Site icon Dharam Rahasya

खुशबू वाली सुगंधा का सच्चा अनुभव भाग 10

प्रणाम गुरुजी 

गुरुजी सबसे पहले तो माता रानी का बारंबार धन्यवाद करता हू. की अब आपकी सेहत धीरे-धीरे अच्छी हो रही है. क्युकी गुरुजी जब धर्म रहस्य channel के community page पर आपके एक सेवक श्रेष्ट ने post डाली थी “कि गुरुजी की तबीयत ठीक नहीं है, और कुछ दिनों तक कोई video नहीं आ पायेगे.” (मैं आपके उन सेवक श्रेष्ट को प्रणाम करता हू, जिन्होंने हमे सूचना दी .) तो हम सब, सभी साधक भाई बहन बहुत ज्यादा परेशान हो गए थे . लेकिन माता का आपको आशीर्वाद है गुरुजी. माता ने आपको बेहोशी की अवस्था में भी दर्शन दिए, और आयुर्वेदिक ज्ञान और सिद्धियां भी प्रदान की. एक लंबे अन्तराल के बाद जब आपने अपना अनुभव बताया, और जिस प्रकार आपने प्रारब्ध और कर्म फल का मर्म समझाया, उसकी प्रशंसा नहीं की जा सकती. 
गुरुजी सभी दर्शकों से माफ़ी माँगना चाहता हू. क्युकी इस बार सच में बहुत देरी हो गई पत्र लिखने मे. दरसल मेरी दादी की तबीयत बिगड़ गयी थी. उनका blood pressure के साथ साथ sugar बहुत बढ़ गया था. और तेज बुखार के साथ चक्कर आने लगे थे उनको . जिसके कारण वो घर वालों से बस एक ही बात बार बार बोलने लगी थी. “की अगर मुझे कुछ हो जाए तो मेरा अंतिम संस्कार प्रतीक के हाथ से ही करवाना”. लेकिन एक महीना जब मैं उनके पास रुका तब उनका आत्म विश्वास फिर से जगा. और उनकी तबीयत भी अब ठीक है. मैं पिछले एक महीने से अपने घर, अपने hometown पे ही था. और इसी कारण पत्र समय पर नहीं भेज पाया.
गुरुजी आपके चरणों को स्पर्श करके. आपकी आज्ञा प्राप्त करते हुए आज का पत्र शुरू करता हू. गुरुजी पिछले पत्र मे भगवान शिव की पूजा विधी दर्शकों को बतायी थी. जिसका अंतिम भाग यानी हवन की विधी आज बताने जा रहा हू. और जिस प्रकार सुगंधा ने मुझको हवन विधी समझाई थी. उसी प्रकार दर्शकों को समझाने का प्रयास करूगा. गुरुजी विधी को 10 हिस्सों में बांट दिया है. ताकि दर्शकों को समझने मे कोई परेशानी न हो. और उन्हें याद भी रहे की, किस step के बाद कोन सा step करना है. 
1):- कुंड की साफ़ सफाई :-  
गुरुजी आज के भौतिक जगत मे बहुत सारी सनातन विधियां है जिनको पूरा सब लोग नहीं कर सकते मैं जानता हू. पिछले पत्र मे भी कुछ दर्शकों ने comment section मे ये कहा था कि ये विधियाँ हम नहीं कर सकते आज के परिवेश के कारण या अपनी जॉब के कारण. इसीलिये मैंने पहले सोचा कि कुछ महत्वपूर्ण बाते बता दु, पूरी विधी की जगह कुछ महत्वपूर्ण बातें सिर्फ लिख कर पत्र भेज दु. लेकिन गुरुजी जब सुगंधा से मैंने इस बारे में बात की तो सुगंधा थोड़ी सी नाराज हो गई थी . सुगंधा ने मुझसे कहा कि या तो अनुभव भेजना बंद कर दीजिए, और अगर अनुभव भेज रहे है तो किसी भी विधी को पूरा बताईये. अधूरा ज्ञान कभी कभी घातक होता है. सुगंधा ने मुझसे कहा कि, आज भी कई ऐसे मठ, मंदिर, गुरु आश्रम और गुरुकुल है. जहा सनातन धर्म और धार्मिक कर्म कांड का ज्ञान शिष्यों को दिया जाता है. और आपकी बताई हुई विधी उन साधकों के लिए बहुत उपयोगी होगी. गुरुजी, सुगंधा जिद्दी बहुत है, और उससे बहस में कोई नहीं जीत सकता. तो विधी पूरी बताऊँगा. और मैं कैसे adjust करता हू उसको भी बताऊँगा. ताकि मेरी तरह जो working लोग है, और शहरों मे रहते है, वो भी वैदिक विधी के अनुसार हवन कर सके और उसके परिणाम स्वरूप जीवन मे शुभ – लाभ और आरोग्यता प्राप्त कर सके. 
गुरुजी सुगंधा ने अपनी मीठी और मधुर आवाज मे मुझसे कहा कि. प्रभु से प्राथना, और किए हुए जाप को प्रभु के श्री चरणों में अर्पित करने के बाद प्रभु की परिक्रमा करके उनको साष्टांग प्रणाम करना चाहिए. तदनंतर अपने शरीर के ऊपरी भाग को वस्त्र आदि से आव्रत कर, दाहिने हाथ में अर्घ्य पात्र लेकर मौन होकर आपको अग्नि शाला में प्रवेश करना चाहिए. और सबसे पहले उत्तरा विमुख होकर कुंड को देखे. और कुशो के द्वारा कुंड की साफ़ सफाई कर ले. जरूरत पड़े तो थोड़ा जल छिड़क कर कुशो के द्वारा अच्छे से कुंड को साफ़ कर ले. (कुश एक प्रकार की घास होती है जो पूजा मे उपयोग की जाती है, और बड़ी आसानी से किसी भी पूजा सामग्री की shop पर मिल जाती है). 
