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गोरखपुर भैरवी और त्रिकाल सिद्धि भाग 3

गोरखपुर भैरवी और त्रिकाल सिद्धि भाग 3

नमस्कार दोस्तो धर्म रहस्य चैनल में आपका लोगों का एक बार फिर से स्वागत है । अब मैं क्या करती क्या बतलाऊं इसके आगे धीरे-धीरे करके फिर इसने मुझे अपनी भैरवी बना लिया । और जब मैं उठी तो मुझे पता लगा तब तक मैं बेहोश हो गई जब मैं उठी तो यह अब तक मुझे अपनी भैरवी बना चुका था । आज मेरा उपयोग त्रिकाल सिद्धि के लिए कर रहा है तो मैंने उससे कहा तुम मुझे बता रही हो क्यों नहीं तुम यहां से भाग लेती हो । उसने कहा नहीं तुम समझ नहीं पा रहे हो । इसके पास बहुत सारी सिद्धियां है अब तुम नहीं समझ पाओगे । शायद मां ही तुम्हारी रक्षा करें  या मेरी रक्षा कर पाए । नहीं तो मैं तो बंध चुकी हूं फस चुकी हूं । और इस प्रकार वह अंदर रोवासी होती हुए अपने झोपडे में वापस चली गई । फिर वह समय आया महानिशा काल का जब मेरी बलि दी जानी थी । वहां पर महाकाली माता तारा के सामने एक बड़ा सा काला मुर्गा था उसकी दोनों टांगे बंधी हुई थी ।

तीन कपाल पात्रों में मदीरा भारी थी तीन नरमुंड भी रखे हुए थे जिन पर सिंदूर लगा था । उन्हें माला पहनाई गई थी शायद उसकी पूजा की जानी बाकी होगी । मैंने देखा मेरे सामने पूर्ण नग्न अवस्था में वही भैरवी पद्मासन मुद्रा में बैठी हुई आंखे बंद किए हुए सामने है उसका सिर झुका हुआ है । गले में माला झूल रही है और मस्तक पर लाल सिंदूर है भैरवी के घने बाल कंधों से होकर स्तनों को ढकने की बेकार की कोशिश कर रहे हैं किंतु शरीर इतना बड़ा है कि आखिर बाल कितना शरीर ढक सके । फिर उस महा भयंकर कापालिक ने हवन कुंड में मांस आहुतियां देनी शुरू कर दी । धीरे-धीरे करके  ऐसा समय आ गया । जब उसने एक मुर्गे का सिर बली के रूप में दिया जिसमें फड़फड़ा हुआ मुर्गा सामने मर गया । और गर्दन कट कर अलग गिर गई । जब वह फड़फड़ा रहा था उसे देखकर मेरे मन में यही बात आयी कुछ समय बाद मेरी भी यही हालत होने वाली ।

अब उसका चामुंडेश्वर मेरे पास आया  और उसने मुझे पकड़ कर अंदर ले गया मां के सामने । और मूर्ति के सामने मेरा सर रखवा दिया ऐसे समय में जब मेरा सिर वहां पर गया । तो मैं आंतरिक शांति का अनुभव करने लगा और बिलक बिलक कर एक बालक भाती रोने लगा और मन ही मन बोलने लगा । हे मां मेरी रक्षा करो हे मां मेरी रक्षा करो क्या कोई मां अपने पुत्र की बलि चाहेगी तू तो जगन माता है पूरे विश्व को वासल्या रस पिलाने वाली हे मा मेरी रक्षा कर मां । मैं लगातार यही कहता रहा उसी समय उस तांत्रिक ने मुर्गे का जो धड़ था उसे उठा कर के कोई मंत्र पढ़ा । उसका खून मेरे गर्दन के ऊपर  डाला यही होते ही  तुरंत भैरवी रूपी वह कन्या छूमने लगी और बाल झटक झटक कर इधर-उधर पैर पटकने लगी । वह बिल्कुल नग्न रूप में ऐसे थी जैसे कोई स्वयं देवी जो है नृत्य कर रही हो ।और भयानक रूप में करने लगी इसी प्रकार करते-करते जैसे ही सिर काटने की बारी मेरी मुंडेश्वर कि आई ।

