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गुप्त तारा साधना और जिन से लड़की की रक्षा भाग 2

गुप्त तारा साधना और जिन से लड़की की रक्षा भाग 2

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। गुप्त तारा साधना में, अब हम लोग आगे बढ़ते हैं। पिछले भाग में हमने जाना था किस प्रकार एक व्यक्ति? प्रभावित होकर गुप्त तारा साधना शुरू करते हैं। अब जब उनके गुरु ने उन्हें इसका मंत्र देकर घर पर ही साधना शुरू कर लेने की आज्ञा प्रदान कर दी तो फिर उसके बाद उन्होंने सबसे पहले जो कार्य किया। उसमें वह कहते हैं कि उन्होंने! एक यंत्र जो कि गुरुदेव ने बताया था, मैंने उसे स्थापित किया। उस यंत्र के चारों ओर चावल की ढ़ेरियां बनाकर उस पर लॉन्ग स्थापित किया जैसा कि गुरुदेव ने बताया था फिर मैंने वह साधना शुरू की। साधना के पहले दिन मुझे साधना करते करते ही नींद आने लगी और मैं सोने लग गया। पर जैसे ही मुझे झपकी आती मैं गिरने वाला होता इसलिए अपने आपको सावधान कर लेता। मैंने किसी प्रकार उस दिन की साधना संपूर्ण की और उसी कमरे में बगल में मैंने एक चटाई बिछा रखी थी। उसी पर ओढ़ कर सो गया। इस प्रकार मैंने पहला दिन अपनी साधना का संपूर्ण किया। सुबह जब में उठा तो मैंने देखा कि। अभी भी दीपक जल रहा है। मैंने कहा कि क्या यह दीपक लगातार जलता रहे अथवा इसे यूं ही छोड़ देना चाहिए? मैं तुरंत अपने गुरु के पास उनसे मिलने के लिए गया। वहां पहुंच कर मैंने अपनी रात की साधना के विषय में बताया और कहा कि मुझे बहुत नींद आ रही थी। तब गुरु ने कहा, ऐसा शुरू में सभी साधकों के साथ होता है। उन्हें नींद आती है, उबासी आती है। इसके अलावा आज्ञा चक्र पर दर्द सा महसूस होता है। इसके अलावा दिल में घबराहट होती है। किसी किसी को सांस लेने में तकलीफ भी होती है। शरीर गर्म हो जाता है। ऐसे बहुत सारी चीज है। साधना के दौरान होती हैं पर इन से घबराना नहीं चाहिए और अपना ब्रह्मचर्य रक्षण करते हुए।

मानसिक वाचिक सभी प्रकार से पूर्ण संत बन कर ही साधना करनी चाहिए। किसी भी प्रकार के लालच या कोई इच्छा रखकर साधना में कभी नहीं जाना चाहिए। वरना सिद्धियां पास नहीं आती।

मैंने फिर अपने गुरु से पूछा, गुरु जी मैंने जो दीपक जलाया हुआ है, वह कुछ देर बाद बुझ जाएगा तो मुझे उसे जलाए रखना है या बुझा देना है। गुरु ने कहा, वह मुझसे गलती हो गई। मैंने तुझे यह बात तो बताई ही नहीं कि तुझे इस साधना में।

अखंड दीपक जलाकर रखना है क्योंकि कोई भी साधना अगर वह 21 दिन की होती है या उस से छोटी होती है तो साधक को बिना कहे ही। दीपक को अखंड जलाकर रखना चाहिए ताकि शक्तियां विशेष रूप से आकर्षित हो और वहां पर जरूर आएं। जाओ तुरंत उस में तेल डालो यानी तुम्हें क्योंकि तुम घी का दीपक जला रहे हो इसलिए उसमें तुम्हें भी पिघला हुआ घी डालना चाहिए। तब मैं तुरंत दौड़कर गया और उस दीपक को व्यवस्थित किया और मैंने उसमें इतना घी भर दिया कि लगातार कई दिन तक चलता रहे। अब कमरे को बंद रखना बहुत आवश्यक था। दूसरा दिन जब मैं साधना में बैठा तो मुझे एक चूहा बहुत परेशान करने लगा। वह इधर से उधर दौड़ता मुझे उससे डर तो नहीं लग रहा था। लेकिन मेरे मन में यह परेशानी या विचार आया कि अगर इस चूहे ने मेरे दीपक को गिरा दिया तो क्या होगा क्या मेरी साधना? भंग हो जाएगी।

