Site icon Dharam Rahasya

गुरु पूर्णिमा विशेष और प्रत्यक्ष सिद्धि

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। आज क्योंकि गुरु पूर्णिमा है तो इस संबंध में बहुत सारी इमेल आई हैं और सब ने पूछा है कि गुरु पूर्णिमा क्यों मनाई जाती है। गुरु पूर्णिमा पर अपने गुरु का पूजन कैसे करें और आप विशेष संदेश या कोई प्रत्यक्ष सिद्धि अपने शिष्यों को बताएं? या यूं कहिए कि लोगों ने पूछा है कि प्रत्यक्ष सिद्धि के बारे में विस्तार से बताइए? सबसे पहले जानते हैं कि गुरु पूर्णिमा कब पड़ती है और यह क्यों मनाई जाती है?

आषाढ़ मास की पूर्णिमा को ही हम लोग गुरुपूर्णिमा के नाम से जानते हैं। इसी दिन अपने-अपने गुरुओं का पूजा विधान किया जाता है। गुरु पूर्णिमा वर्षा ऋतु में आरंभ होती है और यहां से लेकर 4 महीने तक साधु संत और जो भी साधना करने वाले लोग हैं वह 4 महीने केवल और केवल साधना करते हैं। ऐसा हमारी परंपरा से हम को प्राप्त है। इस समय गुरु चरणों में उपस्थित साधक को ज्ञान, शांति, भक्ति और योग की शक्ति प्राप्त हो जाती है। गुरु सानिध्य में बैठकर वह अपनी ऊर्जा को बढ़ा लेता है। ऐसा कहा जाता है कि महाभारत के जो रचयिता थे कृष्ण द्वैपायन व्यास जी! उनका जन्मदिन भी इसी दिन पड़ता है। वह संस्कृत के प्रकांड विद्वान गुरु थे। उन्होंने ही चारों वेदों की रचना की। इसी कारण उनका नाम वेदव्यास पड़ा। उन्हें आदिगुरु भी कहा जाता है और उन्हीं के सम्मान में गुरु पूर्णिमा या व्यास पूर्णिमा मनाई जाती है।

भक्ति काल में संत घासीदास जी का भी जन्म इसी दिन हुआ था। वह कबीर दास जी के शिष्य माने जाते हैं। शास्त्रों में गुरु शब्द का अर्थ होता है अंधकार या मूल अज्ञान से सत्य की ओर ले जाने वाला। हमेशा गुरु दो तरह का होता है एक भौतिक जीवन का और एक आध्यात्मिक जीवन का गुरु । भौतिक जीवन का गुरु जहां हमें भौतिक विद्याओं को सिखाता है आध्यात्मिक गुरु जीवन की मृत्यु के पश्चात आध्यात्मिक रास्ते को तय करने का ज्ञान और अपने आध्यात्मिक रहस्य को हटा करके वास्तविक प्रकाश को दिखाता है। कहते हैं कि गुरु और देवता की समानता एक ही होती है और सच्चा सतगुरु ईश्वर का साक्षात्कार संभव करवा देता है। केवल आवश्यकता होती है उसके सानिध्य में जाने की, उसकी शरण लेने की, उसके बताए गए मार्ग पर सदैव चलने की। गुरु पूर्णिमा पर आप अपने अपने गुरुओं की किस प्रकार से साधना उपासना करेंगे? उसको जान लेते हैं।

यह कहा जाता है गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु गुरुर देवो महेश्वरा। गुरु साक्षात परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नमः। यानी कि ब्रह्मा विष्णु और महेश का स्वरूप ही गुरु है और गुरु का स्थान सर्वोच्च है क्योंकि वह परमात्मा है। इसीलिए हम उस गुरु को प्रणाम करते हैं। सबसे पहले गुरु पूजन के लिए ब्रह्म मुहूर्त में उठ जाए। इस्नान आदि करके पीले यह सफेद आसन पर पूर्व दिशा की ओर होकर बैठ जा। या फिर उत्तर दिशा के और भी बैठ सकते हैं ।

