Site icon Dharam Rahasya

गुरु की कनकवती यक्षिणी साधना 2 अंतिम भाग

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। कनक यक्षिणी की साधना से संबंधित इस अनुभव में अभी तक आपने जाना कि किसी प्रकार से अपनी जान बचाने के लिए साधक। कोशिश कर रहा है लेकिन? शशक

यानी खरगोश! के प्राण वह नहीं ले पा रहा। और उसे वहां पर उपस्थित सभी शक्तियों ने धमकी दी है कि अगर वह शशक का सिर नहीं काट पाया तो उसे अपना सिर अर्पण करना पड़ेगा।

ऐसी स्थिति में। आगे क्या हुआ जानते हैं?

गुरुजी! उन मेरे गुरु ने। उन शक्तियों से पूछा, मेरे सिर के अलावा क्या कोई अन्य मार्ग नहीं है?

तब शक्तियों ने कहा।

अगर तुम अपना सिर भी नहीं दे सकते तो तुम्हें इस जंगल में घूम रहे किसी भी हिरण को पकड़कर। उसकी बलि देनी होगी।

उसका सिर अर्पण करना होगा।

यह प्रस्ताव मेरे गुरु को अच्छा लगा। उन्होंने कहा, मैं अपनी पूर्ण सामर्थ्य के अनुसार! उस हिरण को पकड़कर। यहां लाकर उसका सिर अलग कर दूंगा।

और वहां से उठ गए।

आहुति देने के लिए हिरण उन्हें चाहिए था। उन्होंने जंगल में घूमना शुरू कर दिया। लेकिन वहां पर उन्हें जो भी हिरन दिखाई देता वह उसे पकड़ नहीं पाते थे।

हिरण ऐसे भाग जाते हैं जैसे कोई हवा हो।

अब इनके सामने समय बीतने का डर पैदा होता जा रहा था। अगर समय पर इनकी साधना संपूर्ण नहीं हुई तो साधना भंग हो जाएगी और यह भी हो सकता है कि शक्तियां इनकी ही बलि ले ले। इसलिए अब इन्हें जो कुछ भी करना था, जल्दी करना था।

तो इन्होंने! वहां घास!

जहां जहां उन्हें मिली

और उसके साथ झाड़ियां मिलाकर एक बड़ा सा जाल बनाया। और? उस जाल को एक विशेष स्थान पर बांध दिया।

और दूसरी तरफ से इन्होंने हिरणों को भगाना शुरू कर दिया।

हिरण एक ही दिशा में भागने लगे और यह उनकी चतुराई काम आई। एक हिरण उस जाल में फंस गया। जो हिरण जाल में फंसा वह बहुत ही अधिक सुंदर था। उन्होंने उस हिरण को पकड़कर अपने बलि के स्थान पर ले जाकर बलि देने की कोशिश की।

किंतु ऐसा चमत्कार उन्होंने कभी नहीं देखा था। वह हिरन मरने से पहले बोला, तुम्हारी बुद्धि मलिन हो चुकी है।

तुम्हें अपनी बलि देनी चाहिए थी और तुम मेरी दे रहे हो?

इसलिए! तुम्हारी सिद्धि मल के रूप में। तुम्हारे साथ रहेगी।

और? यह कहते हुए वह मर गया!

हिरण का सिर उसी क्षण मेरे गुरु ने काट दिया। इस प्रकार हिरण की बलि जैसे ही संपन्न हुई, तुरंत ही वहां पर कनक यक्षिणी प्रकट हो गई।

वह हंसते हुए कहने लगी। मेरी माया सिर्फ मैं ही जानती हूं।

अब मैं तुम्हारे सिर पर मल के रूप में विराजमान रहूंगी।

इस प्रकार अब मेरे उन गुरु के सिर पर बहुत सारा मल आ गया। क्योंकि उस हिरण ने कहा था तुम्हारी बुद्धि मलिन हो चुकी है।

इस प्रकार मेरे गुरु के सिर पर वह यक्षिणी मल यानी टट्टी के रूप में विराजमान हो गई।

