उसके बाद धीरे धीरे अपनी चेतना मे वापस आइए . और धीरे धीरे अपनी आँखों को खोलिये. 
5) :- पूजा की तैयारी की विधी :-
सुगंधा ने अपनी मधुर आवाज मे मुझसे कहा गुरुजी की स्वर्ण, रजत या ताम्र के पात्रों मे से किसी पात्र (लोटा) अर्घ्य के लिए लेकर उसे अस्त्र बीज (फट) – के उच्चारण पूर्वक जल से धोए तथा बाल्टी मे रखे गंगाजल को छिड़क कर पवित्र कर दीजिए. फिर ह्रदय मंत्र (नमः) के उच्चारण पूर्वक उसे बाल्टी मे रखे गंगा जल से भर दे. इस अर्घ्य पात्र का पूजन करे और भगवान शिव के मूल मंत्र से अभिमंत्रित कर दीजिए. तत्पश्चात अस्त्र मंत्र (फट) – से उसकी रक्षा करके कवच बीज (हुम) – के द्वारा अर्घ्य पात्र को अवगुणित कर देना चाहिए. पूरी पूजा मे आप इसी लोटे से भगवान को जल अर्पित करेगे. सुगंधा ने मुझसे कहा गुरुजी ये पात्र(लोटा) अब आपका नहीं रहा. ये भगवान का हो चुका है, इसे पूजा के कमरे से बाहर नहीं निकालना है आपको. 
इसके बाद अमृता (धेनु मुद्रा) – के लिए धेनु मुद्रा का प्रदर्शन करके अपने आसन पर पुष्प अर्पित करे. तत्पश्चात पद्मा, आचमन, अर्घ्य, पंच गव्य, गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, करोद्धर्तन(चंदन या चंदन मे मिला हुआ जल भी कहते है), ताम्बूल (पान के पत्ते), मुखवास(इलायची इत्यादि), दर्पण. सारी पूजन सामग्री इकट्ठी करके अपने आसान के पास रख ले. तथा अर्घ्य पात्र के जल से (अस्त्राय फट) मंत्र का उच्चारण करके जल छिड़क कर पूजन सामग्री को भी पवित्र कर दे. 
सुगंधा मेरे सर पर हाथ फेरती हुई मुझे समझाते हुए बोली गुरुजी की स्नान, भगवान की पूजा, होम, भोजन, यज्ञ, अनुष्ठान, योग, साधना, तथा आवश्यक जप के समय आपको सदा मौन रहना चाहिए. 
6):- शिव लिंग के शुद्धि करण की विधी :- 
सुगंधा ने मुझसे कहा गुरुजी क्युकी अभी आपके पास शिवलिंग नहीं है, आप शिवलिंग ले कर आयेगे. और सबसे पहले आपको उसका शोधन करना पडेगा. उसके बाद ही आप उस शिवलिंग मे भगवान का आह्वान करेगे. और नित्य पूजा करेगे. यही सही नियम है. इसके लिए किसी भी मंदिर के पूजित शिवलिंग से कुछ पुष्प भगवान से अनुमती लेकर निकाल ले. भगवान से निवेदन करे कि प्रभु, “आप तो त्रिकाल दर्शी है, आप सब कुछ जानते हैं. मैं अपने शिवलिंग के शुद्धिकरण के लिए आपके मस्तक पर चढ़ा एक पुष्प प्राप्त करना चाहता हू. अनुमती दीजिए प्रभु.” और इस प्रकार निवेदन द्वारा एक पुष्प किसी भी पूजित शिवलिंग से प्राप्त कर ले. अगर किसी ज्योतिर्लिंग का पुष्प मिल जाता है तो उससे उत्तम कुछ भी नहीं. 
उसके बाद बनाए हुए पंच गव्य से भगवान को स्नान करवा दीजिए. और (फट) का उच्चारण करके बाल्टी मे रखे गंगा जल से स्नान करवा कर. फिर (नमो नमः) के उच्चारण पूर्वक अर्घ्य पात्र के जल से भगवान का अभिषेक करिए . और उस पुष्प को ईशान कोण की ओर से (चण्डांय नमः) कहकर भगवान को समर्पित कर दे. इस पूरी प्रक्रिया को ही शिवलिंग शोधन ( या शुद्धिकरण) करना कहा जाता है. इसके बाद अपने आसान पर बैठ जाए और मस्तक पर तिलक लगा कर, संस्कार युक्त हो जाइए ( यानी यज्ञोपवित धारण कीजिए) 
सुगंधा ने मुझसे कहा गुरुजी की अब आप पूजा की सारी तैयारी कर चुके है . विघ्नों का निवारण (यानी प्रेत और पिशाचों का निवारण ), जल का शुद्धीकरण,  द्रव्य  (यानी पूजन सामग्री का शुद्धिकरण), आत्मा, मन, शरीर, और सूक्ष्म शरीर का ध्यान के माध्यम से शुद्धिकरण, और शिवलिंग का भी शोधन (शुद्धीकरण) आप कर चुके है. अब आसान पर बैठ पूजा आरंभ करे. 