गुरुजी सुगंधा ने बताया कि जल छिड़कने का कार्य कवच मंत्र “हूं” से करना चाहिए तथा कुशो द्वारा साफ़ सफाई अस्त्र मंत्र “फट” से करनी चाहिए. अगर कुंड में पहले से जली हुई राख और घृत इत्यादि की जली हुई आहुतियां चिपकी हुई है, जो कुश के द्वारा नहीं निकल रही. तो चंद्रहास से (यानी तलवार से) फट मंत्र का उच्चारण करते हुए चिपकी हुई राख को कुरेद कर निकाल दे. गुरुजी मेरे पास तलवार नहीं थी तो मैंने सब्जी काटने वाला एक बड़ा चाकू खरीदा. विशाल मेगामार्ट मे उससे बड़ा चाकू और कोई नहीं था. और मैं उसी चाकू से अपने हवन पात्र की साफ़ सफाई करता हू. सुगंधा हालांकि बहुत हसी थी मेरे ऊपर. मुझसे पूछते हुए कि ये क्या है? और मैंने जवाब दिया था कि फिलहाल यही मेरी चंद्रहास है. लेकिन सुगंधा ने अनुमती दे दी थी. तो वैदिक रीति का पालन करते हुए तलवार की जगह बड़े चाकू का इस्तेमाल भी किया जा सकता है. लेकिन फिर उस चाकू का और किसी कार्य में इस्तेमाल न करे. उसे अपनी हवन सामग्री के साथ ही रख ले. तत्पश्चात कवच मंत्र “हुं” से कुंड का अभिषेक तथा अस्त्र मंत्र “फट” से कुंड के आसपास की भूमि भी साफ़ कर ले तथा कुंड के उत्तर दक्षिण और पूर्व पश्चिम की दिशा में कुश बिछा कर कई आसान या चौकीया लगा दे. सुगंधा ने मुझसे कहा था गुरुजी की, कई देवताओ को निमंत्रण देना है आगे इस हवन मे. उसके बाद सुगंधा ने बताया कि कुंड का सम्मार्जन, उपलेपन, कलात्मक रूप देने का कार्य करना चाहिए.
गुरुजी मंदिर, आश्रम या गुरुकुल में कुंड जमीन पर बना होता है. जिसके लेपन के लिए गोबर भी आसानी से उपलब्ध हो जाता है. मगर cities मे थोड़ी मुश्किल आती है. गुरुजी मैं छुही को घोल कर अपने हवन पात्र में उसका लेप अंदर और बाहर कवच मंत्र पढ़ कर लगा लेता हू,  छुही अगर नहीं  मिलती है , तो चंदन को ही थोड़ा जल डाल कर घिस कर पेस्ट बना लेता हू . और हवन पात्र मे अंदर और बाहर से लेप लगा कर अपने हवन पात्र को पवित्र बना लेता हू . और सुगंधा ने इस प्रकार अनुमती दे दी थी, तो गोबर की जगह चंदन या छुही का उपयोग भी वैदिक ही है. मार्कर और colour का उपयोग कर कुछ कला कृतियां हवन पात्र के बाहरी भाग में बना कर. कलात्मक रूप देकर हवन पात्र को सुन्दर बना लेता हू. 
गुरुजी, सुगंधा ने आगे बताया कि इसके बाद कुंड का त्रिसूती परिधान और अर्चन कवच मंत्र “हुं” का उच्चारण करते हुए करे. और कुंड के उत्तर में तीन रेखा खींच ले और पूर्व की दिशा में एक रेखा खीच ले. रेखा कुश से या त्रिशूल से खींचना चाहिए. गुरुजी मैं चॉक और कुश को एक साथ पकड़ कर ही रेखाओ को खींचता हू balcony की फर्श पर. तीन रेखा उत्तर की तरफ और एक रेखा पूर्व दिशा की तरफ…|
2):-  अग्नि देव का जन्म :- 
गुरुजी सुगंधा ने अपनी मीठी और मधुर आवाज मे मुझसे कहा कि “वागीश्रयैं नमः।” “ईशाय नमः।”. ऐसा बोल कर पहले वागीश्ररी देवी और ईश का आव्हान और पूजा सबसे पहले करले. इसके बाद अच्छे स्थान से शुद्ध पात्र में रखी हुई अग्नि को ले आए. गुरुजी, सुगंधा ने मुझसे पूछा कि मैंने कुछ दिनों पहले आपको शुक्ल यजुर्वेद संहिता के कुछ मंत्र कंठस्थ करने को कहें थे.. आपने याद कर लिए? मैंने कहा पूरे तो नहीं लेकिन कुछ याद कर चुका हू.  गुरुजी, सुगंधा थोड़ी दुखी हो गई थी मेरा ये जवाब सुन कर . सुगंधा ने कहा क्रव्याद के अंश भूत त्रिविध अग्नियों को यानी और्दय अग्नि, ऐन्दव अग्नि, और भौत अग्नि. तीनों अग्नि को एकत्र करने के लिए. शुक्ल यजुर्वेद संहिता के 35 वे अध्याय के 19 वे मंत्र को पढ़ा जाता है. मैंने सुगंधा से कहा गुरुजी, दुखी मत हो मुझे याद है. “क्रव्यादमग्नि प्रहिणोम दूरम”. कहते हुए मैंने सभी मंत्र सुगंधा ने जो जो मुझको दिए थे, मैंने सुना दिए. तब सुगंधा खुश हुई गुरुजी. और सुगंधा ने अपनी मीठी आवाज मे मुझसे कहा कि इसी मंत्र के उच्चारण पूर्वक क्रव्याद के अंश भूत अग्नि कण को आप निकाल देना. और त्रिविध अग्नियों को एकत्र करके “ॐ हूं वहिृचैतन्याय नमः” का उच्चारण करके अग्नि बीज़ “रं” के साथ जोड़ देना. 
गुरुजी सुगंधा ने आगे कहा कि, इसके बाद उस अग्नि को संहिता मंत्र से अभिमंत्रित कर के , तथा अमृतीकर्ण क्रिया के द्वारा अस्त्र मंत्र से सुरक्षित और कवच मंत्र से अवगुणित कर दीजिए और सबसे पहले उस अग्नि की पूजा करके. कुंड के ऊपर से तीन बार प्रदक्षिणा करके (यानी तीन बार घुमा कर) कुंड मे रख दे. सुगंधा ने मेरे सर पर हाथ फेरते हुए कहा गुरु जी की “उस अग्नि को देखते हुए मन मे ऐसा चिंतन करे कि ये भगवान शिव का बीज़ है” . – ऐसा चिंतन करते हुए ध्यान लगाए की वागीश्ररदेव ने इस बीज़ को वागीश्ररी देवी के गर्भ मे स्थापित किया है. इसके बाद दोनों घुटने प्रथ्वी पर टेक कर कुंड मे रखी उस सौम्य और सुकुमार अग्नि को प्रणाम करे. 
