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गोपनीय चन्द्रस्राविणी यक्षिणी साधना

नमस्कार गुरु जी! मुझे आप पर पूर्ण विश्वास है कि आप हमारे धर्म रहस्य को और आगे लेकर जाएंगे। हमारे धर्म में बहुत सारे रहस्य छिपे हुए हैं। उन्हीं रहस्य को आप उजागर करते हैं। इसके लिए आपका विशेष रूप से धन्यवाद। इसीलिए शायद आपने अपने चैनल का नाम धर्म रहस्य रखा है। आपको ढेर सारी शुभकामनाएं और साथ ही साथ दर्शकों को प्रणाम! मैं यहां पर मेरी ही गुरु के अनुभव और साधना को आप लोगों को बताना चाहता हूं। लेकिन गुरु परंपरा में बताने की इजाजत ना होने के कारण स्वयं और अपने गुरु को गोपनीय रखना चाहूंगा।

मैं आपको इस संदर्भ में बता देना चाहता हूं कि विभिन्न प्रकार की यक्षिणियाँ अपनी अपनी सिद्धियों को देने वाली होती हैं। विभिन्न प्रकार की यक्षिणी वास, अलग-अलग तरह के गोपनीय वृक्षों में होता है। इन्हीं गोपनीय वृक्षों की सिद्धि करके हम उन को प्रसन्न कर सकते हैं। यह यक्षिणी अत्यधिक शक्तिशाली होती हैं। ऐसे ही मेरे गुरु ने एक ऐसी यक्षिणी को सिद्ध किया था जो कि उन्हें उनके गुरु द्वारा प्रदान की गई थी। यह साधना! साधक शुद्ध और पवित्र अवश्य हो जाए क्योंकि ऐसी साधना उनको करने के लिए हृदय पवित्र होना आवश्यक होता है। मेरे गुरु ने जब अपने गुरु से इस साधना के विषय में ज्ञान प्राप्त किया था। और इसे करने के लिए एक घने जंगल में गए थे। उस वक्त उनके साथ अद्भुत घटनाएं घटित हुई थी।

जब वह दसवें दिन जप कर रहे थे तभी पेड़ के नीचे एक शेर आ गया था। वह शेर इन्हें देख कर जोर जोर से गुर्रा रहा था। इनको मार डालने के लिए बहुत ज्यादा उतावला हो रहा था। पर मेरे गुरु डरे नहीं और अपनी साधना और ध्यान को भंग नहीं किए। इसके बाद जब साधना संपन्न हो गई तो मेरे गुरु ने सोचा कि क्यों ना अब नीचे उतर आ जाए, पर वह आश्चर्य में तब पड़ गए। जब उन्होंने नीचे सिंह को बैठे देखा! मेरे गुरुजी के सामने एक बहुत बड़ा संकट आ चुका था। उनके पास अब कोई और हल नहीं था। करते भी तो क्या? वह इस समस्या से गिर चुके थे। उन्होंने उस पेड़ पर ही बैठे बैठे। अब! उन मंत्रों का जाप करना शुरू कर दिया जो वह पहले कर रहे थे। 3 दिन तक लगातार हो जाप करते रहे। लेकिन शेर उस स्थान को छोड़कर नहीं गया।

आप लोग सोच भी नहीं सकते कि मेरे गुरु की क्या हालत हो गई होगी? ऐसा अद्भुत! दृश्य उन्होंने कभी नहीं देखा था। अगर वह पेड़ से नीचे उतर जाए तो निश्चित रूप से शेर उन्हें मार डालता। लेकिन आश्चर्य की बात यह थी कि अगर शेर चाहता तो उन तक पहुंच सकता था। लेकिन शेर ने ऐसा नहीं किया। फिर भी वहीं बैठा रहा। मेरे गुरु ने सोचा कि यह अद्भुत बात है क्योंकि शेर एक छलांग मे इस पेड़ तक पहुंच सकता है। यह अद्भुत बातें होती हैं। जो साधना के दौरान घटित हो जाती हैं, गुरु के लिए यह होना आवश्यक था। शायद तभी वह जान पाते कि साधना में नए-नए रहस्य छिपे होते हैं। मेरे गुरु ने अब नीचे उतरने की सोच ली। क्योंकि उन्हें लग रहा था कि अब शेयर नहीं हटेगा। अब बेचारे करते भी तो क्या? उनके पास अब कोई भी विकल्प शेष नहीं था।