7):- देवी, देवताओ की पूजन विधी :-
गुरूजी सुगंधा ने मुझसे कहा कि, भगवान की पूजा से पहले सभी देवो का पूजन कर लेना चाहिए. वायव्य कोण में ‘ओम हां गणपतये नमः’ कहकर गणेश जी की पूजा करे और ईशान कोण में ‘ओम हां गुरूभ्यो नमः’ कहकर गुरु, परम गुरु, परात्पर गुरु, तथा परमेष्ठी गुरु सभी गुरु पंक्ति की पूजा आपको करनी चाहिए. तत्पश्चात भगवान के सिंहासन के रूप में जो चौकी है उसके चार पाए है. इनके वर्ण क्रमशः कपूर, कुमकुम, स्वर्ण और काजल के समान है. अग्नि कोण वाले पाए मे धर्म को प्रणाम करे, नैऋत्य कोण वाले पाए मे ज्ञान को प्रणाम कर ले, वायव्य कोण वाले पाए मे वैराग्य और ऐशान्य कोण वाले पाए मे ऐश्वर्य को प्रणाम कर ले. इसके बाद पीठ की पूर्वी दिशा में क्रमशः अधर्म, अज्ञान, अवैराग्य, अनैश्वर्यं को भी प्रणाम कर ले. इसके बाद पीठ के मध्य भाग में कमल की पूजा करे, और मन ही मन कमलमय आसन का ध्यान करके, उस पर सच्चिदानंद भगवान शिव का आव्हान करे.  तत्पश्चात ‘ओम हां कर्णिकायै नमः’ कहकर उस कमल के आठ दलों मे तथा केसर भाग मे नौ पीठ शक्तियों की पूजा करनी चाहिए. जिनके नाम है :- वामा, ज्येष्ठा, रौद्री, काली, कालविकारिणी, बलविकारिणी, बलप्रमथिनी, सर्वभूतदमनी, तथा मनोन्मनी. इन सभी देवियों की पूजा करनी चाहिए. वामा आदि आठ शक्तियों का कमल के आठ दलों मे और मनोन्मनी देवी की पूजा कमल के केसर भाग में की जाती है. इसके बाद चतुर्मुख ब्रम्हा और भगवान नारायण की भी स्तुति और वंदना कर ले. और सभी दिक्पालो को भी उनका नाम लेकर उन्हें प्रणाम कर ले. इस प्रकार आपको सभी देव गणों की पूजा कर लेनी चाहिए. 
8):- भगवान की स्थापना और प्राण प्रतिष्ठा की विधी:-
गुरुजी सुगंधा ने मुझसे कहा कि भगवान के सिंहासन पर, पांच मुखों से सुशोभित भगवान महादेव को प्रतिष्ठित करे. उनकी 10 भुजाएं है. अपने मस्तक पर अर्ध चंद्र धारण करते है. उनके दाहिने हाथ में शक्ति, ऋष्टि, शूल, खडग, और वरद मुद्रा है. तथा अपने बाये हाथ मे डमरू, बिजौरा, नींबु, सर्प, अक्षसूत्र, और नील कमल धारण करते है. 
आसान मे विराजमान भगवान शिव की वह दिव्य मूर्ति बत्तीस लक्षणों से संपन्न है, ऐसा चिंतन करके स्वयं प्रकाश शिव का स्मरण करते हुए ‘ओम हां हां हां शिव मूर्तये नमः’. कहकर भगवान को प्रणाम करे. फिर यह चिंतन करे कि ललाट के मध्य भाग में विराजमान तथा तारा पति चंद्रमा के समान प्रकाशमान बिंदु स्वरूप परम शिव ह्रदय आदि 6 अंगो से संयुक्त हो इस मूर्ति मे उतर आए है. ऐसा ध्यान करके उन्हें प्रत्यक्ष पूज्यनीय मूर्ति मे स्थापित कर दे इसके बाद ‘ओम हां हौं शिवाय नमः’ यह मंत्र बोलकर मन ही मन आवाहिनी मुद्रा द्वारा मूर्ति मे शिव का आव्हान करे. फिर स्थापिनी मुद्रा द्वारा वहा उनकी स्थापना करे. और संनिधापिनी मुद्रा द्वारा भगवान की समीपता की अनुभूति करे. और संनिरोधनी मुद्रा द्वारा उन्हें उस मूर्ति मे अवरुद्ध करा दे. 