पीला कपड़ा बिछाकर उसपर केसर से ‘ॐ’ लिखकर ताम्बे या स्टील की प्लेट रखें। उसपर पंचामृत छिड़कने के पश्चात गुरु का फोटो रखें और फिर अब पूजन प्रारंभ करें। जिस कक्ष में गुरु हो (अथवा गुरु का पूजन करना हो) उस कक्ष में प्रवेश के पूर्व प्रवेश द्वार पर निम्न तीन मंत्रों से पृथक-पृथक द्वार देवता को प्रणाम करें:

दाहिने भाग पर – ॐ ऐं ह्रीं श्रीं भद्रकाल्यै नमः

बाएं भाग पर – ॐ ऐं ह्रीं श्रीं भैरवाय नमः

उर्ध्व भाग पर – ॐ ऐं ह्रीं श्रीं लम्बोदराय नम:

पूजन शुरू करने के पूर्व पूजन सामग्री को विधिवत जमा लेना चाहिए। पूजन सामग्री को रखने का क्रम निश्चित होता है।

गुरु पूजन विधि:

●पवित्रीकरण: आसन पर बैठकर बाएं हाथ में जल लेकर दाएं हाथ की अंगुलियों से स्वयं पर छिड़कें

●आचमन – मंत्रों को पढ़ आचमनी से तीन बार जल पिएं

●सूर्य पूजन – कुमकुम और पुष्प से सूर्य पूजन करें

●अब ध्यान लगाएं।

●अब आह्वान करें।

●स्थापन: गुरुदेव को अपने षट्चक्रों में स्थापित करें

●गन्ध,पुष्प, बिल्व पत्र : तमो स पूर्वां एतोस्मानं सकृते कल्याण त्वां कमलया सशुद्ध बुद्ध प्रबुद्ध स चिन्त्य अचिन्त्य वैराग्यं नमितांपूर्ण त्वां गुरुपाद पूजनार्थंबिल्व पत्रं पुष्पहारं च समर्पयामि नमः

●दीप, नीराजन : ताम्रपात्र में जल, कुंकुम, अक्षत अवं पुष्प लेकर यंत्रों पर समर्पित करें –

●पंच पंचिका: अपने दोनों हाथों में पुष्प लेकर निम्न पञ्च पंचिकाओं का उच्चारण करते हुए इन दिव्य महाविद्याओं की प्राप्ति हेतु गुरुदेव से निवेदन करें –

●पंचलक्ष्मी:

●पंचकोष

●पंचकल्पलता

●पंचकामदुघा

●पंचरत्न विद्या

●श्री मन्मालिनी : अंत में तीन बार श्री मन्मालिनी का उच्चारण करना चाहिए जिससे गुरुदेव की शक्ति, तेज और सम्पूर्ण साधनाओं की प्राप्ति हो सके:- सोऽहं गुरुदेवाय नमः |

मूल मंत्र: जो गुरु ने दिया हो

जो मंत्र आपके गुरु ने आपको दिया है उसकी। 11, 21, 51 कितनी भी माला जाप है आप उसको संकल्प लेकर कीजिए और वह जाप अपने गुरु को समर्पित कीजिए। प्रार्थना कीजिए कि गुरुदेव आपका तेज हमारे अंदर भी विद्यमान हो। जिस प्रकार आप मुक्ति की तरफ हम को लेकर जा रहे हैं उसी प्रकार हम आपकी सेवा में आपके पीछे इसी प्रकार लगे रहे ।