तत्पश्चात, उस कुंड के नाभि देश मे जहा अग्नि रखी हुई है, कुशो के द्वारा परिसमूहन, परिधान – सम्भार, शुद्धि, आचमन और नमस्कार पूर्वक गर्भ अग्नि का पूजन करके उस गर्भज अग्नि की रक्षा के लिए अस्त्र मंत्र से माँ गौरी के पणिपल्लव (हाथ) मे रक्षा सूत्र बाँध दे. 
A)उसके बाद सद्योजात मंत्र को पढ़ते हुए माता को और उनके पुत्र अग्नि देव को प्रणाम करे , गर्भाधान के उद्देश्य से  हृदय मंत्र ‘हृदयाय नमः|’से तीन आहुतियां दे. और अर्घ्य पात्र से कुंड और माता की मूर्ति पर गंगा जल छिड़क दे. – हुं फट
 B)फिर गर्भ मे पनप रहे शिशु और माँ की कुशलता के लिए तीसरे मास में होने वाले पुसंवन – संस्कार की पूर्ति के लिए वामदेव मंत्र पढ़ कर माता और अग्नि को प्रणाम करे और ‘शिरसे स्वाहा |’- बोलकर तीन आहुतियां दे. इसके बाद अर्घ्य पात्र मे भरे गंगाजल से कुंड पर और माँ पर जल छिड़क दे. – हुं फट
C)तदन्तर छटे मास में होने वाले सीमन्तोन्नयन – संस्कार की पूर्ति के लिए अघोर मंत्र पढ़ कर माता और अग्नि को प्रणाम करे और ‘शिखायै वषट |’-बोलकर तीन आहुतियां दे. इसके बाद अर्घ्य पात्र मे भरे गंगाजल से कुंड पर और माँ पर जल छिड़क दे. – हुं फट
D) तत्पश्चात पूर्ववत दसवे मास मे होने वाले शिशु के जातकर्म और नरक कर्म  की पूर्ति के लिए तत्तपुरुष मंत्र पढ़ते हुए माता और नवजात शिशु अग्नि को प्रणाम करे. अर्घ्य पात्र के जल से छीटा मार कर गर्भमल को दूर कराने वाला स्नान और अभिषेक, नवजात शिशु अग्नि को करवा दे. एवं तत्काल हृदय मंत्र जपते हुए माता के हाथ मे स्वर्ण बंधन करके, सूतक की निवृत्ति के लिए अस्त्र मंत्र बोल कर माँ गौरी और उनके पुत्र अग्नि देव को गंगा जल छिड़क कर अभिषेक कर दे. – हुं फट
तत्पश्चात शंखनाद करके म्रत्यु लोक से लेकर स्वर्ग लोक और बैकुंठ तक समस्त सृष्टि को बता दे. की अग्नि देव का जन्म हो चुका है. और कुंड में जल रही उस सौम्य अग्नि की मनमोहक छवि को हृदय मे उतार ले. गुरुजी, दर्शक गण चाहे तो गाय के गोबर से बने उपले को बर्नर से जला कर. कुंड में रख सकते है. और हवन मे उपयोग आने वाली पवित्र लकड़ियां डाल कर, हाथ की पंखी से हवा देकर अग्नि प्रज्वलित कर सकते है यथा अग्नि देव की जन्म विधी पूरी हो जाएगी. मैं भी ऐसा ही करता हू. लेकिन सुगंधा का तरीका बहुत अलग है अग्नि प्रज्वलित करने का गुरुजी. वो बस कुंड के सामने बैठती है. और दोनों हाथ जोड़ कर ऊपर आकाश में देख कर सिर्फ एक बार बोलती है “गुरुदेव”. और कुंड मे अग्नि अपने आप प्रज्वलित हो जाती है. 
3):- सभी देवताओं को निमंत्रण :-
गुरुजी सुगंधा ने मुझसे आगे कहा कि कुंड के आसपास अस्त्र मंत्र के उच्चारण पूर्वक कुशो द्वारा साफ़ सफाई कर ले. (गुरुजी, जो साधकगण, मेरी ही तरह टाइल्स और फर्श पर रहते है, वो झाड़ू पोछा लगा सकते है, मैं भी लगाता हू. जो साधकगण गुरुकुल या गुरु आश्रम की पवित्र भूमि पर निवास करते है वो कुशो द्वारा कुंड के आसपास की भूमि का ताड़न और मार्जन करे.)
 फिर ‘हुं’ का उच्चारण करके भूमि को जल से सींच दे. इससे धूल बैठ जाती है. तत्पश्चात कुंड के समीप मेख़लाओं पर अस्त्र मंत्र से उत्तर और दक्षिण दिशाओं मे पूर्व की ओर. तथा पूर्व और पश्चिम दिशाओ मे उत्तर की ओर कुशाओ को (यानी घास) बिछा दे. कुशा अगर कम हो तो थोड़ी थोड़ी कुशा रखकर उसके ऊपर आसन या लकड़ी की बनी हुई चौकी रख दे. सुगंधा ने मुझसे कहा गुरुजी की हवन की पूर्ति के लिए ह्रदय मंत्र से आठों दिशाओं मे आसन विशेष स्थापित करना चाहिए. 
