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गणेश चतुर्थी कथा एवं गणेश सहस्त्रनामावली

गणेश चतुर्थी कथा एवं गणेश सहस्त्रनामावली

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। आज हम भगवान गणेश के विषय में जानकारी प्राप्त करेंगे जिसमें हम उनकी गणेश चतुर्थी को कैसे मनाए और उनके सहस्त्र नामों को कैसे जाप किया जाता है। उसके विषय में जानकारी प्राप्त करेंगे तो चलिए शुरू करते हैं। गणेश चतुर्थी का त्योहार भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के दिन को मनाया जाता है। वैसे प्रत्येक महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को भी गणेश चतुर्थी के नाम से जानते हैं।

भगवान गणेश विघ्न विनायक है और सभी तरह के मंत्र और तंत्र सिद्धि देने वाले रिद्धि सिद्धि के देवता माने जाते हैं। इनका प्रिय भोग लड्डू है और! बालकों की विद्या अध्ययन का प्राचीन दिन भी गणेश चतुर्थी को ही माना जाता है।

इसी कारण से लोक भाषा में इसे डंडा चौथ के नाम से भी जानते हैं। इसे कैसे मनाते हैं इसके लिए आप प्रातः काल नहा धोकर सोने, तांबे, मिट्टी अथवा गोबर की गणेश जी की प्रतिमा बनाएं। गणेश जी की प्रतिमा को कोरे कलश में जल भरकर मुंह पर पूरा कपड़ा बांधकर उस पर स्थापित किया जाता है। फिर गणेश मूर्ति को सिंदूर चढ़ाकर षोडशोपचार से पूजन करना चाहिए। गणेश जी को दक्षिणा अर्पित करके इसपे लड्डुओं का भोग लगाने का विधान है जिनमें पांच लड्डू गणेश जी की प्रतिमा के पास रखकर बाकी ब्राह्मणों को बांटने चाहिए। गणेश जी का पूजन साय काल के समय करना चाहिए। पूजन के उपरांत आंखें नीची रखते हुए चंद्रमा को अर्ध्य देकर ब्राह्मणों और गुरु को भोजन कराकर दक्षिणा देनी चाहिए। चंद्रमा को अर्घ्य देने का तात्पर्य है कि जहां तक संभव हो, आज के दिन चंद्रमा के दर्शन नहीं करने चाहिए क्योंकि इस दिन चंद्रमा के दर्शन करने से कलंक का भागी बनना पड़ता है। फिर ढका हुआ कलश वस्त्र से उसे दक्षिण तथा गणेश जी की प्रतिमा आचार्य को समर्पित कर के गणेश जी की विसर्जन करने का विधान बनाया गया है। गणेश जी के पूजन से विद्या बुद्धि, रिद्धि, सिद्धि और सब विघ्न बाधाओं का भी समूल नाश हो जाता है।

गणेश चतुर्थी की जो कथा आती है उसके अनुसार एक बार भगवान शंकर स्नान करने के लिए कैलाश पर्वत से भोगावती नामक स्थान पर गए। उनके जाने के बाद माता पार्वती ने स्नान करते समय अपने शरीर के मैल से एक पुतला बनाया और उसे जीवित कर दिया। उन्होंने उसका नाम गणेश रखा और गणेश जी से कहा, हे पुत्र तुम यह मुद्गल लेकर द्वार पर पहरा दो। मैं भीतर स्नान कर रही हूं। याद रखना कि जब तक मैं स्नान ना कर लूँ। किसी को भी अंदर आने की अनुमति ना देना थोड़ी देर बाद भोगावती में स्नान करने के बाद जब भगवान शिव जी वापस आए और घर के अंदर प्रवेश करना चाहा तो गणेश जी ने उन्हें द्वार पर ही रोक दिया। इससे अंततोगत्वा दोनों लोगों में युद्ध शुरू हो गया, क्योंकि गणेश जी भगवान शिव को किसी भी कीमत पर अंदर नहीं जाने देने वाले थे।