इसके बाद गुरु को आप यथा योग्य या अपनी सामर्थ्य के हिसाब से गुरु दक्षिणा अवश्य दीजिए। इस दिन गुरु दक्षिणा देने से आपके गलत कर्मों से कमाए गए धन की शुद्धि होती है। इसलिए किसी भी प्रकार से आपको उन्हें अपनी सेवा अथवा अपना धन समर्पित करना चाहिए। धन कितना समर्पित करना है यह आप पर निर्भर करता है। क्योंकि आप अपनी सामर्थ्य के हिसाब से ही अपने गुरु को धन देंगे। यह दक्षिणा गुरु पूर्णिमा पर अवश्य ही देनी चाहिए। यह सारी पूजा कर लेने के बाद आप उन्हें अपनी दक्षिणा समर्पित कर दीजिए। मेरा जो ऐप है धर्म रहस्य उसे अगर आपने अभी तक डाउनलोड नहीं किया है तो प्ले स्टोर से जाकर के धर्म रहस्य app को डाउनलोड कर लीजिए। अगर अभी तक आपने मेरा ऐप डाउनलोड नहीं किया है तो सभी लोग धर्म रहस्य को जरूर डाउनलोड करें।

प्रश्न – आप कुछ ऐसा आज दीजिए जो अतुलनीय हो अलग हो और प्रत्येक व्यक्ति को सिद्धि हो। उत्तर- अगर मैं प्रत्यक्ष सिद्धि की बात करूं तो जीवन में हर व्यक्ति के अंदर उसकी तपस्या या ऊर्जा साक्षात रूप में, उसके अंदर विद्यमान रहती है। यह ऊर्जा शक्ति आपके किसी शरीर के अंग में स्थिर हो जाती है। अब आप पूछेंगे कि यह कहां पर रहती है? हम कैसे जानेंगे? सीधा सा उसका उत्तर है कि यह केवल और केवल वही व्यक्ति जान सकता है जिसने वह साधनाएं की है। की गई तपस्या और साधना अगर आपको सिद्धि नहीं मिली है तो भी आपने कोई भी मंत्र का जाप किया हो, कोई भी साधना की हो। उसका फल और ऊर्जा आपके शरीर में कहीं न कहीं विद्यमान रहती है। उस ऊर्जा शक्ति का इस्तेमाल आपको ही करना है और आप कभी भी कर सकते हैं। इस प्रत्यक्ष सिद्धि को हम कैसे जानेंगे? उदाहरण स्वरूप मैं आपको बताता हूं।

गांधारी ने जीवन भर पतिव्रत का पालन किया। उनके पति अंधे थी इसलिए उन्होंने अपनी आंखों में पट्टी बांध ली। यानी उनकी ऊर्जा सारी की सारी आंखों में ही आ गई। उन्होंने जब खोलकर दुर्योधन को देखा तो दुर्योधन का पूरा शरीर वज्र का हो गया था। इसी प्रकार! दधीचि ऋषि की हड्डियों में सारी तब ऊर्जा इखट्टी हो गई थी। इसी कारण उन्होंने अपने शरीर को त्याग कर उससे वज्र बनाने के लिए देवराज इंद्र को दे दिया था। इस प्रकार से हम जो भी कर्म करते हैं। कभी-कभी वह ऊर्जा उठकर किसी अंग में स्थापित हो जाती है या किसी वस्तु में स्थापित हो जाती है। जिस चीज की भी हम साधना करते हैं, उसमें वह स्थापित होने लग जाती है। आपको उसे कहां स्थापित करना है यह आप का विषय है? जैसे अर्जुन के धनुष में उसकी ऊर्जा थी। इसी प्रकार! भीष्म के ब्रह्मचर्य में उनकी वह ऊर्जा थी। भगवान कृष्ण के चक्र में उनकी ऊर्जा थी । भगवान शिव के त्रिनेत्र में उनकी वह ऊर्जा है।