यह वह जमाना नहीं था जब आपके हाथ में मोबाइल हो कि आप फोन करके अपने घर वालों को बुला ले। इसी कारण से मेरे गुरु के सामने अब कोई भी विकल्प शेष नहीं रहा। उन्होंने एक डाली तोड़ी और सोचा इसी से इसे डराऊंगा और उतरने लगे। जैसे ही वह नीचे उतरे। वह शेर गुस्से से इनके सामने आ गया। इन्होंने अब उस मंत्र का एक बार फिर से जाप किया। आंखें बंद करके उस देवी को पुकारने लगे। अद्भुत चमत्कार घटित हुआ, शेर उनके सामने अब यक्षिणी के रूप में प्रकट हो चुका था। और उन्होंने साक्षात दर्शन मेरे गुरु को दिए थे। यह एक अद्भुत बात हुयी थी ।

देवी मेरे गुरु के स्वप्न में आती और उन्हें दुर्लभ दुर्लभ रहस्यों की जानकारी देती। उन्हें उस वृक्ष! की सभी तंत्र सिद्धि उन्हे करवा दी थी।

मुझे करंज का पेड़ नहीं मिला है इसलिए मैं यह साधना तो नहीं कर पाया, लेकिन इस साधना का ज्ञान में आप लोगों को अवश्य ही देता हूं। तो चलिए अब मैं बताता हूं कि यह साधना किस प्रकार से कर सकते हैं?

संस्कृत श्लोक और मंत्र

करञ्जवृक्षमारुह्य जपेद् दशसहस्रकम्। तत्पञ्चाङ्गेन कल्केन आपादं संविलेपयेत्।

जपान्ते पूर्ववत् स्वप्ने कथयेत् सा शुभाशुभम्

मूल मंत्र‘ॐ नमश्चन्द्रस्राविणि कर्णाकर्णकारिणि स्वाहा’।

साधक! चंद्र स्रावणी साधना का मंत्र जाप रोज 10000 की संख्या में करंज के वृक्ष पर बैठकर करें। इस प्रकार वह 10 दिन तक लगातार करता रहे। उसके पश्चात इसी वृक्ष के फल फूल, पत्ता, जड़ तथा छाल को पीसकर अपने शरीर में मस्तक से लेकर तलवों तक लेप करें। तब साधक मंत्र जपता हुआ सो जाए। इस प्रकार करने से देवी स्वप्न में साधक को विभिन्न प्रकार के विषयों का ज्ञान देने लगती हैं। अर्थात वह उसके सपने में आकर उसे अलग-अलग रहस्य बताती रहती हैं। इसके अलावा साधक जो कुछ भी पूछता है उसका रहस्य उसे बता देती हैं।

इतना ही नहीं साधक को करंज वृक्ष से विभिन्न तंत्र प्रयोगों को सिखाती हैं। इनकी सिद्ध होने पर साधक। कृमि नाशक, रक्त पित्त नाशक, नेत्र रोग की चिकित्सा, वात पीड़ा की चिकित्सा कुछ खुजली के रोग, त्वचा के रोग इसी प्रकार के कुछ रोगों का सफलतापूर्वक इलाज कर सकता है क्योंकि औषधियों का दिव्य प्रयोग करना यह यक्षिणी उन्हें सिखा देती है। इस प्रकार से इस साधना को करने वाला अद्भुत सिद्धियों के साथ आयुर्वेद का सिद्ध विद्वान हो जाता है। गुरु जी यह थी साधना और अनुभव आप इसे जरूर प्रकाशित कीजिएगा। नमस्कार गुरु जी!

इन्होंने बहुत ही दुर्लभ करंज वृक्ष के तांत्रिक यक्षिणी प्रयोग के बारे में बताया है। अगर आपको यह वीडियो और पोस्ट पसंद आया है तो लाइक करें। शेयर करें, आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद।

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