तब मैंने विचार किया तो मैंने उस दिन किसी प्रकार साधना कर ली और सो गया।

रात को वह चूहा दीपक के चारों तरफ उसे हिलाने डुलाने की कोशिश करने लगा। मैं अचानक से उठा मुझे लगा शायद मुझे उठ जाना चाहिए और देखा तो वह उस दीपक को एक तरफ कर चुका था। थोड़ी ही देर बाद दीपक गिर जाता। मैं बहुत अच्छे समय पर किसी आंतरिक शक्ति की प्रेरणा से उठा था। मैं तुरंत दौड़कर गया और मैंने दीपक को व्यवस्थित किया। अगर मुझे थोड़ी सी भी देर हो जाती तो शायद दीपक बुझ जाता। मैंने उसमें घी डाला और उसे चारों तरफ से पत्थरों से मजबूत बना दिया ताकि चूहा उसे गिरा ना पाए। मुझे उस चूहे पर बहुत गुस्सा आ रहा था। इसलिए अगले दिन मैं उठकर सबसे पहले चूहे दानी लाया और मैंने उसे उस कमरे में मिठाई रखकर उस चूहे दानी को रख दिया ताकि चूहा अगर आए तो इसमें जरूर फस जाए। साधना का तीसरा दिन जब मैं साधना कर रहा था अचानक। वही चूहा मेरे कपड़ों के अंदर घुसने की कोशिश करने लगा। मैं जिस कपड़े को पहनकर यानी पैजामा पहनकर साधना कर रहा था। उस पजामे के अंदर वह घुस गया। ऐसी हरकत ने मुझे स्तब्ध कर दिया। मैं कूदा और कूद कर खड़ा हो गया। मैंने अपने पैर झटके पर वह तो अंदर तक घुसता चला जा रहा था। मैंने तेजी से अपना पैजामा उतार दिया और वह मेरे पजामे के अंदर से निकलकर भागा। अब मुझे बहुत ज्यादा गुस्सा आ रहा था ।

एक चूहे ने मेरी साधना भंग की थी किंतु मैंने क्षमा याचना कर फिर से साधना में बैठ गया और साधना उस दिन की संपूर्ण की। उसके बाद जब मैं सोने चला गया तो जब मैं सो रहा था तो मुझे एक सपना आया। कुछ स्वप्न में मैंने देखा कि मैं एक विचित्र जगह पर हूं। जहां चारों ओर जंगल ही जंगल है। वहां पर वही चूहा बड़े विशालकाय रूप में इधर-उधर घूम रहा है। मुझे देख कर बहुत तेजी से मेरी ओर लपकता है। वह शायद मुझे खाना चाहता था।

मैं भी उसे देखकर भागने लगता हूं। तभी चीख के साथ मेरी नींद खुल जाती है और मैं देखता हूं, सुबह हो चुकी है। लेकिन अच्छी बात यह थी कि मेरी तीसरे दिन की साधना भी संपूर्ण हो चुकी थी। उसके बाद फिर मैं उठकर इधर उधर देखता हूं कि कहीं चूहा पकड़ा तो नहीं गया, लेकिन चूहा नहीं पकड़ा गया था। मुझे अब उस चूहे पर शक होने लगा था कि यह कोई शक्ति तो नहीं है इसीलिए मैं अब सीधे अपने गुरु के पास गया मैंने उनसे कहा कि मुझे साधना में एक चूहा रोज परेशान करता है। आप कोई इसका उपाय बताइए तो उन्होंने कहा ठीक है। अगर चूहा बहुत अधिक परेशान कर रहा है तो मैं तुम्हें अपने आश्रम की एक बिल्ली दे देता हूं। इसे वहां छोड़ दो बस अपने दीपक का ध्यान रखना, क्योंकि इन दोनों की उछल कूद में कहीं तुम्हारा दीपक ना बुझ जाए। मैंने कहा, मैंने इसका इंतजाम कर दिया है। मैंने पत्थरों के अलावा चारों ओर से एक जालीदार लोहे की चीज उस पर रख दी थी। ताकि किसी भी प्रकार से दीपक को कोई नुकसान ना हो। इस प्रकार मैं उस बिल्ली को लेकर आज अपने घर आ गया। साधना का चौथा दिन। मैं साधना कर रहा था तभी बहुत तेज उछल कूद होने लगी। मैं समझ गया पक्का वह चूहा दौड़ रहा होगा और उसके पीछे गुरु जी की बिल्ली उसका पीछा कर रही होगी। थोड़ी देर बाद चूहे के चिल्लाने की आवाज मैंने सुनी पर मैंने उस ओर ध्यान नहीं दिया और मैं अपनी साधना करता रहा। साधना संपूर्ण कर लेने के पश्चात जब मैंने आंखें खोल कर देखा तो मेरे पूजा स्थल में चारों तरफ खून ही खून था। वहां पर बिल्ली मर गई थी और वह चूहा भी मरा पड़ा था।

यह देखकर मैं स्तब्ध रह गया। मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि कोई बिल्ली को कैसे मार सकता है। आगे क्या हुआ। इसके बारे में हम लोग जानेंगे। अगले भाग में तो अगर यह सत्य अनुभव आपको पसंद आ रहा है तो लाइक करें। शेयर करें, सब्सक्राइब करें। आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद।

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गुप्त तारा साधना और जिन से लड़की की रक्षा भाग 3

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