तत्पश्चात बालक अग्नि के नालच्छेदन उद्देश्य से पांच समिधाओ (हवन मे उपयोग आने वाली लकड़ी को समिधा कहते है) पांच समिधा के मूल भाग को घी मे डुबो कर उन पांचो की आहुति दे. तदन्तर ब्रम्हा, शंकर, विष्णु और अनंत का दूर्वा और अक्षत आदि से पूजन कर ले. पूजन करते समय उनके नाम के अंत मे ‘नमः’ जोड़कर उच्चारण करना चाहिए. जैसे कि :- ब्रम्हणे नमः।, शंकराय नमः।, विष्णवे नमः।, अनन्ताय नमः।. फिर कुंड के चारो ओर रखे आसनों पर सभी देवताओं का आवाह्न उनका नाम ले कर करे. यथा:- पूर्व मे आमंत्रण दे “ॐ सूर्यमुर्तये नमः”। आगच्छ देव आगच्छ, अग्निकोण मे आमंत्रण दे “ॐ चन्द्रमुर्तये नमः”। आगच्छ देव आगच्छ, दक्षिण में आमंत्रण दे “ॐ प्रथ्वीमुर्तये नमः”।आगच्छ देव आगच्छ दे , नैऋत्य कोण मे आमंत्रण दे “ॐ जलमुर्तये नमः”। आगच्छ देव आगच्छ, पश्चिम में आमंत्रण दे “ॐ वहिृंमुर्तये नमः”। आगच्छ देव आगच्छ, वायव्य कोण में आमंत्रण दे “ॐ वायुमुर्तये नमः”। आगच्छ देव आगच्छ,  उत्तर मे आमंत्रण दे “ॐ आकाश मुर्तये नमः”। आगच्छ देव आगच्छ, और ईशान कोण में आमंत्रण दे की  “ॐ इंद्र मुर्तये नमः। आगच्छ देव आगच्छ. 
सुगंधा ने अपनी मीठी और मधुर आवाज मे मुझसे कहा गुरुजी की, इस प्रकार सभी देवताओं को उनका नाम लेकर आमंत्रण देना चाहिए. और अंत में आगच्छ देव आगच्छ बोलना चाहिए. यानी आइए देव आइए आसन ग्रहण कीजिए. और ये भावना करनी चाहिए कि सबका मुख बालक अग्नि देव की ओर है. और सभी देवता इतने सुन्दर और तेजस्वी नवजात शिशु को देख कर मंत्रमुग्ध है. सम्मोहित हो चुके है. सभी देवताओं को प्रणाम करके उन्हें यथा भगवान शिव की आज्ञा सुना दे.  (देवताओं! तुम सब लोग विघ्न समूह का नाश करके मेरे पुत्र अग्नि की रक्षा करो. ये मेरा तुम सब को आदेश है). तत्पश्चात स्त्रुक और स्त्रुव को लेकर उन्हें बारी बारी से कुंड में जल रही अग्नि मे तपाये. और एक कुश के मूल, मध्य और अग्र भाग को स्त्रुक और स्त्रुव का स्पर्श करा कर दे. स्पर्श हुए तीनों स्थानो को तीन नाम दे. आत्म तत्व, विद्या तत्व, और शिव तत्व. और मंत्र पड़ कर उस कुश को अवगुणित कर दे. मंत्र इस प्रकार है :- ॐ हां आत्मतत्वाय नमः।, ॐ हां विद्यातत्वाय नमः।, ॐ हां शिवतत्वाय नमः।. इन तीन मन्त्रों से अवगुणित कर उस कुश को देवराज इंद्र के आसन पर रख दे. और देवराज को प्रणाम कर के पुनः अपने आसान पर वापस आकर बैठ जाए. 
4):- स्त्रुक एवं स्त्रुव की पूजा विधी :- 
गुरुजी सुगंधा  अपनी मीठी आवाज मे मुझे समझाते हुए बोली कि स्त्रुक मे ‘नमः’ के साथ शक्ति का और स्त्रुव मे शिव का न्यास करे. यथा- “शक्त्यै नमः।”, “शिवाय नमः। “. फिर तीन आवृत्ति मे फैले रक्षा सूत्र को स्त्रुक और स्त्रुव के ग्रीवा भाग मे बाँध दे. {(स्त्रुव चम्मच नुमा बर्तन होता है, जिससे घी इत्यादि भर कर हवन कुंड मे आहुति दी जाती, जिससे हाथ जलते नहीं है. अगर हवन पात्र छोटा है तो हाथ से भी आहुति दी जा सकती है. और स्त्रुक एक प्रकार का पात्र है, जिसमें घी, लावा इत्यादि भर कर रखते है.)}. 
गुरुजी सुगंधा ने आगे बताया कि स्त्रुक एवं स्त्रुव मे रक्षा सूत्र बांधने के बाद पुष्प आदि से उनका पूजन करे. और गाय का घी स्त्रुक मे भर कर अपने ब्रम्हामय  होने की भावना करके उस पात्र को हाथ मे लेकर ह्रदय मंत्र जपते हुए कुंड के ऊपर अग्नि कोण मे एक बार घुमा ले. पुनः अपने स्वरुप के विष्णुमय होने की भावना करे. और घृत को ईशान कोण मे रखकर कुशा के अग्र भाग से घी निकाले और “शिरसे स्वाहा।”, एवं “विष्णवे स्वाहा।”. बोलकर भगवान विष्णु के लिए घी की एक बूंद की आहुति दे.  फिर अपने स्वरूप की रुद्रमय होने की भावना करे. और कुंड मे जल रही अग्नि के ऊपर घृत की एक धारा गिरा कर. स्नान करवा दे. 
5) :- आहुति देने का नियम :-
गुरुजी इस विधी को करने मे मैने सुगंधा को बहुत परेशान किया था. और सुगंधा ने परेशान होकर मुझसे कह दिया था कि आप मत किया कीजिए हवन, मैं कर दिया करूंगी. मेरे इतना समझाने के बाद भी आप समझ नहीं रहे. गुरुजी, सुगंधा ने संस्कृत में जिस प्रकार लिखवाया था. आहुति देने का नियम, उसको हिन्दी मे translate करने के लिए. मुझे संस्कृत to English, और संस्कृत to हिन्दी dictionary भी खरीदनी पडी. इसके अलावा कई library मे बैठ कर पुराणों और उपनिषदों मे भी रिसर्च करनी पडी. फिर भी मुझे आहुति देने का ये नियम समझ नहीं आया. लेकिन जब सुगंधा हवन करने बैठी और मैंने उसे ये विधी करते देखा. तब मुझे खुद पर इतना क्रोध आया कि मैं कितना बेवक़ूफ़ हू जो इतनी छोटी सी बात नहीं समझ पा रहा था. और फिर मैंने सुगंधा को कहा कि आपको सवेरे आने की जरूरत नहीं है. मैं अब कर लूँगा, मैं समझ गया हू. और सुगंधा ने हंसते हुए मुझसे कहा था कि कल सवेरे देखती हू, कितना समझ गए है आप? लेकिन अगले दिन पूरा हवन मैंने अकेले किया वो भी सुगंधा से बिना पूछे. तब सुगंधा बहुत खुश हुई थी गुरुजी. 