गुरूजी सुगंधा ने मेरे सर पर हाथ फेरते हुए कहा कि. आह्वान का अर्थ होता है सादर सम्मुखीकरण, प्रभु को अपने सामने प्रकट होने के लिए विनती करने को ही आह्वान कहते है, और भगवान को अर्चना विग्रह मे बिठाना ही उनकी स्थापना कहलाती है, तथा “प्रभु मैं आपका हू “- ऐसा कहकर भगवान से निकटतम संबंध स्थापित करना ही संनिधान या संनिधापन कहलाता है, जब तक पूजन संबंधी कर्म कांड चालू रहे तब तक भगवान की समीपता बनाए रखने को ही निरोध कहते है. 
9):- सकलीकरण की विधी :- 
गुरुजी सुगंधा ने अपनी मधुर आवाज मे गाते हुए मन्त्रों का उच्चारण शुरू किया. जिसे सुन कर मैं बस मंत्र मुग्ध रह गया. “हृदयाय नम:, शिरसे स्वाहा, शिखायै वषट, कवचाय हुम, नेत्राभ्यां वौषट, अस्त्राय फट”. गुरुजी सुगंधा ने मुझसे कहा कि इन 6 मन्त्रों के द्वारा भगवान के हृदय इत्यादि अंगों की एकता मूर्ति मे स्थापित करने की प्रक्रिया को सकलीकरण कहते है. तथा इसी प्रक्रिया को भी अमृती करण भी कहा गया है. चैतन्य शक्ति भगवान शंकर का हृदय है, आठ प्रकार का ऐश्वर्य उनका सिर है, वशित्व उनकी शिखा है, अभेद्य तेज भगवान का कवच है, उनका दुःसह प्रताप ही समस्त विघ्नों का निवारण करने वाला अस्त्र है हृदय इत्यादि अंगों के साथ नमः, स्वधा, और स्वाहा  इन सबको आपको प्रणाम करना चाहिए. 
10):- भगवान की पूजा विधी :-
गुरुजी सुगंधा ने अपनी मीठी और मधुर आवाज मे मुझसे कहा कि, पद्म को भगवान के चरण बिंदु मे, आचमन को मुखार बिंदु मे तथा अर्घ्य, दूर्वा, पुष्प और अक्षत को भगवान के मस्तक पर चढ़ाना चाहिए. इस प्रकार गंध पुष्प भी अर्पित कर विधी पूर्वक भगवान की पूजा करनी चाहिए. अर्घ्य जल की बूँदों और पुष्प आदि से मूर्ति का अभिषेक करे. 
तत्पश्चात, शिवलिंग मे राई – लोन आदि से उबटन और मार्जन करके बाल्टी मे भरे गंगा जल से धीरे-धीरे भगवान को स्नान करवाये., शिवलिंग को दुध, दही, घी, मधु, इत्यादि से ईशान, तत्पुरुष, अघोर, वामदेव और सद्योजात इन पांच मन्त्रों द्वारा अभिमंत्रित कर बारी बारी से स्नान करवाये. तत्पश्चात सभी द्रव्यों को परस्पर मिला कर पंच गव्य बना ले और भगवान को नहलाए. इससे भोग और मोक्ष की प्राप्ति होती है. तत्पश्चात दुध, दही आदि मे गंगा जल और धूप मिला कर भगवान के किसी भी स्तोत्र को पढ़ते हुए भगवान को स्नान करवाना चाहिए. 
गुरूजी सुगंधा ने मुझसे कहा कि अगर शिवलिंग के ऊपर चिकनाई आ गई है पंचगव्य के कारण तो, जौ के आटे के द्वारा चिकनाई मिटा दे और बाल्टी मे रखे गंगाजल से स्नान करवा दे. इसके बाद साफ़ कपड़े से भगवान के श्री विग्रह को अच्छी तरह पोंछे. इसके बाद अर्घ्य निवेदन करे. भगवान के ऊपर से कभी हाथ नहीं घुमाना चाहिए. शिवलिंग के मस्तक भाग को कभी भी पुष्प से वंचित नहीं रखना चाहिए. हमेशा उनके मस्तक पर पुष्प होना चाहिए. भगवान को स्नान करवाने के बाद वस्त्र और यज्ञोपवीत भगवान को धारण करवा देना चाहिए. फिर शिवलिंग पर चंदन रोली आदि का अनुलेप करके. शिव संबंधी मंत्र या स्तोत्र बोलकर पुष्प अर्पित करे. धूप के पात्र को अस्त्र मंत्र (फट) से पवित्र करके, शिव मंत्र से धूप द्वारा पूजन करे. भगवान को नैवेद्य अर्पित करे. तत्पश्चात गंगा जल से युक्त पवित्र जल से भगवान को आचमन करवा दे. उसके बाद देवाधिदेव के मस्तक पर दूर्वा, अक्षत और पवित्रक चढ़ा कर ‘ओम नमः शिवाय’ 108 बार जाप करे. 