टेढ़ी भृकुटि वाले शिवजी जब अंदर पहुंचे तब तक वह गणेश जी का वध कर चुके थे तो पार्वती जी ने उन्हें नाराज देखकर समझा भोजन आयोजन में विलंब के कारण महादेव नाराज हैं इसलिए उन्होंने तत्काल दो थालियों में भोजन परोस कर शिवजी को बुलाया और भोजन करने का निवेदन किया। दूसरी थाली को देखकर शिवजी ने पार्वती से पूछा। यह दूसरी थाली किसके लिए तुमने लगाई है। इस पर माता पार्वती बोली, आपका पुत्र गणेश जो बाहर द्वार पर पहरा दे रहा है। यह सुनकर शिवजी को आश्चर्य हुआ और बोले, तुम्हारा पुत्र पहरा दे रहा है किंतु मैंने तो रोके जाने पर उसका सिर धड़ से अलग कर उसकी जीवन लीला समाप्त कर दी है। यह सुनकर पार्वती जी बहुत दुखी और क्रोधित हुई। तब शिवजी से पुत्र को पुनर्जीवित करने के लिए उन्होंने कहा, तब भगवान शिव ने हाथी के बच्चे का सिर उस बालक के धड़ से जोड़ दिया था। पुत्र गणेश को पुनः जीवित पाकर माता पार्वती प्रसन्न हुई। तब सभी देवी देवताओं तथा भगवान शिव और माता पार्वती ने उन्हें आशीर्वाद और वरदान दिए। उन्होंने पति और पुत्र को भोजन करा कर फिर स्वयं भोजन किया। इस घटना को भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को किया गया था। इसीलिए पुण्यतिथि पर्व के रूप में मनाई जाती है और इसे गणेश चतुर्थी के नाम से हम लोग जानते हैं। भगवान गणेश को प्रसन्न करने के लिए उनकी सहस्त्रनामावली का जो भी जाप करता है उसे भगवान गणेश की कृपा अवश्य प्राप्त होती है जो इस प्रकार से है-