इसी प्रकार हर एक व्यक्ति के अंदर उसकी ऊर्जा कहीं न कहीं होती है। यह वही जान सकता है कि मेरी ऊर्जा कहां पर स्थित हो गई है और उसका इस्तेमाल उसे कैसे करना है? वेदव्यास जी ने यही प्रयोग गांधारी को बताया था। इसी प्रकार का प्रयोग ऋषि दुर्वासा ने कुंती को बताया था जिसके कारण उन्होंने देवताओं से पुत्र प्राप्त किए थे। ऊर्जा आपके अंदर कहां स्थापित होती जा रही हैं यह आप ही जान सकते हैं? अधिकतर यह ऊर्जा या प्रत्यक्ष सिद्धि वहां पर इखट्टा होने लगती है जहां पर सबसे ज्यादा आप त्याग मर्यादा और संयम बरतते हैं। अगर किसी व्यक्ति? ने बहुत अधिक तप किया है और उसे प्रत्यक्ष सिद्धि नहीं मिली है तो भी उसकी ऊर्जा उसके शरीर में कहीं ना कहीं स्थापित है। अगर वह किसी को बुरा नहीं बोलता है। और कितनी भी सामर्थ्य होते हुए वह किसी को भी आज तक बुरे शब्दों! का प्रयोग नहीं किया है तो निश्चित रूप से उसकी वाणी में ही उसकी ऊर्जा विद्यमान हो जाती है। अर्थात उसे! वाक् सिद्धि हो जाती है।

इसी प्रकार अगर कोई व्यक्ति! किसी को भी अभी तक बुरी नजरों से नहीं देखा है। उसने सदैव समस्त जगत को करुणा भरी दृष्टि से ही देखा है तो उसकी ऊर्जा उसकी आंखों में स्थापित हो जाती है। किसी की उर्जा उसके हाथों में आ जाती है। किसी की उम्र ऊर्जा उसके गले में आ जाती है। किसी की उर्जा उसकी आज्ञा चक्र में आ जाती है। यह बिल्कुल! वास्तविक सत्य है कि आपके अंदर वह ऊर्जा विद्यमान है लेकिन? आप ही जान सकते हैं कि वह इकट्ठा की हुई प्रत्यक्ष सिद्धि वाली ऊर्जा कहां पर अपने ही इखट्टा कर रखी है। यह ज्ञान केवल और केवल गुरु ही अपने शिष्यों को देते हैं। इसके अलावा किसी और को यह बातें नहीं बताई जाती, लेकिन मेरा उद्देश्य सबका उद्धार करना है। इसलिए मैं आपको यह सत्य बता रहा हूं। आप स्वयं पता लगाइए कि आपके अंदर यह ऊर्जा कहां विद्यमान है? और इसका इस्तेमाल आप किसी भी बड़ी शक्ति के रूप मे किसी भी कार्य को करवाने के लिए कर सकते हैं।

इसके अलावा गुरु पूर्णिमा पर आप अगर मुझे दक्षिणा देना चाहते हैं। तो आप मेरे अकाउंट नंबर पर भेज सकते हैं। अथवा जिन लोगों के पास मेरा अकाउंट नंबर नहीं है वह लोग मेरा कोई पीडीएफ खरीद करके साधना का। इस प्रकार से भी मुझे गुरु दक्षिणा दे सकते हैं। आपको इसके लिए इंस्टामोजो अकाउंट में जाना होगा और कोई भी साधना खरीद लेनी होगी। इससे आपके पास साधना भी हो जाएगी और मुझे दक्षिणा भी प्राप्त हो जाएगी। इस प्रकार से। इस दिन एक और विशेष कार्य आपको करना चाहिए। हो सके तो एक पौधा लगाइए अथवा किसी भी जीव को पानी पिलाये। गर्मी का माहौल है। ऐसे में आपको किसी ना किसी जीव को पानी अवश्य पिलाना चाहिए। गुरु पूर्णिमा पर हम सभी लोग अपने अपने गुरु को हृदय से प्रणाम करते हैं और उनकी आज्ञा और आशीर्वाद से जीवन बिताने के अपने लक्ष्य को आगे बढ़ाने की चेष्टा करते हैं। अगर आज का पोस्ट आपको पसंद आया है तो लाइक करें। शेयर करें, आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद।

Exit mobile version