गुरुजी सुगंधा ने अपनी मधुर आवाज मे मुझे समझाते हुए कहा था कि (फैलाए हुए अंगूठे से तर्जनी तक कि लंबाई को प्रादेश कहते है.). प्रादेश बराबर लम्बे दो कुशों को अंगूठे और अनामिका – इन दो उँगलियों से पकड़ कर अस्त्र मंत्र ‘फट’  के उच्चारण पूर्वक अग्नि के ऊपर घृत को प्रवाहित करे. इसी प्रकार हृदय मंत्र ‘नमः’ का उच्चारण करते हुए भी अग्नि के ऊपर घृत को प्रवाहित कर दे. अग्नि की तेज आंच से दोनों हरे कुशों के दग्ध हो जाने या लगभग जल कर सूख जाने के बाद. ‘फट ‘ के उच्चारण पूर्वक दोनों को पवित्र कर दे. एक कुश मे गाँठ लगा दे. और दूसरे कुश के अग्र भाग को अग्नि मे जला कर. गाँठ लगे कुश की नीराजना यानी आरती करके. जले हुए कुश को कुंड में डाल दे. और गाँठ लगे कुश को नारायण स्वरूप मान कर. ऐसी प्राथना करे कि (“की हे दया सागर, हे भक्त वत्सल, नारायण. जिस प्रकार आप जगत के कण कण मे विद्यमान है. सृष्टिया आपके भीतर है प्रभु और आप सृष्टियों के भीतर. आपके एक अंश को अग्नि को समर्पित कर चुका हू प्रभु और आपके इस अंश को अपनी हवन सामग्री मे मिलाना चाहता हू प्रभु. जिससे कि मेरी हर आहुति आपसे ही शरू हो और आप पर ही समाप्त हो. और फल स्वरूप मुझे अनंत की प्राप्ति हो सके प्रभु। मुझे शिव की प्राप्ति हो सके।). ऐसा कह कर उस गाँठ लगे कुश को घृत के पात्र में डाल दे. यथा अग्नि और हवन सामग्री दोनों को नारायण स्वरूप बनाने के पाश्चात्य घी मे दो पक्षों तथा इडा आदि तीन नाडिय़ों की भावना करके उस पात्र में रखे घृत को प्रणाम कर ले. 
सुगंधा ने मुझसे कहा गुरुजी की अब हवन की सारी तैयारी हो चुकी है. लेकिन हवन प्रारम्भ करने से पहले एक देवी के बारे में जानकारी आवश्यक है. उनका नाम है “स्वाहा”. सुगंधा ने मुझसे कहा कि आपको याद है,? मैंने भगवान शिव की पूजा सिखाते समय, आपको सकलीकरण सिखाने के बाद. नमः, स्वधा, और स्वाहा को प्रणाम करने को बोला था. मैंने कहा हाँ सुगंधा मुझे याद है. मैं रोज “स्वाहा” को प्रणाम करता हू. सुगंधा ने कहा गुरुजी की “स्वाहा” और कोई नहीं अग्नि देव की पत्नी है. और आपको आहुति डालते समय स्वाहा का उच्चारण करना सीखना है. इस नियम को बिना जाने हवन पूर्ण नहीं माना जाता. 
सबसे पहले मंत्र पढ़ते हुए स्त्रुक मे रखे घृत को स्त्रुव मे निकाले फिर “स्वा” के उच्चारण पूर्वक स्त्रुव से आहुति अग्नि में डाले. और ” हा ” बोलते हुए स्त्रुव मे बचे घी को पात्र विशेष मे छोड़ दे. अर्थात “स्वाहा” बोलते हुए दोनों कार्य करे. (अग्नि मे हवन और बचे हुए शेष का पात्र विशेष मे प्रक्षेप). सुगंधा ने मुझसे कहा गुरुजी की इस प्रकार आहुति देने से एक लय बनती है. जो कि अत्यंत महत्त्वपूर्ण है. मंत्र और अग्नि के तेज का समभाव होना अत्यंत आवश्यक है. अब चाहे कोई भी विपत्ति क्यु न आ जाए, चाहे प्रलय ही क्यु न आ जाए, ये लय टूटनी नहीं चाहिए. 
6) :- शिव पूजा के अंगभूत होम की विधी :- 
गुरुजी, सुगंधा ने अपनी मीठी और मधुर आवाज मे मुझसे कहा कि. घृत मे नारायण, तीन नाडिय़ों के साथ दो पक्ष आप पहले ही स्थापित कर चुके है. अब प्रथम नाड़ी का ध्यान करके, इडा भाग से घृत लेकर “ॐ हामग्नये स्वाहा।” इस मंत्र का उच्चारण करके अग्नि मे होम करे. और ‘हा’ शब्द के साथ ही स्त्रुव मे बचे हुए घृत को अलग एक पात्र विशेष मे डाले. इसी प्रकार दोबारा स्त्रुक मे स्त्रुव को डाले और दूसरी नाड़ी पिंगला का ध्यान करते हुए ” ॐ हां सोमाय स्वाहा।” इस मंत्र का उच्चारण करके अग्नि मे होम करे. और ‘हा’ शब्द के साथ ही स्त्रुव मे बचे हुए घृत को पात्र विशेष मे डाले. फिर सुषुम्णा नामक तीसरी नाड़ी का ध्यान करके घृत स्त्रुव मे लेकर “ॐ हामग्नी षोमाभ्यां स्वाहा।”.. कह कर आहुति डाले. और हा शब्द के साथ ही स्त्रुव मे बचे हुए घृत को पात्र विशेष मे डाले.. इसी प्रकार आहुति आपको डालनी है, सुगंधा ने मुझसे कहा गुरुजी. मैंने सुगंधा से पूछा कि ये जो पात्र मे आहुति के बाद का घृत इकट्टा हो रहा है, इसका क्या करना है? सुगंधा ने कहा वो आप किसी भी उपयोग मे ले सकते हो. बस कुंड मे मत डालना उसे अब. 