ॐ गणपतये नमः ॥ ॐ गणेश्वराय नमः ॥ ॐ गणक्रीडाय नमः ॥ ॐ गणनाथाय नमः ॥
ॐ गणाधिपाय नमः ॥ ॐ एकदंष्ट्राय नमः ॥ ॐ वक्रतुण्डाय नमः ॥ ॐ गजवक्त्राय नमः ॥
ॐ मदोदराय नमः ॥ ॐ लम्बोदराय नमः ॥ ॐ धूम्रवर्णाय नमः ॥ ॐ विकटाय नमः ॥
ॐ विघ्ननायकाय नमः ॥ ॐ सुमुखाय नमः ॥ ॐ दुर्मुखाय नमः ॥ ॐ बुद्धाय नमः ॥
ॐ विघ्नराजाय नमः ॥ ॐ गजाननाय नमः ॥ ॐ भीमाय नमः ॥ ॐ प्रमोदाय नमः ॥
ॐ आनन्दाय नमः ॥ ॐ सुरानन्दाय नमः ॥ ॐ मदोत्कटाय नमः ॥ ॐ हेरम्बाय नमः ॥
ॐ शम्बराय नमः ॥ ॐ शम्भवे नमः ॥ ॐ लम्बकर्णाय नमः ॥ ॐ महाबलाय नमः ॥
ॐ नन्दनाय नमः ॥ ॐ अलम्पटाय नमः ॥ ॐ भीमाय नमः ॥ ॐ मेघनादाय नमः ॥
ॐ गणञ्जयाय नमः ॥ ॐ विनायकाय नमः ॥ ॐ विरूपाक्षाय नमः ॥ ॐ धीराय नमः ॥
ॐ शूराय नमः ॥ ॐ वरप्रदाय नमः ॥ ॐ महागणपतये नमः ॥ ॐ बुद्धिप्रियाय नमः ॥
ॐ क्षिप्रप्रसादनाय नमः ॥ ॐ रुद्रप्रियाय नमः ॥ ॐ गणाध्यक्षाय नमः ॥ ॐ उमापुत्राय नमः ॥
ॐ अघनाशनाय नमः ॥ ॐ कुमारगुरवे नमः ॥ ॐ ईशानपुत्राय नमः ॥ ॐ मूषकवाहनाय नमः ॥
ॐ सिद्धिप्रदाय नमः ॥ ॐ सिद्धिपतये नमः ॥ ॐ सिद्ध्यै नमः ॥ ॐ सिद्धिविनायकाय नमः ॥
ॐ विघ्नाय नमः ॥ ॐ तुङ्गभुजाय नमः ॥ ॐ सिंहवाहनाय नमः ॥ ॐ मोहिनीप्रियाय नमः ॥
ॐ कटिंकटाय नमः ॥ ॐ राजपूत्राय नमः ॥ ॐ शकलाय नमः ॥ ॐ सम्मिताय नमः ॥
ॐ अमिताय नमः ॥ ॐ कूश्माण्डगणसम्भूताय नमः ॥ ॐ दुर्जयाय नमः ॥ ॐ धूर्जयाय नमः ॥
ॐ अजयाय नमः ॥ ॐ भूपतये नमः ॥ ॐ भुवनेशाय नमः ॥ ॐ भूतानां पतये नमः ॥
ॐ अव्ययाय नमः ॥ ॐ विश्वकर्त्रे नमः ॥ ॐ विश्वमुखाय नमः ॥ ॐ विश्वरूपाय नमः ॥
ॐ निधये नमः ॥ ॐ घृणये नमः ॥ ॐ कवये नमः ॥ ॐ कवीनामृषभाय नमः ॥
ॐ ब्रह्मण्याय नमः ॥ ॐ ब्रह्मणस्पतये नमः ॥ ॐ ज्येष्ठराजाय नमः ॥ ॐ निधिपतये नमः ॥
ॐ निधिप्रियपतिप्रियाय नमः ॥ ॐ हिरण्मयपुरान्तस्थाय नमः ॥ ॐ सूर्यमण्डलमध्यगाय नमः ॥
ॐ कराहतिध्वस्तसिन्धुसलिलाय नमः ॥ ॐ पूषदन्तभृते नमः ॥ ॐ उमाङ्गकेळिकुतुकिने नमः ॥
ॐ मुक्तिदाय नमः ॥ ॐ कुलपालकाय नमः ॥ ॐ किरीटिने नमः ॥ ॐ कुण्डलिने नमः ॥
ॐ हारिणे नमः ॥ ॐ वनमालिने नमः ॥ ॐ मनोमयाय नमः ॥ ॐ वैमुख्यहतदृश्यश्रियै नमः ॥
ॐ पादाहत्याजितक्षितये नमः ॥ ॐ सद्योजाताय नमः ॥ ॐ स्वर्णभुजाय नमः ॥ ॐ मेखलिन नमः ॥
ॐ दुर्निमित्तहृते नमः ॥ ॐ दुस्स्वप्नहृते नमः ॥ ॐ प्रहसनाय नमः ॥ ॐ गुणिने नमः ॥
ॐ नादप्रतिष्ठिताय नमः ॥ ॐ सुरूपाय नमः ॥ ॐ सर्वनेत्राधिवासाय नमः ॥ ॐ वीरासनाश्रयाय नमः ॥
ॐ पीताम्बराय नमः ॥ ॐ खड्गधराय नमः ॥ ॐ खण्डेन्दुकृतशेखराय नमः ॥ ॐ चित्राङ्कश्यामदशनाय नमः ॥