उसी समय पता नहीं एक दम से मां को मैंने याद किया और मैंने कहा मां मैं आपको अपना जीवन समर्पित करता हूं जो भी होगा देखा जाएगा । जैसे मैंने यह बोला अचानक ही मुझे एक आवाज सुनाई पड़ी । अरे मूर्ख एक स्वर आया तू त्रिकाल सिद्धि चाहता है कठोर साधना के बाद किसी किसी प्रलय को ही प्राप्त होती है बली पात्र ने पूछा तो प्रसन्नता के लिए क्या यह मेरे सामने उत्सर्ग कर रहा है । नहीं मां वह तांत्रिक बोला यह विवश किया है मैंने मां । इसे संतुष्ट करो इसका विरोध दूर करो मुझे त्रिकाल सिद्धि मिलेगी ना मां । तांत्रिक ने जोर-जोर स्वर में कहा । तब उस भैरवी के कंठ से विकट ठहकर निकला और वह चिल्लाते बोली मूर्ख तू त्रिकालदार को इतना सरल समझता है । तांत्रिक वज्र संधि की तीन बातें और तांत्रिक वज्र संधि की इन तीन गांठो में से तूने दो ही गांठे खोली है तीसरी गांठ तुझे खोलनी है । ऐसा करके उसने प्रश्न किया ।

और इतना कहते ही झूमती हुई वह भैरवी देवी आगे आकर बोली अगर स्वयं को कोई बली पशु आए यह स्वयं और देना चाहे तब तो सत्य है अन्यथा यह सब असत्य है । किसी को विवश करके कोई कार्य नहीं होता है मूर्ख । फिर उसने कहा कि अगर ऐसा है तो सबसे पहले तू अपना सिर झुका इस प्रकार उसने अपना सिर झुकाया । मां की मूर्ति के सामने अभी जैसे ही उसने अपना सिर झुकाया ही था उस पूर्ण नग्न भैरवी ने उसका सिर काट डाला और उसका सिर मां तारा मां भगवती मां काली के पास आगे कटा हुआ गिरा पड़ा था । चारों ओर सब खून ही खून बिखरा हुआ था  जैसे ही उसने सर काटा के उसके बाद तुरंत ही चंडेश्वर उसकी ओर दौड़ा । जैसे ही वह दौड़ा उस कन्या ने एक बार फिर से वह अपनी कटार से उसका भी सर काट दिया ।

उस बड़े से महाकाल समान दिखने वाले ऐसे समान व्यक्ति के गर्दन और धड़ दोनों अलग-अलग गिरे हुए पड़े थे । मैं कौतूहल उपयुक्त हो चुका था अचानक भैरवी ने मेरे हाथ पांव की रस्सी खोल दी और मैं देखता ही रह गया । और मुझे उसमें वो कन्या नहीं बल्कि एक देवी नजर आई । मैंने उसे अपने गले से लगा लिया और रोने लगा और जैसे ही गले से लगा लिया और रोने लगा तो वह देवी बोली  पगले रोता क्यों है मैं तो तेरे साथ हूं साधना मार्ग पर बराबर आगे बढ़ता चल । साथ ही संसार का कुछ दुख और कलेश भी  झेलता चल सदैव तेरे पीछे रहूंगी । अपने को अनाथ और एकाकी मत समझना जा निकल जा यहां से वह कन्या बोली । तभी बिजली कड़की और एक तूफानी सी हवा वहां आई और एकदम से मुझे चेतना सुन्न कर दी । मैं बेहोश होकर धाड गिर से पड़ा जब मैं उठा सवेरा होने वाला था चारों ओर देखा तो ना वहां कोई मंदिर था ना कोई तांत्रिक ना कोई चंडेश्वर और ना कोई भैरवी ।

मैं अजीब सा महसूस कर रहा था क्योंकि शरीर में अत्यधिक कमजोरी थी मेरी गर्दन में जो पुष्पों की माला पड़ी थी वह भी वहां पर थी । लेकिन क्योंकि उसे देखकर मुझे बड़ा अजीब सा लगा मैंने वह माला निकाल कर फेंक दी अब धीरे-धीरे करके मैं वहां से वापस गोरखपुर आया ।वहीं पर एक भयंकर तारा नाथ तांत्रिक थे उनके पास गया ।क्योंकि वह भूत प्रेत तंत्र विद्या में बहुत निपुण थे । और मैंने उनसे कहा उनको सारी बात बताई तो उन्होंने कहा कि क्या बात है । फिर धीरे-धीरे करके वह लगभग सारी बातें जान गए और समझ गए हर बात को । यह चीज चलती रही इसके बाद उन्होंने कहा ठीक है । मैं पता लगाता हूं उन्होंने अपनी प्रेत विद्या से सारी बात जान ली और फिर उन्होंने जो मुझे समझाया । मेरे लिए आश्चर्यजनक बात थी । उन्होंने कहा तुम्हें पता होना चाहिए कि सन 900 से 950 ईसवी के बीच में यहां पर एक मदन सिंह नाम का राजा राज्य करता था । जो गोरखपुर के आसपास में जिसका क्षेत्र था और परंपरा के हिसाब से वह राजा उस समय का  राजा था । वह थारू राजा कहलाता था ।

आगे जानेंगे आखिरी भाग 4 में । आपका दिन मंगलमय हो धन्यवाद ।

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