इसके बाद बालक अग्नि के मुख मे तीनों नेत्रों के उद्घाटन करने के लिए घृत भर कर स्त्रुव द्वारा चौथी आहुति दे. मंत्र है – “ॐ हामग्नये स्विषृक्रते स्वाहा।” और फिर स्त्रुव को पात्र विशेष मे खाली कर दे. तत्पश्चात “ॐ हां हृदयाय नमः”, “ॐ हां शिरसे स्वाहा”, “ॐ हां कवचाय हुं”, “ॐ हां अस्त्राय फट”, “ॐ हां नेत्राभ्यां वौषट”, “ॐ हां शिखाय वषट”.।- इत्यादि इन छहो अंग संबंधी मन्त्रों द्वारा घृत को अभिमंत्रित कर ले. तथा शिव स्वरूप अग्नि के पांच मुखों के लिए “अभिधार होम”, “अनुसंधान होम “,” मुखों के एकीकरण “। – के लिए होम करे. 
A) :- अभिधार होम:- ” ॐ हां सद्योजाताय स्वाहा”।” ॐ हां वामदेवाय स्वाहा”। “ॐ हां ईशानाय स्वाहा” । “ॐ हां अघोराय स्वाहा” । “ॐ हां तत्तपुरूषाय स्वाहा” । – इन पांच मन्त्रों द्वारा सद्योजात आदि पांच मुखों के लिए अलग अलग क्रमशः घृत की एक एक आहुति दे यही अभिधार होम है. 
B) :- अनुसंधान होम :- गुरुजी सुगंधा ने अपनी मधुर आवाज मे मुझसे कहा था कि इस होम को करने के लिए दो-दो  मुखों के लिए एक आहुति दे। अर्थात इस होम को संपन्न करने के लिए – “ॐ हां सद्योजात वामदेवाभ्यां स्वाहा” । “ॐ हां वामदेवाअघोराभ्यां स्वाहा” । “ॐ हां अघोरतत्तपुरुषाभ्यां स्वाहा” । “ॐ हां तत्तपुरूषेशानाभ्यां स्वाहा” । 
C) :- मुखभिधार एकीकरण होम:- गुरुजी सुगंधा ने खुद अपने हाथो से घृत को बहा कर बताया था कि, कुंड मे नैऋत्य कोण से ईशान कोण तक और अग्नि कोण से वायव्य कोण तक घी की अविच्छिन्न धारा यानी बिना धार के टूटे हुए घृत को अग्नि के ऊपर बहाते हुए. मंत्र पढ़े – “ॐ हां सद्योजातवामदेवाघोर तत्तपुरूषेशानाभ्यः स्वाहा”।    इस मंत्र के द्वारा आहुति दे कर उन पांचो मुखों की एकता करे. इस मंत्र से पांचो मुखों के लिए एक ही आहुति देने से उन सबका एकीकरण हो जाता है तथा एक ही मुख सभी मुखों का आकार तथा गुण धारण कर लेता है. 
7):- जगत पिता के पुत्र का नामकरण :-
 गुरुजी सुगंधा ने अपनी मीठी और मधुर आवाज में मुझसे कहा कि, इसके बाद कुंड के ईशान कोण मे अग्नि की पूजा करके अस्त्र मंत्र यानी -” ॐ हां अस्त्राय फट । ” – से तीन आहुतियां देकर अग्नि का नामकरण करे. |- {“हे अग्निदेव | तुम सब प्रकार से शिव ही हो | जिस प्रकार शिव के दर्शन हो जाने मात्र से, सारी मिथ्या, सारी माया, एवं जन्म-जन्मांतर के पापो का नाश हो जाता है| उसी प्रकार तुम्हारे स्पर्श मात्र से सारी मिथ्या, सारी माया, एवं जन्म जन्मांतर के पापों का नाश सम्भव है |”इसलिए तुम्हारा नाम शिव है “}|
इस प्रकार नाम करण करके नमस्कार पूर्वक पूजित हुए बालक अग्नि के माता पिता – वागीश्रर देव एवं वागीश्ररी देवी यानी (शिव और शक्ति). का अग्नि मे विसर्जन कर दे. अगर हवन मे जगत माता गौरी और जगत पिता शिव की मिट्टी की मूर्ति बनाई थी तो कुंड मे उन्हें प्रणाम करके प्रवाहित कर दे. और अगर नित्य पूजा करने की मूर्ति हवन मे रखी थी. तो माँ के हाथ से सूतक की निवृत्ति और रक्षा के उदेश्य से बांधे गए रक्षा सूत्र एवं मन्त्रों को उतार कर अग्नि मे प्रवाहित कर दे. और “हुं फट” के उच्चारण पूर्वक माता पर जल छिड़क कर माता शक्ति और पिता शिव को दंडवत प्रणाम कर ले. तत्पश्चात शिव और शक्ति के लिए पूर्ण आहुति देनी चाहिए. तथा यज्ञाग्नि तथा शिव का अपने साथ नाड़ी संधान करके अपनी शक्ति और सामर्थ्य के अनुसार जगत पिता शिव के मूल मंत्र से दशांस होम करना चाहिए. 