ॐ फालचन्द्राय नमः ॥ ॐ चतुर्भुजाय नमः ॥ ॐ योगाधिपाय नमः ॥ ॐ तारकस्थाय नमः ॥
ॐ पुरुषाय नमः ॥ ॐ गजकर्णकाय नमः ॥ ॐ गणाधिराजाय नमः ॥ ॐ विजयस्थिराय नमः ॥
ॐ गणपतये नमः ॥ ॐ ध्वजिने नमः ॥ ॐ देवदेवाय नमः ॥ ॐ स्मरप्राणदीपकाय नमः ॥
ॐ वायुकीलकाय नमः ॥ ॐ विपश्चिद्वरदाय नमः ॥ ॐ नादाय नमः ॥ ॐ नादभिन्नवलाहकाय नमः ॥
ॐ वराहवदनाय नमः ॥ ॐ मृत्युञ्जयाय नमः ॥ ॐ व्याघ्राजिनाम्बराय नमः ॥ ॐ इच्छाशक्तिधराय नमः ॥
ॐ देवत्रात्रे नमः ॥ ॐ दैत्यविमर्दनाय नमः ॥ ॐ शम्भुवक्त्रोद्भवाय नमः ॥ ॐ शम्भुकोपघ्ने नमः ॥
ॐ शम्भुहास्यभुवे नमः ॥ ॐ शम्भुतेजसे नमः ॥ ॐ शिवाशोकहारिणे नमः ॥ ॐ गौरीसुखावहाय नमः ॥
ॐ उमाङ्गमलजाय नमः ॥ ॐ गौरीतेजोभुवे नमः ॥ ॐ स्वर्धुनीभवाय नमः ॥ ॐ यज्ञकायाय नमः ॥
ॐ महानादाय नमः ॥ ॐ गिरिवर्ष्मणे नमः ॥ ॐ शुभाननाय नमः ॥ ॐ सर्वात्मने नमः ॥
ॐ सर्वदेवात्मने नमः ॥ ॐ ब्रह्ममूर्ध्ने नमः ॥ ॐ ककुप्छ्रुतये नमः ॥ ॐ ब्रह्माण्डकुम्भाय नमः ॥
ॐ चिद्व्योमफालाय नमः ॥ ॐ सत्यशिरोरुहाय नमः ॥ ॐ जगज्जन्मलयोन्मेषनिमेषाय नमः ॥ ॐ अग्न्यर्कसोमदृशे नमः ॥
ॐ गिरीन्द्रैकरदाय नमः ॥ ॐ धर्माय नमः ॥ ॐ धर्मिष्ठाय नमः ॥ ॐ सामबृंहिताय नमः ॥
ॐ ग्रहर्क्षदशनाय नमः ॥ ॐ वाणीजिह्वाय नमः ॥ ॐ वासवनासिकाय नमः ॥ ॐ कुलाचलांसाय नमः ॥
ॐ सोमार्कघण्टाय नमः ॥ ॐ रुद्रशिरोधराय नमः ॥ ॐ नदीनदभुजाय नमः ॥ ॐ सर्पाङ्गुळिकाय नमः ॥
ॐ तारकानखाय नमः ॥ ॐ भ्रूमध्यसंस्थतकराय नमः ॥ ॐ ब्रह्मविद्यामदोत्कटाय नमः ॥ ॐ व्योमनाभाय नमः ॥
ॐ श्रीहृदयाय नमः ॥ ॐ मेरुपृष्ठाय नमः ॥ ॐ अर्णवोदराय नमः ॥ ॐ कुक्षिस्थयक्षगन्धर्वरक्षः किन्नरमानुषाय नमः ॥

इस तरह भगवान गणेश के कुल सहस्त्र नामों को 1000 नामों का जाप किया जाता है। इसका अगर व्यक्ति 21 दिनों तक रोज एक माला जाप कर ले तो उसे भगवान गणेश की रिद्धि और सिद्धि शक्तियां प्राप्त होती हैं। इसे रात्रि के समय भगवान गणेश की उत्तम प्रतिमा के सामने शुद्ध घी का दीपक जलाकर के जाप करते हुए लड्डू रखना चाहिए। साधना के दिनों में आप पूरी तरह ब्रह्मचर्य का पालन करें। हालांकि यह साधना बहुत लंबी है, इसलिए समय अधिक लगता है लेकिन सात्विक साधना होने के कारण भगवान गणेश अवश्य इसमें प्रसन्न होते हैं और आपकी मनोवांछित इच्छा को अवश्य पूरी करते हैं। इसके अलावा आपको सिद्धि प्रदान करते हैं। गुप्त तरीके की सिद्धि जिसके माध्यम से आप अपना और जन का कल्याण कर पाते हैं

भगवान गणेश की चतुर्थी और उनकी सहस्त्रनामावली का पूजन विधि के द्वारा।

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