गुरुजी सुगंधा ने कहा कि प्रभु से इस प्रकार प्राथना करनी चाहिए. गुप्त से भी अति गुप्त रहस्य को जानने वाले आप ही है प्रभु. आप मेरे इस किए हुए जप को ग्रहण करे. जिससे आपके रहते हुए आपकी कृपा से मुझे सिद्धियाँ प्राप्त हो. मैं कल्याण स्वरूप आपके चरणों की शरण मे आया हू. अतः सदा हम जो कुछ भी शुभ अशुभ कर्म करते आ रहे है. उन सबको आप नष्ट कर दीजिए प्रभु.,,,, ‘निकाल फेंकिए प्रभु (हूं क्षः)| शिव ही दाता है, शिव ही भोक्ता है, शिव ही यह सम्पूर्ण जगत है, शिव की सर्वत्र जय हो, जो शिव है वही मैं हू. इस प्रकार भगवान को प्रणाम करे. और अंत मे भगवान की परिक्रमा करके, प्रभु के चरणों मे साष्टांग प्रणाम करे.
गुरुजी, सुगंधा ने मुझसे कहा कि, इस प्रकार देवाधिदेव महादेव की पूजा करने से, सभी प्रकार के रोग और बीमारियो से मुक्ति मिल जाती है, तथा मन, आत्मा और शरीर को असीम शांति प्राप्त होती है. तथा घर और परिवार के समस्त क्लेश नष्ट हो जाते है. सभी प्रकार के वास्तु दोष तथा भूत, प्रेत से संबंधित  परेशानियां स्वतः ही समाप्त हो जाती. साधक को परम सिद्धि की प्राप्ति होती है. और साधक मोक्ष का अधिकारी बन जाता है. 
गुरुजी जो इस पूजा का आखिरी भाग है. यानी 11 भाग वो हवन करने की विधी है. जो कि वैदिक है. इसीलिए थोड़ी लंबी भी है. सुगंधा के मुताबिक गुरुजी, हम किसी भी देवी देवता का हवन करते है. तो केवल मंत्र बदल जाते है परंतु विधी वही रहती है जो सतयुग, त्रेतायुग और द्वापरयुग से चली आ रही है. और सुगंधा ने मुझे जोर देते हुए कहा कि आप मेरी बतायी हुई विधी से ही हवन करेगे. 
गुरूजी, हवन विधी अगले पत्र मे बताऊँगा. यहा पर अगर लिखता तो पत्र काफी ज्यादा लंबा हो जाता. और आखिरी मे दर्शकों से एक निवेदन है, की अगर आप लोग किसी मंदिर मे जा कर शिवलिंग की पूजा करते है तो बहुत अच्छा है. परंतु अगर घर मे शिव लिंग की स्थापना करना चाहते है. तो पूजा का कमरा एक अलग जरूर बना लीजिए. जो कि सिर्फ महादेव और देवी देवताओ का होगा. कभी भी शिवलिंग को अपने बेडरूम मे नही रखना चाहिए. दूसरी बात शिवलिंग बहुत बड़ा नहीं लेना है . क्युकी जितना बड़ा शिवलिंग होगा, उनकी ऊर्जा भी उतनी ही अत्यधिक होगी. और जैसा कि हम जानते है. की किसी भी ऊर्जा को सहने के लिए हमे कड़े नियम और कठोर अनुशासन का पालन करना पड़ता है. जो कि इस कलयुग मे लगभग असंभव ही है,. छोटे शिवलिंग की भी अगर नित्य पूजा, पूर्ण भावना और अटूट श्रद्धा से की जाय तो उसमे भी उतना ही फल प्राप्त होता है. 
गुरुजी आशीर्वाद की कामना करते हुए आपके चरणों को स्पर्श करता हू. और आज का पत्र यही समाप्त करता हू

खुशबू वाली सुगंधा का सच्चा अनुभव भाग 10

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