8):- हवन सामाग्री और मात्रा का निर्धारण :-
गुरुजी अब तक लिखते लिखते मेरे हाथ जवाब दे चुके थे. दरअसल पत्र सातवाँ यानी भगवान नारायण की पूजा विधी, महादेव की पूजा विधी और हवन, और माता की पूजा विधी सुगंधा ने एक ही दिन बतायी थी. सुगंधा ने मुझसे कहा कि क्या हुआ थक गए. मैंने कहा सुगंधा अब बस करो बाकी कल बताना. अब मेरी कलाई दर्द करने लगी है लिखते लिखते. और वो भी संस्कृत. हिन्दी या English होती तो किसी तरह पेन घसीट कर लिख भी लेता. सुगंधा ने मेरी कलाई पकडी गुरुजी और सारा दर्द मेरा गायब हो गया. और सुगंधा ने हंसते हुए कहा. कल नहीं। – “आज और अभी ” |
गुरूजी सुगंधा ने अपनी मधुर आवाज मे मुझसे कहा था कि मधु का एक एक कर्ष (यानी सोलह माशा) एक आहुति मे डालना चाहिए. गुरुजी मैंने सुगंधा से कहा कि ये माशा क्या होता है.??? सुगंधा ने हंसते हुए मुझे समझाया कि. धान समझते है आप? मैंने कहा हाँ, चावल को धान कहते है. सुगंधा ने कहा गुरुजी की 4 धान की एक रत्ती होती है, 8 रत्ती का एक माशा होता है, 12 माशा का एक तोला होता है, 5 तोले की एक छटाक और 16 छटाक का एक सेर होता है. और 5 सेर की एक पंसेरी होती है. मैंने सुगंधा को कहा, मैं समझ गया सोलह माशा माने 12 माशा का एक तोला होता है तो लगभग एक तोले से थोड़ा सा ज्यादा ‘1 तोला और 4 माशा जितना ‘. सुगंधा ने हंसते हुए कहा  बिल्कुल सही. सुगंधा ने मेरे सर पर हाथ फेरते हुए कहा गुरुजी की दही की आहुति की मात्रा एक ‘सितोही’. गुरुजी मैंने ‘सितोही’ शब्द लिख कर जैसे ही सुगंधा की तरफ देखा. सुगंधा बोल पडी हंसते हुए. आम की गुठली देखी है.??? बीच से आम की गुठली फाडने पर जितना दही उसमे आ सकता है. उसे एक सितोही बोलते है. दुध की आहुति का मान एक पसर है. पसर यानी जितना आपकी हथेली मे आ सकता है, और जमीन मे गिरना नहीं चाहिए. उसको एक पसर बोलते है. गुरुजी मैंने सुगंधा से पूछा कि दुध तो पवित्र चीज है. फिर इतना कम क्यु? सुगंधा ने कहा गुरुजी, वो इसलिए कि दुध जब जलता है तो उसकी दुर्गंध बहुत तेज होती है. इसलिए वैदिक रीति मे दुध का मान एक आहुति मे मात्र एक पसर ही रखा गया है.
गुरुजी इसके बाद सुगंधा ने बताया था कि लावा का मान आपकी मुट्ठी के एक तिहाई भाग जितना. यानी एक मुट्ठी लावा लेकर उसके तीन भाग कर दे. और एक आहुति मे फिर एक भाग को स्वाहा कहते हुए डाले., फल, फूल और पत्तों की आहुति उनके अपने आकार के अनुसार दी जाती है. यानी छोटा हो या बड़ा. एक आहुति मे पूरा एक फल, फूल या पत्ता देना चाहिए उसे खंडित नहीं करना चाहिए. अन्न की आहुति का मान आधा ग्रास है… गुरुजी मैं सुगंधा से पूछता उससे पहले ही सुगंधा ने बता दिया आप भोजन करते समय निवाला जितना बड़ा खाते है, उसका आधा. सुगंधा ने आगे बताया कि किशमिश, काजू, बादाम इत्यादि इनकी एक बार मे पांच की संख्या मे आहूति देनी चाहिए.. ईख यानी गन्ने की आहुति का मान एक पोर है. सुगंधा ने कहा गुरुजी की गाँठ के ऊपर या नीचे से न काटे, नहीं तो खंडित माना जाएगा. गाँठ से तोड़ कर एक गाँठ ईख की, एक आहुति दे. उसी को एक पोर कहते है. लताओं की आहुति का मान दो-दो अंगुल है, समिधा यानी लकड़ी की आहुति का मान दस अंगुल वैदिक रीति मे बताया गया है. 
कपूर, चंदन, केसर, और कस्तूरी की मात्रा एक कलाय है. सुगंधा ने कहा गुरुजी की  कलाय यानी, मटर से बड़ी आहुति नहीं होनी चाहिए एक बार मे. और इस प्रकार प्रणव तथा बीज़ पदों से युक्त मन्त्रों द्वारा उत्तम होम करना चाहिए.

9):- क्षमा याचना :-
गुरुजी सुगंधा ने अपनी मीठी और मधुर आवाज में मुझसे कहा था कि घृत से भरे हुए स्त्रुक के ऊपर अधोमुख स्त्रुव को रखकर स्त्रुक के अग्र भाग मे फूल रख दे. फिर दोनों हाथों से शंख जैसे पकडते है उसी मुद्रा से पकड़ कर. अपने आसान से उठ कर खड़े हो जाए स्त्रुक और स्त्रुव के मूल भाग को नाभि से टिका दे. इसके बाद स्त्रुक-स्त्रुव के मूल भाग को नाभि से उठा कर अपने ह्रदय पे रखे. तथा “ॐ नमः शिवाय वौषट। “-इस मंत्र का मंद स्वर मे उच्चारण करके उस घृत का पतली धारा के साथ अग्नि मे होम कर दे. और उस पुष्प को भी अग्नि में ही गिरा दे.
इसके बाद चंदन और ताम्बूल आदि लेकर भक्ति भाव से भगवान शिव के ऐश्वर्य की वंदना करते हुए उनके चरणों मे साष्टांग प्रणाम करे. और भगवान शिव से प्राथना करे |- प्रभु मेरे अपराधों को क्षमा करे, न सिर्फ आज हवन मे हुई गलतीयों को, बल्कि आज तक जो कुछ मैंने शुभ अशुभ कर्म किए है उन सब से मुझे मुक्त कर दीजिए प्रभु. मुझे अपना लीजिए प्रभु. |- ऐसा कहकर तेजस्वी परिधियों को बड़ी श्रद्धा के साथ अपने हृदय कमलों मे स्थापित कर लीजिए.