अब! उनके पास सिद्धि तो थी लेकिन उनसे।

बहुत ही दूर से लोगों को बदबू आनी शुरू हो जाती थी।

बदबू भी ऐसी की आप उनके सामने कुछ देर भी खड़े रहने में? परेशानी महसूस करने लगे।

लेकिन? लोगों की धन संबंधी सभी समस्याओं को हल करने की सिद्धि उनके पास थी। धीरे-धीरे करके उनके पास बहुत मात्रा में धन आने लगा। उनके पास कई सारी सोने की अशर्फियां थी।

लोग उनके पास दूर-दूर से धन संबंधी समस्या लेकर आते थे और उनका हल वह बड़ी आसानी से बता दिया करते थे।

एक बार एक कर्ज में डूबे साहूकार इनके पास है।

साहूकार ने कहा, गुरु जी! मेरे खेत में कहीं खजाना गड़ा है। यह मेरे पूर्वज बता कर गए हैं।

लेकिन मैं उस खजाने को ना तो देख पा रहा हूं और ना ही निकलवा पा रहा हूं। आप मेरी मदद कीजिए।

तब मेरे गुरु! उसके साथ उस खेत में गए जहां खजाना गड़ा हुआ था।

उनके सिर से मल एक जगह गिरने लगा।

उन्होंने कहा कि यह वही स्थान है जहां पर सोना गड़ा हुआ है।

आप अब किसी?

मजदूर को लाकर इस स्थान पर खुदवा दीजिए और आपको यहां पर खजाना मिल जाएगा। उस साहूकार ने जब उस स्थान पर खोदा। तो वहां? एक संदूक मिला लेकिन सन्दूक को खोलते ही उसके अंदर एक साँप बैठा हुआ था।

उस को कोई भी हटा नहीं पा रहा था।

तब एक बार फिर उस साहूकार ने मेरे गुरु की मदद ली। मेरे गुरु ने उस साँप को पकड़कर वहां से हटा दिया। क्योंकि मेरे गुरु के साथ कनक यक्षिणी की शक्तियां थी।

इसके बाद! मेरे गुरु कहते हैं कि कनक मल और गंदे स्वरूप में आकर उनके साथ संभोग किया करती थी। उन्हें अपना पति मान कर उनकी सेवा करती थी किंतु वह कभी भी सुंदर रूप में उनके साथ भोग नहीं करती थी।

इस प्रकार उनके साथ वह सिद्धि कई वर्षों तक रही। एक बार! उन गुरु ने मेरे इन गुरु को सिद्धि सिखाने के लिए बुलाया। लेकिन मेरी गुरु का वह सिद्धि रूप और मल रूप देखकर मेरे इन गुरु ने मना कर दिया था। और इस कथा को मुझे सुनाया था कि किस प्रकार उनके गुरु के पास मल रूप में कनक यक्षिणी विद्यमान थी। इस प्रकार से कनक यक्षिणी की सिद्धि कर उन्होंने जीवन में बहुत अधिक धन कमाया था। उनके पास बहुत अधिक मात्रा में सोना चांदी उपलब्ध था, लेकिन उस गंदगी और सिर पर हमेशा रहने वाले मल की वजह से कोई भी जल्दी उनके पास नहीं जाता था। वह दूर से ही।

लोगों को उनकी समस्याओं का हल बताया करते थे उनसे आती बदबू! की वजह से सभी लोग उनके पास जाना अच्छा नहीं समझते थे। क्योंकि उन्हें सब गंदा मानते थे।

तो यह थी वह कथा।

जहां मेरे गुरु के गुरु ने कनक यक्षिणी को सिद्ध किया था।

आपको और आपके दर्शकों को मेरी यह कथा कैसी लगी अवश्य बताइएगा? नमस्कार गुरु जी!

संदेश- यहां पर इनके गुरु को कनक यक्षिणी की सिद्धि मल रूप में हुई थी और सिद्धियां!

व्यक्ति के पास ना टिकने के कई सारे बहाने लेकर आती हैं। यहां पर मल एक माध्यम था।

लेकिन जिस व्यक्ति को सिद्धि होती है वह व्यक्ति स्पष्ट रूप से जानता है कि उसके लिए वह मल नहीं बल्कि एक यक्षिणी है।

अगर आपको आज का वीडियो पसंद आया है तो लाइक करें। शेयर करें, सब्सक्राइब करें। आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद।

Exit mobile version