10):- बलि देने की विधी :- 
गुरुजी, सुगंधा ने अपनी मीठी और मधुर आवाज मे मुझसे कहा कि कुंड के पास अग्नि कोण मे दो मंडल बना ले. एक मे अन्तर बलि दे और दूसरे मे बाह्य बलि. प्रथम मंडल के भीतर पूर्व दिशा मे “ॐ हां रूद्रेभ्यः स्वाहा”। – इस मंत्र से रुद्र के लिए बलि अर्पित करे. (बलि देने का अर्थ यहा नारियल फोड़ने से है). दक्षिण दिशा मे “ॐ हां मातृभ्यः स्वाहा”। – कहकर माता को बलि दे. पश्चिम दिशा मे “ॐ हां गणेभ्यः स्वाहा तेभ्योऽयं बलिरस्तु”। – ऐसा कहकर गणों के लिए बलि दे. उत्तर दिशा मे “ॐ हां यक्षेभ्यः स्वाहा तेभ्योऽयं बलिरस्तु”।- ऐसा कहकर यक्षो को बलि अर्पित करे. ईशान कोण मे “ॐ हां ग्रहेभ्यः स्वाहा तेभ्योऽयं बलिरस्तु”। – ऐसा कहकर ग्रहो के लिए बलि दे. अग्नि कोण मे ” ॐ हां असुरेभ्यः स्वाहा तेभ्योऽयं बलिरस्तु”। – ऐसा कह कर असुरों को बलि दे. नैऋत्यकोण मे ” ॐ हां रक्षोभ्यः स्वाहा तेभ्योऽयं बलिरस्तु”। – ऐसा कहकर राक्षसों के लिए भी बलि देनी चाहिए. वायव्य कोण में” ॐ हां नागेभ्यः स्वाहा तेभ्योऽयं बलिरस्तु”। – ऐसा कहकर नागों के लिए तथा मंडल के मध्य भाग मे” ॐ हां नक्षत्रेभ्यः तेभ्योऽयं बलिरस्तु।” – ऐसा कहकर नक्षत्रो के लिए बलि अर्पित करे. इसी तरह” ॐ हां राशिभ्यः स्वाहा तेभ्योऽयं बलिरस्तु”। – ऐसा कहकर अग्नि कोण मे राशियों के लिए बलि अर्पित करे. तथा” ॐ हां विश्रेभ्यो देवभ्यः स्वाहा तेभ्योऽयं बलिरस्तु।” – ऐसा कहकर नैऋत्य कोण मे विश्वदेव के लिए तथा” ॐ हां क्षेत्रपालाय स्वाहा तस्मा अयम बलिरस्तु।” –  ऐसा कहकर पश्चिम मे क्षेत्रपालो के लिए बलि देनी चाहिए.
गुरुजी सुगंधा ने अपनी मधुर आवाज मे मुझसे कहा कि. इसके बाद दूसरे बाहर के मंडल मे पूर्व आदि दिशाओं मे क्रम से इंद्र, अग्नि, यम, निऋति, जलेश्वर वरुण, वायु, धन रक्षक कुबेर, तथा ईशान के लिए उनका नाम लेकर उनके लिए बलि अर्पित करनी चाहिए. और अंत मे ईशान कोण में “ॐ हां ब्रम्हणे नमः स्वाहा”। – ब्रम्हा जी के लिए. तथा नैऋत्य कोण मे “ॐ हां विष्णवे नमः स्वाहा।” – कहकर भगवान विष्णु को भी बलि देनी चाहिए. आन्तर  और बाह्य मे फोड़े गए सभी नारियल को उठा ले. और पूजा मे चढ़ाए गए फल, मिष्ठान, नैवेद्य और पंचगव्य के साथ रख कर महाप्रसाद बना ले. और महादेव की पूजा का ये महा प्रसाद सबको देना चाहिए. ऊँच – नीच, मनुष्य – पशु, जाति – कुजाति  का भेद किए बिना, सबको प्रसाद वितरण करके इस प्रकार महादेव की पूजा संपन्न की जाती है. और साधक मोक्ष का अधिकारी बनता है.
गुरुजी, भाग 5 और भाग – 6 मे बहुत से दर्शकों ने कहा था कि सुगंधा जब भी भगवान की पूजा विधी जब भी बताये तो वो जानकारी हमसे भी साझा करे. तो आज भगवान नारायण की पूजा विधी भाग 7 मे और भगवान शिव की पूजा विधी भाग 9 में और आज हवन विधी बता दिया हू. माता रानी की पूजा विधी नहीं बता पाऊँगा गुरुजी क्युकी सुगंधा ने अनुमती नहीं दी थी. उसकी प्रमुख वज़ह ये है. की बिना गुरु के माँ के अनुभव बर्दास्त कर पाना असंभव है. और एक बार पत्र प्रेषित होने के बाद जरूरी नहीं कि अनुभव सुनने वाला हर व्यक्ती गुरु दीक्षित हो ही. इसीलिये मैं पुनः निवेदन करता हू सभी दर्शकों से की गुरु बना कर ही. माता की पूजा विधी आप अपने गुरु से ले.  और भगवान नारायण और भगवान शिव की भी पूजा विधी अगर साधक गण अपनाना चाहते है. तो सबसे पहले अपने गुरु जी से अनुमती जरूर प्राप्त कर लीजियेगा. गुरु की अवेहलना कभी नहीं करनी चाहिए. गुरु का स्थान ब्रम्हा, विष्णु और महेश से भी ऊपर माना गया है. गुरु से अनुमती मिलने के बाद ही किसी भी नियम या विधी को जीवन मे उतारना चाहिए. 
इसके अलावा सुगंधा ने मुझे कहा था कि, हमेशा हवन पात्र बड़ा लेना चाहिए. ताकि इतनी अग्नि उसमे प्रज्वलित की जा सके लकड़ियां डाल कर. की आहुति पूरी तरह से जल जाए. तभी हवन का फल प्राप्त होता है. और उससे निकलने वाला धुआ न सिर्फ वायु मंडल को शुद्ध बनाता बल्कि घर के भीतर और बाहर से नकारात्मक ऊर्जा को दूर भगा कर घर को भी शुद्ध करने वाला होता है. तथा साधक का आभामंडल भी मन्त्रों उच्चारण करने और हवन अग्नि मे शरीर तपने से मजबूत होता है. और गम्भीर से गम्भीर रोगों से मुक्ति मिल जाती है. 
गुरुजी माता से आपकी उत्तम सेहत की कामना करते हुए. आपके चरणों को स्पर्श करता हू. और आशीर्वाद प्राप्त करते हुए आज का पत्र यही समाप्त करता हू. 
माता रानी की जय हो माता रानी सबका कल्याण करे 

खुशबू वाली सुगंधा का सच्चा अनुभव भाग 11

Exit mobile version